Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

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Page 12
________________ -द्धि पत्रम् - पृष्ठ संख्या पक्ति ११ १४ दोनों २६ ६व ७ xxmome » GMXcn अशुद्ध . कालास्तिकाय कालद्रव्य तृष्णित तृषित दोन अध्यव्यवसाय अध्यवसाय क्षयोपक्षय क्षयोपशम जघन्य अगुली अन्तर्मुहूर्त का उत्कृष्ट २२हजार वर्ष का (८) अवगाहना जघन्य वारणम्यतर वाणव्यतर' ' . नारकीय तो • नारकीय असज्ञी तो सावतां - सातवा फल का फल को काणविक कारादिक प्रेदेशी मिक्षण मिश्रण श्राकक श्रावक बतावति व्रतावती भयान्नास्मोभिः भयानास्माभि. आहारिक आहारादि प्रदेशी जणव १ " अथात् अर्थात ' - ८ अजोवित जणयइ, अजोणि अंजोगित जणयह जोगीण ' करे व्रत वाहर भत्सर कहा कहा भाव्य भव्य रशा रक्षा वत् बारह . मत्सर . " Lux

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