Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 42
________________ वाले कीर्त्ति - ख्याति, धृति-धैर्य, लक्ष्मी - श्रीमंतता, ही - लज्जा और धी - बुद्धि ये पाँच देवता ( गुण) उसी समय नष्ट हो जाते हैं । अतः किसी से कभी कुछ नहीं माँगना चाहिए । जीवंतो वि जडो पंच भासते सयलागमे । दालिद्दो बाहिओ मूढो, पवासी णिच्च - सेवगो ||१०|| अन्वयार्थ- (दालिद्दो बाहिओ मूढो पवासी णिच्चसेवगो) दरिद्र, व्याधि-युक्त, मूर्ख, प्रवासी, नित्यसेवक [ये] (पंच) पाँच (सयलागमे) सम्पूर्ण शास्त्रों में (जीवंतो वि जडो) जीते हुए भी मृत ( भासते) कहे गये हैं । भावार्थ- दरिद्र - धनहीन, हमेशा बीमार रहने वाला, अत्यन्त मंदबुद्धि वाला अथवा पागल, प्रवासी - विदेश में रहने वाला तथा हमेशा दूसरों की सेवा करने वाला ये पाँच प्रकार के मनुष्य जीवित रहते हुए भी मरे के समान कहे गये हैं । वेरो वेस्साणरो बाही, वादो विसणलक्खणो । महाणत्थस्स जायंते, वकारा पंच वज्जिदा ||११|| अन्वयार्थ - (वेरो वेस्सारणो बाही, वादो विसणलक्खणो) वैर, वैश्वानर, व्याधि, वाद, व्यसन-शीलता (महाणत्थस्स जायंते) महा अनर्थ के लिए होते हैं [इसलिए] (वकारा पंच वज्जिदा) ये पाँच वकार छोड़ देना चाहिए । " भावार्थ- बैर-द्वेष भाव वैश्वानर- अग्नि, बीमारी, वाद-विवाद और व्यसनों में तल्लीनता ये पाँच वकार महा - अनर्थ की जड़ हैं, अत: विवेक-विचार पूर्वक इनका त्याग कर देना चाहिए । इन पाँचों में से एक भी मनुष्य के जीवन को नष्ट कर डालता है । ये पाँचों 'व' अक्षर से प्रारम्भ होते हैं, इसलिए इन्हें पंच-वकार कहा गया है । Jain Education International ३१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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