Book Title: Madanjuddh Kavya
Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 11
________________ प्रस्तावना १७ प्रदान किया है । उनके पात्र कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, अपितु बुद्धि. कीर्नि, धृनि आदि भाव हैं, जिन्हें उन्होंने साक्षात मनुष्य के रूप में रंगमंच पर लाकर खड़ा कर दिया है । इस परम्परा को स्थापित एवं विकसित करने में अश्वघोष का बड़ा योगदान प्रबोध-चन्द्रोदय अश्वघोष के पश्चात् लगभग एक हजार वर्ष नक रूपकात्मक-शैली की काई उत्कृष्ट कोटि की काव्य-रचना साहित्य-जगत में नहीं आ पाई । ग्यारहवीं सदी में चन्देलवंशी नरेश कीर्तिवर्मा के युग में कृष्णमिश्र ने “प्रबोधचन्द्रोदयनाटक'' नामकी रचना की, जिसमें भावात्मक गुणों को मूर्तिमान पात्र बनाने की शैली अपने चरम विकसित रूप को पहुँच सकी । इस नाटक में कथा का विस्तार छह अंकों में किया गया है । इसके सभी पात्र भावात्मक हैं । इसके अनुसार आदि महेश्वर और याया में मन की उत्पत्ति होती है । मन की निवृत्ति नामक पत्नी से विवेक की और प्रवृनि नामक पत्नी से मोह की उत्पत्ति होती है । मोह अपनी सन्तति के साथ विवेक से युद्ध करता हैं । अन्त में विवेक के पुत्र प्रबोध और पुरुष का मेल होता है, जिससे पुरुष को अपने परमात्म-तत्त्व का बोध होता है और पुरुष द्वारा विश्वशान्ति की प्रार्थना के पश्चात् नाटक की समाप्ति हो जाती है । इस रचना में नाटककार ने आक्रामक शैली को अपनाया है । उन्होंने अन्य दर्शनों के प्रति विशेषकर जैन मुनियों के प्रति तीन प्रतिशोधात्मक प्रवृत्ति का दिग्दर्शन कराया है। फिर भी अद्वैतवाद, अध्यात्मवाद जैसे शुष्क विषयों का प्रतिपादन जिस नाटकीय, पनोरंजक शैली में किया है, वह प्रशंसनीय है । मयणपराजयचरिउ इस कृति का रचनाकाल लगभग 12 वीं सदी से 14वीं सदी के मध्य माना गया है । इसके कर्ता चंगदेव के पुत्र हरिदेव हैं । यह रचना अपभ्रंश-भाषा में रचित है। इसकी कथावस्तु का विस्तार दो सन्धियों में किया गया है । तदनुसार भावनगर का राजा मकरध्वज अपनी रानी रति एवं महामंत्री मोह के साथ निवास करना था । वह जिनेन्द्र की निस्पृह वृत्ति से व्याकुल होकर उन पर आक्रमण कर देना है । किन्न जिनेन्द्र तो सिद्धिरूपी रमणी को अपने हृदय में स्थान दे चुके थे । इसलिए अपनी आन्तरिक भावरूपी सेना के साथ में मदन का सामना करने हैं और अन्त में मदन को पराजित करके सिद्धि का वरण करते हैं । इसमें घटनाओं का चित्रण रूपकों के आधार पर बड़ी आकर्षक शैली में किंवा गया हैं। 1. मग पर:ज्य नरिड. कनि प्रस्तावन'. १३१.-डा. हीगागल जैन

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