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- मैंने भी उपलब्ध सामग्री के सहारे पूरी मनोवैज्ञानिकता और तन्मयता के साथ महावीर हृदय को पढ़ने की कोशिश की है । इस विषय में मैंने इन दोनों किनारों को सम्हालने की । कोशिश की है कि म. महावीर की महामानवता को धक्का न लगे और उनकी मानवता नष्ट न होजाय । साथ ही इस बात का भी पूरा ध्यान रक्खा है कि उनके भावचित्र: उनके स्वभाव से तथा कायों से मेल खाते हो। अन्तस्तल के इन चित्रों से घटनाओं का, सिद्धान्तों का, जैनधर्म के आचार-विचारों का मर्म समझने में काफी सहूलियत होती है। ५- तुलना--
महावीर जीवन और जनधर्म का जो रूप शास्त्रों में उपलब्ध है उसी के आधार से यह अन्तस्तल लिखा गया है फिर भी इसमें कुछ परिवर्तन हुआ है, सुधार हुआ है। जो लोग जैनधर्म के अच्छे विद्वान जानकर हैं व तो इस अन्तर को जल्दी समझलेंगे पर अन्य पाठकों को इसमें कठिनाई होगी इसलिये यहां वह सब अन्तर या विशेषता संक्षेप में बतादी जाती है और विशेषता क्यों लाई गई इसका कारण भी साफ कर दिया जाता है। . . .
१- अशांति-यह प्रकरण २२ वै पृष्ठ तक है। यद्यपि कल्पित है परन्तु महावीर जीवन के अनुरूप है और आवश्यक है। इससे मालूम होता है कि उस युग की जिन सामाजिक बीमारियों की चिकित्सा महावीर स्वामी ने की, जिनकेलिये गृह त्याग किया उनका दर्शन गृहस्थावस्था में अवश्य हुआ होगा।
२- यशोदादेवी-जगत्सेवा के लिये महावीर के मन में जब से गृहत्याग के विचार आये तभी से उनकी पत्नी यशोदा, देवी चिन्तित हुई। अपने दाम्पत्य के गौरव की रक्षा करते हुए