Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 74
________________ इसलिए कहा गया है, क्योंकि पानी के बिना प्राणी जीवित नहीं रह सकते । पानी के पर्यायवाची नामों में इसे जीवन और अमृत भी कहा है । अत: पानी का भी मूल्य समझना चाहिए । झत्तिं पण्णाहरी तुंडी, झत्तिं पण्णाकरी वचा । झत्तिं सत्तीहरी इत्थी, झत्तिं सत्तीकरं पयो ॥८२।। अन्वयार्थ- (झत्तिं पण्णाहरी तुंडी) तुण्डी शीघ्र बुद्धि को हरती है (झत्तिं पण्णाकरी वचा) बच शीघ्र प्रज्ञाकारी है (झत्तिं सत्तीहरी इत्थी) स्त्री शीघ्र शक्ति हरने वाली है [और] (झत्तिं सत्तीकरं पयो) पानी शीघ्र शक्ति-कर है । भावार्थ- तुण्डी-कुंदरू (एक प्रकार की वनस्पती) शीघ्र बुद्धि का नाश करने वाली है । बच (एक प्रकार की औषध में काम आने वाली सूखी लकड़ी) शीघ्र बुद्धि बढ़ाने वाली है । स्त्री सेवन शीघ्र शक्ति हरने वाला तथा जल शीघ्र शक्ति प्रदान करने वाला है। जिब्भे ! पमाण जाणेह, भोयणे भासणे वि य । अइ भुत्ती अइ वुत्ती, झत्तिं पाणावहारिणी ॥८३॥ ___अन्वयार्थ- (जिब्भे !) हे जिह्वा ! (भोयणे) भोजन में (य) और (भासणे) भाषण में (पमाण जाणेह) प्रमाण को जानो (वि) क्योंकि (अइ भुत्ती अइ वुत्ती) अधिक खाना, अधिक बोलना (झत्तिं पाणावहारिणी) शीघ्र प्राणनाशक है । भावार्थ- हे जीभ ! तुम भोजन करने में और भाषण करने में प्रमाण को जानो अर्थात् कम खाओ और कम बोलो; क्योंकि अधिक भोजन करना तथा अधिक बोलना कभी अचानक प्राणघातक भी बन जाता है । अजिण्णे भेसजं णीरं, जिण्णे णीरं बलप्पदं । भोयणे अमिदं णीरं, भोयणते विसं हवे ॥८४॥ ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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