Book Title: Nammayasundari Kaha Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai View full book textPage 8
________________ नर्मदा सुन्दरी कथा आ पुस्तकमां, सर्वप्रथम महेन्द्रसूरिरचित प्राकृत 'नम्मयासुन्दरीकहा' मुद्रित करवामां आवी छ । एनी कुल १११७ गाथा छ । वच्चे बच्चे केटलोक गद्यभाग पण छे। तेथी एकंदर एनो ग्रन्थान परिमाण १७५० श्लोकप्रमाण छे- एम एनी मूळ प्रतिना अन्ते ज लखेलं मळे छे । एनी रचना महेन्द्रसूरि नामना आचार्य विक्रम संवत् ११८७ मा करेली छे । महेन्द्रसूरिए करेला उल्लेख प्रमाणे मूळ ए कथा एमणे शान्तिसूरि नामना आचार्यना मुखथी सांभळी हती। महेन्द्रसूरिनी आ रचना बहु ज सरल, प्रासादिक अने सुबोधात्मक छे । कथानी घटना आबाल जनने हृदयंगम थाय तेवी सरस रीते कहेवामां आवी छे । वच्चे बच्चे लोकोक्तिओ अने सुभाषितात्मक वचनोनी पण छटा आपवामां आवी छ । प्राकृत भाषाना अभ्यासिओ माटे आ एक सुन्दर अध्ययनने योग्य रचना छ । ए मुख्य कथाना परिशिष्ट रूपे, एना पछी श्रीदेवचन्द्र सूरिनी रचेली पण एक कथा आपवामां आवी छ । देवचन्द्र सूरि ते सुप्रसिद्ध कलिकालसर्वज्ञ गणाता आचार्य हेमचन्द्रना गुरु छे । तेमणे पोताना पूर्वगुरु, आचार्य प्रद्युम्नसूरिरचित 'मूलशुद्धिप्रकरण' नामना प्राकृत ग्रन्थ उपर विस्तृत टीकानी रचना करी छे । ए टीकामां उदाहरण रूपे, अनेक प्राचीन कथाओनी संकलना करी छे, तेमां प्रस्तुत 'नम्मयासुन्दरी' अर्थात् नर्मदासुन्दरीनी कथा पण, प्रसंगवश, संक्षेपमा आलेखी छे । देवचन्द्र सूरिनी आ रचना लगभग २५० जेटली गाथामां ज पूरी थाय छे । पण कथागत मूळ वस्तुनुं परिज्ञान मेळववा माटे आ रचना पण बहु उपयोगी छे। खरी रीते महेन्द्रसूरि वाळी कथानो मूलाधार आ देवचन्द्र सूरिनी ज रचना होवानो संभव छ । देवचन्द्र सूरिना अन्तिम उल्लेख प्रमाणे नर्मदासुन्दरीनी मूळ कथा वसुदेवहिंडी नामना प्राचीन कथाग्रन्थमां गूंथेली छे अने तेना ज़ आधारे देवचन्द्र सूरिए पोतानी रचना करेली छे । देवचन्द्र सूरिनी कृति पछी जिनप्रभ सूरिए अपभ्रंश भाषामां रचेली 'नमयासुन्दरिसन्धि' नामनी कृति मुद्रित करवामां आवी छ। आ कृति अपभ्रंश भाषाना अभ्यासनी दृष्टिए तेम ज नर्मदासुन्दरीकथागत वस्तुनुं तुलनात्मक अध्ययन करवानी दृष्टिए उपयोगी थाय तेम छे। एज रीते, ते पछी मेरुसुन्दर गणिए प्राचीन गुजराती गद्यमां लखेली 'नर्मदासुन्दरी कथा' पण मुद्रित करवामां आवी छे । मेरुसुन्दर गणिए 'शीलोपदेशमाला' नामना प्राचीन प्राकृत ग्रन्थ उपर, प्राचीन गुजराती भाषामां बहु ज विस्तृत बालावबोध नामनुं विवरण लख्यु छे, जेमा आवी अनेकानेक प्राचीन कथाओ आलेखित करवामां आवी छ । प्राकृत मूल कथाना अध्ययन अने विवेचनमा उपयोगी होवाथी आ रचना पण अहीं संकलित करवामां आवी छ। एम, २ प्राकृत रचना, १ अपभ्रंश भाषारचना, अने १ प्राचीन गुजराती गद्य रचना- मळीने ४ कृतिओनो आ सुन्दर संग्रह 'सिधी जैन ग्रन्थमाला'ना ४८ मा मणिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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