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অলরিলাকৰ
[-२१९ • देव तम्य पुत्री रुटपालश्रमृगपा (ली) नाभ्यां माता श्रीरानी मा
(न) स्टेयी तया (नदु ) ल (टा) गिका. ३ यो सता परजतीना (रा)ज कुठपल (म) ध्यान पलिकाद्वय
घाण (क) प्रति वर्माय प्रदत्त । म० बागम४ वप्रमुग्नसमम्नग्रामीणक । रा. तिमटा बि० मिरिण धणिक
पोसरि । लक्ष्मण ने मा। ५ विं कृत्वा दन्त । लोपकम्य यदु पापं गोहत्यासरमण । ब्रह्मा
हत्यासवेन च । सेन ६ पापेन लिप्यन स ॥ श्री॥
[ यह लेख मवत् ११८९ में चाहमान राजा रायपालक राज्यमें लिखा गया था। इसके दो पुन ये-रुद्रपाल तथा अमृतपाल । इनकी माता मानलदेवीने नलडागिका आनेवाले यतियोंके लिए कुछ दान दिया था।
[ए० इ० ११ पृ० ३४]
२१६ तिरुनिङकोण्डै ( मद्रास)
सन् ११३४, तमिल [ यह लेस परकेसरिवर्मन् विक्रम चील राजाके १६व वपमें लिखा गया था। इसमे वैगाशि मासमे उत्सवोके अवमरपर अरुमोलिदेव (अर्हत) तथा नित्यकल्याण देवकी पालकी यात्राको व्यवस्थाके लिए मलयन् मल्लन् अर्थात् विक्रमचोलमल्लन-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है।
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३१० पृ०६६]