Book Title: Meghmahodaya Harshprabodha
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 8
________________ प्रस्तावना. हरएक मनुष्य को प्रायः यह वर्ष कैसा होगा? वषां कब और कितनी बरसेगी? सुकाल होगाया दुकाल? अन्न सस्ता होगा या महँगा? इत्या-- दि जानने की बहुत उत्कंठा रहा करती है अतः इनके भावी शुभाशुभ का जानने के लिये प्राचीन प्राचार्यों ने ज्योतिष- फलादेश के अनेक ग्रथों का निर्माण किया हैं, उनमेसें अनेक प्राचीन ग्रंथों का साररूप संग्रह कर के रचा हुआ यह ग्रंथ सुभित दुर्भिक्ष वृष्टि आदि जानने का प्रत्युत्तम साधन हैं। प्रस्तुत ग्रंथ के रचयिताप्रवरपंडितमहामहोपाध्याय-श्री मेधविजयगणि हैं। ये अठारहवीं शताब्दीमें तपागञ्छगणनायक जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरीश्वरजी के पट्टपरंपरा आये हुए जैनाचार्य श्रीविजयप्रभसूरि और जैनाचार्य श्रीविजयरत्नसूरि के शासनमें विद्यमान थे। इन्होंने अपनी वंशपरंपरा अपने बनाये हुए शान्तिनाथचरित्र-महाकाव्य के अंतमें इस प्रकारलिखी है" तदनु गणधरालीपूर्वदिगभानुमाली विजयपदमपूर्व हीरपूर्व दधानः ॥६॥ कनकविजयशर्माऽस्यान्तिषत् प्रौढधर्मा शुचितरवरशीलः शीलनामा तदीयः। कमलविजयधीरः सिद्धिसंसिद्धितीर स्तदनुज इह रेजे वाचकश्रीशरीरः॥६७॥ चारित्रशब्दाद् विजयाभिधान स्त्रयी सगधृाशीलधर्मा । एषां विनयाः कवयः कृपाद्याः पद्यास्वरूपाः समयाम्बुराशौ ॥६८॥ नत्पादाम्बुजभृङ्गमेघविजयः प्राप्तस्फुरद्वाचक ख्यातिःश्रीविजयप्रभाख्यभगवत्सूरेस्तपागच्छपात्। नुनोऽयं निजमेरुपूर्वविजयप्राज्ञादिशिष्यैरिमां चक्रे निर्मलनैषधीयववतः श्रीशान्तिक्रिस्तुतिम् ॥६६॥" "Aho Shrutgyanam"

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