Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ दालिद्द णासणं दाणं, सीलं दुग्गदि णासणं । अण्णाण-णासिणी पण्णा, भावणा भवणासिणी ॥७१॥ अन्वयार्थ- (दालिद्द णासणं दाणं) दान दारिद्र्य नाशक है (सीलं दुग्गदि णासणं) शील दुर्गति नाशक है (अण्णाण-णासिणी पण्णा) प्रज्ञा अज्ञान नाशिनी है [तथा] (भावणा भवणासिणी) भावना भव नाशिनी है । भावार्थ- दान देने से दरिद्रता का नाश होता है, शीलब्रह्मचर्य आदि व्रतों का पालन दुर्गति का नाश करने वाला है, निरन्तर ज्ञानाभ्यास तथा कर्मों के क्षयोपशम से उत्पन्न प्रज्ञा अज्ञाननाशिनी है और हमेशा शुभभाव-शीलता भवभ्रमण का नाश करने वाली है। अत्थणासं मणोदावं, गेहिणी चरिदाणि य । वंचणं अवमाणं णो, मदिमंतं पयासदे ॥७२॥ अन्वयार्थ- (अत्थणासं मणोदावं) अर्थनाश, मनो-ताप (गेहिणी चरिदाणि) स्त्री का चरित्र (वंचणं) वंचना (य) और (अवमाणं) अपमान (मदिमंतं) बुद्धिमान (णो पयासदे) प्रकाशित नहीं करते हैं । भावार्थ- धन का नष्ट हो जाना, मन का संताप, अपनी स्त्री का खोटा चरित्र, वंचना-ठगे जाने की कथा तथा पूर्व में हुए अपने अपमान को बुद्धिमान् लोग प्रकाशित नहीं करते हैं अर्थात् दूसरों को ये सब बातें नहीं बताते हैं; क्योंकि ये बातें दूसरों को बताने से लाभ कुछ भी नहीं होगा, उल्टे निन्दा और बदनामी ही हाथ लगेगी । णत्थि मेहसमं णीरं, णत्थि अप्पसमं बलं । णत्थि चक्खुसमं तेयं, णत्थि धण्णसमं पियं ॥७३॥ अन्वयार्थ- (णत्थि मेहसमं णीरं) मेघ के समान पानी नहीं है (णत्थि अप्पसमं बलं) अपने बल के समान बल नहीं है (णत्थि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98