Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 27
________________ अन्वयार्थ- (दुहीए दुहणाणस्स) दु:खी के दु:ख का नाश करने के लिए (पावीए पाव-णाणस्स) पापी के पाप नष्ट करने के लिए (तथा) (भवभीरूणो) भवभीतों को (मोक्खस्स) मोक्ष के लिए (उत्तमो धम्म) उत्तम धर्म (जाणेज) जानो । भावार्थ-दु:खीजनों के दु:खों का नाश करने वाला, पापीजनों के पाप नष्ट करने वाला तथा संसार दु:खों से डरे हुए भव्य जीवों को मोक्ष प्रदान करने वाला एकमात्र उत्तम धर्म (जैन धर्म) ही है, • अन्य कोई नहीं; ऐसा जानो। छिण्णमूलो जहा रुक्खो, गद सीसो भडो तहा | धम्महीणो णरो लोए, किय-कालं सुखेजदे ॥३७॥ अन्वयार्थ- (लोए) लोक में, (जहा) जैसे, (छिण्णमूलो) जड़रहित, (रूक्खो) वृक्ष, (गद सीसो भडो) शीश रहित योद्धा, (तहा) वैसे, (धम्महीणो णरो) धर्म रहित मनुष्य (किय-कालं) कितने समय तक (सुक्खेजदे) सुखी रहते हैं । भावार्थ- लोक में यह देखा जाता है कि जड़ रहित बड़ा भारी वृक्ष भी शीघ्र नष्ट हो जाता है, सिर रहित होने पर महासुभट योद्धा भी धराशायी हो जाता है, इसी प्रकार धर्म रहित जीवन जीने वाला मनुष्य भी कितने काल तक सुखी रहता है अर्थात् शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, अत: जीवन में धर्म का होना अनिवार्य है । असक्कस्सावराहेण, किं धम्मो मलिणो हवे । णो मण्डूगे जड़े जादा, समुद्दे पूदिगंधदा ॥३८॥ अन्वयार्थ- (असक्कस्सावराहेण) अशक्त के अपराध से, (किं) क्या, (धम्मो) धर्म, (मलिणो) मलिन, (हवे) होता है, (समुद्दे) समुद्र में, (मण्डूगे जडे जादा) मेढ़क के मार जाने पर (पूदिगंधदा) दुर्गंधता (णो) नहीं होती । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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