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११ ब्रह्मबोधे
१२ लघुत्रिषधि चरि १३ भक्तामरस्तोत्र टीका
इत्यादि उपलब्ध ग्रन्थरत्नों से आपके न्यायव्याकरण साहित्य विषयक प्रखर पाण्डित्य का पता लगता है। इसके अतिरिक्त गुजराती भाषामें भी कईएक रासा आदि जोड़कर गुजराती भाषा साहित्य की वृद्धि की है इससे साफ मालूम होता है कि आप का शान परिमित नहीं-अत्यन्त विशाल था।
प्रस्तुत ग्रंथ तेरह अधिकारोंमें अनेक विषयोंसे पूर्ण हुआ है । जैसेउत्पात प्रकरण, कर्पूरचक्र,पभिनीचक्र,मण्डल प्रकरण, सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहण फल, प्रत्येक मासमें वायुका विचार, वर्षा को बरसानेका और बंध करनेका मंत्र यंत्र, साठ संवत्सरोंका मतमतान्तर-पूर्वक विस्तार से फल, ग्रहों का राशियों पर उदय अस्त या वक्री हो उनका फल, प्रयन मास पक्ष और दिन का विचार, संक्रांति फल, वर्षके राजा मंत्री प्रादि का विचार, वर्षा के गर्भ का विचार, विश्वाविचार, प्राय और व्ययका विचार, सर्वतोभद्रचक्र और वर्षा जानने का शकुन, इत्यादि उपयोगी विषयोंका अनेक मतमतान्तरोंसे विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। इसका प्रतिदिन अनुशीलन किया जाय तो अगले वर्ष में दुष्काल होगा या सुकाल, वर्ग कब और कितनी कितने दिन बरसेगी, धान्य, सोना चांदी आदि धातु, कपास, सूत और क्रयाणक वस्तु, इन सब का तेजी होनाया मंदी ये अच्छी तरह जान सकते है।सारांश यही है किभावी वर्ष का शुभाशुभ जानने के लिए कोई भी विषय इसमें नहीं छोड़ा है।
वर्षप्रबोध के नाम से हिन्दी भाषा के साथ दो संस्करण और हो गये हैं। एक मुरादाबाद निवासी पं. ज्वालाप्रसादजी मिश्र अनुवादित ज्ञानसागरप्रेस बम्बईसे और दूसरा जयपुर निवासी पं.हनूमानजी शर्मा अनुवादित श्री वेङ्कटेश्वरप्रेस बम्बई से प्रकट हुअा हैं । पहले अनुशुभ फलादेश जानने के लिये अत्युत्तम है । यह 'मिद्धज्ञान' नाम से भी प्रसिद्ध है ।
११ प्राध्यात्मिक विषय का ग्रंथ है।
१२ चौवीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव और नव बलदेव ये तेसट महान् उत्तम पुरुषों का चरित्र ५००० श्लोक प्रमाण है और विस्तारसे कलि काल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने ३६००० श्लोक प्रमाण रचा है।
१३ श्रीमान् मानतुंगसूरि विरचित भक्तामर स्तोत्रकी विस्तार पूर्वक टीका है।
"Aho Shrutgyanam"