Book Title: Nandanvan Kalpataru 2004 00 SrNo 13
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 23
________________ (२) प्रतिबिम्बः रुचिं वर्धयति सर्वेषामिह भुवने प्रतिबिम्बः । मनो रञ्जयति नहि केषामिह भुवने प्रतिबिम्बः ?? ॥१॥ हसिते हसति, विलपिते रोदिति, भणिते भणति तथा । हृदि दग्धे नो दहति किन्तु बिम्बैस्सह प्रतिबिम्बः ॥२॥ अश्रु पातयति, तदनु मार्जयति, भवति तुल्यधर्मा । किन्तु न पश्चात्तपति सम्मुखं सदयं प्रतिबिम्बः ॥३॥ प्रत्यक्षं दर्शयति रूपगुणदोषं निर्भीकः । क्षमते तदपि न हृदयं प्रोद्घाटयितुं प्रतिबिम्बः ॥४॥ बहु गुणयति यद्यपि सुभगम्मन्यत्वं सर्वेषाम् । किमपि सङ्कटे नो साहाय्यं कुरुते प्रतिबिम्बः ॥५॥ दर्पणतले चकास्ति निर्मले, मलीमसे नैव । सबलः क्वचित् क्वचिच्च निर्बलो भवति प्रतिबिम्बः ॥६॥ मूले नष्टे भवति विनष्टस्तत्प्रत्यययोग्यम् । मूलेऽक्षते दुर्दिने कस्मान्नति प्रतिबिम्बः सूर्यातपमहिमैव कारणं यदि तस्योद्भवने । तर्हि मुधैव बिभर्ति समाख्यां सोऽयं प्रतिबिम्बः मल्ले प्रतिमल्ले क्योपाधिः क्व प्रतिभूदृष्ट: ? किन्तु तादृशं सम्बन्धं धत्ते नो प्रतिबिम्बः TANCIE CONT TAGS ॥९॥ Jain Education International For Private 3 Osonal Use Only www.jainelibrary.org

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