Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 13
________________ किया है । निःसंदेह इसमें बहुतसी त्रुटियां अब भी मौजूद होगी। इस के कई कारण है-प्रथम तो मेरी मातृभाषा हिन्दी नहीं, गुजराती है। दुसरा कारण वश इसे बहुत शीघ्रतासे प्रकाशित किया है फिर भी यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि मैंने ग्रंथको अधूरा नहीं रक्खा है। इस ग्रंथ की पूर्ण प्रेसकोपी जयपुर निवासी राज्यज्योतिषी पं. गोकुलचन्द्रजी भावन द्वारा ज्योतिषशास्त्री पं. श्यामसुन्दरलालजी भावन ने पूर्ण परिश्रम लेकर सुधार दी है। तथा मुद्रितफॉर्म पाली (मारवाड) निवासी दैवज्ञभूषण ज्योतिषरत्न पं. मीठालालजी व्यास ने सुधार दिये है। इस लिये उन सबका आभार मानता हूँ। इसको शुद्ध करनेके लिए निम्न लिखित सज्जनों ने मेधमहोदय की हस्त लिखित प्रतिये भेजने की कृपा की है. इसलिये मैं उनका भी पूर्ण उपकार मानता हूँ। १ श्रीमान् पूज्यपाद शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वरजी के शास्त्रभंडार भावनगर से श्रीयुत अभयचन्द भगवानदास गांधी द्वारा प्राप्त । २ श्रीमान् महोपाध्याय श्री वीरविजयजी शास्त्रसंग्रह बडोदा से श्रीयुत पं. लालचन्द भगवानदास गांधी द्वारा प्राप्त । ३ श्रीमान् मुनि महाराज श्री अमरविजयजी से प्राप्त । ४ जयपुर निवासी राज्यज्योतिषी पं. मुकुन्दलालजी शर्मा से प्राप्त। ५ पाली निवासी देवज्ञभूषण ज्योतिषरत्न पं. मीठालालजी व्यास से प्राप्त। . उक्त पांच प्रति प्रायः इसी शताब्दी में लीखी हुई अशुद्ध थी, इनमें जयपुरवाले पंडितजी की प्रति में कहीं २ प्राचीन टिप्पणी भी थी वह मैंने यथा स्थान लगा दी है। किंतु यही प्रति पं. श्यामसुन्दरलालजी भावनके पास प्रेसकोपी सुधारने के लिये रह जाने से विलंबसे मिली. जिस से जो बाकी रही गई टिप्पणियें मैंने ग्रंथ के अंतमें लीख दी है, आशा है- पाठक गया वहां से देख लेंगे। विद्वान् जनों से सविनय प्रार्थना है कि मेरी मातृभाषा गुजराती होने से हिन्दी अनुवाद में भाषा की तो बहुतसी त्रुटियां अवश्य होंगी: परंतु कहीं श्लोकों का गूढ श्राशय में भूल देखने में आवे तो उसे सुधार कर पढ़ने की कृपा करें और मेरेको सूचित करेंगे तो दूसरी प्राप्ति में सुधार दी जायगी। जैसे "Aho Shrutgyanam"

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