Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ वेदों में श्री कृष्ण को मन्त्रद्रष्टा ऋषि के रूप में स्वीकार किया गया है परन्तु महाभारतकार ने उन्हें राजनीति के कुशल संचालक और सर्वश्रेष्ठ योद्धा के रूप में प्रतिपादित किया है। भीष्मपितामह जैसे वयोवृद्ध श्री कृष्ण को युग का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति और भगवान् का अवतार घोषित करते हैं लेकिन यहीं कृष्ण बचपन में गोकुल में दूध-दही की चोरी करते फिरते हैं, किशोर-वय में राधा तथा गोपिकाओं के साथ रास-लीला में तल्लीन रहते हैं। फिर अत्याचारी कंस का वध करने एवं सम्पूर्ण राग से निर्लिप्त बन राजनीति का कुशल संचालन करने मथुरा चले जाते हैं। कई विद्वान् इनके तीनों रूपों को भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करते हैं। उनकी मान्यता है कि कालान्तर में नाम साम्य होने के कारण कृष्ण के इन तीनों रूपों का एकीकरण हो गया। भारत की पावन भूमि पर जन्मे उस अद्भुत अथवा राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास के धरोहर का एकमात्र आधार स्तम्भ, समस्त दिव्य गुणों से अलंकृत, दैवी-मर्यादाओं के उत्तम उदाहरण स्वरूप श्री कृष्ण को आरोपित करने के लिए अनेक अनर्गल और निरर्थक बातें बताई जाती हैं जो भारत की उच्चतम सुसभ्यता और गौरवमयी संस्कृति को दूषित और अभिशप्त करने में मदद रूप बनती हैं परन्तु सच्चे अर्थों में श्री कृष्ण का महान् चरित्र उनकी समझ से परे है। इसी से तो श्री कृष्ण के क्रियाकलापों को चरित्र न कहकर लीला कहा गया है। उनका जीवन एक अभिनय था, जिसे समझने के लिए विशेष चिन्तन-मनन और आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता रहती है। . हमारे पुरातन चिन्तकों ने श्री कृष्ण को एक कुशल प्रशासक, महान् योद्धा, निपुण सारथी तथा वफादार मित्र आदि की संज्ञा दी है। श्री कृष्ण में ये सभी गुण विद्यमान थे लेकिन समझ के लिए उनके जीवन की प्रत्येक लीला का एक सुन्दर, आध्यात्मिक अर्थ है। हमारे मनीषियों ने विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में इन अर्थों की सुन्दर, विशद् व्याख्या भी की है। उदाहरण स्वरूप महान् योद्धा का आध्यात्मिक अर्थ है कि-"मानवीय भीषण, दुर्जेय-शत्रु, मायाजनित काम, क्रोध, मोह, अहंकार आदि बुराइयों पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करना।" निपुण सारथी का अर्थ है कि-"स्वयं को शरीर-रथ से भिन्न आत्मा निश्चय कर मन, बुद्धि और संस्कार रूपी घोड़ों पर पूर्ण नियंत्रण करना।" इस स्पष्टीकरण के अनुसार श्री कृष्ण नि:संदेह एक महान् योद्धा और सारथी थे, क्योंकि ये आध्यात्मिक उपलब्धियाँ उनमें विद्यमान थी। इसी कारण उनकी यश:-पताका आज भी पूर्णमासी के चाँद की भाँति धवल है। - कृष्णचरित्र भारतीय वाङ्मय में वेदों से लगाकर अद्यावधि तक व्याप्त है। वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक-ग्रन्थों एवं नाना-पुराणों में श्री कृष्ण का विशद वर्णन उपलब्ध है। भारत की संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी इत्यादि आर्य एवं अनेक आर्येतर भाषाओं में श्री कृष्ण का विशद निरूपण हुआ है। इस प्रकार साहित्य में प्राचीनकाल से श्री कृष्ण-चरित्र वर्णन की एक विशाल परम्परा रही है। - - - -