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क्या है (विज्जाणं) विद्वान के लिए (किं विदेसो) विदेश क्या है (य) और (पियवादिणं) प्रियवादियों को (को परो) पर कौन है ।
भावार्थ- समर्थ मनुष्यों के लिए भार क्या है ? निरन्तर उद्यम करने वाले व्यक्ति के लिए दूर क्या है ? शास्त्रों में पारंगत, देश-काल-परिस्थितियों को जानने वाले विद्वान के लिए विदेश क्या चीज है ? कुछ भी नहीं । और प्रिय वचन बोलने वाले के लिए दूसरा (पर) कौन है ? कोई भी नहीं । वस्तुत: ये सभी अपनेअपने कार्यों को साधने में पारंगत होते हैं ।। उवसग्गे य आतंके, दुभिक्खे य भयावहे । असाहुजण-संसग्गे, पलायदे स जीवदे ॥६७॥
अन्वयार्थ- (भयावहे) भयंकर (उवसग्गे) उपसर्ग के आने पर (आतंके) आतंक के होने पर (दुब्भिक्खे) दुर्भिक्ष के पड़ने पर (य) और (असाहुजण-संसग्गे) दुर्जनों का संसर्ग होने पर [जो] (पलायदे) भाग लेता है (स) वह (जीवदे) जीता है ।
भावार्थ- भयंकर उपसर्ग आने पर, गुण्डा-बदमाश द्वारा आतंकित किये जाने पर अथवा भयंकर बीमारी फैलने पर, भयंकर दुर्भिक्ष के समय तथा दुष्टजनों से तकरार होने पर जो भाग जाता है, वही जीवित बचता है ।
धम्मत्थकाम-मोक्खाणं, जस्सेगोवि ण विजदे । णिप्फलं तस्स जम्मं च, जीविदं मरणं समं ॥६८॥
अन्वयार्थ- (जस्स) जिसके(धम्मत्थकाम-मोक्खाणं) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में से (एगो वि णो विजदे) एक भी विद्यमान नहीं है (तस्स जम्म) उसका जन्म (णिप्फलं) निष्फल है (च) और (जीविदं मरणं समं) जीवन मरण के समान है ।
भावार्थ- जिस मनुष्य में धर्म-धार्मिक आचरण, अर्थ-धनसम्पत्ति, काम-भोग-सामग्री तथा मोक्ष अर्थात् मोक्ष प्राप्ति हेतु तीव्र
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