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-१७१] तिरुनिडकोण्डै श्राढिके लेख ५७ यं ब्राह्मणर नोसिट फलमन् एखवरु १८ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां प१९ टिषसहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि. ।।
[इस लेखमे तोललके जिनमन्दिरके लिए नेमिचन्द्र पण्डितको नविलूर ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान हिरियमुद्दगोण्ड, विलिगोण्ड तथा अन्य ५२ निवासियो द्वारा दिया गया था। लेखमे प्रारम्भमें त्रिभुवनमल्ल (विक्रमादित्य पष्ठ )के किसी माण्डलिकका उल्लेख है।]
[ए. रि० म० १९२७ पृ० ४४]
१७३ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास)
तमिल, वीं सदी उत्तरार्ध [ इस लेखके प्रारम्भमें कुलोत्तुंग चोल (प्रथम)को ऐतिहासिक प्रशस्ति है। राजेन्द्रशोलचेदिराजन् द्वारा देवमन्दिरमें दीपके लिए कुछ धान अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेख है। उडयार् मल्लिपेणका उल्लेख है जो स्पष्टत. कोई जन आचार्य थे। लेख चन्द्रनाथ मन्दिरके मुख्य द्वारके पास खुदा है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० ३०१ पृ० ६५ ]
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ऊन (मध्यप्रदेश)
वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस स्थानमें कई जैन मन्दिरोंके ध्वस्त अवोप है। इनमें एक मन्दिरके एक छोटे-से लेखमें मालवराज उदयादित्यका उल्लेख है । अत यह मन्दिर ११वी सदीका वना है यह स्पष्ट होता है ।]
[रि० मा० स० १९१८-१९ पृ० १७ ]