________________ हैं जिन्होंने ग्रन्थों की रचना की। अब से पहले के लिखे जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं वे सब पुरुष वर्ग के द्वारा लिखे गये हैं आचार्यों ने लिखे, मुनियों ने लिखे या पण्डितों ने लिखे। किसी श्राविका अथवा आर्यिका द्वारा लिखा एक भी ग्रन्थ कहीं के भी ग्रन्थ भण्डार में देखने में नहीं आया। पू० ज्ञानमती माताजी ने त्याग और संयम को धारण करते हुए एक-दो नहीं डेढ़ सौ छोटे-बड़े ग्रन्थों का निर्माण किया। न्याय, व्याकरण, सिद्धान्त, अध्यात्म आदि विविध विषयों के ग्रन्थों की टीका आदि की। भक्तिपरक पूजाओं के निर्माण में उल्लेखनीय कार्य किया है। इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, सर्वतोभद्र विधान, जम्बूद्वीप विधान जैसी अनुपम कृतियों का सृजन किया। सभी वर्ग के व्यक्तियों को दृष्टि में रखकर माताजी ने विभिन्न रुचि के साहित्य की रचनाएँ कीं। प्राचीन धार्मिक कथाओं को उपन्यास की शैली में लिखा। अब तक माताजी की एक सौ दस कृतियों का प्रकाशन विभिन्न भाषाओं में दस लाख से अधिक मात्रा में प्रकाशित हुआ है। पज्य माताजी की लेखनी अभी भी अविरल गति से चल रही है। आचार्य कन्दकन्द द्विसहस्राब्दि महोत्सव के इस पावन प्रसंग पर अभी-अभी समयसार की आचार्य अमृतचन्द्र एवं आचार्य जयसेनकृत टीकाओं का हिन्दी अनुवाद किया जिसका पूर्वार्द्ध छपकर जन-जन के हाथों में पहुंच चुका है। ग्रन्थों का प्रकाशन कार्य अभी भी सतत चल रहा है। महान् दानतीर्थ हस्तिनापुर क्षेत्र का दर्शन महान् पुण्य फल को देने वाला है। यह तीर्थक्षेत्र युगों-युगों तक पृथ्वी तल पर धर्म की वर्षा करता रहे यही मंगल भावना है। (24)