Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 13
________________ प्रस्तावना हरिदव की छटान पीढ़ी मे आने हैं । उक्त रचना पाँच परिच्छेदों में समाप्त हुई है । इस रचना का आधार अपभ्रंश का मयणपराजय-चरिउ है । इसकी कथावस्तु एवं पात्र ज्यों के त्यों हैं । इसमें विषयवस्तु के प्रतिपादन में ही कहीं-कहीं भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इस ग्चनाका मूल अभिप्राय मदन को पराजित कर जिनेन्द्रद्रव को मोक्षपुरी पहुंचाना है । उक्त काव्यग्रन्थ के पंचम परिच्छेद में कवि ने अपनी कल्पनाशक्ति का सुन्दर परिचय दिया है । तदनुसार यमपुरी के मन्दिर में कर्मधध की स्थापना की गई । जिनेन्द्रदेव द्वारा उस धनुष को तोड़े जाने की विधि सम्पन्न हुई, उनके गमले में नरमाला डाली गई, नन्द ने मुह भी के साथ मोशपुरी के लिए रवाना हुए । उक्त महत्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त भी उक्त रूपकात्मक शैली में रची गई और भी अनेक रचनाएं हैं । किन्तु इन सबका परिचय दे पाना स्थानाभाव के कारण यहाँ सम्भव नहीं । प्रतीकात्मक जैन-कथा साहित्य अर्द्धमागधी-आगम-साहित्य में ऐसे अनेक कथानक हैं, जिनमे भावात्मक गुणों को मूर्तरूप प्रदान कर उनके कार्यों द्वारा उपदेश की अभिव्यक्ति का प्रयास किया गया है । सूत्रकृतांग में "पुण्डरीक अध्ययन' नामक प्रसंग कथा के सभी अंगों से परिपूर्ण कथानक है । वह एक प्रतीकात्मक-कथा है—तदनुसार एक सरोवर था, जिसमें प्रभूत जल था और जिसमें सुगन्धित कमल खिले हुए थे । उनके बीचोंबीच एक रमणीक कमल भी खिला हुआ था, जो दूर से ही पथिक जनों को आकर्षित कर रहा था । पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं के मनुष्य उस कमल को तोड़ने के लिए सरोवर में घुसे । लेकिन कीचड़ की अधिकता के कारण वे उसीमें फँसकर रह गये । उसी समय एक भिक्षु वहां आया । वह सारी स्थिति को समझ गया । उसने तट पर खड़े होकर उस कमल पुष्पको आवाज लगाई । उस शब्दध्वनि-मात्र से ही वह कमल उस पुण्डरीक-सरोवर से निकल कर उसके हाथ में आ गया । । ___भगवान महावीर ने इस कथा का भावार्थ इस प्रकार समझाया-यह लोक ही सरोवर है । जल उसका कर्म हैं । सरोवर की कीचड़ ही काम-भोग है । संसार के सभी प्रकार के छोटे-बड़े, मनुष्य ही कमल हैं । वह श्रेष्ठकमल ही उन सब कमल पुष्यों का राजा है । नाना-मतों के अल्पज्ञ-उपदेशक वे सभी पुरुष हैं, जो राजा को अपना मतानुयायी बनाने के लिए अचानक वहाँ आ फंसने हैं । वह भिक्षु सच्चा धर्म है और तट है धर्मतीर्थ, धर्म-कथा ही उसकी आवाज है और उस महाकमल की प्राप्ति ही उसका निर्वाण है । इस प्रकार नायाधम्मकहाओं और उत्तराध्ययन सूत्र एक से एक सुन्दर

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