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अनुवादक की कलम से... यह हमारी कंपनी 'प्रित्या' के अनुवाद टीम का सौभाग्य है कि श्री चित्रभानु के चिंतनशील शब्दों का अनुवाद करने का विरल अवसर हमें मिला।
जो लेखक एक चिंतक है, दार्शनिक है, द्रष्टा है, उनके शब्दों की गहराई को अनुवाद की भाषा में अभिग्रहीत करना एक चुनौती है, मगर उससे परे, एक आह्वान है, आनंद की अनुभूति है। खासकर जब लेखनी किसी विशेष तत्त्व पर चिंतन और मनन की अभिव्यक्ति का माध्यम हो।
___ यह पुस्तक श्री चित्रभानु की अंग्रेजी पुस्तक 'ट्वेल्व फेसेट्स ऑफ रियलिटी' का अनुवाद है, जिसमें जैन धर्म की बारह भावनाओं की उत्कृष्ट व्याख्या उपलब्ध है। आपने जीवन की व्यावहारिकता के संदर्भ में इन भावनाओं की उपयोगिता को, उनके मर्म को प्रतिपादित किया है। ये भावनाएँ जैन चिंतन के मुक्ति मार्ग के बारह सोपान हैं। इन्हें अनुप्रेक्षा भी कहा जाता है - द्वाद्वशानुप्रेक्षा।
इस अनुवाद के कार्यभार को जिन्होंने हमारे साथ बाँटा है, सभी के प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूँ:
श्री दुलीचन्द जैन, मेरे पापा, मेरे प्रेरणास्रोत जिन्हें गुरुदेव की अंग्रेजी पुस्तक इतनी प्रिय है कि उन्होंने हिंदी अनुवाद के हर शब्द को गंभीरता से परखा और संपादन कार्य में अपना सम्पूर्ण सहयोग सहृदयता से दिया है।
अहमदाबाद के. ल. बालसुब्रमण्यम, जिन्होंने मूल अनुवाद में यथायोग्य सहायता की।
जिज्ञासा गिरि, मेरी मित्र एवं भागीदार एवं संगीता सुराणा, जिनके सुसंगत सुझावों एवं सहयोग के बिना यह कार्य सुगमता से परिपूर्ण नहीं हो पाता।
पूज्य गुरुदेव के सम्मोहक शब्दों की निर्मल धारा को हमने अपनी समझ और अनुवाद में यथायोग्य अभिग्रहीत एवं अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
डॉ. प्रतिभा जैन
भागीदार, प्रित्या २८, दिसम्बर, २००७
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