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३ दिगविजयमहाकाव्यै ५ चंद्रप्रभा
७ युक्तिप्रबोधनाटक
६ सप्त संघनामहाकाव्यं
मेघदूतसमस्यालेख ६ मातृकाप्रसाद विजयदेवमाहात्म्यविवर
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१० हस्तसंजीवनें
३. यह त्रयोदश सर्गीय महाकाव्य में जैनाचार्य श्री विजयप्रभसूरि का आदर्श जीवन विस्तार पूर्वक बर्णित हैं ।
४] ग्रंथकर्त्ता दक्षिण देश में औरंगाबाद नाम के नगर में चातुर्मास रह थे, वहां से सोरठ देश में द्वीपबंदर नामके नगर में चातुर्मास रहे हुए गच्छाधीश्वर श्रीविजयप्रभसूरिजी के पास विज्ञप्तिपत्रिकारूप भेजा हुआ श्री कालीदास विरचित मेघदूत महाकाव्य की पादपूर्तिरूप यथार्थ नामवाला यह ग्रंथ नगरादि का वर्णन सरस सुंदर लोकों से वर्णित है । यह आत्मानंद जैन ग्रंथमाला का २४ वां रत्न रूपसे प्रकाशित हो गया है ।
५. यह व्याकरणविषय का ग्रंथ श्रीहेमचंद्राचार्य विरचित सिद्धमव्याकरण के सूत्रों को अष्टाध्याय क्रमसे हटाकर सूत्रोंको प्रयोग सिद्धि की परिपाटी रूप रखकर रचा है । इस लिये पाणिनीय व्याकरण की कौमुदी की तरह इसको भी सिद्ध हेमव्याकरण की ' हैमकौमुदी' या 'चन्द्रिका' कहते है । यह पांच हजार लोक प्रमाण है और गोपालगिरि नग में विक्रम संवत १७५५ में रचा है ।
६. अध्यात्म विषय का ग्रंथ है, इसमें ॐ नमः सिद्धम्' इस वर्णाम्नाय का बिस्तारपूर्वक विवेचन करके ॐ शब्द का रहस्य को अच्छी तरह स्फुट किया है। धर्मनगर में विक्रम संवत् १७४७ में रचा है ।
७ यह भी मुख्यतया अध्यात्म विषय का ग्रंथ है।
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= पन्यास श्रीवल्लभविजयगण ने रवा है, इसमें कितने प्रयोगों का इस थकार स्फुटतया विवेचन किया है ।
8 इसमें जैनदर्शन के कथनानुसार श्री ऋषभनाथ, श्रीशान्तिनाथ, श्री पार्श्वनाथ, श्रीनेमिनाथ और श्री महावीरस्वामी इन पांच तीर्थकरों का तथा श्रीकृष्णवासुदेव और श्रीगमचंद्र इन सात उत्तम पुरुषों का माहात्म्य वर्णित है। इन महान पुरुषों का पवित्र जीवन सदृश न होने पर भी सदृश शब्दों से भिन्न घटनाओंका वर्णन करके 'सप्तसंधान' नाम यथार्थ किया । तथा अनुप्रासले यमक इत्यादि शाब्दिक और आर्थिक अलंकार युक्त सेवन विहार आराम ऋतु नगर आदि का वर्णन यथास्थित करके महाकाव्य की पंक्ति में इसको उत्तम बनाया है। यह जैन विविध साहित्य शाम्रमाला ३ गं पुष्प रूपमे प्रकाशित हुमा है I
१० सामुद्रिक विषय का ग्रंथ है, इसमें हस्त की रेखाओं पर से भविष्य का शुभा
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