Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 78
________________ अनेक गुण है, वह जीवित है तथा जिसमें सतत् धर्म भावना प्रवाहित है, आत्म-तत्त्व के प्रति गहरा समर्पण है, वह जीवित है । शेष मनुष्य जो किसी भी अच्छे गुण और धर्मभावना से रहित हैं, उनका जीवन और मरण समान है । उनका जीवित रहना भी मरे हुए के समान है गुणवान्-धर्मी जीव मरने के बाद भी जीवित के समान स्मरण किए जाते हैं । सुसिद्धमोसहं धम्म, गिहच्छिदं च मेहुणं । कुभुत्तं कुस्सुदं णेव, मदिमंतं पयासदे ॥९२।। ___ अन्वयार्थ- (सुसिद्धमोसह) सुसिद्ध औषधि (धम्म) धर्म (गिहच्छिदं) घर का छिद्र (मेहुणं) मैथुन (कुभुत्तं) कुभोजन (च) और (कुस्सुदं) कुश्रुत (मदिमंतं) बुद्धिमान् (णेव) नहीं (पयासदे) प्रकाशित करते हैं। भावार्थ- अच्छी तरह से सिद्ध कार्यकारी औषधि, आचरण में लाये जा रहे व्रत-नियम आदि धर्माचरण, घर का छिद्र अथवा आपातकालीन दरवाजा, मैथुन-सेवन, गरीबी के कारण किया जा रहा मोटा-सस्ता भोजन तथा सने गये खोटे-अपमानजनक शब्द बुद्धिमान् मनुष्य दूसरों को नहीं बताते हैं, क्योंकि ये सब बातें कभी-कभी बहुत हानिकारक सिद्ध होती हैं ।। धम्म धणं च धण्णं च, गुरु वयण-मोसहं । सु-गहिदं च कादव्वं, अण्णहा णो दु जीवदे ॥९३॥ __ अन्वयार्थ- (धम्मं धणं च धण्णं च, गुरु वयण-मोसह) धर्म, धन, धान्य, गुरुवचन और औषधि (सु-गहिदं) अच्छी तरह ग्रहण करना चाहिए (अण्णहा णो दु जीवदे) अन्यथा जीवित नहीं बचता । भावार्थ- धर्म, धन, धान्य, गुरुवचन और औषधि इन्हें विवेकपूर्वक, सोच समझकर अच्छी तरह ग्रहण करना चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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