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तुम्बदेवनहल्लिका लेस
१२५ ३२ संगलिसि तीविदत्रयंगन जसमखिलभुवनांतरदोलु। नटनिट
लेक्षणा३३ ग्नि नृगणंगणं उज्वलकीर्तिपाण्दुरभू कुरुलु जडेयागे जगक्के ३४ देवनागरिविल्लत्रिनेत्रनेमगी • कोण्डकुन्दान्वयो३५ पन्ने विख्याते टेसिगे गणे रविचन्द्राल्यसै यमनियम३६ स्वाध्यायपराणेयरप्प माचवेगन्तिय तावरेयरेय केलग३७ ण आडणमण्णं धारापूर्वक कोहर् चालुक्यविक्रमकालद ने
धातुसवस्सरद कार्तिक न३८ न्दीश्वरदष्टमियन्दु मंगलमहाश्री स्वदत्ता परदां वा यो हरत
वसुन्धरां षष्ठिवर्ष३९ सहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि ।।
[यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके निर्माणके समयका है। यह वसदि एरेयंगदेवकी रानी असवब्बरसि द्वारा बनवायी गयी थी। लेखमें एरेयगका वंशवर्णन इस प्रकार दिया है-कदम्ब कुलमे रणकि राजा-तत्पुत्र हृदुवतत्पुत्र व्रत-तत्पुत्र चिण्ण-तत्पुत्र एरेयंग-तत्पुत्र चिण्ण २-तत्पुत्र एरेयग२॥ इस मन्दिरके लिए कोण्डकुन्दान्वय-देसिग गणके रविचन्द्र सै(दान्तदेव)के उपदेशसे माचवेगन्ति द्वारा कुछ भूमि दान दी गयी थी। लेखकी तिथि कार्तिककी नन्दीश्वर-अष्टमी (शुक्ल ८), चालुक्य विक्रम वर्ष २१, धातु संवत्सर इस प्रकार दी है। __ इसी मन्दिरको एक प्रतिमाके पादपीठपर ११वी सदीको लिपिमें निम्न वाक्य खुदा है
बस(दिगे) वासवुरदे विदृ ग २ भत्त ५० अर्थात्-इस वसदिके लिए वासवुर ग्रामके उत्पन्नसे २ गद्याण (मुद्राएं) और ५० भत्त (चावलके परिमाण) दान दिये गये है। ]
[ए. रि० मै० १९३९ पृ० १४५-१५२]