Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 68
________________ पुरुषार्थ, इन चारों में से एक भी नहीं है, उसका जीवन निष्फल और जीवन मरण के समान है । मनुष्य में चारों पुरुषार्थ होना आवश्यक हैं, किन्तु जिसके जीवन में चारों पुरुषार्थ घटित नहीं हो पा रहे हैं, उसे कम से कम धर्म पुरुषार्थ को तो अच्छी तरह सम्पन्न कर ही लेना चाहिए क्योंकि धर्म ही कल्याणकारी है । आलस्सोवगदा विज्जा, परहत्थगदं धणं । अप्पबीयं हदं खेत्तं, णटुं सेणा अणायगं ॥६९॥ अन्वयार्थ- (आलस्सोंवगदा विजा) आलस्य को प्राप्त विद्या, (परहत्थगदं धणं) दूसरे के हाथ में गया हुआ धन (अप्पबीयं खेत्तं) अल्प-बीज युक्त खेत [और] (अणायगं सेणा) नायक रहित सेना (णटुं) नष्ट हो जाती है । भावार्थ- आलस्य करने से विद्या, दूसरे के हाथ में जाने से धन, कम बीज बोने से फसल और नायक रहित होने से सेना नष्ट हो जाती है । विद्या निरन्तर अभ्यास से, धन अपने पास रहने से, बीज पर्याप्त मात्रा में बोने से और सेना नायक-सहित होने से सुरक्षित रहती है । वित्तेण रक्खदे धम्म, विजा जोगेण रक्खदे । लज्जाए रक्खदे शीलं, सण्णारी रक्खदे गिहं ॥७०|| अन्वयार्थ- (वित्तेण रक्खदे धम्म) धन से धर्म रक्षित होता है (विज्जा जोगेण रक्खदे) अभ्यास से विद्या रक्षित होती है (लज्जाए रक्खदे शीलं) लज्जा से शील रक्षित होता है [तथा] (णारीए रक्खदे गिह) नारी से घर रक्षित होता है । भावार्थ- धन से धर्म की रक्षा, अभ्यास करने से विद्या की, लज्जाशीलता से शील की और सुशीला-स्त्री से घर की रक्षा होती है। इनके बिना ये नष्ट हो जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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