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भावार्थ- मनुष्य का धन क्षय होने पर उसके तेज, लज्जा, बुद्धि, स्वाभिमान्, सत्यवादिता, ज्ञानशीलता, पौरुष, ख्याति, पूजा, कुल और शील आदि गुण धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं | धन के सद्भाव में जिस तरह गुण-सम्पन्नता सम्भव है, धन के अभाव में उस तरह की गुणसम्पन्नता अत्यन्त दुर्लभ है ।
कनं हिदं मिदं सेहूं, सव्वसत्त-सुहायरं । मधुरं वच्छलं वक्वं, वत्तव्वं सज्जणे हि य ||३५||
अन्वयार्थ- (कजं. हिदं मिदं सेट्ठ) कार्यकारी, हित, मित, श्रेष्ठ (सव्वसत्त सुहायरं) सब जीवों को सुखकारी (मधुरं) मधुर (य) और (वच्छलं वकं) वात्सल्य युक्त वाक्य (सज्जणेहि) सज्जनों के द्वारा (वत्तव्वं) बोले जाने चाहिए । ___भावार्थ- सज्जन-पुरुषों के द्वारा कार्यकारी, हितकारी, सीमित, श्रेष्ठ-आगम सम्मत, सभी सुनने वाले जीवों को सुखकारी, मधुर और वात्सल्य-भाव युक्त वचन ही बोले जाने चाहिए । यूँ तो हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए, परन्तु ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए जिससे किसी को बहुत दु:ख उठाना पड़े | मणमेव मणुस्साणं, कारणं बंधमोक्खणो । गेहासत्तं च बंधस्स, मोक्खस्स संजमे द्विदो ॥३६|| ___अन्वयार्थ- (मणुस्साणं) मनुष्यों का (मणमेव) मन ही (बंधमोक्खणो) बन्ध-मोक्ष का (कारणं) कारण है (गेहासत्तं बंधस्स) घर में आसक्त बन्ध का (च) और (संजमे ह्रिदो) संयम में स्थित (मोक्खस्स) मोक्ष का । .
भावार्थ- मनुष्यों का मन ही उनके बन्ध और मोक्ष में कारण है। घर-गृहस्थी में आसक्त मन कर्मबन्ध का कारण है तथा रागद्वेष से रहित संयम में स्थित मन मोक्ष का अर्थात् संसार से मुक्ति का कारण है । अत: मन को वश में कर आत्मकल्याण का पुरुषार्थ करना चाहिए ।
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