Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 7
________________ - किंचित् प्रास्ताविक महेन्द्रसूरि रचित 'नम्मयासुन्दरी कहा' (सं० नर्मदासुन्दरी कथा )नी मूळ प्रति, मने सन् १९४२-४३ मां जैसलमेरना ज्ञानभंडारोन अवलोकन अने संशोधन करती वखते दृष्टिगोचर थई हती । कागळ पर लखेली ए प्रति कोई ५०० वर्ष जेटली प्राचीन जणाती हती । में ते वखते तेना परथी प्रतिलिपि करावी लीधी । सिंघी जैन ग्रन्थमालामा विशिष्ट रचनावाळी प्राकृत कृतिओ प्रकट करवानो जे उपक्रम में कर्यो हतो, तेमां आ कथाने पण प्रकट करी देवानो मारो विचार थयो अने तदनुसार प्रेस माटे कोपी तैयार करवा मांडी। ए दरम्यान, विदुषी कुमारी प्रतिभा त्रिवेदी एम्. ए. ए, मारा मार्गदर्शन नीचे, बम्बई युनिवर्सिटीमां पीएच्. डी. माटे पोतानुं रजीस्ट्रेशन नोंधाव्युं अने भारतीय विद्याभवनमा प्रविष्ट थई अध्ययन करवानी इच्छा व्यक्त करी । में ए बहेनने पोताना थिसीझ माटे प्रस्तुत कथानुं विशिष्ट परीक्षणात्मक संपादन करवानुं कार्य सूचव्यु, जे एमणे बहु उत्साहथी स्वीकार्यु अने मारा मार्गदर्शन प्रमाणे, एमणे बहु ज खंतथी पोतानुं अध्ययन चालु कयु। ___ जूना हस्तलिखित ग्रन्थोनी लिपि वांचवा-उकेलवामां अने शास्त्रीय संपादननी दृष्टिए प्राचीन ग्रन्थोना पाठो विगेरेनी अशुद्धि-शुद्धि आदि माटे केवी दृष्टिए काम लेवू विगरे विषयमां, ए बहेने सारो श्रम उठाव्यो अने तेमां योग्य प्रावीण्य मेळव्यु । प्रस्तुत कथानी मूळ वाचना बराबर तैयार थई गया पछी में एने प्रेसमां छापवा आपी दीधी अने धीरे धीरे एनुं मुद्रण कार्य थतुं रघु । बीजी बाजू कुमारी त्रिवेदीए, एना अंगेना परीक्षणात्मक विवेचननी संकलना करवानुं काम चालु राख्यु । केटलोक समय व्यतीत थतां एमनी शारीरिक स्थिति जरा अस्वस्थताजनक रहेवा लागी अने तेथी एमर्नु अध्ययनात्मक कार्य अटकी पड्यु । ए दरम्यान मारो पण बम्बईनो निवास अस्थिर बन्यो अने हुं राजस्थाननी नूतन राजधानी जयपुरमां, मारा निर्देशन नीचे स्थापवामां आवेल 'राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर 'नी रचना अने व्यवस्था माटे वारंवार त्यां जवा-आववामां व्यस्त रहेवा लाग्यो । वच्चे वच्चे, ज्यारे ज्यारे, बम्बई आववानो प्रसंग आवतो त्यारे ए बहेनने पोताना थिसीझनुं काम पूर्ण करवा सूचना करतो रहेतो। परंतु समयनुं व्यवधान थई जवाथी तेम ज ते पछी भारतीय विद्याभवनमा संस्कृत भाषाना अध्यापन- कार्य पण स्वीकारी लेवाथी, एमने पोताना थिसीझनुं कार्य हाल तरत पूर्ण करवा जेटलो अवकाश अने उत्साह बंने न जणावाने लीधे, में आ कथाने अत्यारे आम मूळ रूपे ज प्रकट करी देवार्नु उचित धायुं छे । जो ए बहेन नजीकना भविष्यमा पोतानुं थीसीझ पूर्ण करशे तो ते, एना परिशिष्ट रूपे बीजा भागमा प्रकट करवानी व्यवस्था थशे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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