Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 77
________________ अन्वयार्थ- (पुंसं कम्माएदि फलं) मनुष्य को कर्मानुसार फल (प्राप्त होता है) (च) और (बुद्धी कम्माणुसारिणी) बुद्धि कर्मानुसार होती (तहावि) फिर भी (सुही) बुद्धिमान् (सुविचारेहिं, चरिया चरदे) विचार पूर्वक आचरण करते हैं । भावार्थ- मनुष्यों को कर्म के उदय से ही अच्छा-बुरा, सुखदु:ख रूप कर्मफल प्राप्त होता है और बुद्धि भी कर्मों के अनुसार होती है, फिर भी बुद्धिमान् जन अच्छी तरह सोच-विचार कर ही कोई क्रिया करते हैं, आचरण करते हैं । . जले तेलं खले गुज्झं, पत्ते दाणं मणाग वि । पण्णे सत्थं सयं जादि, वित्थरं वत्थुसक्किदो ॥९०|| __ अन्वयार्थ- (जले तेलं) जल में तेल (खले गुज्झं) खल में रहस्य (पत्ते दाणं) पात्र में दान (पण्णे सत्थं) प्रज्ञावान् में शास्त्र (मणाग वि) थोड़ा भी (सयं) स्वयं (वत्थुसक्किदो) वस्तुशक्ति से (वित्थर) विस्तार को (जादि) प्राप्त हो जाता है। , भावार्थ- अपनी शक्ति से जल में गिरा हुआ तेल, दुष्ट व्यक्ति में गया हुआ थोड़ा सा गुप्त रहस्य, सुपात्र में दिया गया थोड़ा सा दान तथा प्रज्ञावान् मनुष्य को प्राप्त हुआ थोड़ा सा ज्ञान, ये थोड़े होते हुए भी इनके आश्रय से स्वयं विस्तार को प्राप्त हो जाते हैं । सो जीवेदि गुणा जेसिं, धणं धम्मो स जीवदे । गुण धम्म विहीणस्स, जीविदं मरणं समं ॥११॥ ___ अन्वयार्थ- (जेसिं गुणा) जिसमें गुण हैं (सो जीवेदि) वह जीवित है (धणं धम्मो) जिसमें धन और धर्म है (स जीवदे) वह जीवित है (गुण-धम्म विहीणस्स) गुण धर्म विहीन का (जीविदं मरणं समं) जीवन मरण समान है। भावार्थ- जिस बुद्धिमान् मनुष्य में ज्ञान, विवेकता, निर्लोभता, संयम, सम्यग्दर्शन, निरभिमानता, क्षमाशीलता आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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