Book Title: Nandanvan Kalpataru 2004 00 SrNo 13
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ गलज्जलिकाद्वयम् विना मृत्युना भावि जन्मान्तरं नो मृतोऽहं ततो, हन्त भूयो मरिष्ये ॥ १ ॥ (१) हन्त, भूयो मरिष्ये ! Jain Education International डॉ. अभिराजराजेन्द्रमिश्रः कुलपति: सम्पूर्णानन्दसंस्कृतविश्वविद्यालयः न यलं विना जायते लक्ष्यसिद्धिः प्रयतितं ततस्साधु, भूयो यतिष्ये ॥२॥ शतायुः स्पृहा कीदृशी कर्म हित्वा ? कृतं प्राक्ततोऽद्याऽस्मि कुर्वन् करिष्ये ॥३॥ परेषां न के सौरव्यमर्थं हरन्ति ? समेषामहं दुःखमार्तिं हरिष्ये ॥५॥ बनारस सतां शाश्वती कीर्तिता कीर्तिरूर्व्याम् सतां वर्त्म तस्मान्नितान्तं ग्रहीष्ये ||४|| तितिक्षावतामेव लोके समज्ञा ततः सोढमद्याऽपि भूयस्सहिष्ये ॥७॥ नवो भट्टमीमांसकः कोऽप्यहम्भोः ! सद्भारतीं गर्तगामुद्धरिष्ये ॥६॥ घनो जायते शोषितोऽर्केण सिन्धुः प्रशुष्कोऽपि किञ्चिन्नवीनं सहिष्ये usu यमाश्रित्य दीनोऽपि जातश्शरण्यः तमेवाऽभिराजाश्रयं संश्रयिष्ये ॥८॥ For Private Personal Use Only .www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138