Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 62
________________ नहीं आदर पूर्वक कराए जाने पर मीठा लगता है, बन्धुजन संख्या में अधिक होने पर नहीं अपितु अनुकूल होने पर अच्छे लगते हैं तथा मित्र धनवान् होने पर नहीं अपितु निष्कपट व्यवहार करने से अच्छा लगता है, शोभित होता है । मेहहीणा हदा देसा, पुत्तहीणं हदं धणं । विजाहीणं हदं-रूवं, हदं देहं अचारिदं ॥५६|| __ अन्वयार्थ- (मेहहीणा) मेघ रहित (देसा) देश (हदा) नष्ट हो जाते हैं (पुत्तहीणं हदं धणं) पुत्रहीन का धन नष्ट हो जाता है (विजाहीणं हदं-रूवं) विद्याहीन का रूपवान् होना बेकार है [तथा] (हदं देहं अचारिदं) बिना आचरण के शरीर नष्ट के समान है । भावार्थ- जिन देशों में बहुत समय तक पानी नहीं गिरता वे देश अकाल पड़ने से नष्ट हुए के समान है, पुत्रहीन व्यक्ति का धन भी नष्ट हुए के समान है, विद्या-ज्ञानरहित मनुष्य का सुन्दर रूप बेकार है और आचरण अर्थात् व्रत-नियमों से रहित शरीर नष्ट के समान ही है। अहियारो य गब्भो य, रिणं च साण-मेहुणं । आरभे सुह-भासेदि, णिग्गमे दुहमेव हि ॥५७।। अन्वयार्थ- (अहियारो य गब्भो य रिणं च साण-मेहुणं) अधिकार, गर्भ, ऋण और श्वान-मैथुन [इनके] (आरभे) प्रारम्भ में (सुह-भासेदि) सुखं मालूम पड़ता है (णिग्गमे) निर्मम के समय [ये] (दुहमेव हि) दु:खरूप ही है । ____ भावार्थ- अधिकार प्राप्त होते समय बहुत अच्छा लगता है, अपने आप पर गर्व महसूस होता है, किन्तु जब छूटता तब दु:ख होता है । गर्भ जब धारण किया जाता है तब अच्छा लगता है, किन्तु प्रसूति के समय महान् दुख होता है । ऋण-कर्ज लेते समय अच्छा मालूम पड़ता है किन्तु जब चुकाने (देने) का समय आता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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