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भी उनने महावीर को गृहत्याग से विरत करने के लिये जो कौशलपूर्ण यत्न किये वे सुनके पूर्ण प्रतिप्रेम के परिचायक तो है ही, साथ ही एक सम्भ्रांत कुल की वधू के योग्य भी हैं। यद्यपि नारी के साथ एक प्रकार की दुश्मनीसी रखनेवाले जैन शास्त्रकारों ने यशोदादेवी को बिलकुल भुला दिया है परनिने लम्बे युग में यशोदादेवी ने अपने पति से कुछ भी न कार हो यह असम्भव है । जो कुछ सम्भव था उसका वर्णन मैंने काफी विस्तार से किया है । दृसरे प्रकरण (पृष्ट २३ ) से १६ व प्रकरण (पृष्ट ६४) तक यह अन्तस्तल महावीर के अन्तलल के साथ यशोदा का अन्तस्तल बनगया है । यशोदादेवी के निमिन ने महावीर जीवन की कई बात स्पष्ट हुई हैं। इसमें मुख्य है लौकान्तिक देवों की घटना।
जैन शास्त्रों में महावीर जीवन के साथ जिसप्रकार देय. ताओं को मिला दिया गया है वह तो अविश्वसनीय और मिथ्या है ही, पर लोकान्तिक देवों का आगमन तो बिल्कुल व्यर्थ भी मालूम होता है। पर इसका चित्रण जिस प्रकार यशोदादयां की अनुमति के प्रकरण ( १६वें) में किया गया है, असले लोका. न्तिक देवों चाली घटना एफ आवश्यक, महत्वपूर्ण और सन्मय घटना बनगई है । और उसकी सुठो दिव्यता भी दूर होगा।
ग्वाल के आक्रमण पर इन्द्रागमन की बात भी १९. में प्रकरण में काफी साफ रूप में आई है। और इसमें यहादादेवी की योजना के मिलने से यह सम्भव रूप तो पा दी गई साय ही यशोदादेवी का प्रतिप्रेम चरमसीमा पर पांगरा और सारा चित्र करुण रस से भर गया है।
जैन शास्त्रों में यशोदादेवी का वर्णन सिर्फ दो पीला में है कि " यशोदा नाम की राजकुमारी ले वर्धमान कुमार का