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जैन शिलालेख-संग्रह
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दूसरा पत्र : दूसरा भाग
११ प्रतिमानचरन पूजार्थं शिक्षकग्लानवृढाना च तपनि बैं१२ यावृत्यार्थ ग्रामस्योत्तरन पूर्वाणग्रामनिरग्रमीमक द१३. क्षिणेन मुब्ज नलमार्गपर्यन्न परत एन्टावन्म१४ तिमी तम्मादुत्तरन पुरrरणा नमन यावत पूर्वनिरंय१५ क राजमानेन पचागजतंन प्रमाणक्ष नन्द
तीसरा पत्र
१६ तवानेतद् यो हरनि म पचमहापातकसंयुक्तो भवति ॥ उफन १७-२० बहुमिसुधा भुक्ता - ( निम्यक शापात्मा क )
[ यह ताम्रपन सेन्द्रक बनके अधिराज विजयानन्द पुत्र इन्द्रणन्दद्वारा जम्बूसण्डगणके आचार्य आर्यनन्दिकी दिया गया था । यतिमा की पूजा लिए तथा तपस्वियोकी सेवाके लिए जलार ग्राम के पासको कुछ भूमि उन्हें दी गयी थी । राजा इन्द्रणन्द राष्ट्रकूट वंश देन महाराजका मामन्त था । इम ताम्रपनका काल आगुप्तानिक राजाओका ८४५व वर्ष इस प्रकार कहा है । किन्तु इसमे कौन-सी कालगणना अभिप्रेत है यह स्पष्ट नही क्योकि लिपिको दृष्टिसे यह ताम्रपत्र छठी या सातवी मदीका प्रतीत होता है । ]
[ ए० ६०२१५० २८९ ]
૨૩ चितरल (केरल)
७वीं सदी, तमिल
भगवती मन्दिर के लिए प्रसिद्ध तिरच्छानुमळे पहाडीपर
[ इस लेखमे अरिट्टनेमि भटारके शिष्य गुणन्दाणि कुरट्टिगल द्वारा देवीके लिए कुछ सोनेके आभूषण दान देनेका निर्देश है। यह लेख विक्रमादित्य वरगुणके २८ वें वर्षका है । ]
[ इ० म० तिरुवाकुर २]