Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 40
________________ तवे सुदे धिदिज्झाणे, विवेगे संजमे हि य । जे वुड्डा सुटु ते वुड्डा, णो पुणो सेड-केसेहि ||५|| अन्वयार्थ- (तवे सुदे धिदि-झाणे विवेगे संजमे य) तप, श्रुत, धृति, ध्यान, विवेक और संयम में (जे) जो (सट्ठ) अच्छी तरह से (वुड्डा) वृद्ध हैं (हि) वस्तुत: (ते वुड्डा) वे ही वृद्ध हैं (णो पुणो सेड-केसेहि) न कि सफेद बालों से । भावार्थ- जो तप, श्रुत-ज्ञान, धृति-धैर्य, ध्यान, विवेकशीलता, संयमसाधना आदि अनेक गुणों से युक्त हैं, वस्तुत: वे ही वृद्ध हैं; चाहे उनकी उम्र कितनी ही क्यों न ही । गुणों से वृद्ध ही वृद्ध है, न कि केवल सफेद बालों युक्त वृद्ध व्यक्ति । धम्मत्थ-काम-मोक्खं च, उच्चकित्तिं दएन जा । सा विजा जेण णाधीदा, तस्स जम्मो हि णिप्फलो ॥६॥ अन्वयार्थ- (जा) जो (धम्मत्थ-काम-मोक्खं) धर्म-अर्थकाम-मोक्ष (च) और (उच्चकित्तिं) उच्चकीर्ति को (दएज) देती हैं (सा विजा) वह विद्या (जेण) जिसने (ण अधीदा) नहीं पढ़ी (हि) वस्तुत: (तस्स) उसका (जम्मो) जन्म (णिप्फलो) निष्फल है । भावार्थ- जो धार्मिक- पारमार्थिक विद्या (ज्ञान) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तथा उत्तमकीर्ति को प्रदान करती है, वह विद्या जिसने नहीं पढ़ी अर्थात् जिसने धार्मिक जैन-शास्त्रों का अच्छी तरह अध्ययन नहीं किया उसका जीवन ही निष्फल हो गया ऐसा समझो । अदायं पुरिसें चागी, धणं चत्तूण गच्छदे । दायारं किविणं मण्णे, पर-भवे ण मुंचदे ॥७॥ अन्वयार्थ- [मैं] (अदायं पुरिसं) अदाता पुरुष को (चागी) त्यागी (मण्णे) मानता हूँ [क्योंकि वह] (धणं चत्तूण गच्छदे) धन छोड़कर के चला जाता है [तथा] (दायारं किविणं मण्णे) दाता को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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