Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 16
________________ भावार्थ- जो व्यक्ति सभी जीवों पर दया करता है, मानना चाहिए कि उसने ही सभी प्रकार के दान, सभी प्रकार के सात्विक यज्ञ और पूजन तथा सभी तीर्थों की वन्दना अथवा तत्रस्थ जिनबिम्बों का अभिषेक किया है ।। बलेट्ठो जो णरो लोए, घादं करेदि णिब्बलं । सो परत्थ वि पप्पोदि, तम्हा दुक्खमणेगसो ॥१०॥ __ अन्वयार्थ- (लोए) लोक में (जो) जो (बलेट्ठो णरो) बलवान मनुष्य (णिब्बलं) निर्बलों का (घादं) घात (करेदि) करता है (सो) वह (परत्थ वि) परलोक में भी (तम्हा) उससे (अणेगसो दुक्खं) अनेकों दु:खों को (पप्पोदि) प्राप्त करता है । . भावार्थ- इस लोक में जो बलवान मनुष्य, निर्बल जीवजंतु, पशु-पक्षियों अथवा मनुष्यों को सताते हैं, मारते हैं, वे इस पाप के फल से उनके द्वारा परलोक में भी अनेक दु:खों को पाते हैं। अत: किसी भी जीव को दु:ख नहीं पहुँचाना चाहिए । सामी-थी-बालहताणं, सिग्घं फलदि पादगं । इह लोए परो लोए, पावंति दुह दारुणं ॥११॥ अन्वयार्थ- (सामी-थी-बालहताणं) स्वामी, स्त्री और बालकों को मारने वालों का (पादगं) पातक (सिग्घं) शीघ्र (फलदि) फलता है [जिससे वे] (इह लोए) इस लोक में [और] (परलोए) परलोक में (दारुणं-दुह) भयंकर दु:खों को (पावंति) पाते हैं । भावार्थ- स्वामी अर्थात् आजीविका देने वाला मालिक स्त्री अर्थात् कोई भी महिला तथा बालक, चाहे वह गर्भ में ही क्यों न हो, इनकी हत्या करने वाले अतिशीघ्र ही इस लोक में तथा परलोक में किए हुए पाप के महान् फल को भयंकर दु:ख पाते हुए भोगते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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