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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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नाणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला : ग्रन्याक-४८
जैन शिलालेख संग्रह
[ माग चार ]
FEE IMRA CHAND BAID
संग्राहक संपादक डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर,
एम० ए०, पीएच० डी०
प्रकाशक
प्रथमावृत्ति
भारतीय ज्ञानपीठ काशी बीर निर्वाण संवत् २४९१
[मूल्य ७ रुपये
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र प्रन्थमाला सम्पादक डॉ. हीरालाल जैन, एम० ए०, डी० लिटर डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, एम० ए०, डी० लिटर
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ दुर्गाकुण्ड रोड, वाराणसी
प्रथम आवृत्ति १००० प्रति
मूल्य सात रुपये
मुद्रक सन्मति मुद्रणालय दुर्गाकुण्ड रोड, वाराणसी
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१-२ २-१६ २-४
अनुक्रमणिक प्रधान सम्पादकीय प्राकथन / . . संकेत-सूची प्रस्तावना
१ लेखोंका साधारण परिचय• जैन संघका परिचय
(अ) यापनीय सब (मा) मृलसंघ (ड) गौड सब (है) द्राविड़ संघ (उ) माथुर संघ (अ) पंचस्तूप निकाय (ऋ) जम्वृखडगण (३) सिंहवूरगण (ल) जनसंघक विषयमें साधारण
विचार ३ राजवंशोंका आश्रय
(अ) उत्तर भारतकै राजवंश
१५.१६
१६.१६
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जनशिलालेस-सग्राह
३०-३३
१-३८४
(आ) दक्षिण भारत राजवश (ड) रानायक विषयम माधारण
विचार जैन मपकी दुरवस्था
. उपसंहार भूल लेख (तिथिक्रमस) परिशिष्ट
१ श्वेताम्बर लेसोंकी सूचना २जैनतर लेगम जन व्यक्ति आदिक
उल्लेख ३ नागपुर प्रतिमा लेग्न मग्रह मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण नामसूची
३८५-३००
३८१-३९२ ३९३-४२१
४३०-४५४
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प्रधान सम्पादकीय
प्राचीन कालको मानवीय प्रवृत्तियोका विधिवत् वर्णन व विश्लेषण हो इतिहास है । ऐसे इतिहासके लिए आधारभूत सामग्री मानसता है मानवको निमितियोंके भग्नावशेषो अर्थात् गुफाओ, चैत्यो, स्तूपो, समाधियो, गृहो, मन्दिरादि धर्मायतनो व मूतियो जैसे स्थापत्यके भग्नावशेषोसे, चित्रास व साहित्यिक रचनाओते । किन्तु इनसे भी अधिक प्रामाणिक और यथावत् वृत्तान्त उन लेखोसे मिलता है जो राजामो व अन्य धनिकोंके दानको तथा उनके द्वारा निर्माण कराये गये मन्दिरादिको स्मृति-रक्षणार्थ पापाणखण्डो व ताम्रपटों आदि पर उत्कीर्ण कराये गये पाये जाते है। ऐसे प्राचीनतम लेखोकी लिपि बहुधा वही ब्राह्मी है जिससे भाजकी नागरी लिपि विकसित हुई है, तथापि उमका प्राचीनतम रूप इतना भिन्न था कि उसे पढना बहुत कठिन सिद्ध हुआ। वडे परिश्रमके पश्चात् उस लिपिकी कुंजी हाय लगी, जिससे लगभग गत अढाई सहन वकि शिलालेख पढ़े और समझे जा सके। किन्तु चालीस-पचास वर्ष पूर्व सिन्धु घाटीसे ऐसे भी मुद्रालेख प्राप्त हुए हैं, जिन्हें पढने और समझनेका अभी प्रयास ही चल रहा है, कोई सफलता प्राप्त नहीं हो सकी।
जो प्राचीन शिलालेख पढे गये और प्रकाशित हुए वै पुरातत्व विभागके बहुमूल्य व दुर्लभ ग्रन्यमालाओ व पत्रिकाओमें समाविष्ट पाये जाते है। इनमें जैन धर्म सम्वन्धी शिलालेखोका वितरण भी यत्र-तत्र विखरा पाया जाता है। इन लेखोका ऐतिहासिक महत्त्व तब प्रकट हुआ जब सन् १८८९ में मैमूरके पुरातत्त्व विभागकी ओरसे श्रवणबेलगोलके १४४ शिलालेखोका अलगसे संग्रह एक विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना सहित प्रकाशित हुआ। सन् १९२२में इसका संशोधित और परिवर्वित सस्करण प्रकाश माया
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जैनशिलालेस मग्रह
६
जिममें शिलालेखोकी सस्या ५०० हो गयी। दमी बीच सन् १९०८ मे फ्रामीसी विद्वान गैरीनोकी एक रिपोर्ट प्रकावित हुई, जिसमें उन्होंने तव तक प्रकाशित हुए बाठ सौ पचास जैन मिललियोका परिचय कराना । हम सब सामग्री के सम्मुन आनेपर कुछ जैन विद्वानोको अग्निं गुली और उन्हें अनुभव हुआ कि जब तक इस सामग्रीका उपयोग करते हुए धर्म व साहित्य सम्बन्धी लेस नही लिये जायेंगे तवतक जैनधर्मका प्रामाणिक प्रतिहास प्रस्तुत नही किया जा सकता। स्वभावत उम 'समय जो विद्वान् जैन माहित्य और इतिहास संशोधनमें तल्लीन थे उन्हें हम आवश्यक्ताका विशेष रूपसे बोध हुआ । इनमें माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला मस्थापक व प्रधान सम्पादक स्वर्गीय प० नाथूरामजी प्रेमोकी याद आती है । उन्होंने ही अपनी प्रेरणाद्वारा जैनशिलालेस मग्रहका प्रथम भाग तैयार कराकर प्रस्तुत ग्रन्थमाला २८वे पुष्पके रूपमें प्रकामित किया, जिसमें श्रवणवेल्गो के उपर्युक्त पांच भी शिलालेस नागरी लिपिमं हिन्दी माग तथा विस्तृत भूमिका व अनुक्रमणिकाओं महित जिज्ञासुओं व लेकोको अति सुलभ हो गये । इमका तुरन्त ही हमारे माहित्य व इतिहास मशोधन कार्यपर महत्त्वपूर्ण प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगा । तद्विपयक लेखांमें इनके उपयोग द्वारा वडो वाहनीय प्रामाणिकता आने लगी जिसके लिए प्रेमजी जैसे विद्वान् बहुत आतुर थे । अब उन्हें अन्य शिलालेसी को भो इसी रूपमे सुलभ पानेको अभिलापा तीव्र हुई जिसके फलस्वम्प उक्त गैरीनो महोदयको रिपोर्टके आधार शिलालेख मग्रह भाग २ और 3 में ('ग्र० ४५-४६ मन् १९५२, १९५७) आठ सौ पचाम लेगोका पाठ व परिचय हमारे सम्मुस आ गया ।
मागेका लेग्व-मग्रह कार्य वडा कठिन प्रतीत हुआ, क्योकि इसके लिए कोई व्यवस्थित सूचियाँ उपलभ्य नही थी । किन्तु इस कार्यको पूरा कराना हमने अपना विशेप कर्तव्य समझा। सौभाग्यमे डॉक्टर विद्याधर जोहरापुरकरने यह कार्य भार अपने ऊपर लेकर विशेष प्रयासो द्वारा यह छह मी
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प्रधान सम्पादकीय चौवन लेखोका परिचय करानेवाला चौथा सग्रह प्रस्तुत कर दिया। प्रस्तावनामें उन्होने लेखोका काल, प्रदेश, भापा, प्रयोजन, मुनिसंघ, राजवंश आदि दृष्टियोसे जो विश्लेपण व अध्ययन किया है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है इसके लिए हम उनके बहुत कृतज्ञ है, हमें दुख है कि पण्डित नाथूरामजी प्रेमी आज हमारे बीच नही रहे ! कितना हर्प होता उन्हें इस नये लेख सग्रहको देखकर !
शिलालेख-सग्रहके इन भागोमें संकलित सामग्रीका जैन साहित्य और इतिहासके संशोधन कार्यमें विशेष उपयोग हो रहा है, और होगा इसमें सन्देह नही। किन्तु इस विषयमें अब तकके अनुभवके आधारसे कुछ सूचनाएँ कर देना हम अपना कर्तव्य समझते है-- .
१. लेखोका जो मूल पाठ यहाँ प्रस्तुत किया गया है, वह सावधानी पूर्वक तो अवश्य लिया गया था, तथापि उसे अन्त-प्रमाण होनेका दावा नही किया जा सकता । कन्नड लेखोको यहां जो देवनागरीमें लिखा गया है उसमें भी लिपिभेदसे अशुद्धियां हो जाना सम्भव है। आगे-पीछे विशिष्ट विद्वानो-द्वारा पाठ व अर्थ-सशोधन सम्बन्धी लेख लिखे ही गये होगे। अतएव विशेष महत्त्वपूर्ण मौलिक स्थापनाओके लिए संशोधकोको मूलस्रोतो का भी अवलोकन कर लेना चाहिए।
२ इधर कुछ कालसे ऐसी प्रवृत्ति दिखाई देती है कि जहां दो आचार्योमे नाम-साम्य दिखाई दिया वहां उन्हें एक ही मान लिया गया। किन्तु यह वात भ्रामक है । एक ही नामके अनेक आचार्य विविध कालोमें भी हुए है और सम-सामयिक भी। अतएव उन्हें एक सिद्ध करनेके लिए नाममात्रके अतिरिक्त अन्य प्रमाणोकी भी खोज करना चाहिए।
३ इन प्रकाशित शिलालेखोसे यह अपेक्षा नहीं करना चाहिए कि उनमें समस्त प्राचीन आचार्योका उल्लेख आ ही गया है अतएव इनमें किसी आचार्यके नामका अभाव किसी विशिष्ट अनुमान व तर्कका आधार
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जनशिलालेख संग्रह नही बनाया जा सकता। ये लेप जैन मुनियोकी पूरी गणनाका लेया नही समझना चाहिए। __ ४ कन्नड लेखोका जो सार हिन्दीमें दिया गया है उसीके आधार मापसे कोई नयी करपनाएं नहीं करना चाहिए। उनके लिए मूल पाठ और उसके शब्दश अनुवादका अवश्य अवलोकन करना चाहिए ।
यथार्थत ये लेख संग्रह सामान्य जिज्ञासुमोके लिए तो पर्याप्त है। किन्तु विशेप सशोधकोंके लिए तो ये मूल सामग्रीकी और दिग्निसँग मात्र ही करते है।
इस ग्रन्थमालाको अपनी गोदमें लेकर थी शान्तिप्रमादजी व श्रीमती रमारानीजीने न केवल समाजके एक अप्रणी हितपी सेठ माणिकचन्द्रजॉकी स्मृतिको रक्षा की है व ग्रन्थमालाकं जन्मदाता ५० नाथूरामजी प्रेमीको भावनाको सम्मान दिया है किन्तु जैन साहित्यकी रक्षा व जैन इतिहामक नवनिर्माण कार्यमें बडी महत्त्वपूर्ण सेवा की है जिसके लिए ममाज सदैव उनका ऋणी रहेगा।
-ही ला जन -आ ने उपाध्य (प्रधान सम्पादक)
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प्राक्कथन
प्रस्तुत सग्रहका प्रथम भाग डॉ० हीरालालजी जैन-द्वारा संपादित होकर सन् १९२८ में प्रकाशित हुआ था। उसमें श्रवणबेलगोल तया निकटवर्ती स्थानोके ५०० लेख सकलित हुए थे। इसका दूसरा तथा तीसरा भाग श्री विजयमूर्ति शास्त्रीद्वारा सकलित हुआ। इन दो भागोमें फ्रेन्च विद्वान् डॉ. गेरिनो-द्वारा मपादित पुस्तक 'रिपोरद एपिग्राफी जनके आधारसे ८५० लेख दिये है। डॉ० गेरिनोको पुस्तक परिससे सन् १९०८ में प्रकाशित हुई थी। अत इन दो भागोमें सन् १९०८ तक प्रकाशित हुए लेख ही आ सके है। इन ८५० लेखोमे-से १४० लेख प्रथम भागमें आ चुके है तथा १७५ लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायके है अत. इनकी सूचना-भर दी गयी है - शेष ५३५ लेखोका पूरा विवरण दिया गया है। इस तरह पहले तीन भागोमें कुल १०३५ लेखोका संग्रह हुमा है।।
मन् १९५७ में इस भग्रहके तीसरे भागके प्रकाशित होनेपर श्रीमान् डॉ० उपाध्येजीने हमे प्रस्तुत चौथे भागके सपादनके लिए प्रेरित किया। तबसे कोई चार वर्ष तक अवकाशके समयका उपयोग कर यह कार्य हमने किया । इसे कुछ विस्तृत रूप देनेके लिए हमने सन् १९६१ की गर्मियोकी छुट्टियोमें दो सप्ताह तक उटकमंड स्थित प्राचीनलिपिविद् - कार्यालयमें भी अध्ययन किया। इसके फलस्वरूप सन् १९०८ के बाद प्रकाशित हुए कोई ६५४ लेखोका संग्रह प्रस्तुत भागमें प्रकाशित हो रहा है।
___ यद्यपि ये सब लेख पुरातत्व विभागके प्रकाशनोमे पहले प्रकाशित हो चुके है तथापि साधारण अभ्यासक्के लिए वे सुलभ नही हैं - उनका संपादन अंगरेजीमें हुमा है तथा उनका मूल्य भी बहुत अधिक है । अत इस संग्रहमें उनका पुन प्रकाशन उपयोगी होगा
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प्रस्तावना १. लेखांका साधारण परिचय___जैन शिलालेन्ब मंग्रहके प्रस्तुत चौर भागमे कुल ७५४ लेख नगृहीत है। इन्हें समयके क्रमने प्रस्तुत किया है। इसमें मन्नूर्व चौथी नदीका १ (०६) सनपूर्व नीमरी नदोका ? (०२), सन्पूर्व पहली सीके ११ (R० ने १३) मन् पहली मदीका १ (क्र. १४), दूसरी सदीक ४ (क्र० १५ ते १८), पांचवी नदीका १ (क्र. १९), छठी सदीक दो (क्र० २० व २१), सातवी नदी के २२ (क्र. २२ ३ ४३) आठवीं महान १० (०४४ ते ५.), नौवीं सदीने २०(२०५४ से ७९), दसवी सदीके ४२ (क्र. ७४ ने ११५), संगरहवी मदीके ६७ (क्र. ११ मे १८२), बारहवीं मदीके १३४ (०१८ - १६) तैरहनी नदीके ७३ (क्र. ३१७ चे ३८९), चौदहन सदीके ३० (क्र० ३९० ने ४१९), पन्द्रह्वी नदीक ३५ (क्र० ४२० ते ४५४ ) गोलबी भदौके ४७ (३० ४.५ने ५०१), सत्रहवी नदीक १५ (क्र० ५०२ से ५१६ ), जान्हवी मटीके ११ (क्र० ५१८ से ५२७ ), तया उन्नीसवी नदीक ८ (३० ५२८ ने ५३५) लेउ है । शेप ११९ लेबोका समर निश्चित है।
इन ६५४ लेखाने राजम्यानक २१, उत्तरप्रदेश १, विहारके ४, बंगालका १, गुजरात , मध्यप्रदेशके १५, उहीनाके १६, महाराष्ट्र ५, मान्य ४६, मद्रास ८२, ३ल्या १ एव दूर प्रदेश ४४७
गपाकी दृष्टि इन लम्वोका विभाजन इस प्रकार है- प्रातके १८, संस्कृतक ८८, हिन्दीक ३, तेन्दुगुरु८, तमिलके ७७ एवं कन्नडक ४६० ।
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जनशिलालेग-संग्रह प्रयोजनको दृष्टिमे ये लेप मुख्यत चार भागों में वाटे जा सकते है -८७ लेयाम जिनमन्दिरीके निर्माण अथवा जीर्णोद्वारका वर्णन, १२६ लगाम जिनमूतियोंकी स्थापनाका वर्णन है, २०८ रेपोमे मन्दिरी तथा मुनियोको गाँव, जमीन, मुवर्ण, फरीकी आय आदियो दानका वर्णन है, तथा १६४ लेसोमें मुनियो, गृहग्यो तथा महिलाओके ममाविमरणका उत्टेग्य है। इसके अतिरिक्त १३ लेपोमें गृहा-निर्माणका, ४ लेगोम (० ४८६, ४८७, ४८९ तथा ५७६ ) मठोके आर्थिक व्यवहारोका, ३ लेग्योम (० ४२५, ४७१ तथा ४७२) माम्प्रदायिक ममझोतोका एव एक लेप (क० ५०७) मे मामाजिक कुढिके निवारणका वर्णन है।
लेसोके इस स्थूल परिचयके बाद हम इनसे प्राप्न ऐतिहामिय तथ्यांका कुछ विस्तारसे अवलोकन करेंगे- पहले जैनमधक वारेमें तथा बादमे राज. वशी आदिके विपयमे। २.जेनसंघका परिचय
(भ) यापनीय सघ-प्रस्तुत सग्रहम यापनीय सघका उरलेग योई १७ लेसोमें हुआ है। इनमें मवगे प्राचीन लेप गग राजा अविनीतका ताम्रपत्र है जो छठी सदीके पूर्वार्षफा है (ले० २०) । इमम 'यावनिक' सप-द्वारा अनुष्ठित एक मन्दिरके लिए राजा-द्वारा कुछ दान दिये जानेका वर्णन है।
उम मघके कुमिलि अथवा कुमुदि गणका उरलेप चार लेगाम है' (क्र. ७०, १३१, ६११ एव ६१२)। इनमें पहले लेप (क्र. ७०) में नौवी मदीमें इम गणके महावीर गुरंग शिप्य अमरमुदल गुगका यणन है। इन्होंने कोरप्याकम् ग्रामके उत्तरमे देशवरलभ जिनालयका निर्माण 1. पहल मप्रहके ३० ९९, १०० तथा १०५ लेसोम ५वी सटीक
उत्तराधमें भी यापनीय संघका उल्लेस है। २. पहले सग्रहमें इस गणका कोई उल्लेस नहीं है।
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प्रस्तावना
कराया था। दूसरे लेख (क्र. १३१ ) में सन् १०४५ में इस गणके कुछ आचार्योका वर्णन है। इस समय चावुण्ड नामक अधिकारीने मुगुन्द ग्राममें एक जिनालय बनवाया था। अन्य दो लेख (क्र० ६११ तथा ६१२) अनिश्चित समयके निषिधि लेख है। इनमें पहला लेख इस गणके गान्तवीरदेवके समाधिमरणका स्मारक है। ___ गपनीय संघका दूसरा गण पुन्नागवृक्षमूल गण चार लेखोसे ज्ञात होता है (क० १३०, २५९, १६८, ६०७)। पहले लेख, सन् १०४४ में इस गणके बालचन्द्र आचार्यको पूलि नगरके नवनिर्मित जिनालयके लिए कुछ दान दिये जानेका वर्णन है। इसी लेखके उत्तरार्धमे सन् ११४५ मे इस गणके रामचन्द्र आचार्यको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । इस गणका अगला उल्लेख (क्र० २५९ ) सन् १९६५ का है। इसमे इस गणकी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है - मुनिचन्द्र - विजयकीति-कुमारकीर्ति त्रविध - विजयकीर्ति (द्वितीय)। शिलाहार राजा विजयादित्यके सेनापति कालणने एक्कसम्बुगे नगरमे एक जिनालय बनवाकर उसके लिए विजयकीर्ति (द्वितीय) को कुछ दान दिया था। एक लेखमें (क्र. १६८) वृक्षमूलगणके मुनिचन्द्र विद्यके शिष्य चारकीति पण्डितको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है - यह सन् १०९६ का लेख है । एक अनिश्चित समयके लेख (क्र. ६०७ ) में भी वृक्षमूलगणके एक मन्दिर कुसुमजिनालयका उल्लेख है। हमारा अनुमान है कि इन दो लेखोका वृक्षमूलगण पुन्नागवृक्षमूलगणसे भिन्न नहीं होगा।
यापनीय सघके कण्डूर गणका उल्लेख तीन लेखोमे है ( ऋ० २०७, ३६८,३८६ ) इनमें पहला लेख १२वी सदीके पूर्वका है तथा इसमें
१. पहले संग्रहमें पुन्नागवृक्षमूलगणके दो उल्लेख सन् १२ तथा
सन् ११०८के हैं (क० १२४, २५०)।
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बनशिलालस-भग्रह
इस गणके बाहुबली, गुमचन्द्र, मोनिदेव एव माघनन्टि उन चार आत्रानोंका वर्णन है - इनमे परम्पर सम्बन्ध बताया नहीं है। दूसरे काम १३वी मदीमें इस गणके एक मन्दिरका उलग है तथा तीगर लपम इसी समयकी एक जिनमूर्तिका उल्लेग्न है।'
इसी मघके कारेयगणका उरलेत १२वी मदीय पूर्वाकलाप (क्र० २०९) में है। मुल्लभट्टारक तथा जिनदवपि ये हम गणके आचार्य
पांच लेसोमें यापनीय मघका उरलेप किमी गण या गच्छक बिना ही प्राप्त होता है (क्र० १४३,२९८-३००,३८४ )। इनमें पहला ला मन् १०६० का है तथा इससे जयकौति - नागचन्द्र - कनकमक्ति म गुम्परम्पराका पता चलता है। अगले दो लेन १२वी मढीके है तथा इनमें मुनिचन्द्र एव उनके शिष्य पात्यकीतिके ममाधिमरणका उरलेप है। अन्तिम लेसमे १३वी मदीमें कौति आचार्यका उल्लेख्य है।
इस तरह प्रस्तुत मग्रहसे यापनीय मघका अस्तित्व छठी मदीमे तेरहवीं सदी तक प्रमाणित होता है।
(आ) मलसधप्रस्तुत मग्रहम मूलमपके अन्तर्गत सेनगण, देशी गण, भूरस्थगण, घलगारगण ( बलात्कार गण) क्राणूरगण था निगमा
. पहले मप्रहमें इस गणका उल्लेख मन् १८० में आहे
(२० १६०)। २. पहले मग्राम इम गणक टी लस सन् ८७७ तथा दसवीं मढी
पूर्वार्धक है (३० १३०,१२)। ६. पहले सग्रहम यापनीय मघ तीन और गणोका उरलेस है -
कनकोपलरम्भून घृक्षमुल गण, श्रीमूलमूलगण तथा कोटिमडव गण(तीसरा भाग-प्रस्तावना पृ. २७-२९)।
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प्रस्तावना
न्वय इन छह परम्पराओके उल्लेस विस्तारसे मिलते है। इनका अव क्रमग. विवरण प्रस्तुत करेंगे।
(भा १) मेनगण-इसका प्राचीनतम उल्लेस मन् ८२१ का है (क्र० ५५ ) । इस लेख में इसे 'चतुष्टय मूलसघका उदयान्वय सेनमध' कहा है। इमकी आचार्यपरम्परा मल्लवादी-सुमति पूज्यपाद-अपराजित इम प्रकार थी । लेखके समय गुनरातके राष्ट्रकूट शामक कर्कराज सुवर्णवपने अपराजित गुरुको कुछ दान दिया था।
नेनगणके तीन उपभेद थे- पोगरि अथवा होगरि गच्छ, पुस्तक गच्छ, एव चन्द्रकवाट अन्वय । पोगरि गच्छका पहला लेख (क्र० ६१) सन् ८९३ का है तथा उममे विनयसेनके शिष्य कनकननको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। इस लेखम इसे मूलमघ-सेनान्वयका पौगरियगण कहा है। दूसरा लेज (क्र० १३४) सन् १०४७ का है तथा इममें नागसेन पण्डितको मेनगण-होगरि गच्छके भाचार्य कहा है। इन्हें चालुक्य राज्ञी अक्कादेवीने कुछ दान दिया था।
चन्द्रकवाट अन्वयका पहला लेख (क्र० १३८) सन् १०५३ १. पहले संग्रहम उल्लिखित देवगणका कोई लेख इम सग्रहम नहीं
है। पहले मंग्रहमै मृलसंघके प्राचीन उल्लेख (क्र. ६०, ९४)
पाँची मदीक हैं। तथा उनमें गण भादिका उल्लेख नहीं है। २. पहले सग्रहमें सेनगणका प्राचीनतम उल्लेस मन् ९०३ का है
(क्र. १७)। इसे देखकर डॉ. चौधरीनं करपना की थी कि
आदिपुराणकर्ता जिनमन ही मनगणक प्रवर्तक होगे (तीसरा भाग प्रस्तावना पृ० ४४ ) किन्तु प्रस्तुत लेखसे जिननेनके गुरु वीरसेनके समय में ही सनसंघकी परम्पराका अस्तिस्त्र प्रमाणित होता है।
वीरसेनन धवलाटीकाकी रचना सन् ८९६ में पूर्ण की थी। ३. पहले सग्रहमें पोगरिंगच्छके चार उल्लेख सन् १०४५ से १२७१
तक के आय हैं। (क्र. १८६,२१७,१८६,५११)
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नैनशिलालेग्य-सग्रह का है तथा इसमें अजितसेन-कनकसेन नरेन्द्रसेन-नयमेन इग परम्पगका वर्णन है । लेसके समय मिन्द फुलके सरदार कचरसने नयमेनको कुछ दान दिया था। नयसेनके गिज्य नरेन्द्रसेन (द्वितीय) का उल्लेख गन् १०८१ के लेप (ऋ० १५) में मिलता है। दोण नामक अधिकारी-दाग इन्हें कुछ दान दिया गया था। उन लेगोमें नरेन्द्रमेन तथा नयगेन की व्याकरणभास्नमे निपुणताके लिए प्रशंसा की गयी है।
एक लेप (क्र. १४७ ) में चन्द्रिकबाट वशके शान्तिनन्दि भट्टारकया मन् १०६६ में उल्लेग्य है । इममै मूलसत्रका उरलेप है किन्तु मनगणग उल्लेख नहीं है।
सेनगणक तीसरे उपभेद पुस्तकगच्छका वर्णन १४वी गीक एक लेस (क्र० ४१५ ) में है। उसमें ग्यारह आचार्याको परम्परा बतलारी है। इस परम्पराके प्रभाकरसेनके शिष्य लदमोमनके ममाधिमरणका प्रस्तुत लेसम वर्णन है । लक्ष्मीसेनके शिष्य मानसेनका समाविमरण गन् १८०५ में हुआ था (ले० ४२१)। ___ प्रस्तुत, मग्रहके पांच लेगो रोनगणका उरलेस मिमी उपभेदक यिना हुआ है (क्र० ४९२, ४९३, ५०४, ५०७, ६२६ )। पहले दो लेपोमे सन् १५९७ मै सोमसेन भट्टारकद्वारा एक मन्दिरको जीर्णोदारका वर्णन है। अगले दो लेती (५०४, ५०७) में ममन्तभद्र आचार्यका सन् १६२२ एव १६३२ में उल्लेस है । मन् १६२२ मे उन्होंने एक मन्दिरका जीर्णोद्धार किया था तथा मन् १६३२ में दीवालीका त्योहार मनानक ढगर्म कुछ सुधार किया था । अन्तिम लेख अनिश्चित समयका है तथा इममें प्रसिद्ध वादी भावसेन विद्यचक्रवर्तकि समाधिमग्णका उरलेय है। , पहले मग्रहम चन्द्रकबाट अन्वयमा कोई वर्णन नही है। २ भावसेन कृत संस्कृत ग्रन्थ विश्वतश्वप्रकाश जोगराज अन्धमाका
(शोलापुर ) द्वारा प्रकाशित हो रहा है। इसकी प्रस्तावनाम हमने मावसेनकी ममय १३ची मढीका उत्तरार्ध निश्चित किया है।
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प्रस्तावना
इस तरह प्रस्तुत संग्रहके १३ लेखोंसे सेनगणका अस्तित्व नाठवीं सदीसे सत्रहवी सदी तक प्रमाणित होता है ।
4
(भा २ ) देशीगण -- प्रस्तुत मंग्रहमे देशीगणके पुस्तकगच्छ, आर्यसंघग्रहकुल, चन्द्रकराचार्याम्नाय तथा मैणदान्वय इन चार परम्पराओका उल्लेख हुआ है ।
"
वलि था ।
ર
पुस्तकगच्छका एक उपभेद पनसोगे ( अथवा हनमोगे ) इसका पहला उल्लेख ( क्र० ७४) दसवी सदीके प्रारम्भका है तथा इसमें श्रीधरदेव के गिप्य नेमिचन्द्रके समाधिमरणका उल्लेख है । इस बलिका दूसरा लेख ( क्र० २७२ ) सन् १९८० के आसपासका है तथा इसमे नयकीर्तिके शिष्य अध्यात्मी बालचन्द्र द्वारा एक मूर्तिको स्थापनाका वर्णन है । इस गाखाके चार लेख और है ( क्र० २९२, ३३५, ४१६ तथा ५३८ ) जो वारहवीसे चौदहवी सदी तक है । इनमें ललितकीर्ति, देवचन्द्र तथा नयकोति आचार्योका उल्लेख है । अन्तिम लेखमें 'घनशोकवली' इस प्रकार इस शाखा नामका संस्कृतीकरण किया गया है ।
पुस्तकगच्छका दूसरा उपभेद इंगुलेश्वर वलि था । इसका उल्लेख सात लेलोमे ( क्र० २९०, ३१०, ३६९, ३७८, ३८२, ६०६, ६४२ ) मिला है । ये सव लेख १२वी - १३वी सदीके है। तथा इनमें हरिचन्द्र, श्रुतकीर्ति, भानुकीर्ति, माघनन्दि, नेमिदेव, चन्द्रकीर्ति तथा जयकोति
१. सेनगणकी पुष्करगच्छ नामक शाखा कारचा (विदर्भ) में १५वीं सढीसे २०वीं सदी तक विद्यमान थी । इसका विस्तृत वृत्तान्त हमारे ग्रन्थ 'भट्टारक सम्प्रदाय' में दिया है । पुष्करगच्छ सम्भवतः पोगिरि गच्छका ही संस्कृत रूप है ।
२. यही इस संग्रहमें देशीगणका पहला उल्लेख है । पहले संग्रहमे देशीगणके उल्लेख सन् =६० (क्र० १२७ ) से मिले हैं तथा पनसोगे शाखाके उल्लेख सन् १०८० (क्र० २२३ ) से प्राप्त हुए हैं ।
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जनशिलालेख-संग्रह इन आचार्यों के उल्लेख मिलते है।
प्रस्तुत सग्रहमें पुस्तकगच्छके उल्लेख विना किसी उपभेदके भी कई लेखोमे मिलते है। इनमें पहला लेख (क्र. १६४ ) सन् १०८१ का है तथा इसमें सकलचन्द्र भट्टारकका उल्लेख है। इस प्रकारके अन्य लेख १७ है (क्र० १७१, १७७-८, १९०, २०३, २३४, २५१, ३१८-९,३६१-६, ४९०, ५६१)। ये लेख १६वी सदी तकके है । इनसे कोई विस्तृत गुरुपरम्पराका पता नही चलता।
देशीगणके दूसरे उपभेद आर्यसधग्रहकुलका उल्लेख एक ही लेख (क्र० ९४ ) में मिला है। यह लेख दसवी सदीका है तथा इसमें कुलचन्द्रके शिष्य शुभचन्द्रका उल्लेख है। विशेष यह है कि यह लेख उडीसाके एवण्डगिरिपर्वतपर मिला है जब कि देशोगणके अन्य उल्लेस मैसूर प्रदेशके है।
देशी गणका तीसरा उपभेद चन्द्रकराचार्याम्नाय भी एक ही लेखसे ज्ञात होता है (क्र० २१७) तथा यह मध्यप्रदेशमे मिला है। इसमे प्रतिष्ठाचार्य सुभद्र-द्वारा १२वी सदीके पूर्वाधमे एक मन्दिरको प्रतिष्ठाका
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देशी गणके चीथे उपभेद मैणदान्वयके शुभचन्द्र आचार्यका एक उल्लेख १३वी सदीमे मिला है (क्र. ३७२ )। .. पहले संग्रहमें इगुऐश्वर बलिक उल्लेस सन् १९८३ (क्र. ४११)
से सन् १५४४ (क्रः ६७३) तकके हैं। २ पहले सग्रहमें पुस्तक गोछा उल्लेख सन् २६० (३० १२७) मे
सन् १८१३ (क्र० ७५३ तक है। ३, ४ पहले सग्रहम इन दोनों उपसेदोका कोई उल्लेख नही है। ५. पहले सग्रहमें हम अन्वयका लेस नहीं है इससे मिलता जुलता
एक उपभेट बाणद बलि है जो पुस्तकगच्छके अन्तर्गत था (० ४७८ ) इसका उल्लेस सन् १२३२ का है।
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प्रस्तावना
देगीगणके कई उल्लेख मिले है । इनमे दो ९५० तथा १०९६ मे गुणचन्द्र और इन लेखोंमें देशी गणके साथ सिर्फ
मूलमघ - देशीगण
किसी उपभेदके बिना भी लेखामें ( क्र० ८३, १६९ ) सन् रविचन्द्र आचार्योंका उल्लेख है । कोण्डकुन्दान्वय यह विशेषण है । इस प्रकार उल्लेख है। इनमें प्राचीनतर लेख ( क्र० १९३, २२९, २५६ ) बारहवी सदीके है । कोई ८ लेखांमें देगीगणके साथ अन्य कोई विशेषण
कोई १८ लेखोमें
नही है । ऐसे लेखो में प्राचीनतर लेख १०३२ तथा १०५४ के है और इनमें कुछ दान देनेका वर्णन है ।
( क्र० १२६, १३९, १४० ) मन् अष्टोपवासी कनकनन्दि आचार्यको
( या ३) कोण्डकुन्डान्चय-- देशी गणके पुस्तक गच्छको प्राय stusकुन्दान्वय यह विशेषण दिया गया है । कुछ लेखोमें किसी संघ या गणके बिना सिर्फ कोण्डकुन्दान्वयका उल्लेख है । ऐसे लेखोमे प्राचीनतर लेख ( क्र० १८०, २२२) ग्यारहवी - बारहवी सदीके हैं । एक प्राचीन लेख ( क्र० ५४ ) में सन् ८०८ मे कोण्डकुन्देय अन्वयके सिमलगेगूरु गणके कुमारनन्दि- एलवाचार्य - वर्धमानगुरु इस परम्पराका उल्लेख है । वर्षमानगुरुको राष्ट्रकूट राजा कम्भराजने एक ग्राम दान दिया था। इस लेखमें कोण्डकुन्देय अन्वय यह गन्द प्रयोग हैं जो स्पष्टत कोण्डकुन्दे स्थानका सूचक है ।
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( आ ४ ) सूरस्थ गण प्रस्तुत संग्रहमे इम गणका पहला उल्लेख सन् ९६२ का है ( क्र० ८५ ) । इसमें प्रभाचन्द्र - कन्नेलेदेव - रविचन्द्र
१. पहले सग्रहमे कोण्ढकुन्दान्वयका प्रथम उल्लेख सन् १९७ मैं ( क्र० १२२ ) बिना किसी गणके हुआ है । वहाँ सिमंलगेगूरु गणका कोई उल्लेख नहीं है । कोण्डकुन्डान्वय यह विशेषण क्वचित् द्राविड़ संघ, सेनगण आदिके लिए भी प्रयुक्त हुआ है ( तीसरा भाग प्रस्तावना पृ० ४५, ५१ )
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जैनशिलालेख-संग्रह रविनन्दि-एलाचार्य इस परम्पराका वर्णन है। गग राजा मारसिंह २ ने एलाचार्यको एक ग्राम अर्पण किया था।'
सूरस्य गणके दो उपभेदोका पता चला है - कोकर गच्छ तथा चित्रकूटान्वय । कोरूर गच्छका एक ही लेख है (क्र० ११७ ) तथा इसमें सन् १००७ में अहणन्दि पण्डितका वर्णन है। चित्रकूटान्वयके १० लेख है । पहले लेखमें (क्र० १५३ ) सन् १०७१ में इस अन्वयके श्रीनन्दि पण्डितकी एक शिष्याको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है। श्रोनन्दिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार पी- चन्द्रनन्दि-दामनन्दि-सकलचन्द्रकनकनन्दि-श्रीनन्दि । श्रीनन्दि तथा उनके गुरुवन्धु भास्करनन्दिके समाघिलेख सन् १०७७-७८ के है (क्र० १६०)। इस अन्वयका तीसरा लेख (क्र० १५८ ) सन् १०७४ का है तथा इसमें अहणन्दिके शिष्य आर्य पण्डितको कुछ दान मिलनेका वर्णन है। अगले दो लेखोसे (क्र० २३७-३८ ) इस अन्वयकी एक परम्पराका पता चलता है जो इस प्रकार थी- वासुपूज्य-हरिणन्दि-नागचन्द्र। हरिणन्दि तथा नागचन्द्रको सन् ११४८ में कुछ दान मिला था। इस अन्वयके अन्य लेख अनिश्चित समयके है । इस प्रकार काई १४ लेखोसे सूरस्थ गणका अस्तित्व दसवी सदीसे धारहवी सदी तक प्रमाणित होता है।
(भा ५) वलगार-( बलात्कार )-गण - इस गणका पहला उल्लेख
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१. सूरस्थ गणका प्राचीन लेख पहले सग्रहमें सन् १०५४ का है
(ऋ० १८५)। २. पहले सग्रहने इन दोनों उपभेटोंका वर्णन नहीं है। वहाँ चित्र
कूटान्वयका सम्बन्ध वलगार गणसे मी पाया गया है (क्र० २०८) । कुछ लेखों में सेनगण और सूरस्थगणको (जिसे कही-कही शूरस्थ
भी कहा है ) अमिन्न माना है। इसका विवरण हमने 'महारक सम्प्रदाय के सनगण विषयक प्रकरणम दिया है।
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प्रस्तावना
सन् १०७१ का है (क्र० १५४)। इसमें मूलसंघ-नन्दिसंघका वलगार गण ऐसा इसका नाम है तथा इसके ८ आचार्योंको परम्परा दी है जो इस प्रकार है - वर्धमान महावादी विद्यानन्द-उनके गुरुवन्धु ताकिकार्क माणिक्यनन्दि-गुणकोति-विमलचन्द्र-गुणचन्द्र-गण्डविमुक्त-उनके गुरुबन्धु अभयनन्दि। अगले लेख (३० १५५ ) में इसी परम्पराके तीन और आचार्योके नाम है-अभयनन्दि-सकलचन्द्र-गण्डविमुक्त २-त्रिभुवनचन्द्र । इन लेखोमे गुणकीति तथा त्रिभुवनचन्द्रको मिले हुए दानोका विवरण है । लेख १५७ में सन् १०७४ मै पुन. त्रिभुवनचन्द्रका उल्लेख है। इस गणके अगले महत्त्वपूर्ण लेन्ज (क्र. ३४२, ३७६ ) तेरहवी सदीके हैं। इनमें शास्त्रसारसमुच्चय आदि ग्रन्योके कर्ता माघनन्दि आचार्यका वर्णन है। इनकी गुरुपरम्मरामै १९ आचार्योक नाम दिये है किन्तु उनका क्रम व्यवस्थित प्रतीत नही होता।
चौदहवी सदीमे बलात्कारगणके साथ सरस्वतोगच्छका उल्लेख मिलता है। इसकी एक परम्पराके आचार्य अमरकोति थे। इनके शिष्य माधनन्दिने सन् १९५५में एक मूर्ति स्थापित की थी (क्र० ३९३) इसी परम्पराके तीन लेख और है। इनमें वर्धमान, धर्मभूपण तथा वर्षमान २ इन भट्टारकोका उल्लेख है । ये लेख सन् १३९५ तथा १४२४ के है (क्र० ४०३,
१ इस लेखसे बलगार गणकी परम्पराका अस्तित्व सन् ९०० तक
ज्ञान होता है। अत. डॉ. चौधरीकी यह कल्पना गळत प्रतीत होती है कि यह वलहारि गणका ही रूपान्तर है । वलहारि गणका उल्लेख पहले संग्रहमें मन् १५० के लगमग मिला है (तीसरा भाग प्रस्तावना पृ० २६, ३०)। इम परसरामें माणिक्यनन्तिका नाम उल्लेखनीय है। हमारा अनुमान है कि परीक्षामुसके कर्ता माणिक्यनन्दि इनसे अमित होंगे!
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जैन शिलालेख - संग्रह
१२
४०४, ४३४ ) ।'
बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छकी उत्तर भारतीय शाखाओंके तीन लेख इस सग्रहमै है ( क्र० ४४८, ४६०,४६८ ) । इनमें सन् १५०० में रत्नकीर्तिका तथा सन् १५३१ में धर्मचन्द्रका उल्लेस है ।
( आा ६ ) क्राणूर गण इस गणके उल्लेखोमे पहला दसवी सदीका है ( क्र० ९६ )। इसमें एक विस्तृत गुरुपरम्पराका वर्णन है किन्तु लेखके बीच-बीचमें घिस जानेसे इस परम्पराका ठोक ज्ञान नही होता । इम लेखमें मुनिचन्द्र आचार्यके एक शिष्यको कुछ दान मिलनेका उल्लेख है ।
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४
क्राणूर गणके तीन उपभेदोके उल्लेस मिले है - तिन्त्रिणी गच्छ, मेपपाषाण गच्छ तथा पुस्तकगच्छ । तिन्त्रिणी गच्छके ६ लेख है ( क्र० २१२, २९१, ३२३, ४७६, ५६५, ६१९ ) । पहले दो लेख वाहारवी सदीके हैं तथा इनमें मेघचन्द्र तथा पर्वतमुनि इन आचार्योंका वर्णन है । तीसरा लेख सन् १२०७ का है तथा इसमें अनन्तकोति भट्टारकको कुछ दान मिलनेका वर्णन है । अनन्तकोतिके पूर्ववर्ती छह आचार्योंके नाम भी इम १ इस परम्पराका वर्णन पहले सग्रहके क्र० ५७२ तथा ५८५ में भी है ।
२. पहले सग्रहमें ऐसे दो लेख हैं ( क्र० ६१७, ७०२ ) । क्र० ६१७ में इसे मढसारढ गच्छ पढा गया है, यह 'श्रीमद्शारद गच्छ'अर्थात् सरस्वती गच्छका ही रूपान्तर है । उत्तर भारतमें वलात्कारTest दस शाखाएँ १४वीं सदीसे २०वीं सदी तक विद्यमान थीं । इनका विस्तृत वृत्तान्त हमने 'भट्टारक सम्प्रदाय' में दिया है ।
३. पहले मग्रहमे क्राणूरगणका प्राचीनतम लेख सन् १०७४ का ( क्र० २०७ ) है ।
8 पहले सग्रहमें तिन्त्रिणीगच्छका पहला लेख सन् १०७५ का ( क्र० २०९ ) है ।
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प्रस्तावना
૧૨
लेखमें दिये है। इस गच्छके चौथे लेख (क्र० ४७६ ) मे सन् १५५६ में देवकोति-मुनिचन्द्र-देवचन्द्र यह परम्परा दी है। लेखके ममय देवचन्द्रको कुछ दान मिला था।
मेषपापाणगच्छके दो लेख है (क्र० २१४, ६०३) । पहले लेखमे सन् ११३० में प्रभाचन्द्र के शिष्य कुलचन्द्र आचार्यका वर्णन है। दूसरा लेख इस गच्छकी एक वमदिके बारेमें है।'
पुस्तक गच्छका एक लेख (क्र. २४० ) सन् ११५० का है किन्तु यह वीच-बीचमै घिमा हुमा है अत. इसका तात्पर्य स्पष्ट नहीं है।'
बारहवी-तेरहवी सदीके चार लेखोमे (क्र. २०२, ३१२, ३२६, ३७३) क्राणूरगणके कनकचन्द्र, माधवचन्द्र तथा सकलचन्द्र आचार्योका वर्णन है । इनका गच्छ नाम अज्ञात है। ___इस तरह कोई १५ लेखोसे क्राणूरगणका अस्तित्व दसवी सदीसे सोलहवी सदी तक प्रमाणित होता है।
(श्रा ७) निगमान्वय-मूलमंघ-निगमान्वयका एक लेख (क० ३६०) सन् १३१० का है। इसमे कृष्णदेव-द्वारा एक मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है। ___ उपर्युक्त विवरणसे मूलमयके भेद-प्रभेदोका अच्छा परिचय मिलता है । कोई १५ लेखोमें किसी भेदका उल्लेख किये विना मूलसघका उल्लेख मिलता है। इनमें प्राचीनतर लेख (क्र० ११२, १४५, २०४) दसवी१. पहले सग्रहमें अपपापाणगच्छका पहला उल्लेख सन् १०७९ का है
(क्र. २१६) २ पहले संग्रहमे इस गच्छका कोई उल्लेख नहीं है (देशीगण तया
मेनगणमे भी पुस्तकगच्छ थे उनका वर्णन पहले भा चुका है।) ३. पहले सग्रहमें इस थन्वयका कोई लेख नहीं है।
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जैनशिलालेस-सग्रह लिए दो गांवोके दानका वर्णन है। चौथे लेखमे (क्र. ६३) राजा दुग्गमारद्वारा नवी सदीमे एक मन्दिरको भूमिदान देनेका उल्लेख है। इसके बाद दसवी मदीके प्रारम्भके एक लेखमे (क्र० ७६) एरेय राजाके समय एक जैन आचार्यक समाधिमरणका वर्णन है । सन् ९५० के एक लेख (क्र० ८३) मे राजा व्रतुगको रानी पद्मब्बरसि-द्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए कुछ दानका वर्णन है। सन् ९६२ मे राजा मारसिंह २ ने अपनी माता-द्वारा निर्मित मन्दिरके लिए एलाचार्यको एक गांव दान दिया था (क्र० ८५) इसी वर्षमे इस राजाने मुजार्य नामक जैन ब्राह्मणको भी एक गांव दान दिया था (क्र० ८६)। सन् ९७१ मे इस राजाके समय खजिनालयको कुछ दान मिलनेका वर्णन एक लेखमे (क्र. ८८) में है। दसवी मदीके अन्तके एक लेख (क्र० ९६) में राजा रक्कसगग तथा ननियगगके समय कुछ दानका वर्णन है। एक लेख (क्र० १५४) मे तुग राजा तथा रानी रेवनिमंडिका उल्लेख है। इनकी स्मृतिम गगकन्दर्प नामक जिनमन्दिर अण्णिगेरे नगरमें बनवाया गया था। एक अन्य लेखमे (क० २०७) पुन रानी रेवकनिमहिका उल्लेख हुआ है। इस तरह गगवशके राज्यकालमें जैनसघकी स्थिति सदा ही प्रभावशाली रही थी।
(आ २) कढम्ब वश - इस वशके स्वतन्त्र राज्यकालका एक लेप (क्र. २१ ) इम सग्रहमें है जो छठी सदीके राजा रविवर्माक समयका है। इस राजाने एक सिद्धायतनके लिए कुछ भूमि दान दी थी। गष्ट्रकूट तथा चालुक्य साम्राज्यमे कदम्बवशके कई सामन्त प्रादेशिक शामक थे। ऐसे सामन्तोके कोई १५ लेस मिले है। सन् ८९० के एक
१ परलं सग्रहम गग वशक कई लेख हैं, जिनमें सबसे प्राचीन लेस
(३० ९० ) पॉचवीं सदीके उत्तराधका है। २. पहले सग्रहम इस वंशके टस लेस है जो पाँचवीं व छठी सदीक है
(ऋ० ९६-१०५)।
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लेखमें कदम्व महासामन्त अलियमरस- द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका वर्णन है ( क्र० ६० ) । सन् १०४५ के एक लेखमें कोकण प्रदेशमे महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवके शासनका उल्लेख है ( क्र० १३१ ) तथा एक मन्दिर - को कुछ दान मिलनेका वर्णन है । सन् १०८१ के दो लेखोमें कदम्ब राजा गोवलदेव तथा 'कादम्बचक्रवत' वीरमके समय एक वसदिको दान मिलनेका तथा एक महिलाके समाधिमरणका वर्णन है ( क्र० १६३-४ ) । सन् १०९६ में कदम्ब कुलके सामन्त एरेयगकी रानी असवव्वरसिने एक मन्दिर बनवाया था ( क्र० १६९ ) । सन् १९२३ और ११३० के दो दानलेखो में ( क्र० २०२ व २१४ ) कदम्ब सामन्त तैलपदेव तथा मयूर - वर्माके शासनका उल्लेख है । तैलपदेवके शासनका उल्लेख सन् ११४८ के दो दानलेखो में भी है ( क्र० २३६-२३८) । सन् १२०७ के एक दानलेखमे कदम्त्र सामन्त ब्रह्मका तथा सन् १२१८ में जयकेशीका उल्लेख मिला है क्र० ३२३ व ३२५ ) । सन् १५०४ में कदम्व लक्ष्मप्परसने चारुकीर्ति पण्डिताचार्यके शिष्यको धर्माधिकार प्रदान किये थे ( क्र० ४५५ ) | एक अनिश्चित समयके लेख ( क्र० ६१४ ) में त्रिभुवनवीर नामक कदम्ब शासकको रानीके समाधिमरणका उल्लेख हैं ।
प्रस्तावना
( आ ३) राष्ट्रकूट वंश प्रस्तुत संग्रहमे इस वशके देज्ज महाराजके सामन्त सेन्द्रक इन्द्रणन्दका एक लेख है ( क्र० २२ ) जो सदीका है | इन्द्रणन्दने आर्यनन्दि आचार्यको एक ग्राम दान राष्ट्रकूट वशको प्रधान शाखाके कोई १३ लेख इस सग्रहमें हैं ।
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छठी पातवी दिया था । इनमें पहला
१. देज्ज राजाका राष्ट्रकूटोंके प्रमुख वशसे क्या सम्बन्ध था यह स्पष्ट नहीं है । सेन्द्रक वंशके तीन लेख पहले संग्रहमें हैं - ( क्र० १०४,१०६,१०९)।
२. पहले संग्रहमें इस शासाके दस लेस हैं जिनमें पहला ( क्र० १२४ ) सन् ८०२ का है -
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जनशिला-मपर लैग मन् ८०८ का (०५४)। गर्ग गगाद गरिर TAR राज्यकालम उनको ग्यास या गाar Ramमानसी एक गायक दानका वर्णन है। अगर ग (ज. ५) गा८२१ में गम्राट अमांपर्गका तथा उनी गाना पांग 131 है। कर्कराजने अपगजिनगुमो गगाजान मिया मागे मम्राट् अमीपवर्षने नागनन्दि आचार्यसमि1ि7.." मन् ८६४ में गी रामादल राज्यकामा गाnिframmar (० ५७) । नयो-गरी गदीश मग नैमिन rin है निगमे उन्हें गष्ट्रकट गाnि धान रसायो मा . " मन् ९०० ये एक मन्दिा गरम ममा RITER HITI तथा गन् १२५ के एक मन्दिाम गाट गायित्र frame. का उल्लेग है (२०७७, ७८) Pी पनि गन .:. में एक जिनमन्दिर निर्माण गया गा(१०७१
TET लेसमे Tण ३ असारवर पाना तथा मा धाग मग्राट् पोट्टिगका वर्णन है (०८.८)न्द्रनिगान T जिनमूर्तिका पादपीठ बनवाया था ( म० ८.) मारनापति श्रीविजयको प्रामामि एका स्तम्भलय मिला। (30 )
बारहवी गरी एका लेग (३० २१७) म रि गण गणाके अधीन गष्टमूट मुलगे मामन्त गोलगदेवका उलग है।
(भा ४ ) पात्य यश - ग वर्गक पार गनुन मगा।' इनमें पहला (०२३) माती गशेके गार निमारियां ममयवा दानरेप है। भाटनी गरी एक लेगम (३० ५. ) गुर पाण्डव राना-नाग एक जिनमन्दिरली जगीनाको भरमा मग्नेमा वन है। मन ८५० में राजा वरगुण २ के समय दो मनिरा जोगांद्वार मा १. पहले सग्रहम इस वशका कोई रोगमा है।
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प्रस्तावना
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था (क्र० ५८)। सित्तन्नवासलके गुहामन्दिरका जीर्णोद्धार नवी सदीमें राजा अवनिपोखर श्रीवल्लभके समयमें हुआ था (क्र. ६२)। इस वंशका अन्तिम लेख ( ऋ० ३५६ ) सन् १२९० का एक दानलेख है तथा इसमें मारवर्मन् विक्रम पाण्ड्यके राज्यका उल्लेख है ।
(आ ५) पल्लववंश-इसका उल्लेख तीन लेखोमें है । इनमै पहला लेख (क्र० २०) छठी सदीके पूर्वाधका है। इसमें पल्लव राजा सिंहविष्णुकी माता-द्वारा निर्मित एक जिनमन्दिरका वर्णन है। दूसरे लेख (क्र० ३९) मै सातवी-आठवी सीके शासक पल्लवादित्य वादिराजुलको अहंत भट्टारकक पादानुष्यात कहा है । तीसरा लेख (क्र० ५३७ ) अनिश्चित समयका है तथा इममें पेरुजिंगदेव नामक पल्लव राजाके शासनका उल्लेख है।'
(आ६) चालुक्य वंश-बदामीके चालुक्य राजाओंके दो लेख इस सग्रहमें है। पहला (क्र. ४६ ) सन् ७०८ का है तथा इसमें राजा निजयादित्यको रानी कुकुमदेवी-द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका उल्लेख है। दूसरे लेख (क्र० ४६ ) में राजा कीर्तिवर्मा रके राज्यमें सन् ७५१ में एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है। ' वेंगीके चालुक्य राजाओंके तीन लेख इस सग्रहमे है। पहला (क्र० ४४ ) लेख राजा जयसिंहवल्लभ २के राज्यका-आठवी सदीके प्रारम्भका है तथा इममें रट्टगुडि वशके सामन्त कल्याणवसन्त-द्वारा महंत भट्टारकको कुछ दानका वर्णन है । दूसरा लेख (क्र. ४९ ) आठवी सदीके उत्तरार्धम राजा सर्वलोकाश्रय विष्णुवर्षनके समयका है तथा इसमें सामन्त गोकय्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए दानका वर्णन है। तीमरे (क्र० १००) १. इस वंशका एक लेस पहले संग्रहमें है (क्र० ११५)। २ इस शासाके ६ लेस पहले संग्रहम हैं (ऋ० १०६-८ तथा १११,
३. इस शाखाके तीन लेख पहले संग्रहमें हैं (क० ११३-१४४, २१०)।
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जनशिलालेख-सग्रह में दसवी सदीके उत्तरार्धमें अम्मराज २ द्वारा विजयवाटकके जिनमन्दिरके लिए एक गांवके दानका वर्णन है। ___कल्याणीके चालुक्य राजाओके लेख मस्यामै सर्वाधिक-५८ है । लेसोकी अधिकताके कारण हम यहाँ उन लेसोका ही उल्लेख करेंगे जिनमें इस वंशके सम्राटोका जैन धर्मकासि साक्षात् सम्बन्ध आया था- जिनमे सिर्फ उनके राज्यकालका उल्लेख है उनका निर्देश सूची में होगा ही। इस वशके लेखोमे पहला (क्र० ११७ ) सन् १००७ का है तथा इसमें सामन्त नागदेवकी पत्नी-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है। यह लेख सम्राट् सत्याथय आहवमल्लके समयका है। मन् १०२७ के एक लेखमें (क्र. १२४ ) सम्राट् जयसिंह २ की कन्या सोमलदेवी-द्वारा एक मन्दिरको कुछ दान मिला था ऐसा वर्णन है । सन् १०३२ के एक लेखमै सम्राद जगदेकमल्ल-द्वारा एक मन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है (क्र. १२६ )। इस मन्दिरका नाम ही जगदेकमल्ल जिनालय था। जगदेकमल्लकी बहा अक्कादेवीने सन् १०४७ में गोणदवेडगि जिनालयको कुछ दान दिया (क्र. १३४) । सन् १०५५ के एक लेखमे आचार्य इन्द्रकीतिको त्रैलोक्यमल्लकी सभाका आभूपण कहा है। (क्र० १४१ )। इस वंशका अन्तिम लेख (क्र० २०४ ) सन् १९८५ का है तथा इसमें सोमेश्वर ४ के राज्यकालमें एक मन्दिरको कुछ दानका वर्णन है।
(भा ७) चोल वश इस वशका उल्लेख कोई २५ लेखोमे है। इनमें पहला ( ऋ० ८२ ) सन् ९४५ का है तथा इसमें राजा परान्तक १ के समय एक कूपके निर्माणका वर्णन है। सन् ९९९ के एक लेखमे
, पहले सग्रहमें इस वंशके कई लेख है जिनमें पहला (क्र. १६६)
सन् १६० के आसपासका है। २. पहले संग्रहमें इस वंशके तीन लेख (क० १६०, ११, १७४) हैं।
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प्रस्तावना
૨૬
(क्र०९२) राजराज १ के समय कुछ जैन आचार्योंका उल्लेख है। दसवी सदीके उत्तरार्धके एक दानलेखमें (क्र. ९८) गण्डरादित्य मुम्मुडि चोल राजाका उल्लेख है। सन् १००९ के एक लेखमें ( ऋ० ११९) राजराज १ की आज्ञाका वर्णन है जो ब्राह्मणो तथा जैनोको नियमित रूपसे कर देनेके लिए दी गयी थी। दो दानलेखोमें (क्र० १२१,१२९) ग्यारहवी सदी-पूर्वार्धमें राजेन्द्र १ चोलके शासनका उल्लेख है । सन् १०६८ के दो दानलेख राजेन्द्र २ के शासनकालके है (क्र० १५०-५१)। कुलोत्तुग १ के शामनके पांच लेख है (क्र. १६७,१७३,१९४,१९५,१९८) । जो सन् १०८६ से १११८ तकके दानलेख है। विक्रमचोलके शासनके दो दानलेख सन् ११३१ तथा ११३४ के है (क्र. २१५,२१९) कुलोत्तुग २ के राज्यकालके तीन लेख है जिनमे एक सन् ११३७ का है (क्र. २२३, २२४,२२६ ) । राजराज २ के शासनके तीन लेख सन् १९५६-५७ के है । (क्र० २४८-२५०) । कुलोत्तुग ३ के समयके दो लेख है (क्र० ३२४,३८०) इनमें पहला सन् १२१६ का तथा दूसरा अनिश्चित समयका है। इस दूसरे लेखके अनुसार कुलोत्तुग राजाने नल्लूर नामक गाव एक देवमन्दिरको अर्पण किया था।
इस तरह हम देखते है कि चोल राजाओके प्राय सब लेख राजपुरुषोसे साक्षात् सम्बन्ध नही रखते।
युद्धके दिनोमें चोल सेनाद्वारा जिनमन्दिरोका विध्वस होनेका वर्णन सन् १०७१-७२ के एक लेखमें (क्र. १५४) हुआ है।
(श्रा = ) होयसल वंश-इस वशके कोई ३० लेख प्रस्तुत सग्रहमे हैं। इनमे सबसे पहला लेख (क्र० १४५) सन् १०६२ का है तथा
१. पहले संग्रहमें इस घंशके कई लेख हैं जिनमें पहला (क्र० २००)
सन् १०६२ का ही है।
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जैनशिलालेस-सग्रह इसमें राजा विनयादित्य-द्वारा अभयचन्द्र पण्डितको दान दिमे जानका वर्णन है। सन् १०६९ के एक लेखम विनयादित्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । ग्रामीण लोग गरीबीके कारण यह कार्य नहीं कर सके थे अत राजाने सहायता देकर यह मन्दिर बनवाया था ( ऋ० १५२ ) ग्यारहवीं सदी अन्तिम चरणके एक लेखमें (क्र० १७५) वर्षमान आचार्यको होयमल राज्यके कार्यकर्ता यह विशेपण दिया है । राजा वल्लाल १ के सेनापति मरियानेने बारहवी सदीके प्रारम्भमें एक मूर्ति स्थापित की थी (क्र. १८३ ) । वारहवी मदी- प्रथम चरणके दो लेखामे राजा विष्णुवर्धनकी रानी चन्तलदेवी तथा उसके बन्धु दुइमल्ल-द्वारा जिनमन्दिरोको दान देनका वर्णन है (क्र. १८८-८९) । इस समयके चार लेसोम (क्र. २००, २०१, २१२, २१३) विष्णुवर्धनके चार सेनापतियोगगराज, उसका पुत्र वोप्प, पुणिसमथ्य तथा मरियानेक धर्मकार्यों का - मन्दिर निर्माण, दान आदिका वर्णन है। राजा नरसिंह १ ने सन् ११५९में एक मन्दिरको कुछ दान दिया था (० २५२ ) तथा समके सेनापति भरतिमय्य एव माचियणने सन् ११४५ तथा ११५३ में इसी प्रकारके दान दिये थे (क्र. २३३, २४६ ) । सन् ११७६ तथा ११९२ के लेखोमें (क्र० २०१, २८२) राजा वीरवल्लाल द्वारा जिनमन्दिरोंको दान देने. का वर्णन है तथा सन् ११७३ एष ११९० के लेखो इमी राजाके अधीन अधिकारियो-द्वारा ऐसे ही दानोका उरलेख है (३० २६८, २८१)। इमी राजाके ममयके तीन दानलेप और है (० २८५, २८९, ३२३) जो सन् १९९९ से १२०० तक के है तथा दो समाधिलेख है (क्र. ३२०. ३२२)। राजा नरसिंह ने मन १२ः५में एक जिनमन्दिरको दान दिया था (क्र. ३४२) तथा उसके अधीन अधिकारियोने सन् १२५७, १२७१ तथा १२८५ में ऐसे ही धर्मकार्य किये थे (३० ३३५, ३४५, ३५१)। एक रूपम राजा रामनाथ-द्वारा पाश्र्वनाथ मन्दिरको दान देनेका वर्णन है (क्र. ३६० ) तथा एक अन्य लेखमै राजा बीरबल्लाल के समय सन्
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प्रस्तावना
१३१९में कुछ स्थानीय अधिकारियो-द्वारा ऐसे ही दानका उल्लेख मिलता है (क्र० ३९१ )।
(भा १) कलचुर्य वंश-प्रस्तुत सग्रहमें इस वंशका उल्लेख सात लेखोमें है। इनमें पहला लेख सन् ११५९ का है तथा इसमें किसी सेनापति-द्वारा एक जैन आचार्यको दान मिलनेका वर्णन है (क्र० २५१)। यह लेख राजा विज्जलके समयका है। इस राजाका उल्लेख चार अन्य लेखोमें है (क्र० २५६, २६०-२६२)। ये लेख सन् ११६१ से ११६८ तक के है तथा इनमे स्थानीय अधिकारियो-द्वारा जैन आचार्योको मिले हुए दानीका वर्णन है। इस वशके अन्तिम दो लेख राजा सोविदेवके राज्यके सन् १९७३ तथा ११७५ के है (क्र. २६७, २७०) तथा इनमें भी स्थानीय व्यक्तियोंके दानोका उल्लेख है।
(आ १० ) यादव वश-देवगिरिके यादवोका उल्लेख प्रस्तुत सग्रहके १५ लेखोमें है। इनमें पहला लेख (क्र० ३२६ ) राजा सिंहणके समय सन् १२३० में लिखा गया था तथा एक मन्दिरके लिए कुछ दानका इसमें वर्णन है । इस राजाके समयके तीन अन्य लेखोमें (क्र० ३२८, ३२९, ३३० ) तीन महाप्रधानो-प्रभाकरदेव, मल्ल तथा वीचिराज-द्वारा जिनमन्दिरोके लिए दानोका वर्णन है। ये लेख सन् १२४५ तथा १२४७ के है। राजा कन्हरदेवके राज्यके चार लेख है (क्र० ३३४, ३३६, ३३७, ३३९)। ये लेख सन् १२५७ से १२६२ तकके है इनमे तीन दानलेख है तथा एक समाधिलेख है । राजा महादेवके समयके तीन लेख है (क्र. ३४०, ३४१, ३४४), ये सन् १२६५ तथा १२६९ के है तथा तीनो समाधिमरणके स्मारक है। राजा रामचन्द्रके समयके चार लेख है ( ऋ० ३५२, ३५४, ३५५, ३५९), ये सन् १. पहले संग्रहम इस वंशके तीन लेख है (ऋ० ४०८, ४३५, ४३६), २. पहले संग्रहमें इस वंशके ९ लेख है, जिनमें पहला (क्र. ३१७)
सन् ११४२ का है।
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जैन शिलालेख संग्रह
१२८५ से १२९७ तक के है । पहले लेखमें सर्वाधिकारी मायदेव द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है, दूसरा एक समाधिलेख है, तोसरेमें एक मन्दिरके लिए दानोका वर्णन है तथा चौथेमें महामण्डलेश्वर तिकमदेवके मन्त्रीके पुत्र द्वारा एक मन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है ।
२८
( आ ११) विजयनगर के राजवंश -- विजयनगर राज्यके कोई २० लेख प्रस्तुत सग्रहमे हैं । इनमें पहला ( क्र० ३९३ ) सन् १३५५ का है तथा हरिहर राजाके समय एक जिनमूर्तिको स्थापनाका इसमें उल्लेख है । बुक्क राजाके समय दो लेख है ( क्र० ३९४, ३९६ ), ये सन् १३५७ तथा १३७६ के है । पहला लेख एक जिनमन्दिरके अवशेपोमें है तथा सेनापति वैचयका इसमें उल्लेख है । दूसरा एक समाधिलेख है । राजा हरिहर २ के सेनापति इरुगने एक जिनमन्दिर बनवाया था ( क्र० ४०३ ) । तथा इस राजाके अधीन गोवाके शासक माधवके सेनापति नेमण्णने पार्श्वनाथमन्दिरको सन् १३९५ में कुछ दान दिया था (क्र० ४०२) । सन् १३९५ के ही एक लेखमें वैचय दण्डनायकके पुत्र इम्मडि वुक्कमन्त्रीश्वर द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है ( क्र० ४०४ ) । राजा वृक्क २के समयके दो लेख है ( क्र० ४०६, ४१५ ) इनमें एक शान्तिनाथमन्दिरके निर्माणका स्मारक है तथा दूसरेमें लक्ष्मीसेन भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है । राजा देवरायके ममयके दो लेख है ( क्र० ४२५, ४३४ ) - पहला सन् १४१२ का है तथा दो मन्दिरोकी सीमाओके बारेमें एक समझौतेका इसमें वर्णन है । दूसरा सन् १४२४ का है तथा इनमें राजा द्वारा नेमिनाथमन्दिरके लिए वराग ग्रामके दानका वर्णन है । राजा मल्लिकार्जुनके समय सन् १४५० में एक मन्दिरको मिले हुए दानोका वर्णन एक लेखमे है ( क्र० ४४० ) । कृष्णदेव महारायके समय के एक लेखमें ( क्र० ४५६ )
१ पहले सग्रहमें इस वशके कई लेख है जिनमें पहला सन् १३५३ का है ( क्र० ५५८ ) ।
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प्रस्तावना
२६
मन्दिरोकी भूमियोको करमुक्त करनेका वर्णन है, यह लेख सन् १५०९ का है । वराग ग्रामकी मन्दिरको जमीनको खेतीयोग्य बनानेका वर्णन सन् १५१५ के एक लेखमे हैं (क्र० ४५८) । राजा अच्युतदेवने सन् १५३० मे एक जिनमूर्तिको पूजाके लिए कुछ करोकी आय दान दी थी (क्र० ४६७ ) । राजा सदाशिव के समय रामराजने सन् १५४५ में एक जिनमन्दिरको कुछ भूमि दान दो थो ( क्र० ४७३ ) । इमी राजाके समयका एक दानलेख सन् १५५६ का है (क्र० ४७६ ) । राजा रामदेवके समय सन् १६१९ मे एक जैन विद्वान्को कुछ दान दिया गया था ( क्र० ५०३ ) । इस राज्यका अन्तिम लेख सन् १७५७ का है ( क्र० ५२० ) तथा इसमे सदाशिव रायके अधीन शासक भरसप्पोडेय द्वारा चारुकीति पण्डितको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है ।
(था १२) दक्षिण भारतके छोटे राजवश- अब हम उन राजवंशोंक उल्लेखोका विवरण देखेंगे जिन्होने राष्ट्रकूट, चालुक्य, होयसल या यादव राज्योमं सामन्तोके रूपमें महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया था । ऐसे वशोमें नोलम्ववग प्रथम है जिसके चार लेख मिले है ( क्र० ५९, ६१, १२३, १३९ ) ।'
इनमें पहले दो लेख राजा महेन्द्र के समयके है । एकमे राजा द्वारा सन् ८७८ मे एक जिनमन्दिरको दान मिलनेका वर्णन है तथा दूसरेमे सन् ८९३ मे आचार्य कनकसेनके लिए कुछ दानका उल्लेख है । नोलब घटेयककारने एक जिनमन्दिरको सन् १०२४ में भूमिदान दिया था ( क्र० १२३) । नोलब ब्रह्माविराजके समय सन् १०५४ में अष्टोपवासी मुनिको कुछ दान मिले थे (क्र० १३९) ।
हुम्मचके सान्तर वगके चार लेख मिले है ( क्र० १३७,२५८,४२२
१ पहले संग्रहमे नोलम्ववादिके कई उल्लेख है किन्तु नोलम्ब राजाओं का कोई लेख नहीं है ।
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३०
जैनशिलालेख-संग्रह ४६१ )। इनमें पहला लेख सन् १०५३ का है तथा इसमें राजा वीर सान्तर-द्वारा उसके जैन मन्त्री नकुलरसको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । दूसरे लेखमें राजा तैलपदेवक जैन सेनापति गोगिकी मृत्युके वाद राजा-द्वारा उसके कुटुम्बियोको कुछ दान मिलनेका वर्णन है। यह लेख सन् १९६२ का है। तीसरे लेखमें राजा पाण्डयभूपाल द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए भूमिदानका वर्णन है। यह लेख सन् १४१० का है । चौथा लेख सन् १५२२ का है तथा इसमें इम्मडि भैरवरस राजा-द्वारा वरागके नेमिनाथमन्दिरके लिए एक गांवके दानका वर्णन है।
सिन्द कुलके सामन्तोंके चार उल्लेख मिले है (क्र. १३८, १६६, २६१, २६४)। इनमें पहला सन् १०५३ का है तथा इसमें सिन्द कचरसद्वारा नयसेन आचार्यको कुछ दान मिलनेका उल्लेख है। दूसरा लेख सन् १०८५ का है तथा यह सिन्द वर्मदेवरसके समयका दानलेख है। तीसरे लेखमें सन् १९६७ मे सिन्द होलरस-द्वारा एक बसदिको दान दिये जानेका वर्णन है। अन्तिम लेखमे सन् १९७० मे सिन्द चावुण्डरस-द्वारा जैन शालाको भूमिदान मिलनेका वर्णन है।
रट्ट कुलके उल्लेख छह लेखोमें है (क्र० १७६, १८६, २५९, ३१७, ३१८, ३१९)। इनमें पहला लेख ११वी सदीका रापा कार्तवीर्य २ के समयका है, इसका विवरण अधूरा है। दूसरा लेख सन् ११०८ का है तथा इसमें राजा लक्ष्मीदेव-द्वारा निर्मित जिनमभरका उल्लेख है। तीसरे लेखमें सन् १९६५ में राजा कार्तवीर्य ३-वारा एक्कसम्वुगेके जिनमन्दिरके , पहले सग्रहमें इस घशक कई लेख है जिनमें पहला (क. १४६ )
मन् ६५० के भासपासका है। २ पहले सग्रहमें सिन्द राजाओंके लेख नहीं है। ३ पहले सग्रहम इस वशके इस लेख है जिनमें पहला (क्र० १३०)
सन् २७५ का है।
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३१
अन्तिम तीन लेख कार्तवीर्य ४ के राज्यके सन् १२०१ इनमें राजा द्वारा जिनमन्दिरोके लिए दानोका
दर्शनका वर्णन है । तथा १२०४ के है । वर्णन है ।
प्रस्तावना
शिलाहार वंशके चार लेख मिले हैं (क्र० १९२, २२१, २२२, २५९) । इनमे पहला सन् १९१५ का है तथा इसमें राजा गण्डरादित्यद्वारा उनके जैन सामन्त नोलम्वको दो गांवोंके दानका वर्णन है । अगले दो लेखामें गण्डरादित्यके जैन सामन्त निम्वका वर्णन है । इसने सन् ११३५ मे एक जिनमन्दिरका निर्माण कराया था । अन्तिम लेखमें गण्डरादित्यके जैन सेनापति जिन्नण तथा विजयादित्य के सेनापति कालणका उल्लेख है । कालणने सन् ११६५ में एक मन्दिर बनवाया था ।
काकतीय वंशका एक लेख सन् १९१७ का मिला है (क्र० १९७) । इसमें राजा प्रोलके मन्त्री बेतकी पत्नी द्वारा अन्मकोण्डमे पद्मावती देवीका मन्दिर बनवानेका वर्णन है ।
गुप्त वंशके महामण्डलेश्वर विक्रमादित्यने सन् १९६२ मे पार्श्वनाथमन्दिरके लिए कुछ दान दिया था (क्र० २५७)३
कोगालव वशके शासक वीरकोगात्वने सन् १९१५ के आसपास सत्यवाक्यजिनालय नामक मन्दिर बनवाया था (क्र० १९३) ।
मैसूरके राजा चामराजकी रानी देवीरम्मणिने मेसूरके शान्तिनाथ - मन्दिरमें दीपस्तम्भ तथा कलश दान दिये थे ( क्र ५२४-५२५ ) । इनका
१. पहले सग्रहमें इस वंशके तीन लेख हैं (क्र० २५०, ३२०, ३३४) । २.३. पहले संग्रह में इन दो वंशांका उल्लेस नहीं है ।
8 पहले संग्रहमें इस वंशके छह लेख है जिनमें पहला सन् १०५८ का है (क्र० १८६) ।
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जैन शिलालेख संग्रह [ मूल लेख तथा साराश ]
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जनशिलालेख-संग्रह लिपि सनपूर्व ३री मदीकी है। ये गुहाग श्रमणोंके लिए उत्कीर्ण की गयी थी।]
[रि० मा० ए० १९३७-१८ ० ५३११०५९]
खण्डगिरि (ओरिमा)-(मंचपुरी गुहा-अग्ना भाग)
प्राकृत-ग्रामी, सनपूर्व पहली मढी १ अरहतपमादाय कालिंगा (न) ( मम ) नान लेण गरिनं
राजिनो लालाक (1) २ हथिसाहम-पपोतम ७ (तु ) ना कलिंगच (कवतिनी ग्मिरिया)
रखेलम ३ अगमहिमि (ना) कारि (न)
[अरहतोकी कृपामे कलिंग प्रदेशके श्रमणों के लिए यह गुहा कलिंगचक्रवर्ती सारखेलको महागनीने बनवायी । यह इम्निमाहमर प्रपौत्र लालाककी कन्या थी]
[ए०३० १३ पृ० १५० ]
खण्डगिरि-(भचपुरी गुहा--नीचेका भाग)
प्राकृत-ग्रामी सनपूर्व पहली सही १ सरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महा (मंघ ) बाह ( नम)
कुटेपमिरिनो लेण [कलिंगके अधिपति महागज गर महामेघवाहन कुदेपयीने यह गुहा बनवायी।
[ए० इ० १३ पृ० १६०]
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-<]
खण्डगिरिके लेख
५
खण्डगिरि - ( मचपुरी गुहा - नीचेका भाग )
प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी
कुमारो वदुखस लेण [ यह गुहा कुमार चडुलने वनवायी । ]
चूलकमस कोठाजेया च
[ ए० ई० १३० १६१ ]
६
खण्डगिरि ( सर्पगुहा )
प्राकृत - ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी
[ चूलकम्म ( क्षुद्रकर्म अथवा चूडाकर्म ) का कक्ष 1 ]
[ ए० इ० १३ पृ० १६२ ]
खण्डगिरि ( सर्पगुहा )
प्राकून - ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी
१ कमस हलखि
२ णय च पसादो
[ कर्म तथा हलखिण ( सल्लक्षण ) का बनवाया प्रासाद । ]
[ ए० इ० १३ पृ० १६२ ]
८
खण्डगिरि (हरिदास गुहा ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी
[ यह लेख सर्पगुहाके पहले लेखके समान ही है । ]
[ ए० इ० १३ पृ० १६२ ]
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जनशिलालेग्य-संग्रह
[
खण्डगिरि ( वाघ गहा)
प्राकृत-त्राह्मी, सनपूर्व पहली मढी १ नगर भवटम २ मभूतिनी लेण [नगरके न्यायाधीश सुभृतिकी गुहा ]
[०:० १३ पृ० १६३]
खण्डगिरि (जम्प्रेचर गहा)
प्राकृत-ग्रामी, सनपूर्व पाली मही महामदास यारियाय नाकिगम लेण [महामदकी पत्नी नाकियाकी गुहा ]
[ए०३० १३ पृ० १६३ ]
खण्डगिरि (छोटा हायीगुफा)
प्राकृत-वाही, सनपूर्व पहा मटा अगिस"स लेण [ अगिख""की गुहा
[ए०६० १३ पृ० १६४ ]
खण्डगिरि ( तत्त्वगुहा)
प्राकृन-बाह्मा, मन्पूर्व पहली महा पादमुलिकस कुसुमास लंण फि • [पदमृलिकके कुमुमकी गुहा]
[ए०३० १३ पृ० १६४ ]
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-१५]
मधुराक लेख
खण्डगिरि (अनन्तगुहा)
प्राकृत-ग्राझी, सन्पूर्व पहला सदी दोहद समणन लेणं [दोहदके श्रमणोकी गुहा ]
[ए० ई० १३ पृ० १६४]
१४
खण्डगिरि (तत्त्वगुहा)
बाह्मी, पहली सी १ . ' . २ • ण त थ द ध न . ३ . 'ण त थ द ध न श प म " ४ · ण त थ द ध न प फ व श ष स ह ५ "त थ द ध न प फ व श ष स ह "
"
[ यह वर्णमाला चित्रित की गयी है जो सम्भवत. किसी नवदीक्षित साधुका कार्य है।
[ए० इ० १३ पृ० १६५ ] १५ मथुरा ( उत्तर प्रदेश) प्राकृत-बाही, वर्ष ८४ (दूमरी सटी) . ओं सिद्ध स८०४ व ३ दि २० ५ एतस्मि पूर्वय दमित्रस्य
धितु ओस२ रिकाये कुटुबिणिये दताय दान वर्धमानप्रतिमा प्रतिथपिता
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जैनशिलालेख-सग्रह
[१६३ गणतो कोट्टियतो 'सत्यसेनस्य धरवृधिस्य नि..
[वर्ष ८४ में वर्षा ऋतुके तीसरे महीनेके २५ दिन दमित्रकी पुत्री तथा ओखरिककी पत्नी दता ( दत्ता) ने यह मूर्ति स्थापित की। कोट्टिय गणके सत्यसेन""धरवृद्धि । ] [ यदि लेखका वर्ष शककालका हो तो वह सन् १६२ होगा।
[ए० इ० १९ पृ० ६७]
मथुरा प्राकृत-ग्राही, पहली-२ री सदो (सण्डित जैनमूर्षिक पादपीठपर)
(शा) खातो वाच (कस्य) आर्य ऋ (पि) दासस्य निर्वर्तना रकस्य महिदामस्य"
[ शाखाके वाचक आर्य ऋषिदासने यह बनवायी । 'रक भट्टिदामकी ] ।
[रि० आ० स० १९११-१२ पृ० १७ ] १७-१८
मथुरा
प्राकृत-वाझी, २री सदी [ यह लेख २री सदीकी लिपिमे है । अरहटके प्रणामसे इसका प्रारम्भ होता है तथा लायकके पुत्रका इसमे उल्लेख है। एक अन्य पादपीठपर इसी समयकी लिपिमें वर्षमानको प्रणाम किया है।]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ५२८-२९ पृ० ७७ ]
पहाड़पुर ताम्रपत्र (जि. राजशाही, वगाल) गुप्त वर्ष १९९ = सन् १७९ सस्कृत
अगला भाग
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पहाड़पुर ताम्रपत्र
१ स्वस्ति पुण्द्र ( वधं ) नादायुक्तका भार्यनगरष्ठिपुरोगाश्चाधिष्ठा ___नाधिकरणं दक्षिणांशकवीयेयनागिरह२ माण्डलिकपलाशाहपार्थिक - वटगोहालीजम्बूदेवप्रावेश्यदृष्टिमपो
तक-गोपाटपुक्षक-मूलनागिरमावेश्य३ नित्वगोहालीपु ब्राह्मणोत्तरान् महत्तरादिकुटुम्विन कुशलमनुव
ानुबोधयन्ति । विज्ञापयत्यस्मान् ब्राह्मणनाथ४ शर्मा एतभार्या रामो च युप्माकमिहाधिष्ठितानाधिकरणे द्विदी__नारियकुल्यवान शश्वत्कालोपमोग्याक्षयनीवीसमुदयवाहा५ प्रतिकरखिलक्षेत्रवास्तुविक्रयोनुवृत्तस्तदहथानेनैव क्रमेणावयो ___ सकाशाद् टोनारत्रयमुपसंगृहावयो. स्वपुण्याप्या६ यनाय वटगोहाल्यामवास्यान् काशिक-पंचस्पनिकायिकनिर्धन्य
श्रमणाचार्य-गुहनन्दि-शिष्यप्रशिष्याधिष्ठितविहारे ७ भगवतामहतां गन्धधूपसुमनोदीपाधयन्तलवटकनिमित्त च
अ (त) एव बटगोहालीतो वास्तुद्रोणवापमध्यधं ज८ म्यूदेवप्रावेश्य-पृष्ठिमपोत्तकेत् क्षेत्रं द्रोणवापचतुष्टय गोपाटपुंजाद्
द्रोणवापचतुष्टयं मूलनागिरह९ प्रावेश्यानित्यगोहालीत. अर्धत्रिकद्रोणवापानित्यवमध्य क्षेत्र
कुल्यवापमक्षयनीच्या दातुमि (त्यत्र ) यतः प्रथम१० पुस्तपालदिवाकर टि-पुस्तपालतिविष्णु-विरोचनरामवास-हरि
दास-गशिनन्दिषु प्रथमनु" 'मवधारण११ यावश्तमस्त्यस्मदधिष्ठितानाधिकरणे द्विदीनारिक्यकुल्यवान ___ शश्वकालोपमोग्याक्षयनीषासमु ( दयवा ) ह्याप्रतिकर१२ (खिल) क्षेत्रवास्तुविक्रयोनुवृत्तस्तद् यद् युप्मान् ब्राह्मणनाथ
शर्मा पुतभार्या रामी च पलाशाहपाधिकवटगोहालीस्थ
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जैनशिलालेख संग्रह
[१९
पिछला माग १३ ..... 'पञ्चम्पनिकायिकाचार्यनिग्रंन्य-गुहनन्टि-शिष्यप्रशिया
घिठितसद्विहारे अहंतां गन्ध (धूपा) धुपयांगाय १४ (तलवा ) टनिमित्तं च नर वटगोदारयां वास्तुद्रोणयाप
मध्य क्षेत्र जम्बूवप्रावेश्यपूष्ठिमपाच हाणवापचनुष्टयं १५ गोपाटपुजा प्राणवापचनुष्टय मूलनागिरहप्रावश्यनिस्वगोहालीतो
द्रोणवापढयमाढवा (पह) प्रकमित्ययम१६ मध्य क्षेत्रफुल्यवाए प्रार्थयतन न कश्चिद् विरोध गुणस्तु यत्
परमभट्टारकपाढानामपिची धर्मपदमागाप्याय१७ न च भवति तदेव क्रियनामि यननायचाणाक्रमणास्माद् ग्राह्य
नायशर्मत एनमायारामियान दीनारत्र१८ यमायमित्येतान्या विज्ञापितरक्रमापयागायापरिनिनिष्टग्रामगो__हालीका तलबाटस्वास्तुना मा क्षेत्र १९ कुल्यवाप अभ्यक्षियनीवावमण उत्त. कुद्री तद् युष्माभिः
स्वकर्मणाविरोधिस्थान पटकनडरप२० बिच्छय दातव्याअयनीयाधमण च शश्वदाचन्द्राक्तारककालमनु
पालवितव्य इति स १००(+) ..(+) ९ २१ माघ दि ७ उक्तं च भगवता व्यासेन । स्वदचा परततांचा यो
हरत बसुन्धरी। २२ स विष्ठायां कृमि वा पितृभिः सह पच्यते ॥ परिवर्पसह
नाणि स्वगं वसति भूमिन । २३ भाक्षेना चानुमन्ता च तान्व नरक वात् । राजमिर्वहमिदत्ता
दीयते च पुन. पुन. । यस्य यस्य २४ यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् ॥ पूर्वदतां द्विजातिभ्यो
यत्नाद् रक्ष युधिष्ठिर । मही महिमता श्रेष्ठ
प.
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-२०]
होसकोट तानपत्र २५ दानाच्छु योनुपालनम् ॥ विन्ध्याटवीप्वनम्भासु शुष्ककोटर
वासिनः । कृष्णाहिनो हि जायन्से देवढायं हरन्ति ये ॥ [यह ताम्रपत्र गुप्तवर्ष १५९ के माघ एसके ये दिन लिखा गया था। ब्राह्मण नाथशर्मा तथा उसकी पत्नी रामोने पुण्ड्रवर्धनके राजकोषमें तीन दौनार देकर डेढ कुल्यवाप जमीन प्राप्त की। इसमें ४ द्रोणवाप जमीन पृष्ठिमपोत्तक गांवमे, ४ द्रो० गोपाटपुजक गांवमे, २३ द्रो० नित्वगोहालीमें और १३ द्रो० बटगोहालीम थी। काशीके पञ्चस्तूपनिकायके निर्गन्य श्रमणोंके आचार्य गुहनन्दिके शिष्य-प्रशिष्योका एक विहार वटगोहालोमे था। वहां भगवान् अर्हत्को पूजाके लिए गन्ध, धूप, फूल, दोप मादिकी व्यवस्थाके लिए यह जमीन नाथशर्मा तथा रामीने दान दी। इस ताम्रपत्रमे परमभट्टारक पदसे किमी सम्राट्का उल्लेख किया है। ये सम्भवत गुप्तवंशीय सम्राट बुधगुप्त थे। पहाडपुरके समीपका गोआलभिटा गांव ही सम्भवत प्राचीन वटगोहाली है। यहाँके एक वढे मन्दिरके उत्खननमें कई जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मण अवशेष मिले है ।]
[ए० इ० २० पृ० ५९]
होसकोटे (मैसूर)
६वी सदा पूर्वाध सस्कृत पहला पत्र १ स्वस्ति जित भगवता गतधनगगनामेन पद्मनाभेन श्रीमज्जाह्व
वेयकुलामलग्यो२ माबमासनमास्करस्य स्वभुजजवजयजनितसुजनजनपदस्य
दारुणारिंगण३ विढारणरणोपलब्धतणविभूषणभूपितस्य कापवायनसगोत्रस्य श्री४ मतकोंगणिवर्मधर्ममहाधिराजस्य पुत्रस्य पितुरन्वागतगुणयुक्तस्य
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जनशिलालेस-सग्रह
[२०७ विद्याविहितविनयस्य सम्यकप्रजापालनमानाधिगतराज्य
प्रयोजनस्य द्वितीयपत्र : पहला माग ६ विद्वत्कविकांचननिकपीपलभूतस्य विशेषताप्यनवशेपस्य नीति
शास्त्रस्य वक्तृप्र७ योक्तृकुशलस्य सुविभक्तमक्तभृत्यजनस्य उत्तकसूत्रवृत्तेः प्रणेतुः
श्रीमन्माधवचमम८ हाधिराजस्य पुत्रस्य पैतृपितामहगुणयुक्तम्य अनेकचतुर्दन्त
युद्धावाप्त९ चतुरुनधिसलिलास्वादितयशम. समद्विरदतुरगारोहणातिशयो
स्पन्नतेजमो धनुर१० मियोगननितमम्पादितसम्पद्विोपस्य श्रीमदरियममहाधिराजस्य
पुत्रस्य द्वितीय पत्र पिठला माग १ गुरुगोवाहाणपूजकस्य नारायणचरणानुध्यातस्य श्रीमद्विष्णु
गोपमहाधि५० राजस्प पुनस्य न्यम्बकचरणाम्मारहरज.पवित्राकृनात्तमांगस्य
व्यायामोवृत्तपीन१३ कठिनमुजद्वयस्य स्वभुनवलपराक्रममयक्रातराज्यस्य चिरप्रनष्ट
ग्रहाई१४ अयहुसहनविसर्गाप्रयणकारिण. क्षुतक्षामा पिशिताशनप्रीतिकर
निशितधा१५ रासः कलियुगमलपकायमनधर्मवृपोदरणनित्यसलदस्य श्रीमाधव
महाधिराज
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-२० ]
होसकोटे ताम्रपत्र
११
तृतीय पत्र : अगला माग
१६ स्य पुत्रेण जननी देवतापयंकतलसमधिगतराज्येन निजप्रभाव
खंडित
१७ रिपुनृपतिमंडलेनाखंडल विलंविविभवविक्रमेण करितुरगवरारोहणसौष्ट
१८ चजनितगुणविशेषेण
स्वढान कुसुममंजरी सुरमितसमंतनिगत
रामिग
१९ तबुधमधुकरसमुद्येन वरांगनापांगशरविक्षेपलक्षांगेन प्रजापरिरक्ष२० णैकटोक्षाक्षपितकल्मषेणापरिणतवयसापि
परिणतमतिसत्त्व
सम्पदा परम
तृतीय पत्र : पिछला भाग
२१ धार्मिकेण श्रीमता कॉगण्यधिराजेनात्मनः प्रवर्धमानविजयैश्वये
द्वादशे मवत्स
२२ रे कार्तिके मासे शुक्लपक्षे तिथौ पौर्णमास्यां शासनाधिकृतस्य सक्लमंत्रतंत्रांतर्ग
२३ तस्य विविधागमजलप्रक्षालित विशुद्धबुद्धे. सिहविष्णुपल्लवाधि
राजस्य
२४ जनन्या मर्तृकुलकीर्तिजनन्यार्थं चात्मनश्च धर्मप्रवर्धनार्थं च प्रतिष्ठापिताय अर्हढे
२५ वतायतनाय यावनिकपंधानुष्ठिताय कोरिकुन्द्रमाग पुल्लिऊर् नाम ग्राम
चतुर्थ पत्र : अगला भाग
२६ महातटाकस्याधस्तात् मूलाभ्याशे श्रमणकेदारसहितसप्तकण्डुका
वापमानं
२७ क्षेत्र मध्यमागे पंचकण्डुकावापमात्र क्षेत्रं इक्षुनिष्पादनक्षममे२८ कन्तोदृक्षेत्रं ग्रासं दक्षिणेन कण्डुकावापमात्रं पदं उत्तरेण च द्वा
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जनशिलालेख-संग्रह
[२२९ दशकण्डकावापमानमारण्यक्षेत्र च देवतायतनमशिकृष्टमेक वेश्म च ३० एतत् सर्व सर्वपरिहारपरिगृहीत पानीयपातपुरस्सर दत्तं योस्य
चतुर्थपत्र पिछला माग ३१ कोमात प्रमाढाद् वापि हुर्ता म पचमहापातकसयुक्तो भवति
अपि चास्मिन्न३२ थें मनुगीता(न) श्लोकानुढाहरन्ति ॥ स्वदतां परदत्तो वा यो
हरेत वसुन्धराम् ३३-१८ (नित्यक शापात्मक श्लोक) ३६ कुवलालस्वष्टकारस्य इदम्पटुवस्य पुत्रेण पररसामलिसिताम्पटिका ।।
शिवमस्तु [ यह ताम्रपत्र गगवशीय राजा माधव (द्वितीय) के पुत्र कीगण्यघिराज ( अविनीत ) द्वारा राज्यवर्प १२ के कार्तिक शु. १५ को दिया गया था। इसमें यावनिक सघ-द्वारा अनुष्ठित एक अहंदेवतायतन (जिनमन्दिर ) के लिए पुल्लिकर ग्रामकी कुछ भूमि और एक घर दान दिये जानेका उल्लेख है। यह मन्दिर पल्लव राजा मिहविष्णुको माता-द्वारा निर्माण किया गया था। ताम्रपत्रको इदम्पटुवके पुत्र पेरेरने लिया था।]
[ए. रि० म० १९३८ पृ० ८०]
कोरमंग ( मैसूर)
६वी सटी, सम्कृत प्रथम पत्र सूयांशुश्रुतिपरिपिक्तपकजानां शोमां यद् वहति सदास्य पाद. पनम् ।
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३
-२.]
कोरमंगके तानपत्र सिद्धम् २ देवानां मकुटमणिप्रभाभिपिक्नं सर्वज्ञः स जयति सर्व
लोकनाथ. (१) ३ कोा दिगन्तरव्यापी रघुरामीनराधिप (1) काकुस्थतुत्य काकु
स्थो यवायास्तस्य भूपति (२) * तम्याभूत् तनयः श्रीमान् शान्तिवर्मा महीपति (1) मृगेशस्तस्य
ननयो मृगेश्वरपराक्रमः (॥३) ५ कदम्मामलवशा. मौलिनामागतो रवि. (0) उन्याद्विमकुटटेप
(टाटोप ) दोप्रांशुरियांशुमान् (॥४) ६ नृपश्छलनकी विष्णुदत्यजिष्णुग्य स्वयं (1) हिरण्मयचलन्मालं
त्यक्त्वा चक्र विमावित (1) . साम्राज्ये नन्दमानापि न माधति परतप (0) ओरपा मदयत्यन्यानतिपातेव वारुणी (॥६) द्वितीय पत्र ८ नर्मद त मही प्रीत्या यमाश्रित्यामिनन्दति (0) कौस्तुमामारुण
छाय वक्षो लक्ष्मीहरेरिव (Im) ९ रवावधि जयन्तीय सुरेन्द्रनगरी श्रिया (6) वैजयन्तो चलचित्रं
वैजयन्ती विराजते (16) १० रवे जंगहासीव चदनप्रीतमानमा (1) तथा श्री मवत् प्रीता
मुरारेरपि वक्षसि (३९) ११ विश्वा वसुमती नाथन्नायते नयकोविदम् (0) द्यौरिवेन्द्र ज्वलद्व
ब्रदाप्तिकोरकित्तागहम् (॥१०) १२ यस्य मूनि स्वय लक्ष्मी हेमकुम्भोदरच्युत (6) राज्यामिपेकम
करादम्भोजशबलैजल (॥११) १३ रघुणालम्यितामीली (माली ) कुण्डो गिरिरधारयत् (0) रवेराज्ञा
वहत्यद्य मालामिव महीवा (२)
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१४
जैनशिलालेख-सग्रह
[२११४ धर्मार्थ हरिदत्तेन सोय विज्ञापितो नृपः (0) स्मितज्योत्स्नामिपि
क्तेन वचसा प्रत्यमापत (॥१३)
द्वितीय पत्र • दूसरा भाग १५ चतुस्त्रिंशत्तम श्रीमद्राज्यवृद्धिसमासमा (0) मधुर्मासस्तिथि
पुण्या शुक्लपक्ष रोहिणी (॥१४) १६ यदा ता महावाहुरासंग्रामपराजितः (6) सिद्धायतनपूजार्थ
संघस्य परिवृद्धये (१५) १० सेतोरुपलकस्यापि कोरमगानितां महीम् (1) अधिकान्निवर्त
नान्येव दत्तवां स्वामरिन्दम. (१६) १८ श्रामन्दी दक्षिणस्याय सेतो. केटारमाश्रितम् (1) राजमानेन
मानेन क्षेत्रमेकनिवर्तनम् (०१७) १९ समणे सेतुबधस्य क्षेत्रमेकनिवर्तनम् (1) सच्चापि राजमानेन
वेटिकौटेत्रिनिवर्तनम् (॥१८) २० उम्छादिपरिहर्तव्ये समाधिसहितं हितम् (1) दत्तवांश्श्रीमहाराज
स्सर्वसामन्तसनिधौ (१९) २१ ज्ञात्वा च पुण्यममिपालयितुर्विशाल तद्भगकारणमितस्य च
टोपवत्ताम्
तीसरा पत्र । २२ • 'श्रमस्खलितसयमनकचिचाः संरक्षणेस्य जगतीपतय.
प्रमाण (२०) २३ बहुभिर्वसुधा मुक्ता राजमिस्सगरादिमि. (0) यस्य यस्य यदा
भूमिस्तस्य तस्य तदा फल (२१) २५ अद्भिदत्तं त्रिमिमुक्त सद्विच परिपालितम् (0) एतानि न निवर्त
न्ते पूर्वराजकृतानि च (॥२२)
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१६
जैन शिलालेख-संग्रह
[ २३
दूसरा पत्र : दूसरा भाग
११ प्रतिमानचरन पूजार्थं शिक्षकग्लानवृढाना च तपनि बैं१२ यावृत्यार्थ ग्रामस्योत्तरन पूर्वाणग्रामनिरग्रमीमक द१३. क्षिणेन मुब्ज नलमार्गपर्यन्न परत एन्टावन्म१४ तिमी तम्मादुत्तरन पुरrरणा नमन यावत पूर्वनिरंय१५ क राजमानेन पचागजतंन प्रमाणक्ष नन्द
तीसरा पत्र
१६ तवानेतद् यो हरनि म पचमहापातकसंयुक्तो भवति ॥ उफन १७-२० बहुमिसुधा भुक्ता - ( निम्यक शापात्मा क )
[ यह ताम्रपन सेन्द्रक बनके अधिराज विजयानन्द पुत्र इन्द्रणन्दद्वारा जम्बूसण्डगणके आचार्य आर्यनन्दिकी दिया गया था । यतिमा की पूजा लिए तथा तपस्वियोकी सेवाके लिए जलार ग्राम के पासको कुछ भूमि उन्हें दी गयी थी । राजा इन्द्रणन्द राष्ट्रकूट वंश देन महाराजका मामन्त था । इम ताम्रपनका काल आगुप्तानिक राजाओका ८४५व वर्ष इस प्रकार कहा है । किन्तु इसमे कौन-सी कालगणना अभिप्रेत है यह स्पष्ट नही क्योकि लिपिको दृष्टिसे यह ताम्रपत्र छठी या सातवी मदीका प्रतीत होता है । ]
[ ए० ६०२१५० २८९ ]
૨૩ चितरल (केरल)
७वीं सदी, तमिल
भगवती मन्दिर के लिए प्रसिद्ध तिरच्छानुमळे पहाडीपर
[ इस लेखमे अरिट्टनेमि भटारके शिष्य गुणन्दाणि कुरट्टिगल द्वारा देवीके लिए कुछ सोनेके आभूषण दान देनेका निर्देश है। यह लेख विक्रमादित्य वरगुणके २८ वें वर्षका है । ]
[ इ० म० तिरुवाकुर २]
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-२४]
कुलगाण ताम्रपत्र
२४ कुलगाण (मैसूर)
संस्कृत-कसद, ७वीं सदी पहला पत्र ५ स्वस्ति श्री जितं मगवता श्रीमजान्हवेय। २ श्रमणाचार्यसाधित. स्वखड्गक' । ३ राकमैक्रयशसः दारणारिंगणविदार' .. ४ ण्वायनसगोत्रस्य श्रीमत्कॉगणिवर्मध " दूसरा पत्र ५ युक्तस्य श्रीमन्माधवमहाधिराजस्य प्रियोरसस्य श्रीविष्णुवर्म
गोपमहाधिराजस्य अने६ कचतुर्डन्तयुद्धावातचतुलधिमलिलास्वाढितयशमः पुत्रस्य श्री
मन्माधवमहाधिराज७ जस्य पुत्रस्य श्रीमत्कृष्णवर्ममहाधिराजस्य मागिनयस्य श्रीमत्
कोगणिवृद्धराजस्या८ विनीन्नाम्नः पुत्रस्य श्रीदुर्षिनीवनामधेयस्य समस्तपाणाटपुन्ना
टाधिपतेरामजस्य श्रीदूसरा पन (व) ९ मत्कॉगणिवृद्धराजस्य प्रथितमुष्करद्वितीयनामधेयस्य सर्वविद्या
पारगत्य सूनोः श्रीम१० तपृथिवीकॉगणिवृद्धराजय श्रीविक्रमद्वितीयनामधेयस्य सर्व
विद्यानिकषोपलभूतस्य प्र११ योगनिपुणवरस्य श्रीविक्रमोपार्जितानेकजनपदस्य प्रतापोपनत
सकलसामन्तस्य
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जैनशिलालेस-पग्रह
[२४१२ घनविनीवस्यात्मजे 'श्रीमतथिवीकोंगणिवृद्धराजे प्रणितानेक
राजस्य मकुटमणिमतीसरा पत्र १३ यूसपुजर्षिजरितांगुष्ट वरयुवविमनोनयनसुमगे रिपुनृपतिगजाश्व
स्पनरोरुवन१४ लोकसमदद्विरतनुरगारोहणोपभीममाननिरनिशयनिजशरीरश्री
वल्लभे सफल१. पाणाटपुचाटायनेकजनपढाधिपता मनोविनीतम्य श्राता निक
कुमार. श्रीमथियो१६ काँगणिवृद्धराज स्थिरविनीत भवनिमइन्द्रविण्यातः पाणाटपु.
नारायनेकजनपदाधिसीसरा पत्र (ब) १७ पति पृथिवी परिपालयति कोदुगुन्नाहा स्लिपुरा चेहिक ___कलघोल बटुवललु१० बरेठ वसदिगालमेरड कलनिउ तोहमुं मनेतानमु पृथिवीकोगणि
मुचरसरनुमतदो१९ ल पल्सवेलारमर् पोयार कोकन्दियु मयिलूरगडे मेल पाल
जादिगाल कोलिगकरंकालु भोन्दुवोहमुमा२. ह कनिड पृथियोकॉगणि मुत्तरसरनुमवढोल गजेनादर् कण्णमनू
पोयटार चन्द्र (भद्र ) मनाचाचौथा पत्र २१ यर कारराग भटके साक्षि केपिलपुसूर पशिर्वरु भयसामन्तरु
नाकमाणित इदा
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-२४ ]
कुळगाण तात्रपन्न
२२ नलिदोनू पंचमहापातगनप्पोन् श्री बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमि
रसक (ग)
२३- राद्रिमि यस्य चस्त्र चढ़ा भूमि () तस्य तस्य तदा फलं ॥ देवस्त्रं तु विषं धो
१६
२४ रं न विषं विषमुच्यते विषमेकाकिनं हन्ति देवस्वं पुत्रपौत्रकं ॥ स्वदत्तां परवृत्तां वा
चौथा पत्र (ब)
२५ यो हरेति वसुन्धरा षष्टिं वर्षसहस्राणि घोरं तमपि वर्तते । मारगो
२६ हेररोन्दु नोहं पत्यद्वार देवरा पतु गोहोन्नु वोहं कोण्डन्तु गजन्गदर्
२७ कष्णम्मन् कोडुगृर्नाडाल घोरं दत्वायुगरं मीमात्रायुगरमिवरं
तुप्पूरालअरसरा
२८ नुमनप्पडिसि पोय्ददु मुल टिल, काल, फिलिप्पुसूर् चेढियक्क
·
पाँचवाँ पत्र
२९ से ३२ तक पंक्तियाँ १३ से १६ तक के समान है ।
३३ पाणाटपुन्नाटाद्यनेकजननाधिपतिः पृथिवी परिपालयनि के हुगूर्विपये
३४ केल्लिपुस्रुर् नान ग्राम जिन्गलयाय चसदिकालु जानिकालु लालुं कोलि
३५ गनुक्रेरंकालु कर्तुलडापोल तट्टुवल्लुवेरेडं एलुक्लनिडं नागुतोम
३६ नेचान चन्द्रसेनाचार्यके उदपूर्व कोहरत नाही कोररुं
कारेअरकुं
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जनशिलालेख-सग्रह
[२५[इस ताम्रपत्रके प्रारम्भमें गग वशके राजाबोको वशावली इस प्रकार बतलायी है - कोगणिवर्मा माधव - विष्णुवर्मगोप- माधव - अविनोत कोगणिवृद्धराज - दुविनीत - मुष्कर कोगणिवृद्धराज- श्रीविक्रम पृषिवोकोगणिवृद्धराज - श्रीवल्लभ पृथिवीकोगणिवृद्धराज । श्रीवल्लभके बन्धु शिवकुमार अवनिमहेन्द्र पृथिवीकोगणिवृक्षराजके शामनकालमें यह लेख लिखा गया था। पल्लवेल अरगने राजाकी अनुमतिसे केल्लिपुसूर ग्रामका एक खेत, बगीचा और कुछ जमीन एक जिनमन्दिरको दान दो उसका इस लेखम निर्देश है। इसी ममय गजेनाड निवामी कण्णम्मन्न भी कुछ खेत इम मन्दिरको अर्पण किये। भागोटेगरने एक बगीचा तथा ओरकल्वायगर और सीम्पालवायगर्ने कुछ खेत दान दिये । राणाने भी कुछ खेत दान दिये थे। इम जिनमन्दिरके अधिष्ठाता चन्द्रमेनाचार्य थे।]
[ए० रि० म० १९२५ पृ० ९०]
ર:૨૯૭ कोनकोण्डल (अनन्तपुर, आन्ध्र)
७वीं सदी, कपट [ये तीन लेख मामिद्धलगट्ट नामक पहाडीपर पापाणोपर खुदे हैं। इनमे निम्नलिखित नाम उत्कीर्ण है -
सिंगनन्टिवन्दिसन् २ श्रीउरिगपमिण्डि
३ श्रीसूलाकोमरन् इनकी लिपि ७वी सदीकी है।]
[रि० सा० ए० १९४०.४१ क्र० ४५४-५५-५६ पृ० १२६ ]
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-३०]
रत्नगिरि माटिके लेख
२१
२८ रत्नगिरि ( कटक, उडीसा)
संस्कंग, ७वीं सदी [ इस लेखमे ७वीं सदीकी लिपिमें एक जिनालयका उल्लेख है । लेख खण्डित है।]
[रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र. ४४८ पृ० ६७ ]
२६ पेनिकेलपाड (कडप्पा, आन्त्र )
संस्कृत-तेलुगु, ७वीं सदो [ इस लेखमें वृषभ नामक जैन आचार्यको प्रशंसा की गयी है। उन्हें भन्यरूपी फसलके लिए मेघके समान तथा वाद-विवादमें पर्वतके समान दृढ कहा है। इस स्थानको अव सन्यासिगुण्ड कहा जाता है। लिपि ७वीं सदीकी है।
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ४.१ पृ० १२० ]
३० कोंगरपुलियंगुलम् ( मद्रास)
____ बलुत्तुलिपि, ७वी सदी (एक नमूर्तिके नोचे -) श्रीगज्जणन्दि
[यहाँसे ३८वें लेख तक ९ लेखोका समय लिपिके आधारपर कहा है।]
[रि० सा० ए० १९१० पृ० ५७ क्र० ५४ ]
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२२
जनशिलालंग-पग्रह
मुत्तुप्पट्टि (मद्राग)
वलत्तुलिपि, यी मही [(जैनमूर्तिक नीचे - ) यह मृति वैग्नुनादा कुण्डि अट्टउपवागि भटारके गिन्य गुणमेनदवी मिप्य मानकरीपरियटिग-द्वारा बनायी गयी यो।]
[रि० मा० १० १९१० ० ५७ 7०६१]
मुत्तुप्पट्टि ( महास)
वटेलतुलिपि, बी मी [ यह मूति कुण्ठि अष्टोपवामिर शिष्य माघनन्दि-द्वारा बनवायी गयी थी।
[रि० मा० ए० १९१० पृ० ५७ ० ४२]
३३-३८ कोलकडि ( मद्राम)
बलुत्तुलिपि, ध्वी महा [ यहाँ जैन मूर्तियोके समीप निम्न नाम युदे है - कनकनन्दि भटारके शिष्य अभिनन्दन मटारके शिष्य अरिमण्डल भटारसे शिप्य अभिनन्दन मटार (२)। अज्जणन्दिकी माता गुणमतियार | गुणमेनदेवके शिष्य अनत्तवन् मामेनन्का भतीजा आच्चन् यीपालन् । गुणमेनदेव पिण्य कण्डन् पोपट्टन् । वेणुनाडुके तिर कुरण्टिके सेवक कनकनन्दि । गुणमेनदेवके गिण्य अरयगाविदि, पल्लिक प्रमुग्न । ]
[रि० सा० ए० १९१० पृ० ५७ ० ६३-६९]
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नलजनम्पादुका लेख
नलजनम्पाड (आन्ध्र ) तेलुगु, ७वीं-८वीं सदी
अगला भाग १ स्वस्ति म
२ गवहित (प)३ ग्ममहारकस्य पा
४ दानुध्यात परममा५ हेश्वर पर(मे) श्वर प- ६ स्लवादित्य श्रीवादि७ राजुल अन्दु पल्ले- ८ यरि कोडुकु वादि (रा)९ जेन्वानरु राजमा (न)- १०७ मून्रु वुटु माल११ पट्ट क्षेत्रंत्रु प(रि)- १२ सि पल्लेयारि (डा)१३ यनंबुनाकुइच्चे १४ दीनि रक्षिचिनवानि (कि)
पिछला भाग
१५ अडुगडु
१६ गश्वमेधंबुना १० पलंवगु
१८ दीनि लच्चिन१९ वानिकि एकलु
२० श्रीपर्वतत्रु २१ लच्चिन पाप
२२ वगु वाच्चो२३ लाल कोडुकु
२४ पल्लवाचा२५ ज्य॑स्य लिकि
२६ तम् (1) [ इस लेखमें परमेश्वर पल्लबादित्य वादिराजुल नामक शासक द्वारा ३ पुट्टि जमीन किसी ग्राममुख्यको दिये जानेका उल्लेख है। वादिराजुलको अर्हतभट्टारक तथा महेश्वर दोनोका भक्त कहा गया है। लेखको लिग ७वी-८वी सदीकी है।
[ए० ई० २७ पृ० २०३,
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जैनशिलालेख-सग्रह
४०-४३ सातानिकोट (कुर्नूल, भान्ध्र)
झाड, वीं-८वीं सवो [यहां एक खेतमें पापाणोपर निम्न नाम खुदे है, श्री कोपा (शि) को निसिधि २ संसारमीत ३ श्रीविमलचन्द्रन्
१ गणिगे महामति इनकी लिपि ७वीं-८वी सदीको है।]
[रि० सा० ए० १९३७-३८ क्र० ३३०, ३३२,
३३७, ३३९४० ४१-४२]
५४ माचेल (कृष्णा, आन्ध्र)
तेलुगु, ८वीं मढी, पूर्वाध [यह लेख पूर्वोय चालुक्य राजा सफललोकाश्रय जयसिंहवल्लभ (द्वितीय) के राज्यवर्ष ८ में लिखा गया था। दयावसन्त पृथिवीदेशरट्टगुडिके प्रपौत्र तया धन्यवसन्त पृषिौदेशरदृगुडिके पुत्र कल्याणवसन्तुल द्वारा बरहन्तमटारको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है। इस दानकी रक्षा कोठूरुके रदृगुडि वशके शासक करेंगे ऐमा लेखमें कहा है।
[रि० सा० ए० १९४१-४२ ० १८ पृ० १३१]
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शिग्गांव-मण्णिगेरिके लेख
शिग्गांव (धारवाड, मैसूर ) शक ६३० = सन् ७००
सस्कृत-नागरी [यह ताम्रपत्र चालुक्य राजा विजयादित्यके ११वे राज्यवर्ष शक ६३० में आषाढ पौर्णिमाके दिन दिया गया था। किसुवोललके राजस्कन्धावारसे राजाने पुरिगेरे नगरमे कुंकुमादेवी-द्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए गुड्डिगेरे ग्राम दान दिया ऐसा इसमें उल्लेख है। ]
[रि० इ० ए० १९४५-४६ ए० ० ४९]
४६ अण्णिगेरि स्तम्भलेख ( जि. धारवाड, मैसूर )
राज्यवर्ष ६ = सन् ०५१-५२, कार १ स्वस्ति कीर्तिवर्म(सत्या)श्रय २ श्रीपृथु(वीवल्लम) महाराजा ३ धिराज परमेश्वर भटारर ४ राज्य मोन्दुत्तरममिवृद्धि स५ ले आरनेया दर्य प्रव- ६ ईमानमागे ने• बुलगेरिंगे कलि- . यम्म गामुण्डगेब्दी ९ चेदियमानमाडिसिटोद् १० इदर मुन्दे कोण्डि११ शुलरकुप कीर्तिवर्म- १२ गोसासिय निरिसिता १३ कीर्तन । दीशापालस्य लि- १४ खित । प्रभुनामन् ।
[यह लेख वदामीके चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा द्वितीयके राज्यके छठे वर्षका अर्थात् सन् ७५१-५२ का है। इसमें जेबुलगेरिके प्रामाधिकारी कलिमय्य-द्वारा एक चेदिय अर्थात् जिनमन्दिर बनवाये जानेका निर्देश है।
[ए० इ० २१ पृ० २०४]
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जैनशिलालेख-सग्रह
[१७
कुडलूर ( मैसूर)
कन्नड, ८वीं सदी श्रीयम्म तोरेय तडिय मोण्टढोल तगम भागम देवगें कोहर् अय्यप्प राठणठ पक्कदतोण्टम कोण्डु वोरंय तडिय तम्म भागद तोण्टमं मूडणबसविगे कोहर रणपाकरसर आले काण्ड तोहर ॥
[इस लेखमे रणपाकरसके राज्यकालमै श्रीयम्म तथा अय्यप्प-द्वारा किसी नदीतीरपर स्थित पूर्वीयवसदिके लिए कुछ उद्यान आदिके दानका उल्लेख है। लिपि ८वी सदीको प्रतीत होती है। ]
[ए. रि० मै० १९०९ पृ० १४ ]
नरसिंहराजपुर ( मैसूर)
सस्कृत-कन्नड, ८वी-९वीं सदी [यह ताम्रपत्र गग राजा थीपुरुप-द्वारा दिया गया था। इस राजाके 'अनुकूलवर्ती' पसिण्डि गग कुलके नार्मा तया कदम्बकुलके तुलअडिने तगरे प्रदेशके तोल्लग्राममें स्थित चैत्यालयके लिए मालवल्लि ग्राम दान दिया था। इसी प्रकार कोशिक वशके मणलि मनेोडयोन्ने कुछ भूमि दान थी। इसी ताम्रपत्रके अन्तिम भागमे गग राजा शिवमारके राज्यमे मिन्दनाडु ८००० के शासक विट्टरम-बारा तोल्लरके चैत्यके लिए करिमानी ग्रामके दानका भी उल्लेख है। तदनन्तर इमी चैत्यके लिए राजा शिवमारके मामा विजयशक्ति अरस-द्वारा ६ खड्गभूमिके दानका उल्लेख है।]
[ए० रि० मै० १९२० पृ० २७]
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मुनुगाड गर्दिक लेख
७
मुनुगोट्ट (गृहर, आन्त्र )
तेलुगु वी मही [यह लेख पूर्वी चालुक्य राजा सबलोगयर विखनके राज्यवर्ग ३८ का है। इन उम्प म्हाम डलवर गोक्य्यन मुनुगांडक जिनालय लिए
छ भूमि दान दी श्री । यहीं एक अन्य लग्न गाक सेवक वागह-वारा इस निनाल डीपोवारसा उल्लेख है निमन्न निर्माग अन्गांति द्वारा मुनिनु ताम्म क्गि गया थ।
Eरि० ग० ए० १०२९-३० २०१७-१८१०]
तिलगोकर्णम् (मत्रान)
__ तमिल. ८वीं मी [यह लेख गगर नानक पहाडीपर एक जिनमृति पान है। पर राजा गोपिकोन्डान् सुन्दरपाडियदेव वें वर्गको एप रानहाना इजर्ने उल्लेत्र है। तदनुसार विगाड्दुक निदानिगाँस कहा गगा कि क्यानमल्लिने पनिलि चोलसन्माल्लि आल्बाचे पृजादि* लिए स्थानीय पल्लि (जिनमन्दिर के कन्स्य गंधाग अपित दन्ननांगे मुन्त बिना गया ।]
[इ० पु० ० ०३० पृ० ८.]
५१-५३ ब्रिटिश न्यूजियम ( लन्दन )
बी-९वीं पढी. सन्कृत-नागर्ग । अनन्तवीर्य • मुतांचना ३ वृति [ये नाम तीन मूतिर पनीठातर खुटे है। ये मुनिगं यन त्या
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२८
नैनशिलालेख-संग्रह
[५४
यक्षिणियोकी है और इनके शिरोभागमें जिनमूर्तियां खुदी हैं। अक्षरोकी लिपि तथा मूर्तिशिल्प ८वी-९वीं सदीके हैं।
[ Medicval Indian Sculpture in the
British Museum P 41-42]
बदनगुप्पे ( मैसूर)
सस्कृत-कसद, शक ३०-मन् ८०८ [ इस ताम्रपत्रके पांच पत्रोमें-से पहले तीन पत्र द्वितीय भागके लेख क्र० १२३ के समान है जिनमें राष्ट्रकूट राजाओका वशवर्णन गोविन्दराज३ तक किया गया है।
चतुर्थ पन : पहली और ५. धारावर्षश्रीवस्तममहाराजाधिराजस्य पुत्र. शौचाचारप्रमुगुण
गणप्रण११ मितसमस्तलोक परोपकारकरुणापरः परमेश्वरचरणारविन्दवन्द| নালিলল - ५३ णावलोकनीकम्मराज. पुषार एडेनाविपये चदनोगुप्पे नाम
ग्राम तलव५४ ननगर अधिषलति विजयस्कन्धावारे । निशदुत्तरेवतीतेपु शक
वपु कार्तिक५५ मास-पौर्णमास्यां रोहिणोनक्षत्रे सोमवारे कोण्डकुन्डेयान्वय
सिमलगे५६ गूहगण कुमारणन्दिमारकस्य शिष्य एडवाचार्यगुरुः तस्य
शिप्यो वधमा५७ नगुरु (0) सर्वप्राणिहितः साक्षात् सिद्धान्तानुगमोदता (1)
शान्त सर्वकल्पोय नयोग
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२९
-५४]
बटनगुप्पे वानपत्र ५० तगुणीनत. (1) तम्मै तं प्रामं महात् स्वपुत्रश्रीशंकरगण्ण
विज्ञापनन श्रीकमदेव श्रीविनय५९ बमतये तलबननगर प्रतिष्ठिनाय । तस्य मीमान्तराणि वडगण
दिपोनचतुर्य पत्र : दूसरी और ६. लि बदमण पहुवण कोनेदु पोमचिगल्लु पडवणसीमे कम्ब
गैरय पर्व१. ग पद्धवण तकण कोनदु पौगुल्बल्निय तेझोल्वे तकण सीमे
बेलस्काल तशा६२ चे कण मूरण कानड्डु मुद्रुवन्नि कोरलु मूढणसोमे कल्लि
बेटिन मूढण पारे६३ ये मूर वेटु मोछगु मूहण बडगण कान्नंहु बदनिठिय वगण
भोलचे ६४ अस्य दानस्य साक्षिण षण्णवतिमहनविषय प्रकृतय. १५ योस्यापहर्ता लोमान्मोहात् प्रमान च स पचमिमहमि.
पातक (1) संयुक्तां ६६ मबति यो रक्षनि स पुण्यमाग भवति अपि चान मनुगीता ()
श्लोका (6) स्वदना परदत्ता ७ वा यो हरंत वसुन्धरा (1) पष्टिं वर्षमहन्वाणि विष्टानां नायवे
क्रिमि. (a) स्व दानु ६८ सुमहच्छक्यं दुखं अन्यस्य पालन (6) दान वा पालनं वेत
दानाच्छे योनुपापाँचवा पत्र : पहली ओर ६९ लनं (1) बहुर्मिवसुधा मुक्ता राजमिस्सगरादिमि. (0) यस्य
यस्य यदा भूमि (6) तस्य
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- ५७ ]
सूरन ताम्रपत्र
६ चं रिपूणां विगलन्यकाण्डे ॥ ( ५ ) तस्यात्मजो जगति विश्रुतदोहारिहरिविक्रमधानधारी । भू
31
७ त्रिविष्टानृपानुकृति कृतज्ञ. श्रीक्कंगज इनि गोत्रमणिबंभूर ॥ (1) स्त्र प्रभिन्नकरटाच्युनडान
८ न्तिदन्तमहारचिरोल्लिग्निनांमपीठ | श्रमाप क्षितौ अपिनशत्रुरभूतसृज महाष्ट्रस्नाद्विरिवेन्द्रराजः ॥ ( ७ ) तम्योपा९ जिनमहमस्तनयनुविलयमालिन्या भांता भुवातक्रनुमदृश श्रीडन्निनुगंगजोभून ॥ ( 4 ) काशीकर
१० लनराधिपचोलगण्डव श्रीमाय वटविभेदवि वानद । क्णांक वलमचिन्यमजेयमन्यस्य क्यिद्भिर
११ पि महमा जिगाय ॥ ( ९ )
चिनगमगृहीत निशातान्त्रमश्रान्तमप्रतिहनाजमपंतयत्न । यो वल्लम मपनि दण्ड१२ बलेन जित्वा राजाधिराजपरमेश्वरनामचाप ॥ (१०) आमंतीविपुलोपलावल्लिमल्ल लोर्मिमाला जलादाप्रालेयक
१३ लंकिनामलगिन्गजाला सुपाराचलाढा
प्रान्नप्रसिद्धावनंद जगती स्वविक्रमवलेने का
पूर्वापरवारिराशिपुलिन
१४ नपत्रीकृता ॥ ( ११ ) तस्मिन् वित्र प्रयाने बल्लभराजे क्षतप्रजाबाध । श्रीराजसूनुमहोपति कृष्णराजीन ॥ ( १२ ) यस्य
स्वभुजप
१७ राक्रननिश्शेनीग्यादिनारिदिक्चक्र |
श्रीकृष्णराजम्य ||
किरणं । श्रीमपि ननां निसिल
१६ प्रावृट्कालायने स्पष्ट ॥ ( १४ ) दीनानाथप्रणयिषु यथेष्टचेष्टं ममोहितमजस्त्र । तत्क्षणमकालवर्षे वर्पति सर्वायिनि (प) ण ।। (१५) राहप्पमा
कृष्णन्येवा(कृष्ण) चरितं
(१३) शुमनुगनुगतुरगप्रवृढरं वरदरवि
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जैन शिलालेख -मग्रह
[44
१७ समभुजजातबलावलेपमाजा
विजित्य निशितामिल ताप्रहारे ।
पालिनजावलिशुभामचिरेण यो हि राजाधिराजपरमेश्वरमा १८ तान ॥ (३६) क्रोधादुनातयद्ग प्रसून मियर्माममान समन्तादानादुद्द्द्वृत्तवैरिप्रकटगजघटाटोप मक्षोमदक्ष | सायं
૨
त्यक्त्वारि
दूसरा पत्र पहला भाग
१९ वर्गो मयचकितवपु क्वापि ष्ष्व सद्यो दध्माता रिचक्रक्षयकरमगमद्यरय दोर्दण्डरूप ।। ( १७ ) पाता यश्चतुरबुरा शिरमनाऊकारभाजा भु
२० वय्याश्चापि कृतद्विजामरगुरुमाज्याज्यपूजा दरो । दाता मानभृङ प्रणीर्गुणवता यांसी श्रियो वल्लमी भोक्तु स्वर्गफलानि भूरितपमा २१ स्थान जगामामरं ॥ (१८) येन रातपत्रप्रहतर विकरबाततापात्पलील जग्म नासीरमूली बवलितवपुषा वल्लभाम्यहमदाजी | श्रीमद्गोविन्दराजी जि.
२२ तजगदहितस्त्रेण वैधव्यहेतुस्तस्यासीत् सूनुरेक लितागति (म) त्तेमकुम्म. ॥ (१९) तस्यानुज श्रीधुनराजनामा महानुभाव प्रथितप्रताप |
२३ प्रसाधिताशेपनरन्द्रच(क्र.) क्रमेण बालार्कवपुर्वभूव ॥ ( २० ) जाते यत्र च राष्ट्रकूटतिलकं ममृतचूडामणी गुव तुष्टिरथाग्निलस्य जगत सुम्वामिनि प्रत्यह । ( सत्य ) सत्यमिति प्रमा२४ सति व्यति क्षामाममुद्रान्तिकामामद् धर्मपर गुणामृननिधी सत्यवताधिष्टिते । (२१) शशधर किरणनिकरनिम यस्य यश. सुरनगाग्रसानुस्यै । परिंगी
२५ यतेनुरक्तविद्याधरसुन्दरीनिव ॥ ( २० ) दृष्टावह योयिजनाय नित्य सर्वस्यमानन्दितबन्धुवर्ग प्रादात् प्रस्टो हरति स्मवेगात् प्राणान् यमस्यापि नितान्त
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-५५ ]
सूरत ताम्रपत्र २६ वीर्यः॥ (२३) रक्षता येन निश्शेष चतुरम्मोधिमंयुत । राज्य - धर्मेण लोकानां कृता हृष्टि परा हृदि ॥ (२४) योसौ प्रसाधित
(ममुन्नत) सारदुर्गो गांगौघसन्ततिनिरोध२७ विवृद्धांति । आत्मीकृतोन्नतवृषाकविमतिरुच्चैद्यक ततान
परमेश्वरतामिहक ॥ (२५) तस्यात्मनो जगति सत्प्रथितोह
कीर्तिगोविन्दराज इ२० ति गोत्रललाममन त्यागी पराक्रमधनः प्रकटप्रताप सन्तापि
ताहितजनो जनवल्लमोमूत् ।। (२६) पृथ्वीवल्लम इति च
प्रथितं यस्या२९ परं ज(ग)ति नाम । यश्चतुरुदधिसीमामको वसुधां वो चक्रे ।।
(७) एकोप्यनेकरूपो यो दरो भेटवादिभिरिवात्मा। परवल
जलधिमपारं ३० तरन् स्वदोभ्या रणे रिपुमि ॥ (२८) एको निहेतिरहं गृहीतशस्त्रा
मे परे बहवो। यो नैवंविधमकरोश्चित्त स्वप्नेपि किमुताजी।।
(२९) राज्यामिपेकलशेरमि३. पिच्य दत्ता राजाधिराजपरमेश्वरतां स्वपित्रा । अन्यैर्महानुपति
मिबहुमिस्समत्य स्तम्मादिमिर्मुजवलाढवलुप्यमानां ।। (३०)
एकोनेकनगेन्द्रवृन्द्रसहिता३२ न्यस्तान् समस्तानपि प्रोल्खा(ता)सिलतामहारविधुरा वध्वा
महामयुगे। लक्ष्मी(म)प्यचला चकार विलसतसञ्चामरग्राहिणी
संसीदद्गुरविप्रसज्जनसुहृद्व३३ धूपमोग्यां भुवि । (३१) तत्पुत्रोत्र गते नाक्रमाकम्पितरिपुप्रजे ।
श्रीमहाराजपख्यि ख्यानो राजाभवद् गुणे ॥ (३२) अर्थिषु
यथार्थतां यस्सममिष्टफलाप्तिलब्धतो३४ पेपु । वृद्धिन्निनाय परमाममोघवर्षामिधानस्य ॥ (३३) राजा
३
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জলবিলাকৰ নমা
[५५मन तनपितृव्यो रिपुमरिमन्यमानकांमुलं मीबानिन्द्रगजी
गुणिजननिकरान्तश्चमाका3. रकारी । रागानन्यान युदम्य प्रकाटनधिगया य नृप मंत्रमाना
राजधीग्य चक्र म(कलरिजनोद्गानगम्यस्त्रमा ॥ (31) निर्वाणावासिवानास्तिहिनजनी३६ पास्यमाना मुवृत्त वृत्त जिम्यान्यरा परिणमुन्यवान मांगी हिमस्य । एकाकी सरिम्बालननिमहानिराज्यनगर
लाटीय गण्डल ३७ थम्नपन ह निजस्वामिदन ररक्ष ॥ (३०) यस्थागमाग्रजमिनः प्रियमाहमस्य मापालचपफलमत्र यम(7) मैन्यं । मुरत्या च
सर्वमुग्नेश्वरमाहिददुसरा पत्र दमग माग ३८ व नावन्दनान्यममरजपि यो मनम्बी ॥ (१६) श्रीकर्कराज इनि
रक्षितराज्यमारस्मार. कुलस्य ननया नशानिशीयः । तम्या३९ भवद् विम(ब)नन्दितबन्युमार्थ. पार्थ मदेव धनुपि प्रथम
श्शुचीना ॥ (३७) दानन मानन महालया या शायण वीर्येण ध
कोपि भए । एनेन माम्याम्नि १० न ति कीनिम्सनुका भाग्यति गाय ॥ (३०)म्बरला. गृहीनविपया(
नमधमाज प्रोवृत्तरसरमौलिकतराष्ट्रकटान । उत्सातम्यदगनिज - ११ बाहुबलेन जित्वा प्रोमांचवर्षमचिरान स्वप अपत्त ॥ (३०)
तेनेहमनिलविद्युचचलमारीस्य जीवितममार I fसनिदानपरम
पुण्य. प्रतिनीध४२ मंढायोयम् ॥ (१०) स च ममधिगताशेपमहाशव्दमहामामन्ता
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३५
सुग्न तानपत्र धिरनि नुवर्णत्रयी(क)राजदेव. जुगली मानव अयासंबध
मानान् गष्ट्रपति - ४३ विपनग्रामपन्त्रिानयुक्त नियुक्नबामावाधिनरिक्महनगहि
कान् ममनुगंयन्यन्नु वविदिन यया नया भावविकान्ट - ४४ न्यावाग्निविजयस्कन्यावान्यिनेन गनास्त्रिीगन्मन्हिका
दुन्निकपुण्ययामिवृद्धय श्रीनागमाग्किास्वनलमविष्टाईचा
र(या)चतननि बद्ध)४७ सन्वारान्यमण्डिनवमनिकाया. वण्डसुटिननवकमंचस्वलिदान
पूजायं नया नयानिध्यमानचानुष्टयनूलमंबोल्यान्वयन - १६ मनसंवनस्वादिगुरोन्शिप्यधीनुमतिपूज्यपादः नच्छिष्य-श्रीमद
पराजितगुरी श्रीनागमारिकाप्रनिबद वारायानस्य
उत्तरविशि १७ हिरण्ययोगामिधानं ढापुवापी अत्याचाटनानि पूर्वनः श्रीधर
चापिका दक्षिणतो बहः भगत प्रावी महानदी उचरन
स्मन्बपुर२८ वापिका । एवमित्रं चनुराबाटापसिना मधान्यहिरण्याचा
भचाटनप्रवेश्यस्मराजकीयानामहन्तप्रजेपगीय पात्र - १९ न्द्राकांवनितिमरित्रपर्वतममकालीन. शिष्यप्रशिध्यान्वयनमाप
भोग्नः शकनृपकालानीनसंबमरमतेनु महानु त्रिवचाग्शिन५. विष्वनीतयु वैशाखमार्गनास्यां स्लावोहानिसर्गेण प्रतिपादि
तोस्थोचिनया साचास्थिन्या मुंजतो नोजयन. कर्षन क्षयत
प्रतिदि५. शतो बा न केनचिन् परिपन्थिना रणीया ॥ व्यागानिन्नतिमिरस्मबंध्यैरन्या मानान्यं भूमिदानफट मवेय विद्युलालान्यनिन्यान्यैत्र
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जैनशिलालेख-सग्रह
[५५५२ र्याणि तृणामलग्नचचलविन्दुचचल च जीवितमाकलय्य स्वदाय
निर्विशेषोयमनुमन्तव्यः परिपालयितव्यश्च । यश्चाज्ञानतिमिर
पटलावृत५३ मविराच्छिन्द्यादाच्छिधमानक वानुमोदेत स प(च)मिमहापात
कैरुपपातकैच सयुक्तस्स्यादित्युक्त च भग(व)ता वेदव्यासेन
न्यासेन ॥ ५४-५८ [ निस्यके शापात्मक श्लोक - षष्टिं वर्षसहस्राणि आदि ] ५९ यथा चैतठेव तथा शासनदाता लिपिज्ञस्स्वहस्तेन स्वमतमारोप
यति ।। स्वहस्तोय मम श्रीकर्कराजस्य श्रीमढि - ६० न्द्रराजसुतस्य ॥ लिखित चैतन्मया महासन्धिविग्रहाधिपतिना
नारायणेन कुलपुत्रकश्रीदुर्गमसुनुना ॥ जीयादुरितविद्वेषि
शासन जि६१ नशासन । यदन्यमतशैलानां भेदने कुलिशायते ॥ (४९)
जयति निनोको धर्मप्पडजीवनिकायबसलो नित्य । चूडामणि
रिव लो(क) ६२ विमाति यत्सर्वधर्माणाम् ।। (५०)
[ यह ताम्रपत्र शक ७४३ मे वैशाख पूर्णिमाको दिया गया था। इममें पहले राष्ट्रकूट सम्राटोकी वशावली अमोघवर्ष (प्रथम) तक दी गयी है । तदनन्तर अमोघवर्पके पितृव्य(चाचा)इन्द्रराजके पुत्र कर्कराज सुवर्णवर्षका उल्लेख है जो गुजरातमे शामन कर रहा था। अमोघवर्षके राज्यारोहणके बाद कई मामन्तोने विद्रोह किया था उनपर विजय प्राप्त करनेमे कर्कराजकी ही मदद उपयोगी सिद्ध हुई थी। कर्कराजने उक्त वर्ष में मूलमघसेनमधके मल्लवादिगुरुके शिष्य सुमतिपूज्यपादके शिष्य अपराजितगुरुको नागसारिकाके जिनमन्दिरके लिए हिरण्ययोगा नामक खेत दान दिया था।]
[ए इ २१ पृ १३३]
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-५८]
राणिवेण्णूर थादिके लेख
३७
राणिवेण्णूर ( धारवाड, मैमूर)
शक ७८१-सन ८६०, कन्नड [यह लेख राष्ट्रकूट मबाट अमोघवर्ष (प्रथम ) के समयका है। नागुल पोल्लब्बे द्वारा स्थापित नागुलवदिके लिए गक ७८१ मे कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें निर्देश है । यह दान निहवूरगणके नागनन्द्याचार्यको दिया गया था।]
[रि० मा० म० १९३०-३४ पृ० २०९ ]
चंटूर (मैसूर)
शक ७८५= सन् ८६४, कन्नड [ यह लेख राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष १ के ममग शक ७८५, तारण मंवत्सरमें लिखा गया था। चिकण्ण नामक अधिकारीको कुछ भूमि दिये जानेका इममें उल्लेख है। व्रतोका पालन और सन्यसन इनका भी उल्लेख हुमा है । मत यह समाधिमरणका स्मारक प्रतीत होता है। ] (मूल कन्नडमें मुद्रित )
[सा० ४० इ० ११ पृ० ६ ]
ऐवरमलै ( मदुरा, मद्रास)
शक ७९२=सन् ८७०, तमिल शकर याण्डएल-नूरुत्तोण्णूरिरेण्ड २ पोन्दणवरगुण' याण्ड एड गुणवीरक्कु३ रवडिगल माणाक्क(र)कालत्त शान्तिवीरक४ कुरवर तिरुवयिर पोरिच (पाश्व)प(मोटाररैयुमिय५ कि अब्बैगलयु पुडुक्कि इरण्डुक्कुमुद्
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जनशिलालेस-सग्रह ___६ टाववियुमोरदिगलुक्कु शोराग अमैत्त पो
७ ण् ऐन्नरन्तु काणम् ॥
[यह लेख पाण्डय राजा वरगुण २के राज्यवर्ष ८,गक ७९२का है। इस समय गुणवीरके शिष्य शान्तिवीरने तिस्त्रयिर स्थित पार्वनाथ मूर्ति तया यक्षीमूर्तिका जीर्णोद्धार किया था। इसके लिए उन्हें ५०२ काणम् (सुवर्णमुद्रा)दान मिला था।]
[ए० इ० ३२ पृ० ३३७ ]
धर्मपुरी (सालेम, मद्राम)
शक ८०० -सन् ८७८, कन्नड किलेम मारियम्मन देवालयक भागे पटे हुए स्तम्भपर [इस लेखमें पल्लव महेन्द्र नोलम्ब-द्वारा किसी जैन मन्दिरके लिए दान दिये जानेका निर्देश है। इस लेखका समय शक ८००, विलम्बि सवत्सर था।]
[इ. म० सालेम ८१] ६० कोप्पल ( रायचूर, मैमूर)
कन्नड, राक ८.१= सन् ८९० [ इस लेखकी तिथि कार्तिक पूर्णिमा, शक ८११, शोभन सवत्सर ऐसी है। इस समय दण्डनायक अम्मरसने कुपण तीर्थकी यात्रा की तथा महासामन्त कदम्बवशीय अलियमरस-द्वारा निर्मित वसदिके लिए कुछ दान दिया था।
[रि० इ० १० १९५४-५५ ऋ० १५९ पृ० ४१]
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-६३]
धर्मपुरी आदिके लेख
धर्मपुरी ( सालेम, मद्रास)
शक ८१८ = सन् ८९३, कन्नड
मल्लिकार्जुन मन्दिरके आगे एक स्तम्भपर [राजा महेन्द्राषिराज नोलम्बके समय गक ८१५ मे यह लेख लिखा गया। इसमे निवियण्ण और चण्डियण्ण-द्वारा मूलसंघ, सेनान्वय, पोगरियगणके आचार्य विनयसेन सिद्धान्तभटारके शिष्य कनकसेन सिद्धान्तभटारको मूलपल्लि ग्राम दान देनेका उल्लेख है।]
[इ० म० सालेम ७४ ]
सित्तनवासल ( पुदुकोट्ट, मद्रास)
९वी सी, तमिल [ यह लेख पाण्ड्य राजा अवनिपोखर श्रीवल्लभके समयका है। इलंगौतमन् ( इसीका नाम मदिर आगिरियन् भी था ) द्वारा अन्तर्मण्डपका जीर्णोद्धार तथा बाह्य मण्डपका निर्माण किये जानेका इसमे उल्लेख है । इस मन्दिरको अरिवन् कोयिल् ( मर्हनमन्दिर ) कहा गया है । इस गुहामन्दिरके बाहरी भागपर कई यात्रियोके नाम खुदे हैं जिनकी लिपि ७वी सदीकी है।] [रि० आ० स० १९२९-३० पु. १६७-१६९ रि० सा० ए.
१९४०-४१ ० २१५ पृ० ९९]
हेन्बलगुप्पे (मैमूर)
९वीं सदी, कन्नड १ स्वस्तिश्रीनरसीगेरे अप्पोर् दुग्गमार २ कोयिल्वमटिगे मरगण्डगब्वेदे मण कोहर
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जैनशिलालेख-सग्रह
[१३
३ भरमण्टमेगालमगोकेमोगेयु ओहिपा४ डियुं गोरियन्टम्मगलरुगण्डग वेढलेल मणकोहर • इटानलितु केडिसिटोनोवाल कदुग पंचम६ हापातकनस्कवन मक्कलु माग७ बसहियान्कंयदोन नारायण पं. ८ रुन्तचन्
[यह लेख ९वी सदीकी लिपिम है। नरसींगेरै अप्पोर दुग्गमार (जो । गगवशका राजपुत्र था) द्वारा एक निनमन्दिर (कोपिलवमदि) को ६ खण्डग भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। इतनी ही भूमि अरमण्डमेगल, अगोकेमागे, मोड्डिपाडि इन ग्रामोके निवामियो-द्वारा तथा गोविन्दम्म-द्वारा दान दी गयी थी। श्रेष्ठ शिल्पकार नारायणने इस वमदिका निर्माणकार्य किया था।
[ए.रि० मै० १९३२ पृ० २४० ]
मोटे चेन्नर (पारवाड, मैसूर)
९वी सदी, कसर [यह लेख ९ वी सदीकी लिपिमें है। इसमें किसी वसदिके लिए चन्द्रनन्दि भट्टारको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । इस लेखकी स्थापना इन्दर पिट्टम्मके मेनबोव कुण्डमय्य-द्वारा की गयी थी।]
[रि० सा० ए० १९३३-३४ प्रा० ई १११ पृ० १२९ ]
कलकत्ता (नाहर म्युजियम)
९वीं मनी, काट १ श्री जिनबल्लमन सज्जन २ भागियधेय मादिसिट ३ प्रतिमे
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-६९] तिरुनिईकोण्डके लेस
११ यह लेख पीतलकी चोवीमतीर्थकरमूर्तिके पादपीठपर है। लिपि ९वीं सदीकी है। यह मूर्ति जिनवल्लभको स्वजन (पत्नी ) भागियवेद्वारा स्थापित की गयी थी। लिपिसे स्पष्ट होता है कि यह मूर्ति कर्नाटकमें निर्मित हुई थी।
[ए० रि० मै० १९४१ पृ० २५० ]
६६-६७ तिरुनिकोण्डै (मद्राम)
९वीं सदी, तमिल [इस लेखमें कहा है कि तिल्नरगोण्डके किलप्पल्लि (जैन मन्दिर) का चतुर्मुगतिरक्कोयिल् (चतुर्नुख वसति) तथा पूर्वका ममामण्डप चलक्कूडि निवामी विगयनल्लूलान् कुमरन् देवन्ने वनवाया था। लेखकी लिपि ९वीं मदीकी है। यहींके अन्य दो भागोमें इसी समयकी लिपिमें वाणकोवरैयर तथा आरुलगपेरुमानका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०६-७ पृ० ६६]
तिरुनिडंकोण्डै (मद्रास)
९वों सदी, तमिल [ इस लेखमें नारियप्पाडि निवासी शिंगणार परियवड्डगणार-द्वारा दो जैन पल्लियो ( मन्दिरो ) के लिए १० पोण ( मुद्राएँ ) दान दिये जानेका निर्देश है। यहीके एक अन्य लेखमे नारियप्पाडि निवासी पेरियनकनाके पुत्र ( नाम लुप्त ) द्वारा भी कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है लिपि ९वी मदीकी है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०८-९ पृ० ६० ]
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४२
जैन शिलालेख - सग्रह
७०
कीरप्पाक्कम् ( चिंगलपेट, मद्रास ) ९ वी सदी, तमिल
[ इस लेखमे कीरपाक्कमुके उत्तरमे देववल्लभ जिनालयका उल्लेख है । इसका निर्माण यापनीय मघ कुमिलिगणके महावीरगुरुके शिष्य अमरमुदलगुरु-द्वारा किया गया था । लिपि ९वी सदीकी है । ]
[रि० स० ए० १९३४-३५ क्र० २२ पृ० १० ]
बेगूर ( बगलोर, मैसूर ) ९वीं मदा, कट
[ इस निसिधिलेखमे मोन भट्टारके शिष्य न्दिभटारके समाधिमरणका उल्लेख है । लिपि ९वी सदीकी है। यह लेख नागेश्वर मन्दिरमे लगा है । ] [ ए०रि० मं० १९१५ पृ० ४६ ]
७२
बेलगाँव (मैसूर) ९वीं-१०वी सदी, कचढ
[00
[ यह लेख नेमिनाथमूर्ति के पादपीठपर है । इस मूर्तिको स्थापना 'राष्ट्रकूट वशरूपी समुद्रके लिए चन्द्रके समान' मणिचन्द्रके गुरु नेमिनाथ ( नेमिचन्द्र ? ) द्वारा की गयी थी। ]
[रि० अ० स० १९२८-२९ पृ० १२५ ]
७३ अलगरमले ( मदुरा, मद्रास )
वहेतु किपि - ९वी - १०वी सदी
[ यह लेख एक जिनमूर्तिके समीप सुदा है ] (मूल ) १ श्री यच्चण
२ टि शेय
G
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४६
जैन शिलालेख -मग्रह
[ 42
२
नासकरीला (१) शोभित | मुझे (प) को सृद्धि रूढां महीभृता ||३ अभिविद् रचि काना मावित्री चतुरानन । हरिधर्मा मूवान भूविभुर्भुवनाधिक ॥ ( ४ ) सकललोक विलोकन पकजम्फुरयुवालदिवाकरः । रिपुन धूवढन नसुति
३. समुद्रपातिविदग्धनृप (स्तत ) | ( ) नाचार्य श्री रविश्व (नर्वा)सुदेवाभिधानंबंध नाता दिनकरकरेनीरजन्माकरी व । पूर्व जैनं निजमिव यशो (कार - ) स्लिटया रम्य हम्यं गुरुहिमगिरं श्रगटगारहारि ॥ दानन तुलितबलिना मुकाविदानस्य येन देवाय । माग ( द्वय) व्यतीयन भागश्चा
४ (चार्यत्र) र्याय ॥ ( ७ ) तस्मादभू (सुट) लम्वी ममटाग्थ्यो, महीपतिः । समुद्रविजयो श्लाघ्यतरवारि महर्मिक ||८ तस्माटपम. ममar (ममस्त ) जनजनितलोचनानदः । ध (व) को वसुधाम्यापी चद्रादिव चटिकानिकर ॥ ( ९ ) भक्तवाघाट घटामि प्रस्टमित्र स मंडपाटे मटाना जन्यं राजन्य
५ जन्यं जनयति जनताज रण सुजराजे । (श्री) माणे (प्र) णटे हरिण इव मिया गुजरे विनष्टे तस्मैन्याना शरण्यो हरिरिव रणे यः सुराणा बभूव ।। (१०) श्रीमद् दुर्लभराजभुभुति भुजमुंजत्यमगा भुव दद्वैमंण्डनशी चढसुमनस्यामिभूत विभु । यो दैन्यरिव तारक -
-
६ प्रभृतिभि. श्रीमान् महेन्द्र पुरा मेनानीरिव नीतिपोरुपपरीनपीत् परा निर्वृति | ( ११ ) य मृकादुदमुख्यद् गुरुवल श्रीमुकराजी नृपो ढपांधी धरणीवराहनृपतिं यद्वद् द्विपः पाप । धात्रात मुत्रि कांदिशीकममिको यस्त शरण्यो दधी दृष्ट्रायामिव रूद्रमृढमहिमा कोको महमदल ॥१२
" इत्थ पृथ्वीभर्तृमिर्नाथमान सा सुस्थितैरास्थितो यः । पाथांना यो वा विपक्षात् स्वप (क्ष) रक्षाकांक्षे रक्षणे ढकक्षः ।। (१३) दिवा
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विजापुरका लग्न करन्यत्र की कोर कलिना नपक्दयस्य । अमिश्रियतापहतोरनाप यमुनत पाठपरजनावाः ॥(३४) धनुर्धरनिरोमणेरमलधर्ममभ्ययना जगा - म जलधेर्गुणो (गुनानग्य पार पर । ममीयुरपि नमुना मुमुग्य नागंणाना गणा मना चग्गिना मस्तनंब लोकोत्तर (१५) यायानुयन्य वियदाणं विधिपान बलगत्तुरगन्बुरग्माननीरजामि। तंजामिर्जितमनेन विनिर्जिनन्गद् भावान् पिलजित इकातिनरा निगभूत 16 ९ न कामना मनो धीमान र स्ना दधा। अनन्यौदार्यमत्कार्य
मारयुर्योधनापि य (१७) यन्नंजामिरहम्कर मणया गादीदनि शुदया मीमो बचनयचितन वचमा थमण चर्मान्मज ।
प्राणेन प्रलयानि चलमिढी मत्रेण मनी परी रूपंण प्रमाप्रियेण १० महनी दानेन क()भवन ।।(10) सुनयतनय गज्य चारममाट
मनिटिपन परिणतयया नि मगो या बभूव सुबी स्वय कृतयुगकृतं कृन्या जुन्य कुनामचमत्कृतीरकृन सुकृती नो कालुप्य क्रोनि कलिः मता ॥(१९) कालं कलावपि क्लिामलमंतीय
रोका विकोक्य करनानिगन गुणी - १६ च । (पार्था)दिपाधिव(गुणा)न गणयनु सन्यानक मवाद् गुण
निधि यमितीच वेपाः॥.. गोचरगति न वाचो नाभि चन्द्रचंद्रिकारविर । वाचल्यनबंचम्पी को बान्यो वर्णयत पूर्ण ॥(-1) राजधानी भुवी मस्तस्यान्ने हम्निकुण्टिका । अलका धनठम्यव
धनान्यजनमविना ॥ (00) नीहारहारहरहाम(हि)१२ (मा) शुहारि (आ) का(र) वारि (भु)वि राजबिनि राणा ।
वास्तव्यमव्यजनचित्तसम (म)मनान् मतानिपटपहारपर परंपा ।। (२३) यौनकलातस्लशामिरामरामाम्तना इब न यम्या ।
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४८
जनशिलालेख-सग्रह
[१ सस्यपरंप्यपहारा सदा सदाचारजनताया । (२४) समढमदना
लीलालापा प१३ नाकुला कुबलयडया मदृश्यते शम्तरला पर । मलिनितमुग्या
यत्रोवृताः पर कठिना कुचा निविटरचना नी() बंधा पर कुटिला कचा ॥ (२५) गादीतु गानि मा शुचिकुचकलश कामिनीना मनोजविस्तीर्णानि प्रकार मह धनजनतामटि
राणि । श्राजते भ्रशुश्राण्य१३ तिशयसुभग नेपाः पवित्र सत्र चित्राणि धात्रीजनहनहढय.
विभ्रमेयंत्र मन्त्र । (२६ ) मधुरा धनपणो हृद्यरूपा रमाधिका. 1 अत्रेावाटा लोकभ्यो नालिकत्वाद् मिलिमा ॥ (२७) अम्या सूरि सुराणा गुरुरिव गु(क)मिगौरवाों गुणीधे
भूपाना त्रिलोकोवलयविक१५ सितानतरानतीनि । नाम्ना श्रीशातिमढ़ोमवढमिमवितु मास
(या)वाममाना काम काम समा ) जनितजनमन समदा यस्य मतिः। (२८) मन्यमुना मुनाटेण (म)नाभू रूपनिर्जित । स्वप्नपि न स्वरूपंण समगस्तातिलज्जित ॥ (२९) प्रोद्यत्पश्या
करस्य प्रकटितविकटाशेपमाव१६ सा सूरः सूर्यम्यवामृताशु स्फुरितगुमरुचि वासुवाभिधस्य ।
अध्यासीन पदव्या यममलविलसज्ञानमालोक्य होको लोकालोकावलोक सकलमचलत् क्वल मभनीति ॥ (३०) धर्माभ्यासरतम्यास्य मगनी गुणराग्रह । अमग्नमाणेच्छम्य चित्रं निर्वाणवाछना । (३१) १७ कमपि मवंगुणानुगत जन विधिस्य बिठधाति न दुर्विध । इति
कलकनिराकृतये कृता यमकृतंव कृतासिलसद्गुण ॥ (३२) तदीयवचनानिज धनकलत्रपुत्रादिक विलोक्य सकल चल दल
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-6.]
विजापुरका लेख मिवानिलादो(लि)तं । गरिष्टगुणगोप्यत समुढीघर धीर वीरू
टारमनिसुदरं प्रयम१८ तीर्यकृन्मंदिरं ॥ (३३) (रक्तं ) वा रम्यगमाणां मणितारा
वराजितं । इद मुखमिवामाति भासमानवरालक ॥ (३४) चतुरन (पहल) नया(इ)निक गुमशुक्तिकरोटकयुक्तमिट बहुभाजनराजि जिनायतनं प्रविराजति भोजनघामसम ॥ (३५)
विदग्धनृपकारित जिनगृह१९ निजीणे पुन ममं कृनममुद्धताविह भवांबुधिरामिन । अति
छिपन सोप्यय प्रयमनीर्थनाथाकृति स्वकार्तिमिव मृर्ततामुपगतां मितांशुद्युति ॥ (३६) शांभ्याचार्य स्निपचाशे महस्ने शरटामिय मावशुक्लत्रयोदश्यां मुप्रति प्रतिष्ठिता । (३७) विदग्धनृपति. पुरा यदतुलं तुलाईहंदी सुदानमवढानधारिदमपीपलनाद्भुतं । यतो धवलभूपतिर्जिनपत स्वय सात्म (जो) रवट्टमय पिप्पलोपप (टकू) पर्क प्रादिशन् । (३०) यावच्छेयशिरस्थमेकरजतम्यूणास्थिताभ्युल्ल
मत्पातालानुलमडपामलतुलामालबते भूतल । तावत्ना.. स्वामिरामरमणी(ग)धबंधीरावनिर्धामन्यत्र घिनोनु धार्मिकधिय .
(म)दपवेलावि(धौ) ॥ (३९) सालकारा समधिकरसा साधुसंधानवधा श्लाघ्यश्लेषा ललितविलमत्तदिवास्यातनामा । मद्
वृक्षाच्या रुचिरविरतिधुर्यमाधुर्यवर्या सूर्याचार्यज्यरचिरमणीवा२२ नि(रम्या) प्रशस्ति. ॥ (१०) संवत् १०५३ माघशुक्ल १३
रविदिने पुष्यनक्षत्रे श्रीऋपमनाथदेवस्य प्रतिष्टा कृता महावजश्वारोपित ॥ मूलनायक ॥ नाहकजिंदजसपपूरमनागपीचि
(स्य)प्रावकगोष्टिकरगेषकर्मक्षयाय स्वसंतानमवाधितर२३ (गाथ) च न्यायोपार्जिनवित्तेन कारितः ॥वृा परवादिदर्पमयनं
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जनशिलालेय-सग्रह
[८१हेतुनयमहसमगकाकीणं । मध्यजनदुरितशमन जिनंदघरमामनं जयति ॥ (१) आमीद धाधनममगः शुमगुणो मा धनप्रतापीज्वको विस्पष्टप्रतिम प्रभारकलितो मपातमागार्थित. !
योपित्पी२४ नपयोधरांतरमुग्माभिगमलालितो य. श्रीमान् हरियमं उत्तम
मणि सहशहारे गुरी । (२) तस्माद् बभूव मुधि मरिगुणापपेतो भपप्रभूतमुछटार्थिनपाटपीठ । श्रीराममूटकुलकाननकरपवृक्षः श्री
मान् विदग्धनृपति. प्रप्रताप ॥ (8) तम्माद् भप२५ गणा" वमा (कीत ) पर माजन समत सुगनु मुनीतिमतिमान्
श्रीममटो विशुनः । येनास्मिन् निजराजवशगगने चन्द्रायित चारुणा सेनेव पितृशामन ममधिक फुन्धा पुनः पाल्यते ॥ (8) श्रीवलभद्राचार्य विदग्धनूपपूजित समभ्यच्यं । आचदा यात्र
दत्त भवते मया२६ ॥(५) (श्रीहम्ति)कुण्डिकायां चग्यगृह जनमनोहर भरण्या।
श्रीमद्वलभद्रगुरोर्यविहित श्रीविदग्धेन ॥ (6) तस्मिन् लोकान् समाहूय नानादेशमाग(ता)न् । थाचदायिनि यारच्छामन दत्तमक्षय ॥ (6) ()पक एकी दया वहतामिह विशत: प्रवाह
णानां । धर्म२० "क्रयविनय च या ॥ (6) मनगव्या देयम्तथा वदल्याश्च
रूपक श्रेयः। धाणे घटे च को दया मर्यण परिपाव्या । (९) श्री(मह)लोकढचा पत्राणा चोरिलका प्रयोदशिका । पटकपल्लकमंसद् द्यूतक(:) शामने दयं ॥ (१०)दय पलाशपाटकमर्याढा.
बर्विक२८ ." । प्रत्यग्य(द) धान्याठक तु गोधूमयवपूर्ण । (११) पट्टा च
पचपलिका धर्मस्य विशोपस्तया मारे । शासनमनत्पूर्व विदग्ध
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-८१]
विजापुरका लेस राजन महत्तं ।। (२) (क)मकान्यकुमा(पुर)मानिष्टादिपर्व
भाडस्त्र । (द)श दा पलानि भार यानि विक२९ ॥ (१०) आदानाटेनस्माद् भागद्वयमहत कृनं गुरणा।
गेपत्तृतीयभागी विद्यावनमारमनी विहित ॥ (१४) गज्ञा तन्पुत्रपत्रिश्च गोष्टया पुरजनेन च । गुल्देववन रक्ष्य नोप(क्ष्य हितमीप्सुमि) । (१०) दत्ते दाने फल दानात् पालिते पालनात्
फल । (मक्षिन)पेक्षित पाप गुरद३० (वधन)धिक ।। (१६) गोचूममुद्गयवलवणराल(का)टेम्तु मेयजा
तस्य । द्रोणं प्रनि माणकमेक्रमत्र मण दातव्य । (१७) वड्डमिर्वसुधा भुक्ता राजमि. सगरादिमि । यस्य यस्य यहा भूमिस्तस्य तस्य तदा फल ॥ (१८) रामगिरिनढकलित विक्रमकाले
गते तु शुचिमा(म)। ३१ (श्रीम)वलमद्रगुरोविदग्धराजेन दत्तमिदं ॥ (१९) नवसु शते
गतेपु नु पण्णवतीनमविपु मावस्य । कृष्णकादश्यामिह ममथित ममटनृपेण ॥ (२०) यावद् बरमूमिमानुभरत भागीरी भारती भाम्ब(दमा)नि भुजगराजमव(न) भाजद्मवामोधर ।
ति(प्ठ)३. त्यत्र सुरामुरेठमहित (३)न च मच्छामनं श्रीमत्केशवसूरि
सततिकृत तावत् प्रमयादिढ ॥ (२६) इट चाक्षयधर्मसाधन शामन श्रीविदग्धराज्ञा दत्त ॥ सवत् ९७३ श्रीममट(राज्ञा समाय)त सबत् ९९६ । सूत्रधारोनब (शत)योगेश्वरण उत्कीर्णय
प्रशस्तिरिति । [इम बृहत् शिलालेखके दो भाग है । दूसरा भाग जो २३वी पवितसे शुरू होता है समयकी दृष्टिसे पहलेका है। इसमें राष्ट्रकूट कुलके राजा हरिवर्माके पुत्र विदग्वराजका वर्णन किया है। भाचार्य
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५२
जैनशिलालेख-समह
[८२~ वासुदेवके उपदेशमे विदग्धराजने राजधानी हस्तिकुण्डिकामें ऋपभदेवका मन्दिर बनवाया था। इसने अपनी सुवर्णतुलाका दो तिहाई भाग इम मन्दिरके लिए तथा एकतिहाई भाग गुरुके लिए दान दिया था। विदग्धराजने इमी मन्दिरके लिए हस्तिकुण्डोके व्यापारिपोके कई फरोका उत्पन्न बलभद्र गुरुको दान दिया था। इस दानको तिपि आपाइ, सवत् ९७३ यो। विदग्घराजका पुत्र भमट हुआ। इमने उक्त दानको माघ कृष्ण ११, सवत् ९९६को पुन सम्मति दी। ममटका पुन धवल हुना। इसकी वीरताका विस्तृत वर्णन लेखमें किया है। जब मुजराजने मेदपाटको राजधानी आघाटको नष्ट किया तब वहाँके राजाको धवलने आश्रय दिया था। दुर्लभराजके आक्रमणसे महेन्द्रका रक्षण इसीने किया तथा मूलराजके द्वारा पराजित भरणीवराहको भी आश्रय दिया। वृद्धावस्यामें धवलने अपने पुत्र बाल प्रसादको सिंहामनपर स्थापित किया। इसके ममय सवत् १०५३ में बासुदेवके शिष्य शान्तिभद्रसूरिक उपदेशसे हस्तिकुण्डीको गोठी (व्यापारियोके समूह) ने विदग्धराज-द्वारा निर्मित मन्दिरका जीर्णोद्धार किया। गोठोके सदस्योके नाम पक्ति २२मे गिनाये है। लेखके पहले भागमे जो ४० श्लोकोकी प्रशक्ति है वह सूर्याचार्यने लिखी थी। लेखके अन्तमे केशवसूरिका उल्लेख है]
[ए. इ० १० १० १७ ]
विलपक्कम (नि उत्तर अर्काट, भद्रास)
सन् १४५, समिर नागनाथेश्वर मन्दिरके आगे पढी हुई शिलापर [यह लेख चोल राजा मदिरकोण्ड परकेसरिवर्मन् (परान्तक १ ) के राज्यके ३८ वें वर्षमे लिखा गया था। तिरुप्पान्मलके आचार्य अरिष्टनेमिकी एक शिष्याके द्वारा एक कुआं बनवानेका इसमें उल्लेख है।]
[इ० म० उत्तर अर्काट २१६]
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-९७ ]
दानवुलपाडु स्तभलेख
५ वलयमेल्लमन
७ कं श्रीविजय ॥ (१)
९ नोडिद करिघटे -
११ (वि) यं वल्लणिय |
१३ दुगेलगु करद (मि) १५ ढोलनुपमकविय ॥ ( २ ) १७ जये बलिकुलति
६ तिरथनी ढण्ड (ना) य
८ तुरगधलगल
१० यं पिरियनंर
१२ बुरदेड (योलि ) रि
१४ करमरिदु रण
१६ कुपितवति श्रीवि
१८ लकं नरेन्द्रदण्डाधि
१९ पतौ । गिरिरगि (रि) र्वन - २० मवन जलमज
२१ ल रिपुस (मू ) हव
२२ लमबल ॥(३)
दूसरा भाग
२३ वसुमतियोल
२५ कुसुकुरुमनेटि २७ रुहगर्माण्डक्क प२९ ननुपमकृविय ॥ ( ४ ) ३१ रुर्विश्रुवरि (पु) नृप३३ श्रीवनितास्मरपाश ३५ दिनीं श्रीविजय ॥ ( ५ ) ३७ वलयितवसुन्ध३९ रक्ष (न्) । श्रीविजय ४१ चिरं दानधर्मनि
४३ मगल माहाश्री ॥
२४ गिल्देण्टु (दे) सेगल
२६ माणदे मत्त | (विस) - २८ सरिसिदुदु (की) र्वि ने३० आश्रितजनकल्पत३२ तितृणडवानलमूर्ति | ३४ पातुस्तव वाहु में३६ चतुरुद्रधित्रलय३८ रामिन्द्रशासनात् सं४० दण्डनायक (जी) व
४२ रतमनस्क || (६)
६१
तीसरा भाग
४४ मद्रमस्तु भगवते (जि) नशासना (य) ॥
४५. भट्टविधकर्म मेल्लमनहु- ४६ यरिगोण्डु कोटिपे (नॅ) बुडे वगेयि ।
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[९७
जैनशिलालेख-संग्रह ४७ (पु)हिदनुदात्तसत्व नेहने विनु ४८ धेन्द्रवन्धनरिविंगोजम् ॥(७) ४९ वानरिदु तो(र)दु नेट्टने मानि- ५० सवालावुदु संन्यासनदोल। ५१ मानसिके गिडदे कोण्डो(न)नून- ५२ सुखास्पटमनलतियोल
श्रीविजय ।।(6) ५३ निर्गतमय नीनर(स)मर्ग- ५४ म नानोल्लेनेन्दु पेमि विसु५५ वा सर्ग मोगमनुण्डपब- ५६ गंकढिविटोनरिटोननुप५७ मकत्रियं ।।(९)दण्डिन साम ५. निगे परमण्डलमलाडे ५९ (सर्वविक्रमतुग । दण्ढिन थी- ६० रश्रीगोलगण्ड श्रादण्डनायक ६१ श्रोविजयं ॥(१०) (च)ण्डपराक्र ६२ मनुरटरिमण्डलिकरनहि पि६३ डिदुपतिगोनिसुवोलगण्ड प्रच-६४ ण्डनीमूमण्डलटोल टण्डनायक ६५ श्रीविजय ।।(११) अनुपम- ६६ कविय सेनबोव गु६७ गवर्म बरंट ॥
[यह शिलालेख दण्डनायक श्रीविजयकी प्रशसामें लिखा गया है। अरिविंगोज, अनुपमकवि तथा मर्वविक्रमतुग ये इसके विरुद थे। यह बलिकुलमै उत्पन्न हुआ था तथा इन्द्रराजको सेनाका पराक्रमी सेनापति था। इन्द्रराज (तृतीय ) ही मम्भवत यहाँ उल्लिखित है जिसका राज्य सन् ९१४ से ९२२ तक था। लेखके तोमर भागमे कहा है कि श्रीविजयने समस्त वैभव छोडकर सन्यास धारण किया था। यह लेख श्रीविजयके सेवक गुणवर्माने लिखा था।] [ए० इ० १० पृ० १४७ ]
84-8 चोलवाण्डिपुरम् ( दक्षिण अर्काट, मद्रास)
१०वी सदी, तमिल [ यह लेख राजा गण्डरादित्य मुम्मुडि चोलके दूसरे वर्पका है। इसमें चेदि सिद्धवडवन् नामक शासकको प्रशसा है। उसे कोवलका स्वामी तथा
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- १०० ]
मसुलिपट्टम ताम्रपत्र
સર
मलयकुलोद्भव कहा है । न्यानीन पहाड़ीपर उत्कीर्ण मूर्तियांकी पूजाके लिए उमने कुछ दान दिया था । कुरण्डिके गुणवीर भटारका भी इनमे उल्लेख है । उत्कीर्ण मूर्तियाँ महावीर, पार्श्वनाथ, गोम्मटदेव तथा पद्मावती की है । यहींके एक अन्य लेखमे १० वी नदीकी लिपिमें कहा है कि इन मूर्तियो ( तेत्राम् ) का निर्माण वेलि कोगरैनर पुत्तडिगलूने किया था । ] [रि० ना० ए० १९३६-३७ क्र०२५१-५२ पृ० ३४ ]
१००
मसुलिपट्टम ताम्रपत्र ( आन्ध्र ) १०वी मत्री, मस्कृत - तेलुगु
१ व्याकृष्टरत्नसचितायतशागंचापो वृन्दम् । निर्मम्यन्निव विभा
२ ति म कृष्णकान्तिर्विष्णु शिवन्दिशतु चोवनत्रिलोक ॥ (१) स्वस्ति श्रीमता सकलभुवनमस्तूयमानमा
३ नव्यसगोत्राणां हारीतिपुत्राणा कौशिकीवरप्रसादलब्धराज्यानामातृगणररिपालिताना स्वामि-
४ महामेनपादानुष्यातानां भगवन्नारायणप्रसादसमासादितवरवराहलाइनेक्ष
णवगीकृनारा निमण्डलानामश्वमेधावभृयस्नानपवित्रीकृतवपुषा चालुक्यानां कु—
६ लमलकरिष्णोस्मत्याश्रयवल्लभेन्द्रस्य भ्राता कुजविष्णुवर्धननृपतिरष्टादशवर्षाणि -
५
ग्रस्सेन्द्रकार्मुक विनीलपयोढ
• वगीदेशम पालयत् । तदात्मजो जयसिहस्त्रयस्त्रिंशनम् । तनुजेन्द्रराजनन्दनो विष्णुवर्धनो न-
८ च । तत्सूनुमंगियुवराजः पचविशतिम् । तत्पुन्नी जयमिहस्त्रयो
दश । तदचर
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जैन शिलालेख -सग्रह
42
[ १००
९ जः कोकिलिप्षण्मासान् । तस्य ज्येष्ठो भ्राता विष्णुवर्धनस्तमुच्चाच्य सप्तत्रिंशतम् । तत्पुत्रो वि
दूसरा पत्र पहला भाग
५० जयादित्यमद्दारकोष्टादश । तत्सुतो विष्णुवर्धनष्पत्रिंशतम् । नरेन्द्रमृगराजा ( ख्यो ) मृ
-
११ गराज ( पराक्रम 1 ) विजयादित्य ( भूपाल ) चत्वारिं (शल्समा ) - (२) तत्पुचः कतिविष्णुवर्ध
१२ नो (ध्यर्धवर्षम् । तत्सु) तो गुणगविजयादिस्यश्चतुश्चत्वारिंशतम् । तद्भ्रातुर्यौवराज्योतमहि---
१३ (ममृती ) विक्रमादित्य भूपाजावञ्चालुक्य मीमस्सककनृपशु (जोकृ ष्टचारित्रमात्र । दानी
18.
कर सार्वभौमप्रतापी राज्य कृत्वा प्र ( या ) वः न्निदशपविपद
१५ ( त्रिंशदब्दप्रमाण || (३) तत्पुत्रः कलियत्तिगण्ड विजयादित्यषण्मासान् । तत्सूनुरम्मराजस्स
३६ ( स ) वर्षाणि । तत्सुत विनयादित्य कण्ठिकाक्रमायातपट्टामिपेक वाकमुवाथ्य तालराजो राज्यम्मास-
१७ ( मे ) क । चालुक्यभोमसुतो विक्रमादित्यस्त हत्वा एकादशमासान् | विजयादित्यो वेंगीन - कलियत्ति---
१८ गण्डनामा धीमा (नू । ) स्य सती मेलाबा वनश्रीराजभीमनृपतिरतेय ॥ (४) सत्यत्यागामिमानाद्यखि----
दूसरा पत्र दूसरा माग
१९ कगुणयुतो राजमार्ताण्डमाजौ । जित्बोप्रम्मल्लपाख्य ससुतमधिचल द्रोहि (गो) प्यन्तकाभो । हिडमोमो राष्ट्र
२० कूटप्रचलचलतमस्स हरो द्वादशाब्द । राज्य कृत्वागमत्स प्रणिहित ( सुयशो ) धर्मसन्तानव । (५) वि
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-१००] मनुलिपट्टम तानपत्र २१ प्णी पद्मेव शमाग्वि गिरितनया यस्य देवी सपा । मसुद्धा
(हैह ) नानिजकु (लवि ) पये पुण्यला (ब)२२ ग्यगण्या । लोकांवानरसुतोभूह विजितपन्यलोवेगिनार्थीम्मराजो।
राजहाजाधिराजो ( जितरिषु)म२३ कुटोघृष्टपादारविन्द ॥ (६) वी ( राज्याभिषिक्ती) निजरिपु
विजयादित्यमुद्यत्समर्थ । जित्वा ( नेकाजिरग)२४ प्रजितपरवलं (कण्ठिकाढामकण्ठ । ) दायान्द्रोहिवर्गानपि सकर
वरः क्षत्रि (या) दिल्यदे२. वो। ध्वस्तारिष्वान्तराशिविलमिनक्मलस्मप्रतापो विमाति ॥
(७) यन्निर्मानुनिमित्त कृतमिठमखिलं विष्टप हि २६ त्रिमूर्तरात्मान चात्मनास्मादिह सकलगुण ( राजमी )-मोदवहो
भूत् तेजोराशि प्रजानां पतिरधिकर२७ (ल) स्सप्रतापोष्टमूतिस्मायन्बोम्मराजो जनगुणजनकोन (न्य) ___ राजाग्रचिन्ह ॥ (6) स्वर्याता पूर्व
तीसरा पत्र . पहला भाग २८ नाथा नलनहुपहरिश्चन्द्ररामादयोपि प्रत्यक्षास्ने यामिर्गुणवपुर
चला स्वरिटानी२९ मदृष्टा । यस्यो कीर्निरा (शिम ) गण इव जगद्वितीयो
ढयोस्मिन् । राजहाजाधिराजस्म ज३० यनि विजयादित्यदेवोम्मराज ॥ (९) गद्यम् । स जगतीपतिरम्म
राजी राजमहन्द्र मोगीन्द्र सह३१ नमोगोपहासिढीर्घदक्षिणकबाहुमान्द्रितविश्वविश्वमरामार ।
नारायण ३२ इब निरन्तरानन्तमोगास्पद. । विधुरिव सुखविराजित । पिता
मह इव कम
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जैन शिलालेख-संग्रह
[१००
६६
३३ लासन । गिरिविश इव धराधरसुताराधित । रत्नाकर इव
समस्त
३४ शरणागतममृदाश्रयः । सुवर्णाचल इव सुवर्णोतुगोदयः ।
हिमाचल ३५ इव सिंहासनोल्लासितचमरीवालव्यजन विराजमानलील. || स
सम३६ स्तभुवनाश्रयश्रीविजयादित्यमहाराजाधिराजपरमेश्वरपरम
तीसरा पत्र दूसरा भाग ३७ भट्टारक । वेलनाण्डविषयनिवासिनो राष्ट्रकूटप्रमुखान् कुटुम्बि
नस्समस्त३८ सामन्ता(न्त) पुरमहामात्रपुरोहितामात्यश्रेष्ठिसेनापतिश्रीकरण -
धर्माध्यक्ष३९ द्वादशस्थानाधिपतीन् ममाहूयेत्यमाज्ञापयति विदितमस्तु वः ।
श्रीमानुढपा४० दि महान्त्रिणयनकुलसाधु व्याख्यो। गोत्र सिंहासनतो ४. विदितो नरवाहनश्चलुक्ये(शानाम् ॥ १०) श्रीकरणगुरुगुरुरिव
विबुधगुरु४२ स्स(क)लरा(जसिद्धान्तन)। नरवाहन इत्यासीन्न्यवश्वनरवाह
(न)प्रकाशित-- ४३ यशसा (११) यस्पानसुतो गुणवान् मेलपराजो गुणप्रधानो
दानी। मानी मा४४ नवचरितो मानवदेवो जिनेन्द्रपदपमालि. (१२) तस्य सती
मेण्डावा सीतेव पति४५ व्रता जिनव्रतचरिता। सत्यवती (वि)नमवती सतताहारप्रवामिनी
प्रतधर्मा ।। (१३)तज्जो
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६७
-१०.]
मसुलिपट्टम तानपत्र
चौथा पत्र पहला भाग ४६ (सु)ती प्रसिद्धी बुद्धिपरी सालशानशवविवेकी । मीमनरवाह
नाम्यो बिरयानी रा४७ मलक्ष्मणाविव लोक ॥(१४) यो भीमार्जुनमदृशौ बलयुनबलदेव
वासुदेव(ममा)नी। (न)४८ कुलमहदवनुनी तो जातो जैन धर्मनिरनचरित्रा (१५) श्रीमत
चालुक्यनीम(क्षितिपतिकृप)४९ या लन्धसामन्तचिन्छी श्रीद्वागवंबरप्टोवनपदायिलम(चा)मग्च्छत्र
(लोला।) ... रिकस्यौ शिसिरहपटलच्छाग्रसत्करीका जातो चालुक्य
(चूली) ५१ • 'करिहयों काहलाद्यभ्युपेती ॥(१६)जैनाचार्यो यढीयो गुत्रसि७२ ल्गुणश्चन्दसेनास्यशिप्यो शास्वनो नायमेनो मुनिनुनजयमेनो
मुनिहाक्षितात्मा । मि-- ५३ दान्तज्ञ कलाज्ञ परममयपटु मानोत्कृष्टवृत्तस्सत्पात्र. श्रावकाणां
क्षपणामु(ज)नक्षुल्लकााजकानां ॥(१७) तस्मै ताभ्यां राजभीमनरवाहनाभ्या विजयवाटिकायां
चौथा पत्र • दूसरा भाग ५० जिनमवनयुगनिर्मिनमतद्धर्मार्यमस्मामिस्मर्वकरपरिहारं डेब
मोगा५६ कृत्य पेडगालिहिपरु नाम प्रामो दत्त । अत्यावधय । पूर्वत
मण्ड्य५७ रिपोलगरसुन यिसु कहलचेखुन नदिमि दूव । आग्नेयत आल
पर्तियुं जूटुरि
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जैनशिलालेख-संग्रह
[१००५८ यु मुख्यल्कुडु (न) चूरुष पहुध । दक्षिणत: चूंरि प्रान्त (पति)
युत्तरंबुन कुण्डि५९ विहिगुण्ठ । नैऋत्यत चूटूरियम्मपोट्यन्वगुडि। (पश्रिमत )
रेटि(प)डमटिदरि । वा६० यख्यतः पलिवेरिपोलगरुसुन गारलगुण्ठ । उत्तरतः तप्पराल
प(ड)व । ई६१ शानत: कोडगालिडिपतियु (बलिवेरियु मुस्यक्कडुन नहुपनि
गुण्ठ ।। तस्य (स्थे)यादल-- ६२ भ्यं सुचिरमुरुतर (शासन राजकोक्त । सत्कोतवें गिपस्य प्रकट
गुणनिधेरम्मराजस्य पूज्य । १३ तन्नेद शा(सोन (पालित)जिननिगम शौर्यमीवान्यनाथबातो()मौलिमालामणिकमकरिकोमल
पाँचवॉ पन्न ६४ कोल्लासिता ॥(१७) अस्योपरि न केनचिद्बाधा कर्तव्या य
करोति स पचमहापातकस६५-६९ युक्तो भवति । तथा चोक्त व्यासेन ।। (नित्यके शापात्मक
श्लोक) ७. प्राज्ञति कटकराज जयन्ताचा७१ यण लिखितम् ॥
[इस ताम्रपत्रमे मदनूर तथा कलचुम्वूर लेखोके समान पूर्वीय चालुक्योकी वशावली कुन्ज विष्णुवर्धनसे प्रारम्भ कर अम्मराज (द्वितीय) विजयादित्य तक दी गयी है । अम्मराजके पिता चालुक्य भीम (द्वितीय) का एक सामन्त नरवाहन था जो त्रिनयनकुलम उत्पन्न हुआ था तथा जैनधर्मीय था। उसका पुत्र मेलपराज था । इसकी पत्नी मेण्डाबाको दो पुत्र हुएराजभीम तथा नरवाहन (द्वितीय)। जैनाचार्य चन्द्रसेनके शिष्य नाथसेन
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६९
-१०२] वरण व मण्णेके लेख (जयोनके गुर ) इन दोनोंक गुरु थे। इनने विजनवाटिकामे दो जिनमन्दिर बनवाये थे। उनके लिए अम्मराजने वेलनाण्डु प्रदेशका पेडगालिडिप नामक ग्राम दान दिया था।]
[ए० इ० २४ पृ० २६८]
वरुण (मैनूर )
१०वी मही, कन्नड़ १ श्री श्रीमत्पर 'यि राजगुरु२ मण्डलाचायं विथमकार भत्रिगोत्र परशुराम पाचन चामुण्डरनु
मा-- ३ मठरकरु वारण सांथिनाथस्वामिय माडिसिटर भावर प्रिय
दुणदुचल४ टाचार्य मकलु विजय-अण बमण मदिर
[इस लेखमें बाचन चामुण्डर भट्टारक-द्वारा वरण ग्राममें शान्तिनाथमति अर्पण किये जानेका निर्देग है। यह मति विजयण और वमण्ण-द्वारा वनायी गयी थी। लेखकी लिपि १०वीं सदीकी प्रतीत होती है। ]
[ए. रि• मैं० १९३० पृ० १७१]
१०२ मण्णे ( मैमूर)
१०वी सही, कन्नड [इम लेखम देवेन्द्रपण्डित भट्टारकी शिष्या मारब्वेकन्तिके समाधिमरणका तया कलिगन्चे कन्ति-द्वारा इस निसिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । लिपि १०वी सदीकी है।] [५० रि० मैं० १९१७ पृ० ३९]
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00
जैन शिलालेख - सग्रह
१०३
उम्मत्तूर (मैसूर) १०वीं सदी,
कवड
[ १०३
[ इस लेखमें विमलचन्द्रके शिष्य सोतियूरके शासक मारम्मयके पुत्र सिन्दय्यके समाधिमरणका उल्लेख है । लिपि १०वी सदीकी है । ] [ ए० २ि० मै० १९१७ पृ० ३९ ]
१०४
बूवनहजि (मैसूर) १०वीं सदी, कन्नड
[ यह लेख एक जिनमूर्तिके पादपीठपर है । इस मूर्तिकी स्थापना वालचन्द्र सिद्धान्तभटारके शिप्य क (म) लभद्रगुरु द्वारा की गयी थी । लिपि १० वी सदीकी है । ] [ ए०रि० मं० १९१३ पृ० ३१ ]
१०५ अंकनाथपुर (मैसूर) १०वी राढी, कन्नड
[ यह लेख अकनाथेश्वर मन्दिरके छतमें लगा है। प्रभाचन्द्र सिद्धान्तभट्टारकी शिष्या देवियन्बेके समाधिमरणका यह स्मारक है । लिपि १०वी [ ए० रि० मै० १९१३ पृ० ३१ ]
सदीकी है । ]
१०६-१०७
अंकनाथपुर (मैसूर) १०वी सढी, काढ
[ यहाँके सुब्रह्मण्यमन्दिरके छतमें दो निसिधि लेख लगे है । एकम दडिगसेट्टि तथा देवरदासस्यको माता चामकब्वेका उल्लेख है । दूसरेमें
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-११.] होलेनरसीपुर आदिक लेस
७१ महानायक रेचय्यके पुत्र अवसामिका उल्लेख है जो चातुर्वर्ण श्रमणमघका सहायक था । लिपि १०वी मदीकी है।]
[ए. रि० मै० १९१३ पृ० ३१]
१०८ होलेनरसीपुर ( मैमूर)
१०वीं सदी, कन्नड [ यह लेख १०वी सदीकी लिपिम है। इसमें मुनिमुख्य महेन्द्रकीतिके ममाधिमरणका उल्लेख है।] [ए. रि० मै० १९१३ पृ० ३१ ]
अंकनाथपुर (मैसूर)
१०वीं मढी, कन्नड [ यह लेख १०वी सदीकी लिपिमें है। इसमें कदम्ब वशीय वासवेके पुत्र राचयके समाधिमरणका उल्लेख है। यह लेख वलदेवने स्थापित किया था।]
[ए. रि० मै० १९१३ पृ० ३२]
११०
कोडिहल्लि ( माण्ड्या, मैसूर)
१०वीं सही, कन्नड १ . म
२ य्य सन्य३ सन गेटद्ध
४ पुरड नॉ५ तु मुडिपि
६ दन् आतन ७ मगलप्य
८ विटक्क कल्ल ९ निऋमि(ल.)
[इम निसिधि-लेखमे किमी मय्यके समाविमरणका निर्देश है। उसकी पुत्री विडक्कने यह समाधि स्थापित की थी। लेखकी लिपि १०वी सदीकी प्रतीत होती है।] [ए० रि० मै० १९४० पृ० १६० ]
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जैनशिलालेख-सग्रह
[१११
७२
कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र)
१०वीं सदी, कन्नड [यह लेख रसासिद्धलगट्ट नामक पहाडीपर एक पाषाणपर खुदा है। यह श्रीनागसेनदेवका निसिदिलेख है। इसकी लिपि १०वी सदीकी है।
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ४५१ पृ० १२६ ]
मथुरा
१०वीं सदी, सस्कृत-नागरी [इस लेखमें १०वी सदीकी लिपिमें मूलसपके किसी आचार्यका उल्लेख है।]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ५२७ पृ० ७७]
कोलक्कुडि (वि० मदुरा, मद्रास)
१०वीं सदी, तमिल समणरमके पहाडीपर जैन मूर्तियोंके उत्तरकी ओर चहानपर
[इस लेखमें गुणभद्रदेव तथा न्द्रप्रमका निर्देश है। लिपिके अनुसार यह लेख १०वीं सदीका होगा।'
"रि० इ० ए० १९५०-५१ २० २४२]
घेखर (मन्दसौर, मध्यप्रदेश)
१०वी सटी, सस्कृत-नागरी [ इस लेख में नन्दियडसपके जैन आचार्य शुभकीति तथा विमलकीतिका उल्लेख है। लिपि १०वी सदीकी है।]
[रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २०३ पृ० ४५]
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कमलापुरम् आदिके लेख
११५
कमलापुरम् (बेल्लारी, मैसूर ) १०वीं सदी, कन्नड
[ यह लेख १०वी सदीको लिपिमें है । इसमें गुणचन्द्रमुनि, इन्द्रनन्दिमुनि तथा एक महिलाका उल्लेख है । ]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० २२२ पृ० ४८ ]
- ११७ ]
११६
काशिवल ( बिजनोर, उत्तरप्रदेश )
मवत् १०६ (१) = सन् १००५, संस्कृत - नागरी
७३
[ यह लेख एक जैन मूर्तिके पादपीठपर है । इसमे भरतका उल्लेख है तथा सवत् १०६ यह तिथि दी है । सम्भवत. सवत्का अन्तिम अंक लुप्त हुमा है । ]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४३६ पृ० ७१]
११७ लक्कुण्डि (मैसूर)
शक ९२९ = सन् १००७, कन्नड
[ यह लेख चालुक्य सम्राट् आहवमल्ल ( जो यहाँ सत्याश्रयका उपनाम होना चाहिए ) के सामन्त वाजिकुलके नागदेवके समयका है । इसकी पत्नी अत्तियब्वेने लोक्किगुण्डिमें एक जिनालय बनवाकर उसे कुछ भूमि दान दी थी । यह दान उसके गुरु सूरस्थगण-कौरूरगच्छके अर्हह्णन्दि पण्डितको दिया गया था । दानकी तिथि फाल्गुन शु० ८, शक ९२९, प्लवग सवत्सर ऐसी दी है । उस समय मत्तियन्वेका पुत्र पडेवल तैल मामवाडि प्रदेशका प्रमुख था । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ]
[ सा० इ० इ० ११ पृ० ३९ ]
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নদিতাম
[१२४नोलम्बवाडि तथा करिविडि प्रदेशके सामन्त नोलम्ववीय घटेयककारद्वारा मरवोलल्की वसदिके लिए कुछ भूमि अर्पण किये जानेका उल्लेख है। यह पाम उस समय सत्तिग ( सत्याश्रय ) की पुत्री महादेवीके गासनमें था। जैन आचार्य अनन्तवीर्य, गुणकीर्ति सिद्धान्तभट्टारक तथा उनके शिष्य देवकोतिपण्डितका भी इसमें उल्लेख है।] [ मूल कन्नडमे मुद्रित]
[सा० इ० इ० ११ पृ०५०]
हैदरावाद म्युजियम (आन्ध्र)
शक ९४९ - सन् १०२७, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा जयसिंह २ के राज्यकालका है। इस राजाकी कन्या सोमलदेवी-द्वारा पिरियमोसगिके वमदिके लिए कुछ दानका इसमें उल्लेख है । तिथि शक ९४९ प्रभव मवत्सर ऐसी दी है।]
[एन्शण्ट इण्डिया १९४९ पृ० ४५ ]
होसूर ( मैसूर)
शक ९५० - सन् १०२८, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल (१) के समय शक ९५०, विभव सवत्सरको उत्तरायणसक्रान्तिके दिन पोप शु० १३, रविवारको लिखा गया था। केशवरसका पुत्र दण्डनायक वाषणरस तथा उसका बन्धु महासामन्ताधिपति श्रीपादरम इनके शासनका इसमें उल्लेख है। वावणरमकी पत्नी रेवकव्वरसिके अधीन सिन्दरस पोसवूर नगरपर शासन कर रहा था। उस समय आयचगावुण्डने पोस्चूरमें अपनी पत्नी कचिकब्बेके स्मरणार्थ एक बसदि वनायी और उसे कुछ भूमि तथा एक उद्यान अर्पण किया। आय्चगाबुण्डके पुत्र एरकके पुत्र पोलेगने यह लेख स्थापित किया था। ये मोरक कुलमें उत्पन्न हुए थे। [ मूल कन्नडमे मुद्रित]
[ सा० इ० इ० ११ पृ० ५५]
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-१०८]
मस्की आदिकं लेस
१२६
मस्की ( रायचूर, मैसूर )
शक ९५३ = सन् १०३२, कन्नड
७७
[ यह लेख चालुक्य मम्राट् जगदेकमल्लके राज्यकालमे फाल्गुन शु० ९, सोमवार, शक ९५३, प्रजापति मवत्मरके दिन लिखा गया था । इसमे देसिगणके जगदेकमल्लजिनालयके लिए राजा द्वारा कुछ भूमि आदिके दानका उल्लेख है । अष्टोपवासि कनकनन्दिभट्टारके निवेदनपर वह दान दिया गया था । स्थान राजवानि पिरियमोस गि यह था । ]
[रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० २४७ पृ० ४२ ]
१२७ कागिनेल्लि ( धारवाड, मैसूर )
( शक ९ ) ५४ = सन् १०३२, कन्नड
[ यह लेख चालुक्य राजा जगदेकमल्लके राज्यमे ५४ ( शक ९५४ ) वर्षमें लिखा गया था । इसमें जिनधर्मके भक्त कामदेवके एक पुत्र तथा आयतवर्माका उल्लेख है । इन्होने एक मन्दिरके लिए कुछ सुवर्ण आदि दान दिया था । ]
[रि० स० ए० १९३३-३४ क्र० ई० २३ पृ० १२० ]
१२८ रायवाग (मैसूर)
शक ९६३ = सन् १०४३, कन्नद
[ यह लेख आदिनाथमन्दिरके मण्डपमें लगा है । तिथि चैत्र व० १४, शक ९६३, शुक्रवार, विक्रम सवत्सर ऐसी दी है । अन्य विवरण प्राप्त नही है । ]
[ रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १५४ पृ० ३४ ]
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जैनशिलालेय-संग्रह
[08
२२६
तिरुनिकोण्डै ( महाम)
११ीं सदी पूधि, नमिल [इस लेसका कुछ भाग दीवाली दवा है। उनके प्रारम्भमे राजेन्द्रचोल प्रथमकी ऐतिहासिक प्रशस्ति है। तिरुमणगि निवानी कलिमानन् विजयालयमल्लन्-द्वारा देवमन्दिरमे दीप प्रज्वलिन नेके लिए ९६ भेनें दान दी जानेका इनमे उल्लेख है। यह लेप चन्द्रनारमन्दिरके बरामदेके वाजूमे सुदा है।
[रि० मा० ए० १९३९-४० ऋ० ३०० पृ० ५ ]
१३० हलि (जि. वेलगांव,म्हगूर) शक ९६६ तथा १०६७ = मन् १०४४ तथा ११४", कन्नर १-२ श्रीमत्परमगमारस्यावादामाघरोउन । नीयात त्रैलोक्यनाथस्य
शासन जिनशास्न ॥ (1) ३ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपायलम महाराजाभिरान पर
मेश्वर परममहार४ क सस्याश्रयकुलतिलक चालुक्यामरण श्रीमहादवमलवर
विजयराज्य५ मुत्तरोत्तराभिवृधिप्रवर्धमानमाचरातारं मलुत्तमिर ॥ तपाठ
पभोपजीवि ॥ मले६ दं पगेवरं निर्मूलिसि जसम निमिचि दिमित्तिवरं कालढिय
घोलगदि वले पालिसिट तोचना७ रुम भुजबलदि । (२) आतन पुत्र धिनयोपेत पायिम्म-नृपतिगोपुर सति
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-१३.] हुलिका लेख
७९ ८ विख्यातियुते हम्मिकल्वेगे सीतेगे सरि मागेणब्बे लच्छलेयोगे
दर ॥(३) इष्टज९ नक्क चट्टममयक्के महाजनमोजनक्कयुत्कृष्टतपोधनगैयलिदायव१० नक्क सकंन्यकालिकाग्निष्टगेगेरटे नाल्कुममयनुरागढे बंगवि११ तु सतुष्टत लच्छियव्यरमिगार मरियर सचराचरोवियोलु ॥(४) १२ मकलधरित्रियोल नेग वढिजन सले रूपिनल्गय प्रकटतवेत्त दा१३ नगुणम कुलदुनतिय जिनाघ्रिगलगकुटिलचित्तम पोगलुति'. १४ दु डिय लिंकनकपालकन कुलांतमागर्नयनयिये लच्छलदेविय १५ जग ॥ (१) शरनिधिमंसलावृतवसुधरेयव विलासिनीमुखाबुम्ह
ढबोलविराजि१६ सुब बेल्बलनालक पोदलह शोभेगागरमनि(सि)पं पूलि तिलका
कृतिचिंटेसेदियुंदा पुरं सुरपु१० रम स्रनलकापुरम नगुगुं विलासदि । (६) अल्लि ॥ सक्ल
व्याकरणाशा१८ स्वचयदोलु काव्यंगलोलु सद नाटकटोलु वर्णकवित्वदोल्नंगई
वेदांतंगलोलु १९ पारमाथि(क)दोलु लौकि(क)टोलु समस्तक्लेयोलु वागीशनिटं
यशोधि२० करादर् पोगलबलिगारलवे पेलु मासिवर रयातिय ॥ (७) स्वस्ति
शझनृपकालातीतसवत्सर२१ शनगलु ९६६ नेय तारणमवत्सरट पुष्य सुद्ध १० आदिवार
मुत्तरायण
यजनयाजनाध्ययनाध्यापनढा
निरतरुं श्री२३ (म)च्चालुक्यचक्रवर्तिबापुरिस्थानपितृपितामहमहिमासदरक्षणा
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जैनशिलालेख सग्रह
[१३०२४ र्थकोविदरु विदग्धकविगमकवादिवाग्मित्यरुमतिथियभ्यागत
विशिष्ट२५ जनपूजनप्रियरं हिरण्यगर्भग्रहामुसकमलविनिर्गतऋगयजु२६ स्सामाथर्वणसमस्तवेदवेदागोपमागानकशास्त्राटाढशस्मृतिपुराण२७ काव्यनाटकधर्मागमप्रवाणरु सप्तसामसंस्थावभृयायगाहन
पवित्रीक२८ तगात्रा कांचनक(ल)शमितपत्रचामरपचमहाशघटिकामेरी
रवनि२९ नाहितरुमाथितिजन)कल्पवृक्षरुमहितकालातकरुमकवाक्यरूं ३० शरणागतवज्रपंज(रलंच)तुस्समयसमुद्धरणरु श्रीकेशवादिस्यदेव३१ लब्धवरप्रसादमप्प श्रीमन्महामहार पूलियूरोडयप्रमु३२ स सासिर्वमहाजनगल दिव्यश्रीपादपमंगल (क)च्छियब्बरसि
यर स३६ हिरण्यपूर्वकमाराधिसि भूमियं पडेदु बसदियं मादिसि सं३४ डस्फु(टि)तजीर्णोदरणक्के पटुवण पोलदल शिवेयगेरियारुमचर्च३५ सुगेयं मत्तरिंगडचिनलेक्कविहरुवणमं मूरु पणमं तेत्तुव३६ तागि श्रीयापनीयसंघद भागवृक्षमुलगणद श्रीवालचंद्रम३७ धारकडेवर काल कर्चि विलु ॥ स्यास्त समस्तभुवनाश्रय
श्रीपृथ्वीवल्लम मा:३८ राजाधिराज परमेश्वर परममहारक सत्याप्रयकुलतिलक चालु
क्यामरणं ३९ श्रीमतप्रतापचक्रवर्ति जगटेकमसलटेवर विजयराज्यमुत्तरोत्त४० राभिवृद्धिप्रवर्धमानचंद्रावतारंधर सलुत्तमिरे । कव४१ ५ १०६७ नेय क्रोधनसबत्मरदुत्तरायणसंक्रान्तियदु यमनि४२ यमस्वाध्यायध्यानधारणमानानुष्ठाननपसमाधिशीलसंपतरप्प
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-१३०]
हूलिका लेख ४३ श्रीमन्महाग्रहारं पूलियूरोडयप्रमुख मासिर्वमहाजनंगाल) ४४ दिव्यश्रीपादपद्मंगलं पगडे नेमणं महिरण्यपूर्वकमाराधिसिवा ४५ (रा)पूर्वक माढिमि कॉ(ड) तम्म मुत्तम्चे लच्छिमियरु
माडिसिड चम४६ दिलिपं अपियराहारदाननिमित्तमल्लियाचार्य रामचंद्र४७ देवर कालं कचिंयवर मुन्नबालुव पदुवणपोलद शिवेयगेरियारुमत१८ वसुगयि पढ(ब)ण (मागहलु कलशवल्लिगेरिय स्या(न)टोल
गारु मत्तव्यं ४९ मत्तरिंगचिन्न(लेक्कदिंढर)वणमं मूरु पगर्म तेतुबंतागि विहरु । ५० पतिमक्ते धेमा सनि पायिम्मरसनग्रसुते सकलजनस्तुते मा५१ गियध्वेराणिगे सुत दी (नम)य्यनौदार्यगुणं ।। (८) जिनवं
तनगासन५२ (यि)जनताकल्पमं स्यने तम्मय्यननूनढानि कलिटेवं साक्षरा५३ प्रेसरं तनगणं गुणरत्नभूषणने-संदिद नेमंगेनवनवद्याच(रण)५४ गे भूवलयदोलु पेल ॥ (९)
[इस लेखके दो भाग है। पहला भाग चालुक्य सम्राट् आहवमल्ल सोमेश्वर प्रथमके राज्यमें शक ९६६ को उत्तरायण संक्रान्तिके समयका है। इनका सामन्त कालडिय वोलगडि था। इसका पुत्र पायिम्म था जिसने हम्मिकच्चेसे विवाह किया। उसे भागिणव्वे तया लच्छिपव्वे ये दो कन्याएँ हुई। लच्छियन्त्रेका विवाह कूडि प्रदेश शामकसे हुआ था। इसने पूलि नगरमें - जहाँ एक हजार धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे - कुछ जमीन खरीदकर एक जैन मन्दिर बनवाया और उसके लिए यापनीय संघ-पुन्नागवृक्षमूल गणके वालचन्द्रभट्टारकको कुछ दान दिया।
दूसरा भाग चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्ल (द्वितीय ) के राज्यमे शक १०६७ की उत्तरायणसंक्रान्तिके समयका है। इसमें नेमण नामक
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८२ जैनशिलालेस-सग्रह
[१३१स्थानीय अधिकारीका उल्लेख है जिसने पूलि नगरमें कुछ और जमीन खरीदकर उक्त मन्दिरको दान दी। उस समय रामचन्द्र वहाँक भट्टारक थे। यह नेमण उपर्युक्त लच्छिपन्वेका प्रपौत्र था।]
[ए इ. १८ पृ० १७२] १३१ मुगद (मैसूर)
शक ९६६ - सन १०१५, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् लोक्यमल्ल आहवमल्ल ( सोमेश्वर १) के समय शक ९६६, पार्थिव सवत्सर, चैत्र शु. ५, रविवारके दिन लिखा गया था। इसमे नारावुण्ड चावुण्ड-द्वारा मुगुन्द ग्राममें स्वनिर्मित मम्यक्त्वरत्नाकर चैत्यालयके लिए कुछ भूमि अर्पण किये जानेका उल्लेख है । चावुण्डके पौत्र महासामन्त मातण्डय्य-द्वारा इस मन्दिरको एक नाटकगाला अर्पण किये जानेका भी इसमें उल्लेख है। उस समय पलसिगे तथा कोकण प्रदेशपर कदम्ब कुलके महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवका शामन चल रहा था। लेखमें कुमुदि गणके जैन आचार्योकी विस्तृत परम्परा भी बतलायी है। [ मूल कन्नडमें मुद्रित]
[सा० इ० इ० ११ पृ० ६८]
१३२ जोन्नगिरि (कुर्नूल, आन्ध्र)
1वीं सदी, कन्नड [ इस लेखमें चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लदेवके समय वेगडे सोवरस सथा मल्लिसेट्टिका उल्लेख है। इन्होंने जोन्नगिरिको वसदिके लिए कुछ भूमि वान दी थी।
[रि० सा० ए० १९२९-३० ७० ६१७ पृ० ६०]
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-१३४]
विंगकूरका लेख
सिंगकूर ( कोइम्बतूर-मद्रास)
शक ९६७ = सन् १०४', तमिल १ स्वस्तिश्री
२ को नाहन वि३ विकरमशोल
४ देवकुं शे५ल्लानिण्ड
६ याण्ड ना• पदाबदु
८ अरत्तुला९ पदेवन्
१० पेरन माण ना"ण कणित मा
१२ णिक्कच्चेट १३ टि चन्दिरवश
१४ तिपिल मुक१५ मण्डगम्
१६ पुडपित्ते१७ न (1) शकर या १८ ण्ड्ड ९ १०० (६) (१०) ७ (a) १९ शिंगला (न्तक ) न् २० एण पुदु मुक२१ मण्डगम् (a)
[यह लेख शक ९६७ का है। इस वर्षको नाट्टनु विक्रमचोल राजाके ४० वर्प, चन्द्रवसतिके मुखमण्डपके निर्माणका इसमें उल्लेख है। यह कार्य अरत्तुलान् देवन्के पौत्र कणित माणिक्क सेट्टि-द्वारा किया गया था।]
[ए० ई० ३० पृ. २४३]
अरसोवीडि (जि. विजापुर, म्हैसूर)
शक ९६९ = सन् १०४७, कबड १ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम महाराजाधिराज
परमेश्वर प
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८४
जैनशिलालेस-संग्रह [१३४-- २ रमभट्टारक सत्याश्रयकुलतिलक चालुक्यामरण श्रीमत्रलोक्यम३ लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तरामिद्धिप्रवर्धमानमाचदावा४ रपर सलुत्तमिरे । अस्ति अस्नुिपमकृटपटिसचरणारवियर्
गंगास्नान५ पवित्रेयर टीनानाचिन्तामणिगलेकराक्यर् गुणद पेटंगियरप्प
श्रीमद६ कादवि (1) र गोकागेय कोटय मुत्तिदं योदिनलु विक्रमपुरद
गोणढयेदंगिय ७ जिनालयक्के सण्डस्फुटितसुधाकर्मक गन्धधूपढीपक्क मरुगिग
मूलसंघ. ८ व (२) सेनगणड होगरिय गच्छद नागसेनपपिदतर्ग भल्लिप
ऋपियर्ग अजिय९र्ग आहारदानक्क अजियर कप्पलक्क कडव भूमि सकवर्ष ९६९ नेय १० सर्वजित् सवत्सरट चैत्रमास्य भादित्यवारददिन सूर्यप्र
॥ इनिमित्त धारापूर्वक मादि नगरदनुभवने मुख्यमागि किसु१२ काडेप्पचर बलिय सर्वनमस्यमागि विट याट गाणद हालाद १३ निक्रमपुरद यीशान्यद टेसेपि वॉट मचरोदु ऊरि तक मुदिन पा१४ ल नरिव्यद टेसयि पण्डिवनागदेवगे सर्वनमस्य मत्तर पनेरछ
अल्लि तक १५ परकार कतार्जग सर्यनमस्य मचरिबारकु ऊरि बढग रायगष्ट्रेयिं १६ मृढ़ परकार कंतोजग तोट मसरोदु भल्लि पटुव कल्कुटिग
सूरोजगे स१७ धनमस्य मत्ता पनेरद वोट मत्सरोंदु दृढिगरसन करयल
मारुगोण्डु देवगे कोह
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-१३०]
मुलगुन्दका लेख १० रे तत्पादपोपजीवि ॥ वृत्तं । विनयक्काधारभूत पतिहितचरित
काश्रयं सद्विवेकक्के निवास११ संपत्तिगे, कुलमवनं सन्ततानूनदानक्के निधानं मान्तनक्कागर
मेने नेगलद सद्वचोभूषण भूविनु (तं) (वे.) १२ लदेवनुद्यविधुविशदयशोव्यानदिकचक्रवाल पर ईव गुणं गुणं
पतिहिताचरित चरितं परोप (का.) १३ रावसथार्थमर्थमघमिज्जिनतनमे तत्वमेध सद्भावने तम्मोलोन्दि
नेलेवेत्तिरे कीर्तिगे नोन्तरिन्तु १४ बेलदेवनुमोल्पनाब्द वलदेवनुमकद शान्तिवर्मनु (३) वचनं ।
भन्तु सकलगुणगणोतुगर जिनधर्म१५ निर्मलरुं निखिलजनोपकारनिरतस्मुदात्तकीर्तिलतानिकेतनरुम
गलदेवप्रियतनूमवरु गोजि१६ काम्बिकाकृशोटरनिविडनिवद्धपट्टरुमागि पोगल्तेवेत तत्सहोदर
त्रयदोल अग्रमवनप्प सन्धिविन१७ हाधिकारि ॥ वृत्तं । जिनपादांबुजगनगननिम गम्यार्थरस्नाकर
मनुमागं विनयार्णवं कलिमलमध्वंस१८ के केशिराजन वटि नयसेनसुरिपदपद्माराधनारतचित्तनुदात्तं
नेगल्द विवेक-महीमाग१९ दोल ॥ ४ मा महानुभाव धर्मप्रमावप्रकटीकृतचित्तनागे ॥
कन्दं । मिन्द-कनवलानन्दनकररू २० पनसमसाहसनिलयं सिन्दनुपनन्दनं लसदिन्दुकरप्रतिमकीर्ति
कान्ताकान्त ॥ ५ जिनधर्मनिर्मलं सत्यनिधा२१ नननूनदान-अनन्दिन कंचरस पंचेषुनिमं मुल्गुन्दसिन्ददेश
ललामं ॥ ६ एंव पेंपिंग जसक्कमागरमा
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जैनशिलालेस-सग्रह
[१३८२२ द कंचरस त सीवटढोलगे धर्मानुरागचित्तं सहिरण्यपूर्वक
कुडे कोण्ड ॥ श्रीमूलसघवारा- 1 २३ शो मणीनामिव साचिंपा। महापुरुपरस्नानां स्थान सेनान्वयो
ननि ॥ ७ वा चन्द्रकवाटान्धयवरिट२४ रनितसेनमारकर तदन्तेवासिगल कनकसेनमहारकरवर शिष्यर।।
कन्द । चान्द्र कातन जैनेन्द्र श. . .. .. . २५ ब्दानुशासनं पाणिनि मन्द्र नरेन्द्रसेनमुनोन्ट गेकाक्षरं पेरगिबु
मोग्गे ॥ ८ अन्तु जगविख्यातरादर २६ रबर शिप्यर् ॥ वृत्त । निनगेनैवेनी शाकटायनमुनीशनन्ताने
शब्दानुशासनढोल पाणिनि पाणिनीयटोले चन्द्र चा२७ न्द्रदोल तजिनेन्द्रने जैनेन्द्रढोला कुमारने गढ कौमारढोल
पोल्परेन्तेने पोलर नयसेनपण्डितरोलन्यार्षि२८ वीवोर्वियोल ॥ ९ इन्तु समस्तशब्दशास्त्रपारावारपारगर नयसेन
पण्डितदेवर पाठप्रक्षालनगे२९ ख्दु। शकवर्पमोषयरेलपत्तयदनेय विजयसवरमरदुत्तरायण___सक्रान्तियंदु तीर्थट ब३० सदिगाहारठाननिमित्त निजांविकेयप्प गोजिकब्बेगे परोक्षविनय
नगरमहाजनमु पचमठस्या३१ नमुमरिये नगरेश्वरद् गडिंबद कोलोललेदु किरुगेरेय केय्योलगे
सर्ववाधापरिहारमा३२ गे विह केयमच पन्नेरहु । मा केयगे गुट्टे ईशान्यदोलू कविलेय ___ कल आग्नेयदोलादित्यन,कल नैऋ२३ त्यदोल चन्द्रन कल वायव्यदोल पद्मावतिय कल असगगेरेय
वेंक सासिर बल्लिय तोटवोन्दु ॥ स्वदत्ता
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९३
-१४०]
नन्दिवेवूरुके लेख ३४ (परदत्ता वा ) यो हरेत वसुन्धरां । षष्टिवषसहस्राणि
विष्ठायां नायते कृमिः ॥१० [यह लेख चालुक्य सत्राट् सोमेश्वर (प्रथम) त्रैलोक्यमल्लके राज्यमें शक ९७५ में लिखा गया था। उस समय वेल्वोल तथा पुलिगेरे प्रदेशपर सम्राटका पुत्र सोमेश्वर (द्वितीय) शासन कर रहा था। वहाँके सन्धिविग्रहाधिकारी वेल्देव थे। ये अग्गलदेव तथा गोज्जिकब्बेके पुत्र थे। बलदेव तथा शान्तिवर्मा उनके वन्धु थे। वेल्देवकी प्रेरणासे सिन्दकुलके सरदार कंचरसने नयसेन पण्डितदेवको कुछ भूमि दान दी । नयसेनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी- मूलसंघ-सेनान्वय-चन्द्रकवाट अन्वयके अजितसेनकनकसेन-नरेन्द्रसेन नयसेन । नरेन्द्रसेन तथा नयसेन दोनो व्याकरणशास्त्रके विशेषज्ञ थे।
[ए. ई० १६ पृ० ५३]
१३६-१४० नन्दिवेवरु (बेल्लारी, मैसूर)
शक ९७६ - सन् १०५४, कन्नड [यह लेख चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लके समय शक ९७६, उत्तरायण सक्रान्ति, रविवार, जय सवत्सरका है । इसमें नोलम्ब पल्लव पेर्मानडिके राज्यकालमें देसिगगणके अष्टोपवासि भटारको रेन्चूरुके महाजनो-द्वारा भूमि, उद्यान आदिके दानका उल्लेख है। लेखमें जगदेकमल्ल नोलम्ब ब्रह्माधिराजका सामन्तके रूपमें उल्लेख किया है । इस लेखके पीछेकी ओर प्राय ऐसे ही लेखमें अष्टोपवासिमुनिको वैहुल्में दिये हुए दानका वर्णन है। इसमें वोरणन्दिसिद्धान्तिका भी उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९१८-१९ क्र० २०१ पृ० १६1
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२
.
जैनशिलालेख-संग्रह
[११११४१ कोगलि (जि. बेल्लारो, मैसूर )
शक ९७७ % सन् १०५.
जैन मन्दिरके आगे एक शेडमें, कन्नड यह लेख चालुक्य सम्राट् लोक्यमल्लके राज्यकालका है । इसमें कहा है कि इस मन्दिरका निर्माण गग राजा दुविनीतने किया था। लेखके समय जैन आचार्य इन्द्रकीतिने इस मन्दिरको कुछ दान दिया था। इन्द्रकीतिका वर्णन इस प्रकार किया है
श्रीमदरहञ्चरणसरसिंहभूग, कोण्डकुन्दान्वयसमूहमुखमडन, देशीयगण कुमुदवनशरच्चन्द्र, कोकलिपुरेन्द्र, त्रैलोक्यमल्लसद सरसिकलहस, कविजनाचार्य, पण्डितमुखाम्बुरुहचण्डमार्तण्ड, सर्वशास्त्रज्ञ, कविकुमुदराज, त्रैलोक्यमल्लेन्द्रकीतिहरिमूति]
[इ० ए० ५५, १९२६ पृ०७४, इ० म० वेल्लारी १९६]
१४२
डम्वल (मैसूर)
शक ९८१-सन् १०५९, कार [यह लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लदेव (सोमेश्वर १) के समय चैत्र शु० १३, रविवार शक ९८१, विकोरि सवत्सरके दिन लिखा गया था। इसमें धर्मवोललके नगरजिनालयके लिए बाचय्यसेट्टिके जमात बीरग्यसेट्टि द्वारा कुछ सुवर्णदान दिये जानेका उल्लेख है। [मूल कन्नडमें मुद्रित]
[सा० इ० इ० ११ १०८९]
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मारव आदिके लेख
१४३
मोरव ( धारवाड, मैसूर )
शक ९८१ = सन् १०६०, संस्कृत - कन्नड
[ यह लेख मार्गशिर शु० २ शक ९८१ विकारि सवत्सरका है । इसमें यापनीय सघके जयकीर्तिदेवके शिष्य नागचन्द्र सिद्धान्तदेवके समाधिमरणका उल्लेख है । उनके शिष्य कनकशक्ति सिद्धान्तदेवने यह निसिधि स्थापित की थी । नागचन्द्रको मन्त्रचूडामणि यह विरुद दिया है । ] [ रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई० २३९ पृ० ५६ ]
-१४५ ]
१४४ छवि (जि० घारवाड, मैसूर )
शक ९८२ = सन् १०६०, कन्नड
[ इम लेखमें सन्वि नगरके घोरजिनालयके आचार्य कनकनन्दिके समाधिमरणका उल्लेख है । इनकी निसिधि भागिपब्वे द्वारा स्थापित की गयी । इम लेखकी रचना वच्चने की तथा नाकिगने उसे उत्कीर्ण किया । तिथि वैशाख ० ५, रविवार गक ९८२ शर्वरी सवत्सर ऐसी थी । ] [रि० स० ए० १९४१-४२ ई० क्र० १५ पृ० २५६ ]
१४५ तोललु (मैसूर)
९५
शक ९८३ = सन् १०६२, कन्नड
इस लेखकी पहली ८ पक्तियाँ घिस गयी हैं ।
९. कस्कन्धरे केलेयव्वरिसि वीरगग पोयिसलगं
१० पेम्पनवद्यु “विनयार्क पो
११ बिसलननप' 'मादि ॥ श्रीवर्धमानस्वामि
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जनशिलालेस-सग्रह
[१४६१२ गल धर्मतीर्थ प्रवर्ति सुवलि गीतमस्वामिगलिं मढ़वाहुस्वामि
गलिवलि १३ पुष्पदन्तमहारकरि मेषचन्द्र १४ ."श्रीमूलसघ१५ व बेलवेय अभयचन्द्रपण्डितगें विनयाठिस्यहोथिमलटेवर शक
वर्ष ९८३ शुमकृत्सवत्सरट १६ उत्तरायणसक्रमणद दानार्थदेमण्ण धारापूर्वक कोट अ तरह १७ पर्वद्ध हणवारमटि देवर चरुपिगे यिप्पत्तयरह सळगेय
धारापूर्वक मादि १८ विट दत्ति तोल्ललहल्लिय मुहगोदनु विपगौनु घुरतकलु
यिरभुगाम्ब होर१९ गेरिय महणभूमि विगुड्डय भूमिय समयचन्द्रपण्डितरिंग धारा २० वंक माडि विट्टरुई धर्मवन् भवनोन्यनु" , [, इस लेखमें होयसल राजा विनयादित्य-द्वारा शक ९८३ में उत्तरायणसक्रमणके अवसर पर मृगसके पण्डित अभयचन्द्रको कुछ भूमिदान दिये जानेका उल्लेख है। अमयचन्द्रको पूर्वपरम्पराम गौतमस्वामी, भद्रवाहस्वामी, पुष्पदन्तभट्टारक उपा मेषचन्द्रका उल्लेख किया है। मुद्दगौड तथा तिप्पगोड द्वारा भी कुछ भूमिदान दी गयी थी। ये दोनो तोललहल्लिके निवासी थे।
[एरि० मै० १९२७ पृ० ४३ ]
पालियड (गुजरात) सवत् १११२सन् १०६६, सस्कृत-नागरी १ सिद्ध विक्रम सवत् १११२ चैत्र सुदि १५ अधेह आकाशिका
प्रामावासे समस्त
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-१४६]
पालियड ताम्रपत्र २ राजावलीविराजितमहाराजाधिराजश्रीमीमदेव ॥
वायढाधिष्टानप्रति३ बद्धबो (पो) दशोत्तरनामशतान्त पातिसमस्तराजपुरुषान् बा(झ)
णोच (रान् ) ज४ नपढांश्च वोधयत्यस्तु व मविदितं यथा भद्य सोमग्रहणपर्वणि
चराचर५ गुरु मर्वनमभ्ययं वायढाधिष्ठानीयवसतिकार्य भत्रव वायदा
(घि)पाने ६ (च) रोक्षेत्रान्तरितया गुदहुलापालिसंग्नयावणिकमाठाकभूमी
सं(बध्य)७ मानया कलसिकाद्वयवापभुवा सहास्यैव माढाकस्य सत्का
हरदयस्य २ ८ भूः शामन (न) नौटकपूर्वमस्मामि प्रदत्तास्याश्च भूमे पूर्वस्या
दिशि कल्प १ पारकेपरिसरकं क्षेत्रं दक्षिणस्यां च राजकीया चरी । पश्चिमा १० यां च वाणिय (ज) कमामलीयं क्षेत्रमुत्तरस्यां च पालवाड
ग्राममा"र्ग इति चनुराधाटोपलक्षितां भुवमतामवगम्य एवनिवासि
जनपदै१२ यथा टीयमानमागमोगकरहिरण्यादि सर्वमाशा(अबणविधेयै५३ भूस्वास्थै वसतिकायै समुपनेतन्यं सामान्य चतत्पुण्यफल
मस्वास्म११ वंशजैरन्यैरपि माविमोक्तृमिरस्मत्प्रदत्तधर्मदायोयमनुमन्तव्यः १५ -१६ नित्य के शापात्मकश्लोक १ लिखितमिदं कायस्थ
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जैन शिलालेख-मग्रह
[ १४७
१७ कांचनसुतवटेश्वरेण । दूतकोत्र महामाधिविप्रहिक श्री मोगादित्य
इ (ति)
१८ श्री भीमदेवस्य ॥
[ इस ताम्रपत्रमें चीलुक्य राजा नोमदेव ( प्रथम ) द्वारा वायड अधिष्ठानकी एक वसतिका ( जिनमन्दिर ) के लिए चैत्र शु० १५ मंत् १११२ के दिन कुछ भूमिके दानका उल्लेग है । ]
[ ए० इ० ३३ १० २३५ ]
१८
१४७
मोटे चेन्नूर (घावाट, मंसूर ) शक ९८८ = सन् १०६६, कन्नड
[ यह लेस चालुक्य राजा त्रैलोक्यमत्रके समय शक १८८, पुण्य ०५, सोमवार, पराभव सवत्सरके दिनका है । इसमें महामण्डलेश्वर लक्ष्मरस द्वारा मूलसघ चन्द्रिकाबाटवशके शान्तिनन्दि भट्टारकको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । यह दान बेन्नेवुरमें आयुचिमय्य नायक द्वारा निर्मित बसदिके लिए था ।]
[रि० स० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ११३ पृ० १२९ ]
Re
चांदकवटे ( विजापूर, मैसूर )
शक ९८९ = सन् १०६७, कन्नड
[ इस लेखमें फाल्गुन च० ३ शक ९८९ प्लवग सवत्सरके दिन सूरस्त गणके माघनन्दि भट्टारककी तिसिघिका उल्लेग है । सिन्दिगे निवामी जाकिमव्वेने यह निसिधि स्थापित की थी । ]
[रि० स० ६० १९३६-३७ क्र० ई १४ पृ० १८२ ]
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-१५२]
मत्तिकट्टि आदिके लेख
मत्तिकहि (जि. धारवाड, मैसूर)
शक ९९० = सन् १०६८, कन्ड [ यह लेख टूटा हुआ है । मत्तिकट्ट ग्रामकी कुछ जमीन पेगडे कालिमय्यने मत्तिसेन भट्टारकको दान दी इसका इसमें निर्देश है । (यह नाम मतिसेन अथवा मल्लिसेन हो सकता है)। यह दान कालिमय्य-द्वारा निर्मित एक जिनालयके लिए दिया था। कालिमय्यको (चालुक्य ) सम्राट त्रैलोक्य ( मल्लदेव ) का पादपद्मोपजीवी कहा है । ]
[रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ् ४२ ]
१५०-१५१ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास)
सन् १०६८, तमिल [इस लेख में चोल वंशके राजा राजकेसरिवर्मन् वीरराजेन्द्रदेवके राज्य वर्ष ५में तिरुक्कामकोट्टपुरम्के निकट करन्दै ग्रामके जिन मन्दिरके लिए कुछ भूमि ग्रामसभाके तीन सदस्योद्वारा दान दिये जानेका उल्लेख है। यहींक दूसरे लेखमें इस मन्दिरमें सततदीप रखनेके लिए कुछ वकरियोंके दानका उल्लेख है। इस लेखमें मन्दिरके देवताका उल्लेख अरुगर् देवर् वीरराजेन्द्रपेरम्वल्लि आल्वार ऐसा किया है। यह दान कालियूर प्रदेशके परम्वूर ग्रामके तुगिलिकिलान् मरयन् उडयान्-द्वारा दिया गया था।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० १२९-१३०]
मत्तावार ( मैसूर)
शक ९९१ =सन् २०१९, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछ
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जैनशिलालेम-संग्रह
२ न | जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शामन जि.
३ नशालन !
४ स्वस्ति समधिगतपंचमहाशब्द महामण्डलेश५ र द्वारावतीपुरवराधीश्वर यादवकुला६ यरधुमणि सम्यक्तचूडामणि मळ
७ परोलुगण्डाद्यनेकनामावलीविराजितरण श्री८ मत (लो) क्यमल विनयादित्य होयम९ बर् गगवादितॉमन्सा सिरमनालदु १० सुखादं पृथ्वीराज्य गेय्ये सकवपं ९०१ नं११ य पिंगल सवत्सरद् वैशाख शुद्धग्रयोदशि गृह१२ वारलू पिंटु देवमं दाम्पलटंवर मतपुर के १३ कालं तिर्वितदु विजयगयददु वम्पढिगे यदि १४ नंबर कटि बेहोके कल्तरव विल्दियकं मादि१५ मिटरोळगे भाडिसिवंदडे माणिकमेहि
१००
१६ यिन्तेंदु बिनपगेय्दम् डेयर् नीयूरोलोड १७ यमदियं मादिसि भूमिय बिट्ट मा १८ नमहिमेगल कोड पढवल्पर निर्मड१९ ददर्य प्रमाणुटे देवरथमं मलेय
२० रसुगल हडद मतमु समानमटर २१ माणिकसेद्दिय मावि मेचि मक्कु करवोलित२२ दु बमदियोलगे माडिसि मामिय
२३ माणिकसेडि राजगावण्ड मुदगधुण्डरि थे२४ मायिवेन्नरु (?) मत्तक्के बिडमि ॥ तेरेयोल प२५ ८ नाडलियकि सिद्धायदद्दिक भत्तल नेक चि
२६ नयायितन् पम्पल्तेरेगल मत्तबूर - २० सदिगे विहं ॥ अतु बिहु यमदिववसद लिपलद
[248
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१०१
-१५२]
मत्ताबारका लेस २८ मनेगल माढिसि रिपिहल्लियेंदु पेसरनिहु २९ मनेहेरे मादुवेढरे अरटिंगे तौटे सु३० रंदु कवर्ते सेसे भोसगे मनकरे कूट क३१ कन्दि वीरवण कोढतिवण कत्तरिवण अडकलु३२ वण हडवलेय हदियराय कुवर वि३३ हि कमर विहि यिवोलगागि हलवु महिम३४ गलं विनयादिस्यहोरपलदेवर् आचद्रार्क३५ तारंवरं सलो ॥ इन्ती धर्मटोलावनानुं तप्पिट३६ वं गगेयलु गंगेयं कोंदु तिन्हें लिंगालि३७ पंगेनिस्थानवे कटेगळ स्यानं जागवल्ल ३८ मत्तावुर हल्लिय गावुण्ड तानिइक्के पे३९ न्दे नितुदृढक्के देवगृह ४० वह नानवक-होलहा-घागि ॥ ४०००००
[ यह लेख होयमल वाके राजा विनयादित्यके समय वैशाख शु० १३, बृहस्पतिवार, शक ९९१ पिंगल संवत्सरके दिन लिखा गया था। मत्तवूर ग्रामके लिए एक नहर वनवायी थी तब राजा विनयादित्य वहाँ गये थे। इस ग्रामको वसदि ग्रामके वाहर एक पहाडीपर थी। उसे देखकर राजाने ग्रामीणोस पूछा कि ग्राममें वसदि क्यो नही है ? इसपर माणिकसेट्टिने कहा कि ग्राममें वमदि वनानेकी हमारी इच्छा है किन्तु हम गरीव है। तव रानाने ग्राममें बसदि बनवाकर नाडलि ग्रामके कुछ करोका उत्पन्न उमे दान दिया। माणिकसेट्टि, राजगावुण्ड तथा मुहगावुण्डने भी वसदिके लिए कुछ भूमि दान दी।]
[ए. रि० मै० १९३२ पृ० १७१ ]
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१०२
जैनशिलालेख-सग्रह
[१५३
सोरटूर (मैसूर)
शक ९९३ = सन् १०७१, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनकमल्लदेव (सोमेश्वर २) के समय माघ शु० १, रविवार, शक ९९३, विरोधकृत सवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था ( यहाँ माघ स्पष्टत गलत है जो पोप होना चाहिए । ) उक्त समय महाप्रधान सेनाधिपति कडितवेगडे दण्डनायक बलदेवस्य-द्वारा सरटबुर ग्राममे स्थित वलदेवजिनालयके लिए कुछ भूमि अर्पण की गई थी। बलदेवय्यके पिता गग कुलके अग्गलदेव थे, माता गोज्जिकब्बे थी तथा उसके ज्येष्ठ बन्धुका नाम वेल्देव था। इस दानको व्यवस्थापिका हुलियब्याज्जिके सूरस्तगण-चित्रकूटान्वयके सिरिणदिपण्डितकी शिष्या थी। उक्त मन्दिरको सरटबुरके दो-सौ महाजनोने भी कुछ भूमि, तेलपानी तथा घर अर्पण किये थे। सिरिणन्दिपण्डितकी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है चंदणदि - दावणदि - सकलचन्द्र - कनकनदि - सिरिणदि । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित] [सा० इ० इ० ११ पृ० १०७]
१५४ गावरवाड (जि० धारवाड, मैसूर)
शक ९९३-९४ = सन् १०७१-७२, कन्नड १ श्रीमत्परमगमीरस्यावादामोधलांछन । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य
शासन जिनशासन ॥ • स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम महाराजाधिराज परमे
श्वर परममट्टारक स३ स्याश्रयकुलतिलक चालुक्यामरण श्रीमदभुवनैकमल्लदेवर विजय
राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाच
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-१५४]
गावरवाडका लेख ४ दातारं सलुचमिरे । तत्पादपयोपजोवि समधिगतपचमहाशब्द महामडलेश्वरनुदारमहेश्वरं पलके बलुगंड (शौर्यमातड)
पविगे५ कदाट संग्रामगरुडं मनुजमान्धातं कीर्तिविख्यातं गोत्रमाणिक्यं
विवेकचाणाक्यं परनारीसहोदरं वीरवृकोदरं को६ दंढपाय सौजन्यतीर्थ मंडलीकठीरव परचक्रभैरवं रापदंडगोपालं
मलेय मंडलीकमृगशार्दूलं श्रीमद्भव७ नैकमलदेवपादपंकजभ्रमरं श्रीमन्महामंडलेश्वरं लक्ष्मरसरु
बेलबोलमूनूरुमं पुलिगेरेमूनूरुमन्तेरडलरु' में दुष्टनिग्रहशिष्टप्रतिपालनेमि प्रतिपालिसुत्तमिरे ॥॥ भणुगाल्
कार्यद शौर्यदाल विजयदाल चालुक्यराज्यक्के कार९ णमाढाल तुलिकालतनस्के नेरेदाल कटायटाल मिक्क मन्नणेयाल
मान्तनदाल नेगल्तेबडेवाल विक्रान्तवाल मेलवाल् रणदाला
ल्पनेन१० क्षुधावेडेमोळं विश्वासढोलु लक्ष्मण ॥ कलितनमिल्ल चागिगे
वदान्यते मेयगलिगिल्ल चागि मेयगलियेनिपंगे शौचगुणमि११ ल्ल कर कलि चागि शौचिगं निले नुडिवोजेयिल्ल कलि चागि
महाशुचिसत्यवादि मंडलिकरोलीतनेन्दु पोगलगुं बुधमड१२ लि लक्ष्मभूपन । कुदुरेय मेले विल् परसु तोरिंगे सूलिगे पिंडि
बालमेतिद करवालवार्दिदुव कर्कडे पारुब चक्रमन्दोडेन्तो१३ दरुबरेन्तु पायिसुवरेन्तु तरुम्बुवरेन्तु निल्परेन्तोदरुवरन्तु लक्ष्मण
नोलान्तु वर्दुकुवरन्यभूभुजर् ॥ एने नै१४ गल्द लक्ष्मभूपति जनपत्रिभुवनैकमरठेवादेशं वनगेसदिरे नाडि
सिट [ जिनशा-]सनवृदियं प्रवर्धनमागलु ॥ आ चैत्याल
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१०४
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जैनशिलालंप-सग्रह
[१५४१५ यद पूर्वावतारमन्तेन ॥ श्रीवसुधेशन याव रंबकनिर्म दिया
बल्लमं वृतुगनामावगतमकलशास्त्रनिलाविश्रुतकीर्ति १६ गगमढलनाय ॥ ॥ रूढिगे रूटिवेसेट बेल्बलदेशमनाल
गगाडिगलिन्दमणिगरे नालकोवढेनिमित्त नाट नाटा१७ डिगलुंगमविनेगमा पुरटोल जयदुत्तरंग पर्मादियिनानु यूदग
नरेंद्रनिनलिल जि१८ नंद्रमदिर ॥ ॥ संगतमागे माहि तलवृत्तियनल्लिगे मुहगरे
गुम्मुंगोलनादियागे नेगट्टि१९ ग गावरिवाडमय यादगल शासनं घेरसु मर्धनमस्यमिदु मिट्ट
कोट गुणकीर्तिपडितगें भक्ति२० यिनुत्तमदानशक्वियि का उदितोदितमेने विभवास्पटमने भुवन
यकवन्धमेने संचलमागढे गगा२१ न्वयमुलिनमिदु सर्वनमस्थघागि नडयुत्तमिरलु ॥ ॥ परम
श्रीजिनशासनक्के मोदलाही मूलस, २२ निरन्तरमोप्पुत्तिरे नन्दिसंघमरिंदाउन्नय पपुवेत्तिरे सन्दर
पलगारमुल्यगणदोल गगान्वयक्कि२३ तिवणुलाल तामने वर्धमानमुनिनाथर् धारिणीचक्रटोल ॥
श्रीनाथर् जैनमार्गोत्तमरेनिसि तपाख्यातिय २४ ताल्दिदर् सज्ज्ञानात्मर वर्धमानप्रवरवर शिप्यर् महावादिगल
विद्यानन्दस्वामिगल तन्मुनिपतिगनुजर् तार्किका२५ कामिधानाधीनर् माणिक्यनंदिनविपतिगलवर शासनोदात्त
हस्तरु । तदपत्यर् गुणकीर्तिपढितर् अवर् तच्छास
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-१५५ ] गावरवाडका लेस
१०५ २६ नल्यातिकोविदरा सूरिंगलारमजर बिमलचन्दर् तत्पादामोजषट्
पदर उद्यद्गुणचंदरन्तबर शिप्यर नोडिशास्त्रा२७ थटोलु विदितरु गण्डविमुक्तरिन्नमयनन्याचार्यरार्योत्तमरु ॥
वृ॥ पोले चोल नेलेंगेट तन्न कुल२८ धर्माचारमं बिटु बेलवलदेशकडियिह देवगृहसंदोहगलं ___ सुटु कय्यले पापं बेलेडेत२९ नल्के धुरदोलु त्रैलोक्यमल्लगे पदलेयं कोरसुवं विसुङ निज
वंशोच्छित्तियं माढिद || श्रीपेर्मा३० नडि माडिसिदी परमजिनालयंगल पोलेवहिर्दा पाण्ढयचोल व
महापातकतिवुलनलिनधोगतिगिलि३. द ॥ ॥ बलिकी बेलवलदेशमं पडेददंदाधीशसामन्तमंडलिकर
धर्मद वगेटु नडेयुत्तिर्दल्लि तज्ज्ञ मनं३२ गोले कालीयगुणेतर कृतयुगाचारान्वितं लक्ष्ममंडलिकं निर्मल
धर्मवत्तलेय नष्टोद्धारमं माडि३३ टई नेलदोल नेगरतेय पोगलेय वाल्तेय पुण्यतीर्थ
मन्वानदोलिन्नविल्लेनिसि संदुदु दक्षिणगंगे तुंगम३४ दानदि तन्नटीतटटोलोप्पुत्र कक्करगोण्डमेंबधिष्ठानढोलुबराधिपति
चक्रधर नेलसिर्ट वीडिनोलु ॥ ३५ वृ ॥ शककाल गुणलब्धिरंध्रगणनाविल्यातमागल विरोधकृदन्द
बरे चैत्रमागे विपुवस्सक्रान्तियोलु पु. ३६ प्यतारके पूर्णागिरमागे चक्रधरदत्तादेशदि देशपालकचूडामणि
धर्मवत्तलेयनत्युत्साहिदि
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जैनशिलालेस- संग्रह
[ 1x8
३७ मादि ॥ क ॥ त्रिभुवनचन्द्र सुनोहरन मिर्वद्रिमि भक्तिचिंद्रे कालगचि जगत्प्रभुवनि येसदि लक्ष्मणविभु
१०६
३८ कोहं हस्तधारेयि शासनम ॥ वृ ॥ पुरढनूर बाटोलगी जिनगेहवे पूज्यमेंढक्करसर कां
३९ के बिदु वियर्सुबलमुचलिदायमा दियांगरटरुवत्त पोन्नरुवण नमकने मादि शासन ।
४० वरंथिसि कोहु धर्मगुणम मेरेट नृपमेरु लक्ष्मण ॥ जिननाथावासमं वासयरिनिभम कष्ट
४१ कालेयदुर्भावनेयिं चांडालत्रोल सुढिमि किढिसे विच्छित्तियागिढुंढें नेहने नष्टोद्वारम शाश्वतमतिशय
४२ माय्तबिन मादि तच्छासनमाचद्रार्कतार निले निलिसिटने धन्यनो लक्ष्मभूप ॥ भरसगं संसयन्ट
४३ रसर काणिकयेन्दु दायधमंद तेरेयेन्द्ररुणदिग्गलमन्दरेत्री ममनक्कि कॉटवर चांडाल६ ॥
४४ स्त्रस्ति समधिगतपश्च महाशब्दमहासामन्त भुजबलोपार्जित - विजयलक्ष्मीकान्त समस्तारिविजय
४५ दक्षदक्षिणदोर्दण्डं फत्तलेकुलरुमलमार्तण्ड मयूरावती पुरवराधीश्वरं ज्वालिनीलब्धवरप्रमाद क
४६ वर्ष जिनधर्म निर्मल मेरेकटियककार नामादिसमस्तप्रशस्तिसहित श्रीमन्महासामन्त ये
४७ बलाधिपति भुजबळकाटरमरु || || जगमेल्लं टेसेगे कयूमुगिगेम कोहरियनोन्दु कागिणियुम
४८ ना गगनदोलिर्पाटित्य यगेदु नित्तपने बेल्वलादित्यन बोलु ॥ इन्तेनिमिद बेल्वलादित्य मचर्ष ९९४ ने
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१०७
-१५.]
गावरवाडका लेख ४९ य परिधाविसवत्सरट पुष्यसुद्ध पंचमि वृहस्पतिवारदढ अण्णि___ गैरेय गंगपर्माडिय वस५० दिय दानमालेगल्लिगालव गावरिवाढह तम्म सिवटट मत्तर
खत्तमन् मण्डिगरयोलु क्रयविक्रय५. हिं यरिलयाचार्यरु त्रिभुधनचन्द्रपंडितर कालं का धारापूर्वक
माडि बिटु कोहरु ॥ ७२ स्वस्ति समस्त विनमदमरमटतटवरितशोणमाणिक्यमौक्तिक
मयूखकुंकुमलयजाम्यचि५३ तश्रीमदहंदपरमेश्वरप्रणीतपरमागमविशारदरमनवरतपरमागमो
पदेशप्रसंगरुमप्प श्रीमदु५४ दयचन्द्रसद्धान्तवर दिव्यश्रीपादपधारावकलं श्रीमत्वलात्कारग___णांबुजमरोवरराजहंसरुमप्प श्री.५ मत्मकलचंढेवरु श्रीमदाजधानीवणमण्णिगेरेय महास्थानं
श्रीमद्गंगपर्माडिय बस५६ दिगालव प्रामादि वादलु याचार्यरु चवुढगावुडमुख्यवागि
हेग्गडे महित मूवक्षुमनुष्य७७ देवपुत्रगें कोह वृत्तिय क्रम ॥ चंढब्वेय मगं हेग्गडे मल्लय्यनु
यादिनाथस्वामिगेयल्लियाचा५८ रियर्गे वेसक्रटुंब वृत्ति मत्तर (प)न्नेरहु केतगावुड याचार्यगे पाढ
पूजेयं को? ५९ सम्म सेनगणद वसटिंगे हलिगोलढ सीमेडिदु कुलुपल्लर्दि
पहुवलु मत्तटु यरुवर्ण गद्याणं ६० नाकरिढधिक कॉडवर चांडालरु॥ एम्मेय केति सेटिय साम्यक्के
मत्तरटु मने बाँदु मोगवाडगे गद्याणं ना
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जैनशिलालेख-सग्रह
[१५४६. कु कणविय सेडिय बम्मि सेटिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने बाँदु
मोगवाडगे गधाण नाकु कत्ते. १२ यदारि सेटिय साम्यक्के मत्तरंटु मने बाँदु भोगवाढगे गधाण
नाल्कु हग्वेय देवि सेहिय ६३ साग्यो मत्सरेंटु मने बोंदु मोगवाडगे गयाण नारकु गोलिय
चडि सेहिय साम्यके मत्त१४ रेंट मने वोंदु मोगवाडगे गयाण नाक बलिय संकि सेटिय
साम्याचे मत्तर? भने ६५ चोंदु मोगवाडगे गाणं नाल्कु कढल मल्लि सेडिय साम्यक्के
मचरेटु भने बाँदु मोगवाडगे गधाण ६६ नानु मरलब्वेय पुत्ररु चण्डि सेहिय साम्यक्के मत्तरेंटु मने
वादु भोगवाडगे गधाण नाल्कु माध६७ बसेहिय साम्यके मनरेट भने बाँदु भोगवाडगे गाणं नाल्कु
[इसी तरह ८३वी पक्ति तक वयसर बोप्पि सेटि, नेमिसेट्टि, गोखर बम्मि सेट्टि, मयिलि सेष्टि, गोखर बोसि सेट्टि, चदि सेट्टि, एम्मेयर चवुडि सेट्टि, होयमर चबुडि सेट्टि, केल्लर गोरवि सेट्टि, तालबम्मि सेट्टि, कडवर देवि सेट्टि, मंचल बोसि सेट्टि, वैणिल मल्लि सेट्टि, वेण्णेय नालि सेट्टि, दोड्डर केति सेट्टि, मजडिय येचि सेट्रि, गठि सेट्टि, मुरियर कलि सेट्टि, बयिसर वसवि सैट्टि, नूति सेट्टि, विधिक सेट्टि, इनके बारेमें निर्देश है।] ४३ नाटकु चिक्कि सेहिय माम्यक्के मतदु भने बोंदु सोगवाडगे
गद्याण नाक यिन्ती देवपुत्रिकरोळगे याव८४ नोवनु धम्मक्क याचार्यग विरोधियागि राजगामित्व माढिदन
प्पडे वृत्तिच्छेटसमयवाह्य ॥ ८५ स्वस्ति समस्तमशस्तिसहित श्रीमन्महाप्रधान वसुधेकयान्धर्व
श्रीरेचिदेवदनाय पडकेरे
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-१५.] गावरवाडका लेख
१०९ ८६ य श्रीकलिदेवस्वामिजिनश्रीपादार्चनेगे कपूरकुंकुमश्रीगंधसहित ___यष्टविधार्चनेगे ८. कोड केयियरकेरेयिं मूडलु मत्तर पन्नेरडम याचार्य देवपुत्रि
करुं सर्वावाधप66 रिहारवागि प्रतिपालिपरु ॥ दक्षिण ऐयावोलेयुमप्प प्रामादि
वाडक्के श्रीगंगाडि८९ य बसदिय पुरट मर्यादय धले भूवनेटु गेणु हस्त वेगोल्लदंगे
वृत्ति सल्लदु । वर्धतां जिनशा९. सनं ॥ ९. गंगासागरयमुनासंगमदोलु वाणारसि गयेयेम्बी तीर्थगलोलात्म
कुलद्विजपुंगवगोकुलमनलिटरिन्तिदनलि९२ दरु ॥ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुंधरा । षष्ठिवर्षसहस्राणि
विष्टायां जायते कृमि.॥ ९३ याचार्यर येटिंगनागि बेसकेस्टुव वृत्ति कुरिवर केते ९४ न्दु ॥ याचार्यरु खुड गवुडन हेसरिटक्के मूगवाड रन'" ९५ लद सीमेयलु कोड वृत्ति मसरु वॉदु यदु होलगेरे ।
[ इस बृहत् शिलालेखके चार भाग है। पहले भागमें (पक्ति१-४३) अण्णिगेरे नगरके गंगाडि जिनमन्दिरका वर्णन है । यह मन्दिर रेवकनिमेडिके पति बूतुगके स्मरणार्थ बेल्बल प्रदेशके शासक गगपेडिने बनबाया था तथा उसने उसे मूडगेरी, गुम्मूंगोल, इट्टगे और गावरिवाड ये चार गांव दान दिये थे। यह दान मलसघनदिसंघ-बलगार गणके गुणकीर्ति पण्डितको दिया गया था। गणकीतिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी-गग
१ रेकनिर्मडि राष्ट्रकट सवादकृष्ण (तृतीय) की बहन थी जो गग राजा ऋतुगको न्याही गयी थी। गंग पैाडि इनके पुत्र मारसिंह (तृतीय) (सन् १६०७४) अथवा पौत्र रानमल्ल (चतुर्थ ) होंगे।
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११.
जैनशिलालेस-संग्रह
[ १५५वशके गुरु वर्धमान - विद्यानन्द स्वामी ~ उनके गुरुवन्यु ताकिकार्क माणिक्यनन्दि - गुणकीति - विमलचद्र-गुणचन्द्र - गण्टविमुक्त - उनके गुरुबन्धु अभयनन्दि । कालान्तरसे चोल राजाने वेलवल प्रदेशपर आक्रमण किया तब इस मन्दिरको नष्ट-भ्रष्ट किया किन्तु शीघ्र ही इम चोल राजाको अपने पापका प्रायश्चित्त करना पड़ा क्योकि चालुक्य सम्राट् लोक्यमल्ल सोमेश्वर (प्रथम ) द्वारा वह युद्ध में मारा गया। तदनन्तर बेलवल प्रदेशके कई शासक हुए जिनने इस मन्दिरकी और कोई ध्यान नहीं दिया। चालुक्य सम्राट् भुवनकमल्ल सोमेश्वर (द्वितीय) के समय वेलवल तथा पुलिगेरे प्रदेशका शासन महामण्डलेश्वर लक्ष्मरमको सौंपा गया। उसने इस मन्दिरका जीर्णोद्धार किया तथा उसके लिए मुनि त्रिभुवनचन्द्रको समुचित दान दिया। इस दानकी अनुज्ञा देते समय सम्राट् सोमेश्वर तुगभद्रा नदीके तीरपर कक्करगोटके सेनाशिविरमे थे तथा शक ९९३ वर्ष चल रहा था।
इस शिलालेखके दूसरे भागमें बेल्वलके अगले शासक काटरसका उल्लेख है जो मयूरावती नगरका स्वामी था। तथा ज्वालिनी देवीका उपासक था। इसने उपयुक्त मन्दिरको पाक ९९४ में कुछ दान दिया। यह दान भी त्रिभुवनचन्द्रको दिया था।
तीसरे भागमें इस मन्दिरके व्यवस्थापक उदयचन्द्रके शिष्य सकलचन्द्रका उल्लेख है। इनने मन्दिरको जमीन जोतनेके लिए मल्लय्य आदि तीस बेष्ठियोको सौंपी थी।
चौथे भागमें महाप्रधान रेचिदेव - द्वारा बट्टकरे नगरके जिन तथा कलिदेवकी पूजाके लिए कुछ जमीन दान दिये जानेका उल्लेख है।
१. यह राना चोल राजाधिराज होगा।(सन् १०१-५२) २. यह युद्ध सन् २०५२ के भारम्भमें हुआ था। ३. पूर्वोक्त गुरुपरम्परासे त्रिभुवनचन्द्रका सम्बन्ध अगले लेखमें स्पष्ट किया है।
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-१५५] अण्णिगेरिका लेख
१११ यह शिलालेख अन्तिम रूपसे मन् ११५० के करीव लिखा गया होगा।]
[ए० इ० १५ पृ० ३३७ ]
अण्णिगेरि (मैसूर) शक ९९३-६४ = सन् १०७१-७२, कन्नड [यह लेख अक्षरश. गावरवाड लेखके पहले दो भागो-जैसा ही हैसिर्फ चार लोक इसमें अविक है। यथा-(१) मगलाचरणमें-जगत्त्रितयनाथाय नमो जन्मप्रमापिने। नयप्रमाणवाग्रश्मिध्वस्तध्वान्ताय गान्तये ॥ (२) महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसके वर्णनमें-मले यंतो (ह) लतुलिदं मलेयोल् मामलेव मलेपरं मग्गिसिदं मलेयेलु कोपिर्दुमनलेद जलनिधियोलें प्रतापियो लक्ष्म ॥ (३-४) गुणकीति पण्डितको गिष्य परम्पराके वर्णनमेंकृतकृत्यरभवनन्दिगल तनूजर सकलचन्द्रसिद्धान्तिकरप्रतिमर् सर्वागमलान्वितगण्डविमुक्तदेवरा मुनिशिष्यर् ।। एनिसिद गण्डविमुक्तर तनूभवर चरणकरणपदविद्यापावन मन्त्रवाददो त्रिभुवनचन्द्रमुनीन्द्ररल्ते बुवजनवन्धर् ।। इससे अभयनन्दि - सकलचन्द्र - गण्डविमुक्त - त्रिभुवनचन्द्र इस परम्परा का पता चलता है। इस लेखमें गावरवाड लेखके अन्तिम दो भाग नहीं है । अतः प्रतीत होता है कि यह शक ९९४ में ही खुदवाया गया होगा।]
[ए० ई० १५ पृ० ३४७ ]
- हैदरावाद म्युजियम (आन्ध्र )
सं० ११ (२) ८ = सन् १०७२, संस्कृत नागरी [इस मूर्तिलेखमें वीतरागको उपासिका रावदेवी-द्वारा देवागना तथा लोणीपतिकी मूर्तियोकी स्थापना किये जानेका उल्लेख है । समय संवत्
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जैन शिलालेस- सग्रह
११ (२) ८ है । इसका तीसरा अक कुछ अम्पष्ट है । ]
११२
[ १५७
[रि० ४० ए० १९४६-४७ क्र० १५३ ]
१५७ लक्ष्मेश्वर (मैसूर)
शक ९९६ - सन् १०७४, काढ
[ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लके ममय चैत्र शु० ८, रविवार आनन्द सवत्सर, शक९९६के दिन लिसा गया था । मणल कुलके महामामन्त जयकेसियरसने पुरिगेरेके पेर्माटिवसदिके दर्शन किये तथा मूलसंघ-बलाकारगणके गण्डविमुक्त भट्टारकके गिप्य त्रिभुवनचन्द्र पण्डितके निवेदनपर उसे पुरके रूपमें परिवर्तित किया ऐसा इनमें उल्लेख है ।]
[रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० २९ १० १६३]
१५८ हनगुन्द (मैसूर)
शक ९९६ - सन् २०७४, कन्चट
[ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लदेव सोमेश्वर (२) के ममय पौप शु० ५, रविवार, शक ९९६, आनन्द सवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिया गया था । हममें सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके अरुणदिभट्टारकके शिष्य आर्यपण्डितको पोन्नुगुन्दकी अरसर वसटिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान श्रीकरण देवणय्य नायक, पेगंडे नाकिमभ्य, पेगंडे रेवणय्य, करण आयुचप्पय्य, तथा पसायित काटिमय्यने सर्व प्रघानी द्वारा की गयी जिन पूजाके अवसरपर दिया था । उस समय बेलवल तथा पुलिगेरे प्रदेशोपर महामण्डलेश्वर सग्रामगरुड लक्ष्मरस का शासन चल रहा था ।] [मूल कन्नडमें मुद्रित ]
[ सा० ६० ६० ११ पृ० १११]
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-१६१
मोमापुर माटिक लेख
११
११३
सोमापुर (धारवाड, मैमूर)
शक ९९६ = सन् १०७४, कन्नड [ यह लेख चालुक्य गजा भुवनकमल्लके समय शक ९९(E), आनन्द संवत्सर, पुष्य शु० ५, बुधवारका है। इसमें किसी सेट्टि-द्वारा एक जैन वसदिको दिये गये दानका उल्लेख है। ]
[रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई० ७७ पृ० १२६]
लक्ष्मेश्वर (मिरज, मैसूर) शक ९९९-१००० =सन् १०७७-७८, काड [ इस निषिधिलेखमें सूरस्थ गणके श्रीनन्दि पण्डितदेव तथा उनके बन्धु भास्करनन्दि पण्डितदेवके समाधिमरणका उल्लेख है । पुरिकर नगर (लक्ष्मेश्वर ) के आनेसेज्जेवसदिमें इन्होने सल्लेखना ली थी । मृत्युतिथियाँ क्रमश. आपाढ शु. १२, बुधवार, पिंगल संवत्सर, शक ९९९ तथा चैत्र अमावास्या, रविवार, कालयुक्त सवत्सर, शक १००० इस प्रकार दी है।]
[रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई ६ पृ० १६१]
१६१ अक्कलकोट (सोलापुर, महाराष्ट्र)
चालुक्यविक्रमवर्ष सन् १०७८, कन्नड [इस लेखमें एक जन मठके लिए कुछ उद्यान, भूमि आदिके दानका उल्लेख है । तिथि पुष्य व० २, रविवार, उत्तरायण सक्रान्ति, सिद्धार्थ सवत्सर, चालुक्य विक्रम वर्ष ४ ऐसी दी है। (वस्तुत उस वर्षका नाम कालयुक्त संवत्सर था।) चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य ६ के समयका यह लेख है।
[रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ९६ ५० ३५]
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११४
जैनशिलालेख-सग्रह
[१६२
कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्द्र)
चालुक्यविक्रमवर्ष ६ सन् १०४०, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्लके राज्यवर्ष ६, पुष्य ब० (६) गुरुवार, दुर्मविसवत्सरका है। इस समय महामण्डलेश्वर जोयिमय्यरसको पली नाविकन्वेने कोण्डकुन्देयतीर्थमें चट्टजिनालयका निर्माण किया तथा उसे कुछ भूमि दान दी थी।]
[रि० सा० ए० १९१५-१६ क्र. ५६५ पृ० ५५]
१६३ मलनावर ( धारवाड, मैसूर)
शक १००३- सन् १०८१, कन्नड [यह लेख शक १००३ का है। कदम्ब राजा गोवलदेवके समय मलनावरके जैन वसदिके लिए नरसिंगय्य सेट्टि द्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है ।
[रि० सा० ए० १९२५-२६ क्र. ४७० पृ० ७८]
१६४
बनवासि ( मैसूर)
पल १०८१, कन्नड [ यह लेख कादम्बचक्रावति वीरमके राज्यवर्ष १२, दुर्मति संवत्सरमें कार्तिक कृ० ५, सोमवारके दिन लिखा गया था। इसमें तिप्पिसेट्टि सातय्य की पत्नी भोगवेके समाधिमरणका उल्लेख है। इनके गुरु देसिगण-पुस्तकगच्छ -कुण्डकुन्दान्वयके सकलचंद्रभट्टारक थे।]
[रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० १४३ पृ० १७२]
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-१६५]
लक्ष्मेश्वरका लेख
१६५
लक्ष्मेश्वर (मैसूर) चालुक्यविक्रमवर्ष ६ = सन् १०८१, कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावादामोघलांछन()जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य
शासनं जिनशामनं ॥३॥ २ स्वस्ति समस्वभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम महाराजाधिराज
परमेश्वर परममट्टारकं सत्यात्रयकुलतिलकं चालुक्या३ भरणं श्रीमत्रिभुवनमल्लदेव वृत्त। धरैयं वाराशिपर्यन्त
मनवयदि दुर्विनीतावनीपालर वेरं कितुं नीरोल गलगलनलेटो४ दाढि मुन्निन्तु चक्रेश्वररार् निष्कंटकं माडिदरंने महि निष्कंटक माडि चक्रेश्वररत्नं सन्ततं पालिसिदनतिबलं विक्रमादित्यदेवं ॥२॥
अन्तु श्रीम५ त्रिभुवनमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाचंद्रतारं सलुत्तमिरं ।। तदनुजं स्वस्ति समस्तभुवनसंस्तूयमान
लो६ कविल्यातं पल्लवान्वयं श्रीमहीवल्लम युवराज राजपरमेश्वर
वीरमहेश्वरं विक्रमामरणं जयलक्ष्मीरमण शरणागतरक्षामणि
• क्यचूडामणि कदनत्रिनेत्रं क्षत्रियपवित्रं मत्तगजांगराज सहज
मनोज रिपुरायरेकारनण्णनककारं श्रीमतत्रैलोक्यमल्ल - वीरनोलंब पल्लवपेर्मानडि जयसिंहदेव ॥वृत्ता परचक्र-कालचक्र नलनहुपनृगाचादिभूपाळकालोचरितं चालुक्य-चूडामणि सहनमनोनं नतारा
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११६
जैनशिलालेग्न-सग्रह
[ १६५
९ विभूमीश्वरसधातोत्तमागाभरणमणिगणज्योतिरतंसमास्य चरणं सामान्यने भूपरोलपगत विद्विट्कदव नोय ॥ ३ वचन ॥ एनिमिट पोगल्लंग नेगल्लंग नलय
१० निसि ॥ ॥ श्ररसुगुणगल मंयूवेत्तिरं पगे मिगदिने जनानुराग पिरिदा गिरं कीर्तिलतिके निमिरुत्तिरं वीरनोलयन घनता रिक ॥ च॥ पुरहु[ भू]नूल्म बनवामंपनिर्झामरसु
११ म सान्तलिगेमा सिरमुम कहर मासिरमुमं सुखसंकथाविनोडदि प्रतिपालिसुन्तमिरे । तत्पादपद्मोपजीवि । समधिगतपंचमहाशब्द महासामन्ताधिपतिं महाप्र
१२ चण्डडण्डनायक रिपुमस्तकन्यस्तसायकं साहित्यविद्यांगना भुजग सरस्वती मुसकमलभृगनाराधितहरचरणस्मरणपरिणतान्त. करण | सरस्वती कर्णाभरणं
१३ श्रीमन्महाप्रधान मनेवेगं दण्डनायकनरयमस्य ॥ कंद्र ॥ सकलकलावा ब्रह्मकुलाकं वत्पगोत्रग्नाकरशीतकरं किरियने भुवनप्रकरटोल
१४ रिमृत्युभूपनेरेगचभूपं ॥ ५ वृ ॥ एलेयालु सादृश्यमप्प देरेगविभुंगे विणुपिंगे गुणपिंग ति पिंगले पारावारमिंहाचलमचसुरणि रामनि कृर्णानि सचलम
१५ ष्टिमीरमगुरुवयागिलवारथ्यं वेदले बेरोन्दन्धि बेरोन्दनिमिषनगमंचानुमुटेप्पो डवकुं ॥ ६ कट ॥ परिकिपोढे दस्तिमशकान्तरमेनिपुडु तन्न
१६ गुणट नेगल्टर गुणदन्तरमेने गुणेषु को मत्सर एव बुधोक्त एरंगविभुगे सदुक्तं ॥ ७ सद्मलकीर्तिवस्करि दिशान्तरमं तेरपिल्लदन्तु पर्विदुदु पराक्रमं
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-१६७ ] अरलीवाटिका लेख
१२१ तथा नयसेनके गिप्प नरेन्द्रमेन (द्वितीय) को पाप कृष्ण :, शुक्रनगर, उत्तरायणमंक्रान्तिके अवसरपर कुछ दान दिया। इसके वाद लेखम दिनकर, उनके पुत्र राजिमय्य तथा दूडम, दूडमकी पत्नी एचिकन्वे तथा पुत्री हम्भिकच्चे, हम्मिक्वेका पति मरनय तथा पुत्र बैद्य कनप एव कनपके पुत्र इन्दप, ईश्वर, गजि, बलिदेव, नादिनाय, शान्ति, एवं पार्श्वका वर्णन है। मभवन. इन लोगोंकी प्रार्थनापर दोणने उक्त दान दिना था।]
[ए० इ० १६ पृ० ५८]
अरसीवीडि (विजापुर, मैमूर) चालुक्यविक्रम वर्ष १० = मन् १०८५, कन्नड [ इन लेखकी तिथि आषाढ शु. १, बुधवार, क्रोधन नवत्सर, चालुक्य वर्ष १० ऐमी है। इस समर मुकवेग मन्तर वर्मणने विक्रमपुर (वर्तमान मरमीवीडि) स्थित गोणद वेडगि जिनालयके ऋपि-अजिंकामोको बाहारदान देनेके लिए कुछ करोका उत्पन्न दान दिया था। मिन्द वंशके सिन्दरसके पुत्र वर्मदेवरसके मवीन प्रान्तीय शासकके रूपमें मुंकवेगडे नियुक्त था।] [मूल लेख कन्नडम मुद्रित ]
[मा० इ० इ० ११ पृ० २३९]
मरुत्त्वक्कुडि ( तंजोर, मद्रास)
तमिल, सन् १०४६ [ यह लेख ऐरावतेश्वर मन्दिरके आगे मण्डपको दक्षिणी दीवालपर है। त्रिभुवनचक्रवति कुलोत्तुंग चोलदेव, जिसने मदुरा जीतकर पाण्डय
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१२२ जैनशिलालेस-सग्रह
[१६८राजाका शिरच्छेद किया था के १६३ वर्षमें यह लेख लिखा गया था। इसमे जननाथपुरमके दो जैन मन्दिर चेदिकुलमाणिक पेरुम्बल्लि तथा गगालसुदर पेरुम्बल्लिका उल्लेख है।]
[इ० म० तजोर १००३ ] ११८ दोणि ( धारवाड, मैसूर) चालुक्यविक्रम वर्ष २० = सन् १०९६, कबड [ यह लेख फाल्गुन शु० १३ गुरुवार, चालुक्यविक्रम वर्ष २० के दिन लिखा गया था। सम्राट् त्रिभुवनमल्ल (विक्रमादित्य पष्ठ ) के राज्यका यह लेख है। इस समय यापनीय सघ-वृक्षमूल गणके मुनिचन्द्र विद्य भट्टारकके शिष्य चारकीति पण्डितको सोविसेट्टि द्वारा एक उद्यान दान दिया गया था। [ मूल लेख कन्नड मुद्रित ]
[सा० इ० इ० ११ पृ० १६९] १६६-१७० तुम्बदेवनहल्लि (मैसूर) चालुक्यविक्रम वर्ष २१ = सन् १०९६, कन्नड , श्रीमदेरेयंगदेवर असबब्बर(लि)माडिसिद बसदि मंगल महा श्री २ स्वस्ति समस्तसुरासुरमस्तकमणिमकुटरश्मिरजितचरणप्रस्तुत
जिनेन्द्रशासन३ मस्तु चिर सकलमन्यचन्द्रजनाना (१) मदमस्तु जिनशासनाय
समजतां प्रति४ विधानहेतवे भन्यवादिनदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटी
यसे । (२)
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-१७०] तुम्बदेवनहल्लिका लेख
१२३ ५ जयवर्म मुदिन्हें इल्लु नियतं पट्टलिगेय राज्यलीलेयिनाल्
दुन्नतिथि मनं६ गोलिसि विद्विष्टब्रजक्यद भीतियनित्तायमनप्पुक्य दु चलम
कैकोण्डु लोकप्रमि७ विद्युतं माढिदनावगन् निले क्टम्बाम्नायविरयातिय ॥(३)
श्रीमत्कदम्बवंशललामा८ वनिनायरोलग रणकिक्षितिप भीमपराक्रमनेनिसिद्धर्ना महियोल
अरातिनृपनयोद९ यहिंद ॥(४) आवन मगनमलगुणोपेतनतिप्रवलजलदघनपवन
ननिप्पानतय१० शोविलासचिनूनतेगेडयागि नंगल्ट पलि हृदुवनृप ॥(१) तत्त
नयनतुलबलनुदित रिपु११ क्षितिपकृधरवन्न धीरोदातनेने नेगल्दनकुटिलचित्त पोचायिनूत
पूनं व्रत ॥(6) १२ आतंगे पुहि दलबदरानिमहाभुजरनिरिद गेमिनोलुबर्वीतलमै
पोगले तोरिटनान१३ तमिवकीर्ति नोमलकणं चिण्ण ।।(७) पुने नेगल्द चिण्णनृपतिगं ____ अनवद्यलतागि सुग्गियध्वरसिंग१४ मुर्विनटोमगे पुढे पुढि तनयननिप्रकरविशत्यगनेरेयग अक्कर
नेगल्ट नृ१५ परत्ननालवरनवे? मीतियिं वन्दु पोगले तन्ननवर पष्टियोडयनं
परगिक्कि कादुनिन्दालवरनं वगेयद्१६ आन्तरिसेनेयनोडिमि गेल्टर्मिनेसकर्मि सिन्धुजंग मिगिलुढग्र___वलावलेपनं भुजादण्डनी नन्निमार्तण्डठेव (6) १७ मलेदिढिरनान्त चोलिकदलमत्तिढोडान्नुमटिरटेरयंगन ढोल
दलवनेवागलवुढो जलढवननेयढे
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जैनशिलालेख-सग्रह
[१७०१८ कादुकलिपिट चलम (९) श्रन्तु नेगलदेरंगनृपतिगनन्तसुसास्य
देयेनिप्प येषाबिकेग कन्तुवेनिप्प १९ विणं कान्त पुटिनुदारतंजीनिलय ॥(30) पुढलोड निन्नये
पेसरिपरी जगढ मनुजरेन्दोडे पेसरों२० दिहलमादडे कोल्गु पहलिगेय चिण्णनेम्ब मयरसविंद ॥(१) __आतगे बुद्विद विख्यातितशितकीर्२१ ति नेगल्ट गण्डवरण्ड भूतलक कल्पवृक्षसमोपेतनेनिप्प दानि
येरेगमहीश । (१२) २१ स्वस्ति समधिगतपचमहाशब्द महामण्डलेश्वरं बनवासिपुर
घराधीश्वरं कादम्ब२३ चक्रेश्वर नुढारमहेश्वर नुमयवलगण्डं ननिमार्तड तनगिल्लदीव
कर्गसहादे२४ व मानिनोमनोहर हरचरणशेखरं हरिपादसरसोरहोस
सरस्वतीक२५ र्णावतसं विकलकुछनृपतिहृदयसंतापकर विवेकविद्याधरं भृगुमता२६ चार्य मन्दरधैर्य कादम्बकुलकमलविकाशनादित्यं विनातिराजता
रागणतरुणादि२७ त्यं विक्रमप्रक्रमकिशोरकण्ठीरवं कादम्बकण्ठीरवं मागधिकमा
निनीमदहरिष२८ लक लाटवधूटीमाललीलातिलक विरुदत्रिनेनंहयशालिहोत्रंगितु२९ चिडव विल्लरपेण्डिरगण्ड गण्डतरण्ड भरिविरुदरबायोले सुरि
गेयं किरिष ३० व दोडकवडिव गीतप्रगीतं गेयविनोदं निजकुलोतुंग श्रीमदेरे
यगढे३. व स्थिरं जीयात् ॥ कन्द ॥ गंगेगलगल नोरेग सिंगल बेल
पिंगमोदवलडकिलवेलपि
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-१७.]
तुम्बदेवनहल्लिका लेस
१२५ ३२ संगलिसि तीविदत्रयंगन जसमखिलभुवनांतरदोलु। नटनिट
लेक्षणा३३ ग्नि नृगणंगणं उज्वलकीर्तिपाण्दुरभू कुरुलु जडेयागे जगक्के ३४ देवनागरिविल्लत्रिनेत्रनेमगी • कोण्डकुन्दान्वयो३५ पन्ने विख्याते टेसिगे गणे रविचन्द्राल्यसै यमनियम३६ स्वाध्यायपराणेयरप्प माचवेगन्तिय तावरेयरेय केलग३७ ण आडणमण्णं धारापूर्वक कोहर् चालुक्यविक्रमकालद ने
धातुसवस्सरद कार्तिक न३८ न्दीश्वरदष्टमियन्दु मंगलमहाश्री स्वदत्ता परदां वा यो हरत
वसुन्धरां षष्ठिवर्ष३९ सहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि ।।
[यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके निर्माणके समयका है। यह वसदि एरेयंगदेवकी रानी असवब्बरसि द्वारा बनवायी गयी थी। लेखमें एरेयगका वंशवर्णन इस प्रकार दिया है-कदम्ब कुलमे रणकि राजा-तत्पुत्र हृदुवतत्पुत्र व्रत-तत्पुत्र चिण्ण-तत्पुत्र एरेयंग-तत्पुत्र चिण्ण २-तत्पुत्र एरेयग२॥ इस मन्दिरके लिए कोण्डकुन्दान्वय-देसिग गणके रविचन्द्र सै(दान्तदेव)के उपदेशसे माचवेगन्ति द्वारा कुछ भूमि दान दी गयी थी। लेखकी तिथि कार्तिककी नन्दीश्वर-अष्टमी (शुक्ल ८), चालुक्य विक्रम वर्ष २१, धातु संवत्सर इस प्रकार दी है। __ इसी मन्दिरको एक प्रतिमाके पादपीठपर ११वी सदीको लिपिमें निम्न वाक्य खुदा है
बस(दिगे) वासवुरदे विदृ ग २ भत्त ५० अर्थात्-इस वसदिके लिए वासवुर ग्रामके उत्पन्नसे २ गद्याण (मुद्राएं) और ५० भत्त (चावलके परिमाण) दान दिये गये है। ]
[ए. रि० मै० १९३९ पृ० १४५-१५२]
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१२१
जैनशिलालेस-संग्रह
[१७१
इनगुन्द (विजापूर, मैसूर)
RE, 1वीं सदी उत्तराध [इस लेखमें चालुक्य सम्राट् त्रिभुवनमल्लदेव (विक्रमादित्य पष्ठ) का उल्लेख है। तिथि शक ९ दी है। मूलसंध-देशीय गण-पुस्तक गच्छकुन्दकुन्दान्वयके ( इन्द्र)गदिके शिष्य वाहुबलि आचार्य द्वारा एक जिनमन्दिर बनवानेका तथा उस मन्दिरके लिए कुछ भूमिदान प्राप्त करनेका इसमें उल्लेख है। [ मूल लेख कन्नडमें मुद्रित ]
[सा० इ० इ० ११ पृ० १४१ ]
तोललु ( मैसूर)
काह, वीं सदी उत्तरार्ध १ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर "त्रिभुवनमल्ल तलका
२ क्रमाडि बिहन्दुः ३ नसुविरि ५-७ (ये पक्कियाँ विस गयी हैं)
८ स्वस्तिश्रीमतु चोलक बसटिगेनाहु . ९ . • १० हिरिय मुद गनुण्ड · गनुण्ड बिलग "कुड बलवनड' "धुण्ड दूरवर भोक्कल १२ "उत्तराण संक्रान्तियन्दु नबिलू. १. नेमिचन्द्रपण्डिवा धारापूर्वक माडि कोहरु आ१४ नविलोलगे आवनागि-बदुकववनु "हण १५ चेन्दु हिडिसिव""हन्नोन्दु १६ तलेयं नरकटल्लिलिवर गगेयतडियलि कविळे
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१२७
-१७१] तिरुनिडकोण्डै श्राढिके लेख ५७ यं ब्राह्मणर नोसिट फलमन् एखवरु १८ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां प१९ टिषसहस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि. ।।
[इस लेखमे तोललके जिनमन्दिरके लिए नेमिचन्द्र पण्डितको नविलूर ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान हिरियमुद्दगोण्ड, विलिगोण्ड तथा अन्य ५२ निवासियो द्वारा दिया गया था। लेखमे प्रारम्भमें त्रिभुवनमल्ल (विक्रमादित्य पष्ठ )के किसी माण्डलिकका उल्लेख है।]
[ए. रि० म० १९२७ पृ० ४४]
१७३ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास)
तमिल, वीं सदी उत्तरार्ध [ इस लेखके प्रारम्भमें कुलोत्तुंग चोल (प्रथम)को ऐतिहासिक प्रशस्ति है। राजेन्द्रशोलचेदिराजन् द्वारा देवमन्दिरमें दीपके लिए कुछ धान अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेख है। उडयार् मल्लिपेणका उल्लेख है जो स्पष्टत. कोई जन आचार्य थे। लेख चन्द्रनाथ मन्दिरके मुख्य द्वारके पास खुदा है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० ३०१ पृ० ६५ ]
१७४
ऊन (मध्यप्रदेश)
वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस स्थानमें कई जैन मन्दिरोंके ध्वस्त अवोप है। इनमें एक मन्दिरके एक छोटे-से लेखमें मालवराज उदयादित्यका उल्लेख है । अत यह मन्दिर ११वी सदीका वना है यह स्पष्ट होता है ।]
[रि० मा० स० १९१८-१९ पृ० १७ ]
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१२८
जैनशिलालेख-सग्रह
[१७५
१७५ सागरक? (मैसूर)
११वीं सदी, कन्नड १ श्रीमद्राविलस
२ धद पारंगला३न्वयट नन्दिगण
४ ह शान्तिमु५ निगल शिव्यसन्त
६ ति श्रीवादिरा• जदेवर शिष्यह
८ श्रीवर्धमानदे९ वरु होयसल
१० कारालियदलु ११ भप्रगण्यर स
१२ न्यसनदि मुदि(मि) १३ दरवर सध
१५ मा कमलदे. १५ वरु निसिधियं १६ निरिसिढर्
[इस लेखमे द्राविल सघ-अरुगल अन्वय-नन्दिगणके शान्तिमुनिकी परम्पराके वादिराजदेवके शिष्य वर्षमानदेवके समाविमरणका उल्लेख किया है। वर्षमानदेवके गुरुवन्धु कमलदेवने उनको यह निसिषि स्थापित की थी। वर्षमानदेवको होयसल राज्यम प्रमुख कार्यकर्ताका स्थान प्राप्त था। लेखकी लिपि ११वी सदी की है।]
[एरि० मै० १९२९ पृ० १०८]
वेणगि (जि. बेलगाव, मैसूर)
वों सदी, कन्नड [ इस लेखकी लिपि ११वीं सदीकी है । लेखके समय ( रट्ट वंशके) कार्तवीर्य (द्वितीय)का शासन कण्डि ३००० प्रदेश पर था। इसे जिनेन्द्रपादसरोजभृग तथा सेननसिंग कहा है।]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० ऋ० ८४ पृ० २४७]
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१२९
-१७९] चिकहनसोगे भादि के लेख
१७७-१७८ चिक्कहनसोगे ( मैसूर)
कन्नड, ११वीं सदी [यह लेख आदिनाथमूर्तिके पादपीठपर है। इसमे हनसोगेके तीर्थवसदिकी स्थापना रामचन्द्र-द्वारा की जानेका तथा कालान्तरमें शक, नल, विक्रमादित्य, गंग एवं चंगाल्ब राजाओद्वारा उसकी सहायताका उल्लेख है। प्रस्तुत लेखके समय नागचन्द्रदेवके शिष्य समयाभरण भानुकीर्ति पण्डितदेवने इस वसदिका जीर्णोद्धार किया था। इसी पादपीठके दूसरे लेखमें जयकीति भट्टारकके शिष्य बाहुबलिदेव-द्वारा बसदिके निर्माणका उल्लेख है। इन लेखोका समय ११वी सदी प्रतीत होता है। ये आचार्य मूलसघ देसिगण-पुस्तकगच्छके प्रमुख थे।]
[ए० रि० मै० १९१३ पृ० ५० ]
१७६ चिकमगलूर (मैसूर)
कन्नड, ११वीं सदी १ स्वस्ति श्रीमतु वूचब्वे२ गन्तियर सिष्य नेचटिम३ ताय निसिधिगेय नि. लि मज वरेट ॥
[ यह निषिवि लेख बूचब्बेके समाधिमरणका स्मारक है जो उसके शिष्य नेचतिमतायिद्वारा स्थापित किया गया था। इसकी लिपि ११वी सदीकी प्रतीत होती है।]
[ए० रि० म० १९३२ पृ० १६२]
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जैनशिलालेस-सग्रह
[१८०१८० कोप्पल ( रायचूर, मैसूर)
कन्नड, 11वीं सदी [यह लेख ११वीं सदीकी लिपिमें है। इसमें कोण्डकुन्द अन्वयके मलधारिदेव तथा अन्य आचार्योका वर्णन है। एक गृहस्थ जैनका भी वर्णन है।]
[रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १९८ पृ० ३७]
१८१ मदविलगम् (वेल्लारी, मैसूर)
कन्नड, 11वीं सदी [यह लेख ११वी सदीकी लिपिमे है। किसी जैन मन्दिरके लिए दानशाला, उद्यान आदिको व्यवस्थाका इसमे उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२४-२५ क्र० ३९२ पृ० ५७]
१८२ वेलर ( हासन, मैसूर)
1वीं सदी, कन्नड . युतं जिनंदमगुणि२ दर्प""सले महे.
४ नेटिव में. ५ पूषांकमन् एवं माणद "य ६ महीतलकति मुददि७ विलोक दुध बोध "भाग्य...
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- १८३ ]
हरण आदि के लेख
८ न्तं द्विविजविनवमं मन्द नामावि वम्मं ॥ पतिहियवृत्तियां९ विन् अप्रतिमन् एनल दिविज पद्मं महीपनियोढने १० कूडि पोक्कं चतुरं मामावि बम्मन' 'आ नेगल्द भूमि
११ य मुन्नाल्डगं मले लाक्षियं माध्य देनेवाल्डनोडने सग्गम१२ नू आल्ड व्यन्दु चम्म
[ इस लेखमें मगनावि वम्मं नामक व्यक्तिके देहत्यागका वर्णन है | अपने स्वामीको मृत्यूपर खेद व्यक्त करनेके लिए उम्रने सम्भवत देहत्याग किया था । यह प्रथा होयमल राजाओंके नमय रूढ थी । लेखकी लिपि ११ वी सदीकी प्रतीत होती है । ]
B
[ ए०रि० मं० १९४३ पृ० ५९ ]
१८३
हहण ( मैनूर )
१२वीं सदी-प्रारम्भ, कन्नड
[ इस लेखम होननन राजा बल्लाल १के समन मरियाने दण्डनायक द्वारा एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । आचार्य शुभचन्द्रका नी इसमें टल्लेख है । ]
१८४
१३१
[ ए०रि० मं० १९१८ पृ० ४५ ]
चिकमगलूर (मैसूर)
शक १०२० = सन् ११०१, कन्नड व १०२० नेय
१ सच्चन
२ विक्रमसंवत्परद फाल्गुन शु (8) ३ सोमवारदंड द - विन
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१३२ जैनशिलालेस-संग्रह
[18४ सनंगेन्दु दिवक्के सुन्दरब(र)सद ५ मि मालेगबगन्धियप्परो "वि(ने) ६ मर्म माडि मिसिदिगेय माडि ७ अवर गुड जगमणचारिथ८रेद
[ यह लेख फाल्गुन शु०४, सोमवार, शक १०२२ विक्रमसवत्सरमें लिखा गया था। एक व्यक्तिके (जिसका नाम लुप्त हुआ है) समाधिमरणके बाद उसके सहाध्यायो मालेयन्त्रेगन्ति-द्वारा इस निषिधिकी स्थापना का इसमे उल्लेख है। उसके शिष्य जगमणधारिने यह लेख उत्कीर्ण किया था।
[ए० रि० म० १९३२ पृ० १६१]
१८५
टोक (राजस्थान) सवत् ११५८ %= सन् ११०२, सस्कृत-नागरी [इस मूर्तिलेखमें आलाक नामक व्यक्तिका उल्लेख है । तिथि में (शाख) शु०७, सवत् ११५८ ऐसी दी है।]
[रि० इ० ए० १९५४-५५ ० ४७१ पृ. ६९]
१८६ होपुर (जि. वेलगांव, मैसूर)
शक १०३० = सन् ११०८, काढ [ इस लेखकी तिथि सोमवार, पीय शु० ५, शक १०३०, सर्वधारि सवत्सर, उत्तरायण सक्रान्ति ऐसी है। ( रट्ट वंशके ) लक्ष्मीदेव-द्वारा एक बसदिके लिए राजधानी वेणुपुरसे कुछ जमीन दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। यह बसदि लक्ष्मीदेवने ही बनवायी थी।]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० ऋ० १५ पृ० २४१]
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-१८८] मुढिगोण्डम् श्रादि के लेस १३३
१८७ मुडिगोण्डम् ( मैमूर )
शक १०३ (१)=सन् १९०९, कन्नड [इस लेखमें मुडिगोण्डचोलपुरके नगरजिनालयको हदिनाडुका एक गांव दान दिये जानेका उल्लेख है। यहाँको मुख्य मूर्ति चन्द्रप्रभम्वामीको यो। तिथि गक १०३ (१)]
[रि० सा० ए० १९१० ऋ० १० पृ० ५४ ]
श्रवणनहल्लि (मैमूर)
१२वी मही-पूर्वार्ध, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याबाटामोघलांछ२ नं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासन स्वस्ति ३ श्रीमन्महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल तल१ कादुगोण्ड मुजबलवीरगंग विष्णुवर्धन होयम५ लवर पिरियरसि चन्तलदेवियरु त्रिभुवन तिल६ तीथंट वीरकोंगाल्वजिनालय७ ८ देवर अगमोगक्क रिपियराहारदानक्कं त८ म्म बप्प पृथ्वीकाँगाल्व देवर वग बलिवलि वि९ मन्दगेरेय अतियोलगे कावनहल्लिय तम्म १० तम्म दुइमल्लदेवनु वायु इन्दु श्रीमूलमघ ११ देमिगगण पुस्तकगच्छ कोण्डकुन्ठान्वयट श्रीमेघ१२ चन्द्रविद्यदेवर शिप्यरु प्रमाचन्द्रसिद्धा (न्तदेव-) १३ र कालं कर्चि धारापूर्वकं माडि सर्ववाघा.) ११ परिहारं भाडि वि दत्ति सं(गल महा
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૧૩૬ जैनशिलालेख-सग्रह
[१९२८ को नृपः कर्णाटीकुचकुंकुमांकिततनुर्विद्याधराधीश्वरः (॥४)
तस्यास्म९ जस्सुपरिवर्धितराज्यलक्ष्मी प्रादुर्बभूव समुपार्जितपुण्यपुल (0) १० चन्द्राहयो जगति विश्रुतकीर्तिकान्तत्यागार्णवो बुधनुतो नयनामि११ राम (॥५) तस्यापि पुत्रो जतिगो नरेन्द्रो जात प्रवीरो गज
यूथनाथ (1) तस्या१२ मजौ गोकलगूवलाख्यौ नाताबुमौ वैरिकुलाद्विवौ (६) तद्
गॉकलस्य तनुजी रिपुदन्ति१३ सिंह श्रीमारसिंहनुपतिमरुवक्कसर्प. (0) प्रादुर्बभूव समरां
गणसूत्र११ धारो विख्यातकीनिरिह पण्डितपारिजात (७) तस्याग्रसूनुजंग
देकवीरो वी१५ रागनावाहुलतावगूढः कीर्तिप्रियो गूवलदेवनामा बभूव भूपाल१६ वरो नरेन्द्र (७) तस्यानुजस्सकलमंगलजन्मभूमिरासीन्नृपाल
तिलको भुवि भोज१७ देव. (1) प्रोतु गवीरवनिताश्रयवाहुदडश्चडारि-भडलशिरोगिरि
वज्रदंड. (॥९)
दूसरा पत्र पहला माग १८ श्रीमत्कढबांबरतिग्मरश्मेशिरस्सरोज खलु शान्तरस्य (6) पूजा
प्रचक्र सच चक्रवर्तिश्रीविक्र१९ मादित्यनृपेंद्रपाठे (१०) किं वय॑ते जगति वीरतर' प्रसिद्ध
कोपातु कोंगजनृपोपि२० पपात यस्य (0) सूर्यान्वयांवररविस्स च विज्जणोपि चक्रे गृह
सुरपतेमुवि य२१ स्य कोपात् (११) यव्यतापप्रदीपेस्मिन् कोक्कलशलमायितः
(6) पलायिवा न गण्यन्ते सोय
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-१९२] कोल्हापुरका लेख
१३७ २२ भोजनृपालक: (१२) वेणुग्रामढवानलो विजयते वैरीमकण्ठीरवी
गोविंदप्रलयान्त२३ क शिखरिणो वन कुरंजस्य च (0) मोन स्वीकृतकोंकणो
भुजबलात् तमिलमोद्वन्ध२४ कृत सोय कर्ण दिशापटो रिपुकुद्दोर्डण्डकण्डूहर' (॥१३)
तस्यानुजातो गुणराशि२५ रामोत् बल्लालदेवो जितवैरिभूप. (1) जीमूतवाहान्बयरत्नदीपो
गंभीर२६ मूर्तिभुवि शीर्यशाली (॥१४) अजनि तदनुजातस्तिग्मरश्मि
प्रतापो दिविजयतिवि२० भूतिस्पर्वलक्ष्मीनिवास (0) कृतरिपुमढमगो राजविद्याप्रसगो
भुवनवि२८ नुतमूर्तिगण्डरादित्यदेव (१०) चक्रे चालुक्यचक्रेशो विक्रमा
दिस्यवल्लम (1) निश्शं२९ कमस इत्यान्यां गण्डरादित्यभूपतेः (॥१६) धन्यास्त्र मान
वास्मा धन्याश्च मृगजात३० य (0) स देशस्मफलो यन्त्र गण्डरादित्यभूपतिः (॥१७) यत्
खड्गाद्भुततीवघा३१ तचफितस्तस्कृण्डिदेशाधिपो दण्डब्रह्मानूपो जगाम सदनं ससेव्य
मान सुरै३२ स्त्यक्त्वा राष्ट्रमतीयरम्यमतुलां लक्ष्मी भुजोपार्जिता सोय गण्डर
देवम३३ पडलपतिस्संशोमते भूतले (१८) रत्नानि यत्नेन ददाति तस्मै
रत्नाक३४ रो भगमयाज्जडात्मा (6) भापूर्य सम्यक् सततं वहिनं सूक्ष्माणि
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१३८
जैनशिलालेख-सग्रह
[१९२३५ वासांसि हयाश्च तस्मै (१९) किमिह बहुमिरुक्तैरल्पगम
चोमि वन
दूसरा पत्र • दूसरा भाग ३६ विदितवीर रसग्रामधीर. (1) भपरनृपतिकोशं देशमत्यन्तशोमं
यदि स कुपितचिसः ३७ कारयत्यात्मकोयं (२०),समधिगतपंचमहाशब्द महामण्डलेश्वरः
तगरपुरवरा३८ पीश्वरः। श्रीशिलाहारनरेंद्र । जीमूतवाहनान्वयप्रसूत सुव
गरुड३६ ध्वजः । मवक्कशसर्प । अय्यनसिंह. (0) रिपुमण्डलिकभैरवः
(1) विद्विष्टगजकण्ठी५० रव । गणिकामनोजः। हयवत्सराज । शौचगागेय । सत्यराधेयः। ४१ इहुवरादित्यः रूपनारायणः । कलियुगविक्रमादित्य । शनिवार४२ सिद्धिः। गिरिदुर्गलधन• श्रीमन्महालक्ष्मीलब्धवरप्रसादादि
समस्तरामाव४३ लोविराजित' श्रीमन्महामण्डलेश्वरः श्रीगण्डरादित्यदेव श्रीम
वलय४४ वाडशिबिरे सुखसंकथाविनोदेन राज्य कुर्वाणः । सप्तत्रिंशदु
१५ पु शकवर्षेषु १०३७ भतीतेपु मन्मथसवत्सरे कार्तिकमासे
शुक्लपक्षे। ४६ मष्टम्या बुधवारे मिरिंजदेशे । मिरिंजेगम्पणमध्ये । अंकुळगे वोप्पे४७ यवाड इति प्रामद्वय भागेनामग्रामस्य प्रविष्टं कृत्वा तद्मा४८ मारुवण त्यक्त्वा तत्यनार्गावुण्डा यदि नायकत्वं कुर्वन्ति तेषां
शरी
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-१९२] कोल्हापुरका लेख
१३९ ४९ रजीवितार्थ सुवर्ण न ददाति यदि नायक्त्वं नेच्छन्ति स्वेच्छया
तिष्ठन्ति त५० दा कोदेवण नास्ति । एवमनेन क्रमेण • श्रीमत्पवित्रेत्र निगुंव
तीसरा पत्र ५५ वशे जातः पुमान होरिमनामधेयः (0) कीर्तिप्रिय. पुण्यधनः
प्रसिद्ध. श्री५२ जैनसंघांबुजतिग्मरश्मि (२१) तस्यात्मजोभूढिह वीरणाख्यस्त
स्थानुजोभू५३ दरिकंसरीति (1) तवीरणस्यापि तनूमवोयं बभूव कुंदातिरिति
प्रसिद्ध. (॥२२) ५४ तस्यानुजस्सुपरिपालितवन्धुवर्ग. श्रीनायिमो जिनमतांबुधिच५५ द एषः (6) त्यागान्वितस्सुचरितस्सुजनो बभूव प्रख्यातकीर्ति
रिह धर्मप५६ र प्रसिद्ध. (२३) तस्यापि वीर सुजनोपकारी नोलंबनामा
तनयो बभूव (1) ५७ श्रीगण्डरादित्यपढाजमुंगो धर्मान्वितो वैरिमतंगसिह' (२४)
तस्मै ५८ समस्तगुणालंकृताय निगुबकुलक्मलमार्तण्डाय । सुवर्णम५९ त्स्योरगेंद्रध्वजविराजिताय सम्यक्स्वरत्नाकराय पद्मावतीदेवी
लब्धवर६० प्रसाढाय नोलंबसामन्ताय सर्वनमस्यं सर्ववाधापरिहारं पुत्र६१ पौत्रकमाचन्द्राक दत्तवान् •
[यह ताम्रपत्र चालुक्य मम्राट विक्रमादित्य (ण्ठ )के माण्डलिक शिलाहार राजा गण्डरादित्यदेव-द्वारा कार्तिक शुक्ल ८, बुधवार, शक १०३७ के दिन दिया गया था। निगुंव वंगके सामन्त नोलबको मिरिंज
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१४० जैनशिलालेख-सग्रह
[ १९३प्रदेशके अकुलगे तथा चोप्पेयवाड इन दो ग्रामीका अधिकार अर्पण करनेका उल्लेख इसमे किया है। नोलवकी वशावली इस प्रकार थी-होरिम-धीरणकुदाति - उसका बन्यु नायिम-नोलव । नोलवको सम्यक्त्वरलाकर तथा पद्मावतीलब्धवरप्रसाद ये विशेपण दिये है।]
[ए० इ० २७ पृ० १७६]
होले नरसिपुर (मैसूर) १२वीं सदी : पूर्वाध (सन् १९१५), कन्नड [ इस लेखमें महामण्डलेश्वर चीर कोगावदेव-द्वारा मूलसंघ-देसिगणके मेघचन्द्र विद्यके शिष्य प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवके उपदेशसे सत्यवाक्य जिनालयके निर्माणका तथा उसे हेण्णेगडलु ग्राम दान देनेका उल्लेख है। (समय लगभग सन् १११५।)]
[ए० रि० मै० १९१३ पृ. ३३ ]
१६४ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास)
__ सन् १९१५, तमिल [ यह लेख चोल ममा कुलोत्तु ग राजकेसरिवर्मन्के ४५वें वपमें लिसा गया था। तिरुप्परम्बूरकी आमसभा-द्वारा तिरुक्काट्टापल्लि आल्वार जिनमन्दिरके लिए कुछ भूमि विक्रय किये जानेका इममें उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० १३५]
तिरुप्पत्तिकुण्डम् (चिंगलपेट, मद्रास)
राज्यवर्ष ४६ - सन् १११६, तमिल [यह लेख राजकेसरिवर्मन फूलोत्तुग चोलके ४६वें राज्यवर्षका है।
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-१९७] पुदुपट्ट आदि के लेख
१११ इसमे तिरुप्पत्तिकुण्ड्डके ऋपिसमुदायके लिए एक नहर बनवानेके लिए कैतडुप्पूरकी ग्रामसभा-द्वारा कुछ भूमि करमुक्त रूपमें वेची जानेका उल्लेख है । यह लेख त्रिकूटवसदिके छतमे लगा है। ]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ३८२ पृ० ३७ ]
१९६
पुदुप्पट (चिंगलपेट, मद्रास)
११वीं-१३वीं सदी, तमिल [स्थानीय जैन मन्दिरके मण्डपके एक स्तम्भपर यह लेख है। अस्पष्ट और अधूरा है । इसमें चोल राजा परकेसरिवर्मनका उल्लेख हुआ है। ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० ७९ पृ० १२]
१६७ अनमकोंडा स्तम्भ लेख (वरंगलके समीप, आन्ध्र ) चालुक्य विक्रम वर्ष १२= सन् १११७, कन्नड
पूर्वकी ओर १ श्रीमज्जिनद्रपदपद्मम- २ शेषमव्यानव्यात् त्रिलोकन ३ पतींद्रमुनींद्रवधं नि- ४ शेषदोषपरिसंढनचडका५ ण्डं रत्नत्रयप्रमवमुद्व- ६ गुणकतान॥(१)स्वस्ति समस्त७ भुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम- ८ महाराजाधिराजपरमेश्वर९ परममट्टारक सत्याश्रयकु- १० लतिलक चालुक्यामरणश्रीम१ त्रिभुवनमल्लदेवर विजयरा- १२ ज्यमुत्तरोत्तरामिवृद्धिप्रवर्ध१३ मानमाचंढातारं सलुत्त- १४ मिरे। तत्पादपोपजीवि समधि १५ गतपंचमहाशब्द महामं(ड) १६ लेश्वरनन्मकुडापुरवरेश्वरं १७ परममाहेश्वरं पविहितच- १८ रितं विन(य)विभूषणं श्रीम
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१४२
जैनशिलालेस-सग्रह
[१९७१९ न्महामण्डलेश्वर काकतीवेत(भू) २० पालकुलक्रमागतं तटीयरा२१ ज्यमरनिरूपितमहामात्यप- २२ दवीविराजमान मानोन्नत प्र२३ भुमत्रोत्साहशक्वित्रयस- २४ पनना(गि)॥धनशौर्याटोप(दि) २५ मान्तनट महियेयिं चारुचारि- २६ बर्दि(दो)पिन तेलपिं सस्क२७ लदिनो)दविदाश्चर्य(सौं)- लाकौश
उत्तरकी ओर
____२८ ढयंटिंद(थि)निकायप्रार्थितार्थ२९ (प्र)ट वितरण(विख्यात- ३० (वि)नुत श्रीकाकतीवेतरसन ___ नादं धरित्री
मचि३. व वैज ढढाधिनाथ ॥(२)अगणितशोर्य३२ टिं नेगल्द काकतिवेतनरेद्वन जग ३३ पोगले चलुक्यचक्रिचरण सले का३४ णिसि तत्प्रसाददि बगेगोले मब्बिया३५ यिरमनालिसिद्धियशो- ३६ धिनाथन पोगलदरारोमंड(लि) ३७ ककाकतिवेतन मत्रि वैजन ॥- ३० तगं विकसितकजातानने या
३६ कमब्बेगं जनियिसिट रयात ४० धरेयोलु पेगेंडे घेत म४१ निजनमकुटचूडारन ॥(४) ४२ भातं मा(धा)तरामोपम४३ नेविसिट श्रीकाकतीप्रोलभू- ४४ पख्यातामात्य विकाग्रणि ४५ सकलकलाकोविद सच्चरित्र- ४६ प्रीतं माहित्यविद्यानिधि - ४७ धविद्युधोरुह सत्यधर्मो- १८ पेत स्वग्रामढोल माडिढनतिमु १९ दहि हत्तु देवालयगलु ।(१) ५० अतिशयजैनधर्मसमयोचित५. शामनदेवि मारतोसति शनिर्विवव(क्त्र). ५२ दशनच्छढे शुद्धसुवर्णकुमसन्नुतत
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१४३
-१९७]
अनमकॉडा स्तम्मका लेख १३ ५३ नुवर्णपीवरपयोधरि मैल (म या.) ५४ कमांबिकासुनतळमात्यबनह५५ दयश्वरि निश्चललक्ष्मि माविसलु ॥(६)
पश्चिमकी ओर
५६ पढदिंदालुलितालकं वैरंग (म) गो१७ पांगमं पचरनदिनांगोचितमागे ५८ निर्मिसि सुरस्त्रीमाग्यसौभाग्य५९ सम्म (1) सौंदयमनास्लुतीवि ६० पदं क्तातसंजातनी
सु(ढती)६. रत्नमर्नेदुनलमननारार् वण्णिस-६२ लोकदोल (७) नुतरूपवति
कला (ब)६३ ति रतिरति श्रीमतिघटान्तकी- ६१ णीसतियेंदमात्यबेतन सतियं
सति वा६५ क्षितियल्लमेटे नुतियिसुनिई- ६६ मुददिन नेगल्ल रमास्पढे मै
६७ लम मतियि मादिमि तन- ६८ यकरमागिरलु वेद (म) गण
गम्युट१९ क्ठलालयबमवियनमेगलु ॥(९)७० भटकं नित्यपूजेगं धूपढीप
(नि) वेद्य७१ क्कं पूजारिगाहा (र) वस्त्रादि- ७२ श्रीमत्रिभुवमलमंडलिकभू
(पा)७३ लपुत्रनप्पकाकतियपोलरमनरा-७४ ज्यमुत्तरोत्तरामिवृद्धिप्रवर्ध
मानमा५५ गमम्मकुन्देयलाचंद्राकवारं स-७६ लुत्तमिरे श्रीमचालुक्य
विक्रमवर्ष
गलगं
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१४१
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जनशिलालेख-सग्रह
[१९७७७ दनाल्बचेरडेनेय हेमलयि(सं).७८ वत्सरपीप्यबहुल १५सोमवा७९ रटदिनुत्तरायणसक्रांतिनिमि- ८० धारापूर्वकमागि तन्न
वलमनप्प ११ बेवन पेगडे तन पेसरिंद मादि- ८२ सिट करेयरिय केलगनेरह ८३ हासरेगल्लुगल नडुवण गर्ने(य) ८४ मत्तरेरडं मत्तमाकरेय प-- ८५ हुवण नेल ढोणेय तेकलेरेय ८६ मत्त लुकु करंचं मत्तरारु८७ म कोटु निरिसिदलीशासनगम ॥
दक्षिणको भार
८८ मत्तमी धर्मक्के तेलटियागे। ८६ भटौ) दन्तिसहस्राणि दशको- ९० टोच वाजिनामनन्त पाइसं. ९१ धातमित्येते माधववर्म- ९२ वशोद्वरप्प श्रीमन्महा९३ मण्डलेश्वरनुप्रया (डि)- ९४ य मेलर तन्ना (लि) के९५ योरुगल्ल कुचिकरे- ९६ यरिय कलगे कालवेय ९७ मोटल गठेय मत्तरोन्दा स- ९८ मीपदले करवं मत्त९९ रु हत्तुमनित्त । निरुतमि- १०० टनलिटवं सासिरकवि (ले)१०५ यनलि (द) पापमं (पो) दु. १०२ गुमादरटि रक्षि (लि) ई सा१०३ सिरयज्ञद पलमनेयटि १०४ शुम (मं) पडेगु॥ (१०) स्वद१०५ चा परवत्ता वा यो हरेत १०६ वसुंधरा । परिवर्पसहस्रा१०० णि विष्ठाया जायते १०८ बहुमिसुधा दत्ता राजमिस्स
कृमिः ॥ (११) १०९ गरादिमि । यस्य यस्य य- ११० दा भूमिस्तस्य तस्य तदा
फलं। (१२) १११ अपिल वसदिय कसंगलेच बो- ११२ यपहगे पाग चोंदु ॥
[यह स्तम्भ चालुक्यविक्रमवर्ष ४२ (सन् १९१७ ) में पोप अमावस्याको उत्तरायण सक्रान्तिके समय स्थापित किया था। उस समय
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-:..]
विन्ट न लेन चाहन्नाट विना विकदिन ( गालन गन्नाट बना कर (टमठि गर यान का नाशबंका न्हा
ई पनी गन्ध नयाान गई शा। बैंट मात्र मन्त्री था। हुन पन्नी ली। उननं अन्वृन्द ब्राहीर कटन्ग दिर नाग ना उन्न निश्निं कुछ
- हाई। दिन्न उबडिव लगन्न नी मगदर्गः कुन महाभ-की कुछ मांन बान दी । न्दन्नन्दादी मान्न पानीगना है। दुमका बह नन्दिर नाव नाहै नय बार्शी रजा भग्नं है।]
[re ई०९ पृ० २५६]
कवितंगुतम् (गन्नाइ, न्द्रार)
___मन.११:५, नलिन [सन्न टिई यि तय परिवगागरमिलाइरह लन रिबनवान कृलालूंगालव ४८ वांग है । कुन्बर १
नावागग लिए एक नया मुबर्ग विमान बनवानेका हुन् निग है। कुल्टनर गांव बबलनाडपर्नग अगाट्टिन्क बिगा । दुर्ना लन्द गिरिति ढंढ नग एक की तबिकी भूनिगाग न्यानाकानलंय है। मन्दिरकं लिए जर्मन लार प्यान दि नं दान दिन गग । इन लन्त्री तमिल भाषा माहित्यिक दृष्टि वृतःच्छी है।]
[इ० म० गन्नाड १३ ]
एहाने (बिगर, महर) चालुक्य विक्रमवयं १४=मद 111°, कढ़ [ट्ट लेन्द्र बिन्द्रदमन्द्र विक्रमटिया सन्म या ट ३, १०
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१४६ जनशिलालेग-संग्रह
[२००सोमवार, विकारी मंवत्सर, चालुक्य विक्रमवर्ष ४४ के दिन लिखा गया था। इसमें जेमपार्य तथा जातियफ्को पुत्र फेगवय्य मेट्टिमा उरलेस है जिसने स्थानीय जिनमन्दिरमे पूर्व और पश्चिमकी ओर बगदिया, एक पट्टशाला तथा कूपका निर्माण कराकर लोकपाल-मृतियोको स्थापना की थी और देवपूजाके लिए कुछ भूमि आदि दान दिया था । [ मूल लेस फनडमें मुद्रित ] [मा० ४० १० ११ पृ० २१९ ]
२००
कुमारवीड ( मैमूर)
भक १०४५%सन् ११२२,कन्नड १ श्रीमतपरमगमीरस्यावादामाघकाठन (0) पीयान २ लोक्यनाथस्य शासन जिनशासन (1) स्वस्ति समधिग (त)
पच३ महाश महामण्डलेश्चर कुलात गचोलभुजय४ लवीरगगहोयमलटेवरु गगवाटि वीमहा५ मासिरमनेकच्छचटि तलकाउलिटुं सुखमकतावि६ नोददि राज्य गेय्युत्तमिरे शकवर्ष १०४४ ने७ य प्लघसंघस्मरट मार्गसिर मुध ५ मोमवार८ ददु महाप्रधान टण्डनायक गगपथ्य९ गल तम्म सोवणटण्डनायकंग हादरियागिल१० बीटिनलु परोक्षविनयक माटिसिट बसटिगे ११ विह दचि मैग्मेनाइ चन्दवनहरिलयु वीडिंट १२ मृढण कम्माढिय केरेय गहे ३० सलगेयु १३ था केरेयिं पढगल परिय घेडले चेलि २ १४ आ केरेय घटुवण कढ केलगे तोट १५५०० गुलियु बीदिन २ गाणट पुण्णेयु
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-२०१]
बेलरका लेस १६ सोडरिगे सलुबुदु ॥ यसदिगे विट्टीधर्मम१७ नोसदु कर मलिसुतिढंगक्कु पुण्य भसव१८ मदि केडिपिदवर्गल पसुत्रु ग्राह्मण७९ न कोट वधे ममनिसुगु ॥ स्वदत्तां पर२० दत्ता वा यो हरेत वसुंधरा पष्टिपंस२१ हलाणि विष्टाया जायते क्रिमि () ।
[यह लेख होयसल राजा विष्णुवर्वनके राज्यमे मार्गशिर शु० ५, सोमवार, राक १०४४, प्लव मवत्सरके दिन लिया गया था। दण्डनायक गगपय्य-द्वारा मोवणदण्डनायकको स्मृतिमे हादरवागिलु ग्राममे एक जैन मन्दिरको स्थापनाका तया उसे दिये गये दानका उल्लेख इम लेपमे किया
[ए० रि० म० १९३८ पृ० १६६ ]
२०१
चेलर ( मैमूर)
१२वीं सटी- पूर्वाध, कन्नड १ पुणिसचमूपनेम्बेसेव शासनवाचकचक्रवर्तिगिन्तेनिसलोड पोगत
तनगागिरे पुष्टिट चामराज नाकण कुमरय्यनेम्ब रत्नत्रयमू२ तिगे पुननोप्पिट पुणिममदण्डनाथनुदितोदितचामचमूपसमव (1)
नमः सिद्धेभ्यः (1) [ यह लेख किसी जैन मन्दिरके स्तम्भपर था। वह स्तम्भ वादमे केशवमन्दिरमें लगाया हुआ पाया गया। इसमें सेनापति पुणिस तथा उसके तीन पुन चामराज, नाकण तथा कुमरय्यकी प्रशसा की है। यह पद्य अन्य लेखोमें भी पाया गया है। पुणिस राजा विष्णुवर्धनका जैन सेनापति था।]
[ए. रि० मै० १९३४ पृ० ८३ ]
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१४८
जनशिलालेख-सग्रह
[२००
श्ररताल (जि. धारवाड, मैसूर)
शक १०४५ = मन् ११२३, कन्नड [ यह लेप चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लके ममयका है। उस समय वनवासि तथा पानुगल प्रदेशांपर कदम्ब कुलका महामण्डलेश्वर तैलपदेव शासन कर रहा था। मूलमघकाणूरगणके कनकचन्द्र के निप्प गगर बम्मिसेट्टिने कोन्तकुलि विभागके प्रमुख नगर पयिट्टणम एक मन्दिर बनवाया। वम्विमेट्टि वट्टकैरेका निवासी था। इम लेखकी तिथि पोप अमावास्या, सूर्यग्रहण, रविवार, शक १०४५, शुभकृत् सवत्सर ऐसी दी है।
[रि० सा० ए० १९४३-४४ एफ् १]
२०३ हिरेसिंगनगुत्ति (विजापुर, मैसूर)
११वी-१२वीं सही, कन्नड [इम खण्डित लेखका समय चालुक्यमम्राट् त्रिभुवनमालदेव (विक्रमादित्य पष्ठ) के राज्यका है। देसिगगण-पुस्तक गच्छकं आचाई वालचन्द्रका इममें उल्लेख है। किमी मन्दिरके लिए उन्हें कुछ भूमि अर्पण की गयी थी।] [मूल लेख कन्नडमे मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ पृ० २६२]
२०४ तोगरकुण्ट (अनन्तपुर, आग्त्र)
वी-१२वी सदी, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्लके समय एक सूर्यग्रहणके अबसरपर लिखा है। इसमें वोगरकुण्टेके चन्द्रप्रभदेववसदिके लिए दण्डनायक
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-२०८ ]
११
१२
१३
१५
हलिका लेस
'पोद) लूद वेढंगले मृर्तिगॉड देनिपंदटलोप्पुव विप्ररिदे ग्रामंगल चक्रवतियेसेहिर्दुदु नोपडे पूलि कीलेयिं ॥ (९) मत्तमल्लिय विप्रर महिमेये (तदोडे ) |
पोंठनेनिप श्रीकृष्णदेवं सविस्तरदि तन्न सहस्रमध्य पेसरं रूपागिरलु माढि साक्षरवेदाक्षरजीवमंत्र चयम तीविट्टु पुलीमहापुर
..
१४ • शास्त्रढोढवि श्रीकेशवादित्यदेवपाढांमोजवरप्रसाटरेसेटर सासि - रितुर्वियो | (११) हरि किलेने लेयिं चलिसिद हरिषदवेहि
केंदु निराकरिपुदु सासिर्वरुचितदे चलितवचन ॥ ( १२ ) स्वस्स्थनवरतविनमदम (र) राजत् किरीटको टिताडित जिनेंद्रचरणारविदम
१६ . (चल) दुत्तर ग। वीरविद्विष्टसंहरणप्रतापकार्तिकेय । गगगांगेय । चपलवैरिवाहिनी संहननप्रतापलकेश्वरं । कोलालपु (रवराधीश्वरं ।) १७ (एतें) ढोडे। मंडलिकजगदल मार्कोडर जवनार्थिजनके कल्पमहीज गंडर तीर्थ सितगर गड मार्केल भैरवं पिट्टनृपं ॥ (१३)
मन्त
१९
२०
१५१
( एसेंदर् ) सामिर्वरितुर्वियोलु ॥ (१०) उपमातीतमेनिष्प पेंपु गुणमादाय चल साहसं जपहोम नियम महोन्नतिकसत्य शौचमा
...
१८•
पुहिढरोप्पे पर्मनृप बिज्जमहीपति को तिभूपनु जेहिंग गोमं नुं ने गर्द (ट) मैललदेवियुमते रूपिनिधिलवागि •
॥ (१४) लिक कढरिभूभुजरं तवे को गुर्तराष्ट जयसिहदेव धरणीश्वरनं निजराज्यलक्ष्मियोलु पहु
पोगलुतिपुटु विज्जलभूमिपालन ॥ (१५) मत्तं । रेवकनिमंडि कन्हरदेवर्गेतक्कनंते भूनुते सिरिया (देवि )
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१५२ जनशिलालेस-पग्रह
[२०७२१ ॥(१६) दुबलताबनयेंदु बिजलनृपं चटगोमतीवरकलं
मुढि माडिसि कल्वेमं ममंसि २२ दि बिह-घेलवलदोलिनोप्पिप्प पेगुम्मिय (१७) हरलार
बाडकसि २३ चालुक्यचक्रवति पर्माडिरायन कय्योल • २४ माडिसिट माणिक्यतीर्थ
[यह लेख चालुक्यसम्राट विक्रमादित्य (पष्ठ) के राज्यकालका है। इममे प्रथम सुधर्म गणधरकी परपरामे यापनीय सघ-कण्दूर गणके बाहुवली, शुभचद्र, मोनिदेव तथा माधनदि इन आचार्योंका उरलेख है। इनका परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है। अनन्तर एक पूलि नगरके पिट्ट नृपका उल्लेख है जो गगवशमें उत्पन्न हुआ था। इसके चार पुत्र थे-पेम, विज्जल, कीति, गोर्म - तया एक कन्या थी- मललदेवी। विज्जलके सम्बन्ध में गूर्जराष्ट्रके जयसिंहका उल्लेख किया है किन्तु इमका ठीक अर्थ स्पष्ट नही क्योंकि यहाँके कई अक्षर घिस गये है। इसी तरह कृष्णराजकी बहिन रेवकनिमडिकी एक श्लोकमें सिरियादेवीसे तुलना की है उसका पूर्वापर मम्बन्ध भी स्पष्ट नहीं है। अनन्तर कहा है कि विज्जलने एक जैन मन्दिर बनवाया तथा उसे पेर्गुमि ग्राम दान दिया। लेखके अन्तिम भागमें माणिक्यतीर्यका उल्लेख है । इमका सम्बन्ध भी स्पष्ट नहीं है।]
[ए० इ० १८ पृ० २०१] २०८ वेलवत्ति (धारवाड, मैसूर)
१२वीं सदी - पूर्वाय, कन्नड [इस लेखमे सवणूरके वम्मिसेट्टिद्वारा एक ब्रह्मजिनालयके निर्माणका उल्लेख है । इस जिनालयके लिए वम्मिसेटिने वेलवत्तिके ३०० महाजनो
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-२१०]
चेल होगल आदिके लेख
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को कई दान दिये थे। इस स्थानके कुछ आचार्योके नाम भी लेखमें दिये है। तिथि आपाढ शु० प्रतिपदा, सोमवार, उत्तरायणसक्रान्ति, शोभकृत् सवत्सर ऐसी दी है । उस समयके चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्लदेवके राज्यका उल्लेख किया है।
[रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० २१६ ]
चैल होंगल ( बेलगांव, मैसूर)
__११वीं - १२वी सदी, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्लदेवके समयका है । शक वपके अक अस्पष्ट हुए है। इसमें रट्टवशीय महासामन्त अक, शान्तियक्क तथा कूण्डि प्रदेशका उल्लेख है। अनन्तर यापनीयसघ- मैलाप अन्वय-कारेयगणके मुल्लभट्टारक तथा जिनदेवमूरिका उल्लेख है। यह सम्भवत किसी जिनमन्दिरको दिये गये दानका उल्लेख है। ]
[रि० इ० ए० १९५१-५२ क्र० ३३ पृ० १२ ]
गोलिहल्लि (जि० वेलगांव ) सिन्देश्वरमन्दिरके समीप शिलापर
१२वी सदी, कन्नड [ मैललदेवी तथा जयकेशिन्के पुत्र वीर पेर्माडि तथा विजयादित्यके शासनका इस लेखमें निर्देश है । अगडिय मल्लिसेट्टिद्वारा किरुसपगाडिमे बनवाये गये जैन मन्दिरके लिए भूमिदान देनेका इसमें उल्लेख है । मूलसष, वलात्कारगणके नेमिचन्द्र भट्टारकके शिष्य वासुपूज्य भट्टारकको यह दान दिया गया । वासुपूज्यकी गुरुपरम्परा कुछ विस्तारसे दी है। लेखके समय फाल्गुन शु० १५, गुरुवार, मन्मथ सवत्सर था तथा चालुक्य भूलोकमल्ल सम्राट् थे।]
[रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० १५ ]
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जैनशिलालेख-सग्रह
[11
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२११ वरांग ( मैमूर)
१२वी सदी-मध्य, कन्नड [यह लेख आलुप राजा कुलोसरके समयका है। इसमें माधवचन्द्र, प्रभाचन्द्र, तथा श्रीचन्द्र इन आचार्योका उरलेस किया गया है।]
[रि० आ० स० १९२८-२९ पृ० १२७ ]
૨૧૨ दडग (माट्या, मैमूर)
१२वी मदी- पूर्वाय, स्मट , श्रीमतपरमगमीरस्यावादामोघलान (1) जी२ यात् त्रैलोक्यनाथम्य शापन जिनगासन (1) ३ कुलरत्नाकरनील कास्नुमादिगल बोलु पलरं लोकोपकारपरिणतर
एकीकृ५ तसकलराजगुणरु सकलजनीति यादवकुलहाल पुलि पाये ५ सलेयिं पुलिय पोय सल येने पायदुदार पारमणवसरवनिंद
वाद६ रिल"नयं प्रटारण नना "युटि जग७ नयनिमि पोरेट विनयादित्य समस्तभुवनस्तुल्य आतंगतिमहिम८ समारयावकीर्ति सन्मूर्तिमनोजात मर्दितरिपुनृपजातं तनुजाव
नाढन् एश्यग९ नृपं ॥ च धर्मार्थकामसिद्विवोल अवनीवरलभर भावन तन१० थर बल्लाल विष्टिदेवन् उदयादिस्य ॥ मृबर- बनयरोल तां
माविस म
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-21] बटगका लेख
m " यमनागि महगुगपदमावदिन टचमनगई विनुतबिमबदमून
विष्णु बि२२ प्गुनहागं । स्वस्ति मनधिगतपंचमहागल महामंडलं. ६३ वरं द्वारावारबरावीश्वर यादवकुलगंवरद्युमणि मं११ नाग्चचूडामणि मलपगंलुगण्डं गग्डमनट भाकपुरीनिवास १५ वासनिकाईबाटग्यवरप्रसाट वानमन्मान्मंपादिनविप्रणगामोड १६ गमादिममतप्रशस्ति महिनं नलका कॉग नंगलि गंगवाहिनी: पंचवाहिनवामहानुंगलु गाँड नुनबनबान्गंग प्रतार । १० हायपगबर पृथ्वीगज्यं गंयुत्तमिर तपाढायोग्जीबिगटप्प ।।
नाम - १० इंग्ल्ब र्ग मायनल ने पुष्टिय मंदिर श्रीमनग्ग्रिान२० युरहानगुण नग्नगद टाधिन । कग्गिनि सिंहमध्य क्ल२. सननि दोन्त्रःपुग्नवार्षि मिबिकटाने बलिमुवि बंग्यहि २२ गंडविलालनि नामुरं नुननानिमगन गुणरत्नत्रयोहारि की२३ निगोपनि म्यिग्मन् इक्कियक्कनन पाम्बर आर अमलकान्त
ननुवं. २१ अन्नधानं चन्तिाय नंगलट ननं गगयर ।। नवगजिन
दव्यमन्दि ३. हरियायन्नरटं नान कन्तंरगा श्रीभूव कुण्डदान्त्र२. अनगन निनिगिन्छ जबगिय मुनिन्द्रसिद्वान्नवर
चन्द्रस्ट्टिान्नवर्ग श्रीमन्न्हायान बाटनायक नग्यिा- नयु श्रीमन्न्हामधान दानायक नानिमय्यगलु टिग१९ नत्र पंचवादियोलग बाहुबलिटम बाराव३० क मादि कोट नग्यिानसमुद क्यलुनं
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जैनमिलाप-मग्रह
[२१:३१ मलहल्लिय मुंटण किमय अस्लिय गलगुत्त३२ गयु कोष्ठियहरिलय मुद्रण मिंग्य भावदलय ३३ शिरियकरय फेलगण अकय नोटमु । श्रन्तु माय मुदवागि
टेशियगणन अमटि र कफ काणगणट य३४ मदि योन्टक अन्तु पत्र धटिंग ममानयाग अलि हुहि. ३५ द माचिदनु कमयाइनु ॥ ३६ म्यहत्ता परदत्ता वा यो हरत बमुधरा परिवर्प पाह२७ माणि विष्टाया जायत क्रिमि
[इम लापमै होयमल गजा विष्णुवर्धन महाप्रधान दण्डनायक मरियाने तया भरतिमय्य-दाग दगिनकरे म्यानको पांच बमतियाम बाहुबलिफूट नामक वमतिका दान तथा कुछ भूमिक दानका निर्देश है। यह दान काणूरगण-तित्रिणिगच्छके मुनिभद्र गिढान्नदेवके गिप्प मेषचन्द्रदेवको दिया गया था।
[ए. रि० मै० १९४० पृ० १५६ ]
२१३
कम्बदहल्लि ( मैमूर) १वी मी-पूर्वाध (मन् ११३०), कन्नड १ (द्रोह)घरट्ट टण्डनायक गगराजन मग योप्पटेयरिंग स्वारि • हाहवरहाचारि क्वमतिम माडिद ॥ मंगल महाश्री
[ यह लेप म्यानीय बान्तीवर वसदिके भग्नावोपोमें है। यह वसदि दण्डनायक गगराजके पुत्र वोपदेवके लिए द्रोहपरट्टाचारि नामक पिल्पकारने बनवायी ऐमा लेखमें कहा गया है। यह फनवमदि अर्थात् निर्माताद्वाग बनवायी पहली बमदि यी। गत दमका समय लगभग मन् ११३० है क्योकि वोप्प-द्वारा गन् ११३३ में हलेविटमें निर्मितमा दीश्वरवमदि विद्यमान है।
(ए० रि० मै० १९३९ पृ० १९३]
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-२१४]
१ श्रीमन्परमगंभीरस्याद्वाद्वामोघलानं जीयान त्रलोक्य
: ( नाथन्य शासन जिन ) शासन ॥ स्वन्ति मनस्तभुवना
ર (म )हाराजाविराज परमं
पर
नालूरका लेख
૪
सालर (मैसूर)
सन ११००, कन्नड
..
"
2 ( मल्या) श्रयकुलतिलक चालुक्याभरणं
श्रीम (कमल) देवर विजयराज्यमुत्तरोत्तरामि
• ( द्विप्रवर्धमान ) माचंद्रावतार मलुत्तमिरं । समधिगतपचम७ ( हा महामंडलेश्वरं वनवासिपुरवरा वीश्वर त्रिक्षयश्मा
८ ( समव चनुरागोतिनग ) राधिष्ठितल ( लाटलीचन ) चनुमुंज ९ श्रीजयतीमधुकेवरदेवत्ववरप्रसाई नामादि
१० ममस्तप्रशस्त्रिसहित श्रीमन्महामण्डलेश्वरं मयू११ स्वमंडेच तत्पादपद्मोपजीवि श्रीमन्महामण्डलेश्वर
१५७
१२ मगर कारगरसर सान्वलिगेसायिरमुमं दुष्टनि१३ ग्रहविशिष्टप्रतिपालनडिनालुत्तिनं ॥ श्रीमृदसबकी
१४ (ण्ट) कुन्डान्वय का गढ मेघ (पा) पाणगच्छढ श्रीप्रमाच१५ सिद्धातंवर शिप्य कुलचद्रपं (डित) देवर गुड्ड (भ) - १६ द्वरामिसेहि श्रीमद्नादियप्रहार सालियर मामिर्व१७ र ब्रह्मजिनालयढ यमद्रिय निवेद्यक्के भूलोक पंढ १८ ५ नेत्र साधारणमवस्मरढ पुष्य सुन्द्द ३ मोमवारट वृत्त
[ यह लेख चालुक्नसत्राट् मूलोकमल्लके ५वे वर्षमे पौप सोमवारको लिन्ना गया था । उन नमय कदम्बवधीन मण्डलेश्वर मयूरवर्माके धाननान्तर्गत सान्तलि प्रदेशपर मगर कारगरसर् शासन कर रहा था । उक्त तिथिको नालियूर अग्रहारमे स्थित ब्रह्मजिनालय वनदिको भद्र
३
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१५८ जनशिलालेग-मग्राह
[२१५राग्सेिट्टिने कुछ दान दिया था। मूलमंघ-काणूरगण-मेपपापाणगच्छो प्रभाचन्द्र मितान्तदेवके निप्य कुलचन्द्रपण्डित भद्ररायि सेट्टिके गुरु थे।)
[ए० रि० मै० १९३० पृ० २४५ ]
२१५ तिरुप्परुत्तिकुण्डम् (चिगलपेट, मद्राम) राज्यवर्ष १३ तथा १७ = मन् ११३१ तथा ११३५, तमिल [यह लेप चोल गजा परमग्यिमन् विक्रमचोलक राज्यवर्ष १३का है। इसमें बिलगारकी ग्रामसभा-दाग रैलोक्यनाजिनमन्दिरके लिए कुछ भूमि करमुक्त रूपमें ची जानेका उरलेय है। इगोके बाद इमी राजाके १७ वर्षमै तिमप्यत्तिकुण्डको कुछ भूमि आरम्वनन्दिको वेवी जानेका भी उरलेप है।
[रि० मा० ए० १९२८-२९ ३० ३८१ पृ० ३७]
२१६
लक्ष्मेश्वर ( मैमूर)
मन ११३२, कलह [इम लेखमे गोग्गियवमदिक इन्द्रकीति पण्डितका उरलेप है। उन्होंने राथा पेगडे मरिलयण्ण आदिने बसदिको भूमिमे घर आदि बनवाने के कुछ नियम बनाये ये। हेमदेव-द्वारा वसदिके पुजारीको कुछ भूमि दान दी जानेका भी उल्लेख है। तिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा, परिघावि सवत्सर, भूलोकवर्ष (चालुक्यमन्ना भूलोकमरलका गज्यवर्ष) ७, बुधवार इस प्रकार दी है।]
[रि० सा० ए० १९३५-३६ ० ० ४८ पृ० १६४]
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-2101 श्रदुर्गधंदका लंग
१० २१७ बहरीचंद (जि० जबलपुर, मध्यप्रदेश)
१२वीं मढी-पूर्वाध, संस्कृत-नागरी म्वमि · 'यदि ममि श्रामदगयाकर्णविनयगज्य राष्ट्रफटकटोटमवमहापामनाधिपतिश्रीमढगाहणावस्य प्रयर्थमानम्य ॥ श्रामदादापूर्वाम्नाय बंप्रमाटिकायामुमनाम्नाय नगाािमणिश्रीमन्मावर नदिनानुगृहीतः माधुश्रीमघर: नम्य पत्र. मला मान धर्मदानाव्यानगम ननंद काग्निं रम्यं मानिनाम्य मंदिरं ॥ बन्नात्यममाफमृत्रबाग श्रेष्ठिनामा विनानं च महाम्वनं निर्मिसमनिमुंदर ॥ श्रीबह कगचार्यानायदंगागणान्यं नमन रियाबिनयानंदिनविननाः प्रतिष्ठाचार्यश्रीमन्मुभद्राग्चिा नयंत ॥
[ यह रोग कलचुरि, गजा गगकर्णी. मामन्त राष्ट्रकुट गोलणदक रासमान लिया गा है। घलप्रमाटिका गाँव गांग्लापूर्व पानिका महानीन नामक धात्रक था नामाववनन्तिक मिय गवघरका पुत्र था। नगन मालिनायका एक मुन्दर मन्दिर बनवाग। म मन्दिरकी प्रतिष्ठा चन्द्रकगत्रार्याम्नार देगीगणक वाचार्य महक हाथी हुः श्री।] [निकायम वाफ दि करचुरि-चदिए पृ० ३०० ]
२१८ आदिनाथमन्दिर, नाढलाई (जि० देगर्ग, गनपान )
मंत्रन १९८१ = मन. ११६३, मंगान-नागर्ग १ ओं ॥ वन. 11८० माघमुहिपंचम्या श्रीचाळमानान्चय श्री
महागनागिन (रायपा)न्छ
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१६०
অলরিলাকৰ
[-२१९ • देव तम्य पुत्री रुटपालश्रमृगपा (ली) नाभ्यां माता श्रीरानी मा
(न) स्टेयी तया (नदु ) ल (टा) गिका. ३ यो सता परजतीना (रा)ज कुठपल (म) ध्यान पलिकाद्वय
घाण (क) प्रति वर्माय प्रदत्त । म० बागम४ वप्रमुग्नसमम्नग्रामीणक । रा. तिमटा बि० मिरिण धणिक
पोसरि । लक्ष्मण ने मा। ५ विं कृत्वा दन्त । लोपकम्य यदु पापं गोहत्यासरमण । ब्रह्मा
हत्यासवेन च । सेन ६ पापेन लिप्यन स ॥ श्री॥
[ यह लेख मवत् ११८९ में चाहमान राजा रायपालक राज्यमें लिखा गया था। इसके दो पुन ये-रुद्रपाल तथा अमृतपाल । इनकी माता मानलदेवीने नलडागिका आनेवाले यतियोंके लिए कुछ दान दिया था।
[ए० इ० ११ पृ० ३४]
२१६ तिरुनिङकोण्डै ( मद्रास)
सन् ११३४, तमिल [ यह लेस परकेसरिवर्मन् विक्रम चील राजाके १६व वपमें लिखा गया था। इसमे वैगाशि मासमे उत्सवोके अवमरपर अरुमोलिदेव (अर्हत) तथा नित्यकल्याण देवकी पालकी यात्राको व्यवस्थाके लिए मलयन् मल्लन् अर्थात् विक्रमचोलमल्लन-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है।
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३१० पृ०६६]
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-२२० ]
शेरगढका लेख
२२०
शेरगढ़ ( कोटा, राजस्थान )
सवत ११९१ = सन् ११३५, संस्कृत - नागरी
१ माहिल मार्यान्तिमा —स्य तिलके सूर्याश्रमं प (च) ने । श्रीपाली गुणपालकडच चिy
१६१
२ ले मण्डि (लवा) ले कुले सूर्य (र्या) चन्द्रमसाविवाम्बरतले प्राप्ती क्रमान्मालवे ॥१॥ श्रीपाकादिह देवपालतनयो डानंन चिन्तामणि (:) शा
३ (नेः श्री ) गुणपालक्कुरसुनाद् रूपण कामोपमात् । पूर्नामर्थजनकप्रभृतय पुत्राञ्च येा नव तैः सर्वैरपि कोशवर्धनत
४ ले रत्नत्रय कारित ( ) ॥२॥ वर्षे रुद्रशतैर्गत शुभतमैरकानवस्याविकैर्वैशाग्न (ख) धत्रले द्वितीय दिवसे देवान् प्रतिष्ठा५ पितान् । चन्द्रन्ते नतदेवपालतनया माल्हूमधान्वादय पूनशान्तिसुतश्च नेमिमरता श्रीगान्तिमत्कुन्थ्वरान् ।
७
६ ॥ ३ ॥ द्वादिसूत्रधारोत्पन्नः शिलाश्रीसूत्रधारिणा । शान्तिकुन्थ्वरनामानां जयन्तु घटिता जिना: ॥ ४॥ देवपालसु
तेल्हुक गोष्टिवीमललल्लुक मोक हरिश्चन्द्रादि गागासुपुत्र () अल्लक ॥२॥ सवत १९९१ साप सुटि (म) - ८ गलढिने प्रतिष्ठा कागपिता ॥
a
११
[ यह लेख वैगाज शु० २, मंगलवार, मवत् ११९१ का है । इम नमय ग्नण्डिल्लवाल कुलके शान्तिके पुत्रोने रत्नत्रय अर्थात् गान्ति, कुन्थु तथा अर इन तीन तीर्थकरोकी मूर्तियां स्थापित की थी । इनका निर्माण सूत्रवार दादिके पुत्र शिलाश्रीने किया था ।]
[ ए० इ० ३१ पृ० ८३]
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जैन शिलालेख - सग्रह
२२१
कोल्हापुर (महाराष्ट्र )
शक १०५८ = सन् ११३५ कन्नड
१ श्रीमत्परमगंमीरस्यादवादामोधलांछन । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशामन ॥ (१) स्वस्ति समविगत पचमहाशब्द
महाम
२ ण्डलेश्वरं । तगरपुरवराधीश्वरं श्रीशिलाहार नरेंद्र | जीमूतवाहनान्वयप्रसूत । सुवर्ण गरुडध्वज सरवोक्कन ये । अय्यन ३. सिंग । रिपुमण्डलिकभैरव । विद्विष्टगजकण्ठीरवं । इदुवराहित्य | रूपनारायण । कलियुगविक्रमादित्य | शनिवारसिद्धि गिरिदु● गंलघन । श्रीमहालक्ष्मीदेवीलव्धवरप्रसादादिसमस्तसजावलीविराजितरण श्रीमन्नहामण्डलेश्वर गण्डरादित्यदेवरु - वाढद ने
૬૨
५
&
[ २२१
लेवी डिनल सुखसकथाविनोदृदि राज्यगेय्युत्तमिरे । तत्पाटपझोपजीवि समधिगतपंचमहाशब्द महासामन्त | विजयल
६ क्ष्मीकान्न । रिपुम्मामन्तसीमन्तिनी सामन्तभग | वीरवरागनाप्रियभुजग । वैरिमामन्तमेघविघटनसमीरणं । नागलदेविय
गधवा
रण विद्विष्टसामन्त विलयकालं । मामन्तराण्डगोपालं । दायादसामन्ततारासुरवीर कुमार 1 सामन्तकेदार | तोण्डसामन्त
पुण्डरीक
८ पण्डप्रचण्डमवेदण्ड । गण्डरादित्यचदक्षदक्षिणसुजाण्ड | याचकजनमनोभिकपितचिन्तामणि । सामन्तशिरोमणि । जिन
1
चरणसरसिरु
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រ
-२२१] कोल्हापुरका लेख
१६३ ९ हमधुरं मन्यावरत्नाकरनाहारामयमैपज्यशास्त्रदानविनोद
पद्मावतीदेवीलब्धवरप्रमाद । नामादिममतप्रशस्तिमहित श्री
मन्महा। 1. मामनन । निवटेवरसरु । कवडंगोल्लट बलिय सन्तेय मुद्गोडे
यर माडिमिट वमढिय पावनायवरष्टविधार्चनक्कमा बसहिय जीर्णोद्वारक्षमल्लिप्प ऋषियराहारदानक्कं । स्वस्ति । समस्तभुवनविख्यातपत्रशतवीरशासनलब्धानकगुणगणालकृत सत्यशौचाचारचार
चारित्रनयविनय. विज्ञान बीरबलजधर्मप्रनिपारन विशुद्ध गुड-बजविराजमानानून
माहसोत्तुग कीत्यंगनालिंगित निनभुजोपार्जिनविजयलक्ष्मी
निवासबक्षस्यल १३ भुवनपराक्रमोन्नत वासुदेवखण्डलीमूलमढ़वशोडवरं । भगवती
लन्धवरप्रमादरं । तावु कादि सोलनरूं। मरुवकमारिंगलु परस्त्रीपर धनवर्जितरं चतुष्पष्टिकलेगलोल प्रवीणरप्पुरि। ब्रह्मनन्न ।
मुल्लुदार नारायणनन्नरं । दृष्टियोल नोदि कोल्खुटार । कालाग्निरटनन्नर । कोन्ठग्नरमि केचुर । परशुरामनगरुं । तुलिदु कोल्बुढारें । मदान्धगन्धपिन्गुरदन्नरं। गिरिदुर्गम मरवोक्रं तेगेदु कोल्वेडयोल सिंहनन्नर । पातालम पोक्कर कोल्डचोल बानुगियन्नरं । आकाशढोलिटर कोल्डयाल गरमननीं। पंपिनल पृस्चियनरं। विपिनल
कुलनि१७ रियन्नम्। गुणपिनल महासमुननरु। उद्योगढल रामनन्न ।
.
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जैनशिलालेख-सग्रह
[२२२
૨૨૨ कोल्हापुर ( महाराष्ट्र)
१२वीं सदी-पूर्वाध कचड
महालक्ष्मी मन्दिरमे छतके खम्भोंपर [यह लेख शिलाहार गजा गण्डरादित्यके समयका है। इनके सामन्त निम्बने एक चैत्यालय बनवाया था। नाकिराजको कन्या कर्णादेवीका भी उल्लेस है जो एक रानी थी। कोण्डकुन्दान्वयके माधनन्दि आचार्यका भी उल्लेख है।
[रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० ३५१ ]
२२३
तिरुनिलुकोण्डै ( मद्रास)
सन् ११३७, तमिल [ यह लेख कुलोत्तु ग चोलदेव (द्वितीय ) के राज्यवर्प ४ मे लिखा गया था। आलप्पिरन्दान् मोगन् उपनाम कुलोत्तुगशोलकाडवरायन्-द्वारा कच्चिनायनार (चन्द्रप्रभ) की पूजाके लिये जननाथमगलम् गांवके उत्पन्न से ४२० कलम् (नापका प्रकार ) चावल अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेस है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ० ३११ पृ० ६६ ]
२२४
गणपवरम् ( गुण्टूर, आन्ध्र)
११वी-१२वीं सदी, तेलुगु [ यह लेस थावण शु० ३ का है -शकवपके अक लुप्त हुए है। कुलोतग राजेन्द्रके पुण्यवृद्धि के लिए अक्कसाल कामोजु-द्वारा कुछ दान दिये जानेका इममें उल्लेख है। अन्तम चन्द्रप्रभजिनालयका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९१५-१६ पु० ४३ क्र०४५८]
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-२३०]
तिरक्कोल आदिके लेख
१६७
૨૨૨૨૭ तिरक्कोल ( उ० अर्काट, मद्रास )
११वी-१२वी सदी, तमिल [ इस लेखमे तण्डपुरम्की पल्लि (जैनवसति ) के लिए एरणन्दि उपनाम नरतोग पल्लवरैयन्-द्वारा कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । यह ग्राम पोन्नूरनाडुमे सम्मिलित था। यहीके एक अन्य लेखमे शेम्बियन् शेम्बोत्तिलाडणार-द्वारा कनकवीर शित्तडिगल्को कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। यह चोल राजा परकेसरिवर्मन्के १२वे वर्पका लेख है। तीसरा लेख स्थानीय वर्धमानमन्दिरके दो स्तम्भोपर है। ये स्तम्भ अरुमोलिदेवपुरम्के इडयारन् आट्कोण्डान् मावीरन्-द्वारा स्थापित हुए थे।] [रि० सा० ए० १९१५-१६ क्र० २७६-२८० पृ०९१ ]
२२८-२३० वस्तिहल्लि (मैसूर )
१२वीं सदी-पूर्वाध, कन्नड [ यहाँ तीन लेख है। एक जिनमूर्तिके पादपीठपर मूलसघ-देसियगणकेकुक्कुटासन-मलधारिदेव के शिष्य शुभचन्द्र सिद्धान्तिदेवके शिष्य दण्डनायक गंगपय्यका नामोल्लेख है। एक दूसरे मूतिके पादपीठपर मूलसंघ-देसिगणके दिनकरजिनालयमें हेग्गडे मल्लिमय्य-द्वारा मूर्तिस्थापनाका उल्लेख है। इस मन्दिरके द्वारके लेखमे इस मन्दिरको स्थापनाका वर्प सन् ११३८ दिया है।
[ए० रि० मै० १९११ पृ० ४४ ]
२३१ नाडलाई (जि देसूरी, राजस्थान)
सवत् ११९५ = सन् ११३९, सस्कृत-नागरी १ ओं नम सर्वज्ञाय ॥ संवत ११
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जैनशिलालेय-संग्रह
[२३१
६८
२ ९५ पासउन वदि १५ कुज । ३ श्रयेह श्रीन (इ) लढर (गि) काया महा४ राजाधिराजश्रीराय (पा) लदेवे । विज - ५ यी राज्य कुर्वतीत्येतस्मिन् काले ६ श्रीमदुजिवतीर्थ श्री (नेमिनाथटेव७ स्य दीपधूपनवे(ध)पुष्पपूजाधय गू
हिलान्वय राठ० अधरणसूनु ९ ना मोक्तारि उ० राजदेवेन स्वपु१. ण्यार्थे स्वीयादानमध्यात् मार्ग[ग] ११ च्छतानामागताना वृपमानाशेके () १२ यदामाव्य भवति तन्मध्यात् वि(श) १३ विमो भाग: चंढा यावत् देवस्य १४ प्रदत्त. ॥ अस्मद्वशीयनान्येन वा १५ केनापि परिपया न करणीया १६ भस्महतं न केनापि लोप(नी)य ॥ १७ स्वहस्ते परहस्ते वा य कोपि लाप१८ यिप्यति तस्याह करे लग्नो १९ न छोप्य मम शासनमिट । लिo२० (पा सिलेन । स्वहस्तोय सामि२१ ज्ञानपूर्वक राउ० ग(ज)देवे२२ न मतु च ॥ अन्नाह साक्षि-(णा)२३ ज्योतिपिक (दून)पासूनुना गूगि२४ ना। तथा पला. पाला । पृथि २५ वा १ मागु(ला) ॥ देपसारा २६ पसा ॥ मगल महा (श्रीः) ।
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-२३२]
नादलाईका लेख
१६९
[उक्त लेख मवत् ११९५ मे चाहमान राजा रापालके राज्यमे लिखा गया था। इसमें नदूलडागिकाके नेमिनाथमदिरके लिए ठा० राजदेव द्वारा कुछ दान दिये जानेका निर्देश है ]
[ए० इ० ११ पृ० ३६ ]
२३२ नाडलाई, (जि देसूरी, राजस्थान )
सपत १२०० = सन् ११४४, संस्कृत-नागरी 1 ओ मब(त)। १२०० लेष्ट (सु)दि ५ गुरी श्रीमहाराजाधिराज
श्रीरायपालदेवराज्य-हास• ममय रथयात्रायां आगतेन रा० राजदेवेन आत्म-पाइलामध्यात्
(सर्वसाउतपुत्र ) विसो३ पको उत्त । आत्मीयघाणकतेलव(ल)मध्यात् । मातानिमित्त
पलिकाद्वय । प्ली २ दत्त ॥ म४ हाजनप्रमीण । जनपढसमक्षाय । धर्माय निमित्तं विसोपको
पलिकाद्वयं दत्त ॥ गोह५ स्यानां महन्त्रेण ब्रह्महत्यामतेन च । स्त्रीहत्याघ्र णहत्या च चतु
पाप तेन पापेन लिप्यते स ॥ [ यह लेन्ब मवत् १२०० में राजा रायपालके राज्यमे लिखा गया या । यात्राके लिए आये हुए रा० राजदेव-द्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमें निर्देश है।]
[ए० इं० ११ पृ० ४१] २३३ कम्बदहल्लि ( मैसूर)
सन् ११४०, कन्नड [ इस लेखमें होयसल राना नरसिंहके दो दण्डनायक मरियाने तथा
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जैनशिलालेख-पग्रह
[२३४भरतिमय्य-द्वारा शान्तीश्वरवसदिके लिए मोदलियहल्लि ग्रामके दानका उल्लेख है। यह दान क्रोधनरावत्मरका है। तदनुसार मन् ११४५ का यह लेख है। ये दण्टनायक भाचार्य गण्डविमुक्तदेवके गिप्य थे।
[एक रि० म० १९१५ पृ० ५१]
२३४ चालेहल्लि (धाग्याट, मैमूर)
राज्यवर्ष =सन् ११४५, कन्नड [ यह लेग्व चालुक्य मम्राट् जगदेकमल्लदेवके राज्यवर्प ८, क्रोधन सवत्सरमें फाल्गुन शु० १, रविवार दिन उत्कीर्ण किया गया था। वम्मिमेट्टिने बालयहरिलम पार्श्वनायमन्दिरका निर्माण किया तथा उमकी रक्षाके लिए देमिगण, पुस्तकगन्छ, ( कोण्डकुन्द ) अन्वयक मलयारिदेवको कुछ दान दिया ऐमा इममे उरलेय है। मन्दिरको दिये गये कुछ अन्य दानोका भी इमम उरलेन है।]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ ० १७६ पृ० २२]
२३५ नाडलाई (जि० देसूरी, गजस्थान)
सवत् १९०२ - मन् ११४६, मस्कृत-नागरी १ श्री ॥ संवत् १२०० ग्रामोज वहि । शुक्रे श्रीमहाराजाधिराज
श्रीरायपालदेवराज्य प्रवर्त(मान) • श्रीमठलडागिकाया रा० राजदेवटकरण प्रव(त)मानेन श्रीमहा
चीरचत्य माधुतपोधननि(छा.) श्रीअभिनवपुरीय वहायर्या ()पु स(मस्तवजारकेषु ढमी मिलिवा -
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-२३७] कुण्टन होसल्लि आदिक लेख
१७१ ४ (५) म (म) रिन जनु पाइलालगमाने ततु वीस प्रति रूआ २
किराडमा गाड प्रति रू १ वण - " जारकै धर्माय प्रहत्तं ॥ होपकस्य जनु पापं गोहत्यामहत्रेण
ब्रह्महत्यासतन पापन लिप्यते स ॥ [यह लेख नवत् १२०२ मे चाहमान राजा रामपालके राज्यमें लिखा गया था। इसमें नदूलडागिकाके महावीर मन्दिरमै आये हुए भावुओके लिए ०० राजदेव-द्वारा कुछ दान दिये जानेका निर्देश है।]
[ए० ई० ११ पृ० ४२]
२३६ कुण्टन होसल्लि (जि. वारवाड, मैमूर )
राज्यवर्ष १०= सन ११४८, कन्नड
बसवण्ण मन्दिरकं ममीप गिलापर [यह लेन खराव हुआ है । चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लके समय दसवें वर्ष, प्रभव मंवत्लरमे यह लिखा गया था। नागिमेट्टि-वारा किसी जैन देवताको कुछ ज़मीन दान दिये जानेका इसमें निर्देश है। कदम्बवंगीय तेल मण्डलेग तथा मात्रलदेवीका भी इसमें उल्लेख है।]
(रि० इ० ए० १९५०-५१ ०६८)
२३७ नीरलगि (धारवाड, मैमूर)
राज्यवर्ष १० मन् ११४८, कन्नड [यह लेख चालुन्य राजा जगदेकमल्लके राज्यवर्प १० में पुण्य गु० १३, गुन्वार, उत्तरायण सक्रान्तिके दिनका है। इसमें नेरिलगेके नालप्रभु मल्लगावुण्ड-द्वारा स्वनिर्मित मल्लिनाय-निनालपके लिए कुछ भूमि मूलसघ
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१७२
जनशिलालग्न मग्रह
[016सूरस्थ गण-चिनकूट गच्छके हरिणन्दिदेवको अपित की जानका उल्लेग है। मल्लगावुण्ड चतुर्यजातिका व्यक्ति था।]
[रि० मा० ० १९३३.३८1०:०६१ पृ० १२४ ]
करगुरि (जि. धाग्याद, मैमूर )
सन १९४८, कन्नड [ यह लेख पौष शुक्ल १, मोमवार, प्रभव मनन्सर, के दिन लिखा गया था। महावटुव्यवहारि कलिलमट्टि-दाग करेंगदुरेमें विजयपार्वजिनेन्द्र मन्दिर बनवाया गया उमे कुछ जमीन दान टेनका उममे निर्देश है। यह दान मूरस्थ गण, चित्रकूट अन्वरके वासुपूज्यके मित्र हरिणन्दिक शिष्य नागचन्द्र भट्टारकको दिया गया था। उस समय महाप्रचण्डदण्डनायक सोवरसका शामन हानुगल ५०० के प्रदेशपर चल रहा था तथा उसके एक भागपर मण्डलेश कदम्बवनीय तेलका अधिकार था। इम ममय चालुक्य प्रतापचक्रवर्ती जगदेकमल मम्राट् थे।]
[रि० इ० ए० १९५०-५१ ० 0]
૨૨ हुलगूर (जि. धारवाट, मैमूर )
१२वी मही- मध्य, कन्नड [ यह लेख मधूरा है । चालुक्य मम्राट् जगदकमलके ममय पुरिंगरे
बलवोल प्रदेशापर महाप्रचण्डदण्डनायक वावणरम गासन कर रहा था। इसका सामन्त मणलेर कुलका जयकेशी या जो पुरिगेरेके राष्ट्रकूट पदका अधिकारी या। इसके समयकी एक जैन धाविका नालिकब्वेका इस लेसमे निदेश है।]
(रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ ३२)
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- २४१ ]
शृंगेगे श्रादिके लेख
शृंगेरी (मं)
शक १०७१ = सन् ११२०, कन्नड
श्रीमनारमगं मीरस्यादवादानीघलां
छनं जीयान त्रैलोक्यनाथम्य नामनं जिनशासन
स्वस्ति श्री (म) नु मक्त्रन्पंगलु १०७१ ने प्रमोड़naree afterसमासद शुद्ध सप्तमि
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२
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४
५ मदन्दु धोकारगण मृल्मघ
६ पुस्तकगच्छद्र हरिय
७ मगल
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[ यह लेख पार्श्वनाथदमदिये मुत्रमण्डपके एक पापाणपर हैं । वैनास ०७, म १०७१, प्रमोदून नवन्मर इम तिथिका तया मूलवध - काणूरगग-पुन्तक्गच्टका इसमें है । लेत्र अस्पष्ट होनेने इनका उहेग यदि विवरण ज्ञात नहीं हो नक्ता । ]
[ ए० दि० मं० १९३८ पृ० ११३ ]
२४१
अरसीवीडि ( बिजापूर, मैसूर ) चालुक्यविक्रम वर्ष ७६ = सन् ११५१, कन्नड
[ इन लेखमें चालुक्य राजा त्रैलाक्यमल्लदेवके नामन्त वीरचाउण्डरम तथा उनका पत्नी देमलदेवी द्वारा पोप व०-२, बुधवार, चालुक्य विक्रम वर्ष (६) के दिन मूलसघ - देशियगणके आचार्य नयकोति मिद्धान्तदेवके शिप्न नेमिचन्द्र पण्डितदेवको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । ]
[ रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ई ३३ पृ० ४३ ]
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जैनशिलालेख संग्रह
[२४२२४२-२४३ छतरपुर (मध्यप्रदेश) स० १२०८ = सन् १५५१, सस्कृत-नागरी [ये दो लेख लखनऊ म्युजियमकी दो मूर्तियोके पादपोठोपर है । ये तिया छतरपुरसे प्राप्त हुई थी। सुविधिनाय तथा नेमिनाथकी इन मूर्तियोकी स्थापनातिथि आपाढ शु० ५, गुरुवार, स० १२०८ थी ऐमा लेखमें कहा है।
[मे० आ० स० ११ ( १९२२ ) पृ० १४ ]
२४४ स्टेट म्युजियम, भरतपुर (गजम्थान )
म० ११०९ - मन् १०५३, सस्कृत-नागरी [ इस लेखमें ज्येष्ठ शु० (१) रविवार, मवत् ११०९ के दिन पार्श्वनाथमूर्तिको स्थापनाका उल्लख है। लेस मूतिके पादपीठपर उत्कीर्ण किया है।
[रि० इ० ए० १९४७-४८ ऋ० १६३ पृ० २१]
२४५ शेडवाल ( वेलगांव, मैमूर)
शक १०७५ = सन् ११०३, कन्नड [ यह लेख वसवण्णमन्दिरमें लगा हुआ है। इसमे सेणिग कोत्तलिद्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए कुछ करोके उत्पन्नके दानका उल्लेख किया है। तिथि चैत्र शु० ५, रविवार, श्रीमुख सवत्सर शक १०७८ ऐसी दी है। किन्तु तिथि आदिको गणनानुसार यह शक १०७५ का लेख है ।]
[रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र. १८७ पृ० ३६]
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-२४६] वैलरका लेस
१७५ २४६
बेलुर (मैमूर)
शक १०७ = सन् ११०३, क्नड १ निषशान्त्रवारागिपारगः । श्रीवर्धमानस्वामिगल धर्मतीथं प्र• मनबाहुभट्टारकग्दिं । भूनवलिपुष्पटनस्वामिगलिंद । एक्सधि
सु(मनिगलि अ)३ क्लकटवरिदं । वऋग्रीवाचायरिंद। वज्रणदिमटारकरित
सिंहणं (दि कन्क) १ नन वादिराजदेवरि । श्राविजयदेवरिट । शातिबरिदं पुप्प___मेन(देवरि ।) ५ अतितमेनपंडितदेवरिद । कुमारमैनबरिटं । मल्लिपेण मलधा
रिटे(वरिट) ६ (च)नीति श्रीपाल घरवाणिश्रीपालं बिल्टवादिमनविस्फालं ॥
तमगे७ (भ)मति धरेगेर तम्म मुखढोल पटनक्धाराशिविभ्रममापो ८ स्म काल्पडिपितु पंपिनसकं श्रीपालयोगींदर ॥ आवन
विषयमो है (ग)यपद्मवचोविन्यास निसर्गविजयविलासं। पश्चिद् वाढ
बिनोदकोविट १० नक्ष कश्चन कश्चनापि गमको वाग्मी पर कश्चन । पाडिल्ये
सुचनुविधेपि निपुण श्रीपालदेव पुनस्तर्कव्याकरणागम११ प्रवणीस्त्रविद्यविद्यानिधि । अवर मधमर् । वर्गत्यागढ
सूचितमार्गोपन्यासढलम मार्नुडियकामगंगवरिटे१२ नल्के निरगलमाढत्तनन्तर्वार्यव्रतियोल ॥ आ श्रीपालविद्यठेबर
शिप्यर् ॥ श्रीमत्त्रविद्यविद्यापतिपदकमलारा
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०.५]
गरीका देख
१८१
२५५ शृंगेरी ( मैत्र) नक १०८२ = सन् १६०, कनड
3 MK
३ श्रीमन्परमगंमीरस्याबाहामोघलानं (1) • जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन (1) ३ स्वस्ति श्रीमत् मकवपद १०८० ४ विक्रमसवत्परत कुम्म शु५ द दशमि बृहबारनन्दु श्रीमन्निडगोड ६ विजयनारायण शान्तिसेट्टिय पुत्र वा७ मिट्टियर अक्क सिरियवाहियर म= गलु नागबेमेट्टियिर मगलु मिरिय९ लेमेटिनिग हेम्माडिमेटिगं सुपुत्रन१० प्प मारिसंहिग परोक्षविनयक मा११ डिसिट बसदिगे विट्ट दृत्ति केरेय केलग१२ ण हिरिय नदेय बमदिय बढगण होस१३ यु मडियु होलेयु नहुवण हुविन होरद १४ मण्णु कण्डग सुल्लिगोड अरुगण्डग मण्णु १५ वणजमु नानदेसियु बिट्टय १६ नलचेगे हाग हज हात्तिय मल 10 • 'ले मेटमिन मारक्क हागमु १८ मत् पोतोग्लुप्पु हेरिगयवत्तेले थरिसिनढ मलवेगे वीसक्क बिह
नपिढडे तप्पिटवनु गगय१९ लुमाइर कविलेय कोण्ड पातक [ यह लेख पार्श्वनायमन्दिरके सभागृहमें है। इनकी तिथि शक
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जनशिलालेस-सग्रह
[२५६१०८२, विक्रमसवत्सर, कुम्भ माम गु० १० गुरुवार ऐमी है। इस दिन इस मन्दिरके लिए कुछ भूमि तथा व्यापारियो-द्वारा कुछ करोका उत्पन्न दान दिया गया था। यह मन्दिर हेम्माडिसेट्टिकी पत्नी मिरियवेके पुत्र मारिसेट्टिकी स्मृतिमें बनवाया गया था। मन्दिरके गर्भगृहकी पार्श्वनाथमूर्तिके पादपीठपर इसी समयकी लिपिम निम्न वाक्य खुदा है-श्रीमत्पारिसनाथाय नम ।]
[ए. रि० म० १९३३ पृ० १२२, १२५ ]
२५६ वावानगर (विजापूर, मैसूर)
शक १०८३ - सन् ११६१, कन्नड [ यह लेख कलचुर्य राजा विज्जणदेवके समय शक १०८३, विक्रम सवत्सरका है। इसमें मूलसघ-देसिगणके मगलिवंडके आचार्य माणिक्यभट्टारकका तथा मैलुगि नामक शासकका उल्लेख है। इसने कन्नडिगेके जैन वसदिको कुछ दान दिया था। ] [रि० सा० ए० १९३३-३४ पृ० १३०० ई १२०]
२५७ गुत्तल ( धारवाड, मैसूर)
शक १०(४४) सन् १९६२, काड [ यह लेख गुत्त वशके महामण्डलेब्बर विक्रमादित्यरसके समय पीप शु० १५, मोमवार, शक १०(८४) का है। इसमें केतिसेट्टि-द्वारा निर्मित पार्श्वदेवमन्दिरके लिए राजा-द्वारा भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है। पुस्तकगच्छ मलधारिदेव तथा सोमेश्वरपण्डितदेवका भी उल्लेख है ।]
[रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई ५१ पृ० ९६]
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-२५८]
हालगुडेका लेस
२५८ हालुगुड्डे ( मैमूर)
गद १०८४ = मन् ११६०, क्वड १ नमग्नुंगशिरथुम्बिचन्द्रचामरचारवे । लोक्यनगरारम्ममूलस्त
म्माय शम्मवे । स्वस्ति ममधिगनपचमहाशन • भोपमहामण्डलेश्वरनुत्तरमधुगधीश्वर पटिपोग्बुञ्चपुरवरश्वर __ पद्मावतीलब्धवरप्रमान मृगमदामोढ मन्नत३ मकलजनस्तुत्य नानिशास्त्रज्ञ-विरहार्वज्ञ-नामादिप्रशस्तिसहितं
श्रीमन्महामण्डलेश्वर प्रतापभुजबल ४ शान्तबरु सान्नलिगेमायिरम सुखसकथाविनोदहिं राज्यं
गेय्युत्तमिरे तलादपद्मोपजीवि समधिगतपच. • महाशब्द महाप्रचण्डकुमार वेदण्डपंचानन रिपुकुमारतारकपडाननं भरसकगाल विजयलक्ष्मीलोल श्रीमतुहोमगुन्दह वीररमर मैलुसान्न लिगेयुमं अग्रहारमुम सुखटिनालुत्तमिरं शकवर्ष १०८४ नेय चित्रमानुसंवस्मरत बंगाख सुट १० बहुवारठन्दु कटट टण्ड अलिय वम्मणेयर्नु पाण्ड्यरसनुम्बलिगारनु समस्तमावन बेरसि वूग्लु विट्ट ८ बत्ति बहल्लि नल्लिवडयलु जिनपानशेखर मन्विधिग्रहि माचि__ राजन ॥ कं० तलपारिनायक्गे पुलेयल घोप्पेयच्च नायरित्ति ९ मगं भूवलयढोल अधिकं पुहिद कलिगल मुखतिलकं गोग्गि
मण्टग्देव । रूपिनालु काममनिम कृर्पिनाला नरतनूज अभिमन्यु ६. तां पं तनछविडयोलु नोपडे कलि गोरिंग क्वृ क्ष जगढोल
धुग्ढोल अरातिभूभुजग्नन्नघटिटग्मकगाल वीर १ नलपि वेमय गांग्गणन्तिरिवल्लि विटं वीरर नोरनेत्तरि नेणन
सण्ड्ढ दिण्डंगरलगलिं मयकरं एन विक्रम कलिग ..
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१८४ जैनशिलालेग्य-सग्रह
[२५/१२ ना जगटेकवीरन । अणियरमोडिटहणट वीररनान्तिसुतिर्य बिल्ल
बल्लणिय तुरग साधनमनान्तिरिवल्लि महामय १३ (ने)णमय खण्ड दिण्डि नोरेनेत्तर कापुरमन्दु नोर्पोडिनणकमो __गोगियान्तिरिट विक्रममाहवरगभूमियो (क) १४ कलहढोलान्त वीरचतुरगवलगलनान्तु गोरिंग तोलबालटिन्हें
तूल दिरिय विहरिसेनेय लाहिताम्बुधि पलवु मिरंगल • १५ रन पोलोप्पिर वीरगल तोलतोलगन्दु तलतिरिव मम्भ्रम
सगररगमूलियोल १६ णमय लोहितवारि नेणद केसरुगल कुणिवढेगल एन्डडिढेन___णकमो विक्रमन १० धागलोन्दु तिरुवि विड्डवागलु नूर परिये सानिरवरिय
नेहुबलि कोटियेने पोडवियोल १८ ह॥ तरिसन्दाहिदरातिय मरुवक्मनान्तु गोरिंग यिरियल
धुरदोलु परिढलेयोलु मह १९ दलव ॥ नायकतन मुम्बरिसिद नायकरिदिरागि गोग्गियोल
तागुठदु सायकदिनेञ्चु तू २० देवरदन पेलवे ॥ मामलेटोड्दिन्यनृपसैन्यपयोधिगे बीरभूमुन
नूमटि वाडवानल २१ नोदु कुर्मनसास्त्रमेम्बुरिय नालगेगल विडेयष्ट्रियेवेदु मुम्म
लियायतु वैरिव २२ कृवास्खनो ॥ धुरदोलसिनेय निमरमिरियल गोरिंग वैरिबि
क्रान्ससरल् मरदिन् तनुवनुच्या २३ टोला सिन्धुसुतन पोल्त ॥ सन्ततमोहि निन्दरिबलालगल__नान्सिरिवाल्ल बैरिविक्रान्तसलिगल वनुवनुष्या २४ प्रदोल् ॥ सन्तनसूनुधेन्तु सरसैयेयोलोप्पिदनन्ते गोग्गि
विक्रान्तमनासेवष्ट सरलोहिदनाह ।
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-१५९]
एकसम्बिका लेख २५ · योल ॥ मगरटोलिरिद वीरम शृगारममक्कंवत्त गोग्गिय
तम्मुल्संगढोल इयदि निलिपागनयर् ०६ “(अ)मरावतियं ॥ अन्तु तलपहारिनायकन मग गोग्गिय
नायक कटकमनान्तिरिदु तुमुल २७ .""ममान्तरनेनिसिट श्रीवल्लभटेवनमपुत्र प्रतापभुजवल मान्तर
मेनिमिट तैलपटवर विनियम्मग्मन पुत्र श्रीमतु २८ रु तम्मरसर हेमरलु (१) गोट्टनेन्दु (१) हालुगुड्डेय त्रिमोगा
भ्यन्तरमिद्धियागि करलु नहु कारुण्यं गेदु कोह होस २९ वर मने बडि (१) दविन कैयोलगे हाट कैय मक्कि (१)
सहितमागि कोहरु ॥ मगल महा श्री श्री [ यह लेख वैशाख शु. १०, बुधवार, शक १०८४, चित्रभानु संवत्सरके दिन लिखा गया था । पट्टिपोम्बुच्चके मान्तरवणीच राजा श्रीवल्लभदेवके पुत्र तलपदेव-द्वारा हालगुड्ड ग्राम दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है। तलाहारि नायकके पुत्र मेनापति गोगिकी पाण्डयरमके विरुद्ध लडते हुए मृत्यु हुई थी। गोग्गिके कुटुम्बियोको यह ग्राम दान दिया गया था। लेखमें तैलपदेवको पद्मावतीलव्धवरप्रसाद यह विगेपण दिया है तथा गोग्गिको जिनपादशेखर कहा है। तैलपदेवके अधीन मेलसान्तलिगे प्रदेशके शासक वीररमका भी उल्लेख किया गया है।
___ [ए० रि० मै० १९२३ पृ० ७४ ]
રા एकसम्वि ( बेलगांव, मैमूर )
शक .०८७मन् १९६५, कन्नड [ यह लेख शिलाहार राजा गण्डरादिन्यके पुत्र विजयादित्यके समयका है। रट्टवशीय कत्तम (कार्तवीर्य) का सेवक मारगौड था। इसकी
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जैनशिलालेख-सग्रह
[२६०वशपरम्परा इस प्रकार दी है - मारगोट - आचगौड - होल्लिगोहजिन्नण, कालण तथा मदुवण । इनमे जिन्नण गण्टगदित्यका मेनापति था तथा कालण विजयादित्यका । कालणकी पत्नी लछले थी तथा उसे तीन पुत्र थे-जिन्नण, आचण तथा रामण । कालणने एक्कमम्बर्गमे नेमिनाथवमदि बनवायी तथा उसके लिए यापनीय मघ-पुन्नागवृक्षमूलगणके महामण्टलाचार्य विजयकीतिको कुछ भूमि दान दी। विजयकौतिकी गुरुपरम्परा यह थी- मुनिचन्द्र-विजयकीति-कुमारकीति विद्य-विजयकीति (प्रस्तुत )। इस मन्दिरको कोति मुनकर राजा कार्तवीर्यने भी इसके दर्शन किये तथा फाल्गुन २० १३ शक १०८७ को विजयकीतिको कुछ भूमि दान दी।
[ए. रि० मै० १९१६ पृ० ४८]
२६० मन्तगि (धारवाड, मैमूर )
राज्यवपं १० = सन् १९६५, कन्नड [ यह लेख कलचुर्य राजा विज्जणदेवके राज्यवर्ष १०, पार्थिव सवत्सरमे (१) मासके गु० ५, गुरुवारके दिन लिखा गया था। पान्यिपुर (वर्तमान हनगल) के कलिदेवमेट्टि-द्वारा चतुर्विशति तीर्थकरमूर्तिकी प्रतिष्ठा तथा मन्दिरके निर्माणका इसमें उल्लेस है। इसके लिए नागचन्द्र भट्टारकको कुछ दान दिया गया था। हानुगल नगर तथा कलिदेवमट्टिको विस्तृत प्रशसा की है।
[गि इ० ए० १९४७-४८ क्र० २०७ पृ० २५]
२६१ अरसीवीडि (विजापूर, मैमूर )
राज्यवर्ष १२%=सन् ११६७, कन्नड [ इस लेखमे कलचुर्य राजा भुजवलमल्लके राज्यवर्प १२, सर्वजित
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-२६४] नदिहरल्हल्लि भाटिक लेख संबन्नरमे पुरा गु० १४, मोमाग्ने दिन निन्द कुलके विट्टरमके पुत्र होलरम द्वारा गुणवेडगिर बनदिके लिए कुछ करोंके उत्पन्न दान देनेका उल्लेख है।]
[रि० स० ए० १९२८-२९ ३० ई ४० पृ० ४४]
२६२ नदिहरलहल्लि (धारवाड, मैसूर )
शक १०९० %मन् ११३८, कन्नड [ इस लेनमें कलचुरे राजा विमादेवक नमन ग १०९० सर्ववारि नंवत्सर, चैत्र पूर्णिमा, नोमबाके दिन जैन माधु-नाबिगारे माहारदानके लिए कुछ भूमि दान दी जानेका उल्लेव है।]
[रि० मा० ए० १९३४.३५ क्र० ई ५८ पृ० १५.]
२६३ हलसंगि (विजापूर, स्नूर)
शक १०९० =मन् १३१८, क्वड [इन लेजमे शक १०९० में चन्द्राण नमन घोजिनालय लिए कुछ भूमिदानका उल्लेख है। [रि० ना० ए० १९३७-३८, कई २५ पृ. २०१]
२६४ हिरेमनर (बारबाड, नगर)
शक ०९: मन् १७०, क्लड [ यह ले पुत्र गु० ५, गुस्वार शक १०११ विगेषि म्वन्ना है। इम्म मिन्द कुलक महानडम्बर चाबु डरस-द्वारा हिरिसमणि नयाला विद्यक दानवकी प्रार्थनापर कुछ भून्नि दाना उल्लेख है।
[रि० ना० ए० १९२४.०८ २०६४ ०]
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सनशिलालेग्य-संग्रह
[२६५
१८८
२६५ विजोलिया (गजस्थान) सवत् १२०६ = सन् ११७०, मस्कृत-नागरी १ सिद्धम् ॥ नमो वीतरागाय । चिट्टप महजोदित निरवधि
ज्ञानकनिष्टापित निस्योन्मीलितमुलम्पत्परमल स्थरकारविस्फारितं । सुव्यक्तं परमाद्भुत शियमुसानन्दाम्पटं गास्थन नामि स्नामि जपामि यामि शरण नज्ज्योनिरात्मा(स्थित ॥ ॥ नाम्न गन कुग्रहयग्रहां न नी तीवतजा २ नैव सुदुष्टहोऽपूर्वो रविस्तात् म मुटे वृपा व ॥२॥ [स]
भूयाच्छीगाति शुभविभवमगोमवभृतां विमार्यस्यामानि स्फुरितनग्नरोचि करयुग । विनन्त्राणामपामग्विलकृतिनां मगलमयीं स्थिरीक्तुं रमीमुपरचितरज्जु ब्रजमिव ॥३॥ नासाश्चासेन येन प्रवलयलभृना पूरित पाचजन्य ३ वरदलमलि(नीपाद पद्मापदेश । हस्तांगुप्टेन शार्ग धनुरनुलबल कृष्टमारोप्य विष्णोरंगुल्या टोलितोय हलभृतवनित तस्य नेमस्तनोमि ॥४॥ प्राशुप्राकारकातात्रिदशपरिवृढव्यूहरुवावकाशा वाचाला तुकोरि(क्वणनणुमणीकिंकिणोमि ममतात् । यस्त्र व्याख्यानभूमामहह किमिडमिन्याकुला तुकेन प्रेक्षते
प्राणमाज ४ (स मुवि ) विजयतां तार्यकृत् पार्श्वनाथः ॥५॥ बता वर्धमानस्य वर्धमानमहोदय । वधता धर्धमानस्य वर्धमान( महोदय ॥६॥ मारठा सारा स्तौमि सारदानविमारता । भारती भारती मक्तमुक्तिमुक्तिविशारा ॥७॥ नि प्रत्यूहमुपास्महं जिनपतीनन्यानपि स्वामिन श्रीनामेयपुर सरान् परकृपापीयूषपायोनिधीन् । ज्योति परमागमाज
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-110] विज्ञालियाका लेख
१८९ . ननया मुक्त त्मनामा(नि)ना श्रीमन्मुक्तिनिनविन स्तनतटे
हाश्रिय विन्नति ॥ मचाना हृदयामिरामबमनि मद्धम(मन)यिनि कमेन्मलनसंगान शुमननि. निबांध(वा)बी
नि. । जीगनासकारणानि श्रेय श्रिया समृनि. देयान्ने मवम्भृति शिव(म)नि जन चनुर्विगति ॥ ९ ॥ श्रीत्राहमानलिनिगजवः पावाप्यों न जहावन । मिन्त्री
नां६ ( गो नत्र ) युक्नो नो नि फर मारयुना नना नौ ॥१०॥
लावण्यनिमलमहाज्वलिनांगप्टिरच्छोच्छलच्छचिपय परिबानधा(बी। उत्तुंगपवनपयोधरमाग्भुग्ना शाक्मराजनि जीव तनापि विष्णो. ॥1॥ विन श्रावस्मगोत्रमूहिच्छत्रपुर पुग। मामनोनतमामन्न. पूर्णतरला नृपस्तन ||२|| नम्माच्छी
जयराजविग्रहनृपी श्रीचन्द्रगोपेन्द्रका तस्माद्द(लं)नगूबको गशि• नृपो गूवाकसञ्चंदनौ। श्रीमज्ञप्पयराजविध्यनृपती आसिंहराविग्रही। श्रीमद्दुलं मगुढुवापनिनुपा श्रीबीयंगमोऽनुजः ॥१३॥ (चामुंडा ) वनिपोऽतिउन गणश्वर श्रामिघटी दूमल्न्नभ्राताथ तारि बामलनृप पाराजवाप्रिय । पृथ्वीराज. नृरोथ नत्तनुमत्री गसल्लदवाविभुस्तत्पुत्रो जबटव इत्यवनिप मामल्लदेवीपति ॥१४॥ हत्या चचिनिधनाभिधयसाराजाठि
वीरत्रयं । ८ क्षिप्रं कृतांतवयकुहर श्रीमार्गदुन्वित । श्रीमा(एल)ग
दण्डनायवर सत्रामरगागणे जीवन्ध नियंत्रित करमक येन (लि)मान ॥१॥ अण्णाराजोस्य सूनुभूतहटग्रहरि मन्त्रवांशिष्टमीमी गामायौदार्यवयं मममबद(चि)रालब्धनभ्यो न दीन । तञ्चित्रं जं न जाड्यस्थितिरवृत महापकहंतुनं मध्या न श्रीमुक्ती न ढोपाकरचितरतिनं द्विजिहाबिसंव्य ॥१६॥
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१९०
जैनशिलालेस-संग्रह
[२६५९ यदाज्य कुशवारणं प्रतिकृतं राजाकुशेन म्वय यनात्रैव नु
चित्रमेतत् पुनर्मन्यामहे त प्रति । तचित्र प्रतिमासवे सुकृतिना निर्वाणनारायणन्यज्ञाराचरणेन भंगकरण विवरान प्रति ॥१७॥ कुवलयविकासकर्ता विग्रहराजोजनि (स्तु) नो चित्र । तत्तनयस्तचित्र य(च) जडक्षीणसक्लक ॥१८॥ मादानत्व चक्रे मादान
पन्ने, परस्य मादान. । यस्य दधस्करवाल करतलाकलित १० करतलाकलित ॥९॥ कृतातपथमज्जोभूत सजनो सजनो
भुव । वैकुत कुतपालोगा( द्यत) कु( त पालक ॥२०॥ जावालिपुर ज्वाला(पु)रं कृता पल्लिकापि पल्लीव । नलतुल्य रोपानदुल येन शौर्येण ॥२१॥ प्रोल्या च बलम्या च येन विश्रामितं यशः। ढिल्लिकाग्रहणश्रातमाथिकालामल मित ॥२॥ तज्ज्येष्ठत्रातृपुन्नोऽभूत् पृथ्वीराज पृथूपम । तस्माद
जिंतहमागी हेमपर्वतदानतः ॥२६॥ अतिधर्मरतेना११ पि पार्श्वनाथस्वयभुवे । दत्त मोराझरीग्राम भुक्तिमुक्तिश्च
हंतुना ॥२४॥ स्वर्णातिढाननिवहर्ट गमिमहमिस्तोलानरेनगरदानचौञ्च विप्रा.। येनाचिताश्चतुरभूपतिवस्तुपालमाक्रम्य चारुमनसिद्धिकरी गृहीत ॥२॥ सोमेश्वरालब्धराज्यस्तत सोमेस्वरो नृप । योमरवरननो यस्माजनः सोमस्वरोमबत् ॥२६॥ प्रतापल स्वर इत्यमिख्या यः प्राप्तवान् प्रोढपृथुप्रताप । यस्यामिमुस्त्ये वरवैरिमुख्या केचिन्मृता केचिदमिहताश्च ॥२७॥
येन श्रा१२ पाश्र्वनाथाय रेवातीरे स्वयमुवे । सासने रेवणाग्राम दन्त स्वर्गाय
काक्षया ॥२८॥ छ ॥ अथ कारापकचशानुक्रम. ॥ तीर्थ श्रनिमिनाथस्य राज्ये नारायणस्थ च। अंमधिमथनाडेववकिमिवलशालिमि. ॥२९॥ निगंत प्रवरो वंशा देवटै समाश्रित । श्रीमालपत्तने स्थाने स्थापित शतमन्युना ॥३०॥ श्रीमालीलप्र.
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-२६५]
बिजोलियाका लेख वरावचूल पूर्वोत्तरमत्वगुर सुवृत ।प्राग्वाटवशोस्ति बभूव तस्मिन्
मुत्तोपमो वैश्रवणामिधान ॥३१॥ तडागपत्तने येन कारित १३ जिनमंदिर। (नीत्वा ) भावा यशस्तत्वमकत्र स्थिरतां गत
॥३॥ यांचीवरचसुचिप्रमाणि व्यारकादौ जिनमदिराणि । कोतिहमारामसमृद्वितोर्विमाति कठा इब यान्यमहा ॥३३॥ कल्लोलमांमलिनीतिमुधासमुद्र. मद्बुद्धिवपुरवधूधरणे ध(ग्श:)। "पाकारकरणप्रगुणातरात्मा श्रीचच्चुलस्वननय पदभूत् ॥३॥ शुमकरस्तस्य सुतोजनिष्ट शिष्टमंहि परिकीयंकार्ति । श्रीजामटोसून तढगजन्मा चढगजन्मा खलु
पुण्यराशि ॥३॥ महिर वर्ध१४ मानस्य श्रीनाराणकसस्थित । माति यन्कारित स्वीयपुण्य
स्कंधमिबोज्वल ॥३॥ चत्वारश्चतुराचारा पुत्रा. पात्र शुमश्रियः । अमुप्यामुप्यधर्माणोर्बभूवुर्भाग्योदयो ॥३७॥ एक्स्या द्वावजायंता श्रीमदाम्बटपनटो। अपरस्या (सुतौ जातो श्रामल्ल)मटनेमलो ॥३८॥ पाकाणा नरवरे वीरवेश्मकारणपाटव । प्रकाटेत स्वीयवित्तेन धातुनेव महीतल ॥३०॥ पुत्री पवित्रा गुणरत्नपात्री विशुद्धगात्री ममशीलसत्यौ। वभूत्रनुल मटकस्य
जत्रा मुनींदुरामदभिधौ प्रशम्तो ॥४०॥ १. पम्बडागमबद्धसहिदमरा पजीवरक्षेश्वराः षड्मप्रियवश्यता
परिकरा पटकमक्लप्साहराः। पट्सडावनिकीर्तिपालनपरा पाइगुण्यचिंताकरा पडदृष्टयत्रुजमारकरा मममव पट् देशलस्यागजा. ॥४१॥ श्रेष्टी दुद्यकनाथक प्रथमक श्रीमोमली वीडिदेवम्पर्श इतोपि सीयकवर श्रीराहको नामतः पुते तु क्रमतो जिनक्रमयुगांमांजैकभृगोपमा मान्या राजशवदान्यमतयो रानति वृत्सवा ॥४॥ हम्य श्रीवर्धमानस्यानयमरोविभूषणं कारितं यमहामार्गवि
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जनशिलालेख-सग्रह
[२६५१६ मानमिव नाकिना ॥४॥ तेपामत• श्रियः पात्रं (मीय)क:
श्रेष्टिभूषण | मडलकरमहादुर्ग भूपयामास भूतिना ॥५॥ यो न्यायांकुरसेचनकजलद को निधान पर सौजन्याबुजिनी विकामनरवि पापादिभेटे पधि । कारुण्यामृतवारिधेविलसन राकानशाकोपमो नित्य माधुजनोपकारकरणब्यापारबद्धादरः॥४५॥ येनाकारि जिगरिनमिमवन देवाद्विगोधुर चंचतकाचनचारदडकलश श्रेणीप्रमामास्वरं। पेलत्-खेचरसुन्दरीश्रममरं भजद् वजोद्वीजनैधतेष्टापदशेलभंगजिनमृतग्रोहामसद्मश्रियं
॥४६॥ श्रीसीयवस्य भार्ये । १७ सोनागश्रीमामटामिधे। श्राद्यायास्तु त्रयः पुत्रा द्वितीयायाः
सुतद्वय ॥४॥ ५चाचारपरायणात्ममतयः पचागमनोज्वला पञ्चज्ञानविचारणासुचतुराः पचेन्द्रियार्थोजयाः। श्रीमत्पचारप्रणाममनस पचाणुशुद्धग्रता: पचते तनया गृही(तवि)नया श्रीसीयकश्रेष्ठिन ॥४८॥ माद्य. श्रीनागदेवोऽमल्लोलाकोज्वलस्तथा। महीधरो देवधरी द्वाचेतावन्यमातृजो ॥४९॥ उज्वलस्थागजन्मानी श्रीमदुर्लमलक्ष्मणो । भभूतावनोदासियशो
दुर्लमलक्ष्मणौ ॥५०॥ गामीयं जलधे स्थिरस्वमचलाज१० रिमना मास्वत सौम्य चंद्रमसः शुचित्वममरस्रोतस्विनीत परं।
एकक परिगृह्य विश्वविदितो यो वेधसा साटर मन्ये वीजकृते कृत सुकृतिना सल्लोलकष्टिन ॥५७॥ अथागमन्म (दिरम) पीते श्रीवि(ध्यव)ली धनधान्यवल्ली। तत्राल(लोक ह्यमिवल्पसुस ) कचिन्नरंश पुरत स्थित स ॥५२॥ उवाच कस्त्व किमिहान्युपेत कुन स त प्राह फणीश्वरोह । पातालमूलाचव देशनाय (श्री) पार्श्वनाथ स्वयमप्यतीह ॥५॥ प्रातस्तेन समुत्याय न किंचन विवेचित । स्वप्नस्यांतम्मनोभावा यता वातादिदूपिता ॥५॥ लोला
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-२६५ ]
बिजोलियाका लेख
१९३
१९ क (स्व) प्रियास्तिस्रो बभूवुर्मनस प्रिया । ललिता कमलश्श्रीश्च लक्ष्मीलक्ष्मीसनामय ॥ ५५ ॥ तत स भक्तां ललिता वमापे गत्वा प्रियां तस्य निशि प्रसुप्तां । शृणुष्व मद्रे धरणोहमंहि श्री (पार्श्वनाथ खलु दर्शयामि ॥ ५६ ॥ तया स चोको ( यत्त्व न हि ) सत्यमेतत् । श्रीपार्श्वनाथस्य समुष्टतिं स प्रासादमच च करिष्यतीह ॥ ५७ ॥ गत्वा पुनर्लेलिकमेवमृचे भो भक्त शक्तानुगतातिरिक्त । देवे घने धर्मविधो जिनोष्टौ श्रीरेवतीतीरमिहाप पार्श्व ॥ ८॥ समुद्धरेन कुरु धर्मकार्य त्व कारय श्रीजिनच
२० स्यगेहं । येनाप्स्यसि श्री कुलकीर्तिपुत्रपौत्रोरसतान- सुखादिवृद्धिं ॥ ५९ ॥ तदेतद्भी) माख्यं वनमिह निवासो जिनपतेस्त एते ग्रावाण. शठकमठमुक्ता गगनतः । सदारा (म ) ( शश्वत्स ) दुपचयत कुडसरितांस्तदत्रैतत् स्थान" (नि) गमं प्रायपरम ॥ ६० ॥ अन्नास्त्युत्तममुत्तमाद्रिशिखरं साधिष्ठमचोच्छ्रितं तीर्थ श्रीवरलाइकात्र परमं देवोतिमुक्तामि । सत्यश्चात्र घटेश्वर सुरनतो देव कुमारेश्वरः सोभाग्येश्वरदक्षिणेश्वरसुरो मार्कडरिच्छेश्वरौ ॥३१॥ सत्योंवरेश्वरो देवो ब्रह्ममह्येश्वराव पि कुटि२१ लेश: कर्करेशो यत्रास्ति कपिलेश्वर ॥६२॥ महानाल-महा का ( कम ) रथेश्वरसंज्ञका. श्रीत्रिपुष्करता प्राप्ता ( संति) त्रिभुवनाचिताः ॥६३॥ कीर्तिनाथश्च (केदार) मिस्वामिन' । संगमेश पुटीशश्च मुखेश्वरवटेश्वराः ||६४ || नित्यप्रमोदितो देवो सिद्धेश्वरगयेश्वरा. । (गगाभेदश्च ) सोमेश. गगानाथ त्रिपुरातका. ॥ ६५ ॥ सस्नात्री कोटिलिगानां यत्रास्ति कुटिला नदी । स्वर्णजालेश्वरो देव सम कपिलधारया ॥ ६६ ॥ नाल्पमृत्युर्न वा रोगा न दुर्भिक्षमवर्षणं । यत्र देवप्रभावेन कलि
२२ पंकप्रधर्षणं ॥६७॥ षण्मासे जायते यत्र शिवलिंगं स्वयंभुवं । १३
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जैन शिलालेख-सग्रह
[२१५तत्र कोटीश्वरे तीये का श्लाघा क्रियते मया ॥६॥ इस्पेयं । कृत्वावतारक्रिया। कर्ता पार्श्वजिनेश्वरोत्र कृपया सोथाय वासः पतेः शक्ते क्रियिक श्रियस्त्रिभुवनप्राणिप्रयोध प्रमुः॥१९॥ इत्याकण्यं वचो विमान्य मनसा तस्योरगस्वामिनः म प्रातः प्रतियुध्य पाचममित क्षाणी विढार्य क्षणात् । तावत्तत्र विभुं ददर्श सहसा नि:प्राकृताकारिण कुढायणत एवं धाम दधत स्वायभुत्र
श्रीश्रितं ॥७॥ २३ नासीधन जिनेन्द्रपादनमन नो धर्मकर्मार्जन (न स्नानं )न
विलेपन न च तपो ध्यान न दानाचंन । नो वा सन्मुनिदर्शन (न) • ॥१॥ तस्कुडमध्यादथ निजंगाम श्रीमीयकस्यागमनेन पड़ा। श्रीक्षेत्रपालस्तदयाविका च (श्रीज्वा)लिनी श्रीधरणोरगेंद्र ॥७२॥ यदावतारमकापीटत्र पाश्वजिनेश्वरः । तदा नागहदे यक्षगिरिस्तष पपात स ॥७३॥ यक्षोपि दत्तवान् स्वप्न लक्ष्मणब्रह्मचारिण । तत्राहमपि यास्यामि यत्र पाश्व विभुर्मम
॥७॥ रेवतीकुण्ड२४ नीरेण या नारी स्नानमाचरेत् । मा पुत्रं भर्तृसौभाग्य (लक्ष्मी
च) लमवे स्थिरं ॥७५॥ ब्राह्मणः क्षत्रियो वापि वैश्यो वा शूद्र एव वा। रेवतीस्नानका अ. स प्राप्नोत्युत्समा गतिं ॥४६॥ धन धान्य धरा धाम धैर्य धौरयतां धियं । धराधिपतिसन्मान लक्ष्मी चाप्नोति पुष्कळां ॥७७॥ तीर्थाशय मिट जनेन विदित यद्गायते सांप्रत अष्टप्रेतपिशाच-कुन्धररुजाहीनागगंडापह, संन्यास व चकार निर्गतमय घूकसगालीद्वय काली नाकमवाय देवकलया कि किं न संपद्यते ॥मा शान्यं नन्म कृत धन
च सफलं नीता प्रसिद्धि मतिः । २५ सद्धर्मोपि च दर्शितस्तनुरुहस्वप्नोपित: सत्यता म रिदृष्टिदूषित
भना सदृष्टिमागे कृतो (न) • ना श्रीलोलकष्ठिनः ॥७९॥
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जैनशिलालेख-सग्रह
[२६५तत्पुत्रो पाल्हणो मुवि । वदगजेमाहडेनापि निर्मापित जिनमदिरं ॥३०॥ नानिग. पुत्रगोविंदपाल्हणसुतदेल्हणौ। उस्की प्रशहिमरेषा च कीर्तिस्तम्म प्रतिष्ठितं ॥३१॥ प्रसिद्धिमगम व काले
विक्रममास्वत षड्विंशे द्वादशशते फाल्गुने कृष्णपक्षके ॥२॥ २६ (१)तीयायां तियो चारे गुरुस्वारेच हस्तकं । तिनामनि योगे
च करणे तैतिले तया ॥१३॥ (स) वद १२२६ फाल्गुन पदि ३ कावारेवणाग्रामयोरतराले गुहिलपुत्र रा० दाधरमहं धणसीहाम्या दत्त क्षेत्र डोहली १ खदुबरामाभवास्तव्य गोडसोनिगवासुदेवाभ्यां दत्त डोहलिका १ आंतरीप्रतिगणके रायताप्रामीय महंतमलीवडिपोपलिम्या दत्त क्षेत्र डोहलिका लघुवीझोलिग्राम सगुहिल
पुत्र राज्याहरूमहतममाहवा-- ३० (भ्या ६) सक्षे (त्र) डोहलिका १ बहुभिर्वसुधा भुक्ता रानमि
मरतादिमि । यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदा फल छि॥ [ इस लेखका निर्देश जै०शि० स० के तृतीय भाग में क्र० ३७४ पर हुआ है किन्तु उस समय इसे श्वेताम्बर लेख समझकर मूल पाठ नही दिया गया था। इसमें पहले २८ श्लोकोमे साभरके चौहान राजाओकी घशावली चाहुमानसे सोमेश्वर तक दी है। इसमें कुल ३१ राजानाकै नाम है। इनमें अन्तिम दो राजाओने इस स्थानके पार्श्वनाथ मन्दिरको दो गांव दान दिये थे-पृथ्वीराज (द्वितीय) ने मोराझरी गांव और सोमेश्वरने रेवणा गांव दिया था। तदनन्तर इस मन्दिरके निर्माताको वशावली विस्तारसे ५१वें श्लाक तक दो है जो इस प्रकार है -
प्राग्वाटवशीय वैश्रवण ( इसने तडागपत्तन, व्याप्रेरक आदि स्थानोम मन्दिर बनवाये)- उसका पुत्र चच्चुल-उसका पुत्र शुभकर-उसका पुत्र जामट (इसने नाराणक स्थानमें वर्धमान मन्दिर बनवाया)-उसकी दो स्त्रियोसे दो दो पुत्र हुए - आम्बट, पघट, लक्ष्मट तथा देसल (इनने
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-२६६] इन्दोर म्युजियमका लेख नरवर नगरमे वीरजिनमन्दिर बनवाया)- लक्ष्मटके पुत्र मुनीन्दु तथा रामेन्दु-देमलके पुत्र दुधक, मोमल, वीगडि, देवस्पर्ग, सीरक तथा राहकमीयकने मण्डलकर दुर्ग विभूपित किया और नेमिनाथ मन्दिर बनवायाउमको स्त्रिया नागधी तथा मामटा - नागपीक पुत्र नागदेव, लोलक तथा उज्वल -मामटाके पुत्र महीधर तथा देववर - उज्वलके दो पुत्र दुर्लभ तथा लन्मण । इनमें मीयकके पुत्र लोलकन यह मन्दिर बनवाया । मन्दिरके निर्माणका वर्णन ८५वं लोक तक किया है। कहा है कि लोलक तया उसकी पन्नियां ललिता, कमलथी और लन्मी विव्यवल्ली नगरमे थे उस समय धरणेन्द्र ने स्वप्नमें लोलाक थंष्ठीको इन मन्दिर निर्माणका आदेश दिया । तदनुसार जमीन खोदते हुए एक पार्श्वनायमूति मिली और उसके लिए लोलकने यह मन्दिर बनवाया। इस स्थानको वरलाइका तीर्थ कहकर यहाँके कई शिवमन्दिरीका माहात्म्य भी इस लेखमे दिया है। यहाँक रेवतीकुण्डमें म्नान करनेमे कोढ आदि रोग दूर होनेका भी वर्णन है। लोलाकके गुरु जिनचन्द्रमूरि थे। इस लेखकी रचना माथुर सघके महामुनि गुणभद्रने की। इमे केशवने शिलापर लिखा और गोविन्द तथा देल्हणने उत्कीर्ण किया । यह कार्य फाल्गुन कृ० ३ मवत् १२२६ को सम्पन्न हुन । अन्तम इम मन्दिरको दानन्पमें प्राप्त कुछ जमोनोका विवरण दिया है।]
(ए० इ० २६ पृ० १०२)
___ इन्दोर म्युजियम (मध्यप्रदेश)
सवन् १.०७ -सन् १९७१,संस्कृन नागरी [ इस लेखम गख चिह्न है जिसमे प्रतीत होता है कि यह नेमिनायकी मूर्तिका पादपीठ होगा। इसमें देशीगणके गुणचन्द्र, श्रीकीति, रलचन्द्र तथा भावचन्द्रका उल्लेख है और गुर्जर जातिके वीन नामक व्यक्तिका भी उल्लेख है। ममय सबत् १२२ (७)।]
[रि० इ० ए० ० ( १९५०-५१ ) १६१]
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जैनशिलालेख संग्रह
[ २६७
२६७
नदिहरलहल्लि ( धारवाड, मैसूर )
शक १०९ (५) = सन् ११७३, कन्नड
[ यह लेख कलचुर्य राजा रायमुरारि सोविदेवके समय श्रावण शु० (?) गुरुवार, शक १०९ (५), नन्दन सवत्मरका है। इसमें उल्लेख है कि दण्डनायक महेश्वरदेवके अधीन कर मग्रह करनेवाले अधिकारियोने गोट्टगढि स्थित नागगावण्डकी वसदिके लिए कुछ करोका उत्पन्न दान दिया । उस समय वनवासि प्रदेशपर कासिमय्य दण्डनायकका शासन चल रहा था । ]
[ रि० स० ए० १९३४-३५ क्र० ई० ५९ पृ० १५२ ]
२६८
वोगाडि ( माडया, मैसूर ) शक १०९५ = सन् १९७३, कन्नढ
१ श्रीमत् पार्थिवकुलचन्द्र यदुवशवार्धिवर्धनचद्र मोमभुजं ललनाजनकामामिरामन् चाल || टिगिमंगलु मदविहलगल भलुकलु कूर्म निम्तोर्मेयुं मोगमीयं भुजगाधिपं बहुमुख सारक या सगमेन्दुगुणोवप्रम्पसप्रलक्षयल सहोर्दण्डदोल संतोष मिगे भूकामिनि विल् यापदुलदि बल्लाळ भूपालन ॥ भा नृपनगण्यपुर्ण्य मानसरूपादुदेविन भुवनजन मानोज्ञतकनका चलन् भनत रक्षकदक्षरत्ननिधानं ॥ महागमन्त्रकमनीयाल वित सुरराजपूज्यचरणाक्यन एनलु सचितकीतिपराक्रम प्रभावनन् एनिसि
२ माचिराज नेग ॥ वनुवि कामन (न) थिंगीव गुणदि कल्पाद्रिय हेमाचलम चारुचरित्रदिंदुधिय गामीर्यदि स्थैर्यटिं कनकाद्रीन्द्र
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-२६८] बोगाडिका लेख
१९९ मनिंदनं विमवदि गेल्तिर्दना माचिराजनन् आर्मण्णि ( सलापर है ) विश्वमरामागदोलु ॥ आ विभु माचिराजन मावं बल्लय्यन् अय्यन् ई धरेगेल्ल काव गुणदिन् पाउन् अढाव गुणगणदिन् आतन् एणेयप्पनं ॥ अधिगमसम्यग्दृष्टियन् अधिगतसकलागमायनं कविवुधमागधीनजैनजनतानिधियं पोगललुके बल्लर आर बल्लय्यनं विरिदवन् ईयलु बल्लं सरणेंदडे करुणदिंदे कायलु वल्लं पुरुषांतरमं वल्ल परिकिपद्धन्तल्ते' ३ ल नादं बल्ल ॥ परकान्तानकजालक्क्के पर"टाराहरलक्के पानतरोत्गस्तनद्वन्द्वसुंदरसंगक्के परांगनाभुजलतासंश्लेषणकोडिसं निरत श्री • वलदेव निटं परिहृतपरदार दीनांधनाय". विदितविशदकोतिविश्रुतोदारमूर्ति स जयतु वलदेव श्रीजिनेन्द्रांघिसेव ॥ अन्ता बल्लालमहीकांतन वरमन्त्रिवल्लमं बल्लय्य सन्ततजिनपूजनेगागन्तुकम मो(ग)वढिय वसदिगे बिह । नीचेकी ओर ४ होरवार भोलवारु मग्गढेरे कालवोवनहल्लिय यिनितर मत्तंतु मनेसुक नेरे मलवत्तियसुंक विनित ॥ "॥ वनपालम सुकवनितं मनुमार्ग मदनमूर्ति विभु बल्लख्यं मनमोसदु भोगवमदियोलु जिनपूजेगे मक्तिििददा ५ दिदिन्तिदनेवे काब पुरुषंगायुं जयश्री ८ कायदे काव्य
पापिगे बारणासियोल् एकोटिमुनीन्द्ररं कविलेयं वेदाध्यरं कोन्दुनादयशं पोर्दुगुमदु सारिदपुढीशलाक्षरं धात्रियोल ॥ विपं न विषमित्याहु. देव६ स्वं विषमुच्यते विषमेकाकिनं हन्ति देवस्वं पुत्रपौत्रकं ॥
स्वदतां परदतां वा यो हरेत वसुंधरा. षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रिमिः ॥ मंगल
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२०.
जैनशिलालेख-सग्रह
[२६९-- . सामान्यीय धर्ममेतर्नृपाणा काले-काले पालनीयो मवनि सर्वानेवान माविन. पार्थिवेन्द्रान भूयो भूयो याचते रामचंद्रः । स्वस्ति श्रीमन्महामंडलेश्वर त्रिभुवनमल्ल वीरगग बलालदेवरु टोरसमुद्रदलु सुखसंकथाविनोददि राज्य गेयुत विरलु उत्पादपयोपजीवि महाप्रधान सर्वाधिकारि हेग्गडे वलय्य शककालं सासिरद तोमवेदनेय विजयसंवत्सरट कार्तिक शुद्ध पचमि सोमवारददुः कालबोवनहलिसहितवागि बोगवटियलल्ल समस्तसुकव श्रीकरणजिनालयद श्रीपाश्वेदेवर भष्टविधार्चनगेंदु
श्रीमटक्लंकदेव(सिंहा.) ८ हासनस्थितरप्प श्रीपमप्रमस्वामिगलगे धारापूर्वक माडि कोहरु
(इस लेखमे होयसल राजा वल्लालके महाप्रधान हेगडे वल्लव्य-धारा भोगवदिके पार्श्वजिनालयके लिए अकलकदेवकी परम्पराके पद्मप्रभ स्वामीको कुछ करोका उत्पन्न दान दिये जानेका निर्देश है। यह दान कार्तिक शु० ५, शक १०९५, विजयसवत्सर,के दिन दिया गया था। हेगड़ें वल्लय्य महाप्रवान माधिराजका भाव ( ससुर या चाचा था)
[ए. रि० म० १९४० पृ० १५० ]
२६६ सोगि (जि० बेल्लारी, मैसूर) १२वी सदी, कन्नड (वीरप्पक घरके आगे एक शिलासण्टपर)
[ इस लेखमे होयसल राजा विष्णुवर्धन वीरवल्लाल-द्वारा कातिक कृ० ५, गुरुवारको किसी जैन सस्थाको भूमिदान दिये जानेका निर्देश है।
[इ० म० वेल्लारी २३७ ]
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-२७१]
कलसापुरका लेग्य
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२७० चिक्कहन्दिगोल (धारवाड, मैनूर)
राज्यवर्ष = सन् ११७५, क्नढ [इम लेग्वमें कलचुर्य राजा मोविदेवके राज्यवर्प 'जयमवत्सरमे शखजिनालयको दिये गये दानका वर्णन है । इस लेखकी रचना 'अनुपमकविकालिदाम' हित्तिन मेनबोव-बाग की गयी थी।] [रि० मा० ए० १९२६-२७ ३० ई० १५० पृ० १२ ]
२७१ कलसापुर (कडूर, मैसूर)
शक १०६८ = सन् ११७६, कन्नड १ (घिस गयी है) • कैवल्यबोधेन्दिराधाम पोढशतव(तीय)कर्तृ विमलज्ञानातिय
मत्सुखारामं मारके विनेयसन्ततिगे नित्य शान्ति३ तीयेश्वरं ॥ (१) श्री स्वस्ति होयिमलवशाय प्रतापार्जिनकीर्तये ।
यदुवंशनृपान भूभू४ ते ॥ (२) तन्वयावतारमन्तेन्टोडे ॥ परसीजोढरनामिपद्मजनज
तत्पुत्रनन्तत्रियत्रिरुहाभूनबु. धं पुरूरवने तज्ज तत्तनुजायुवायुरपत्य नहुप ययातिमहिप
तसमम्म नरेश्वरजा६ तं । यदु तत्कुल मलनृपं लोकोत्तमं पुष्टिव । (8) यादवरोले
होयिमलबेमरादुदु सर निन् हुलि७ य मेलेयुण्डिगेयादुदु चिह्न वग्मन्नादुदु सले शशकपुरद
बासन्तिथि ॥ (४) सलनृपनि व
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जैनशिलालेस-संग्रह [ २७१८ लियिं यदुकुलढोल पलम्घरोगेदर् अवरन्धयहोल । बलवद्
पिरोधिकुलिश जनियिमिदनसेयेवि६ नयाहित्य ॥ (५) धनमार्गानुगत जगतप्रणुनमित्र मण्डलान
प्रतापनियुक्त रिपुभूपमन्तम१० समेढ सज्जन नसन्तोपकर स्त्रयन्युजनचक्राहादक पुहिट
विनयादित्यनुपाल११ क यदुकुलातुपोदयाइन्द्रि ि॥ (६) विनयाहित्यनृपालन कुल
वधुवेनिमि सिरियोल१२ वाणियोल तनगे केलेयोरन्दु युधजनवेने कलियब्बरसि
सरसिजानेनेयेसेदल ॥ (७) मति कलियट्यरसिंगमा१३ विनयादित्यनानिग पुष्टिदमुदतवैरिटर्पदलनोधरामयनयशीर्य
शालियरेयंगनृप ॥ (6) १४ विनयादित्यावनिपालन सुवनेरेयंगं सगर्वित भू "निरप
धर्मदीक्षागुरुविनतमहीमृत्पमू१५ हैकरक्षावनाधिप्रिय समस्ताश्रितनटनटीसिन्धमू कलनिव निजत
सत्यवाणिमुखमणि मा१६ पुरनिर्मलाबोधसुतं हिमरुचियन्ते सेवादरविय तयं सरसिजम
मनोरमकुसुमंगल कट१७ नयं मदन विदियागि ताने तोयटमृतदिने निर्मिसिटनेनदे
केलदेय भूरमणन कान्तय पेरत१८ नेत्रदिर् एचरूदेविराणिय । (९) भन्तेरेयंगमहीशन कान्तेगे ____ जनियिसिदरेसेव पल्लालमहीकान्त विष्णुमहिपननन्तगुण १९ नृपललामनुदयादित्य । (१०) अवरोधालुमनागियु बुधनिकाय
स्तूयमानि श्री विशेषोन्नतियिन्दमु२० समनेनिप्पं सच्चरितादि वगगाजलधौतनिर्मलकुलहप्तारिदापहं
मुव 'विमव. श
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-२७१] कलसापुरका लेस
२०३ २१ श्रीविष्णुभूपालकं ॥ (११) जनियिसिहं विष्णुमहीशन ल •
विटनुपम नरसिहावनिप नतरिपुभूगल-निकायलला - २२ टतरविघटितचरण देवनृसिंहन प्रियमहिपीपट्टढोलरंत पट्टमहि
पिये देचलढवा लसल्लतागि २३ राजीवदलाक्षि पल्लवनिमाधर पाटलकण्ठि कोकिलारावे • राजीव
नल" य । यनये तालदिढल् ॥ (१२) कालनिमप्रत - २४ जनरसिंहमहीपतिग महमलालालसयानकम्बुनिमकन्धर अंचल
देविग · श्रीललनेशन्नाननं पुष्टिवर्जित - २५ पुण्यमूर्ति वल्लालनृपाल समढवेरिमहीभुलढपमंजन ॥ (१३)
क्रा"वादिधरावनितंय चातुर्यदि नीढी (१) २६ निरमणि रमणीशकुलम श्रीयोलायशनुरत्यागदि वन्दिवृन्द
मनित्यानतसत्यढि चरितदि सन्नतमु तन्नोल क्रमादि निश्चल - २० मपूर्व तलेट बल्लालभूपालक ॥ (१४) निजपादानत दित
लक्ष्मीवल्लम - ला "मूर्ति विबुधाराध्य २८ बगन्नेत्र नीरसमिन्न स" हे कान्तनेनिप प्रतापदेवं समस्त
नगवन्धपढारविन्द" रारा • नल ॥ (१५) पुस्हू (त) २९ ख्यातमोगं शिखिनिभघनतेज यमावार्यशौर्य नरवाहातोष ' 'वायु
सत्रं धनाधीश्वरसं३० घर महेशप्रकटितमहिम लोकपालप्रमावान्तरनादं दिग्वधूमण्डन
विशढयशं वीरयल्लालदेव ॥ (१६) भूगुगेनि वासराज ३१ हयहिनिमसमारूढप्रोदियिन् मगढतं वेपदिन्हें दिविजपति के
सत्वगुण प्रभूति ३२ राघवन् इनतनय त्यागढिं वादिभूपाल नहिटतप्रतिमनेनिमिठ
वीरवल्लालदेवं ॥ (१७) स्वरित समधिगतपच - ३३ महागठमण्डलेश्वर द्वारावतीपुरवराधीश्वर यादवकुलाम्बर
धुमणि मम्यक्त्वचूडामणि तलकादुकोंगुणिव
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२०४ जनशिलालेग्य-पग्रह
[२७१३४ नवामिवुच्छगिहा गलगोण्ड भुजबलवीरगंगनमहायवर निश
कप्रताप होरपलवारयलालदेवरमर द्वारममु३५ द्रढोल सुपदि राज्यं गयुतिर तत्पाटपनोपजीविगल एनिमिट
श्रीमन्महावदृव्यवहारि कबडेमय्य नति ३६ इस्बर गुरुकुलान्वय क्रममन्तन्नाई ॥ विमलश्रीजैनधर्मक्कमल
तोऽविनन्तोप्पुगु मुलमंघ कमनीयं ३० कोण्डकुन्टान्वयम परगण देशि गच्छ क्रमदि तत' "वघं ।
गमेय श्रीवधूटीरम३८ गढेवेन्द्रसैद्धान्तिक मुनियेसेट महोत्साहधामं ॥ (१८) वच्छिप्य
नाड विश्वगुण वृपनन्दि मुनि कायो३९ स्मगंगाण्नुपचामदिन्ट चतुर्मुसाण्ययनारदम् । (१९) अवरम.
शिष्यरोलअन्तटिं द्विजराजिकुमनवादमददपंट४० नावर्तिकीर्तिवृक्षनु श्रीगोपनन्दिपण्डितदेवर् ॥ (२०) जिनसमय
यशश्चन्द्र जिनागमाम्मोनिधिप्रवर्धनचन्द्र जिनमुनिकु४१ वलयचन्द्र जिनचन्द्र विधनिकरराकाचन्द्र । (२१) निरवन
यबोधदर्शनचरणयुतर माघनन्टिसैद्धान्तिकदेवरशि४२ प्यरार् शमान्त्रितनिरुपमधर्मेन्द्र रत्ननन्दिमुनीन्द्रर् ॥ (२२)
तस्मधर्मर संहितार्थासलागमायनिपुणब्यारशसशुद्धि४३ यि ह सैद्धान्तिकतस्वनिणयवाविन्यासहिं श्रुतिसम्बन्छ ।
तयनार्थशास्त्रमरतालकारमाहित्यविरुद्वान्ह ४४ यालचन्द्रमुनियं विद्याधर (२३) चक्रे श्रीमूलसप' पमाकर
- रामहमो. 'निपुणप्रवरावतस. जीया - ४५ जिनेन्द्रसमयाणवपूर्णचन्द्रः ऋधा.। (२४) थन्तेनिसिद
श्री हलाचार्यर गुड़ देवी४६ उजयान्वयवारिधिचन्द्रमनु ·ग थाहनम्य • चरितर्नु परजनसमय
कुमुदेन्दु श्रन्यायार्जितधनम -
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- २७१ ]
कल्मापुरका लेख
१७ नेयूडे कवडेमय्यन् श्रणुवन्तय्यम् ॥ (२५) वरसुगुणसमन्त्रित क्वईमय्य तच पूज्ययशः मद्गुणि केतिसंहियुमुद्रात -
२८ प्रणयरेचिट्टिगमन्ता पूणुमसेडिगमिला संस्तुत्य टेकग्वेग प्रियपुत्र प्रभु दास सम्पूर्ण मध्योदय
४९ अनुपम मेहि" यदा कान्तं श्रनूनशौर्य निवि
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५१
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५६
नामादि" अपूर्व जनविनुत जक्किमट्टिय वनिते सु - नियतले ॥ (२७) अवराधमीयोट्यपुण्योदय
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५२
• निखिल गुणक्कास्थान त्रमन पुण्य
कुलवधु टेक'द्वितोदात्तलक्ष्मीनिवासं ॥ ( २८ ) नोतिकता दानधर्म पयो१४ धिचन्द्रम राहिमनु थंडदानक्समूज विशे
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२००
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५५ वनुजोनत णिमंहिय ॥ (२९) स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर मुजबलवीरगंगनम्महायार नि डाक्
५६ ताप होय्मलवरमरु शकवर्ष १०६८ नय दुर्मुखमंवत्सरद उत्तरायणसक्रमणढील् अमरदानव
·
५७ माडुवलि श्रीमन्महावव्यवहारि कवढमय्यन देविडिय ai माडिसिद श्रावीरवल्लालजिनाल
५८ यट यर्कलाहारदानक्क खण्ड स्फुटितजीर्णोद्वारक्कमेन्दु वित्रपं गेय्यलवर
·
'गणत्र तंद श्रीमन्महामण्डलाचार्य बालचन्द्र सिद्धान्त
देव धारा
६० पूर्वक वालचन्द्र होसनाडोलगण कोरटिकेरेयनदर कात्रालिगको
६१ लनादि "नाचहल्लि मढवढ मरियहल्लियोलगाढ़ हल्लिगल सीमासम्बन्धमेवेन्द्रांडे मू
६२ वनाल पडु - रिक्क्य हलेयिलेय मोरडि टॅकलारडिगेर नैरित्य
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२०६
जैनशिलालेस-मग्रह
[०७१६३ • यढोल वायव्यदोल नेरिलकरेयोलगण माविनमर देवर
अरगल्ला . ६४ वहमु नगर मुन्ता वायव्य ६५ लाल तिगुल तेलुग कडिग देश मुख्यमाद सु६६ द नेरेपुलिय चिकहक्लिय केतलदेविय गडिय वाचलेश्वर
सम६७ स्तनख श्रीशान्तिनाथदेवर 'कर कैंकर्यक्के बिट्टायमेन्वेन्डोडे
होरपल नाडोल ६८ ति हेरिंगे हागवेरटु कत्तेय हेरिंगे हाग ओन्दु कुर्रे ६६ करपहनूलण्ड-क्के हणवोन्दु श्रीगन्धद मालवेगे ७० हणनम्ब वडिय मलवेगे हण नाल्छ येत्तिन मलवेगे हण
७१ हसुवंगे हाग चोन्दु पडसालेय गडिगे परिसके हण वोन्दु
प्राविडिव ७२ रल देविय गाडगे परिसरके हाग वोन्दु निच्च सेडिवत
दवसन हेरिगे मान वोन्दु ७३ मलसु दड हेरिंगे मान वोन्दु गणढोल धारयर ७४ गेय तडियोल शतसहस्रबाह्मणगलंकारसमन्वित शतसहस्र
बिलेगलं ७५ क्षेत्रढोलनिवर प्राह्मणरुमननितुकविलेगल कोन्द महापताक
नक्कु परिपालिपु ७६ गन्ते वर · नितिर धरंगे शिलाशासनाक्षरावलियेसंगु ॥
स्वदत्ता ७७ हरत वसुन्धरा परिवर्षमहम्माणि विष्टाया जायते क्रिमि ॥
सामान्योयं वर्मसे
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२०७
-२७२]
कुञ्चगिका लेख ७८ • लनीयो भवति । सर्वानेतान् भाविन पार्थिवेन्द्रान् भूयो
भूयो याचते राम७६ य स्थलद चतुस्सीमय निवेशनमेन्तेन्दोडे मूडलु हिरिय
राजबीडि मादल ८० 'य घलेयलु पश्चिमक नीलविप्पत्तु वडगण मोटलोल
तंकलु अ. [ यह विस्तृत लेख दुर्मुखि सवत्सर, गक १०९८ में लिखा गया था। इसके प्रारम्भमें होयसल वशके राजामका कुलवर्णन वीरवल्लालदेव (द्वितीय) तक किया है। इनके समय देविसेट्टि नामक धनिकने वीरवल्लालजिनालय नामक मन्दिर बनवाया। मूलसंघ-देसिगण-कोण्डकुन्दान्वयके माचार्य वालचन्द्रकी प्रेरणासे यह कार्य हुआ। इस मन्दिरके लिए राजा वीरवल्लालने कुछ गाँव तथा कुछ करोका उत्पन्न अर्पण किया था। वालचन्द्रकी गुरुपरम्परा देवेन्द्र मैदान्तिक - वृषभनन्दि-चतुर्मुख-गोपनन्दि-जिनचन्द्रमाघनन्दि-रत्ननन्दि-उनके गुरुबन्धु बालचन्द्र इस प्रकार दो है।]
[ए० रि० मै० १९२३ पृ० ३६]
રહ૨ कुञ्चगि (तुकूर, मैमूर)
१२वी सदी (सन् ११८० ) वनड [ यह लेख एक जिनमूर्तिक पादपीठपर है। इसकी स्थापना मूलमघदेशोगण-पनसोंगे शाखाके नयकोतिसिद्धान्त चक्रवतिके शिष्य अध्यात्मि वालचन्द्रक उपदेशसे वम्मिमेट्टिके पुत्र केसरिसेट्टिने वेलूर में की थी। (समय लगभग ११८० ई.)1]
[ए. रि० मै० १९१६ पृ० ८३]
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-२८२ ]
मोमपुरका लेस
२८२ सोमपुर (मैसूर)
शक १११४ = सन् १९९२, कन्नड
१ श्रीमत परमगमीरस्यादवादामोघलांचन जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शामन जिनशासनं ॥ ( 1 ) जयति सकल विद्यानंचता २ रत्नपीठ हृदयमनुपलेप यस्य दीर्घ स देव (1) जयति तदनु तस्य यत् सर्व मिय्याममय निमिरघातिज्यो तिरेक नराणा ( २ )
शास्त्र
हार्दि सहनेम्वनाग पुलिये पोयूदा सल पोय्मक योगं पलम्बरु राज्य गेयुत्तिर्पिनं । ( ३ ) विनयप्रतापमम्बी जननाथोचित्र त्रियुगा जगम जननयनवेनिमि नेगलूटं विनया५ दिव्य समस्तमुत्रन स्तुत्य । ( ४ ) आतगतिमहिमं हिमसेनुममा६ ग्यातकीर्ति मन्मूतिमनोजातं मर्दितरिपुनृपजातं तनुज्ञातनादनेरेयंगनृपं । (५) बलिस्टरवनीपतिमम्पादितधर्मार्थ
७ काम सिद्धियोलवनी वल्लभरावन तनयर बल्लाल त्रिष्टिदेवमुख्यादिल्य । (६) मूवररमुगलोलं तां मात्रिमं मध्यमनागियु मनृग्गुणमद्भाव दिनुत्तमनाङ माविभवद्भूत जिष्णु विष्णुनृपाल | (७) मलेयं माधिमि माणूनने तलवन कात्रीपुर कोयतू - हर मलेनाटा तुलनाडु नीलगिरिया कोलालमाोंगु नन्गलियु चलगि विराटराजनगरं वल्लूरिवेल्ल दुर्वारटोर्बल टिं
१० लीलेयि माध्यमादुवेणेयार विष्णुक्षमापालनोलू । (८) येनचूडामणि हारमने
लाल
११ किन्नरंश्वरशिरः प्रोतुग फणि गुणमणि
१२ सम्यक्तचूडामणिः भा विष्णुवर्धनंग येनिमिट लक्ष्मादेविमुद्मविसिवनी मूविश्रुत नरसिंहनाहब
ક્
४
.
·
२११
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२१२ जैनशिलालेख-सग्रह
[२८२१३ सिंह । (8) पडेमानेम्वन्दु कण्डंगमृतजलधि तां गदि गण्ट
वातं जुढिवातंगेननेम्बै प्रलयसमयटोल मेरेय मोरि वर्षा
कहलन्१४ न कालन्न्न मुलिद कुलिकनन्न युगान्ताग्नियन्नं मिडिलनं सिगदन्नं पुरहरनुरिगण्णनानी नारसिंह । (१०) रिपुसपंढप
दावानलबहलशि१५ खानालकालाम्वुवाहं रिषभूपालप्रदीपप्रकरपटुवरस्फारशंसासमोर
रिपुनागानीकताध्य रिपुनृपलिनी१६ पण्डवेतण्डरूम रिपुभूभृद्भरिखन रिपुनुपमहमातगसिंह नृसिंह ॥
(११)"पागल्द तीवप्रताप' गिदु पोगलदुद मा१७ ण्डोड शत्रुगानप्रगलदक्तप्रवाहप्रवलगुरुध्यानमुं शत्रुभूरि___ सन्दोहदाहप्रचुरचिटिचिटिध्यानमु निविक१८ पं पोगलुन्तिई नृसिंहप्रबल भुजबळाटोपम धानिगेलं ॥ (१२)
आ विभुबिन पट्टमहादेविगे सद्गुणचरित्रदिन्दं सीतादविगे मि१६ गिलादेचलदेविगे बल्लालदेवनुदयगेस्ट । (१३) कलिकाल
क्षत्रपुत्रप्रबलतरदुराचारसन्दोहदिन्द-पोले पोर्न पेसि सत्तलव२० सिट महाकान्तय रक्षिसलका जलजाक्षं साने बन्दिन्तवतरिसि
टवोल धारवल्लालदेवं कुलजात्याचारसार नृपवरनुढयगेय्द२. नाश्चर्यशौर्य ॥ (१४) विनयश्रीनिधिय विवेकनिधियं ब्रह्मण्यन
पूर्णपुण्यननुहामयशोथिय जितजगदप्रत्यार्थिय सर्वसज्ज२२ नसस्तुल्यननुद्भवद्विवरणश्रीविक्रमादित्यन मनुजेशर् मलराज
राजनन बदलालन पाल्वरं । (१५) उरिंगणनि वेन्द चण्डा
विपुर२३ मुरिटवोल चुचुरिलदारगार्ग र दन्दर धगिक धन्धग भग
चेटे चेल्चेचिटिलगटुपोटेंम्बरव कैगणमे दिक्पालकर अललिय.
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मोमपुरका लेख
२१३ २४ ल बीरबल्लालनि (हिं) दुरिटतुच्छगियोडे रिपुनृपति पेल
लुण्टे ॥ (१६ रणरंगागणशूद्रक नइंदोडिन्तुच्छंगि नुर्चलित २५ नन्क्षणदि नोडे बिराटराजपुर चोनुत्तायनु मुन्नान्न सेवुणरापोश
नमात्रक नेरेरिल्लेन्दन्दु बल्लालदोर्गुणव बाणिसलण्ण ०६ बल्लबरदारी भूरिभूचादाल ।। (१७ ) बिलयाहि येनिप मेवुण
बलन निचयाबिल मकराकुलवी यदुकुलपरितरग. २७ तवायतु बन्दुः .. ॥ (१८) क्न्तनहप्तारिरक्त कूडे हरखुर
हिन्द्रा · गेलिगेत्तग्गट या टोल मुम्पेण पेणन वेत्ति२८ 'भूनालि पुण्यराशीकृतविपुलतल बीरबल्लालदेवं ॥ (१६) २६ स्वस्ति ममम्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम राजाधिराजपरमेश्वर
परममारक द्वारग्वतीपुरषराधीश्वर वामन्तिकादेवीलब्ध३० वरप्रसाट रिपुलम्मडनविनोद यादवकुलाम्बरधुमणि सम्यक्त्व
चूडामणि शक्षत्रिय३१ मानमर्दन वीररिपुडपंशर्पअझानिल श्रीमदृवीय पराक्रमक
प्रमाव । निरुयमात३२ क्यप्रताप नयविनयस्वभाव । मकलजनमत्याशीर्वाद । मुद्गर
समरकेलिमम३३ क्त रिपुचिजितादित्यप्रताप। मप्तांग विलास सरम्बती
• स्तम्बरम राज३४ कण्ठीरव । पाण्डयकुल • दण्ड । पल्लवकुलयशोविपिनदावानल।
"मिहलसपालकुरगकुलपलायनकार३५ ण कठोरनिजविजयढोर्टण्ड । सकल रिपुनृपकुल इत्यादि
नामादि३६ ममस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमत्मामीम सग्रामराम मिल्लमदिशा
पट्ट • धरित्रोपट्ट मलेराजराज मलेपरोलगण्ड
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२६४
जैनशिलालेख-सग्रह
[२८२३० बलकाहु-गंगवाहि-नोलम्बवाडि-बनवासे - पानुंगल-हुलिगरे-हल
सिगे-बेलवर तलवलि-तलियुगगोण्ड भुजबलवीरगं३८ गर्नकागार सनिवारसिद्धि गिरिदुर्गमक चलटरामनसहाय
शूर निशाकमवापचक्रवर्ति श्रीवीरवल्लालदेवनसण्यावनिमचतु
रंगवलं ३९ बेरसु सेवुणबलमल्लम वीरविलासनम्ब पट्टमानचिोलदुलदुलिये।
सेवुणबलजलधि-वडवानलनकादि सप्तागसा४० म्राज्यमनलयडिसि राष्ट्रकण्टकर निर्मूलमं माडि कल्याणपर्यन्त
मागि सुखसकथाविनाढदि राज्य गेय्युत्तमिरे ४१ तराज्यपूज्यमप्प राजधानि दोरसमुद्रढोलु श्रीमदबाढीमसिंह
तार्किकचक्रवर्ति श्रीपालविद्यदेवरमवर गुडगल मा४२ रिसंहियु कण्णिसेटियु भरतिमेहियुमिन्ती नाल्वरु नानादसियु ___ नगरसु श्रीमवभिनवशान्तिनाथदेवर भव्यजिनालयमनि४३ प नगरजिनालयम माडिसिट राजसैष्टियन्वयमाचायंवलियु
मन्तेन्टोरे()श्रीमद मिलसंघस्मिन् नन्दिसंघास्त्प४४ साल (1)अन्चयो भाति निश्शेषशास्त्रवाराभिषारगे (1)श्रीवर्ध__ मानस्वामिगल धर्मतीर्थ प्रवर्तिसुवालि गौवनस्वामिगलिं भद्रवा४५ हुस्वामिगल्ति भूतबलिपुष्पदन्तस्वामिगलि सुमतिमटारकरिन
कलंकवरिन्द क्रियावाचारि वनन्दिगाल सिहनन्दिगळि
परवादिमख्लरि ५६ श्रीपालदेवरि श्रहिमसेनार दयापालसुनीन्दार श्रीधिमयदेवार
शान्तिदेवरि पुप्पसनदवार चक्र ४७ वर्ति भावाठिराजदेवरि श्रीशान्तवार शब्दब्रहास्वामिदेवरि
अजितसंनपण्डितदेवरि मल्लिपेणमलधारिस्वामिगलि ८ श्रापालविध गधपशवचोविन्यास निसर्ग विजयविलास । तदनन्तरं श्रीमत्वविद्यविद्यापति-पटकम
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२८२ ]
सोमपुरका लेख
२१५
४३ लाराधनालब्धबुद्धि सिद्धान्ताम्भोनिधान मृतास्वाद दीक्षाशिक्षासुरक्षा' "क्रचापतिनिपुण सन्तत भव्यसेव्य सोयं ५० दाक्षिण्यमूर्तिर्जगति विजयतेवासुपूज्यव्रतीन्द्रः ( 11 ) तदनन्तर सुरराजेन्द्रमदेमढन्तचयढोल ढिग्गामि मन्दिरढोल म५१ कराल वि लतमो हिमाद्रिकूटंगलोल धरणीन्द्रोदूध किरीटकूटतलढोल वाग्देवि येन्डरिवल श्रीमुनि वज्र
५२ नन्दिय गमीरोदार वलसित ज
५३ गल कोडिनोल् पोढल्नेसेदु मन्दरमनेयदे • यशोलतेये मुनि वज्रनन्दिय
•
५४ इगडलन्नरुवलि बज्रनन्दिव्रतिया | तत्स
५५ मयढोल कुमारनन्दु समस्तप्रभुगावुण्डगलि नाड कायु प्रतापचक्रवर्ति वीरवल्लाळ
५६ देवनं काणलूवेडि वन्दिर्दल्लि अभिनवश्रीशान्तिनाथदेव ममष्ठविधाचंनेयुम पूजयुमं ऋषियराहारदानमुमं
५७ कण्डु पिरितुं सन्तस माडि देवर श्रीकार्यक्के नाडगौण्डुगल् तम्मोलैकमत्यवागि प्रतापचक्र
५८ वर्ति वीरबल्लालदेव वन्दु शान्तिदेवरष्ट विधार्चनेगं खण्डस्फुटितजीर्णोदारक्क ऋषियराहारटानक्कवागि
५९ शकवर्ष १११४ नेय विरोधिकृत्संवत्सरद उत्तरायणसंकवाणदन्दु बज्रनन्दिसंदान्त देवरिगे धारापूर्वकं ना मैसे ६० गुम्मनवृत्तियोलु मुच्चण्डियं कडलहल्लिय कडलहल्लिय ईशान्यढ तारेना
६१ ढ सन्तेनाडा गण्णिनाड नडदु येलुवलढ सीमेय नट्ट कल्लु अल्लि गुरविनगुण्डिये मरनितालेयमो
६२ रडि मोरडि चचरिवल्लद तढि कडलेयहल्लिय भाग्नेयढलुरिदवालिकेय लविवल्लिय गुम्मनवृत्तिय ना
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जैनशिलालेग्य-संग्रह
[२८२६३ गव य मोरहि चचरिवल मत्तवी कडलेयहलिय नैऋत्यद
बलरेय कणि-- ६४ यकलु खडय 'कालवूबल्ल मत्तिय मरन 'गल्लुतह
मानवी कल्लेअहलिय वायव्य६५ द सोरेनात हल्लियबीहिन विसन्धियोलु • 'कर्गलमोरडि अलि
चंचरिवल्ल वेन्त घटवृक्ष भ १६ छि मत्तची कडलेयहल्लिय ईशान्य गुम्मनवृत्तिय विसन्धिय ___ नडगणेय कूडिन्तु इन्तिदु सीमाक्रम । मंगल महाश्री ६७ भूमिटामात् पर दान || स्वदत्ता परटन्तां चा यो ६८ हरत बसुन्धरा पष्टिवर्षसहस्राणि विष्टायां जायते किमि
[ इस लेखके प्रारम्भमें होयसल राजाओकी बगावली वीरवल्लाल (द्वितीय) तक दी है। वीरवल्लालने मैसेनाट प्रदेणके दो ग्राम-मुच्छण्डि तथा कडलेहल्लि अभिनवगान्तिनाथमन्दिरको अर्पण किये थे। इस दानकी तिथि शक १११४ की उत्तरायणसक्रान्ति थी। यह मन्दिर कई नाडुगोण्डाने तथा सेट्टियोने मिलकर बनाया था। मन्दिरके कार्यका निरीक्षण कर युवराजके प्रसन्न होनेपर राजाने यह दान दिया था। वासुपूज्य प्रतीन्द्रके शिष्य वचनन्दि सिद्धान्तदेव इस मन्दिरके प्रमुख थे। इनको गुरुपरम्पराम
मिलसघनन्दिसध-अरुगलान्वयके निम्नलिखित आचार्योक नाम दिये हैगौतम, भद्रवाह, भूतर्याल, पुष्पदन्त, सुमति, अकलक, वक्रग्रीव, वचनन्दि, सिंहनन्दि, परवाधिमाल, श्रीपाल, हेमसेन, दयापाल, श्रीविजय, शान्तिदेव, पुष्पसेन्द्र, वादिराज, शान्तदेव, पन्दब्रह्म, अजितसेन, मरिलपेण, श्रीपाल (द्वितीय)। धोपाल विद्यके शिष्य वासुपूज्यवतीन्द्र ही ववनन्दिके गुरु थे। वर्तमान समयमै यह लेख सोमपुरके निकट नजदेवरगुड नामक पहाडीपर है । वहाँके मन्दिरका रूपान्तर शिवमन्दिरमे हो गया है।]
[ए. रि० मै० १९२६ पृ० ४७]
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-२८५]
१७
इगलेश्वर आदिक लेस
२८३ इंगलेश्वर ( विजापूर, मैमूर )
शक १११७ = मन् ११६-, क्वड [इस लेखमे तोयं चन्द्रप्रभदेवकी गिण्या पेण्डर वाचि मुत्तब्वेके ममाविमरणका उल्लेख है । शक १११७ का उल्लेख है। ]
[रि० सा ए० १९३०-३१ क्र० ई १४ पृ० ८५ ]
२८४ ताडपत्री (जि० अनतपुर, आन्त्र )
शक ११२० = मन् १९९८, कन्नड रामेश्वर मन्दिरके प्राकारके उत्तर पश्चिम कोनेपर [इम लेखमें नोमिदेव तथा काचेलादेवीके पुत्र उदगदित्यका उल्लेख है जो जैन था और ताटिपर ताडपत्री रहता था।]
[इ० म० अनन्तपुर २०३ ] २८५ वेलगामि ( मैमूर)
सन् १९६९, कन्नड [इस लेखमें होयमल राजा वीरवल्लालके समा सन् ११९९ में महाप्रवान मल्लिपण दण्डनायकके अवोन हेग्गडे मिरिवण्ण-द्वारा मल्लिकामोदशान्तिनाजिनालयके लिए आचार्ग पद्मनन्दिको कुछ करोका उत्पन्न दान दिये जानेका उल्लेख है।]
[ए. रि० म० १९११ पृ० ४६ ]
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२१८
बैनशिलालेख-सग्रह
[२८६
२८६ कान्तराजपुर ( मैसूर)
१२वीं सदी, कन्नड १ श्रीमत्परमगमीरस्याद्वादामोध२ लांछन (1) जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शा३ सन जिनशासन ॥ ४ स्वस्ति श्रीमन्महाप्रतापचक्रवर्ति गण्डभेरुण्ड मलपरोल ५ गण्ड शनिवारसिद्धि गिरिदुर्गमक चलदकराम होयसलवी६ रवल्लालदेवरु सुखसंकथाविनोददि पृथ्वी) राज्य गैयुतु७ तमिरे ।। ततुश्रीपादसेवकर कब्बहिनवृत्तिय अधिष्ठा८ यकरु महापसायतर परमविश्वासिगल सामिसन्है तोषकरु सेवुणकटक सूरकाररु शरणागतवज्रपंजर१० रुमप्प बेहुरमोतट सुग्गियनहलिय भरकरेय बो११ केयनायक होनहाल मादेवनायक कलियनायक १२ वाचिहल्लिय बोकयनायक बेल्लूर माचयनायक मोन्१३ गलाचार्य केसवेयनायक चलुवन माचयनाय१४ क अरसयनायक बरजियन माचयनायक मसणेय१५ नायक कोलेयादिनायक बचन मारेयनायक कोलेयत१६ न माचयनायक बलेयन मारेयनायक हलवनाय१७ कन बचेयनायक बोम्मर कायदालद बयक कसविय१८ नायक हेग्गडेनायक मैलेथनायक मारदेव पालना
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२१९
-२०१]
कान्तराजपुरका लेख १६ यक काचिनायक पम्मणनायक मावियनाय (क) २० मावुकनायक चिकयनायक मादियनायक बउचर विज२१ पनायक वढुगेयनायक मनियमनायक है२२ माटिनायक हरियणनायक पूमयनाय
३ क नवनयनायक मलयनायक बैंजयणनायक मा०४ क्यनाय (क) बमय नायवेयनायक गुडंयनायक २५ मारनमनायक मल्लेयनायक हरियड्र माचाड मि• गाँड मोमगाड बढियगाडन मादिगोड उत्तगोड वयचिगाट -७ मारगोट मादिगाट अविगोड हलुवाडिगट्टन कुढग्य के२८ चगांड मारनायकर नायक मल्लिगोह केसिय-हलिय वा• हुबलिमष्टि पारिमसहि विजमष्टि अवर पुत्रक यलगोड ब३० सवाँड माय मरतय माढय आलय माचयटक्ष३१ गौडन मारय पापय चिक्करम विरिष्टिय मग आलगा३२ ढ चिकगौढ मामगाढ चिण्णयगाढ मारगोड कसवगौट
श्रीमन्महा(म)३३ दळाचार्यरु राजगुल्गलु नयकीर्तिसिन्हातवर गियर नेमि३४ चट्टपडितवर बालचढ़दंवरु नयीतिवरणुङ३. गलु बाहुबलिसष्टि पारिससहि माडिसिन एक्कोटिजिनालय३६ ट पद्मप्रमहेंबर अष्टविधार्चनग वूर मुन्टे आरिय मार३७ यनायक कष्टिमिट कर मा कोलरिय गहे भा मूडलु सुत्तल नह ३. बहलेय हिरियकरेय मोठरि३९ गदय श्रीमुससवल्पग्द वयि
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२२०
जैनशिलालेस-संग्रह
[२८७
४० बोम्म नातिवेय सा सेनबोव सामन्त ४१ पूर्वक माडि बिट्ट दति यिधर्मव प्रतिपालिसिद्गगे
४२
[ यह लेख होयसल राजा वीरवल्लालदेवके राज्यकालमें वैशाख, श्रीमुखसवत्सरमे लिखा गया था। बाहुबलिसेट्टि तथा पारिससेट्टि-द्वारा निर्मित एक्कोटि जिनालयके पद्मप्रभदेवकी पूजाके लिए अरेय मारेयनायकद्वारा एक तालाव तथा अन्य कई नायको, गोडो तथा सेट्टियो द्वारा जमीन दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। इनमे नयकीतिसिद्धान्तदेवके शिष्य नेमिचन्द्र तथा बालचन्द्र पण्डित भी सम्मिलित थे।]
[एरि० मै० १९२७ पृ० ४५ ]
२८७ वेरावल ( सौराष्ट्र, गुजरात)
१२वीं सदी, अन्तिम चरण सस्कृत-नागरी , नवम्प्रति नित्यमद्यापि वारिधौ ॥ १ भूयादमीष्टससिद्ध्यै मु. २ पाटकाख्यंपत्तन तविराजते॥ ३ मन्य वेधा विवायैतद्विधिस्सु
पुनरीदृश३ नियमन यंत्र लक्ष्मी स्थिरीकृता ॥५ तनिशेषमहीपाल
मौलिपृष्टाहि ४ मौ नृपः । तेनात्खातासहन्मूलो मूलराज स उच्यते ।।७
पुकैकाविभूपाला सम -- ५ जिवजखुराहत। अतुच्छमुच्छलत्सूर्यपर्वभ्रममजीजनत् ॥६ पोरुपेण प्रतापेन पुण्येन--
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- २८७ ]
६
वेरावलका लेख
२२१
रन्यूनचिक्रम । श्रीमीमभूपतिस्तेषा राज्य प्राज्य करोष्ययं ॥ ११ भालाक्षराण्यनम्राणा यो बमज म-
७ नंदिमधे गणेश्वरा । बभूवु
जगत्त्रयाः ॥ १३ येषामाकाशगामित्व त्या-
•
१३
८ तपंचक्रमुज्वल । रचयित्वाथ जल्पति येऽन्यन्नियमपूर्वकं ॥ १५ कालेऽस्मिन् भारते क्षेत्रे जाता-
१४
..
६
रणास्तववर्त्मनि तेषां चारित्रिणा वशे भूरय सूरयोऽभवन् ॥१७ सद्वेषा अपि निद्वेपाः सकला अक
१० भावस्यारुरोह तत् । श्रीकीर्ति प्राप्य सत्कीर्ति सूरि सूरिगुणं तत. ॥१३ यदीयं देशनावारि सम्यग्वि
११ कश्चित्रकूटाच्चचाल स । श्रीमन्नेमिजिनाधीशतीर्थयात्रा निमित्तत. ॥२१ अणहिल्लपुर रम्यमाजगाम -
१२ नींद्राय ढढी नृपः । विरुट मंडलाचार्य. सछन्नं ससुखासनं ॥ २३ ॥२३ श्रीमूलचमविकास्य जिनभवनं तत्र
कुडकुंदारया साक्षात्कृत
-
·
·
सज्ञयैव यतीश्वरः । उच्यतेऽजितचंद्रां यस्ततोभूत्म गणीश्वर ॥२५ चारुकीर्तियश कीतीं ध
मुक्तो यो रत्नत्रयवानपि । यथावद् विदितार्थोभूत् क्षेमकीर्तिस्वतो गणी ॥२७ उदेति स्म लसज्ज्योति
·
१५ लेपि वासिते हेमसूरिणा । वस्त्रप्रावरणाय
१६ कीर्तिर्यक्कीतिर्नर्तकीच नरिनर्ति । त्रिभुवनरगे बासुकिनूपुरशशितिलकनेपथ्या ॥ ३१ तं
१७.
ति ॥ ३२ समुद्धृतसमुच्छलशीर्ण जीर्ण जिनालय । य कृतारमनिर्वाहसमुत्साहगिरोम (णि ॥३३ )
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3:3
जनशिलालेम-संग्रह
[२८७16 वयरवगण्यनं ॥३४ वाहिनो यत्पादनसचढेपु थियिता ।
ने गिननीका कलक१९ नाथंभूतमनाटिक ॥३६ मीताया स्थापना यत्र सोमेश.
पक्षपागकृत् । बामप्रैलोक्य. .. गदुत तेन जातोद्धारमने कशः ॥२८ चैत्यमिद अजमिपतो
निजगुजमुस्य सक-- १ पनो महलगणिललितकीतिसस्कीतिः । चतुरधिकविंशतिलम
भजपटपटास्तक२२ • मनीयमद्गोष्ठिकानामपि गलकानां ॥४१ यस्य स्नानपयो
नुरिसमनिल कुष्ट दनीचप्रम म प्रभुनार पश्चिमसागरस्य जयताद् दिग्वाससां शासन
॥४. जिनपनिगृह१४ चायंचयों प्रगधिनयममत. शिष्यवर्गश्च माई ॥४३ श्रीमविक्रम
भूपस्य पाणां वाट (श)." क्यानिलघुययुः । पके प्रशम्ति मनघा (मसिरिया) प्रथरकीनि
रिमा ॥४.म.
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૨૨૬
मैनशिलालेख-सग्रह
[२९५
२६५ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र )
___ कसद, १ सही [यह लेप रमामिद्धलगुट्ट नामक पहाडीपर एक पापाणपर गुदा है। इसमे गुम्मिमेटिक पुन अमदेवका उल्लेख किया है। लिपि १२वी मदोको है।
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ४५७ पृ० १२६ ]
हलि (जि. वेलगांव, मैमूर)
कन्नड, १२वी महा [इम लेखको लिपि १५वी मदीको है। नेमिचन्द्र मिद्धान्त-चक्रवर्तीके शिष्य नविलूरुकै गोवरिय कलिगावुण्ड, तावरे महादविट्टि आदि द्वारा इस दरवाजे के बनवाये जानेका इममे उल्लेख है।]
[रि० सा० ए. १९४०-४१ क्र. २४ पृ० २४२]
२६७ गोकर (हामन, मैसूर)
कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेखमे मलवसेट्टि, कटकद वम्मिमेट्टि तथा केमिमेट्टि हुन तीन व्यक्तियो-द्वारा गोरवूर ग्रामको वदिके लिए पांच सडुग भूमि दान दिये जानेका वर्णन है । मल्लियका नामक स्त्रीको भी प्रशमा की है। लेखको लिपि १२वी मदीकी है। इसका बहुत-सा भाग घिमने नष्ट हो गया है।] (मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित )
[ए. रि० म० १९४३ पृ०७४ ]
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-३.१] मनोलीके लेख
२२७ २६८-३०० मनोली ( जि० वेलगांव, मैसूर)
कन्नड, १२वी सटी [ इस लेसकी लिपि १२वी सदीकी है। यापनीय सघके आचार्य मुनिवल्लिके मुनिचन्द्रदेवको समाधि कुल्लेयकेतगावुडकी पुत्री गगेवे-द्वारा स्थापित की गयी थी। ये मुनिचन्द्र सिरियादेवी-द्वारा स्थापित वसदिके आचार्य ये।
इमी ममयके दूसरे लेखमे मुनिचन्द्रके शिष्य पाल्यकी (ति) देवके समाघिमरणका उल्लेख है। तिथि आश्विन कृ० ५, शुक्रवार, साधा(रण) सवत्सर, ऐसी है।
यहाँके तीसरे लेखमे इमी परम्पराके एक और आचार्यके समाधिमरणका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क० ६३-६५ पृ० २४५]
३०१
कोलक्कुडि (जि० मदुरा, मद्रास )
कन्नड, १२वीं सदी समणरमलै पहाडीपर पापाणके दीपस्तम्भके समीप [ इस लेखमें आरियदेव, बेलगुलके मूलसपके बालचन्द्र देव, नेमिदेव, अजितसेनदेव तथा गोवर्धनदेवका निर्देश है। लिपिके अनुसार यह १२वीं सदीका लेख होगा।]
[रि० इ० ए० १९५०-५१ ० २४४ ]
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२२८ जैनशिलालेस-संग्रह
[३०२३०२ चेहार ( नरसिंहगढ, मध्यप्रदेश)
प्राकृत-नागरी, १२वीं सदी १ . मं घणोमम सुंदरं २ सि. .......... ३ ।विहुमणतिला सी४ री-शावडस्स भमराल५ मरम्मं । श्रीमाण६ देवेन गाथा वि७ रचिता
[यह लेख सोलखभ नामक उध्वस्त जैन मन्दिरमे एक स्तम्भपर है। इसमे श्री आणदेव-द्वारा लिखित एक गाथा है जो किसी तिहुमणतिला (त्रिभुवनतिलक ) मन्दिर तथा उसके स्थापक शावडके बारेमें है। इसी स्तम्भपर कुछ अन्य व्यक्तियोके नाम भी खुदे है। नाथाकी लिपि १२वी सदीकी है।
[रि० इ० ए० १९४६-४७ ३० १७४ ]
३०३ सवणूर (धारवाड, मैमूर)
कन्नड, १२वी सटी [यह निसिधि लेख मलयारि आचार्यके समाधिमरणका स्मारक है। तिथि शुचि व० ८, सोमवार, विश्वावसु सवत्सर ऐसी दी है। लिपि १२वी सदीकी है।]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ५९ पृ० ३३ ]
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२०९
-३००] भम्मिनमावि भाटिक लेस
३०४ अम्मिनभावि ( धारवाड, मैमूर ) [ रह लेख वर्षमानमूतिके पादपीठपर है। बहुत अस्यप्ट हुआ है। लिपि १२वी सदीकी है।]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ७० पृ० ३४]
३०५-६
मण्दर (धारवाड, मैमूर) [यहाँ १२वी सदीकी लिपिमें दो लेख है जो जैनोने सम्बन्धित प्रतीत होते हैं।
[रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ९४-९५ पृ० ३६]
सालिग्राम (मैसूर)
क्नड १२वीं सदी [रह लेन्ब अनन्तनाथकी मूतिके पीठपर है। मूलनध-बलात्कारगणके मारनन्दि सिद्धान्तचक्रवतिके गिप्य शम्बुदेवकी पत्नी वोम्मवे-द्वारा अनन्तप्रतको समाप्तिपर यह मूलि स्थापित की गयी थी। लिपि १२वी मदी की है।
[ए. रि० मै० १९१३ पृ० ३६]
गोसर ( हासन, मैमूर )
कन्नड़, १२वी सही १ नो श्रीमनु परमगंमारस्याद्वादामोधलांछन()जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन(1)
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२३०
जैनशिलालेख-संग्रह [३०८२ ओं मेलेनिसिपुदी मलेगे धात्रियोल किस्पग्लियनाद पालिसि
सततं मुगदिन् सर्विनेग सिरि ३ पुढे पुहिट हैस्थिवामेवग्गढेगधारान घलभे निजिकव्येग लालेयोल
पदे वषिणयुद्ध पं. ४ गंडे सत्यमनं जगजन ॥ स्थिरने याप्पमरादियिठधिगंमारने
यापु सागरदिग्गल५ न्तु दानिय सुरो/जक मारण्ढलं सुरराजंगणेयेण्डे कीर्तिपुद्ध
कैकोण्डकरि सततं ६ धरेयरलं मले सत्यवर्गठयाल श्रौदार्यमं सौर्यमं ॥ कोट्टपेनेंदोद
ईश्वरन कोड वर दूसरा ७ सरणेतु बदर नेट्टने • डे पनि 'पूण्ड कोहि विरो' • म तरिवन् एमोट ताने कृतारा यि" पेगडे । ९ आतन मान सका मही 'जवल्लि बेनिसि नंगल्यं भूवल १० टोलगसय कच्छवेगठय' पपु ' य विपु ११ नाई कसरिय पाढj "मनो"यनि १२ सिद वीरनोल अदु कर नलि तरिमुटु क' ले पलर निरन्तर तीसरा भाग १३ एन नेगल्ल कच्छवेगवेगनुपम कुल• गैधान ११ यल विनुत तवंग १५ रेनिप्पर' मणिय१६ तवरीचरीनन य. 'मन्तन जम" २७ पल असिल भूमण्डल 'स्यातंग मले नगवट गंगगं गौरिग वेग्म १८ नो दारयनिप्पर भूनहटोल '
यं गस्वंतंयरि१९ असमर समयदोल बस "मन पोललिवर" विमुचिन
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-३०८ ]
गोरुरका लेख
२० कुलवधु ता भूविनुन श्रीने नेलेयेनिप्प गर्नयर पलं पेण्डितने वर्षर
२३१
२१ बोलु ॥ आतन किरिय पेण्डति रवियं पोस्वलु पिपत्तिचरियोस् अतियच्चे
२२ प्रल्वलनिधि तत यशोवल्लरिय मतिहीनर् अदेनु वण्णिपर् वाय ॥ अवरीवर गु
...
२३ (रु) गए अवर भुवमसनाराध्य र सिलगुणगणनिलयर कढि वर नयकीर्ति
२४ देवसिद्धान्तेशर ॥ आ महानुभावनधगियरवमान कालडांलु ॥ बोविसुन जिनपढनं वा
२७ व सिद्धपदमन् अक्षय पढमं विनुतं मुनिपदमं वाचवे वेग्गडतियर सुरतिय
२६ ... परम जिनेश्वर पत्रपकरहमनानंददि नैनेयुतागलु पिरिडाँड भक्तिय
२७ तियं बाचियवन् एडिदल् भगलु ॥ अवर परोक्षदोलू भाई सविनयति केल
२८ यिन्ति कल्ल भुवनजन्त्ररिये निरिसिटल अविचलमप्पन्तु चंद्रतारं वरं ॥
[ इस लेखमें किमुवल्लि ग्रामके शासक सत्यवेगाडेका उल्लेख है । यह हैरियवासेवेगडे तथा उनकी पत्नी निजिकब्वेका पुत्र था । इस सत्यबेगडेकी पत्नी वाचवे थी । वह कच्छवेगडेकी पुत्री थी । इसके गुरु नमकीर्ति सिद्धान्तदेव थे । लेखमें बाचवेके देहत्यागका उल्लेख है जो भम्भवन. नत्यवेगडेकी मृत्युके कारण किया गया था । लेखकी लिपि १२वी सदीकी प्रतीत होती है । ]
[ ए०रि० मै० १९४३ पृ० ७१ ]
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२३२
जैनशिलालेग्य-संग्रह
[३०९
३०६
हलेवोड ( मैमूर)
कन्नड, १२वीं मढी १ स्वस्ति श्रीमन्मयकातिसिद्धातचंद्रयनिवर्ग कवडयर जकन्वेयर मादिसि कोट पशालेय शान्तिनायटेवर अष्टविधार्च (न)ग
खडस्फुटितजीर्णोद्धारक २ शिष्यरु सुरमिकुमुदचंद्रापरनामधेयरप्प नेमिचटपटितवरु
जीवगल हिरियकरेय थोलचगह टोलगरेय हुणमेय ३ लगे भूरु गगपुरट उत्तमवागि? मनुरु हलेयं सर्वयाध
परिहारवागि चंद्रातारयरं सत्यतागि कोहरु ई धर्म अवर शिष्यसंतानगल नडेसुवरु [यह लेस १२वी सदीकी लिपिमें है । कवडेयर जकन्वे-द्वारा निर्मित पट्टशालाके शान्तिनाथदेवको पूजा आदिके लिए कुछ भूमि वोलवगट्ट तालावके समीप और गगबुर ग्रामके समीप दान दी गयी ऐमा इसमें निर्देश है। यह दान सुरभिकुमुदचन्द्र अपरनाम नेमिचन्द्र पण्डितदेवने दिया था। जकव्वेके गुरु नयकोति सिद्धान्तचन्द्र थे।]
[ए. रि० ० १९३७ पृ० १८५]
३१०
अथनी (वेलगाव, मैसूर)
कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेपमें चम्मण-द्वारा देसिगण-इगलेश्वरवलिके सामन्तण वसदिसे सम्बद्ध रत्नत्रयमन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है। लिपि १२वी सदीकी है।
[रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र. १७३ पृ. ३४]
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-३:२]
मरमे पाटिक लेख
२३३
३११
मरसे ( मैमूर)
मंस्कृन-कप्तड, १२वी मही १ श्रीमद्दविरमस्मिन् नन्तिसंघस्यरंगला अ. • न्बयों माति योरोपशाम्बवा३ राशिपारग
[ यह लेख एक सेतमे मिली पार्श्वनाथमूतिके पादपोठार है। इसमें द्रविलमघ-नन्दिनपके अन्तर्गत अमंगल अन्वलकी प्रगंमा है। यह श्लोक अन्य कई लेवाम पाया जाता है । लेखकी लिपि १२वी मदीकी है । मूर्तिक वारेमें अन्न कुछ विवरण नही दिया है।]
[ए. रि० मै० १९२९ पृ० १०६ ]
३१२ मावलि ( मैसूर)
कन्नड, १२वी सदी १ श्रीमत्परमगंमीरम्याद्वा(दा)• मोघलाछन जीयात् लोक्य३ नाथस्य शामनं जिनशासनं ॥ श्री (म्)५ रसग कुण्टकुन्दान्वयन ५ काणूरगण माधवचढदेव(रगु)
ट्टि नागब्बे गोकवेय मगलु म(मा)७ घिविधियिंट मुडिपि स्वर्ग८ म्तेयादलु मगल नहा ९ श्री श्री
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२३४
जनशिलालेख संग्रह
[३१३[इम निसिविलेउमै मूलमघ-कुण्डफुन्दान्चय-कार गणक माधवचन्द्र देवकी शिष्या तथा गोकवेकी कन्या नागके ममाधिमरणका उरलेख है। लेखकी लिपि १२वी सदीकी है।]
[ए. रि० मे० १९४१ पृ० १९२]
३१३ हम्पी ( वेल्लारी, मैसूर)
कन्नड, १२वी सदी [ यह लेस एक भग्न स्तम्भपर १२वी सदीकी लिपिम है। इसमें गोरलाचार्य, उनके शिष्य गुणचन्द्र तथा उनके शिष्य इन्द्रनन्दि, नन्दिमुनि तथा कन्तिका उल्लेख है।
[रि० इ० ए० १९५५-५६ ० ३३५ पृ० ५०]
३१४ कलकत्ता ( नाहर म्यूजियम )
कनढ, १२वी सदी १ टेमायपगलाणन्तियनापि निमित्त२ बागि माडिसिट प्रतिष्ठे
[यह लेख पीतलको चौवीम तीर्थकरमूर्तिके पिछले भागपर पुदा है। यह मूर्ति देमायप्प नामक व्यक्तिने अनन्तप्रतकी समाप्तिके ममय स्थापित की थी। लिपि १२वी मदीकी है। लिपिसे पता चलता है कि इसका निर्माण कर्नाटकमे हुआ था।]
[ए० रि० म० १९४१ पृ० २५० ]
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-३१७ ]
रुगि आदिके लंग
३१५
रुगि (बिजापूर, मैनूर )
कट १२वीं सदी
[ यह लेन किसी जैन जाचायके समाधिमरणका स्मारक है । लिपि
१२वी नदीनी है । ]
२३५
[ ० ना० ए० १९३६-३७ ० ० ७९ पृ० १८८ ]
३१६
शेरगढ ( कोटा, राजम्यान )
मस्कृत-नागरी, १०वी सदी
[ इस लेन आचार्य वीरसेन तथा नागरमेन पण्डितका उल्लेख है । लिपि १२वी मदीकी है । ]
[ दि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४३१ पृ० ८० ]
३१७
रायबाग (बेळगाव, मैसूर )
कन्नड, शक ११२२= मन् १२०१
[ यह लेग रट्ट वा कार्तवीर्य ४ के समय का है। इन राजाने बैमात्र पूर्णिमा, डाक ११२४, शुक्रवारको एक जिनमन्दिर के लिए कूण्डि ३००० प्रदेशका चिचलि ग्राम दान दिया था । ]
[ ० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १५१ पृ० ३३ ]
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२३६
जैनशिलालेख-सग्रह
[३१:
वेलगाँव (क्रमाक १ ब्रिटिंग म्यूजियम)
काड, शक ११२७ = सन् १२०१ १ श्रीमसरमगमीरस्याबाटामोघलाठनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य
शासन जिनशासनम् ॥ नमो वीतरागाय शान्तये ॥ २ श्रीजिनसमयनवाधि राजिसुतिकमथनोर्जितामृतरस्न-श्रीजननगृह
सत्वदयाजीवनमपरिमितगमीरमपार ॥ नवमौक्तिकहारं ३ श्रीयुवविगिदेनिसिद कृष्णनृपवंशलपार्थिवचयदोल सेनरस
भुवननुत मिसुपनेसेव नायकमणिवोल ॥ वरई । ४ डिमडलाधीश्वरनेनिषा सेनविमुगे सुचनाठ दुवैरिभूप___ भोकरपराक्रम कार्तवीर्यननुपमशीय ॥ आ विभुगादल सति पद्मा५ यति जिनसमयवृद्धिकरणापरपद्मावति बुधामिमतपद्मावति बना
युधगे पौलोमिय बोल ॥ भवरिवरगं पुट्टिन्टनवनीश्वरमौ६ लिमडन लक्ष्मनुप परिमलमुक्ताफलमोसेव वार्षिगं ताम्रपणेगे मुटुवबोल ॥ एनेबे लक्ष्मिदेवक्षितिमुजन मुनाटोपमं विद्विषद्धा
श्रीनाथर् संने• गॅप मद्यपदहतिथिदाद कॅलियेदालोमानध्वानम तानयतुरंग
खुरोझोषमेदनि नानास्थानस्थायित्वम केलपडेयदे बिडदो6 दुपमिदंपरिन्नु ॥ अपराधिगलने नोलयुद्ध नृपालकरदंडनीति
वाप्पु घनाक्षाधिपनागे लक्ष्मभूविभुवपराध दंडविविल्ले कृतियो॥ ९ अमृतामोराशियोल पुहिद सिरियमणं बनु धानं स्वमायाक्रमादि
बरोवलं निर्मिसि चपलेयना कृष्णनोल कूद्धि भत्ता विम
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-३१८]
बेलगावका देख १० लोद्यद्भाग्ययं सुस्थिरेयनोसेदु कोडें महीभृनिकायोत्तमनप्पी
लक्ष्मिदेवगेने मिग तलेटल चद्विकादेवि चेल्व ॥ प्रणुतश्रीनिधि
चंद्रिका११ सतिय शीलवातमं कूड धारिणियोल वण्णिसलारुमातपर
लक्ष्मोशन क्षत्रियाप्रणियं शील मचिमल् फणिपनं पूण्डे१२ ते ता तब कयगुणम कहुदरिंदव पोगललापं विश्वजिह्वालियि ॥
नरपतिलब्मिदेवसति चढलदेवि निजोद्वहस्तदि धरंगेसेयल्के १३ संक्रमणटोल कुडे काचनम बेरलगलोल वेरसेट हेमकालिकेय -
सेदिशुद्ध वाहुकल्पवरकरिय तलप्रवाल नखप्र१४ सवक्कलसिलं तुंबिबोल ॥ श्रीवसुदेवनंतस्त्र लक्ष्मनुपंगवनिद्य
देवकीदेविवोलोसुची विनुनचढलडेविगमाढरात्मबर् भूवलय१५ प्रबद्धबल्केशवरेंदेने कार्तवीर्यधात्रीवरमल्लिकार्जुनकुमारकरूर्जित___ शोर्यशालिगल ॥ दृढशौर्य कार्तवीर्य तल१६ रे बलयुतं दिग्जयकन्यधात्रीपतिगल बेन्नित्तु नीर पुगलवर शरी
रोष्णढिं वत्ति चित्तोद्गतीत्युत्कर्षवृत्तिप्रसरणविमरद्ध१७ मतीयोमियि विस्तृतमागल हानियें वृद्धियुमदु निजममोधिगेल
विमूढर् ॥ ई कमनीयवाजिषयमी क१८ रिमकुलमी विलासिनीलोकमिवेम्मवा कविय कालेगढोल बयला
जियोल पुराणीकह युद्धढोल पिडिनिंतिवनी कलिकार्तवीर्यनदा१९ कुलमागि नोडुबुदु बन्धनशालेयोल इरिग्रजम् ॥ श्रीरवशमेंब
सुमेरुवनायिसि कल्पकुजननमनले राराजि२० पुदुढो विबुधाधारं श्रीमत्कुल प्रमोटनिवासं ॥ श्रा महनीय
कुलक्के शिरोमणि मव्यांबुजक्के तेजोमणि रक्षामणि बुधविततिगे
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-३३८] बेलगांवका लेख
२४१ १८ मल्लुंकिडंडहस्तमप्प समयचक्रवर्ति जयपति सेटि मुख्यमागि
वेणुग्राम स्थलद समस्तमुम्मुरिदंडंगलुं इंडिमूसासिरट पट्टणिग
मोढलादु४९ भयनानादेशिमुम्मुरिदडंगलं परशुराम नायक पोम्मण नायक
अम्मुगि नायक प्रमुखरप समस्तलालव्यवहारिगलं पढप
नायक कॉ५० ड नंवि सेटि पोरयच सेहि मोदलादेल्ला मलेयालच्यवहारिगलु
मत्तमा बेणुग्राम स्थलन चिन्नगेयिकटवरं दूसिगरं मुरयमागुलिट
परदर । तेलिगरं । दिक५१ सालिगरमितिवरल्ल नेरेटा शान्तिनाथदेवर बसदिगे विद्यायवेत
भेडे बडगणिं बंद कुदुरंगे नेलमेह हागवादु । तकल नडेबवर्क
सुंक हागबाँदु । मलेयालर । ५२ कुटुरंगे हागोंदु । अरुबत्तयत्तु कोनंगलोलेन पेरिदोडं सर्वाबाध
परिहारं । चिन्नगेयिका चीरपके दूसिगवसरपके । हतिवसरसके ।
मणिगारवसरक्के । गवण५३ वमरक्क गधवणिगर गढिगे। अक्कसालेगमटक्के वेरवेर वरिसर
बरिसडेर हिरिय हागवाँदु । होरगणिं बंद सीरेय कडगेगे
बीसवादु । होरगणिं बंट गंधवणक्के । कक्षमंडक्के । आ मं५४ ई गवाणं तूकवस्तु । हत्तिय मंढिगे तारं मूरु मा परिंगे
काणियाँदु । मतद मंदिगे मत्तबोर्वल्लं मा परिंगे मत्तवोर्मानं ।
अंकणय मत्तं मारिठडा भत्तमोवल्लं । मत्त५५ वसरदंगढिगे भत्तं निच्चसोल्लगे। अक्विसरके अन्यि।
मेलसिण हेरिंग मेलसोर्मानं आ नवक्के भरेवानं । इंगिन पटिगेगे इंगु गयाणं तूकबार अक्लअरिसिनद जवलक्के मा भ
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२४२
जैनशिलालेस-सग्रह
[३१८
५६ ण्ड पलवद्ध आ हेरिंगे अल्लअरिसिन पल हत्तु । गाणक्के निच्चत्वेण्णेयह । अटकेय हेरिंगे अइकेयिप्पत्तरदु भा जवलक्क
अडके हनेरड । एलेय हेरिंगले नरु हो ५० रंगेलेययवत्त । तेगिन काय हरिंगा कायादु । भोलेय हेरिंगे
ओलेय सूडरहु आ होरेगे सूढोंदु । होरगणिं बन्न वेल्लद
मडिगे वेल्लदच्चु हदिनदु आ ५९ होरंगे अच्चोंदु । थालेय हरिंगा कायारु आ होरेगे कायमूरु ।
नेल्लिय काय हेरिंगा कायबल्लवोंदु। कविन हगरक्के ऑदु
कषु । वलहद हरि५९ गे बलहवोपल मन्चमा शान्तिनायटेवर वसहिगे श्रीकार्तवीर्य
देव कोट्ट अगडि बढगगेरिय पढगण हरिय पदुवण कडेयोल
राजवीथियिं मूढल नाल्छ । ६० बहुमिसुधा मुक्ता राजमि. सगरादिमिः, यस्य यस्य यदा
भूमिस्तस्य तस्य तदा फल ॥ अपि गगाढितीर्थपु हन्तुर्गामथवा द्विज निप्कृति. स्यान देवस्व६१ ब्रह्मस्वहरणे नृथा ॥ ओढविंदी धात्रियदल मिगे पोगले चिर
वर्तिसुचिक निस्याभ्युदयश्रीकार्तवीक्षितिपविपुलसाम्राज्य
सन्तानमुःविदि६२ तश्रीयोचिरामप्रथितविमलशान्तीशरावासधर्म सढलंकारस्फुटार्थी
न्चिनपटकविकन्दपंसुव्यक्तसूत। दोपव्यतीतमय विशेषमिदने ,
पेल्दनो शासनम पीयू६३ पसमसूक्ति चातुर्मापाविचक्रवति कविन्दप । श्रीमन्माधवचन
विद्यचक्रवर्तिवाकसुधारसनाम्युदितनित्यसाहित्यकमलवनमराल थालचढ़देव पेल्न शासन
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-१९]
बेलगावका लेख
२४३
[ इस लेखका साराग जै० शि० मं० भा० ३ में क्रमाक ४५३ मे आ गरा है। किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नही हुना था। पाठकोकी सुविधाके लिए साराशको मुत्र वातें यहां दोहरायी जाती हैं। इस लेखमें रट्ट वशके राजा कातंत्रीय (चतुर्थ) तया उनके वन्वु मल्लिकार्जुनका एव उनके मन्त्री बीचणका उनके पूर्वजोसहित परिचय दिया है। वीचणने बेलगांवमें रजिनालय स्थापित किया था। इस मन्दिरके प्रधान भट्टारक शुभचन्द्रको शक ११२७, रक्तानी संवत्सरमें द्वितीय पोप गुक्ल २ को वेलगांवकी कुछ जमीन तथा कुछ करोका उत्पन्न दान दिया गया था। इस शिलालेखके पाठको रचना माधवचन्द्र विद्यके शिष्य वालचन्द्र कविकन्दर्पने की थी।
[ए० इ० १३ पृ० १५]
३१६ वेलगांव ( क्रमाक २) (ब्रिटिश म्यूजियम)
शक ११२७ = सन् १२०४, कन्नड १ श्रीमलरनगमोरस्याटाढानोघलांछन। नीचात् त्रैलोक्यनाथस्त
शासन जिनशासनं ॥ नमो वीतरागाय शान्नये ॥ २ श्रोजिनसमयनवावुधि राजिसुतिर्कमथनूर्जितामृनरत्नश्रीजनन गृहं
सत्वढयाजीवनमपरिमितगमीरम३ पारं ॥ नंबूद्वीपट भरतदोलवुजभवसारसष्टि कूडिमहींचक्र यगे___ गोलिपुदु सकलजनावकघनसुकृ- ४ तफलविलासनिवास ॥ श्रीराष्ट्रकूटवशसरोरहयनराजहंसनाद
नाम विस्तारियशोनिधि सेनमहीरमण ५ संभृतामलोमयपकं ॥ मिरिय निजानुजेयनावरटिं शशियित्त
राजनाई नणपं धरियिसि मिझता सेनराजनी
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२४४
जैनशिलालेस-सप्रह
[३१९६ ल सेणसि राजनेनिपवनावं ॥ स्थिरवेयनुत्तंगतेयं धरियिसिदा
सेननृपधरोदयढोल मासुरतेजोनिधि पनामिराम. नेने कातवीयरवियुटयिसिदं । विनारपुप्रतिविवालि निवांत
कार्तवीर्यपदनखदोल चेल्वेनिकु पूर्वपदाधि८ वरनलिदु तन्मंत्रकृतिगे पदेदप्पुवघोल ॥ स्थितिकारिणि विमल
गुणान्विते पनलदेवि कार्तवीर्यधरित्रीपतिदयिते व त्रिवहै गोशतिसाधिकेयपरनीतिवियेवोलेसेवळ ॥ जनियिसिद समस्त
गुणसकुलसस्तुतलक्ष्मभूमिपं जननुतकार्तवीर्य१० विभुग सतिपालदेविग सुतं जनियिपवोल् जयन्तनमरप्रभुर्ग
शविगं मयूरवाहनमवंगवद्रिजेगमगमव हरिगं ११ रमाश्यग ॥ पनिवेयर मरुलचुव समाकृतियि सुमनोभिवृद्धिय
जनियिप शीलदि कुवलय विकासमनीव भयमेयि जन१२ नयनके कामनो वसन्तनो चढ़मनो दिटके पेलेने विभु लक्ष्मी
देवनेसेव कविसंकुलकरुपमूह ॥ विजितरिपुराजराजाम१३ जे चढलदेवि लक्ष्मनृपसतियसवल विजितघटसर्पमदे विश्वजन
स्तुतचारुचरितेयेने धारिणियोल ॥ अवरिवंग कलिकार्तवी१४ यनु मल्लिकार्जुननुमाटर प्रोदुमवसाम्राज्यरामाधिपयुवराज
कुमाररारमजर धनतेजर ॥ जनमल्ल पेच्चे क १५ पेगेवरट सेल्लं जयश्रीगे नल्ल मनुमा सत्रिवर्ग नगेसेये
निसर्ग गृहीतारिदुर्ग सनयाला १६ सुरूप नेगलदनविदिलीपं जितारातिभूपं धनशौर्य क्षत्रवर्य
सुरकुजसशौदार्यनी कार्तवीर्य । १७ श्रीमकुलाधिवधनसोमनेनिप्पुटयविभुविनात्मजनत्युडामयशो
निधि बीच भूमाहितं सौम्यवृत्तिय तळेदेसेव । बीच१८ गे सुकविसस्तुतवाचंगादर सुतर जिनेद्रमतश्रीलोचनसनिमरात्म
हिताचरणर् नेगल्द पेमणनुमप्पणतुं ॥ तनग
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-१९] बेलगांवका लेख
२४. १९ ब्रह्मंगमुद्यच्चनुरने तनग वापिंग गुणपु चागं तनगं कर्णगमस्युननि
मरि तनग मैन्ग भूप्रियन्त्र तनग चंद्रगमहंन्मतर.. चि ननग वारिपेणगढतनिश मन्यालि बग्णिप्पुटु गुणियनि
मिटप्पणं प्रीतियिद ॥ श्रीकरणाप्रणिगप्पगाकलितलम२१ चरित्रे दयितयलंकाराकीणे विनुने वरवर्णाकृति वागवियुचिन
नामदिनेलेवल ॥ धनलक्ष्मीपतिपाडगं नेगल्ल कु२३ न्तीदेविगं धमनटनमीमार्जुनरादवोल तनुजरादर् विश्रुतर्
कार्तवीर्यनृपश्रीकरणाप्पणगमेमेवी वागदेविग सारशो२३ यनिधान विभुबीचजबलदेवर निर्जितारातिगल ॥ भनुपम
विद्यगुद्धविनय मिरिगोप्पुव चागडेलगे जीवनके विनिर्मला२४ चरणमायुगे विम्तृतकीर्ति वाक्प्रवर्तनंग ऋतोक्ति तनेसकटि
मले मंटनमागे बतिय जनपतिकार्तवीर्यसचिवैकशिरी२५ मणि यीचनुर्वियोल ॥ इदु ता श्रीकरणप्पणाग्रसुतसनपुण्यप्रमा
जालमिन्तिदु रतिनिपालमंत्रिय रमाम्मेरावलोकाशु२६ मत्तिटु दल धार्मिकचक्रवतिय दयादुग्धाब्धिीचिसमभ्युदयं
तानेने बीचिराजन या पवितु मूलोकम ॥ विनुतनिज२७ प्रमुगालोचनढोल नयशास्त्रदृष्टि दुर्धरममावनियोल् निशित
जयास्त्रं विनोढढोल नर्मसचिवननिपं वैज ॥ मरहिं तनं नो• डिट तरणीजनवरेट वदिवृट मत्तीवरनीभिपरपठेनल सुरूपन
नतिशयवितरणं बलदेव ॥ श्रीकानवीयंनृपति२९ श्रीकरणाविपन वीचणन गुरकुलढोल लोकोत्तरसुचरित्रविवेकर्
मलधारिदवमुनिपर् नंगलर् ॥ मा मुनिमुख्यर् गियर्
भूमीवर३० बंद्यरमलतरसिद्धातश्रीमुसतिलकर प्रथितोडामगुणर् नेगल्ल
नेमिचंदमुनीदर ॥ निरसमतपोनिवानर धरणीश्वरजालमा
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२४६ जैनशिलालेख सग्रह
[३१९३१ लिलालितपढरेदुरुमुदडिं कीर्तिपुदुर विभुशुभचढ़देवमहारकर ।।
स्वस्ति ममधिगतपचमहाशळमहामड३२ लेश्वर कार्तवीर्यदव निजानुजयुवराजकुमारवीरमल्लिकार्जुनदेव
बेरसु वेणुनामस्कधावारदाल माम्राज्यमुसमनु३३ मविमुत्तमात्मीयश्रीकरणाग्रगण्यनुमगण्यपुण्यनुमप्प पीधिराज
माडिमिट रजिनालयद श्रीशान्तिनाथदेवर अगमोग३४ रगमोगनिस्याभिषेकाचनतदाबासखडस्फुटिननीर्णोदरणाहारादि
दाननिमित्त श्रीमूलसंघकाढक ढान्वयदेशीयगणपु३५ स्तकगच्छहनसोगप्रतिबद्धत जिनालयाचार्यश्रीशुमचद्रमहारकवर्ग
शकवर्षद ११२७ नेय रक्ताक्षिसवत्सरट पु३६ प्यशुद्धविढिगे बढ़वारदोलाट संक्रमणसमयदोल कुटिममासिर
टोलगण कोरवल्लिगपदण उवरवाणियव प्रा३७ मम सर्वाबाधपरिहारमष्टभोगतेजस्वाम्यसहितं निधिनिक्षेप
जलपापाणरामादिममन्वितं सर्वनमस्यं माडि स्वकीयमा. ३८ म्राज्यसतानयशोभिवृद्धयर्थमागि धारापूर्वकमतिप्रीतिय कोहनदके
सीमे ऐशानियकोणोल् नरवल मोनेय३९ ल्लि नह कल्लल्लि तक मोगदे मूडण दिकिनोल नह क्लल्लि मुते
न कलाल मुडे नगरकेरेयाल्कि मुंटे आश्यिकोणोल मू४० लवल्लिवेलगोड मुग्गुडेयल्लि नट्ट कल्लल पडव मोगदे संकण
दिफिनोल बम्मणवाडकटुकवाडढ मुग्गुड्डेय इंगुणिगेरे४१ य केलगे नह कलल्लिं मुडे कुनिकिलगलल्लि नष्ट कलल्लि मुटे निरुतियकोणोल कटुकबाडकरवसेय मुगुडेयल्लि नट्ट कल्लालि
वडग मो५२ गर्द पडवण दिकिनोल मेलुगुडिय करवसेय मुग्गुड्डेयल्लि नह
कलाहिं मुडे केंदरिय माकिनोल नह कल्लल्लिं मुते वायुविन
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-३१९]
बेलगाँवका लेग्न ४३ कोणोल मलगुंडिय नाविढिगेय मुग्गुडेय गॉयटे गष्टिनाल नह कलल्लिं मृड मोगडे बहगण दिदिनोल सुण्ण कोडिय मेगणो
टुगल४४ हिं मुड मिटिकवन पधण नोनेलि नह कहहिं मुते
हरहिनकोडिय क्लहुनिकय मेल न कहलि मुढे मालढ मेल
नह कल्॥ ४५ मत्तं नाटोल कोट म्थलवृत्ति कर काल्बल्लि मूलवालियोलार ' मूढल् वेलकम्येय कैरिय तेकर क्याम्मवेटु नूरु आकरो४६ ल् महि गावुटन मयि पदुवलरगय्यगलनिष्पत्तीदु कयनीलन
मनेयाँदु ॥ कुलियवारिगेमोरिंगीशान्य४७ दलि नेश्वरदेवर केरिय मूदल कूढिय कोल मचरोदु बसदियि
तकल हन्निकरअगलढिपत्तोंदु कयनीलह मनयाँदु ॥ ४८ हरिंगबैयालगेलार पडुवल् हिंगलजेय बढेयिं बढगला कोल
मत्तरोंदु बढगण करियलि हन्निय्यगलढिपत्त ४९ कयनील मनेयोदु ॥ चच्छमियल्लि मूडण प्रभुमान्यदोलगे
वोच्चुलगैरेयिं मूढल मुटुगोडेय बयि तेक्ल हारुव५० गोल मत्तर मूवतु मेहिगुत्त नागणन मनेयिं वढगल् हनिर्क____ स्यगलदिपंतु क्यनीकट मनेयोदु ॥ बेलगलेय हल्लि हटिगु५१ तियोलार मूडणोति पहुवल् क्म्म नालनुरवत्तु ॥ उच्चुगावेय
हलि निवरोलरि नैऋत्यढोल महाजनगल कोट५२ ग्गोढगेय अप्पेय सावन्तनुबलियल्लि कोर कयं सीमें कडेय केरेयिं
बढगल दुलगन गुत्तियि मूडल मावन्सन कोडगे५३ रिय तकल सेलपरलिं पढुवल् नट्ट का मूडगेरियल्लि दनगर
मनेय स्थलढोल हदिना (ल्कु) गय्यड्डवने मुतेरड गोडिगे। क्ण्णगावेया
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२४८
जैनशिलालेख-संग्रह
[३१९५४ हरि नैऋत्यदल्लि एलेदोंट हास्वगोल मत्तरोदु कम्मवेल्नूररुवटु
तेकणि बढ मुगुलिय हल्लवट तकण हेले प५५ हुवला हल्ल बडगरूरुबयाविय वोटं। मूडल मूलस्थानदेवर तोट ।
आग्नेयकोणोरुल नहुवण देवालयद तॉट । मा ए५६ लेय वोटदि तेकला हल्लटिं मूडल हुदोर्ट कम्म नालनूरु ॥ई
सामेगलोलेल्ल नह कलगल ॥ भोसेदो शासनमार्गलिं नृपरदार
पालिप्परी ५७ धर्ममं निसद तत्सुकृतात्मरात्मबलमित्रप्रेयसीगोत्रपुत्रसमृद्
स्वदोलोदि विश्वधरेयं निष्कंटक माडि सतोसदि राज्यमनप्पु
केर पडेव५८ दीर्घायुम श्रीयुमं ॥ एनिसुं लोमदे शासनक्रममनावों मोरिद
तदुरात्मनसेव्याचरणान्वित पलिगे पैशून्यक्के पापक्के माजन
नल्पा५६ यु रुनाविल रिपुहृतामो:तल दुर्बल घनदुःखासदनागलु
नरकदोलोल काहुगु मूडगु । सामान्योय धर्मसे६० तुपाणां काले काले पालनीयो भवद्भिः। म नेतान् भाविनः
पार्थिवेदान भूयो भूयो याचते राममदः ॥बटता परदत्त ६१ वा यो हरेत वसुन्धरा पष्ठि वर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते
कृमि ॥ प्रहतारिवनकातवीयसचिव श्रीचीचिराज यशोमहि३२ त पेलिमेनल के शासनमनोलपि बालचई गुणाग्रहि विद्वजन
समतस्फुटपढार्यालक्रियासकुलावहमपन्तिरे पेलनिन्तु कवि. कन्दप धाधीश्वरं ॥
[म लेसका माराश जै०शि०स० भाग ३ मे क्रमाक ४५४ में दिया है। किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नहीं हो सका था। यह लेख भी पहले लेपके ही दिन अर्थात पीप शक्ल २ शक ११२७ को लिखा गया
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-३२१ ]
बालूके लेख
था। इसमें भी ग्ट्ट बनके राजा कार्नवीर्य ( चतुर्थ ) तथा उनके मन्त्री बीचणका उनके पूर्वजीके नाथ परिचय दिया है । बेलगांव मे बीचणके द्वाग स्थापित रजिनालय के अविष्ठाता शुभचन्द्र भट्टारक थे । ये मूलमघ कोण्डकुन्दान्वय-देशीयगण पुस्तकगच्छके मलघारिदेवके गिप्य नेमिचन्द्रके शिष्य थे । इन्हें कूण्डि प्रदेशके कोरवल्लि विभागका उम्बरवाणि ग्राम दान दिया गया था । ]
[ ए० इ० १३ पृ० २७ ]
૨૦
वालुर ( धारवाड, मैसूर )
कन्नड, राज्यवर्ष १६ = सन् १२०५
२४९
[ इम लेखमें होयसन्न राजा वीरवल्लाल २ के समय राज्यवर्ष १६, क्रोधन नवत्सरमे आपाद व० 3 बुधवारके दिन मेघचन्द्रभट्टारकके शिष्य कसप गावण्डकी हम निसिधिको स्थापनाका उल्लेख है । ]
[रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१९]
३२१
वालूर ( धारवाड, मैसूर )
कन्नड, १३वीं सदी
[ यह निसिविलेख बहुत घिस गया है । 'श्रीवीतराग' इतने अक्षर पढे जा मकते है । ]
[ रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१४ ]
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२५०
जनशिलालेख-सग्रह
[३२२
३२२ वेलगामे (मैमूर)
कन्नड, सन् १९०६ १ स्वस्ति श्रीमत् चोरवल्लालदेववपंट १६ नेय भयसव२ सरह मानपद व ११ धृहस्पतिवारदन्दु कमलसेन३ देवर गुडि नकोचे समाधिविधियिं मुढिपि सुगनि४ य प्राप्नेयादलु ॥ श्रीवातरागाय नमो
[इस लेखमे होयसल राजा वीरवल्लालके १६वे वर्ष क्षयसंवत्लरके भाद्रपद कृष्णपक्षमै ११ को कमलसेनकी शिष्या जकोबेक समाधिमरणका उल्लेख है।
हंचि ( मैसूर)
सन् १२०७, कन्नड [ यह लेख सन् १२०७ का है। होयसल राजा वीरवल्लालके राज्यमें नागरखण्ड प्रदेशके वान्धवनगरमें कदम्ववशीय सामन्त बोप्पके पुत्र ब्रह्मका शासन चल रहा था। उस समय सावन्त मुहने मागुण्डिमें एक बसदि वनवायी तथा उसे कुछ भूमि दान दी। यह दान मुलसंघ-काणूर गण-तित्रिणोक गच्छके अनन्तकोति भट्टारकको दिया गया था। उनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है-गोवर्धन सैद्धान्ति-मेघनन्दि सैद्धान्ति-दिवाकर सिद्धान्तदेवपभनन्दि सैद्धान्त - मुनिचन्द्र सैद्धान्त - भानुकीति सैद्धान्त - अनन्तकोति भट्टारक । मुद्दकी प्रशसा विस्तारसे की है तथा उसे रेचचमूपतिके समान कोप्पण तीयका रक्षक कहा है।]
[ए रि मै १९११ पृ० ४६ ]
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-३11
मानन्दमंगलम् आदिक लेख
आनन्दमंगलम (त्रिगलपट, मद्रान)
गज्यवयं = सन १६ नमिल [इन लेवने विनम्नर दुग्छडिगलो निल बर्वमानपरिडिगलद्वारा निनगिरिसर में एक पावरको बाहान्दान देनके लिए ५क्लनु (मुर्गमुद्रा करना उल है। रह लव बाल राजा (कुलोत्त. गर) महिमोग्ड परन्मुन्द्रिमा १३ वर्षका है।]
[नि.ना ए. १००२-२४ क्र. ४३० पृ २५ ]
३.५ मनगुन्दि (गरवाह-मैमूर ) भक ३८-20-मन् १२१-१८, कन्नट [यह लेख कडम्ब राजा जयगि नया बनवक ममन चैत्र ब ७, या ११३८ त्या कार्तिक शु ८, गर ११४० इन तिथियोंका है । इसमें मणिगुन्दिके जिनालगने जीर्णोद्धार लिए कई भन्ध पुन्पा-द्वारा दान दिये नानका उल्लेख है तथा वहां जैन आचार्योंकी नामावली दी है।]
[रि.मा ए. १०२५-२६ क्र ४३९ पृ ५५]
कंदगल (विजापूर, मैमूर)
राज्यवर्ष (6) = मन् ३२३०, कन्नड [यह लेख यादव राजा सिंहणदेव राज्यवर्ष (२) १, विक्रम सवत्सर कोष्ठ मावास्याका है। इसमें मूलमंच-पारगण सकलचन्द्र भट्टारकी प्रिया नागसिरियञ्चे-द्वारा निर्मित पार्वनाथ वरदिने लिए भूमि मादिक दानका उल्लेख है।]
[रि. सा ए. १९२८-२९ क्र. ई ५० पृ ४५ ]
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२५२
जैनशिलालेस-सग्रह
[३२७
३२७
हलेवीड ( मैमूर) शक ११५७ = सन् १२३६, संस्कृत-कन्नड ५ श्रीमद्देवासुराहीन्द्रपूजितश्चांगजन्मजिद् देव. श्री. २ वीरतीयशः पायाद मव्यजनवजान ॥ (१) श्रीमल्लोककविरया३ तमूलसंघो विराजते कोण्डकुन्दान्वयस्तत्र देशीयाख्यगणा४ प्रणी ॥ (२) श्रावीरनन्दिसिद्वान्नचक्रवत्यनुजो महान्
श्रीमद्वा५ हुयली नाम मुनि सिद्धान्तपारग ॥ (३) सकलज्ञ
प्रतिपादितोमयनया६ मिज्ञानसपन्नको मढनोद्यढवदावतोयढविभु सद्धर्मरक्षामणि.
दलिता७ टादशसत्पढार्थनिपुण, पदन्यवेदी जयत्यखिलो/नुतचारु
वाहुबलिमिद्धान्तीश्वर८ सम्मुनिः ॥ (४) तस्याप्रशिष्योखिलशन्दशास्त्रपारगम स्वाम
सुखानुवर्ती। स्यावाढविद्याकुश९ लो विमाति कामाम्बुजन्दु सकलेन्नुयोगी ॥ (4) अहणदिमुनी
न्द्राणां चारित्र विस्मयावह । १० तेषा प्रणयिनी वाणी तस्यास्तन्मुनय प्रिया ॥ (६) जल्प
वितण्डकथासु च शब्दाग१ मजिनमुखोत्यपरमागमयोरुसित यश्चित्त स विद्यारुहोहणन्दि१२ मुनि ॥ (७) एप श्रुतगुरुय॑स्य सकलेन्दुमहावते. । तस्य
विद्यामहापौढिर्मा १३ दशवण्यते क्या (0) इत्यभूनो यमीशो वरजिनमुनिसद्वन्ट
मध्ये विराजत् षड्विंशत्यधि
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जैनशिलालेख-सग्रह
[३३४
विजापूर ( मैसूर)
शक ११७९ -सन् १७५७, काड [यह लेख करीमुद्दीनकी मसजिदमें पाया गया। यह मसजिद एक जैन मन्दिरके स्थानपर बनवायी गयी थी। इस मन्दिरके आचार्य करसिदेवके लिए यादव राजा कन्हरदेवके समय शक ११७९ में कुछ भूमि दान दिये जानेका इस लेखमें निर्देश है।]
[रि० मा० स० १९३०-३४ पृ० २२४ ]
वस्तिहल्लि ( मैसूर)
सन् १२५७, काड [ यह मूतिलेख होयसल राजा नरसिंहके समय सन् १२५७ का है। इस समय श्रीकरणद मधुकणके पुत्र विजयण्ण तथा दोरसमुद्रके अन्य जनोने मूलसघ देसिगण हनसोगे शाखाके शान्तिनाथ मन्दिरका निर्माण किया था। इस मन्दिरके लिए होरगुप्पे नामक ग्राम नयकीति सिद्धान्तचक्रवतिको अर्पित किया गया था।]
[ए.रि. १९११ पृ० ४९]
कलकेरि (विजापूर, मैसूर)
राज्यवर्ष ४= सन् १२६०, कन्नड [यह लेख यादव राजा कन्नरदेवके राज्यवर्ष ४ साधारण सवत्सरम लिखा गया था। इसमें अनन्ततीर्थकरमन्दिरके लिए रगरस-द्वारा-पुत्र प्राप्तिके उपलक्ष्यमे कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। करसग्राहक सर्वदेव नायक-द्वारा भी इस समय कुछ दान दिया गया था ।]
[रि० सा० ए० १९३६-३७ क्र० ई० ५४ पृ० १८६ ]
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________________
3]
नेगलूर आदिके लेख
३३७
नेगलूर ( धारवाड, मैसूर) राज्यवर्ष (६) = सन् १२६२, कन्नड
[ यह लेख यादव राजा कन्धरदेवके राज्यवर्ष (६) विरोधी सवत्सरमें भाद्रपद शु० १४, गुरुवारको लिखा गया था । इसमें कुलचन्द्रभट्टारकके शिष्य सकलचन्द्र भट्टारक के समाधिमरणका उल्लेख है । ]
[रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई० १६२ पृ० १०७ ]
३३८
बालूर ( धारवाड, मैसूर )
शक ११८४ = सन् १२६२, कन्नड
१७
२५७
[ इस निसिधि लेखमें कहा गया है कि सेंबुरके कावय्यकी माता चेकवाने यह निसिधि स्थापित की। लेखको तिथि पौष शु० ११, सोमवार, शक ११८४, दुर्मति सवत्सर ऐसी दी है । ]
[ रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१८]
३३६
वालूर ( धारवाड, मंसूर ) १२वीं सदी, कन्नड
[ इस लेखमें यादव राजा कन्धरदेवके राज्यकालमें नल सवत्सरके पौप मासमें गुरुवार के दिन इस निसिधिके स्थापित किये जानेका उल्लेख है । लेख बहुत घिस गया है । ]
[रि० ६० ए० १९४५-४६ क्र० २१७ 1
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जैनशिलालेख-संग्रह
[११
३४०-३४१ हचिमत्तूर ( धारवाड, मैसूर) राज्यवर्ष ५ क्या ९= सन् १२६५ तथा १२६९, काड [ये दो लेख है । पहला लेख यादव राजा महादेवके राज्यवर्ष ५ में कार्तिक २० १३, बुधवार, क्रोधन सवत्सरके दिन सेवयर जक्कयकी पल्ली भाववेके समाधिमरणका स्मारक है। दूसरेमे महादेवके राज्यवर्ष ९ में हत्तियमतूरकी बसदिके आचार्यके समाधिमरणका उल्लेख है। (न) न्दिभद्वारकदेवका भी उल्लेख है।1
[रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई० ६८-६९ पृ० ९८]
३४२ हलेवीड ( मैसूर) सन् १९६५, कबड
[यह लेख होयसल राजा नरसिंह ३ के समय सन् १२६५ का है। इस वर्षमे राजा-द्वारा त्रिकूट रलत्रय शान्तिनाथ ग्निालयके लिए माघनन्दि सैद्धान्तिको कल्लनगेरे माम दान दिया गया था। माघनन्दिकी गुरुपरम्पग इस प्रकार है- मूलसघ - नन्दिसध-बलात्कारगणक वर्षमानमुनिकोहोयसलराजाओके गुरु थे, श्रीधर विद्य-पद्मनन्दि विध-वासुपूज्य सैद्धान्तिशुभचन्द्र-भट्टारक-अभयनन्दिभट्टारक - वाहणदि सिद्धान्ति, देवचन्द्र, अष्टोपवासि कनकचन्द्र, नयकीति, मासोपवासि रविचन्द्र, हरियनन्दि, श्रुतकीति विध, वीरनन्दिसिद्धान्ति, गण्डविमुक्त,नेमिचन्द्रभट्टारक, गुणचन्द्र,जिनचन्द्र, वर्धमान, श्रीधर, वासुपूज्य, विद्यानन्द स्वामि, कटकोपाध्याय श्रुतकीति, वादिविश्वासघातक मलेयालपाण्डपदेव, नेमिचन्द्र, मध्याहकल्पवृक्ष वासुपूज्य। श्रीधरदेव-धासुपूज्य ~ उदयेन्दु - कुमुदेन्दु-भाषनन्दि । माघनन्दिके चार
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-३४५] भपिगगेरि वाटिके लेख
२५९ ग्रन्योका उल्लेख किया है- मिद्धान्तमार, थावकाचारसार, पदार्थसार तथा गावसार ममुच्चय । इनके शिष्य कुमुदचन्द्र पण्डित थे । यन्तमें इस दानके सहायकके कनमें महाप्रवान सोमेय दण्डनायकका उल्लेख किया है।]
[ए० रि० म० १९११ पृ० ४८]
३४३ अण्णिगेरि (पाखाड, मैसूर)
राक ११८९% मन् १२६७, वह [इम लेखमें चैत्र २०४, मगलवार, शक ११८९, प्रभव संवत्सरके दिन मूलमव-कोण्डकुन्दान्वयके सोमदेवाचार्यकी शिष्या आकलपे अम्बेके समाधिमरणका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ ३० ई २०४ पृ० ५३]
३४४ संगूर (धारवाड, मैसूर)
राज्यवर्ष : सन् १२६९, कन्नड [इम लेख में यादव राजा महादेवके राज्यवर्ष ९, विभव संवत्सरमें नन्दिभट्टारक्के गिष्य नयकौति भट्टारकके शिष्य नालामु गगर सावन्त मोवके समाविमरणका उल्लेख है।]
[रि० मा० ए० १९३२-३३ ३० ई १६८ पृ० १०७]
हुलिकेरे (मैसूर)
सन् १७१, कबड १ स्वस्ति प्रजोत्पतिसंवत्सरद चैत्र सु १ वि इंदु श्रीमत् प्रतापवीर होयसल श्रीवीरनारसिं... -
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२६०
जैन शिलालेख संग्रह
[ १४६
२ वादुनं सोमेयदण्णायकरु मेय्दुन वाचेयढण्णायकरु होकुद्रट बसदि जीणवा
३. दण्णायकरुं जीर्णोद्धारखं माडिलिकं - य निडिसिद्रु
[ इस लेखमें होयसल राजा नरसिंहके शासनकाल में चैत्र शु १, गुरुवार, प्रजोत्पत्ति सवत्सर के दिन होकुदकी बसदिके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । यह कार्य सोमेय दण्डनायकके बहनोई वाचेय दण्डनायक द्वारा किया गया था । लिपि १३वी सदोकी है । सवत्सर नामानुसार यह वर्ष सन् १२७१ होगा जब नरसिंह तृतीयका राज्य चल रहा था । ) [ ए०रि० मे १९३७ पृ० १८७ ]
३४६
मुलगुन्द ( धारवाड, मैसूर ) शक ११९७ = सन् ११७५, कन्नड
[ यह लेख वैशाख व १ (३), गुरुवार, शक ११९७ युव सवत्सरका है तथा पार्श्वनाथवसदिके भीतरी दीवालमें लगा है । इममें सरटूरुके तिलकरसके मन्त्री देवण्णके पुत्र अमृतैयके समाधिमरणका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२६-२७ क्र० ई ९१ पृ० ८ ]
३४७ अमरापुरम् (अनन्तपुर, आन्ध्र )
शक १२०० = सन् १२७८, कन्नड
[ यह लेख निक्षुगल्लुके महामण्डलेश्वर इरुगोण चोल महाराजके समय आपाढ शु० ५ सोमवार शक १२००, ईश्वर इसमें मूलसघ- देशियगणके त्रिभुवनकीति राउलके शिष्य रिदेवके उपदेशसे संगयन बोम्मिसेट्टि तथा मेलन्बेके पुत्र
सवत्सरका है बालेन्दु मलषामल्लिसेट्टि द्वारा
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-३५० ]
इन्दौर आदिके लेख
२६१
तैलगेरेके प्रसन्नपार्श्वदेवके लिए २००० वृक्षोके उद्यानके दानका वर्णन है । इस मन्दिरका उपाध्याय जैन ब्राह्मण चल्ल पिल्ले था जो पाण्ड्यप्रदेशके भुवलोकनाथनल्लूरका निवासी था । ]
[रि० स० ए० १९१६-१७ क्र० ४० पृ० ७४ ]
ક
इन्दौर म्युजियम ( मध्यप्रदेश )
संस्कृत - नागरी, सं० १३३४ = सन् १२७८
[ इस लेखमें पण्डिताचार्य रत्नकीर्ति द्वारा एक मूर्ति सं० १३३४ में स्थापित किये जानेका उल्लेख है ।
[रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० १२३]
३४६
एटा (उत्तरप्रदेश )
संवत् १३३५= सन् १२७८, संस्कृत - नागरी
[ मूलसंघके गोललतक कुलके कुछ साघुमो द्वारा सवत् १३३५ मे तीन मूर्तियाँ स्थापित की गयी थीं ऐसा इस लेखमें वर्णन है । ] [रि० आ० स० १९२३ - २४ पृ० ९२]
૨૦ कडकोल ( धारवाह, मैसूर )
शक १२०१ = सन् १२८०, कन्नड
[ इस लेखमे मूलसघ के पद्मसेन भट्टारकके शिष्य सावन्त सिरियम गोडकी पत्नी चण्डिगौडिके समाधिमरणका तथा कई गौडो द्वारा एक वसदिको दान दिये जानेका उल्लेख है । तिथि भाद्रपद शु० ६, सोमवार, शक १२०१, प्रमाथि सवत्सर ऐसी है । ]
[रि० स० ए० १९३३-३४ ऋ० ई ५१ पृ० १२३ ]
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२६३
जैनशिलालेख-संग्रह
३५१
सण्णमल्लीपुर (मैसूर)
शक १९०७ - सन् १२८५, कन्नड १ स्वस्ति श्रीप्रतापचक्रवर्ति २ होइसल वीर नरसिं१ हदेवरसरु पृथिवि- ४ राज्य गेयुतिरलु ५ शक वरिष १२०७ नेय ६ सुमक्रितुसंवत्सरट पाल्गु
८ गगडे ९ "गरबद्दल
१० • लवू " "मतर.
१२ ""हि पावन तम्म "माल१३ ""कोडगे "भाल १५ 'ल्दु होलचेरड भन्तु १५ विदने 'सा
१६ यिर मत्ता बिट्ट १७ "सिद सासन ॥ १४ 'दक्षिण तगडूरलि
२० (ग) यूर गुलियपुर २. "यण्ण भक
२२ ''नागगावुड ॥ वीतराग [यह लेख होयसल राजा नरसिंह ३ के समय शक १२०७ के फाल्गुनमे लिखा गया था। किसी हेगडे-द्वारा नागगावुडको तगहूर, तापुर तथा गुलियपुर ग्रामकी कुछ भूमि करमुक्त दी जानेका इसमें वर्णन है। अन्तमें वीतराग यह मुद्रा है इससे दानदाता जन प्रतात होते है।
[ए० रि० मै० १९३० पृ० १८४]
१९
...
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-३५. ]
ताडकोड आदिक लेख
२६३
२६३
३५२-३५३ ताडकोड (धारवाड, मैमूर)
राज्यवर्ष ११ = सन् २०८५, कन्नड [यह लेख यादव राजा रामचन्द्रकै गज्यवर्ष १४, चित्रभानु मंवत्सरका है। इन ममय कन्नरदेवी रानीकी आनामे सर्वाधिकारी मायदेवने एक जिनमन्दिर बनवाया था। यहींक अन्य लेखमें चन्द्रनायको नमस्कार कर वालचन्द्र गिप्य श्रीवासुपूज्यका उल्लेख किया है।]
[रि० मा० ए० १९२५-२६ क्र० ४४४-४८५ पृ० ७६ ]
कलकरी ( मैमूर)
राज्यवर्ष 16-मन् १२८२, कन्नड [ यह लेख यादव राजा रामदेवक राज्यवर्ष १८ में पोप शु०८, वडवार, (म)धारि संवत्सरके दिन लिखा गया था। इसमें नागेयिसट्टि और मादक पुत्र मादय्यक समाधिमरणका उल्लेख है। इनके गुरु ममन्तमद्रदेव थे।] [रि० सा० ए० १०३५-३६ क्र० ई० ७२ पृ० १६७ ]
३५५ डम्बल (जि. धारवाड, मैसूर)
पक 11-सन् १९९०, कन्नड [यह लेख रामदेव (यादव ) के ममयका है । धर्मवाललक महानागुके १६ प्रतिनिधि तथा नाडु ८ प्रतिनिधि एव नाल्बबीर चबुण्डके छोटे बन्यु सप्तरस-द्वारा नगर जिनालयके लिए कुछ करोका उत्पन्न दान देनका इसमें उल्लेख है। इसी मन्दिरको अय्वत्तोक्कल तया उगुरु ३००-द्वारा कुछ तेल वगैरहका दान भी दिया गया था। तिथि पौष शु. २, रविवार, शुक १२११, मबंधारी संवत्सर ऐसी दी है।]
[रि० मा० ए० १९४४-४५ क्र० एफ ३]
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जैनशिलालेख-संग्रह
पोन्नूर (उ० अर्काट, मद्रास)
राज्यवर्ष ७ = सन् १९९०, तमिल [यह लेख स्थानीय जैन मन्दिरमें है। मारवर्मन् विक्रमपाण्डयके राज्यवर्ष ७ मे विडालपरके नाट्टवर् (ग्रामप्रमुखो ) द्वारा आदिनाथके पल्लिविलागममें रहनेवाले लोगोसे प्राप्त करोका उत्पन्न इस जिनमन्दिरने पूजा आदिके लिए अर्पण किए जानेका इसमें उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४१५ पृ० ४०]
हुमच (मैसूर)
शक १२.७%= सन् १२९५, कनड , श्रीमत्परमगंभीरस्थाद्धादामोघलांछ२ नं जीयात् बेलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासने स्वस्ति श्रीमतु सकवर्ष १२१७ नेय मनु
मयसंवत्सरद चैत्र सुपाडिच वृहस्प५ तिवारददु श्रीमसिद्धान्तयोगी६ पादपकजनमर बम्मगवुड म• हापुरुषो"गतो सिद्धिं समाधिना। ८ नमनाण"गुणसेनमुनिश्वरं ९ "प्राविडान्वय ३० मौलिना
[इस निसिविलेखमे धीमत् सिद्धान्त योगीन्द्रके शिष्य बम्मगवुडके समाधिमरणका उल्लेख है जो चैत्र शु०१, बृहस्पतिवार, शक १२१७ मन्मथसवत्सरके दिन हमा था। लेखके अन्तमें द्राविड अन्वयके गुणसन मुनीश्वरका नाम भी माता है।]
[एक रि० म० १९३४ पृ० १७७ ]
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-३६०]
लक्ष्मश्वर आदिक लेस
२६५
लक्ष्मेश्वर (मैमूर) शक १२१७ = सन् १२१५, संस्कृत-कन्नड [ इस लेखमे पुरिकरके शान्तिनाथ मन्दिरके लिए सोमय-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । तिथि भाद्रपद शु० ५, सोमवार, शक १२१७ ऐसी दी है।
[रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई २८ पृ० १६३ ]
३५६ मन्नेर मसलवाड ( वेल्लारी, मैमूर)
शक १२१९=सन् १२९०, क्वड [यह लेख यादव राजा रामचन्द्रदेवके समय मार्गशिर शु० ५ गुल्वार भक १२१९ हेमलम्बि सवत्सरका है। इसमें महामण्डलेश्वर भैरवदेवरसद्वारा मूलसघ देसिगणके नेमिचन्द्रराउलके शिष्य विनयचन्द्रदेवको भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान मोसलेवाडके जिनमन्दिरके लिए था निसका जीर्णोद्धार महामण्डलेश्वर सालेवेय तिकमदेव राणेयके मन्त्री सावन्त पण्डितके पुत्र केशव पण्डित-द्वारा किया गया था।]
[रि० सा० ए० १९१८-१९ क्र० २५६ पृ० २२]
३६०
कोगलि (वेल्लारी, मैसूर )
१३वीं सदी, कन्नड [इम लेखमें होयसल राजा प्रतापचक्रवति रामनाथदेव-द्वारा युव मंवत्मरमें कोगलिके चैन्नपार्श्वजिनमन्दिरके लिए सुवर्णदान देनेका उल्लेख है।]
[इ० म० बेल्लारी १९२]
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जैनशिलालेख-संग्रह
[३६:
३६१-३६७ चिप्पगिरि ( जि. वेल्लारी, मैसूर)
१३वी सटी, कन्नड [ये छह लेख है। मूलसघ-देशीयगण-कोण्डकुन्दान्वय-पोस्तकगच्छके केशणदि भटारके शिष्योके समाधिमरणका इनमें उल्लेख है । इन शिष्योंक नाम है-गोपरस, तथा उसकी पत्नी हालौवे, मादलदेवी, तिप्पयकी पली जाकवे, नागलदेवी, मूलिग तिप्पय, वैतलेय बोम्मिसेट्टि तथा उसकी पली बीमवे । लिपिके अनुसार ये लेख १३वी सदीके प्रतीत होते है। इसी समयके एक और लेखमें माधवचद्र भट्टारकदेवके शिष्य परिसयके समाधिमरणका उल्लेख है।
(रि० सा० ए० १९४४-४५ ई ६३-७२)
३६८ अदरचि (जि. धारवाड, मैसूर)
१३वीं सदी, कन्नड [यह लेख लिपिपर-से १३वी सदीका प्रतीत होता है । यापनीय सघ-काडूरगणकी एक बसदिके लिए दी हुई जमीनको सीमा बतलानेवाला यह पत्थर है। यह वसदि उच्छगि नगरमें थी। यह दान अदिगुण्टेके गोण्ड और स्थानिको-द्वारा दिया गया था।]
(रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० क्र० ३ पृ० २५५)
३६६ वसवपट्टण ( हासन, मैसूर )
१३वीं सदी कन्नड १ श्रीमूलसघ टेसियगण पोस्तकगच्छ २ कॉडकुंदान्वयट इंगलेश्वरद ब
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२६७
-३७१] रत्नापुरि आदिके लेख
३ लिय श्रीश्रुतकीर्तिदेवर गुड्डुगलु ५ कोग नाड श्रीकरणट कावण्णगल मक्क५ लु नाकण्ण होनण्णगलु माडिसिद श्री६ नेमिनाथस्वामिगल प्रतिमे मग७ ल महा श्री श्री श्री
[ इस लेखमें श्रीकरणद कावण्णके पुत्र नाकण्ण तथा होनण्ण-द्वारा, जो कोगु प्रदेशके निवासी थे, नेमिनाथकी इस मूतिके स्थापित किये जानेका उल्लेख है। ये दोनो मूलसष-देसियगण-पुस्तकगच्छकी इगलेश्वरबलिके आचार्य श्रुतकीतिके शिष्य थे। लेखकी लिपि १२वी या १३वी सदीकी प्रतीत होती है।
(ए. रि० म० १९४४ पृ० ४२)
३७० रत्नापुरि (मैसूर)
१२वीं-१३वीं सदी, कन्नड [यह दो पंक्तियोका लेख एक भूतिके पाद-पौठपर है जिसमे किसीभट्टारकदेव-द्वारा इस मूर्तिको स्थापनाका निर्देश है। लिपि १२वी या १३वी सदीकी प्रतीत होती है।] [ मूल कन्नड लिपिम मुद्रित ] [ए. रि० मे० १९४४ पृ०७०]
३७१ वेलगोल ( माड्या, मैसूर)
पश्चा-१३वीं सदी, कन्नड [ इस छोटे-से मूर्ति-लेखमें द्रविल सघ-नन्दिसघ-अरुगल अन्वयके कुछ व्यक्तियो-द्वारा इस पार्श्वनाथ मूर्तिकी स्थापनाका निर्देश है। लिपि १२वी या १३वी सदीको प्रतीत होती है । ] [ मूल कन्नड लिपिमें मुद्रित] [ए. रि० मै० १९४४ पृ० ५७]
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२६८
जैनशिलालेख-सग्रह
[३७२
३७२ विदिर (शिमोगा, मैमूर)
१३वीं सदी, कन्नड १ श्री मैणदान्वयद देसियगण नागर एक्कगूडिय सु२ भचन्द्र देवरु माडिसिद बसदिगे ॥ श्रीजिनपद३ पकजविराजितमधुकरन् एनिप्प मल्लि कोह ४ पूजिववेने तीर्थकरवाजित प्रतिकृतिय५ नुचित कडितले गोत्र ।
[इस लेखमें बिदिरूर ग्रामके बसदिमे मल्लि नामक व्यक्ति-द्वारा इस चौबीसी मूर्तिके अर्पण किये जानेका वर्णन है। यह बसदि देसियगण-मैणदान्वय-कडितले गोत्रके सुभचन्द्रदेव-द्रारा बनवायी गयी थी। लेखकी लिपि १३वी सदीकी है।]
[ए. रि० मै० १९४३ पृ० ११४ ]
३७३
होगनूर ( मैसूर)
१३वीं सदी, काड १ स्वस्ति श्रीमूलसंध श्रीकाण्वद श्रीसकलचंद्रमहा२ रकदेव सिष्यरु माधवचद्रदेवर गुड्डुगलु ३ उमयनानादेसिगल मादिलिद होंगनूर शा४ तिनाथदेवर जोगवडिगेय बसदि मगल महा
[यह लेख एक शान्तिनाथ मूतिके पादपीठपर है जो वर्तमानमें लक्ष्मीदेवी मन्दिरके एक चबूतरेमें लगी है। इसमें होगनूरकी बसदिका निर्माण सकलचन्द्रके शिष्य माधवचन्द्रके शिष्यो-द्वारा किये जानेका उल्लेख है । ये मूलसष-काण्व (क्राणूर गण) के अन्तर्गत थे। लिपि १३वी सदी-की है।]
[ए. रि० ० १९४२ पृ० १२६ ]
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२६९
-३७५ तवनन्दी आदिके लेख
२६९ ३७४ तवनन्दी (मैसूर)
१३वी सटी, फलढ १ स्वस्ति श्रीमूलसब सूर- २ स्वगण चित्रकूटान्वयन ३ प्रतिबद्ध
[ यह छोटा-सा लेख एक खण्डित जिनमूतिके पादपीठपर है। मूलमघ-मूगस्तगण-चित्रकूटान्वयके किमी व्यक्ति द्वारा यह मूर्ति स्थापित की गयी थी। लिपि १३वी सदीकी है।]
[ए. रि० मै० १९४२ पृ० १८५] ३७५ वरुण (मैमूर)
१३वीं सदी, सस्कृत-कसद १ श्रीमद् द्रविल- २ संगस्य नन्दिसं ३ घे हारुगले अ- ४न्वयेऽशेषशास्त्र५ज्ञ श्रीपाल
६ मुनिराश्रिय ७ तच्छियो विदुषां श्रेष्ठ पनप्रम९ मुनीश्वर. तस्य १० पुत्र तपोती११ धर्मसेनमहा
१२ मुनि ॥ सोयं १३ शुद्ध() स्वमावस्तो- १४ बायां (न)रपरिग्रहा१५ त्त्यक्ती जिनपटाने १६ त्रिदिव गतवान् बुध५७.
[इस लेखमें द्रविलसप-नन्दिसप-अरुंगल अन्वयके आचार्य श्रीपालके प्रशिष्य तथा पमप्रभके शिष्य धर्मसेनके समाधिमरणका उल्लेख है । लेखको लिपि १३वी मदीकी प्रतीत होती है।]
[ए. रि० मै० १९४० पृ० १७२ ]
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२१
क्लगेरेका लेख २० धरु वासुपूज्यसिद्धान्तटेवरु शुमचन्द्र२१ मट्टारका भमयनन्दिमटारकरु अहन२२ दिसिद्धांतिगलु देवच(ड) सिद्धांतिगलु अष्टोप२३ वासि कनकचन्द्रदेवरु नयकीर्ति चान्द्रा२४ यणदेवरु मामोपबास रविचन्द्रसिद्धा२. तिगलु हरियनन्दिसिद्धान्तिगलु श्रुत२६ कीनिविद्यदेवरु वीरणदिसिद्धान्त:२७ बरु गण्डविमुक्त नेमिचन्द्रमद्वारकठेव पूर्वकी मार २८ (वर्ध )मानमुनीन्द्ररु श्रीधराचार्यरु चा२६ सुपूज्यत्रेविद्यदेवरु उढयचमिद्धां३० तदेवरु कुमुदचन्द्रमट्टारकदेवर मा" ३. माधनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्निगल श्रीपादप३२ अगालगे होयसलभुजबल श्रीवीरनारसिंहदेवरस३३ रु टोरसमुद्रद त्रिकूटरत्नत्रयट श्रीशातिनाथ ३१ टेवर अं(ग)मोग रंगमोग आहारदान मुन्ताद ३५ समलधर्मकार्यक्का ३६ चिकनेयनहलि ३७ · व येनुलंया अष्टमो३८ गतेजस्वाभ्यसहितवागि माधनं३९ दिसिदान्तचक्रवर्तिगल श्रीपाद४० पद्मगलिगे धारापूर्वकं माडि ४. कोहरु स्वदत्ता परदत्ता वा यो हरेत ४२ वसुधरा'"
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२७२ जैनशिलालेख-सग्रह
[३७७[इस लेखके प्रारम्भमें होयसल वशके राजाओंकी परम्परा नरसिंह (तृतीय) तक दी है। नरसिंहने राजधानी स्थित शान्तिनाथ जिनालयके लिए चिककोयनहल्लि ग्राम दान दिया। यह दान मूलसघ-बलात्कारगणके कुमुदचन्द्र भट्टारकके शिष्य माधनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीको दिया गया था। लेखमें कुमुदचन्द्रके पूर्ववर्ती १९ आचार्योक नाम भी उल्लिखित है।]
[ए.रि. मै० १९४० पृ० १६४ ] ३७७-३७८ भूगूर (मैसूर)
१३वीं सदी, कन्नड (अ) अंमूलसंघ देसियगण पुस्त २ कगग्छ कोंडकुंदान्वयक
'हगेरे३ यतीर्थद प्रतिवद्धट भरतपण्दितरिगे । अक्कियन्येय मगलु" (ब) मूलसष देगसिण पुस्तकगच्छ कोंडकुटान्वय इंगणेश्वर सं(घ)द
श्रीमानुकीर्तिपं२ डितदेवर शिप्यरप्प कान नंदिदेवर गुडगलप्प भूगूर समस्त ३ गावुण्डगलु कोडेयर बसदिय जीर्णोद्धारणवमा ४ डि • सिदर मगलमहाश्री
[ये दो लेख मूगूरकी आदिनाथवसदि तथा गास्वनाथवसदिके मूर्तियो. के पादपीठोपर है । पहलेमें मूलसघ-देसियगणक क-हगैरे तीर्थसे सम्बद्ध भरत पण्डितके लिए जक्कियब्बेकी कन्या (नाम लुप्त)-द्वारा कुछ दान दिए जानेका उल्लेख है ! लेख अधूरा होनेसे विवरण स्पष्ट नहीं हो सकता। दूसरेमें मूल सघ-देसिगण-इगणेश्वर सघके भानुकीति पण्डितके शिष्य - नन्दिके शिष्य गावुण्डो द्वारा मुगुरको कोठेयरवसदिके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । लेखोकी लिपि १३वी सदीकी है।]
[एरि० म० १९३८ पृ० १८२-८३ ]
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-३८० ]
इलेवीढ आदिके लेख
३७६
हलेबीड (मैसूर) १३वीं सदी, कन्नड
१ जिननात्मोयेष्टदन्यं निजगुरु नयकोतिव्रतीश लसदूभूवि२ नुतं तानुक्किसेहिप्रभु पितृ तनगेकब्वे वायेन्दो डिन्तीवन
३ धिन्यावृतधात्रीतल ढोल अर्दे पुण्योद्मवत्रासदो कूटि निवान्
-
8 तं नामिसेट्टि स्फुट विशढयशोलक्ष्मिय ताने पेन्त ॥
५ श्रन्तात व्यवहारदि मन्त्र विक्रमाक्रान्त
६ लढेव • मान्धात दो
७ कोण्डु स्वान्त विश्रुत ना
मिसेहि दिवटोल कैवल्यमं तालुटिद
२७३
[ इस लेखमें उक्किसेट्टि और एकव्वेके पुत्र नामिसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है । नामिसेट्टिके गुरु नयकीति व्रतीश थे । लेखकी लिपि १३बी सदीकी प्रतीत होती है । पक्ति ५ के अस्पष्ट भागमे सम्भवत वीरबल्लाल (द्वितीय) के राज्यका और तिथिका उल्लेख था 1 ]
[ ए०रि० मं० १९२९ पृ० ७८ ]
१८
३८० तिरुनिडकोण्डै ( मद्रास ) १३वीं सदी, तमिल
[ इस लेखमें कहा गया है कि कुलोत्तू ग चोल राजा- द्वारा कनकच्चि - नगिरि अप्पर् देवको अर्पित नल्लूर यह एक धार्मिक स्थान है । यह लेख चन्द्रनाथ मन्दिरके वराण्डेमें लगा है तथा १३वीं सदीकी लिपिमें है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० २९९ पृ० ६५ ]
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जैनशिलालेस-संग्रह
तिरुनिडंकोण्डै (मद्राम)
१३वीं सदी, तमिल [यह लेख चन्द्रनाथ मूतिके पादपीठपर खुदा है । इस मूर्तिकी-जिसे कच्चिनायकर कहा है - स्थापना आलप्पिरन्दान् मोगन् कच्चियरायरद्वारा की गयी ऐसा लेखमें कहा है । लिपि १३वी सदीकी है। ]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० ३१९ पृ० ६७]
३८२ कोट्टगेरे (मैसूर )
१३वीं सदी, कार [इस लेखमें देसियगण-इगलेश्वर वलिके हेरगु निवामी भाचार्य हरिचन्द्रके शिष्य माधनन्दि-द्वारा एक शान्तिनाथ मूतिकी स्थापनाका उल्लेख है । लिपि १३वी मदीकी है।]
[ए. रि० मै० १९१९ १०३३]
३८३ तिरुनिडकोण्डै (मद्रास)
१३वीं सदी, तमिल [ यह लेख यहाँको पहाडीपर चढनेके लिए बनी सीढियोके पास है। इन सीढियांका निर्माण गुणवीरदेवन् पण्डितदेवन्ने किया ऐमा लेखमें कहा है। लिपि १३वी सदीकी है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ० ३१६ पृ० ६७ ]
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२७५
-३८७]
हुकेरी आदिके लेख
३८४ हुकेरी (जि० वेलगांव, मैसूर)
१३वीं मढी, कन्नड [ यह लेग्ब टूटा है । यापनीय मघके किसी गणके कीर्ति आचार्यका इसमें उल्लेख है । लिपि १३वी सदीकी है। ]
[रि० सा० ए० १९४२-४३ ई ६ पृ० २६१]
३८५-३८६ हले हुबलि (जि० घारवाड, मैसूर)
१२वीं-१३वीं सदी, काड । [यहाँके अनन्तनाथ बसदिमें दो लेख है । एक ब्रह्मदेवको मूर्तिपर है। इसकी लिपि १२वीं सदीकी है। सेटि महादेवी-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका इममें निर्देश है। दूसरा एक जिनमूर्तिपर है। इसकी लिपि १३वी भदौको है। इसमें यापनीय सघके (क)डूर गणका उल्लेख है।
[रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० 33-३४ ]
३८७
मोटे वेचूर (घारवाड, मैसूर)
१३वीं सदी, कन्नड [ यह लेख १३वीं सदीको लिपिम है । तिथि चैत्र शु० १०, गुरुवार, सौम्य सवत्सर ऐसी दी है। इसमें जिनचन्द्रदेवके शिष्य बोम्मिसेट्टिके पुत्र वाचिसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है ।]
[रि० स० ए० १९३३-३४ क्र० ई १०८ पृ० १२९]
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२७६
जैनशिकालेस-संग्रह
[३३८८-३८९ वनवासि (उत्तर फनडा, मैसूर )
१२ची-१३वीं सदी, काड [यहाँ दो मूर्तिलेस है जो १२वी-१३वी सदीकी लिपिमें है किन्तु अस्पष्ट है । एवम मूलसपके किसी आचार्यका उल्लेस है।]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २४३-४४ पृ० २८]
विजापूर ( मैसूर)
शक १२३२ = सन् १३१०, कन्नड [ इस मूर्तिलेखम मूलसप-निगमान्वयके कृष्णदेव-द्वारा शक १२३२, साधारण मवत्सरमें इस मूर्तिको स्थापनाका उरलेस है।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ ३० ई० १६४ पृ० १३४ ]
३६१ बेलगामे ( मैसूर)
सन् १३१९, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमतु यादवचक्रवर्ति भुजयलवी "बलाल " २ पंढ ९ नेय सिद्धाथिमवत्सरद भाषाढ शु ३ वार व्यतीपात संक्रान्ति शुमहिनढ ४ (श्री)मद् राजधानिपट्टण बलियामय हिरियय५ सदिय मालिकामोदशान्तिनाथवर अष्ट. ६ विधार्च(नोगे श्रीमनु महाप्रधान सेनाधिपति मलि
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बेलगामेका लेख
७ यणढण्डनायवर नागरखण्ड जिड्डुलिगेयन्तेर८ डेप्पत्तुमं दुष्टनि (ह) शिष्टप्रनिपालन माडुत्तं
९ सु ( समं ) क्याविनोददिं राज्यं गेय्युत्तमिरे पट्टणन अघि
१० कारि हंग्गडे मिरियण्णं तन्नंनराक्रेिय मूलेवर्तमु
११ न्यवागि हेर्नुकडधिकारि चावुण्डरायनुं मोमय्य
१२ नुं मन्नेय कोप (?) विसरधिकारि मालवेग्गडे इन्तिनि
१३ वरं तम्म सुक्मं येत्तिप्पत्तक्कं सर्वबाधा
१४ परिहारवागि मिरियण्ण आचार्य
१७ पद्मनन्द्रिदेवर कालं कचि धारापूर्वकं मादि कोहर ई धर्म
१६ मं प्रतिपालिमिटंगे चारणामिकुरुक्षेत्रवल्लि माघिर
१७ कविलेयिं वेदपालरन ब्राह्मणगे कोह फल
-३९१ ]
·
ર
१८ मक्कु
[ यह लेख होयनल राजा वीरवल्लालके राज्यवर्ष ९ मिद्धार्थिनवत्सरमें बागाढ शुक्लपक्षमें नंक्रान्तिके दिन लिया गया था । राजवानि वल्लिग्रामेके मल्लिकामोदशान्तिनायदेवको पूजाके लिए पद्मनन्दि आचार्यको कुछ करोका उत्पन्न दान दिये जानेका इसमें निर्देश है । यह दान हेगडे मिरियग्ग, चावुण्डरान, नोमय्य और मालवेग्गडे इन चार अविकारियोने दिना था । इस नमय नागरखण्ड और जिड्डुलिगे प्रदेशपर महाप्रवान नेनापति मल्लियणका शासन चल रहा था । वल्लाल द्वितीय अथवा बल्लाल तृतीय इन दोनोंक ९ वर्षमें मिद्धाय मवत्सर नही था । अतः अनुमान किया गया है कि यह बल्लाल (तृतीय) के २९ वर्षके सिद्धार्थि मंवत्मरक्त उल्लेख होगा । तदनुसार सन् १३१९ यह इस लेखका वर्प होगा । ]
[ए०रि० मं० १९२९ पृ० १२८ ]
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२७८
जैनशिलालेख-सग्रह
३९२
कुमठ ( उत्तर कनडा, मैसूर)
शक १२६६-सन् १३४०, कनड [ इस लेखम मूलसप, देसियगणक विशालकौति राउलके अपशिष्य नागचन्द्रदेवके समाधिमरणका उल्लेख है । तिथि श्रावण २० ११, रविवार, शक १२६६, सुभानु सवत्सर ऐसी दी है। ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र. २३९ पृ० २७]
३६३
रायद्ग (बेल्लारी, मैसूर)
शक १२७७ -सन् १३५५, कन्नड-संस्कृत तालुक ऑफिसमें रखी हुई मूर्तिक पादपीठ पर
[विजयनगरके राजा हरिहरके समय शक १२७७, मन्मथ सवत्सरम यह लेख लिखा गया। कुन्दकुन्दान्वय, सरस्वतीगन्छ, बलात्कारगण, मूलसपके अमरकीति आचार्यके शिष्य माघनन्दि व्रतीके शिष्य भोगराजद्वारा शान्तिनाथकी मूर्तिकी स्थापनाका इसमें निर्देश है।]
[इ० म० वेल्लारी ४५८ ] [रि० सा० ए० १९१३-१४ क्र. १११ पृ. १२)
३६४ होसाल (द० कनडा, मैसूर )
शक १२७६-सन् १३५७, कन्नड [ यह लेख स्थानीय भग्न जिनमन्दिरमे है। इसमें विजयनगरके राजा बुक्कण्ण महारायके जैन सेनापति वैचय दण्डनायकका उल्लेख है। तिथि शक १२७९ विलम्बि सवत्सर ऐसी दी है।]
[रि० सा० ए० १९३१-३२ क्र. २८४ पृ० ३१)
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-३६७]
तिरनिडाड आटिक लम्ब
७०
३९५ निरुनिहंकोण्डे (मद्राम)
शक १८३ =मन् १३४१, तमिल [इन लेम्बकी तियि धनु शुक्ल १३ वृधवार, शक १२८३ शुभकृत मवत्सर ऐमी दी है। इसमें दोम्बादि विन्लबहरयन्के पुत्र ( नाम लुप्त)द्वारा अप्पाण्डार मन्दिरमें दीपके लिए भूमि दान दी जानेका उल्लेख है। यह दान गोप्पाग उवाची प्रेरणाम दिया गया था। लन्च अप्पाण्डार चन्द्रनायमन्दिर मण्डाकी दीवालम लगा है।]
[रि० मा० ए० १९३९-४० क्र० ३०३ पृ० ६५]
३१६ साविक्रेरि (धाग्वाड, ममर)
गक १(२)६८=मन् १३७६, कन्नड [इम लेबमें मार्गगिर व० १(१), बुधवार, शक १(०)९८ नल नंवत्सरके दिन वालगल्लिक बेलप्पके समाधिमरणका उल्लेख है। उम समर विजयनगरके वीरवृक्करायका गाउन चल रहा था।]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २३. पृ० २७ ]
३६७ गेरसोप्पे (मैसूर)
शक १३००=सन् १३७८, क्ढ । श्रीमनपग्मगंमारम्यावादामावलानं जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य
मापनं निनमायनं (१) श्रीमद्व२ जिनेन्द्राय तम्मानंतमहात्मने मर्चवावविशिष्टाय भन्यालि.
कुमुदन्दव (8) नं वं देवटचं सुरचि
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२८०
जैनशिलालेख-सग्रह
[३६७३ रमनघं चारुकैवल्यनेत्र नित्य निर्वाणरामाकुचविलिखितकाश्मीर
राग वराग सुंगं देवेन्द्रानम्रपा४ द गुणविकसदनन्तं स्ववोधात्मतत्व मांगल्यं मन्यसाथ निहत
मनसिज नव्यधर्मस्वरूपं । (३) इदु ५ जम्बूद्वीपमंता भरत विषयदोल पडव मेरुसिदं पदपिन्दा मेरुवि
दक्षिणदे तुल कॉगिन्दवी शुद्ध६ दीप मुददि "वेंगु "वलि पनस नदीतीरदोल कौंगु जम्बूसदनं
चेल्वागि तोकु ." बिडार हस्तिसमूह। (8) मा तुलुवाधीशरमणि 'वदनमागि
तो'दु नयदि नीतियुत गेरसोप्पे सोलि८ सुतिपुंछ विमवदिढायमरावतिय । (२) अन्ता नगिरिय राज्य
कधीश्वरनेनिसिद मरुलयरसरन्वयसप्रदायदा९ यदि बन्द कीर्तिगे जयस्तंभनेनिसिद हैवेभूपालन प्रवापवेन्तेने
सान्द्र देमकुन्दोद्गमकुमुदन१० मलमलिकाफुलमुख्यवृन्दं गंगावरगतरलहरहास तारनीहारहार
सन्दिदी चारकीति.. १५ प्रमवदनुनयविन' 'मालपुद्ध श्रीहवेभूपालन निजयशम
बपिणसल बल्लना१२ व दक्षिणमण्डलिक निजनिवास' सलक्षण राजराजकटकगल
सूरेयना१६ यढे तोण्डमण्डलभूपर मन्दि रक्षिसु हैवेराज वेनुतिपुदु१४ नलियटे नोलपढ मावनियंककाररतिचक्रद हस्तपराक्रमाकनी
हैवनृपाल चित्रय१५ शो' 'निमय दुन्दुमिताडनंगलि नावलिशब्ददि परिदु दूरदि
सचरिसुत्तमिपुंदा
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-३९७ ]
गेरसोप्पेका लेख
येसेच राजहृदयंगलु भिन्नगला बद्भुत । श्रीमद्देव
गुरुगुणाद्भुतमहानागेन्द्रपंचा
१६
१७ स्य सन्दिई हामद वैहालि महादाकिनीनामोपद्रवं पुलव श्री पाश्वतीर्थश्वरा
१८ वासमं श्रीमदनन्तपालगीगे नित्यं दीर्घायुमं श्रीयुम अन्ता नगिरिपुरवराधीश्वरं मामा
१९ वनियककार मात्रगेमलेव रायरगण्ड शिवसिंहासनचक्रवति परमालुवदडविमाढ कलिगल सुनन
२० सम्यक्कचूडामणि चमन्तराज्यचातुर्वण्यक्कं हलुव रायरगण्ड हैवेभूपालं सुखमस्थाविनो
२१ दर्दि राज्यं गेय्युत्तिरलु श्रा गेरमोप्पंय महाजनगल गुण - गलेन्तन्दोई ॥ बृ ॥ अबरोलू नानाजा
२२ निपरडरग्रणी मम्यक्तरादी नैनर पडेवर् जैनमार्गाश्रयजलनिधिसंवर्धित पूर्णचन्द्रर् मुदमं क्रोधादि
२३ मृ मादुदुधकुंलनिवर विट्टु दर मुल्यमादधिपनखिलकलावल्लभर् कीर्निवेत्तर ताता
२१ मादण्डाधिपगलु महजात कुलक्षत्रियराडर सुगलन्त्रयमन्तेन्दोडे स्वस्ति ममविगतपचमहा
२५ महिमप्रमिदमात्र वनवासिपुरवराधीश्वर वैजयन्ती - मधुकेश्वरलब्धवरप्रमाद मृगमदामोद गोकर्ण...
२६ महाबलेश्वरदिव्यश्रीपादपद्माराधकर परवलमाधकरं हरसिवरवरशूल निगलंकमल चलनकराम राय
२७ रगण्ड माहसमल्ल गण्डरडावणि मत्यराधेय माहसोतुग शरणागतचत्रपजर पश्चिमसमुद्राधिपतियप्प हेवे
परनृपतामरस पूर्ण चन्द्रनेनिमिट
२८ क्षत्रियकुलकमलवनमार्तण्ड
बम्पवदेवरसर • देवरसर
२८१
..
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२८२
जैनशिलालेख-संग्रह
[३९७२९ राज्यलक्ष्मियेनिसिद चन्द्रपुरबेम्ब पट्टणदोलु राज्यं गेल्युब
कालटोल मा भरसुगलिगे पट्टवर्धनवाहत्तरनियो३० गिगल जिनसेव्यर्नु त्रिशक्तिबलयुतनुं षड्गुणसमर्थनुं राजक्षत्रिय
चतुईन्त सोमेश्वरदण्डनायक३१ न अन्वयद कीर्तियेन्तेन्टोडे श्रीसोमदण्डपुत्रनु भासुर कामण्ण
दण्डनायकनेनिपं सासनचक्र३२ वर्ति धर्मधारक सामन्तं कीर्तिवेतनमलचरित्रं श्रीमत्सोमदण्ड
नायकंगे कामार्थ तावु पुट्टिदर् श्रीमद्रामणनेम्व हेग्गडेय३३ सुवेम्बीपुत्रससेव्यक रामं पुष्टिद"दशरथसामध्यदि अपराजिता
रमणिग साहित्यरत्नाकरमन्ता३४ रामणनेम्व हेगडे रामगे तां पुहिद शान्तं योजणनम्बिपुन
नेनिसल कुन्तीदेवि समन्तु ३५ श्रापाण्डुराजगे तो शान्त धर्मजनेन्तु पुहिद बोला सम्यक्रव
रत्नाकरमन्ता योजणसेहिय जननि रामानन्वयमेन्तेन्दोडे३६ वसुधेयोलु नेगलते "असमैश्वर्यसम्पसरु दानगुणसम्पबामप्प
नम्बिसेष्टियर तम्मसेडिसहोटररेनिसिद म३७ लिसेहि होनपसष्टि गुणाव्यरं जैनजनबान्धवलं आ सेट्टरोळगे
महाधननेनिसिद ना होनपसेहि
३६ शककाल "साविरद मुन्नूर
( अवशिष्ट ६ पक्तियां पढी नही जा सकती।) [ यह लेख शक १३०० में लिखा गया था। गैरसोप्पेके राजा हवेय भूपालके शासनकालमें चन्द्रपुरमे वसवदेवरस शासन कर रहे थे। उनके दो मन्त्री सोमण्ण दण्डनायक और कामण्ण दण्डनायक थे। सोमण्णका पुन रामण्ण था जिसकी पत्नी रामक थी। उनके पुत्रका नाम योजणसटि
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-३९] हडसनका लेख
२८३ था। इनके कुलके होन्नपसैट्टि तथा नम्बिनेट्टि इन वन्धुलोने दिये हुए दानका विवरण इन लेखमे दिया था।]
[ए० रि० मै० १९२८ पृ० ९५ ] ३६८ हडजन ( मैमूर) शक १३०(६)सन् , १३८४, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमतु शकवरिष १३० संवत्सरद २ ज्येष्ठ व १ आ। श्रीमतु मैसुनाट ह३ ददनद तडेयर कुलट बम्मय्यनवर सुपुत्र हिरि५ य माढण्णनवरु देवरिंगे । श्रीमद् रायराजगुरु मडलाचार्य ५ सकलविद्वज्जनचक्रवर्तिगलुमप्प सैद्धातिदेवर प्रियगुडि केशवढे६ (वि)यरु मा केशवदेवियर मारदेवियरु स्वगंग७ तरादरु । अवर निसिढियं माडिसि आ निसिढिय भर्चनेगे बि८ तह क्षेत्र बमटिंगे पूर्वदलुल्लगहेयि तेंकण व ९ तिन असरिसदलु हत्तु खड्ग गहेयनु धाराए१० वकवागि नरव हांगे पाहिरिय माढण्णनवरु विवत्ति
[यह लेख मण्डलाचार्य सैद्धान्तिकदेवकी शिष्या केशवदेवीकी वडी वहन मारदेवीके समाधिमरणका स्मारक है। इस निसिदिकी पूजाके लिए हिरिय मादण्णने स्थानीय वसदिको कुछ भूमि दान दी थी । लेखकी तिथि ज्येष्ठ व० १, रविवार शक १३० (चौथा अक लुप्त है ) दी है। तिथि और वारके योगसे यह शकवर्ष १३०६ निश्चित होता है। ]
[ए. रि० मै० १९३८ पृ० १६४]
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२५६ जैनशिलालेख-सप्रद
[100-- २७ आ सोमवेयनु आ हुलिगेरेय माणिकमेटिंग विवाहमाही ।
भवर मगलु नागचे २० आकेय तनं माणिकसष्टि ममस्नरूमा यचिहि हुलिगरंगन्द्रि
इन्द्रिगुलढलि प्र२९ ""मा नागव्यंयनू मलहि हिरिय इन्दिगुलद चन्द्रनाथ
स्वामिगल चैत्यालयढोलु पूजे ३० श्रादिक श्रीकार्य नडवन्तागि वृत्तियन बिटु शासनव हाकिमिहरु
आबचरसियु तम्३. म मामे नागवेयन् गेरसोप्यय मेहि गुप्ततायि भाजेय मग
माणिकसेहियन तानु विवा३२ हव माडि भा माणिकमेटियनन्वयमन्तेन्टोडे गुच्छविक्रय
नागिसंष्ट्रिय मगलु रामन्चे बाकेय पु३३ प्रमाणिकमहि माणिकमेहिगू नागवेयवरिगू जनिमिट मालु
हरिसहि कामण३. नेमण्णमेहि सरणमेष्टि मगप यिन्तैवरोलगे रामक्कनन गरसोप्पंय
रामण हेग्गठेय मगराज३५ णन मोजणगे विवाहब माटि मा बोजण्णसेष्टियू रामान
सुखसकयाविनोटर्मि३६ दिहल्लिगे गेरसोप्पय अनन्ततीर्थकरचस्यालवनारधिसि महा
प्रतिऐयन मारिसि ३७ मिरुतं बिरलु सक वरुस सासिरट मूनूर इदिनाल्कनेय
प्रजापतिसवत्सर३८ द कार्तिक शुद्ध पचमि भादित्यवार मन्यसनसमन्वितवागि
स्वर्गस्तरावर मदवालिगे ३६ रामशनवर तन्दे मोडलुगोण्ड चरित्रदि नेगले विक्रमसंवत्सरद
भाषा
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-४०२ ]
लक्कवरपुकोटका लेख
४० सुध पंचमि सुक्रवार रोहिणीनक्षत्रडलु तुगममाधि •
४१ ...आचन्द्रार्कमागि
४२ मूडे मत्तवन वोजण
४३ सेहि " रामक
४४ निपधिय कलिंगे मगल महा श्री
On
[ इम निषिधिलेखमे कार्तिक शु० ५, रविवार, शक १३१४, प्रजापति सवत्सरके दिन योजणसेट्टिकी पत्नी रामक्कके ममाधिमरणका उल्लेख किया है । रामक्कने गरमोप्पेमें अनन्ततीर्थंकरका मन्दिर बनवाया था । उसका वशवर्णन भी लेखमें दिया है । गमक्कके पिता माणिक मेट्टिकी मृत्यु आपाढ शु० ५, शुक्रवार, विक्रममवत्मरके दिन हुई थी। ] [ ए०रि० मं० १९२८ पृ० ९७ ]
२०१
लक्कवरपुकोट (विजगापटम्, आन्ध्र ) संवत् १४४८ = सन् १३०२, संस्कृत - नागरी
२८७
[ इम मूर्तिलेखमें संवत् १४४८ में जिनचन्द्र भट्टारक द्वारा इस मूर्ति - की स्थापनाका उल्लेख है । इस समय यह मूर्ति वीरभद्र मन्दिरमें है । ]
[ रि० स० ए० १९११-१२ क्र० ४७ पृ० ५० ]
४०२
संगूर ( धारवाड, मैसूर ) शक १३१७ = सन् १३६५, कन्न
[ इस लेखमें जैन मल्लप्पके पीत्र तथा मगमदेवके पुत्र नेमण्ण-द्वारा सगूरके पार्श्वनाथ मन्दिरको भूमि दान देनेका उल्लेख है । विजयनगरके सम्राट् हरिहरके समय गोवाके शासक माधवका यह सेनापति था । नेमण्ण
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जनशिलालेख-सग्रह
[७०३-- के पिताका समाधिमरण पुष्य शु० ११, गुरुवार, युव सवत्सर, शक १३१७ में तथा पितामहका समाधिमरण फाल्गुन २०१४, सोमवार, नल संवत्सर में हुआ था। [रि० मा० ए० १९३२-३३ क० ई १६७ पृ० १०७]
४०३ गुटी ( अनन्तपुर, आन्ध्र)
१४वों मदी, संस्कृत-कन्नड [इस लेसमें विजयनगर राजा हरिहरके समय इरुग दण्डनायक-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका उल्लेस है। कोण्डकुन्दान्वयकी परम्पराम वक्रग्रीव, एलाचार्य, अमरकोति, सिंहनन्दि तथा वर्धमानदेगिकका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२०-२१ क्र० ३२६ पृ० १८]
४०४ हम्पी (वेल्लारी, मसूर) शक १३:७-सन् १३९५, संरहत-लुगु [ यह लेख एक मिनमूर्तिके खण्डित पादपीठपर है। तिथि फाल्गुन व० १, सोमवार, भावसवत्सर ऐसी दी है। शक वर्पके अक सुप्त हुए है।
लमध-बलात्कारगण-सरस्वतीगन्टके धर्मभूपण भट्टारकके उपदेशसे इम्म. लियुक्क मन्त्रीश्वर-द्वारा कुन्दनबोलु नगरमै कुन्युतीर्थकरका चैत्यालय वनवाये जानेका इसमें उल्लेस है। यह मन्त्री वैचय दण्डनाथके पुत्र । संवत्सरनामानुसार यह शक १३१७ का लेख प्रतीत होता है।]
[रि० सा० ए० १९३५-३६७० ३३६ पृ० ४१]
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२८९
-४०५] करन्टका रेख
२८९ ४०५ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास)
१५वीं सदी, तमिल [ यह लेख विजयगण्डगोपालदेवके २०वें वर्षमे लिखा गया था। पोन्नूरके निवासी अरुवन्दै आण्डाल् तिरुठोरत्तुर उडयारद्वारा इस जिनमन्दिरमै सन्च्यासमय छह दीप प्रज्वलित रखनेके लिए तीन पलबन्नमाडे तया कुछ चावलके दानका इसमें उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र. १३८]
४०६ हिरेचौटि (मैसूर)
१४वी सदी, कन्नड १ नमो वीतरागाय । श्रीमत्परमगमीरस्याद्वादामोघलां२ छनं जीयात् अलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । सागरवारि
वेष्टितसमस्त३ धरारमणीधनस्तनामोगविम्बिनं विदितविस्तृतसारतरामहारटिं ४ नागरखण्डपत्रपरिवेष्टनदि जननेनपुत्रिकारागमनितु माणदुद्दे
मनस्सु५ ख बनवासिमण्डल । नागरखण्ड बनवासंगागि' भूषण-बोलु ६ "गिरबागि मेरेगुं नागलतापूगवनदिनेसेब तबे साँ ७ "नागरखण्ड "सागरमागे तो' ८ सुखकिम्बागि गमवुढी" ननुजना सिणिसहि ९ ""यसठिय माडिसिटरु-इन्तण्णतम्मंदिरिबरु शान्तिजिनेश्वर१० वसढिय मादिसि सन्तोषदि' 'सन्तसटिं पडदई घराचन्द्र १३ "गुणवार्षिय " पडदु बालुचिरं पलकालं पुरुषनिषि नाग
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जैन शिलालेख - सग्रह
१२ सेहि तन्नय पेम्पि ढेसेवल्लरसियक्कनुमत मत
१३ पडेबु सुखदं बालवुनु स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर अरिराय
१४ विमाद अगलि भाषेगे तप्पुवरायरगण्ड चतुस्समु
१५ द्राधिपति श्रीवीकराय महारायरु राज्यं गेय्युत्तुमि 'वि
१६ रोधिसंवत्सर कातिकशुद्धत टिगे वर डेवर नि१७ चन्द्रगुडिगलुमप्प सान्तिना
१८ नाथदेवर अमृतपडि नन्दादीप
१६ केरेय केलगे गहे ख ४
२९०
·
...
२० यी धर्मम प्रतिपालिसु
२१ वारणासि कुरुक्षेत्र २२ कविलेय
२३ पातकनक्कु श्रीशान्तिनाथ,
..
[ ४०७
[ यह लेख कार्तिक शु० ३, विरोधिसवत्सरके दिन वीरवुक्करायके राज्यकालमे लिखा गया था । वनवासि प्रदेशके नागसेट्टि तथा सेणिसेट्टि - द्वारा शान्तिनाथमन्दिरके निर्माणका तथा उसमें दीपादि पूजाके लिए ४ खण्डुग भूमि अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेख है । ]
[ ए० ० मैं ० १९२८ पृ० ८३ ]
४०७
इले सोरव (मैसूर) १४ वी सदी उत्तरार्ध, कन्नड
१ श्रीमत्परमगं मोरस्याद्वादामोघलाछनं जीयात् त्रै२-लोक्यनाथस्य शासन जिनशासन । अमरावतियळकावति स३ ममेनिसुन सोरव तथनिधियुमेवेरडं समनागि वि
४ पालिसिह सुमनस्तरु सद्दस तवनिधिय ब्रह्माख्यं ॥
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-४०९] तवनन्दी भादिके लेख
५ सिंगलवेन्तिडे नाक .. ६ युधिल ७ वार्षि
[यह निमिधिलेख बहुत सण्डित है। सोरव और तवनिधिके शासक ब्रह्मके ममय किसी व्यक्तिके समाधिमरणका यह स्मारक है । मृत व्यक्ति कोई महिला थी क्योकि लेखके पापाणपर एक स्त्रीमूर्ति-उत्कीर्ण है। ]
[ए० रि० मै० १९४२ पृ० १७९ ]
४०८ तवनन्दी ( मैमूर)
१४वीं सदी, कन्नड 5 जिनरुं जिनमुनिगलु मचन- २ पम प्राणीश हरियन३ दन नेनदु वनजाक्षि महा- ४ लक्ष्मयु घनतर गौर्य७ ढोलुमग्नियोल स
६ ले पायिदलू ७ महालक्ष्मिय सद्गुण
८ समुद्रोपमान ॥ मं६ गलमहा श्री श्री
[इम लेखमै महालक्ष्मी नामक किसी महिलाके अग्निप्रवेश-द्वारा मरणका उल्लेख है । जिन, मुनि और अपने पति हरियनदनका स्मरण करते हुए उमने धर्यपूर्वक प्राणत्याग किया था। लिपि १४वी सदीकी है।]
[ए. रि० मै० १९४२ पृ० १८५]
४०६ . तलकाड ( मैमूर)
१४वीं सदी, कन्नड [यह लेख द्रविल सघ-नन्दिगणके कमलदेवके गिप्य लोकाचार्यक समाधिमरणका स्मारक है। लिपि १४वी सदीकी है। यह लेख वैकुण्ठनारायणमन्दिरको दीवालमे लगा है।]
[ए. रि० मै० १९१२ पृ० ६३]
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२९२
जैनशिलाळेस सग्रह
४१०
मतावार (मैसूर)
१४वीं सदी, कढ
[890
१ मरुलजिन जकवेहरि चटवे
२ गन्ति मन्तचूर बसदि तपसु
३ मादि सिद्धि भादलु भवेय मा
४ चरन भग मार कल्ल निलिसि
५ द
[ यह निपिधिलेख मरुलजिन - जकवेहट्टि नामक ग्रामकी निवासी चटवेगन्तिके समाधिमरणका स्मारक है । उसका मृत्यु मत्तवूरकी बसदिमें हुआ था । अवेय माचरके पुत्र मारने यह स्मारक स्थापित किया था। लेखकी लिपि १४वी सदीको प्रतीत होती है । ]
[ ए०रि० मं० ९९३२ पृ० १७१ ]
४११
हुलेकल (उत्तर कनडा, मैसूर ) १४वीं सदी, कनट
[ यह लेख १४वी सदीको लिपिमें है और बहुत पिसा है। इसके प्रारम्भमे जिनशासनकी प्रशसा है तथा बादमे किसी मठमे आहारदान आदिके लिए कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । ]
[रि० स० ए० १९३९-४० ई० क्र० २१५० २२९]
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-११५]
कोनकोण्टल आदिके लेख
२९३
४१२-४१३ कोनकोण्डल (अनन्तपुर, आन्त्र )
पथ्वी मदी, कन्नड [ये दो लेख १४वी नदीको लिपिमें रसामिदुलगुट्ट नामक पहाडीपर पापाणीपर खुदे हैं। इनमें चिप्पगिरिके श्रीविद्यानन्दम्बामी तया बोलय नागका उल्लेख हुआ है । नभर कुछ अस्पष्ट हुए हैं।]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ४५२-५३ ]
उद्दार ( मैसूर )
थ्वीं सदी, कन्नड १ श्रीमन्परमगमीरस्याद्वाहा२ मोवलांछन । जीयात् त्रैलोक्यना३ यस्य शासनं जिनशामनं ॥ स्वस्ति श्रीमतु ४ • • विजयकीर्तिमटारर"
[यह लेख खण्डित है इसलिए विजयकीतिभरि इम नामके अतिरिक्त अन्य विवरण इससे प्राप्त नहीं होता। लिपि १४वी सदीकी है।]
[ए० रि० मे० १९२९ पृ० १४२]
४१५
सक्करपट्टण ( मैनूर) संस्कृत-कन्नड, इश्वी सटी
२ तस्मिन् सेनगणान्तरिक्षतरणि श्रीवीरसेनो भुवि ससाराम्बुधितारणैकतरणिः श्रेयोवनीसारणी । तच्छिप्य प्रचुर
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२९४
जनशिलालेस-सग्रह
[४१५३ प्रबन्धरचनाचातुर्यपद्मासन पायाद वो जिनसेन इत्यभिधया
ख्याती मुनिग्रामणी । (१) श्रीमतपुस्तक१ गच्छसूरसदृशो विश्वप्रकाशात्मकस्वैविधो गुणमदेवयतिप
श्रीसूरसेनस्तत (१) शिष्य श्रीकमलादिमदगणमुद्दे५ वेन्द्रसेनस्वत । तेनाकारि कुमारलेनमुनिपो चादीन्द्र-चूडामणिः
(२) तच्छिप्याः हरिसनदेवाय । मा६ थुर्य वाचि कारण्य हृदि तीव्र तपस्तत । श्रीप्रमाकरसनाख्य
गुरुश्रेयो विराजते । (३) तत्पन्नाढय७ शैलतिग्मकिरणस्त्रविद्यपारगती भूपालातिपादपकलयुग
श्रीलश्मिसेनो मुनि (1) लोक सत्त• पमा निधानमनघ कारुण्यवारानिधि दाने कल्पकुजोपमो
विजयते कामकण्ठीरव. । (४) ६ श्रीमदनसेपमुनिपो सज्ञानामृतपयोधिपूर्णेन्दु. (0) सुदृढतपोगुण
युक्तो माति श्रीमत्प्रमा१० करायंसुत । (१) द्वीपितटाकनामनगरीपति शखजिनेन्द्रचन्द्र
मश्रीपादपकजालिरमलाम१५ रकीर्तिमुनीन्द्रपादसेवापरिपक्वबुद्धि वलगारसमायवशपा
तारापति रजिप स्वजनक१२ जनमोमणि वैश्य मायणं । (६) गुणतुंग होल्लराजं पितृ गुणवति
देवमाम्बेतन्नम्वेयु१३ यद्गुणरत्न नागराज परिक्रिपोडे पितृव्य गुणकाश्रय माकणन्
आत्मीयानुन तानेनिपगणित१४ सौमाग्यहिं भाग्यदि धारिणियोल विख्यातिवेतं मिनसमय
सरस्सारस मायणाय । (७) मत लोके १५ कमित्र , प्रचुरतरकलावल्लम वन्दिवृन्दोत्करपुप्यत्-कल्पभूनं
बुधनुतचरितं वापपरं
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२९५
-४५६
तरकणाविका लेस १६ काव्यगोष्टि-मरस विद्विष्टशलागनि सुरपुरमाढलान्तगल मीन
केन्द्धर रूप मद्गुणोदय १७ हमयन एनल आश्चम मायणाय । (5) इन्नु होयमल
भूविभुलमीरपनमुं 15 श्रीवीरवुवराजमानाज्यरमारमणीयविलामढपंणोपमं एनिसि
मांगयिमुब होमपट्टणटोलु प्रमिद्विवडंट वै१९ ज्य मायण्ण माक्प्पगलु न "दबागि माडिट श्रीलक्ष्मीमन
मटारकर निपचिय प्रतिष्ट मामन मगर महा श्री श्री श्री श्री श्री [यह निपिपिरेव नेनगणक लन्मीनेनभट्टारक्की मृत्युका म्मारक है। इनकी गत्परम्परा इस प्रकार थी -वीरसेन - जिनग्न - गुणभद्र विद्यदेव - मूरनेन - कमलभद्र - देवेन्द्रनेन - कुमारमेन - हरिमेन - प्रभाकरसेन - लन्मोसन । लन्नीननके गुन्बन्बु मदनमेन थे। यह निपिधि दलगार वाके मारण तया माकण नामक दो बचाद्वारा स्थापित की गयी थी। ये होनपट्टण निगमी थे। यह नगर होयमल प्रदेशमें था तथा बीरबुक्कराजके राज्यके अन्तर्गन था।]
[ए. रि० मै० ११२७ पृ० ६१]
४१६ तेरकणांवि ( मैमूर)
१थ्वी मी, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमूलमंघ देशियगण पुस्तक२ गच्छ कॉइकुंटान्वय हनमोगय बलि३ य राजगुर ( मड) लाचायंरमप्प (मम )४ यामग्ण रलितकीनिमहारक्रु माडिमिट ५ (प्रतिमे ) मगळ महा श्री श्री श्री
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२९६ जैनशिलालेख-संग्रह
[010[यह लेख पार्श्वनाथमूतिके पादपीठपर है। इस मूतिकी स्थापना मूलसष-हनसोगे बलिके ललितकीति भट्टारकने की थी। लिपि १४वीं सदी की है।
[एरि० म० १९३४ पृ० १६९]
तगडूर ( मैसूर)
१४वीं सदी, कन्नड (कोंडकुन्दान्वय २ (मूकसंध नागनन्टि ३ (अन)न्वमधारकशिष्य नन्दिमटारकरशि५ यस्तगडू
६ • पिल्लेकन्तिय(२) ७ (स)न्यसनगेटु सुर
(लोकक्के) सन्दर् [ इस निसिधिलेखमें मूलसघ-कोण्डकुन्दान्वयके नागनन्दि भट्टारकके शिष्य नन्दिभट्टारककी शिष्या · यिल्लेकन्तिके समाधिमरणका उल्लेख है। पापाण टूटा होनेसे कुछ अक्षर नष्ट हुए है । लिपि १४वी सदीकी है। ]
[एरि० मै० १९३८ पृ० १७३ ]
चामराजनगर (म)
१५वीं सदी, कलद १ श्रीमूल सगढ का- २ शूरगण मन३ वकीर्तिदेवर गुड
५ बोप्पय सन्य५ सनविधिषि
६ (स्वोर्गस्त [ इस लेख में मूलसघ-काणर गणके अनन्तकौतिदेवके शिष्य चोप्पयके समाधिमरणका उल्लेख है । लिपि १४वी सदीको है।
[ए. रि० मैं० १९३१ पृ० ११२]
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-४१९]
माविनकेरेका लेख २९७
४१६ माचिनकरे (कडूर, मैसूर)
५वीं सदी, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमतु मन्मयसंवत्सर प्रथम श्रावण शु । गुरुवार पुष्य
नक्षत्रदलू श्रीचंदनायन चैत्यालयट २ तोलहरबलिय अनतकमेष्टितिय मग प्राढिमेट्टिय येरगिसिद
चतुर्विशतितीर्थकरप्रतुमयनु पिरिसि क्रु. ३ तार्य नाहेनु भन शुभ मगलं भूयात् पुनाशनं शुम मगल महा
श्री श्री श्री [इस लेखमें चतुर्विगति तीर्थकर मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है। अनतकसेट्टितिके पुत्र आदिसेट्टिने यह मूर्ति स्थापित की थी। तिथि प्रथम श्रावण शु० (९) मन्मथ मवत्सर ऐसी दी है। लिपि १४वीं मदीकी है।]
[ए. रि० मै० १९४६ पृ० ३७ ]
४२० गेरसोप्पे (मैसूर )
शक १३२३-सन् १९०१, कन्नड श्रीमत्परमगंभीरस्यावाढामोघलांछन जी२ या त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ३ नगिरिय कुलचक्रवर्ति राजनिर्जिव ४ ला सामन्तर बलियं यिन्ता होनभूपनलिय मा साम५ न्तन पुत्रनथिकामं कोमल "मरसं भरिनुपालनातन । ६ दे। घर चारकीर्तिपण्डित - सद्गुरुणभु मा कामनृपालन मान ७ योनि राज्यमे नगिरियुमनितुं तनगागे घेचणभूपति म ८ मेगलई रियुसैन्य नवर न पडसरसि जिनमुनिपादांबुजात
नृपाल
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जैन शिलालेस - सग्रह
8 बेचणसंहि परिणनान्तस्करणमन्तप्न हैवेरायन प्रतापवेन्
१० नेन्द्रोडे स्वस्ति श्रामन्महामण्डलेश्वर
'नियमोसरगण्ड
प्रताप
17
२९८
२४
समिमितं श्रीविक्रमा
२५ काल्यस्थे देवप्प सूमे पक्षे वल२६ क्षे मन्दवार
[ ४२०
....
११ सूरेकारमिवसिंहासनचक्रवर्ति निर्लिपपुरवरा१२ धाश्वरनेनि वैचिराज राज्य गयिवलि शकवरुप १३, १३२३ नेय विक्रमसवत्सर माग शु १ मन्दवारट १४ रात्रियालु हंवेराजन अलिय मंगराजनु स्वर्गस्थनाद श्रीजि१५ नराजराजितपदाम्बुजभृग कीर्तियिम्दी जगदोलोबलमोपुव दानिय हैवेभूपन राजिय पट्टदानेय ... 'गोविरह विक्रमस नगिर भगनृपं सुरलोक१८ क्यूडद "विसुन्दरप्प मत्त राजं जिनमताधिहिम कि१६ रण नगिरपुराधीश मगरसग राजसत्रुत रतिपञ्चवाणनस''''श्रोमगभूपालक हिमरुक
१६
१७
२०
२१
श्री विक्रमसवत्सरट माघमासद' '
२२ लु "सुरागनारमण २३ जीयेग्विन
·
२७ सुरपदमं...
[ यह लेख गेरमोप्येके राजा हैवेयरायके जामात नगिरपुरके प्रमुख मगरसकी मृत्युको स्मृतिमें लिखा गया था । इसकी तिथि माघ शु० १, शनिवार, शक १३२३ विक्रम सवत्सर यह थी । लेखका बहुत-सा भाग घिस गया है। इसके पूर्वभागमे होन राजा तथा वैचणसेट्टिका उल्लेख हैं । उनका मगरससे क्या सम्बन्ध था यह स्पष्ट नही है । ]
[ ए० रि० मं० १९२८ पृ० १०० ]
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६९९
-४२]
सक्कापट्टग आदिकं देख
કરી सक्कापट्टण ( मूर)
गक १३.८%Dमन १४०५, कन्नड 5 श्रीमन पग्मगारन्यादाढामाधगंछन् () जीयान त्रैलोक्यनायस्य
मामनं जिनमाम्नं (u) • श्रीमद् गयगजगुर मण्डलाचार्य पुरविक्रमादित्य नव्याह३ कल्पवृक्ष मन्गगानगण्यामप्प श्रीमहन्नीमनमधारकरवर
श्रीमन श्रीमान्मनदंवर निरिवि शक्य१५....३८ नेर पार्थिव मवत्सर १० लु ५ श्रीनुत्तर होसकर बहिय नस्कनु नायमहि बोग्मि हि __ नगगणमष्टि अवर नोन्मक बत्र६ गाष्ट्रिय नम्नहि कोबरिहि चिजगह नाटिसटियर मक्कलु
कांवरिट्टियन [हब केन्दगण भट्टारक लटमासना गिय मानसनदेवकी समाधिमन्ना है। यह निपिषि मुत्तम्होरके वट्टि पुत्र मगरसेष्टि, गेमिट्टि नदिन गर १३२७ में न्यक्ति की गे।]
[ए रि० म० १९२: पृ० ६२]
કરર कोरग (६० कनडा, मैनर)
शक १३३=मन् १९३०, काड [हले करव राजा मान्तर बंगौर वीरभैरव पुत्र पाण्डयजलवे मम्ब पर गृ० १०. गुन्बार, ग १३३१, सवारि मंबन्नरना है। इसमें बलाकारणारे वन्तीतिगटलकी प्रार्थनापर वारकून्त्री वमदिन दिए गजा-द्वारा वृद्ध भूमि दानका उल्लेख है।]
[२० मा० ए० १९२८-२९ ३० ५३० पृ० ४१]
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३००
जैन शिलालेख संग्रह
४२३-४२४
भटकल (उत्तर कनडा, मैसूर )
दशक १३३२ सन् १९९० कक्ष
[ ४२३
[ ये दो लेख है । कार्तिक शु० १०, सोमवार, शक १३३२ मर्वधारी सवत्सर, यह इनकी तिथि है । एकमें मगिराव मोठेय द्वारा उनके किसी सम्बन्धित मल्लिराय नामक व्यक्तिके ममाधिमरणपर निमिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें किमी राजकन्याके ममाधिमरणपर निसिधिस्थापनाका उल्लेस है। इसमें हैवभूप, भंगदेवी तथा मगिरायका भी नामोल्लेख है ।] [ रि० ३० ए० १९४५-४६ क्र० ३३९-४० ]
४२५
लक्ष्मेश्वर (मैसूर)
शक १३३४ सन् १४१२, कन्नड
[ यह लेख विजयनगरक देवराय महारायके समय मार्गशिर शु० २, रविवार, नन्दन सवत्सर, क १३३४ को लिया गया था । गलबसतिके आचार्य हेमदेव तथा मौम्यदेव ( शिवमन्दिर ) के शिवरामय्य-द्वारा दोनो मन्दिरोकी भूमिकी सीमा वारेमें कुछ विवादका ममझौता किये जानेका इसमें उल्लेख है । यह कार्य नागण्ण दण्डनायक द्वारा सम्पन्न हुआ था । ]
[ रि० स० ए० १९३५-३० क्र० ई० ३३ पृ० १६३ ]
४२६-४३०
टॉक ( राजस्थान )
संवत् १४७० = सन् १४१३, संस्कृत - नागरी
[ ये ५ मूर्तिलेस है । मूलमघके आचार्य प्रभाचन्द्रके शिष्य पद्मनन्दिके उपदेणसे खण्डिलबाल कुलके कुछ व्यक्तियो द्वारा ज्येष्ठ शु० ११, गुरुवार, सवत् १४७० को ये मूर्तियां स्थापित की गयी थी । ]
[रि० ६० ए० १९५४-५५ क्र० ४६६-७० पृ० ६९ ]
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-४३३]]
मुलगुन्दक लेख
३०१
मुलगुन्द ( धारवाड, मैसूर)
शक १३४२=सन् १४२०, कन्नड [यह लेख वैशाख शु० १४, रविवार, शक १३४२, शार्वरी संवत्सरका है। इस समय रायराजगुरु हेमसेनके शिष्य बुलिसेट्टिका समाधिमरण हुमा था।
[रि० सा० ए० १९२६-२७ क० ई० ९५ पृ०८]
४३२ मुलगुन्द ( धारवाड, मैसूर)
शक १३४३-सन् १४२३, संस्कृत-कन्नड [यह लेख चन्द्रनाथबसदिमे है। इसकी तिथि भाद्रपद शु० ९, शुक्रबार गक १३४३ प्लव सवत्सर है। इस समय स्वरटोरके तिलकरसके मन्त्री हेगडे मदुवरसके पुत्र नागरसकी मृत्यु हुई थी।]
[रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० ९४ पृ०८]
४३३
गेरसोप्पे (मैसूर) शक १३४३=सन् १४२१, संस्कृत-कन्नड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावाटामोघलाछन । जीयात् त्रैलोक्य
नायस्य शासन जिनशासनं ॥ श्रीजम्बूद्वी२ पमध्यस्थितजनसर"रमणरवाभ्यंकृतनीयर""सद्धर 'जिनपदपद्मभृग स्तमित 'जायात पत्तन त्यक्तपक
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"
जैनशिलालेस-सग्रह
[४३३३ " विद्यवल्ली मुक सुलमरारम्य • स्थित जिनेन्द्रपादयुगपा
भुंगा ससा४ र माब्धि तेसैद दुदुभूबरे५. तढीयवयोद्भवमगभूपो साहित्यलक्ष्मी 'मामाति लक्ष्मी
जिनमदिरंषु काम कामितदायक कन-। ६ स्ट कन्डपसर्वप्रिय कल्याणकलनानन्त "श्रीमगभूपत्य जिनेन्द्र
पाठद्वयपद्मगन्धमिलभृगोमवत् सन्तत ७ वदीयवशसभूत. केशवाख्य क्षितीश्वर वशीकरोति सहसा
धन्टिगेहेपु सम्पद मुपासितुं भवतु ते गात्रं हि८ माद्रीकृत । श्रीमत्केशवभूमिपालचरितं श्रुत्वा स्तुवन् किन्नर
तोपाकम्पितशंभुमौलिविलसद्गगातरगास्पद आश्रयाशो दहत्याशु स्वाश्रय स्वतनाथ सा (१ स्वीयतजसा) . केशवन्द्रप्रतापाग्नि नाश्रय तापयत्यहो । कंशवेन्द्रगुणान् वक्तु
को वा शक्नोति पण्डित. आकाशस्थितनक्षत्रगणना केन मुच्यते ॥
वर्धमानान्बयोमत्रे निबूताश्रित१० दरिद्रे निजपतिनियमांतधियुते होन्नयरसि विशुद्धात्मिके पान
वलिंग निलकमेनिक्कुं १ मा होन्नवरमियरसं श्रीहंबनृप
जिनक्रमाबुनभृग बाहुवलनिर्जितरि११ पुभूप साहससमुहनमिनवकाम। तयोरभून्निर्मलजकबरसी
नुता मुशीला जिनमत्तियुका तं चापयम वरमगभूपो जामातृवयों
भुवि है१२ वराज. अनिन्दापि निर्गन्तु भौरव खलु योपित मगभूपाल
कीर्तिस्तु कामिनीवानिलधिनी तयोरभूता जिननायननी मात्रा पुनीतासिलर्जनल
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-१३३]
गैरसोप्पका लेस १३ धात्रीव वणी मायलरमी मनिताहानयुता सुशीला
श्रीमन्नम्र निलिम - मौलिबिनमन्माणिक्य स्मर्पधुनिपाठपन -
नवर श्रीपाना१४ न तु काम मगरमान्मजी गुग्गुण-डिवणाग्योमवत
जैनयोगिनिकरर माहिल्यग्नारर श्रीमद्धानृनिनम्बिनीव निनग नृपालना भू. १५ मा भूरिगुणीजमास्करलमतमन्यत्रमामान्विता काम मगनृपा
गुम्दया देवी श्रीमावलाया सुधामूनिथुनि प्रन्यह १ क । १६ आ मारगरपियरम भूमीविनम्रपाट क्शवभूप कामारिममित
मम्नस्मोमद्युतिकीर्ति की सुरलोकट मुरतरविन गुरफ१७ लमं मदु तृप्तियिरल सुरर बरेयोल भूमुरराम बरक्शवभूर
कारभूजस्टहयि माति कीया श्रीमापतिरप१८ रायुधितारगा जिनपनिश्रीपाइपमानता भूमी माविजिनेन्द्रचन्द्र
थिलमरचारियनु रागोठया मंमारमादिया। १९ ध्यध्यन्याममन्त्रित शककृत भागावरीवन्मरे माघ मानित
पंचर्मातिथियुने श्रीमाम्यवार मिर्ने पक्षे मादिराजवनिता
यामिधाने पुरं काम कारयति स्म २. जत्ययरमी पावप्रतिष्टा मुद्रा। अनन्तरं । नगिरत राज
हान्नरमनन्वयवाधिगे चन्द्र मले ना 'मोगयिप हेवभूपनलिय
कलिकालन ०१ कर्णनम्बरी नगदलु मगभूवरन बान्धवे तगलेदविनन्दन
नगेमोगहा कलभूज शिवरायनु कातिवनम । क। अन्ता नगिरट राज० र सन्तानाधियोलु लक्ष्मीमाणिकटवीकाननू एनिपारायंगे क्न्तुबिनन्नुदयिपि मगनृपाल मगबिदूर क्षेमपुरती जनेन्द्र पाट
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३०४ जैनशिलालेख-सग्रह
[५३३२३ पद्मक शगणजीयनालजनु अम्बमहीशन पुन संगम"तन्न
मनमोलवन्तीधर्मव माडि पूर्वदोल पिगिद धर्मवेल्ल२४ वनु पालिसिद रविचन्द्रल्लिनं । अन्ताधर्मप्रतिपालकनेनिप
श्रीसगभूपाल सुखदि राज्य गेयुत्तिरल यिलेयोलु कुन्तलनाडु
कर रजि२५ से पश्चिमनाडु देशदोल् कलचे पापी कूप नदी मामरनि
पनसीले बालेयिं बालेयि बलसिकोण्ड कोकमिथुनमोदलागिर
लल्लियारवेगल नडवोप्पु २६ वी पुरवनालुवन् अजनुपालनेम्बव । यिरून्दूरधिपति तो
करमोप्पुव अडियरबलियिं करमेसेवनु तम्मरस " यलियं कीर्ति२७ वेत्तना तम्मरस । आ तम्मरसनप्रजेय तनूज धरेयोल इरंदूर
भूसुरनुत कल्लरसननुजे तंगदेविगे वरनेनिप हैवेयरसन वरपुत्र प२८ मणरस जैनपदमक्त। आ पनण्णरसनू आवनप्रजे जक्कल
देविय"तन्दे हैवण्णरसरु पार्वतीयश्वर"माडिद नित्यपूजे. २९ माहारदानमोदलाद (बु) मेल्लव पुरो"दिगे सलिसि मुन्निन
धर्मवेल्लवं नेरेमाडि वलिक तन्नोलु सन्नुतबुद्धि पुढे जिनेन्द्र
नमिणेकनु नित्यपू३० जन मुन्नेसेवन्नदानमोदकादव पिरिदागि मारि"तृप्तियिन्दो
लिदु पारसं मिगे कोट्ट वृत्तिय । श्रीपाइवतीयश्वरद श्रीकार्य३५ क्केयू भंगमोगचैत्यालयद जीर्णोद्वारके धारापूर्वकवागि कोहन्ता
वृत्तिय विवर हैवण्णरसरु ताबु मलवागि माकुतिर्द कोणुवणिय३२ लि कंगन कुलिय हन्नेरड मढे सुनिगे सीमे मडलु भमिन
सेहितं हित्तल गदे तकलु हरिद कोडिगाडि पटुवलु तम्मरसर
होसगहेयलु यिक्किद कल्लुगढि ३३ वढगलु होलेयमागे गडियिन्ती चतुस्सीमयिदोलगुल्क कलवेष
समस्तवृत्ति पारसरु वाबु मलवागि भालुत्सद होन्नमन करेय
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-४३४]
अदिपिका लेख
३०५
३४ "मेले यत्ति होन्नावरह नाल्दुबरे होन्ननू तम्म भम्म तंगल
देवियरिंगे पुण्णायं परिहाग्माने विड्दु हैवण्णरमर - ३५ म्म मनःपूर्वकवागि कोट्ट सर्वमान्यवागि मत्स्यत्वागि ताबु
घालु यिदुं यडेय मजन वृत्तिगे गढि मुडलु होले तेकलु होले गड पडबलु
३० . "नमस्तवृत्तिनू पाहारदानक्वागि याचन्द्रावागि ३८ धारापूर्वकं नाहि कोहरु मत् भाहारदानरके या चिल्यालयड
गृह [इस लेखने पद्मगरम-द्वारा पाश्वतीयंकरमन्दिरके लिए ४ होन्नु कीमती भूमि दान दिये जानेका निर्देश है। पनगरमकी माता गलदेवी तया पिता हवगरस थे। उसकी वडी वहिन जक्कलदेवी थी। तंगलदेवीका बन्बु कालरस या जो इस्बुन्दूरके गासक तम्मरसका मानना था। यह कुन्तलनाडुके राजा मज्जा जामाता या । मज्जका समकालीन राजा संग था जो अम्बराजाला पुत्र था। सम्बका पिता सग था जो अम्वीराय और माणिक्देवीका पुत्र था तया राजा देशका वंशज था। केशवकी पली मावलरनि मग राजाकी कन्या थी। मंगकी पली जक्कब्बरमि हवण और होनबरमिको कन्या यो। इस दानको नियि माघ शु० ५ बुधवार, क १३४३, गावरी संवत्सर ऐसी दी है।]
[एरि० म० १९२८ पृ० ९३]
उडिपि (द० फनडा, मैसूर)
शक १३४६ सन् १४२४, संस्कृत-कन्नड [यह लेख (ताना) विजयनगरके देवरापमहाराजके राज्यकालमें पुष्य सु० ६, बुधवार, शक १३४६ क्रोवि संवत्सरके दिनका है। इसमें
२०
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३०६
जैनशिलालेख संग्रह मूलसघ-बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छके वर्षमान भट्टारककी प्रार्थनापर रामा-द्वारा वराग नामक ग्राम नेमिनाथमन्दिरको अर्पित किये जानेका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ ३० ए १२ १०५] [इस ताम्रपत्रकी प्रतिलिपि वराग ग्रामस्थित नेमिनाथवसदिमें एक पापाणपर उत्कीर्ण है।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ ३० ५२५ पृ० ४९]
माण्डू (धार, मध्यप्रदेश) (संवत् ) १४८३=मन् १४६६, सस्कृत-नागरी [इस लेखमें सम्भवनाथको मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है। तिथि (सवत् ) १४८३, वैशाख (चत्र ) शु० ५, गुरुवार ऐसी दी है। ]
[रि० इ० ए० १९५४-५५ २० १८२ पृ०४]
४३६
विसरूर (दक्षिण कनहा, मैसूर)
शक १३:३=सन् १४३१ [यह लेख देवराय २ के राज्यमें शक १३५३ में लिखा गया था। इसमें जैन मन्दिरके लिए बसरूरके चेट्टियो-द्वारा वहकि बाजारम आनेवाली चावलकी हर गाडीपर एक 'कोलग दान दिये जानका उल्लेख है।]
[इ० म० दक्षिण कनडा २७]
Page #292
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३०७
-५३९]
कुण्णतूर मादिके लेख
४३७ कुण्णचूर ( उत्तर अर्काट, मद्रास )
शक १३६३=सन् १९४१, तमिल [ यह लेख ऋषभनाथवसदिके पूर्वी दीवारपर खुदा है। कुरै (कुण्णत्तूर) के अहंत-मन्दिरका निर्माण शक १३६३ में होनेका इसमें वर्णन है।
[रि० सा० ए० १९४१-४२ ० १०३ पृ० १४० ]
४३८
बदनोर (भीलवाडा, राजस्थान)
संवत् १(8)१७=सन् १४४२, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमै सवत् १(४)९७ में शान्तिनाथका उल्लेख किया गया है।
[रि०७० ए० १९५४-५५ ३० ४५० पृ० ६७ ]
४३६ कुण्डघाट (जि० मोंधीर, विहार ) मंवत् १५०५=सन् १४४६, संस्कृत-नागरी
भग्न मन्दिरमें एक महावीरमूर्तिके पाठपीठपर [ इस लेखमें संवत् १५०५ फाल्गुन शु० ९ को महावीरमूर्तिकी स्थापनाका निर्देश है।]
[रि० ई० ए० ऋ० ८ (१९५०-५१) ]
Page #293
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नैनशिलालेख-सग्रह [४०
४४०-४४१ बैन्दुरु (द० कनडा, मैसूर)
शक १३(७) -सन् १४५०, पन्नड [ यह लेख विजयनगरके मल्लिकार्जुन महारायके समय चैत्र शु. १०, गुरुवार, शक १३(७)१ शुक्ल संवत्मरका है। इस समय वैदूरके पार्श्वनाथ बसदिके लिए कुछ लोगो-द्वारा दिये हुए दानोका विवरण इसमे दिया है । देवप्प दण्डनायकका भी उल्लेख है। इमी समयका दूसरा लेख यही है । इसमें हाईवलिय राज्यके शासक सगिराय भोटेयके पुत्र डगरस मोडेयके समय पार्श्वनाथवसदिको प्राप्त दानोका विवरण है।]
[रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ५३६-३७ पृ० ५३ ]
४४२ चितलद्रग ( मैसूर)
शक १३८५-सन् १४६३, कन्नड १ सखवरुस १३८५ सोमकृति स२ वछरद कतिकसुध १५ भाकिय मं३ गिसेष्टिय मग गुम्मिसेटियर नि४ स्तिगे श्रीवीतराग
[यह एक निसिविलेख है। आकिय मंगिसेट्टिके पुत्र गुम्मिसेट्टिके समाधिमरणका यह स्मारक है। तिथि कार्तिक शु० १५, शक १३८५१ शोमकृत् सवत्सर इस प्रकार दी है।
[एरि० मै० १९३९ १० १०४ ]
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-४४६ ]
चितलडुग आदिके लेख
४४३-४४४
चितलडुग (मैसूर) १५वी सढी ( सन् १४७२ ), कन्नड
१ नंदन सं
२ वाचण्णगल ३ निस्तिगे
[ यह निसिधिलेख वाचण्णके समाधिमरणका स्मारक है । १५ वी सदोको लिपिमं नन्दन सवत्सरका उल्लेख है अत सन् १४७२ का यह लेख होगा । यहीका एक अन्य लेख इसी समयकी लिपिमे है जिसमे गुम्मटदेवकी निसिघिका उल्लेख है । यथा
१ सखवरु
२ आसाढमु ३ (गु) मटदेव इसमे तिथिके अक लुप्त हो चुके हैं ।]
३०६
[ ए० रि० मं० १९३९ पू० १०४-५ ]
४४५
गुरुवयनकेरे (द० कनडा, मैसूर )
शक १४०६ – सन् १४८४, कन्नड
[ इस लेखमें शक १४०६ में नरसिंह वग-द्वारा कन्नडिवसदि नामक जिनमन्दिरको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । ]
[रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ४८१ पृ० ४५ ]
४४६ विदिरूर ( शिमोगा, मैसूर )
शक १४१० सन् १४८८, कन्नड
१ स्वस्ति स ( क ) बरिप १४१० नेय प्लवग संचरट जेष्ट सुह
Page #295
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जनशिलालेस-सग्रह
[पंचमि आदिवारदलु मदियर् यलिय गण्डलिकेय उटेकोट राम
नायकनु विदिल्लि तनगे स्वर्गापवर्गसुसपके का. २ (र)णवागि चैत्यालयव कटिसि आदीश्वरन प्रतिष्टेषन माडिसि
दनु श्री [ इस लेखमें रामनायक-द्वारा विदिर प्राममै चैत्यालय वनवानेका तथा आदिनाथकी इस मूर्तिको स्थापना करवानेका वर्णन है । यह कार्य ज्येष्ठ शु० ५, शक १४१० के दिन सम्पन्न हुआ था।]
[ए. रि० मे० १९४३ पृ० १९३]
४४७ जवलपुर (मध्यप्रदेश) संवत् १५४६ =सन् १४६३, संस्कृत-नागरी [ यह लेख पार्श्वनाथको भग्न मूर्तिक पादपीठपर है। तिथि वैशाख शु० ३, सवत् १५४९ ऐसी दी है।]
[रि० इ० ए० १९५१-५२ ० १२३ पृ० २१]
शिवहूंगर ( राजस्थान)
सं० १५५६ सन् १५००, स.पूव-नागरी [यह लेख मूलसंघ-बलात्कारगण - सरस्वतीगच्छके आचार्य रलकीतिक समय स० १५५६ में लिखा गया था। इनकी गुरुपरम्परा पद्मनन्दि-शुभचन्द्र-जिनचन्द्र-रलकीति इम प्रकार बतलायी है।]
[रि० आ० स० १९०९-१० १० १३२]
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-४५९]
हुम्चका लेरा
४४६
हुमच (मैमूर)
१५वी मढी, कन्नड
१ श्रीमत्परमगंमीस्या- २ बाटामोघलांछनं . जीयात् त्रैलोक्यनायस्य शा- ४ मनं जिनशामन ५ विरोधिकृत मवमरद आधी. ६ ज बहुल ढममि सोमवा० स्टलु । श्री मदायराज- गुरु मंढलाचार्यर है महावाढवाढीवर रा- १० यवाणिपितामह मकल" विद्वजनचत्रवर्तिगल श्रीम- १२ द्वाहीद्रविशारीनिम१३ -स्वरकुळकमलमातंढरं १५ श्रीमहमरकातियनीश्वरप्रि१५ याप्रशिष्यरं मूलमंघ च- १६ लाकारगणाग्रगण्यल्मप्प १७ श्रीधर्मभूषणमट्टारकडे- १८ वर प्रियगुट्ट श्रीमदम१९ रेबंदितजिनहपाठार- .. विढमधुकरखें चतुर्विधढा२१ नचिंतामणियु सढस्फुटि- २२ वजीर्णजिनालयोदारकनुम २३ पविटिमटिय मग चौकिमेटि-४ य निमिधि ॥
[इम लेखम विटिसेट्टिके पुत्र चोकिमट्टिके नमाविमरणका उल्लेख है जो आदिवन ब० १० मोमवार, विरोधकृत मवत्मरके दिन हुवा था। चौकिमेट्रिके गुर धर्मभूपण भट्टारक थे जो मूलसघ-बलात्कारगणक अमरकौति यतीम्बरके गिष्य थे । लिपि १५वीं सदीकी है। ]
[ए. रि० मैं० १९:४ पृ० १७५ ]
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३१२
जैनशिलालेख-संग्रह
[१५०
४५०-४५१ आदवनी (बेल्लारी, मैसूर )
१५वीं सदी, तेलुगु [ये लेख पहाडीपर एक पापाणपर खुदे हुए तीर्थकरमूतिके पास और चरणपादुकाओके पास है। ये बहुत घिसे हुए है। मूतिके पास एक शकवर्षकी सख्या खुदी है तथा पादुकामओके पास किसी आचार्यका नार्य है। दोनो अच्छी तरह पढना सम्भव नहीं है । लिपि १५वी सदीकी है।
[रि० सा० ए० १९४१-४२ ० ७४-७५ पृ० १३५]
४५२-४५३ नरसिंहराजपुर (मैसूर)
१५वीं सदी, कन्नड [ यहाँक दो मूर्तिलेख १५वी सदीके लिपिके है। इनपर देविसैट्टिके पुत्र दोडणसेट्टि तथा नेमिसेट्टिके पुत्र गुम्मणसेट्टिके नाम उत्कीर्ण है।]
[ए. रि० मै० १९१६ पृ. ८४]
४५४
हनसोगे (मैसूर)
१५वीं सदी, कन्नड . हनसोगेय हिरियबसदिय २ कोण्डिय कल्ल भोरसेय घोम्मि३ सेष्टियरु इक्किसिदर
[यह लेख स्थानीय आदीश्वरवसदिके सभामण्डपके छतके पाषाणपर खुदा है। यह पापाण (कोण्डियकल्लु) घोम्मिसेटि-द्वारा स्थापित किया गया था ऐसा लेखमें कहा है। लिपि १५वी सदीकी है।]
[ए० रि० मै० १९३९ पृ० १९४ ]
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-४५६ ]
मूढविदुरं भडिके लेख
By
मूडविदुरे (मैसूर)
शक १४२६ = सन् १५०४, कन्नड
૧૧૩
[ इन ताम्रपत्रमे उल्लेख है कि कदब कुलके धामक लक्ष्मप्परम अपरनान भररमने जैनांके ७२ सस्यानोके प्रधान आचार्य चारुकीति पडिताचार्यके एक शिष्यको अपने राज्यके एक हिस्सेके धार्मिक अविकार प्रदान किये । तिथि-आम्बिन कृ० ५, शक १४२६, क्रोषि संवत्सर । ]
[रि० स० ए० १९४०-४१ पृ० २४ क्र० ए ५ )
४५६
करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्राम ) दशक १४३१ = सन् १५०९, तमिल
[ यह लेख मकर शु० १०, गुरुवार, शक १४३१ को लिज्ञा गया या । विजयनगरके शासक नरसिंहरावके समय रामप्प नायकने मन्दिरांकी भूमिपर जोडि सक्षक कर लगाया था जिससे मन्दिराको हानि हुई थी । कृष्णदेवराय सिंहासनारूढ हुए तब उन्होंने मन्दिरोकी भूमिको करमुक्त घोषित किया । इस घोषणाका लाभ पडैवीट्ट, तथा चन्द्रगिरि प्रदेशके जैन और बौद्ध मन्दिरोको भी हुमा । करन्दै स्थित जिनमन्दिर भी इससे लाभान्त्रित हुआ ऐसा लेखमें कहा गया है । ]
[रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १४४ ]
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६११
जैन शिकालेस संग्रह
[ ४५७
४५७
गुरुवयनकेरे (द० कनडा, मैसूर )
शक १४३१ = सन् १५१०, कन्नड
[ यह लेख स्थानीय शान्तीश्वरवमदिके भण्डपमे है । इसमें माघ व० १०, सोमवार क १४३१ को वेलतगडीके कुछ लोगो द्वारा कुछ भूमिके दानका उल्लेख है । ]
[रि० स० ए० १९२८-२९ ० ४८० १०४५]
४५८
वरांग (द० कनडा, मैसूर )
शक १४३७ = सन् १५१५, कन्नड
[ यह लेख विजयनगरके कृष्णदेवमहारायके समय माघ शु०५, शुक्रवार, शक १४३७ भावसवत्सरका है। इनमें तुलुराज्यके शासक रत्नप्पोडेयका उल्लेख किया है । देवेन्द्रको तिकी प्रार्थनापर इस बसदिके लिए देवराय द्वारा पहले दी हुई भूमिके पुन खेतीयोग्य बनानेका इसमें उल्लेख है । यह कार्य अक्कम्म हेग्गिडिति तथा उनके सहयोगियो द्वारा सम्पन्न हुआ था ]
[रि० मा० ए० १९२८-२९ पृ० ४९ क्र० ५२८ ]
४५६
चामराजनगर (मैसूर )
सन् १५१८, कन्नड
[ इस लेखमें अरिकुठारके महाप्रभु कामैय नायकके पुत्र वीरंय नायकद्वारा विजय ( पाप ) नाथ मन्दिरके लिए सन् १५१८ में कुछ दानका उल्लेख है । ]
[ ए० रि० मै० १९१२ पृ० ५१]
Page #300
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-४६२ ]
कोह नगोरी आदिके लेख
४६०
कोह नगोरी (जयपुर, राजस्थान )
सवत् १५७७= सन् १५२१, संस्कृत - नागरी
३१५
• [ इस लेखकी तिथि माघ शु० ५, संवत् १५७७ यह है । इसमें मूलसंघ-बलात्कारगणके आचार्योंकी परम्परा दी है तथा खण्डुलवाल अन्वयके राय रामचन्द्रके शासनका उल्लेख है । ]
[रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ४१६ पृ० ६९ ]
४६१
वरांग (द० कनडा, मैसूर )
शक १४४४ = सन् १५२२, कन्नड
[ यह लेख पोवृच्चके राजा इम्मडि भैरवरसके समय चैत्र व० १२, सोमवार शक १४४४ चित्रभानु सवत्सरका है। इसमें राजा द्वारा वरागके नेमिनाथ बसदिके लिए भैरवपुर नामक ग्रामके दानका उल्लेख है । ]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ५२९ पृ० ४९ ]
કર
सोदे (उ० कनडा, मैसूर )
शक १४४५ = सन् १५२२, सस्कृत-कन्नड
[ यह ताम्रपत्र मापाढ पूर्णिमा शक १४४५ चित्रभानु सवत्सरका है । तौलव प्रदेशके क्षेमपुर ( गेरसोप्पे ) नगरसे इम्मडि देवरान ओडेनने बण्डुवाल ग्रामकी कुछ भूमि लक्ष्मणेश्वरके शखजिनवसतिके लिए दान दी थी । यह दान देशीगणके चन्द्रप्रभदेवके लिए था । ]
[ ए०रि० मं० १९१६ पृ० ६९ ]
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निगममा
[१४५
मोद (Main) 20-
2 0 :: [गर तारपत्र का नाम रहा। गंगी. जिनर धमति लिग निर्मात गागर मांग frमागमें सम्मति देवगन औल्या ग मी र नामग्या देगिणी रिजवनिक गिव्य मानवी प्रापyo", मुग्गर, पर १८४८, गिणु मगर यह
(fro०१० १९:९-४०० ०१५१०२२)
४६४-४६५
शंटगेगे (भगूर)
१६ मी (मन 10:3), पतः [पं दो ग है। पर अन्यायमति पापीठार है। मंत्र कृ० ५, रविरार, स्वनानु गमगे नियम अतिमी गयी थी। दमका स्वापर हलुमिटि निवागी पिटिका पुत्र दयणमटि या । मूनिरा वजन १८० हल कहा गया है। द्वारा लग गन्द्रनार मतिर पानापर है। यह मृति आरिमट्टि पुत्र बोम्मरहि-नाग बंगापु. १, गुरुवार, स्वभानु मत्मक दिन थपिन की गयी थी। गनी ने गांची लिपि १वी सदीकी है बत गपत्मरमामानुगार ये शक १४८५ अर्थात् मन् १५२२ फे प्रतीत होते है। (मूल लेन फलटम मुद्रित)
[परि० मै० १९३३ पृ० १२४)
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३१७
-180] नल्लिकर आदिक लेस
३१७ ४६६ नेल्लिकर (द० कनहा, मैसूर)
शक १४४७=मन् १.०५, कन्नड [यह लेख म्यानीय अनन्तनाथबमदिक प्राकारमें है। देवण्णरस उपनाम कोतकी वह्न करदेवी-द्वारा कीयरवरको वसदिके लिए धनु १५, रविवार, गक १४४७, तारण नवत्सरकै दिन कुछ भूमिक उत्पन्न दानका इममें उल्लेख है।]
[रि० मा० ए० १९२८-२९ ० ५२२ पृ० ४९ ]
४६७ पलिच्छन्दल् (द० अर्काट, मद्राम)
मक १४.. पन् १५३०, तमिल [ यह लेख एक भन्न जैनमन्दिरके स्थानपर है जिसे थैनियम्मण कोयिल कहा जाता है। विजयनगरके गजा अच्चुतदेवमहारायने वैचप्प नायकके निवेदनपर शके नापनार् विजयनायकर् नामक जिनमूर्तिकी पृजाके लिए जोडि और गालुवरि करीका उत्पन्न अर्पण किया था। यह राजाना वेलूर बोम्मुनायक्के समय उत्कीर्ण की गयी ऐसा लेखमें कहा है। तिथि मिथुन शु० १०, बुधवार, अक १४५२, नन्दन सवत्सर ऐसी दी है।
[रि० मा० ए० १९३७-३८ क्र० ४४९ पृ० ५१]
४६८ पटना म्युजियम (बिहार) संवत् १५९३=मन् १५३१, सस्कृन-नागरी [यह लेख एक पीतलको जिनमूर्तिक पादपीठपर है । इसकी स्थापना मूलसंघ-कुन्दकुन्दाचार्यान्वयक मण्डलाचार्य धर्मचन्द्रके उपदेशमे खटेलवाल
Page #303
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३१८
जैन शिलालेख-मंग्रह
[ ४६९
अन्वय कुछ सज्जनाने की थी । प्रतिष्ठा तिथि ज्येष्ठ शु० ३, मोमवार,
मवत् १५९३ ऐमी दी है । ]
[रि० ६० ए० १९५३-५४ क्र० १६२ पृ० ३३ ]
४६६ हनुमंतगुडि ( रामनार, मद्राम )
शक १४०० मन १५३३, तमिल
मलचनाव जैन मन्दिरके आगे पढ़ी हुई शिलाओं पर [ इसमें शक १४५५ के लेसके गण्ड है । एकमें जिनेन्द्रमगलम् अचना कुरुवडिमिदिका निर्देश हूं जो मुत्तोय यूग्म् विभाग में था । ]
( ४० म० रामनाड २७९ )
४७०
नीलचनहल्लि (मैसूर)
सन् १५३४ वट
[ इम लेसमे सन् १५३४ में मदवणमेट्टिके पुत्र पदुमणसेट्टि द्वारा अनन्तनाथचैत्यालयमे किमी व्रत पालनका उल्लेख है । ]
[ ए०रि० मं० १९१५ ० ६८ ]
BSN लक्ष्मेश्वर (मैसूर)
शक १४ (६१) - सन् १५३९, कन्नड
[ इस लेपमें जैन और वां एक विवादके समझौतेका उल्लेख है । यह विवाद जिनमूनियां के सम्मान के सम्वन्धमें था | जैनी की ओर शमवसति गणाचार्य तथा हेपणाचार्यने और क्षेत्रीको और दक्षिणसोमेश्वर
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-१७३]
कारकल आदिके लेख मन्दिरके कालहस्ति और शिवरामने यह समझौता किया था। तिथि ज्येष्ठ शु० १ सोमवार, गक १४(६१), विलवि सवत्सर ऐसी दी है। (शकवपकी सख्याके अन्तिम अंक लुप्त हैं जो सवत्सरनामानुसार दिये गये है)।]
[रि० सा० ए० १९३५-३६ क ई १८ पृ० १६२]
४७२ कारकल (द० कनडा, मैसूर)
शक १४६५=सन् १५४३, कन्नड [यह लेख (ताम्रपत्र) चैत्र ४० ४ शक १४८५ शोभकृत् सवत्सरका है। इसमें चन्दलदेवीके पुत्र पाण्डयप्परम तथा तिरुमलरस चौटर इनमें अनाक्रमण सन्धिका उल्लेख किया है। इसके साक्षोके रूपमें जैन आचार्य ललितकोति भट्टारका उल्लेख हुआ है।]
[रि० सा० ए० १९२१-२२ पृ० ९क० ए ५]
કરે कुरुगोडु (वेल्लारी, मैसूर) शक १४६७ =सन् १५१५, कन्नड
एक भग्न मन्दिरके दक्षिणी दीवालपर [विजयनगरके राजा वीरप्रताप सदाशिव महारायके समय शक १४६७, विश्वावमु संवत्सरमें यह लेख लिखा गया। रामराज्य-द्वारा जिनमन्दिरके लिए कुछ भूमिदान देनेका इसमें निर्देश है।]
(इ० म० बेल्लारी ११३ )
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३२०
जेनशिळालेस संग्रह
[ ४७४
B
कारकल (मैसूर)
शक १४६६ सन् १५४५, कनट
[ यह लेख माघ शु० ३, गुरुवार, शक १४६६, क्रोधि सवत्सरवा है । चन्दलदेवीके पुत्र चन्द्रवशीय पाण्डयप्प वोटेयके राज्यकाल में कारिजे निवामी सिदवसयदेवरमाग कारकलके गुम्मटनाथ स्वामीको कुछ भूमि अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेस है । ]
[रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० ३३९ पृ० ५२]
४७५
मूडविदुरे (मैसूर)
शक १४६८ = सन् १५४६, संस्कृत-कन्ट
[ इस ताम्रपत्र में विलिगिके शासक वीरप्पोडेयकी वशावली छह पीढियो तक दी है । विदुरे नगरकी त्रिभुवनचूडामणि वसतिके लिए इस शासकने चिक्कमालिगेनाडु विभागके कुडुगिनवयल ग्रामको कुछ जमीनका उत्पन्न दान दिया था । इमी मन्दिरके चन्द्रनाथदेवको नैवेद्य अर्पण करनेके लिए एक चाँदीका प्याला और कुछ धन भी दान दिया था। यह दान वीरप्पके चाचा तिम्मरसको पत्नी वीरम्मके नामसे था । इसी तरह घण्टोडेयके पुत्र तिम्मप्पकै नामसे चन्द्रनाथदेवके दुग्धाभिपेक्+ लिए कुछ दान दिया गया था । कार्त्तिक शु० ७, शक १४६८, विश्वावसु सवत्सर, यह इस दानकी तिथि थी । प्रथम आषाढ शु० १०, पराभव सवत्सर यह दूसरी तिथि दी है । ]
[रि० स० ए० १९४०-४१ क्र० ए २५० २३]
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काप तानपत्र लेख
३२१ ४७६ काप ताम्रपत्र (जि० दक्षिण कनडा, मैसूर )
शक १४७९ = सन् १०५६, संस्कृत-कन्नड १ श्री धर्मनाथ (न) शरणु ॥ श्रीमत्परमगारस्याद्वाहामाघलाछन ।
जीया२ स्त्रैलोक्यनाथस्य शामनं जिनशासनं ॥ स्वस्तिश्रीसकलज्ञान
साम्राज्यपटराजितः । व३ र्धमानजिनाधीश स्याद्वादमठमासुर. ॥ तिन्त्रिणांगच्छवाराशे
सुधांशुनिदी४ घिति । सद्धर्मसरसीहंस. प्रवादिगजकेसरी ॥ काणूरगण
नमामागे मामाति मुनि५ कुं (ज) र.। अज्ञानतिमिरोद्धतिः श्रीमान् भानुमुनी(श्वोर ॥
पचाचारशरध्वस्तपच६ बाणशरबन । अखण्डीतपोलक्ष्मीनायको मानुसंयमी।
श्रीमद्भानुमु७ नीश्व(रो) विजयते स्याद्वादधर्माम्बर श्रीमझानविनूनीधिति
(श)तध्वस्तान्धका८ रमज । श्रीमूलामलमंधनीरजमहापण्डावखण्डश्रियं व्यात (ब)
न् मुनि६ कोकचारुनिकर मौल्याणचे मग्नयन् ॥ तुलुशवम्बभूपन पोलंब
महाप३० दकट यंसर्ग (म) गु निच्च । धरयोलग कापिन नगरट नंतन
नाल्व भूप महहेगडेयम्ब ॥ ११ पंगुलबलि अधिपतियनु पॉगरसट नरके तानु नृपकुलतिलकं ।
संगतसमयोलु २१
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३२२
जैन शिलालेख - सग्रह
[ ४७६
१२ पो (गलगु) भगजजयजिनपदाब्जमधुकरमेवं ॥ भूविय मुखकनडि
वार्ड हेल्व
१३ र्गे कापुवेनिसिट नगर । श्रादरन्निदरो (ल्गा) मेदिनिमतधर्मनाथनेन (से) गु जिनपं ॥ आ नगर
१४ क्कधिपतियु श्रीपति तिरु (म) रस नृप (च) वनीतिलक | वोमनद कि श्रातानुं वोतुकर मुक्तिल
१५ दिर्मागत मनम ॥ येनेम्बे महहेग्गडे ढानचतुर्विधक्के खाने चितारत्न । सन्नुतगुणगण
१६ निलेय उन्नतशीलवनु ताल्द (नृ) परिपुसंहारं ॥ धर्मंदोलं (दृढ ) चित्ततु निर्मल
१७ गुरुमक्तियल्लि तिरुमरसनृप । धर्म जिनजैनशासनम वोम्मन्दि तानु मा क्रिति ( )
१८ नित्तं ॥ स्वस्ति श्री जयाभ्युदय शालिवाहनशकवर्षं १४७६ नेय संढ नलसवत्सर
१९ द कार्तिक शुद्ध १ आदित्यवारदलु श्रीमन्महाराजाधिराजराजपरमेश्वर सत्यरत्नाकर
२० शरणागतबज्रपंजर चतु समुद्राधीश्वर कलियुगचक्रवर्ति श्रीषीरप्रताप सदाशिव
२१ राय राजराजेंद्र दक्षिणभागभाग्यदेवतासंनिभरुमप्प रामराजस्यनवरु ये.
२२ क (च्छ) त्रटिं राज्यवनु प्रजिपालिसुतिर्द कालदल वारकूरु मगलूरलु सदा (शि)वनायकरु
२३ राज्यव गे (वि) विढं कालदल तुल (च) देशकामिनीमुखकमक विलकायमानानादिसि
२४ द्वप्रसिद्ध कापिसिंहासनोदयाचलालंकरणतरुणतरणीप्रकाशरुअनन्यराजन्यसौ (ज)
Page #308
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________________
-४७६]
काप ताम्रपत्र रेख २. न्य (ो)दायवीर्यवर्य(मा)धुर्यगामीयनयविनयसस्यशाचायन
नगुण• गणनूरनरत्नामरणगणकिरणोद्योनिनमरताटिमक्ल (पु)राणपुरप
न्मप्प तिरमलरमराठ महंग्गडेयर अवर नालिनवर गणपणमावनरु
कापिन राज्यव•८ नु प्रतिपालिसुतिह कालदल ॥ स्वस्ति श्रीमदायराजगुरु मढला
चार्य महा२९ बाढवाढीश्वर राज्यवाटिपितामह सकलविद्व(ज)नचक्रवर्तिगलं
इस्यायनकथि३. रतावलीविराजमानर काणगणाग्रण्यरुगलुमप्प श्रीमदमिनव३, देवकीर्तिदेवरुगल शिष्यरु मुनिचदंबरगल (अ)वरगल गिप्यरु
देवचढे३. बरगलु तम्म गुरु मुनिचद्रवरुगलिगे स्वर्गापवर्गक कारणबागि
कापिन३३ लु धर्मचनु माठयेत्र चिटि तिरमलरमराद महंग्गडयरु
३५ इयु भवर नालिनवरु गण(प)णमामतर कूडयु कापिन हलर
महायटिं३. द धर्म बॉटु क्षेत्रवनु कोढयेक यदु चित्तमलागि भवरगलु धर्म३६ परिणामस्वरूपवने बुलवराट कारण गुरुमक्तियिद तम्म सीमेय३७ लुम(ला)रम्न (यू)रोलगे पनु(व)ण दिक्निलु कल तोपतिना
बाल्कयल अगलिं३८ द वोलगे वेटिन गहेल्क बीज यल्ल मृवत्तर लेक्कद वत्त मूई २
मत्तम
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३२४ जैनशिलालेस-संग्रह
[७६३६ गालिंद होरगे पापिनाटियेव गढेक्कं थीन बल्ल मूवत्तर लोकट
बीज ४० मूढे ४ मत बागिल गल्क बीज बल्ल भूवत्तर लेमन्द मूडे . गहे मू
पिछला भाग ४१ रकं बीज मूडे १० है भूमिगलिगे चुल्ल करे मुरे मने पावि
हलसु भानु सु४२ वे निकिलिरुक्कटें कढिरु जल पाषाण सह मुलधारेयनु
एरदु को४३ टु थिमिकोंद दोड्डवराहग ८० अक्षरदल येमटु वराह यी हॉ४४ निगे येरटु खेलेगलु सह वर्षल्क बह अक्कि अगडिय होरिगेप ४५ बल्ल ऐवत्तर लेक्कट अक्कि मूडे २४ई अक्किगे नडव धर्मद
विवर कापिन वस्ति४६ य कगण नेलेयलु धर्मतीर्थकरसनिधियल मध्याह्नकालदछ
नित्यट४७ ल टिन वोदक्के वॉदुवल्ल अक्कि नैवेद्यक्कु (मु) निचंद्रदेवरगल
४८ रिनलु नड(व) हालधारेगु सह अक्कि झंडे १० सिंगल सिंगलु
तप्पट ति४६ गलल्लि १७ होहाग नडव वार ! मत्त इप्पत्तदु २५ होहाग
नडव ५० वार १ अंतु तिगलल्कि येरड धार समदाय नवुढक अकिक
मंडबु ५१ १२ई वारगल्लि मगलत्रयोदशी यहाग मा मगलत्रयोदशी
नव
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-४७६] काप ताम्रपत्र लेख
३२५ ५२ (बैंड) विशेषवागि यिरिसिट अक्कि मूढे २ अंतु अक्कि मूडे
यिप्पत्तनाल्कु ५३ यो धर्मद स्थलदल्लि बल्लारिंगे अनाय सनाय सल्लदु इल्ल श्रा
स्य(ल)गदलु इड ५४ वोकलिगे विष्टि विडार सल्लदु काणिके देसे अप्पणे पददल्लि येत्तु
सल्लहु येदु ५५ सर्वमान्यवागि तिरुमलरसराट महेग्गडेयरु भवर नालिनवरु ग५६ णपणसामतरु सह तम्म धर्मपरिणामनिमित्तवागि तम्म स्वरुचि५७ यिंद गुरुभक्तियिंट वोडबढ बरसि कोह तावशासन इंत५८ प्पुदक्के साक्षिगलु अधिकारि कातसेटि चट विक्रसेटि सामणि
संकर५६ सेष्टि राजसेष्टि वग्गे(से)ष्ट्रिय अलिय केसण मूलर बेलिले
बिरुमाल ६. दुग्ग वंडारि विरुसामणि मितिनवर वुमयान्म(न)दि मं. ६१ गलूरु सकै सेनबोवन वरह । यिती धर्मशास(न)के मगल६२ महा श्री श्री श्री ।। स्वदचाद् द्विगुण पुण्य परदत्तानुपालन । ६३ परतत्तापहारेण स्वदत्तं निष्फलं मवेत् ।। दानपालनयोमध्ये ६४ दानाच्छयोनुपालन । दानात्स्वर्गमवाप्नोति पालनादच्युतं ६५ पट ॥ यी धर्मशासनक्के भावनानोव्ब जैननादव तप्पिदरे बेलुगु६६ लद गुम्मटनाथ कोपणद चढ़नाथ ऊज तगिरिय नेमीश्वर६७ मोदलाद जिनविवगलनोडद पापके होहरु शैवनादरे - ६८ चतगोकर्णमोदलाइवरल्लि कोटिलिंगवनोडद पापक्के होहरु ६९ वैष्णवनादरे तिरुमलेमोदलादवरल्लि कोटिविष्णुमूर्तियनोट७. द पापक्के होहरु ।। मद् भूयाजिनशासनस्य ।। श्री
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३२६
जैनशिलालेस-सग्रह
[
[यह ताम्रपत्र शक १४७९ में लिखा गया था। उस समय विजयनगरसाम्राज्यके अधिपति सदाशिवराय थे तथा रामराज उनके प्रधान सेनापति थे । इस साम्राज्यके बारकूर तथा मगलूरु प्रदेशपर केलाडि सदाशिव नायककी नियुक्ति की गयी थी। इस प्रदेशमे काप नगरका अधिकारी मद्द हेगडे था । इसने धर्मनाथ तीर्थकरको पूजा आदिके लिए मल्लाए गांवमे कुछ जमीन दान दी जिसकी आय ८० वराह थी (वराह उस समयकी रौप्यमुद्राकी मना थी)। यह दान अभिनव देवकीतिक प्रशिष्य तथा मुनिचन्द्रके गिण्य देवचन्द्रके उपदेशसे दिया गया था। इसके पहले मूलमघ-काणूरगण-तिन्त्रिणोगच्छके भानुमुनीश्वरकी प्रशसा की गयी है। देवचन्द्र भी काणूरगणके ही थे । अन्तम दानकी रक्षाके लिए जो शाप दिये है उनमे श्रवणवेलगोलके गोम्मटेश्वर, कोपणके चन्द्रनाथ तथा गिरनारके नेमिनाथकी मूर्तियाका उल्लेख किया है ]
[ए० इ० २० पृ०८९]
४७७ चिप्पगिरि (जि० वेल्लारी, मैसूर )
शक १२%Dसन् १५६०, कन्नड [इस लेख में भादवानीके विशालकीतिगत तथा चिप्पगिरिक श्रावकोद्वारा चतुर्थमुनीश्वरकी वन्दनाका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९४४-४५ ई ७४ ]
४७ मूडवितुरे (जि० दक्षिण कहा, मैसूर)
शक १४८५-सन् १५६३, कन्नड [इस ताम्रपत्रमे विदुरे नगरकी चण्डोग्न पारिश्वतीर्थकर वसतिके लिए शकरसेट्टि ऊर्फ विरणन्तर-द्वारा उसकी वहन शकरदेवीके आग्रहसे कुछ
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३२७
-४८०]
मूढविदुरके लेस धन दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान अभिनव चारुकीति पण्डितके मानावर्ती सेट्टिकारीको सौपा गया था। १२५० वराह मुद्राओके एक और दानका भी इसमे उल्लेख है। तिथि मेप (त्रयोदशी ), शुक्रवार, शक १४८५, रुधिरोद्गारी संवत्सर ऐसी दी है।]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ पृ० २३ क्र० १९]
४७६ मिन्स आफ वेल्स म्युजियम, वम्बई शक १४८५=सन् १५६३, शिलालेख क्र. B B. ३०७, कन्नड
[यह लेख चैत्र शुक्ल १२, सोमवार, शक १४८५, दुन्दुमि सवत्सर, के दिन लिखा गया था। विठ्ठप्प नायक तथा हेम्मरसि नायिकितिके पुत्र सालुव नायक-द्वारा गैरसोप्पेमें शान्तिनायका मन्दिर वनवाये जानेका तथा इस मन्दिरको कुछ जमीन दान देनेका इसमें निर्देश है। इसमे नगिरे, हवे, तुल तथा कोकण इन पश्चिम समुद्रतटके प्रदेशोपर रानी चेन्न भैरादेवीके शासनका उल्लेख है।
[रि० इ० ए० (१९५०-५१ ) क्र. २४]
४८० मूडविदुरे (मैसूर)
शक १४९३ सन् १५७१, कन्नड [इस ताम्रपत्रमें मीचारमागाणे विभागके मरकत ग्रामको कुछ ज़मीन विदुरेकी वमतिमें आहारदानके लिए अपित करनेका उल्लेख है । यह दान चौट कुलको अन्वक्कदेवीने उसकी वहन पदुमलदेवीकी पुण्यवृद्धिके लिए दिया था। पुत्तिगेके शासक इस दानका भग न करें ऐसी सूचना अन्तमें दी है। तिथि पोप शु०८, रविवार, शक १४९३ प्रजोत्पत्ति सवत्सर, इस प्रकार दी है। ]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ पृ० २३ क्र० ए३]
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जैनशिलालेख-सग्रह
[४८१
४८१ महेश्वर (मध्यप्रदेश)
सं० १६२७ -सन् १५७१, संस्कृत-नागरी [ यह लेख सम्राट अकबरके राज्यकालमें सवत् १६२७ में लिखा गया था। मालवामें उस समय ख्वाजा अजोश बेग प्रान्तीय शासक नियुक्त था। इस समय मण्डलोई सुजानरायने महेश्वरस्थित आदिनाथमन्दिरका जीर्णोद्धार किया।
अकवरके शासनकालके अन्य दो लेख यही प्राप्त हुए है। इनमें मण्डलोई देवदास (सुजानरायके बन्धु ) द्वारा सवत् १६२२ में महेश्वर मन्दिरका तथा सवत् १६२६ में कालेश्वर मन्दिरका जीर्णोद्धार किये जानेका उल्लेख है। इस तरह जैन सज्जनो-द्वारा जनेतर मन्दिरोको सहायताका यह उदाहरण है।]
[इ. हि का० १९४७ पृ. ३९२]
४८२ कुचगि (तुकूर, मैसूर)
सन् १५७३, कन्नड [इम मूर्तिलेखमें कहा है कि नाल्कुवागिल निवासी वोम्मिसेट्टिके पुत्र दानप्पने यह मूर्ति तथा प्रभावलि सन् १५७३मे स्थापित की । ]
[ए. रि० मै० १९१६ पृ० ८४ ]
४८३ चित्तामूर (द० अर्काट मद्रास) शक १५००-सन् १५७८, कन्नड-तमिल-संस्कृत [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके मानस्तम्भपर है। इस स्तम्भको
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३२९
-१८५]
कारकल भादिक लेख स्थापना जगतापिगुत्ति निवामी वायिनेट्टिके पुत्र बुन्गेट्टिने गक १५००, बहुधान्य नवनरम की ऐना इसमें उल्लेख है । स्तम्भके दूसरी और मस्कृत भापा और कन्नड लिपिमें इमी वर्णनका लेख है। इसमें बुट्टिको महानागकुलका कहा गया है।] [रि० मा० ए १९३७-३८ ऋ० ५१७-१८ पृ० ५७-५८]
४८४ कारकल (द० कनडा, मैमूर )
शक १(५).१= सन् १५८०, क्न्नड [इम लेखकी तिथि कार्तिक शु० १, गक १(५)०१ है। प्रारम्भ धीमत्परमगम्भोर ' 'आदि ग्लोकसे है। अन्य विवरण लुप्त हुआ है।]
[रि० इ० ए० १९५३.५४ क्र० ३३७ पृ० ५२]
४५ सेतु ( शिमोगा, मैसूर)
गक १५०५=मन् १५७३, कन्नड १ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहनशक वरप १००५चित्रमानु
संबस्मरट भाद्रपट सुद्ध १० शुक्रबारदंदु क्रूरु नाड चैपल्लिय तिम्म गोहरु यिवल्लिय नायक्क गौडर जहिगांढर मग सेहिगौडर आ ममस्त श्रावकर मह मुंतागि मेनुविन बमति श्री
आदितीयश्वररिंगे माहिस्त लोहन २ प्रमावलिगे आ समस्त जनगलिगे मंगल महा श्री श्री श्री
विरपयनु माडिदुदु [ यह लेख आदिनायमूतिके पादपीठपर है । इस मूर्तिको स्थापना भाद्रपद शु० १० शक १५०५ के दिन हुई थी। स्यापक चैपल्लि ग्रामके तिम्मगौड तथा यिबल्लि ग्रामके सेट्टिगोड थे।]
[ए. रि० मै० १९४४ पृ० १६७]
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जैनशिलालेख-संग्रह
[१४६
४५६ येडेहल्लि ( मैसूर)
शक १५०६ - सन् १५८४, काड १ शुभमस्तु नमस्तुगशिरविचंदचामर (चार)चे २ त्रैलोक्यनगरारंममू(ल) स्तमाय शमवे । स्वस्ति श्री. ३ विजयाभ्युदय सासिवाहसकारुष १५०६ नेय सद वर्तमान । ४ तारण सं। आश्विजा शु १० मि मादिवारदलु श्रीमतु ।
दानिवा५ सट पेशरायवडेर । मालु चिकवीरप्पवाडेह मशाल चेमवि६ रवाडेरु गैरसोप्पे समंतमद्रदेवर सिष्यरु गुणमद्रदेवरु सिण्य७ । वीरसेनदेवरिंगे। कोट भूमि क्रयपनद क्रमवेन्तेन्दरे
मालेपा(क) ८ बन्दप्पन मग लिगण्णनु । नष्टसन्तनवा(गि)होद सम्मद ।
प्रातन भू. ६ मि नागलपुरट प्रामद बलगे गिनहिवलगडे ख। कंडंग
बम१० तु वीजवरि । भा भूमि नम्म भारमनिगे हरवरियागि बन्द ११ सम्मद । यी वीरसेनवरिंगे क्रयावागि कोट्टेवागि भा भूमि१२ गे सलुव क्रय दन्य । लक्षणलक्षित तस्कालोचित मध्यस्वपरि
कल्पित उ१३ मयवादिसप्रतिपन्न कालपरिवर्तनक्के सलुव पियसाहेनिजग१४ हि वरह ग ३२ अक्षरदल मूवत्तड बरहनु । तरविस उकि१५ यद। सले-साकल्यवागि सलिस कोण्डेवागि। भा भूमिग
सलुव चतु. १६ सीमेय विवर । मूढलु। ई गडेय नीरएकल आगलिंद पडल
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-१८७ ]
येडेहलिके लेख
३३१
१० कलु केरेपुरिटिं व (ढ) गलु || पडुबलु गुरुवप्न हेवरुवन तो१८ टटि मूडलु । वढगलु हानम्बियिंड तकलु । यिंती चतुस्त्रि१९ मेवलगुल्ल | निधि । निक्षेपनल । पामण अक्षोणि । भागमि । मिदमा
२० ध्यगलेंब । श्रष्टाभोग तेजसाम्यवन्नु नीट निम्म शिप्यरु पा२५ रम्पर्यवागि सुनहिं बोगिसि बहिरियन्टं वरसि कोट क्रय शा२२ मन पढे यिनक्के अविलासे विटवर देवलोक मत्यलोक्के बिर२३ हित । श्रीहत्य | गोहत्यक्क वजिनरहरू | त्रिरपव२४ र श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
[ यह लेख माध्विन शु० १०, रविवार, शक १५०६, तारण भवत्सरके दिन लिखा है । इममं दानिवानके शासक चेन्नरायके पौत्र तथा चिक्कatroपके पुत्र चेन्नवीरप्प वडेर द्वारा गरसोप्पेके वीरसेनदेवको कुछ भूमि दो जानेका उल्लेख है । वीरमेनके गुरु गुणभद्र तथा प्रगुरु समंतभद्र थे । उन्होंने ३२ वराह मूल्य देकर यह भूमि खरीदी थी जो पहले भालेपाल वन्दष्पके पुन लिंगण्णकी थी और उसके सन्तानरहित स्थितिमं मृत्यु होनेसे राजाधीन हुई थी । यह भूमि नागलापुर गांवके क्षेत्रमें थी। ]
[ ए० रि० मैं ० १९३१ पृ० १०४ ]
४८७
येडेहलि (मैसूर)
शक १५०७ = सन् १५०१, कन्नड
१ सुममस्तु । नमस्तुगशिरश्चु विचंद्रचामरचा
२ रखे त्रैलोक्यनगरारं ममूलस्त माय शमवे (1) स्व
३ स्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहनशकवरूप १५०७ ● मंद वर्तमान पार्थिवसवत्सरट चयित्र व ७ मि आदि
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३३२
जैनशिलालेस-सग्रह ५ चारदलु श्रीमतु । दानिवासट चेनरायवोडेयर म६ कलु । चिकवीरप्पवोडेयर मालु । चेन्नवीरप्पोडेअरू । गेरसो७ प्पे समंतभद्रदेवर सिप्यरु । गुणमद्रदेवर सिष्य८ वीरसेनटेवरिगे । कोट भूमि क्रयपत्रद क्रम९ दरे। बालेपाल तम्मयन मग नरसप्पनु नष्टसं१० वानवागि होट सम्मद भावन भूमि पीचलटाल ग्रामदलि। ११ एण्टु खण्डग विजवरि भूमि नम्म आमनिगे हरवरियागि १२ बन्द सम्मंद भा भूमिन् दानिवासद चेवरायवोडेय१३ र मालु । चिचीरवोडेयर माल चेनवीरवोडेयरु । १४ गेरसोप्पेय समतमददेवर शिप्यरु गुणमददेवर शिप्यर १५ वीरसेनदेवरिगे। क्रेयवागि कोटवागि। मा भूमिगे । सलुव । क१६ यदव्य । लक्षणलक्षित तत्कालोचित मध्यस्वपरिकल्पित उमे१७ यवादिसप्रतिपक्ष कालपरिवर्तनके सलव प्रिय१८ साहे । निजगति वरह गधाण ग ३० अक्षरदलु मू१६ बत्तु वरहंतु वारविस बलियटे सलिसि कोण्डेवागि । था एण्टु २० खण्डग भूमिगे सलुव चतुसीमय विवर मूडलु नन्दिगाव । २१ तिम्मरसैयन गयिंदल पडवलु । पहुक्लु नरसोपुरट२२ हर्दि बलु(१) मूहला बडगलू दरेयिंटल तकलात२३ फ्लु अरमनेगदेयिंदल वडगल । यिति चतुमीमयोलगु२५ ल निधि निक्षेप जल पाषाण अक्षोणि श्रागमि सिध साध्यगलेव २५ अष्टमोग तेजसाम्यवनु मागुमाविकोण्ड निवु निम्म शिष्य२६ रु पारम्परेयागि चंद्रास्तायियागि सुखदि भोगिसि २७ पहिरि दुवरसि कोट क्रयस्यासनपटे बिटक्के श्रमिला२८ से बटवरु देवलोक मर्त्यलोकके विरहितह । अहित्य २९ गोहत्यके वजनरहरु चेन्नवीरघोडेरु श्री ३० श्री श्री श्री
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-४८९] चिकहनसोगेका लेख
३३३ [यह लेख चैत्र २०७, रविवार, शक १५०७, पार्थिव सवत्सरके दिन लिखा है । इसमें दानिवासके शामक चेन्नवीरप्प वोडेयर-द्वारा गैरसोप्पेके वीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका उल्लेख है। इस भूमिके लिए ३० वराह कीमत दी गयी थी। यह पहले वालेपाल तम्मयके पुत्र नरसप्पको यो जो पुत्ररहित स्थितिमें मृत्यु होनेसे राजाधीन हुई थी। भूमि योचलदाल ग्रामके क्षेत्रमें थी।]
[ए० रि० मै० १९३१ पृ० १०८]
४८८ चिकहनसोगे (मैसूर)
सन् १५८५, कन्नड [यह लेख आदिनाथवसदिके गोमुखपर है। चारकोति पण्डितदेवके गिप्प तथा ब्राह्मणप्रमुख चिक्कणय्यके पुत्र पण्डितय्य द्वारा आदीश्वर, चन्द्रनाय तथा शान्तीश्वरको मूर्तियोको स्थापनाका इसमे उल्लेख है। समय मन् १५८५ है।
[एरि० मै० १९१३ पृ० ५१]
४८६ येडेहलि ( मैसूर)
शक १५०९सन् १८, कन्नड १ सुभमस्तु । नमस्तुगशिरश्चुविचंद्रचामर२ चारवे त्रैलोक्यनगरारमम(लस्तमाय शमः । ३ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहन शक वरुप १५०६ ४ नेय सढ वर्तमान । सर्वजितु स । वयिशाक शु५ मि " यु आदिवारहलु श्रीमत्तु । दानिवासद चेन्नरा
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३३४ जैनशिलालेख-सग्रह
[१८९६ यवडेर मकलु । चिक्कवीरप्पवाडेर मक्कलु चेन्नविरवा७ डेरु । गेरसोप्पे समंतभद्रदेवर शिप्यरु । गुणभद्रदेव८ र सिप्यरु । वीरसेनदेवरिगे । कोट भूमि क्रयपत्रद क्रम९ तेंदरे नालपुरट प्रामदोलगे सकण्णन मग मल१० यन डॉकिन कोड्डिगे बिजवरि ख १० हत्तु खण्डग भूमि ११ यु। सलविटु नम्म प्रारमनिगे हरवरियागि मढ स१२ मद । यी वीरसेनदेवरिंगे ऋयक्के कोटेवागि । मा भूमिग सलु१३ व क्रय द्रव्य । लक्षणलक्षित । तत्कालोचितमध्यस्तपरिकल्पित १४ उभयवादिसंप्रतिपन्न कालपरिवर्तनक्के सलुव प्रियसा१५ हे । निजगटि वरह ग ४० अक्षरटलु नाल्वत्तु वरहनु । तर १६ विस उलियदे साक्ष्यवागि। सलिसि कोण्डेवाणि भा भूमिगे
सलु१७ व चतुसिमेय विवर । मुडलु यिगडेय नोरेरकलगलिं१८ द पढुवल । बडगलु करेयेरियिंद कलु कल नं१९ म गहेयिंट बडगलु। यिंती चतुरसीमेयोलगुल नि२० धि निक्षेप जल पासण अाणि भागमि सिध साध्यग२. लंब आष्टभोग तेजसाम्यवनु निउनिम्म शि२२ प्यरु पाररियवागि सुखदि योगिसि बहिरि २३ यंदु बरसि कोट क्रयशामनपटे । यिटक्के अविला(पे) घटवरु दे. २४ परोक मत्र्यलोकक्के विरहितरु श्रीह य गोहत्यक्त्रं बजनरह२. रु। चेन्नवीरवडरु श्री श्री श्री श्री श्री
। यह लेप वैशाख शु० ५, रविवार, शक १५०९ सर्वजित सवत्सर उम तियिका है। दानिवासके शासक चेन्नवीरप्प बडेर-द्वारा गैरसोणके वीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका इसमें उल्लेख है। नालपुर ग्रामका यह भूमि ४० वराह कीमत देकर खरीदी गयी थी।]
[ए. रि० मै० १९३१ पृ० ११०]
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-४९१ ]
वीलिगि श्राटिके लेख
४६०
रत्नत्रयवसदि वीलिगि, (उत्तर कनडा, मैसूर ) १६वीं सदी (सन् १०८७ )
३३५
[ इम लेखमे मूलमंघ - देसिगण - पुस्तकगच्छके श्रवणवेलगुल मठके चारकीर्ति पण्डितका उल्लेख किया है । इन्हें रायराजगुरु, मण्डलाचार्य, वल्लालराजीवरक्षापालक आदि उपाधियाँ प्राप्त थी । इनकी परम्परामे श्रुतकीर्ति पण्डित हुए। इनकी गिष्यपरम्परा इम प्रकार थी - श्रुतकीर्ति - विजयकीतिश्रुतकीति (द्वितीय) - विजयकीर्ति ( द्वितीय ) ठाकलक विजयकीर्ति (तृतीय) - अकलक ( द्वितीय ) - भट्टाकलंक । भट्टाकलकदेवका समय शक १५१० =मन् १५८७ दिया है । मगीतपुरका लोकप्रयुक्त नाम हाडुवल्लि है । यहांके राजा इन्द्रभूपालको विजयकीर्ति ( प्रथम ) की कृपासे मिहामन प्राप्त हुआ ऐसा कहा गया है। विजयकीर्ति (द्वितीय) की प्रेरणासे पश्चिम समुद्र तटपर भट्टकल नगरको स्थापना हुई थी। ]
[ ए० इ० २८ पृ० २९२ ]
४६१
जि० दक्षिण कनडा ( स्थान नाम अज्ञात )
शक १५१३ = सन् १५६१, कन्नड
[ यह ताम्रपत्र शक १५१३ स्वर मवत्मरमे किन्निग भूपालने दिया था। इसमें एक जैन मन्दिरके लिए कुछ भूमिदानका उल्लेख है । ]
( इ० म० दक्षिण कनडा २ )
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जनशिलालेस-सग्रह
४६२-४६३ रायबाग (मैसूर)
शक १५१९ = सन् १५९७, सस्कृत-कन
[ ये दो लेख स्थानीय आदिनाथमन्दिरके दो स्तम्भोपर है - एक कन्नड है तथा दूसरा उसीका संस्कृत रूपान्तर है । इसमे ज्येष्ठ व० १४, शक १५१९ के दिन मूलसघ- सेनगणके सोमसेन भट्टारक- द्वारा इस मन्दिरके जीर्णोद्वारका तथा पार्श्वनाथमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । ]
[रि० इ० ए० १९५५-५६ क्र० १५२-५३ पृ० ३३]
३३६
[ ४९२
४६४-४६५
मारूरु ( दक्षिण कनडा, मैसूर )
शक १५२० सन् १५६८, कन्नड
[ ये दो लेख है । मारुरुके पार्श्वनाथवसतिमें स्थित तीर्थंकरमूर्तियोको पूजाके लिए पार्श्वदेवो विन्नाणि-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका इनमें उल्लेग्न है | पहला लेख चैत्र शु० ३, सोमवार, शक १५२० का है तथा दूमरा लेख पीप शु० २ शुक्र शक १५२० का है । ]
[रि० स० ए० १९३९-४० क्र० ७४-७५ ]
४९६-४६७
करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) संस्कृत ग्रन्थ, १६वी सदी
[ यह लेस १६वी मदीकी लिपिमें है । पुष्पसेन योगीन्द्रके गुरु समन्तभद्रकी अक्षय कीर्तिका इसमें वर्णन है ।
यहीके एक अन्य लेखमे मुनिभद्रस्वामीका नामोल्लेख किया है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १३४, १४५ ]
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-५०.]
हुमच आदिक लेख
४३८ हुमच (मैमूर)
१६ची मढी, कन्नड १ श्रीवोम्मरसनु रूपबतिनिढनू
[ यह लेख पार्श्वनाथत्रमदिमे स्थित क्षेत्रपालमूतिके पादपीठपर १५वी मढीको लिपिमे है। इसमें मूर्तिके निर्माताका नाम वोम्मरम दिया है। ]
[ए० रि० मै० १९३४ पृ० १७७ ]
४६४ सेतु (शिमोगा, मैमूर)
१६वी मढी, कन्नड , स्वस्ति श्रीगुम्भय सेटियर वस्निय श्रीवर्धमानस्वामिय सनि
धानढल्लि गणपणमेटियर मग सघय्यसेटियरु तमगे पुण्यात
वागि प्रतिष्ठे मादिमिट अभिनन्दनतीयश्वरनिगम• गल महा श्री श्री श्री श्री श्री
[इम रेखमें मघय्य सेट्टिद्वारा अभिनन्दन तीर्थकरकी इस प्रतिमा की स्थापनाका निर्देश है। इम समय गुम्मयसेट्टिकी वसतिके वर्वमानस्वामी उपस्थित थे। लिपि १६वी सदीको प्रतीत होती है।]
[ए० रि० मै० १९४४ पृ० १६६ ] ५००-५०१ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास)
१६वी सदी, तमिल [ इस लेखमें एक पद्यमे कोण्डमल निवासी गुणवहिरमुनिवन् (गुणभद्रमुनि ) की प्रशसा की गयी है जो दक्षिणप्रदेशमें तमिल और सस्कृतके
२२
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३३० जैनशिलालेस-संग्रह
[-५०२ सुप्रसिद्ध विद्वान् थे। लेख १८वी सदीकी लिपिम है तथा चन्द्रनाथमन्दिरके मुख्य द्वारके पास खुदा है । मन्दिरके मण्डपकी दीवालपर खुदे एक अन्य लेखमे इन्ही पाचार्यको वीरमघप्रतिष्ठाचार्य यह विशेषण दिया है।
[रि० सा० ए० १९३९-४० ३०, ३०२ पृ० ६५]
५०२ सोदा ( उत्तर कनडा, मैसूर )
शाक १५३०-सन् १६०७, कान पहली ओर १ था (1) स्वस्ति (1) श्रीजयाभ्युदय शालिवाह२ नशकवरुप १५३० नेय कवंगसवत्सर३ ८ कार्तिक शु १० धनारदलि श्रीमद् राय
दूमरी ओर ४ (राजगुस्म) दलाचार्य महावाद५ (वाढीवर रा) यवादिपितामह मकलविद्वज६ (नचक्रवर्ति ब) लालरायजीवरक्षापा
तीसरी थोर । ७ लक दंशिगणाप्रगण्य सगीतपुरसिंहा (सन)
८ पहाचार्य श्रीमदम्लावरुगल ९ श्रीपचगुरुचरणस्मरणयिंद स्वर्गस्थरा
चोथी और १० (द) (1) अवर निषिधिमंटपा मंगल महाश्री (0) ११ महाकलकदेवेन स्याद्वान्यायवादिना(0)
निपि१२ धीमंटपो हन्ध स्थेयादाचंद्रमा (स्क) र (1)
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-५०५]
करन्दै आदिके लेख [इस लेखमें देशिगणके प्रमुख सगीतपुरके पट्टाचार्य अकलकदेवके स्वर्गवासका निर्देश है जो कार्तिक शु० १० शक १५३० के दिन हुआ था। उनको यह निपिधि उनके शिष्य भट्टाकलकदेव-द्वारा स्थापित की गयी थी।
[ए० इ० २८ पृ० २९२]
५०३
करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास)
शक १५४१ = सन् १६९ [ यह लेख विजयनगरके महामण्डलेश्वर रामदेव महारायके समय शक १५४१, कालयुक्ति, चैत्र ३ के दिन लिखा गया था। वाल नागम नायक
और तलत्तार लोगो द्वारा कपिलायप्पुलवर् (नामक जैन विद्वान् ) को कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है। ]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र. १३७]
५०४ मूडविदुरे ( मैसूर)
शक १५४४= सन् १६२२, कन्नड [इम ताम्रपत्रमें निर्देश है कि सेनगणके समन्तभद्रदेवने इक्कैरिमें केलडि वेंकटप्प नायकसे मिलकर तथा उसके अधीन अधिकारी चिन्नभडार देवप्पसे साहाय्य पाकर विदुरे नगरको त्रिभुवनतिलक वसतिका जीर्णोद्धार कराया। तिथि-वैशाख, शक १५४४, रुधिरोद्गारी सवत्सर । ]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ पृ० २४ क्र० ए ४ ]
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३४०
जैन शिकालेस संग्रह
५०५
कलकत्ता ( नाहर म्युजियम )
शक १५४८ = सन् १६२६, कन्नड
[ -५०५
१ सक १५४८ श्रीमूलसघ भट्टारक २ श्रीधर्मचद्रोपदेशात् प्रणम
३ श्रीमतिवीर
[ यह लेख पीतलकी चौबीसतोयंकरमूर्तिके पादपीठ पर है । मूलसघके धर्मचन्द्र भट्टारकके उपदेशसे श्रीमतिवीर द्वारा इस प्रतिमाकी स्थापना शक १५४८ में की गयी थी । लिपिसे पता चलता है कि यह मूर्ति कर्नाटकम निर्मित है । ]
[ ए०रि० मं० १९४१ पृ० २४९ ]
५०६
कोलारस ( शिवपुरी, मध्यप्रदेश )
संवत् १६८४ = सन् १६२८, हिन्दी-नागरी
[ इस लेखमें शाहजहाँके अधीन शासक अमरसिंहके समयमें एक जैन चैत्यालयके जीर्णोद्वारका उल्लेख है । तिथि आपाढ शु० ९, गुरुवार, सवत् १६०॥८४ इस प्रकार दी है । ]
[रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २४१ १० ४८ ]
५०७
मूढविदुरे (मैसूर)
शक १५५४ - सन् १६३२, कन्नड
[ इस ताम्रपत्रमै उल्लेख है कि विदुरेके दो विभाग वेट्टकेरी तथा मालगडिकेरीमें रहनेवाले श्रावक पहले दीवालीका त्योहार मनाते वक्त
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जैनशिलालेख-सग्रह
[५१६
चेल्लूर ( मैमूर)
कन्नड (मन् १६८०) [ यह लेख विमलनाथमूतिके पादपीठपर है। पद्मकुलके शकर-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापना हुई थी। यह हलिकल निवासी था तथा ममन्तभद्राचार्य के शिष्य लक्ष्मीसेनाचार्यका शिष्य था। समय लगभग सन् १८८० का है।
[ए. रि० ० १९१५ पृ०६८]
पोनर (उ० अर्काट, मद्रास)
शक १६५५ = सन् १७३३, तमिल [स्थानीय जिनमन्दिरके छतमे लगे स्तम्भपर यह लेख है । तिथि वैगाशि २७, प्रमादी संवत्सर, शक १६५५, कलिवर्प ४८३४ यह है। इसमें कहा है कि स्वर्णपुर-कनकगिरिके जैन हेलाचार्यको साप्ताहिक पूजाके लिए प्रति रविवारको पार्श्वनाथ तथा ज्वालामालिनीकी मूर्तियां नीलगिरिपर्वतपर ले जाते है। यहींक अन्य लेखमें पार्श्वनाथकी स्तुतिमें कुछ मन्त्र लिखे है।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र. ४१६-१८१०४० ] मूललेख १ स्वस्ति श्री शालिवाहनचकाट १६५. कल्यब्द. १८३४ व
मेळ चेल्ला निरा प्रमवादि ग (श) काव्ड वरप ४६ कक प्रमादिच वरुपं वैगाशिमाठ १७ (उ) एलुढिय शासनमावदु (1) स्वस्ति श्रीस्व (ण) पु (र) कनकगिरि आदीश्वरस्वामिचत्यालय सम्बन्दमान वायुमृलैयिलि
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-420]
क्रन्दै आदिके लेख
३४७
२ रक्तुं नीलगिरि हेलाचार्य पाटपूजे प्राडिवारत्न तोल्म् मेर्पाडि आलयचिन् श्रीराश्वनाथम्बामियु आलामा (लि) निचम्मणैयु मेर्पाडि स्वर्गपुरजनल एडुत्तकोण्ड पोय् पूजिप्पड ( 1 ) इन्द शामनमनम्नमेनदेव (नाले) लुडपड (11)
[ ए० इ० २९ पृ० २०२ ]
Ke
करन्दै ( उत्तर अर्काट, मन्त्रान )
शक १६६९ = सन् १७४८, तमिल
[ यह लेख्न ज्येष्ठ नृ० ५, शुक्रवार, शक १६६९ को लिखा गया था । मुनिगिरि स्थित कुन्युनाथस्वामी के मन्दिरके गोपुरका जीर्णोद्धार अगस्तियप्प नायिनाने किना ऐना इसमें कहा गया है । ]
[ रि० ना० ए० १९३९-४० क्र० १३६ ]
५२०
मूडविदुरे (मैमूर )
शक १६७६ = सन् १७५७, कन्नड
[ विद्यानगर ( विजयनगर ) के राजा विजन सदाशिव महारागके अधीन नोदे प्रदेशके धामक अरमप्पोडेयके पुत्र इम्मडि अरमप्पोडेयने वेणेगावे नामकी कुछ जमीन अपने गुरु चारुकीति पण्डितदेवको अर्पित की ऐना इन ताम्रपत्रमें उल्लेख है । तिथि मार्गशिर शु १ शक १६७९, राजन संवत्पर । ]
[रिमा ए १९४० - ४१ पृ २४ क्र ए६ ]
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३४८
जैनशिलालेख-सग्रह
[५२१
५२१ वालुर (धारवाड, मैमूर )
शक १(६) सन् १७६३, कन्नड [जैन मन्दिरके सन्मुस दीपमाला स्तम्भपर यह लेख है । देवण्ण और उसके पुत्रोका इसमें उल्लेख है । तिथि कार्तिक शु. १०, सोमवार, विक्रम, शक १६८५ ऐसी दी है।]
[रि इ ए १९४५-४६ क्र २१३ ]
પરર तिलिवल्लि (धारवाड, मैसूर)
१८वीं सदी, कन्नड [ इस निसिधि लेखमें पैशाख शु ५ सोमवार, स्वर्भानु मवत्सरके दिन पुजारी पेवय्यके समाधिमरणका उल्लेख है । ]
[रि इ. ए. १९४५-४६ क्र. २५३ ]
५२३ काकन (जि० मोघोर, विहार) संवत् १८२. सन् १७६६, संस्कृत-नागरी जैन मन्दिरमें रणपादुकाओंके चारों ओर
[इस लेखमें काकन्दीके जैन सघ-द्वारा सवत् १८२२ वैशाख शु° ६ को जैन मन्दिरके जीर्णोद्धारका तथा सुविधिनाथके चरणोको स्थापनाका उल्लेख है।]
[रि० इ० ए० १९५०-५१ ०३]
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-५२७]
मैसूरके लेख
३५६
५२४
मैसूर
कन्नड शान्तीश्वर बसतिमें दीपस्तम्भोंपर
[ इस लेखमे चामराजको रानी देवीरम्मण्णि-द्वारा उक्त दीपस्तम्भ शान्तीश्वर वसतिको अर्पित किये जानेका उल्लेख है । ये चामराज मैसूरके राजा चामराज वोडेयर (नवम ) ( सन् १७७६-९६ ) होगे। ] [ मूल लेख कन्नड लिपिमें मुद्रित ]
[ए० रि० मै० १९३६ पृ० १०२ ] ५२५
मैसूर
उपर्युक्त बसतिमे चार कलशोंपर
[ इस लेखमें उपर्युक्त रानी देवीरम्मण्णि-द्वारा शान्तिनाथके अभिषेकके लिए इन चार कलशोके दानका निर्देश है।] [ मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित ]
[ए. रि० मै० १९३६ पृ० १०२] ५२६-५२७ नरसिंहराजपुर (मैसूर)
सन् १७७८-७६, कन्नड [यहाँके दो लेख सन् १७७८ तथा १७७६ के है। पहलेमे वियग वरमैयके पुत्र नागप्प-जो काम्बोदि वैश्य था तथा निर्घडेवृक्षसघका था
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३५० जैनशिलालेग्य-सग्रह
[५२५द्वारा एक मण्डपको स्थापनाका उल्लेख है। दूमरेमें इसी व्यक्ति-बारा भूतिका पादपीठ अपित करनेका उल्लेख है। रविवारप्रतकी ममाप्तिपर यह दान दिये गये थे।]
[ए. रि० म० १९१६ पृ० ८४] ५२८
मैसूर शक १७३६- सन् १८१६, काड शान्तीश्वर वसति-ामगृहक द्वारके पीतलके आवरणपर [ इस लेखमे दनिकार पयके पुत्र नागय-द्वारा ३९३ (सेर ) वजनके इम पीतलके गन्धकुटी ( द्वार ) के आवरण दान दिये जानेका उल्लेख है। यह दान आश्विन शु० १, शक १७३६, भाव संवत्सरके दिन दिया गया था। [ मूल लेख कन्नड लिपिम मुद्रित]
[ए. रि० मै० १९३६ पृ० १०२]
५२९
मैसूर (शक १७३६ सन् १८१४) सस्कृत-कन्नड
शान्तोश्वर वसति-सुसनासि द्वारकं आवरणपर श्रीमच्छाविजिनेन्स्य पचकल्याणसपद । श्रिया मेरुणिमगारं हसतश्चक्यवेश्मन ॥१॥ परायरचनोपेत कचाटमिदमद्भुतं । कारयामास सद्भक्त्या आवको जैनमार्गतः ॥२॥ नागनामा पितु स्वस्य मरिनागाह्वयस्य च । धनिकारपदाव्यस्य स्वर्मोक्षसुखलब्धये ॥३॥
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-५३०] मैसूरका लेख
३५१ [इन लेखमे निर्देश किया है कि प्रस्तुत द्वारका निर्माण धनिकार मरिनागके पुत्र नाग-द्वारा किया गया। इस लेखमें समयनिर्देश नही है किन्नु पिछले लेखका ही समय इसका भी होगा ऐसा अनुमान होता है ।।
[ए. रि० मै० १९३६ पृ० १०३ ]
मैसूर
शक १७०४=मन् १८३२, संस्कृत-कन्नड
अनन्ततीर्थकरकी मूर्ति - शान्तीश्वर वसति १ श्रीमत्कश्यपगोत्रजो जिनपढामोजे लमं षट्पट क्षात्रीयोत्तम
देवराजनृपति. सदर्म२ पल्या मह (1) पम्मण्यमिधानया प्रनयुजा स्वर्गापवर्गप्रदं
कृस्वानतव्रतं तढा३ रचितवान् बिंव मुदतच्छुम ॥ अत्रुधींद्रियशैलेंदु-अमितेस्मिन्
शकाठक। ४ नन्दने वत्सरे मामास शुक्लाष्टमीतियाँ। अनतनाथविषस्य
प्रतिष्टां जग५ दुत्तरां ( 1 ) कारयामास पूर्वोक्तठेबराजनृपोत्तमः ॥
[इस लेखमे कश्यप गोत्रके उत्तम क्षत्रिय राजा देवराज तथा उनकी धर्मपत्नी केंपम्मण्णि-द्वारा अनन्तव्रतको पूर्णताका उल्लेख है। उक्त दम्पतिने इस अवसरपर भाद्र शुक्ल अष्टमी, शक १७५४, नन्दन सवत्सर,के दिन अनन्तनाथकी यह मूर्ति स्थापित की। इस समय मैसूरमें कृष्णराज वडेयर (तृतीय ) का राज्य चल रहा था। मत लेखोक्त देवराज नृपति मैमूरकी अरतु नातिके प्रमुखोमें से एक थे ऐसा अनुमान होता है। ]
(ए. रि० मै० १९३६ पृ० १०१)
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३५२
जनशिलालेख-संग्रह
५३१ हले हुबलि (जि. धारवाड, मैमूर )
शक १७४४ सन् १८६२, कन्नड [ यह लेख शक १७८४ का है । कहा गया है कि इस वर्ष एक नया जगट बनवाया गया। यह उस पुराने जगटमे बनवाया था जो यहाँके अनन्तनाथवसदिमे पिछले ११०० वर्णमे था।]
[रि० मा० ए० १९४१-४२ ई० ३५ पृ० २५७ ]
५३२ चित्तामूर (६० अर्काट, मद्रास)
शक १७८७ सन् १९६५, सस्कृत-ग्रन्थ [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके गोपुरकी दीवालपर है । इस गोपुरका निर्माण अभिनव आदिसेन भट्टारकने सार्वजनिक सहायतासे किया ऐसा उल्लेख है। तिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा, शुक्रवार, शक १७८७ क्रोधन सवत्सर ऐसी दी है। इसी दीवालपर एक अन्य लेखमें जिनालयनिर्माणसे प्राप्त पुण्यकी प्राप्त पुण्यकी (साके कुछ श्लोक है । ]
[रि० सा० ए० १९३७-३. क्र० ५१९-२०१० ५८]
५३३
मैसूर
१६वीं सदी, काट शान्तीश्वर बसतिमें सर्वाह यक्षको मुर्तिक पादपीठपर इस लेखमें मरिनागय नामक व्यक्ति-द्वारा महिसूरके शान्तीश्वर वसतिमै सण्हियक्षकी मूतिके पादपीठपर पीतलका आवरण लगानेका
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-२३१ ]
मैसूर टिके लेख
३५३
उल्लेख किया है । मरिनागय दनिकार पद्मयका पुत्र था । लिपि १९वी
सदीकी है ।
[ मूल लेख कन्नड लिपिमें मुद्रित ]
[ ए०रि० मं० १९३६ पृ० १०० ]
પૃષ્ઠ
मैसूर
१९वीं सदी, कन्न
उपर्युक्त वसतिमें घण्टापर
[ इस लेखमे शिरसँयके छोटे भाई पृट्टैय द्वारा इस घण्टेके दानका उल्लेख है । लिपि १९वी सदीकी है ।
( मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित )
२३
५३५
मत्तावार (मैसूर)
१९ वीं सदी, कन्नड
मत्तवर बस्ति पार्श्वनाथस्वामिचैत्यालयक्के
ऐवर अवणनुव
[ उपर्युक्त पृ० १०० ]
[ यह लेख एक घण्टेपर खुदा है। ऐवर मवण द्वारा यह घण्टा मत्तवूरके पार्श्वनाथस्वामी चैत्यालयमें अर्पण किया गया था । लिपि १९वी
सदीकी है । ]
[ ए०रि० मं० १९३२ पृ० १७५]
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जैनशिलालेस-सग्रह
[५३६
कनुपर्तिपाडु ( नेलोर, आन्ध्र)
तमिल [ इस लेखमें करिकालचील जिनमन्दिरके लिए मतिमागरदेवके उपदेशसे प्रमलदेवी-द्वारा सीढियां बनवानेका निर्देश है। यह लेख सम्राद् राजराजदेवके ३७वें वर्षका है। नोट-चोल राजराज नामक किमी भी राजाका राज्य ३७ वर्षकी दीर्घ
सीमा तक नहीं पाया जाता । अत इम लेखकी तिथि गलत प्रतीत होती है।
(इ० म० नेलोर ५०२)
तिरुनिङकोण्डै (मद्रास)
तमिल [ यह लेख पल्लव राजा सकल भुवनचक्रवति पेजिगदेवके तीसरे राज्यवर्पका है। इसमें इस देव-मन्दिरको प्रदक्षिणामालिकाका निर्माण पालगर निवासी शिंगन-द्वारा किये जानेका उल्लेख है। लेख चन्द्रनाथमन्दिरके प्राकारके पश्चिमी दीवारपर खुदा है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३१४ पृ० ६६]
५३८ गेरसोप्पे ( मैपूर )
सस्कृत-कन्नड , धनशोकवलीमचलनेगीगणलक्षितकीर्तिमुनिसूनो (0) श्रीदेव
चन्द्रसूररुपदेशानेमिजिनयिम् ।
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-७३९ ]
गैरमोप्पे लेख
• श्लोकः ॥ भोजणनेष्टिपुत्रोमो करलपश्रेष्ठिपुगव (1) अकारयत् सुतां यन्त्र मावास्यागमंजोजग• ॥
[ यह नेमिनाथ मूर्ति ओजणश्रेष्ठिके प्रपोत्र तथा कल्लपथेष्ठि एव मावास्वाके पुन अजणश्रेष्टने देगीगण धनशोकवनीके आचार्य ललितकांतिके शिग्न देवचन्द्रमूरिके उपदेशमे स्थापित की। ]
[ ए०रि० मं० १९२८ पृ० ९५ ]
E
गेरसोपे (मैसूर)
कन्चट
३५५
१ श्रीमत्परमगंमीरस्यादूवादामोघलाइनं (1) जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन ( 11 )
२ श्रीजिनराजराजित पदाम्बुजरा मराल नगिरिय राजशिरो
३ मणि प्रचुरकीर्ति दिशावालयप्रकाशनु तेजभुजप्रताप रिपुरानमुखा - ४ बुजं हस्तवीरनुं भूजनवन्ध होननृपनर्थिजनावन क्ल्पवृक्षनु
होन्
५ नमहीशनात्मजेयु मालियव्वरभिगे कामराजगं सन्नुतमूर्ति होन
नृपनान्ममवान्
६ धव मगराजनु मन्मथरूप हरिहरनृपालकनातन पुत्र हैवणरसंग मन प्रियान्
13
गनेयु मान्तलदेवि नमाधिकाच्दालु भाकेय गुरगलु लोक्रयातियनान्तिद् अनन्
८ तवीर्यरु रतिसंकाशसोबगे निमि सन्दि कान्तंगे हैवणरस चल्लमनादं । स्मररूपं
९ सूत्रकी पुरदोल कीर्तिवेत्त बोम्मणसंहिय वरवनिते बोम्मकग वरसुगु
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३६१
-५५८]
तंगळे भादिक लेख देवनन्दिवतिगलु ३ गुणसागरभटारकरु ४ कौतिसागरभटाररु ५ अजितसेनभटारकर ६ प्रभाचन्द्रदेवरु ७ विमलगुणवतिगल ८ अजितसेनभटाररु ९ शुभचन्द्ररु।]
[ए. रि० मै० १९२५ पृ० ५१]
कनकरायनगुड्ड (मैसूर)
कन्नड १ श्रीकोण्डग्यसेष्टियर् २ मूलस्थानत्रसदिय स्या३ नक्के 'कन्तियर मगल ४ विजयक्कं कोह मण्णु ५ मू
[ इस लेखमें कोण्डय्य सेट्टिद्वारा निर्मित मूलस्थान जिनालयके लिए विजयक्का-द्वारा कुछ भूमि दान दी जानेका उल्लेख है।]
[ए० रि० मै० १९२५ पृ० ३८]
हुलदेनहल्लि ( मैमूर)
क्लड १ परमेश्वर पृथ्वीराज्य२ रपारपुर दूरवेल्लिय३ योलकहि किलगणकरे४ नन्दियडिगल पडेउराताद५ रु साक्षि सिडिलवहु तोरेटे६ पालु अल्गोल केरेय केलग७ ॥ देसे एलु मने तार इदक सा
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३६२
जैनशिलालेख-सग्रह
८ वत्तर तेकलनाड एलपत्तारु ढ--
[ इस लेखका ऊपरका और दाहिना भाग टूटा है। नेन्दियडिगल् वाचार्यको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है।]
[ए. रि० मै० १९२६ पृ० ८३]
तोललु ( मैसुर)
काड १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावाटा२ मोघलाछन जीयात् त्रैलोक्यना३ यस्य शासनं जिनशासन । स्वस्ति यमनि४ यमस्वाध्यायगुणसम्पन्नरप्प अभयच५ न्द्रदेवरु सर्गगामिगलाद परोक्ष६ यममागल् पभावतियक्क माडिसिद सास७ न ॥ अरेवेसनागिरह वसदिय माहि८ सिटर देवर मनेय परिसूत्रट गट्टु कष्टिहै यिसिदरु मन्य नाटि नडुम्मरनुमं नट१० रु इनिसक यिक्कि पूजिसिढ गाणाप्प११ च । इन्तपुदक्के साक्षि मुहगण्डनु मास१२ गवुण्डनु सम्मडिय रं । विष्टियण ने१३ मणनु ईस्तानकोडेयरु।
[ इस लेखमे कहा है कि आचार्य अभयचन्द्रकी मृत्यु होमेपर उनकी शिष्या पावतियक्काने एक अधूरे जिनमन्दिरको पूर्ण किया। इस कायम ७० गद्याण खर्च हुए । इस मन्दिरके व्यवस्थापक विट्टियण तथा नेमण थे । मुद्दगवुण्ड तथा भासगधुण्ड इसके माक्षी थे।] ।
[ए० रि० मै० १९२६ पृ० ४२]
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-७६३]
अलवष्टि आदिक लेख
५६०-५६१ यलवट्टि (जि. धारवाड, मैमूर )
क्नड
[ यहां दो लेख है । एकमे मूलपघ-देशीयगणके सकलचन्द्रदेवके गृहल्य गिप्य सेनवीव केतय्यको मृत्युका उल्लेख है । इमकी तिथि मार्गगिर शु० ८ शुक्रवार, बानन्द मवन्मर ऐमी दी है।
दूसरे लेखमे मूलमघ-देशीगण-पोस्तक गच्छ - कोण्डकुन्दान्वयक देवकोति भट्टारकके एक गिप्यकी मृटका उल्लेख है । इमकी तिथि धावण कृ० १ रविवार, माधारण नवत्सर ऐमी है।]
(रि० मा० ए० १९४४-४५ एफ् ६०-६१)
५६२ शावल (जि. धारवाड, सैमूर )
कबड [इस लेख में देवीयगणके वालचन्द्र विद्यदेवके एक गृहस्थ गिज्यकी मृत्युका उल्लेख है। मार्गभिर कृ० ३, बय सबत्सर ऐसी तिथि दी है।]
(रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ् ५४)
५६३ दानवुलपाड (जि० कडप्पा, आन्त्र)
कन्नड [इस लेखमें कनककीतिदेवके गिप्यकी - जो पेनुगोण्डका एक व्यापारी था-निनिधिका उल्लेख है।]
(३० म० कडप्पा १४९)
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________________
३६४
जैनशिलालेख-सग्रह
[५६४
५६४ मुल्कि (दक्षिण कनडा, मैसूर)
कन्नड
[जैन बसदिके आगे मानस्तम्भको दक्षिण वाजूपर । इसमें तीर्थकरीकी प्रशसामें पांच श्लोक लिखे गये है।]
(इ० म० दक्षिण कनडा ९३)
मद्रास ( म्यूजियम)
कराड
[यह लेख शान्तिनाथको मूर्तिके पादपीठपर है। महाप्रधान ब्रहदेवणद्वारा स्थापित किये हुए येरग जिनालयमै यह मूर्ति थी। मूलसघ, कुण्डकुन्दान्वय, काणूरगण, तिन्त्रिणि गच्छके महामण्डलाचार्य सकलभद्र भट्टारक ब्रहदेवणके गुरु थे।
(इ० म० मद्रास ३२४)
मद्रास (म्युजियम)
काड व संस्कृत [ इस लेखमें साहित्यप्रिय साल्व-राजा द्वारा शास्त्रोक्त रीतिसे शान्तिनाथकी मूर्तिके निर्माणका तथा स्थापनाका निर्देश है। ]
(इ० म. मद्रास ३२५)
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३६५
-५६९ ] कोगलि बाटिक लेख
५६७ कोगलि (वेल्लारी, मैमूर)
कन्नड जैन मन्तिग्म एक मूर्तिके पाढपीठपर [चैत्र शु. १४, रविवार, परिवावि मवत्सरमें अनन्तवीर्यदेवके शिष्य आवयमसेट्टि-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका इस लेखमें निर्देश है।]
(इ० म० वेल्लारी १९०) ५६८ कीलक्कुडि ( मदुरा, मद्राम)
तमिल [गृहाम जैन मूर्तिक पादपीठपर।
गुणसैनदेवके गिप्य वर्षमानव पण्डितके शिप्य गुणसेनपेरियडिगल-द्वारा यह मूर्ति खुदवायी गयी ऐमा इन लेखमें निर्देश है। यहाँकी अन्य दो मूर्तियोंके लेखोमें भी गुणसेनदेवका उल्लेख है।]
[इ० म० मदुरा ३९]
कुण्डघाट (जि० माघीर, बिहार )
संस्कृत-गौीय जैन मन्दिरमें महावीरभूतिक पादपीठपर [ इस लेखमें वीरेश्वरक-द्वारा इस मूतिके दिये जानेका निर्देश है।]
[रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ९]
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३६६
जैनशिलालेख-संग्रह
[५७०
५७० पेनुकोण्ड (जि. अनन्तपुर, आन्ध्र)
कन्नड पार्श्वनाथमन्दिरके समीप एक कॅपके पास शिलापर [यह जिनभूषणभट्टारकदेवके शिष्य नागय्यका समाधि लेख है।]
[इ० म० अनन्तपुर १६७ ] ५७१ कायाम्पट्टि (मद्रास)
तमिल [ यह लेख शमणर् तिडल् नामक भग्न जिनमन्दिरके पास है। जयवीर पेरिलमैयान्-द्वारा तिश्वेण्णापिल् स्थित ऐन्नूरुवपेरुम्पल्लि (जिनमन्दिर) के आगे फर्श बनवानेका इसमे उल्लेख है।]
[इ० पु० ऋ० १०८३ पृ० १५१] ५७२-५७३ मलैयकोविल (मद्रास)
तमिल [इस लेखमे जैन आचार्य गुणसेनका नाम दिया है। साथमें परवादिनिदा यह उपाधि है । स्थानीय गुहामन्दिरके पास पाषाणपर यह लेख उत्कीर्ण है। ऐसा ही लेख तिरुमय्यमके सत्यगिरीश्वरमन्दिरके एक पापाणपर भी है।
[इ० पु० ० ४.५ पृ०१]
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-७६]
तेणिनः भाटिके लेख
३६७
५७४
तेणिमलै ( नदार)
तमिर [यह लेख एक पापातर उi जिनमूतिके नीचे है। यह मूर्ति (स्मेिणि) विल्न उदग नेस्वोट्टि-द्वारा उत्तीर्ण यो ऐना लेखमें कहा है।
[इ० पु० ० १० पृ० १]
५७५
पूण्डि (जि० उत्तर कटि, नद्रार)
तमिल पोस्निाय जैन मन्दिरकं पश्चिनी दीवालपर [इस लेखमें गम्वुवरामका उल्लेख है। वीरवारजिनालय नामक मन्दिरको स्थापनाका तया उसे एक गांव दान देनेका उल्लेख इस लेनमें है।
[इ० म० उत्तर अर्काट २१०] ५७६ मूडविदुरे (मैसूर)
कवड [ इस तानपत्रके तीन ग है । पहला भाग वृपम २२, गुरुवार, तारण नंवत्सरके दिनका है। इसमें चन्द्रकीतिदेव-द्वारा २४ तोर्यकरोको पूजाके लिए २०० होन्नु नर्पण किये जानेका उल्लेख है। यह रकम विष्णु क्लुम्बरको कर्ज दी गयी थी। उसने अपनी कुछ जमीन गिरवी रखकर इल रुमके याजके रूपमें १९ मन चावल देना स्वीगर किया था। दूसरा भाग कर्क ९, बुधवार, स्वर्भानु संवत्सरके दिनका है। इसमें श्रीधर पडि
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३६८ जैनशिलालेख-संग्रह
[५७४कोदि-द्वारा जमीन गिरवी रखकर २१०० वीररायफण कर्ज प्राप्त करनेका उल्लेख है । इसके व्याजके रूपमे २८ मुडे चावल देना स्वीकार किया था। इसका उपयोग गेरुसोप्पेको ललितादेवी-द्वारा स्थापित बसदिमें पूजाके लिए होना था। तीसरा भाग मेप १, रविवार, नन्दन संवत्सरके दिनका है। इसमें तीन वन्धुमो-द्वारा पाश्वनाथवस्तिसे कुछ कर्ज लेनेका तथा उसपर कुछ निश्चित रकम व्याज देनेका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ए ९]
५७७ मूडविदुरे ( मैसूर)
कन्नड [इस ताम्रपत्र-लेखमें चारुकीति पण्डितदेव-द्वारा निर्मित चण्डोन पार्श्वनाथवसदिके लिए कर्वरवलिके वर्मनन्द तथा उनके बन्धु कुगिय वमिसेट्टि-द्वारा ७०१ गद्याण दान दिये जानेका निर्देश है। लेखको तिषि वृषभ १५, रविवार, दुर्मुखि सवत्सर ऐसी दी है।
[रि० सा० ए० १९४०-४१ ० ए ७]
५७८८
निट्टर (मैसूर)
१ चित्रमानुसवत्सर ३द फाल्गुण ५ दशुद्ध ५ यु सोम ६ वार बोम्मण्ण ७ गलु स्वर्गस्त ८ राद निषिधि
[ इस निषिधिलेखमे फाल्गुन शु० ८, चित्रभानु सवत्सरके दिन बोम्मण्णके समाधिमरणका उल्लेख है।]
[ए. रि० मै० १९३० पृ० २५७]
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-५८०]
वललरका लेस
तललर ( मैमूर)
कन्नड १ मावसंवत्सरट भाव- २ ण शुद्ध त्रयोदसि - ३ दिवारदंदु स्वस्ति
४ श्रीमद् भजितेश्ध५ रदेवर महाजनं .. ६ . 'वागि " ७ " केशवढेवर बम्म- ८ ब्चे तोटडिं ९ ""वागि कमर.. १. कोण्ड " . येनुल्क
[यह लेख काफी अस्पष्ट हुआ है । श्रावण शु० १३, रविवार, भावमवत्सरके दिन किसी ग्रामके महाजनी द्वारा अजितेश्वर देवके मन्दिरके लिए कुछ भूमि दान दी गयी ऐसा इसमें उल्लेख है । केशवदेवकी कन्या वम्मके उद्यानके समीपकी २ कम्म जमीन भी इस दानमें सम्मिलित थी।
[ए. रि० में० १९३० पृ० ११३ ]
५८० अंवले (मैसूर)
कन्नड १ जिनचंटेव० २ . मुडि(पि) " [ इस छोटे-से लेखम जिनचन्द्रदेवके समगधिमरणका उल्लेख है।]
[एरि० मै० १९३० पृ० १३३ ]
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३७०
जैनशिलालेख-संग्रह
[५८१५८१-५८४ हैदरावाद (म्युजियम ) (आन्ध्र)
संस्कृत-कन्नड [ये चार मूर्तिलेख है जो घिसनेसे अस्पष्ट हुए है । एकमें मूलसपके किसी व्यक्तिका उल्लेख है। दूसरेमें एक मूर्तिकी स्थापना फाल्गुन शु० १५, वुधवार, शर्वरी सवत्सरके दिन किये जानेका उल्लेख है। तीसरेमें पण्डित मल्लिसेनका उल्लेख है। चौमें नेमिचन्द्रदेवके शिष्य कुमार मायिदेव महामण्डलेश्वर-द्वारा पार्श्वनाथ मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है। इन लेखोका समय निश्चित नही है। ]
[रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १४९, १५०, १५२, १५४ ]
भोसे ( सातारा, महाराष्ट्र)
कार [ इस लेखमें मूलसध-काणूरगणके वामनन्दि व्रतीश्वरका उल्लेख है। लेख बहुत घिस गया है । समय निश्चित नही है।]
[रि० इ० ए० १९४६-४७ ० २४३]
પદ
बेलगामे (मैसूर)
संस्कृत-कन्नड . गणप्राध्यमहीमृदकी श्री२ भन्याधिवर्धिष्णुशशाकमूर्तिः
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-५८९ ]
कारकल आदिके लेख
३७१
[ यह लेख एक जिनमूर्तिके पादपीठपर है और इसका आधा भाग अस्पष्ट हो जानेसे अचूरा हुआ है। इसमें किसी गणके एक आचार्यका उल्लेख रहा है । ]
[ ए०रि० मं० १९२९ पृ० १२६ ]
५८७
कारकल (मैसूर)
संस्कृत
[ यह लेख गोम्मट मूर्तिके सम्मुख ब्रह्मस्तम्भके समीप उत्कीर्ण पादुकाओंके पास है । लिपि आधुनिक है -
(मूल) श्रीगणधरपादम् । ]
[रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० ३३८ पृ० ५२ ]
५८८
कोप्पल ( रायचूर, मैसूर )
कन्नड
[ इस लेखमें चावय्य द्वारा जटासिंगनन्दि माचार्यको पादुकाओको स्थापनाका उल्लेख है । ]
[रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १६१ पृ० ४१ ]
५८६ वादंगट्टि ( धारवाड, मंसूर )
कन्नड
[ यह लेख बोम्मिसेट्टिके समाधिमरणका स्मारक है । ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १६९ पृ० २२]
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३७१
जैनशिलालेख-संग्रह
[१९०
५६० वालेहल्लि (धारवाड, मैसूर)
कन्नड
[ इस लेख में मार्गशिर १० १०, शुक्रवार, शुभकृत् सवत्सरके दिन माधवचन्द्रदेवके शिष्य नागगौडको पली सायिगवुडिके समाधिमरणका उल्लेख है। ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क० १९१ पृ० २३ ]
गुडुगुडि (धारवाड, मैसूर)
कन्नड [ यह लेख सरस्त (सूरस्त ) गणके किसी भाचार्यकी शिष्या नागवेके समाधिमरणका स्मारक है। ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ ३० २०० पृ०२४]
५६२ मन्तगि (धारवाड, मैसूर)
कन्नड [ यह लेख टूटा है। हरिकेसरिदेव, हरिकान्तदेव तथा तोयिमरस द्वारा विभिन्न वसदियोको दिये गये भूमिदानोका इसमें उल्लेख है। इनमें बकापुरको उम्पटाचण वसदि तथा कोन्तिमहादेविय बसदिका भी समावेश है।
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २०८ पृ० २५]
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-५९५]
मन्तगि आहिक लेख
५६३ मन्तगि (धारवाड, मैसूर)
कन्नत [ इस लेखमें फाल्गुन -?-बडुवार, मर्ववारि मवत्सरके दिन मूरस्तगणक सहलकोतिदेवके शिष्य तथा मल्लिगुग्डके महाप्रभु विठगीडके समाधिमरणका उल्लेख है।]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २१० पृ० २५ ]
५९४ येलवर्गि ( रायचूर, मैसूर)
कन्नड [ यह लेख एक भग्न भूतिके पादपीठपर है। इनमें मूलसंघ, मूरस्तगण तथा कन्निसेट्टिका उल्लेख है।]
[रि० इ० ए० १९५५-५६ ० २२५ पृ० ३९]
५९५ तिरुप्परंकुण्डम् (मदुर, मद्रास)
तमिल (2)- ब्राह्मी [ यहां पहाडीपर दो गुहाओमे निम्न पक्तियां खुदी हैं। ये गुहाएँ जैन धमणोंके लिए उत्कीर्ण की गयी थी
(१) न य (२) मा ता ये व (३) ब न तु वा ण को टु पि ता वा ग]
[रि० इ० ए० १९५१-५२ ० १४०-४२ पृ० २२]
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जैनशिलालेख-संग्रह
[५९६
देवत्तर (मदुरा, मद्रास)
बट्टेलतु [ यह लेख बहुत अस्पष्ट है। इसमें किसी पल्लि (जैन वसति) तथा तुग पल्लवरैयन्का उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९३१-३२ ० ५९ पृ० १२]
५६७
अक्कूर (धारवाड, मैसूर)
कन्नड [यह लेख वीरभद्र मन्दिरको एक भग्न मूतिके पादपीठपर है। इसमें शान्तिनाथ, सोमदेव तथा वसुधाकरदेवकी स्तुति की है। सातोन-रामोजद्वारा इस वसदिके निर्माणका उस्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई०७ पृ० ९२]
हावेरी (धारवाड, मैसूर)
कन्नड [ इस लेखमे मादरस-द्वारा जिनमन्दिरका सीढियां बनवाये जानेका उल्लेख है । इस समय यह लेख वीरभद्र मन्दिरमें लगा है। ] [रि० सा० ए० १९३२-३३ ३० ई० ९६ पृ० १०१]
५६६-६०२ इगलेश्वर (विजापूर, मैसूर)
कन्नड [ये चार समाधिलेख है। पहलेकी तिथि तारण, अमावास्या, शुक्रवार यह है । यह सत्यण्णकी समाधि है। दूसरा लेख अग्गलसेट्टिके पुत्र शान्ति
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-६०.] कागिनोल्लि आदिक लेख
३७५ सेट्टिको समाधिपर है। तिथि आगिर नंवत्सर, चैत्र १, मोमवार यह है । तीमरी ममावि गान्तिदेव मुनिकी है। तिथि प्रमादि संवत्लर, • “माम व ६, शुक्रवार यह है । चौयी ममाधि माघनन्दि मुनिपकी है। तिथि धावग शु० ११, शुक्रबार, युव मंवत्पर है।] [रि० सा० ए० १९३०-३१३० ई १५.१८ पृ० ८५ ]
६०३ कागिनोल्लि (धारवाह, मैनूर)
[यह लेख एक स्तम्नपर है। इसमें दानविनोद वैरिनारायण लकममण मादिन्यवर्माकी स्तुति की है तथा उसके द्वारा काणूरगण, मेपपापागगच्छकी वसदिमें एक स्तम्भको स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० ना० ए० १९३३-३४ क्र० ई० २८ पृ० १२१]
६०४ माकनूर (घारवाह, ममूर)
कन्नड [इन लेखमें खर मवलर, कार्तिक शु० (१), शुक्रवारके दिन मूल मंघन्मूरस्यगणके नन्दिभट्टारफके गिप्य बोपगोटके समाधिमरणा उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३४-३५ ० ई ५० पृ० १५१]
६०५ लक्कुण्डि (वारवाड, मैनूर )
[यह लेख एक भन्न जिनमुतिके पादपीठपर है। उसकी म्यापना विद्य नरेन्द्रशेनके निप्य वैश्य मिट्टिकी न्या राउन्चेने की यो।]
[रि० सा० १० ११:४-३५७०६८५० १५४ ]
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३७६
[१०
जैनशिलालेख संग्रह
६०६ देवर ( बिनापूर, मैसूर)
[इस लेखमें मूलसघ-देसिगण-इंगलेश्वर पलिके नेमिदेव आचार्यके शिष्य सिंगिसेट्टि, देविसेट्टि, पदुमन्वे तथा सिंगेयके समाधिमरणका उल्लेख है।
[रि० सा० ए० १९३६-३७ क्र० ई २२ पृ० १८३]
६०७ शिर (जमखंडी, मैसूर)
कमद [ इस लेखमें यापनीय सध-वृक्षमूलगणके कुसुमजिनालयमै कालिसेट्टिद्वारा पार्श्वनाथमूर्तिकी स्थापनाका वर्णन है।]
[रि० सा० ए० १९३८-३९ ० ६ ९८ पृ. २१९]
६०५ इडैयालम् (द० अर्कोट, गदास )
तमिल
[ यहां जैन मन्दिरके समीप पापाणोपर चरणपादुकाएं उत्कीर्ण है तथा निम्न नाम खुदे है -
(१) मल्लिपेणमुनीश्वर (२) विमलजिनदेव (३) अप्पाण्डार नायिनार् (४) इडयालम्के जिनदेवर ]
[रि० सा० ए० १९३८-३९ क्र. ३११-१४ पृ० ४२]
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-६१२ ]
तोरनगल्लु भाढिके लेख
६०६
तोरनगल्लु (बेल्लारी, मैसूर )
क्जट
[ यह लेख अकलकदेवके शिष्य वयिचिसेट्ठिके समाविमरणका स्मारक
है । ]
[रि० स० ए० १९२२-२३ क्र० ७२९ पृ० ५१ ]
६१०
लोकिकेरे ( बेल्लारी, मैसूर )
३७७
कमट
[ यह लेख श्री रत्नभूपण भट्टारकके प्रिय शिष्य लोकेयकेरे निवासी मरगोण्डके समाधिमरणका स्मारक है । ]
[रि० स० ए० १९२४-२५ क्र० २९९ पृ० ४९ ]
६११-६१२
गरग ( धारवाड, मैमूर )
कन्नड
[ यह लेख यापनीय सघ - कुमुदिगणके शान्तिवीरदेवके समाधिमरणका स्मारक है । तिथि श्रावण व० ४, गुरुवार, विकृति सवत्सर ऐसी दी है । यहींके एक अन्य लेखमें भी यापनीय मंघ- कुमुदिगणका उल्लेख है । अन्य विवरण लुप्त हुआ है । ]
[रि० स० ए० १९२५-२६ क्र० ४४१-४४२ पृ० ७६ ]
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३७८
जैनशिलालेख संग्रह
६१३
कुमठ (उत्तर कनडा, मैसूर )
कन्नड
[ ६१३
[ स्थानीय जैन वसदिमें पार्श्वनाथमूतिके पादपीठपर यह लेख है । मूलसघ, सुरस्तगण, चित्रकूट गच्छके मुकुन्ददेव द्वारा इस मूर्तिकी स्थापना की गयी थी। ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २३७ १० २७]
६१४
कुमठ (उत्तर कनडा, मैसूर )
काड
[ इस लेखमें पुष्य शु० ( ? ) क्रोधन सवत्सरके दिन क्राणूरगणके गजिय मलवारिदेवकी शिष्या कचलदेवीके समाधिमरणका उल्लेख है । इसके पतिका नाम त्रिभुवनवीर था तथा कदम्ब राजाओकी उपाधियां उसे दो गयी है । ]
[रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० २४२ ० २८ ]
६१५ रायद्रुग ( बेल्लारी, मैसूर )
कन्जट
[ यहांके निसिधि लेखो में निम्न व्यक्तियोके नाम है - मूलसधके चन्द्रभूति, आपनीय सघके चन्द्रेन्द्र, वादय्य तथा तम्मण्ण । एक लेसपर माघ शु० १ सोमवार, प्रमाथि सवत्सर यह तिथि दी है । ]
['रि० सा० ए० १९१३-१४ क्र० १०९ १० १२]
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-६१९]
कोगलि मादिक लेख
३७९
६१६-६१७ कोगलि (वेल्लारी, मैसूर)
क्वड
[इस मूर्तिलेखमें अनन्तवीर्यदेवके शिष्य मोडेयमसेट्टिद्वारा इस मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है। यहाँके एक स्तम्भपर जिनमूर्तियोके अभिपेकके लिए कई व्यक्तियो-द्वारा दिये गये दानोका उल्लेख है। प्रथम लेखकी तिथि चैत्र शु० १४ रविवार, परिधावि सवत्सर ऐसी दी है।]
[रि० सा० ए० १९१४-१५ क्र० ५२०-२१ पृ० ५३ ]
६१८ मुलगुन्द (धारवाड, मैसूर)
कवड
[ इस लेख में देसिगण-हनसोगे अन्वयक ललितकौति भट्टारकके शिष्य सहस्रकीतिकी मृत्युका उल्लेख है । मुस्लिमो द्वारा पार्श्वनाथवसदिपर आक्रमणके समय उनकी मृत्यु हुई थी।]
[रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई ९२ पृ०८]
६१४ कलकेरि (धारवाड, मैसूर )
कवड
[ इस लेखमें मूलसंघ-काणूरगण-तित्रिणी गच्छके भानुकीति सिद्धान्तदेवके शिष्य हलिगावुण्ड-द्वारा कलिकेरके अकलंकचन्द्रभट्टारकके लिए एक वसदिके निर्माण तथा पार्श्वनाथमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२७-२८ क्र० ई ५१ पृ० २४ ]
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जैनशिलालेख संग्रह
कम्मरचोडु (बेल्लारी, मैसूर)
[इस लेख में पद्मप्रभमलधारिदेवके प्रियशिष्य महावड्डव्यवहारि रायरसेट्टिको पत्नी चन्दव्वे-द्वारा इस जिनमूतिके जीर्णोद्धारका वर्णन है । इस समय यह मूति हिन्दू देवताके रूपमें पूजी जाती है।
[रि० सा० ए० १९१५-१६ ० ५६० पृ० ५५]
६२१-६२२ कोरशीवरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र)
काद [यह लेख एक स्तम्भपर है। काणूर गणके पुष्पनन्दि मलधारिदेवके शिष्य दावणन्दि आचार्य-धारा एक बसदिके निर्माणका इसमें उल्लेख है। यहींके एक अन्य लेसमें काणूरगणके ()माचार्यको शिष्या इरुगोल राजाकी रानी आलपदेवी-द्वारा इस वसदिकी रक्षाका उल्लेख है।]
[रि० सा. ए. १९१६-१७ ०२०-२१ पृ०७२]
६२३-६२६ अमरापुरम् (अनन्तपुर, आन्ध्र)
कसद [ यहाँक निसिविलेखोमें निम्न व्यक्तियोंके नाम है-(१) प्रभाचन्द्रदेवके शिष्य कोम्मसेट्टि (२) पोतोज तथा उसका पुत्र सयवि मारय (३) मूलसघ-देसियगणके बालेन्दु मलधारिदेवके शिष्य विस्पय तथा मारय (४) मूलसघ-सेनगणके प्रसिद्ध वादि भावसेन विद्यचक्रवति (५) इगलेश्वरके प्रभाचन्द्र भट्टारकके शिष्य बोम्मिसेट्टियर वाचय्य (६) बैरिसटिक पुत्र सम्बिसेट्टि । यहाँक एक अन्य लेखमें इगलेश्वरके त्रिभुवनकीति राउलके शिष्य देशियगणके बालेन्दु मलधारिदेव-द्वारा एक वसदिके निर्माणका उल्लेख है।] [रि० सा. ए. १९१६-१७ क्र.४१-४७ पृ०७४]
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-६३३]
तम्मदहल्लि आदिके लेख
३०
तम्मदहल्लि (अनन्तपुर, आन्ध्र)
कन्नड
[ इस लेखमें मूलसप-देसियगणके चारुकीति भट्टारकके शिष्य चन्द्राक भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९१६-१७ क्र० ४८ पृ० ७४ ]
६३१ रामपुरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र)
[ इस लेखमें मूलसघ-देसियगणके देवचन्द्रदेवके शिष्य बेट्टिसेट्टिके पुत्र कृष्णसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है। ]
[रि० सा० ए० १९१७-१८ क्र० ७१४ पृ०७४ ]
६३२ रामतीर्थम् (विजगापटम आन्ध्र)
तेलुगु [ यह लेख एक भग्नजिनमूतिके पादपीठपर है। ओगेरुमार्गस्थित चनुद (बो) लु निवासी प्र (मि) सेट्टि-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापना हुई थी।]
[रि० सा० ए० १९१७-१८ क्र० ८३२ पृ० ८५]
घेलर (द० अर्काट, मद्रास)
तमिल [इस लेखमें जयसेन-द्वारा इस जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है। लिपि उत्तरकालीन है।
[रि० सा० ए० १९१८-१९ क्र० १२४ पृ०५९]
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૩૮૨
जैन शिलालेख संग्रह
હૃષ્ટ निडुगल ( मैसूर )
कन्नद
[ इस लेसमें वेलुम्बट्टेके भन्यो-द्वारा- जो मूलसघदेसिंगण के नेमिचन्द्र भट्टारकके शिष्य थे- पादवनाथ मूर्तिको स्थापनाका उत्लेस है । ] [ ए० रि० मै० १९१८ पृ० ४५ ]
६३५-३३६
नेल्लिकर (द० कनटा, मैसूर )
सम्कृत-कन्नद
[ ६३४
[ यह लेख स्थानीय अनन्तनाथवमदिमे है । इसके मण्डपका निर्माण मजण को भूप-द्वारा किया गया ऐसा कहा है । यहींके दूसरे लेसमें इम मन्दिरका निर्माण ललितकोति भट्टारकदेवके शिष्य कल्याणकीर्तिदेवकी सम्पत्ति देवचन्द्र द्वारा किये जानेका उरलेस है । ]
[रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ५२०-५२१ पृ० ४८-४९ ]
६३७
मुनुगोडु (गुण्टूर, आन्न ) तेलुगु
[ इस लेपमें दिल्लम नायक द्वारा पृथिवीतिलकवसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है । ]
[रि० स० ए० १९२९-३० क्र० १९ ५०६ ]
६३८-६३६
लफ्कुण्डि ( धारवाड, मेसूर )
कन्नड
[ ये दो लेस है। एकमँ मूलसंघ - देवगणके शापदेव द्वारा एक जिन
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-६५०] जावूर प्रादिक लेख
३५३ मूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें बमुवैकवान्धवजिनालयकै त्रिभुवनतिलक शान्तिनायटेवके लिए एक दानशालाके ममर्पणका उल्लेख है।]
[रि० मा० ए० १९२६-२७ क्र० ई ३१, ३४ पृ० ३]
जावर (पारवाट, मैमूर)
कन्नड
[इम लेबमें बीचिसेट्टि-द्वारा सकलचन्द्र भट्टारक्को जावूर ग्रामके पुन दानका उल्लेख है। नविलगुन्दमें जयकीतिदेव-द्वारा निर्मित ज्वालामालिनीवमदिके लिए मल्लिदेवने पहले यह गांव अर्पण किया था।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९क० ई २२८ पृ० ५५]
६४१ कोमरगोप (धारवाड, मैसूर)
कन्नड [इस लेखमें त्रिभुनतिलक जिनालयमें आहारदानादिके लिए बालचन्द्र मिद्धान्तदेवके गिप्य पेगडे वासियण्गकी पत्नी चामिकव्वे द्वारा सुवर्णदानका उल्लेन्ब है।]
[रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई २३० पृ० ५५]
६४२-६५० गुण्डक्रेर्जिगि (विजापूर मैमूर)
कन्नड [यहां भग्न मूर्ति-पापाणीपर निम्न नाम बुदे है । (१) देशियगणइंगलेम्वर (वलि) के चन्द्रकीतिदेव तथा जयकीर्तिदेव (२) अपराजिता देवी (2) बृपभयन (४) पातालयक्ष (५) कुबेरयक्ष (E) महानमीयक्षी (७) अनन्तमती (८) चक्रेश्वरी (९) (शा) न्तनाथस्वामी ]
[रि० मा० ए० १९२९-३० क्र० ई १६-१७ पृ. ६६ ]
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जैन शिलालेख संग्रह
[९५१
६५१ हुलर ( विजापूर)
काद [इस लेखमें कण्डूर गणकी एक बसदिके लिए पुलुवरणिके महाजनोद्वारा भूमिदानका उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२९-३०१० ६७ ३० ई २९]
तम्मदहहि ( विजापूर, मैसूर)
कन्नड [ इस निसिघि लेखमें इगलेश्वरतीर्थकी वसदिके आचार्य देवचन्द्र भट्टारकके शिष्य वोगगावुण्डके समाधिमरणका उल्लेख है।
[रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ई ७० पृ० ६९]
६५३ तुम्बिगि ( विजापूर, मैसूर)
काद [ यह लेख पुष्य २०१०, सोमवार, ईश्वरसवत्सर, राज्यवर्प ८ का है । राजाका नाम लुप्त हुआ है । इस समय बोचुवनायककी निसिधिको स्थापना की गयीथी तथा तदर्थ पार्षदेवको कुछ भूमि अपित की गयी थी।
[रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ई०७४ पृ० ६९]
विन हिप्पर्गि (विनापूर, मैसूर)
कनढ
[इस लेखमें हनु रेमरस तथा रेचरस द्वारा ऋपियोंके आहारदानके लिए देवचन्द्र भट्टारकको कुछ भूमि दान देनेका उल्लेख है। इगलेश्वरके देवकीति भट्टारकका भी उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० ई ९१ पृ०७१]
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परिशिष्ट १
श्वेताम्बर लेखोंकी सूचना [पहले संग्रहको पद्धतिके अनुसार हम यहां श्वेताम्बर सम्प्रदायसे मम्वद्ध लेखोंकी सूचना दे रहे हैं । इस सूचीमें सरकारी प्रकाशनीमें प्रकाशित लेखोका अन्तर्भाव है। श्री० पूरणचन्द नाहरका प्राचीन जैनलेखसंग्रह, श्री० अगरचन्द नाहटाका बीकानेर जैनलेखमंग्रह, आदि अन्योम प्राय श्वेताम्वर सम्प्रदायके ही लेख है। इन लेखोकी सत्या ३५००से ऊपर है। इनका प्रस्तुत सुचीमें
उल्लेख आवश्यक नही समझा गया।] १ अकोटा (बडोदा, गुजरात )-८वीं सदी
____ रि० इ० ए० १९५२-५३ ० १६-१९ २ भनोटा - 8वी-१०वीं सदी
रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० २०-३५ तथा ३९-४८ ३ वडोदा (गुजरात)-सं०१०६३ =सन् १०३७
रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० १६९-७१ ४ भरतपुर ( राजस्थान)-मं० ११०६ =सन् २०५३
रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ३८८, ३९४ ५ श्रावू (राजस्थान) सं० १११९= सन् १०६३
ए. इ०९ पृ० १४८ ६ सिरोही (राजस्थान ) सं० ११३५ = सन् १०७६
रि० आ० स० १९२१-२२ पृ० ११९ ७ लाडोल (गुजरात)-सं० ११४० = सन् १०८४
रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ए २
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३८६
जैनशिलालेस-संग्रह
८ लाडोल-सं० ३१५६ सन् ११००
रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र. ए ३ ९ उदयपुर (राजस्थान)-सं० ११७६ = सन् १९२०
रि० मा० स० १९३०-३४ पृ० २३७ १० नाडोल (राजस्थान )-स० १२१३ = सन् १९५७
इ० ए०४१ पृ० २०२ ११ लसनक ( उत्तरप्रदेश)-सं० १२१६% मन् १९६०
रि० आ० स० १९१३-१४ पृ० २९ १२ जालोर ( राजस्थान )-सं० १२२१=सन् १९६५
ए० इ० ११ पृ० ५४ १३ मथुरा (उत्तरप्रदेश) सं० १२३१ = सन् ११७८
रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ५२६ १४ मद्रेशर (गुजरात)-सं० १३१५ = सन् १२५९
रि० इ० ए० १९५४-५५ ऋ० १६९ १५ मशर-सं० १३२३ - सन् १२६०
रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १७० १६ जालोर (राजस्थान)-सं० १३३१ - सन् १२७५
___ ए० इ० ३३ पृ० ४६ १७ आमरण ( रा नि)-सं० १३३३ -सन् १२७७
पूना ओरिएण्टलिस्ट ३ पृ० २५ १८ चितोड (राजस्थान )-सं० १३३४ सन् १२७८
__ रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० २३२-२३३ १६ उदयपुर ( राजस्थान )-स. १३३५-सन् १९७९
रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र. ४८५ २० वम्बई-सं० १३५६%सन् १३००
रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० २०१-३
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परिशिष्ट २१ उदयपुर-१३वीं सदी
___रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ५०७ २२ संभात (गुजरात)-सं० १४३०से सं० १९६८ सन् १३ से
मन् १९१२ रि० इ० ए० १९५५-५६ ऋ० १५९-१९५ २३ भावरी ( राजस्थान ) स० १९६८= सन् १४५३
रि० मा० स० १९२९-३० पृ० १८७ २१ मेडना (राजस्थान )-सं० १५० से १६८७
=सन् ११५ से १६३१
रि० मा० स० १९०९-१० पृ० १३३ २५ त्रिटिश म्यूजियम-सं०१५१ से १५८३
=सन् १६५९से सन् १५२७
रि० इ० ए० १९५४-५५ ० ५३०-५३८ २६ सिरोही ( राजस्थान )-सं० ११२४ =सन् १९६८
रि० आ० स० १९२१-२२ पृ० ११९ २७ बम्बई-सं० ३५२५ = सन् १९६९
रि० मा० स० १९३०-३४ पृ० २४९ २८ उदयपुर-पं० १५५६ = सन् १५००
रि० इ० ए० १९५४-५५ ० ४८६ २६ मौगामा ( राजस्थान)-सं० १५७१%=सन् ११५
रि० मा० स० १९२९-३० पृ० १८८ ३० अलवर (रावस्थान )-स. १५७३ = सन् १५१०
रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ३८६ ३१ अलवर-५० १६.६ = सन् १५७०
रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ३७८
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३८५
जैनशिलालेख-संग्रह
२ बैराट ( राजस्थान)-शक १५० सन् १८०
रि० आ० स० १९०९-१० १० १३२ ३३ थलवर-सं० १६४५= सन् १५८९
रि० इ० ए० १९५२-५३ ० ३७६ लखनऊ-स. १६५२ =सन् १५९६
रि० मा० स० १९१३-१४ पृ० २९ ३५ भद्रेशर (गुजरात)-सं० १६५९ = सन् १६०३
रि० इ० ए० १९५४-५५ क० १७० ३६ उदयपुर-सं० १६६२ = सन् १६०६
रि० मा०म० १९३०-३४ पृ० २३७ ३७ मद्रेशर-म० १९०५-१९३४= सन्१८४९-१८७६
रि० इ. ए. १९५४-५५ पृ० ४२
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परिशिष्ट २
जनेतर लेखोमे जैन व्यक्ति श्रादिके उल्लेख ।
( १ ) बेलगामे
कजट
सन् १२९४
[ इस लेख में यादव राजा रामचन्द्रके समय बल्लिंगावेके भेरुण्डस्वामीमन्दिरका उल्लेख है । इस मन्दिरके हेगडे पदपर वैद्य दासण्णकी स्थापना कर उसे कुछ भूमि अर्पित की गयी थी । इस भूमिमें प्रथमसेनवसदि ( जिनमन्दिर ) की कुछ भूमि भी शामिल कर दी गयी थी। ]
[ ए०रि० मं० १९२९ पृ० १२४ ]
(२-६) देवगेरी तथा कोलूर (जि० घारवाड, मंसूर ) ( ११वीं - १३वी सदी ) - कन्नड
पहला लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल ( सोमेश्वर प्रथम ) के राज्यकालका है । इनके अधीन बामबूर १४० प्रदेशमं जीमूतवाहन अन्वयमें उत्पन्न हुआ कलियम्मरम शासन कर रहा था । इसे सम्यक्त्वचूडामणि तथा पद्मावतीलब्धवरप्रसाद ये विशेषण दिये है । इसने कोलूरके कलिदेवेश्वरके मन्दिरमें दीपदानके लिए कुछ दान दिया था । इस दानकी तिथि पीप शु० ५, शक ९६७, उत्तरायण सक्रान्ति थी ।
दूमरे लेखकी तिथि शक ९९७, पोप शु० १४, उत्तरायण सक्रान्ति थी । इस समय चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्ल सोमेश्वर द्वितीयका राज्य चल रहा था। इसमें भी कलियम्मरनके शासनका उल्लेख है तथा देवगेरीके कांकलेश्वर मन्दिरके लिए दण्डनायक वण्णमय्य द्वारा कुछ दान दिये
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३९०
जैनशिलालेख - सग्रह
जानेका निर्देश है। इसी लेखके दूसरे भागमे उसी कुलके एक दूसरे कलियम्मरसका उल्लेख है जो चालुक्य सम्राट् भूलोकमल्ल सोमेश्वर तृतीयका सामन्त था । इसने सम्राट्के राज्यके ९ वें वर्ष अर्थात् शक १०५६ में उक्त मन्दिरको कुछ दान दिया था । इस कलियम्मरसने माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी ।
तीसरे लेखमें उक्त कलियम्मरस ( द्वितीय ) का उल्लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( पष्ठ ) के राज्यके दसवें वर्ष ( सन् १०८५ ) में किया है जब उसने कोलूरमें कुछ धार्मिक दान दिया था ।
चौथा लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( पष्ठ ) के राज्यके ४६ वें वर्ष (स० ११२१ ) का है । इसका सामन्त हेमडियरस था जो उक्त कलियम्मरस (द्वितीय) का पुत्र था । इसने कोलूरमें त्रिभुवनेश्वर तथा भैरबके मन्दिरोको कुछ दान दिया था । तथा माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी ।
पांचवा लेख यादव राजा सिंघण ( तेरहवी सदीका पूर्वार्ध) के राज्यकालका है । इसका सामन्त मल्लिदेवरस था जो उक्त जीमूतवाहन अन्वयमें उत्पन्न हुआ था । इसने कोल्लूरके क्षेत्रपाल मन्दिरको कुछ दान दिया था ।
यहाँ द्रष्टव्य है कि कलियम्मरस (द्वितीय), हेमडियरस तथा मल्लि देवरस शैव थे फिर भी उन्हें पद्मावती लब्धवरप्रसाद यह पुराना विशेषण दिया है।
छठा लेख विक्रमादित्य ( पष्ठ ) के राज्यके ४थे वर्ष (सन् १०७९) का है । इसके अधीन नोलम्बवाडि तथा सान्तलिगे प्रदेशपर चैलाक्यमल्ल ( जयसिंह तृतीय ) शासन कर रहा था तथा वनवासि प्रदेशपर बलदेवय्पका शासन था । वलदेवय्यको जिनचरणकमलभृग यह विशेषण दिया है । इसके अधीन कुछ करोका उत्पन्न कोलूरके ग्रामेश्वर मन्दिर के लिए किसी haarचार्यको दान दिया था । ]
[ ० ० १९० १७९-१९७ ]
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परिशिष्ट
(७) शिवमन्दिर, नीडूर ( जि० तजोर, मद्रास)
तमिल - सन् १११६
[ यह लेख कुलोत्तुंग चोलके राज्यके ४६ वे वर्षमें लिखा गया था । इसमे कण्डन् माघवन् - द्वारा शोष्णचाररिवार ( गणपति ) देवका मन्दिर बनवानेका निर्देश है । यह माघवन् कुलत्तूर स्थानका शामक था जहाँ अमिदसागर (अमृतसागर ) मुनिने कारिंग ( याप्परुगलक्कारिंगे ) नामक छन्द शास्त्र तमिल भाषामे लिखा था । इस रचनाके लिए जिनने प्रेरणा की वे सज्जन माघवन्के चाचा ( अथवा ससुर ) थे ।
इस छन्द शास्त्रमे ४४ कारिकाएँ हैं तथा उरुप्पियल, गेय्युलियल एव ओलिवियल् ये तीन प्रकरण है । इसपर गुणसागरने टोका लिखी है । ] [ ए० इ० १८ पृ० ६४ ]
(८) कमलापुर और हंपीके बीच कृष्णमन्दिरके समीप एक मण्डपमे
३९१
शक १३३२ = सन् १४१०, कन्नड
[ यह लेख मधुर नामक जैन कविने लिखा है जो वानि कुलमें उत्पन्न हुआ था । लेखमें देवरायके मन्त्री लक्ष्मीघर-द्वारा महागणनाथ ( शिव ) की स्थापनाका वर्णन है । मधुरने घर्मनायपुराण तथा गुम्मटाष्टक लिखा है । यह हरिहररायके मन्त्री मुहृदण्डेश्वरका माश्रित था । इस लेख में लक्ष्मीधर द्वारा मधुरको हाथी, घोडे, रत्न, जमीन आदि दान देनेका उल्लेख है । ]
[ इ० ए० ५५, १९२६ पृ० ७७ ]
(१) गोकर्ण ( उत्तर कनडा )
१५वीं सी, कन्नड
[ इस लेखमे महाबलेश्वर मन्दिरमें अन्नसत्र तथा अन्यपूजाके लिए कुछ
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३९२
जैनशिलालेख-सग्रह
दान दिये जानेका उल्लेख है। दानको रक्षाके लिए कहे गये शापात्मक वर्णनमे गैरसोप्पेकी हिरियवस्तिके चण्डोम पार्श्वनाथका भी उल्लेख है।]
[रि० सा० ए० १९३९-४० ई० ऋ० १०८ पृ. २३७] (१०) वोराम्बुधि ताम्रपत्र (मैसूर)
शक १४८ = सन् १५६७, कन्नड [जिनशासनको प्रशसासे इस ताम्रपत्रका प्रारम्भ होता है । कुलोत्तुंग विक्रमरायके पुत्र चगालराय-द्वारा भारद्वाजगोत्रके ब्राह्मण नरसीभट्टको वीराम्बुधि नामक ग्राम दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है। धानको तिथि माघ शु० १०, शक १४८९, सर्वजित् सवत्सर ऐसी दी है।]
[ए. रि० मे० १९२५ पृ० ९३ ]
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परिशिष्ट ३
नागपुर-प्रतिमा लेखसंग्रह इस परिशिष्टमें हम नागपुरके समस्त प्रतिमालेखोका सकलन दे रहे है । इन लेखोका सग्रह श्री शान्तिकुमारजी ठवली (वर्तमान निवासदेवलगांव राजा, जि. बुलडाणा, महाराष्ट्र) ने कोई २७ वर्ष पहले सन् १९३५ में किया था। आपने यह सग्रह नागपुरके लोकप्रिय जैन श्रीमान् स्व० मवाई सिंगई श्री० नेमलालजी पासूसावजीकी स्मृतिमे अपित किया था। इस सग्रहके लिए स्व० पूज्य व्र० शीतलप्रसादजीने भूमिका लिखी थी जा इस प्रकार थी- "जैनधर्मके इतिहासके निर्माणके लिए इस वातकी परम आवश्यक्ता है कि सर्व जैन स्मारकोक लेख सग्रहीत किये जावें-इन स्मारको प्रतिमाओके लेख, यन्त्रोके लेख, अन्य शिलालेख तया शास्त्रोकी प्रशस्तियाँ आवश्यक है - श्री शान्तिकुमार व्वली नागपुरने नागपुरके सर्व दिगम्बर जैन मन्दिर व चैत्यालयोके लेखोको लिखकर पुस्तकाकार सम्पादन करने में जो परिश्रम उठाया है वह सराहनीय है। अच्छा हो यदि इन मूर्तियोके लेखोके साथ यत्रोके लेख और शास्त्रको प्रशस्तियोका विवरण प्रकट किया जावे। एक सक्षिप्त तालिका ऐसी दी जावे कि लेखरहित प्रतिमाएं इतनी व अमुक सवत्की इतनी-जिससे पाठकको प्राचीनता व अर्वाचीनताका पता तुरत लग जावे । ऐसी पुस्तकोंसे भविष्यमें बहुत काम निकलेगा - आशा है ठवली महोदय मध्यप्रान्त व वरारके सर्व स्थानोके लेखोके सग्रहका प्रयत्न करेंगे । अन्य उत्साही युवकोको अपने-अपने प्रान्तोके लेखोको प्रकट करना चाहिए जिससे किसी समय भारतीय दि. जैन लेख सग्रह पुस्तक निर्माण हो सके ।
प्र० सीतल ९-३-१९३६ नागपुर"
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३९४
जैनशिलालेख-संग्रह इम पुस्तिकाका प्रकाशन अन्यान्य कारणोसे अवतक नही हो सका था। अत हमने इस परिशिष्टमे इसका पुन सपादन किया है। सग्राहकने मूल लेख मन्दिरोके क्रमसे अलग-अलग सग्रहीत किये थे तथा यन्त्रांके लेखोके परिशिष्ट अन्तमे दिये थे। हमने मन्दिरी तथा मूर्तियोका विवरण अलग दिया है तथा लेख समयक्रमसे अलग दिये है । इन लेखाके विशेष नामोका समावेश सूचीमे कर दिया है तथा वहाँ लेखाकके साथ (ना.) यह सकेत दिया है।
नागपुर नगरका अस्तित्व यद्यपि राष्ट्रकूट साम्राज्यके समयसे ज्ञात होता है तथापि इसे भीमला राजा रघूजी के समयसे- सन् १७३४ से प्रधान स्थान प्राप्त हुआ है । तवसे १९५६ तक यह मध्यप्रदेशको राजधानी रही है। नागपुरके सभी मन्दिर प्राय भोसला राजामओके राज्यमें ही बने है किन्तु इनमे कई प्रतिमाएं अन्य स्थानोसे भी लायी गयी है । इस नगरमें कुल ९ मन्दिर है । विदर्भको रीतिके अनुसार यहाँके प्रमुख जन व्यक्तियोके घरोमें भी छोटे छोटे चैत्यालय हैं। ऐसे गृहचैत्यालयोकी सख्या ३७ है। इन सब स्थानोम कुल मिलाकर ६४६ मूर्तियां आदि है जिनमें धातुकी ४४० तथा पापाणकी २०६ है। इन मूतियो आदिके ४१ प्रकार है जिनकी सख्या इस प्रकार है- (१) आदिनाथ ४३ (२) अजितनाथ १३ (३) सम्भवनाथ १ (४) सुमतिनाथ २ (५) पद्मप्रभ ७ (६) सुपाश्र्धनाय १२ (७) चन्द्रप्रभ ४३ (८) पुष्पदन्त ३ (९) तलनाथ ५ (१०) श्रेयास ३ (११) वासुपूज्य ६ (१२) अनन्तनाथ २ (१३) धर्मनाथ ३ (१४) शान्तिनाथ १० (१५) मरनाथ : (१६) मुनिसुव्रत १३ (१७) नेमिनाथ १४ (१८) पार्श्वनाथ १३३ (१९) महावीर १० (२०) चौबीसी ३४ (२१) पचमेरु ९ (२२) नन्दीश्वर ७ (२३) सिद्ध ४ (२४) वाहुवली ६ (२५) रत्नत्रयमूर्ति ३ (२६) पचपरमेष्ठि १ (२७) यक्षिणी २७ (२८) सरस्वती ३ (२९) क्षेत्रपाल १ (३०) सप्त ऋपि १ (३१) चौसठ ऋपि १ (३२) गुरुपादुका २ (३३) रलत्रय यन्त्र ५ (३४) सम्यग्दर्शन यन्त्र ४ (३५) सम्यकचारित्र
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परिशिष्ट-नागपुरके लेख
३१५ यन्त्र ६ (३) दशलक्षण यन्त्र ६ (३७) पोडशकारण यन्त्र २ (३८) कलिकुण्ड यन्त्र १ (१९) सिद्ध यन्त्र १ (४०) नवग्रह यन्त्र १ (४१) जलयात्रा यन्त्र १। इन मतियो मादिमें ५२९ के पादपीठो नयवा किनारीपर लेख है। ऐने लेखोकी सत्ता ३२४ है (जहां दो भयवा अधिक मूर्तियांपर एक ही लेख है वहां हमने उम लेखको एक लेखक रूपमें ही गिना है।)
समयको दृष्टिने ये लेख आठ नदियों में इस प्रकार विभक्त है - विक्रम तेरहवी सदी ४, पन्द्रहवी सदी ३, सोलहवी सदी २२, सत्रहवीं सदी ५१, मारहवी सदी ७२, उनीमवी नदी ६९ तया वीसवी सदा १००।
इन सब लेखोकी भापा ममुद्ध सस्कृत है। कुछ लेखोंमें नागपुरकी स्थानीय भापामो-हिन्दी तथा मराठीका अशत. प्रयोग हुआ है (लेख क्र० २०६,२८३,२६७,२६९,२७८,२८५) किन्तु गुद्ध हिन्दी या मराठीमें कोई लेख नहीं है। एक लेख (क्र. ७३) कन्नडम तया एक (क्र. ३१९) उर्दूमें है किन्तु इनका वाचन प्राप्त नहीं हो सका। __ मूर्तिप्रतिष्ठाके स्थानाके सोलह नान उल्लिखित है - नागपुर (क्र. १५२,१९०-२,२१२ २१५,२१८,२२०-१,२२७,२२९ २३१,२३३, २३५, २४२,२४७,२४९,२५०,२५५-७,२५९,२६१,२७९,२८२,२९५) कारजा (क्र. ८१,१२५,१५७-८,२१०), सिरनाम (क्र० २०२,२०४), रामटेक (क्र०७३,२५३ ) भौती (क्र० १४३ ), तजेगाव (ऋ० १०६) उमरावती (क० १९९), इंगोली (क्र० २३२), सजालपुर (०७०) बहादरपुर ( क्र० ६५ ), अबडनगर (क्र० १३०) सिबनी (० २८०) छपारा (क्र० २८४), कामठी (क्र० १५४ ), सावरगांव (क० २९३), सवाई जयनगर (क्र. १९३)।
प्रतिष्ठाकर्ता व्यक्तियोंकी पन्द्रह जातियोका उल्लेख मिलता हैराहकवाल (क्र०९), अगरवाल (क्र० ५३ , गंगराडा (क्र. १०), गोलसिंधारा (क्र. ७३ ), पल्लीवाल (क्र० ५१), गुजरपल्लीवाल (क्र० २१), पद्मावती पल्लीवाल (क्र. ११४), उन्जेनीपल्लीवाल
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३६६
जैनशिलालेस-संग्रह (क्र० १०८,१२०,१४३), श्रीश्रीमाल (क्र० ४९-५०) हुबड (ऋ० ८, २०,३०,३९,८६), गोलापूव (क्र. ६८,२९१), परवार (क० ६९,१८८, १९१-९२,२५०,२५४,२६३,२७२,२८५), खडेलवाल (क० १०७,२८२) सैतवाल (क्र० ९५,२७९,२८६,२८७ ), वषेरवाल (क्र० १४, २९,३८, ४४,४६,५५-६,६६,८०-८२,८८-९०,९२,९४,९६,१२२, १२५, १३०-१, १३५,१५७,१८२,१९८,२०१,२०२,२०४,२२७)।
प्रतियापक आचार्य अधिकाश मूलसपके सेनगण तथा बलात्कारगणके थे, कापासपकं नन्दीचटगच्छके कुछ आचार्योकं उल्लेख भी है। इन उल्लेखोका उपयोग हमारे ग्रन्थ 'भट्टारक सम्प्रदाय' में किया गया है। उससे इन भट्टारकोके वारेमे अन्य जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
सपत् १५४८ के दो लेस (क्र० १८,१९) विशेष स्पसे उल्लेखनीय है। इनमें पहला लेख कोई ७७ मूर्तियोपर है। ये मूर्तियां मुडासा शहरमें शिवसिंहके राज्यकालमै सेठ जीवराज पापडीवालने प्रतिष्ठित करवायी थी। इस समारोहके प्रमुख भट्टारक जिनचन्द्र थे। इस समारोहमे प्रतिष्ठित मूर्तियां प्रायः प्रत्येक दिगम्बर जैन मन्दिरमें पायी जाती है।
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मूल लेख
१ संमत १२०१ वैसास वदी तीन । ( विवरण क्र० २ सं० १२३४ म तु हा ले (१) ( विवरण क्र० ३ समत १२६२ माल | ( विवरण क्र० ११५ ) ४ समत १२६९ वर्ष आषाढ सुट्टी ३ ५ समत १४५७ वर्षे बैसाख सुदी ६
| ( विवरण क्र० ११४ ) श्रीमृल्सव म० देव साह माणिक्चद | ( विवरण क्र० २३१, २३२ ) ६ मूलसंव म० धर्मभूषणोपदेशात् समत
श्राजिन
१४६५ वर्षे
।
१४० )
१६६ )
( विवरण क्र० ३०२ )
७ सवन १४८५१ ( विवरण क्र० ४० ) ८ संवत १५१० वर्ष माहमासे शुक्लाक्षे ५ रचौ श्रीमृलस घे सरस्वतीगच्छे बळात्कारगणे कुंदकुंद्राचार्यान्वये म० पद्मनदि तरपट्टे भ० श्रीसकल्कोविं तत् शिष्य प्र० जिनढाम हुबडज्ञानिय सा० तेजु ना० मलाई सुत हरिचंद्र मा० नागाई सुख गोविंद मा० बजाई | ( विवरण क्र० १६७ )
९ सं० १५०१ वर्षे वैसास वदि २ श्रीमू सवे मरस्त्रतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीविद्यानंदिगुरूपदेशात् श्रीराहकवालातिय भार्या अहिवढं सुत वेणा मार्या वनादे कारितं श्राचद्रप्रमचतुर्विशति नित्यं प्रणमति ॥ श्रीशुभं ॥ ( विवरण क्र० १५७ ) १० समत १५२४ मूलसग सेनगणो माणिकसेनगुरु गगराडा मालसेटा भार्या तानाइ । ( विवरण क्र० ८० )
१५ समत १५३१ फागुण चढी ५० । ( विवरण क्र० १८८ ) १२ संमत १५३५ श्रीमू० म० भूवनकीर्तिस्तत्पट्टे म० ज्ञानभूषणस्तदुपदेशात् स० दि० समाज । ( विवरण क्र० ११३ )
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३१६
जैनशिलालेख-संग्रह १३ स० १५३५ वर्षे पौस वदी ३ श्रीमूलस म० सकलकीर्तिस्त.
म. श्रीभुवनकीर्तिस्त० भ० श्रीज्ञानभूपणगुरूपरेशात चांगा भार्या भूसनदे वढासा मा० तानी जी वासपूज्य ।
(विवरण क्र० १६०) १५ [सक ] १४०२ व० श्रीक ' श ज्ञात बघेरवाल · गोत्र सं०
पामधन स. जेनराज मातापुत्र प्रणमंति (विवरण क्र० ४१३) १५ स. १५४३ श्रीमूलसंग म० श्रीमुवनकोतिस्तत्प? श्रीज्ञानभूपणगुरूपदेशात् "दिवसी मा० गुणा सुत "मा० नामलाई ।
(विवरण क्र. ३८०) १६ स. १५४३ · पदममी "टन ( विवरण क्र० ४३३) १७ समत १५४५ का ज्येष । (विवरण क्र. ३४३) १८ सवत १५४८ वर्षे वैसास सुदी ३ श्रीमूलसधे मटारक श्रीजिन
चढत्व माह जीवराज पापढीवाल नित्य प्रणमंति शहर मुडासा राजा स्योमिव । (विवरण क्र० १-३,१०-२६,४६-४८,८७,९१
१०२,१४६-१५६,२३८-२६४,३६७-६९) १९ समत १५४८ वरपे वैग्नाखसुदी ३ श्रीमूलसचे मटारकजी
श्रीमानुचद्रदय माह जीवराज पापटीवाल निस्य प्रगति
सहर मुढामा श्रीराजा मोसिंघ । (विवरण क्र. २१८,२१९) २० ॐनम स० १.५२ वर्षे ज्येष्ठ वाद ७ शुक्र श्रीमूलमधे म०
भुवनकार्तिस्त० म० श्रीज्ञानभूप रूपाशात् हु. ० पर्वत मा० देऊ मु० राजा मा० शला सुन कर्ममी प्रणति श्रीमुम
तिनाय प्रणमनि । (विवरण क्र. १६५) २१ मा १४२५ मृल्सचे सेनगणे म० माणिकसेन उपदेशात् गुजर
पलियालमानि संघवी नेमा ( विवरण ऋ० १३७) २ मा १५६१ वर्षे माग्य सुदि १० धुधो श्रामूलसधे म० श्री
जानभूषण त० म० श्रीविजयकोनिगुरूपदेशात् ३० बाडण स.
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नागपुरके लेस
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क० राजा मा० माणिकी सु. कान्हा मा० रूपी भ्रा० गोईया मा० मरगदिभ्रा. श्रीरत्नत्रय नमनि । (विवरण ऋ० १६८) संमत १५६१ वर्ष फागुण सुदी " (विवरण क्र. ११७) स० १०७८ मू० म० धर्मभूषण । (विवरण क्र० ३८३) संमत १५०२ (विवरण क्र. ४८२) सं० १५३ । (विवरण क्र० १२१) स० १५८३ ती १३ । (विवरण क० ४५३ ) संमत १५८४ श्री मू. स भ विजयकीर्ति तत्पट्टे म. शुमचद्रदेवोपदेशात् ब्रह्म श्रीशांता बेलीबाई-ति प्रणमति । (विवरण क्र २०५) संमन ६०० वर्षे फागुण वढी ५ शुक्र श्रीमूलसगे भट्टारक श्रीरामकीर्ति प्रतिष्ठित सेनगणे बघेरवाल ज्ञातिय चवरियागोने सा. धाऊजी मार्या बोपाई सुत सा माणिक मार्या पदमाई भ्राता रतन भार्या पसाई पुत्र धाऊजी एते श्रासुपार्श्वनाथ नित्यं प्रणमति । (विवरण क ३०९) संवत १६०० वर्ष वैमाख वढी ३ गुरु श्रीमूलसंधे म श्रीशुमचटगुरूपदेशात् हूँ सोस्वरा गोत्रे सा जीना मा माली सु नाका भा नाकदे भ्रा जगा भा ललितादे श्रा-गर एते सर्व निस्यं प्रणमति । (विवरण क्र ४६) [सं.] १६०८ उपा-1 (विवरण क्र. ४८४) समत १६०६ फालगुण ९ दिन-। (विवरण क्र १३९) संवत १६११ ते रागविदे (१) प्रणमति। (विवरण क्र ४१०) समत १६१४ सेनगण धरमाई बापाई चांगामा । (विवरण क्र २००,३६१) सं० १६१५ मा० १३। (विवरण क्र १६०) स. १६१६ । (विवरण क्र ५६१)
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जैनशिलालेख-संग्रह सके १४८५ मू० स-1 (विबरण क्र २२५) मक १४.७ प्रजापतसवत्सरे श्रीम. सरस्वती वलात्कार म. धर्मचद्राणाम् उपदेशात ज्ञाति बघेरवाल भुरा गोत्रे सा रतन स गर्या पुनली लसमाई-प्रणमंति । (विवरण क्र ४३४ ) स. १६२५ भाषाढ शुद्धिर श्रीमलसधे ब्रह्म श्रीहस ब्रह्म श्रीराजपालोपदेशात् हुबड ज्ञातौ सा. समराज भा. लोकोई स. भासजा मा बाकाई । ( विवरण क्र २६८) श्रोमूलसंघ संमत १६३१ वर्षे फाग सुदी १० सोमे म श्रीगुणकीर्तिगुरूपदेशात् स कर मार्या सहागदेई स वीरदास मा ताकमई श्रीअजितनाथ जिन प्रणमंति । (विवरण क्र. ३०७) समत १६३६ मगनोजी पु (२) (विवरण क्र ३०६) सबत् १६३६ श्रीकाष्ठासंघे भ० विद्याभूपण प्रतिष्ठितं भुवड सा. जयवतमार्या तसमादे सु-जीवराजला धनराजसा प्रणपालसा नित्य प्रणमंति । ( विवरण क्र ४०८) शक १५०१ मा विथी ८ काटासधे म. श्रीश्रीभूषणमदुपदेशात प० जयवा ( विवरण क्र ४३६ ) सफ १५०३ वृषा नाम सबस्सरे फागुण सुदि ७ श्रीमूलमंघ ब. म धर्मपणोपदेशात् बघेरवाला ति ठवलागोने स पासुमा मार्या या रुपाई तयो पुत्री आपुसा मार्या लिंवाई रामासा भार्या चोपाई एते प्रणमंति । (विवरण क्र ४२१) सकं १५०६ माघ वदी १ गोत्र चवरिया गुणासा। ( विवरण क्र ३९१) समत १६४५ वैसाख सुदी ७ सोमवार श्रीकाप्टासंघे लाडवागढगणे पुष्करगच्छे भट्टारकलीप्रतापकीति तस्य आम्नाये यधेर
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नागपुरके लेख चालज्ञातिये बोरखंडियागोत्रे संगई पुजासा स० धवाई प्रणमति ।
(विवरण क्र० ४५०) संमत १६४६ वर्षे श्रीमलसग महारक श्री"वीर तपट्टे म. श्री सेन तस्य शिष्य पडित श्रीगजा उपदेशात् साह बावजी भार्या दामाई तयो पुत्र गकुरमाह तस्य भार्या पेमाई तयो सुव तुवाजीसाह मार्या लखमाई तेषां नित्यं प्रणमति साप फागुण शुदी १० गरुवासरे श्रीचितामणी पार्श्वनाथचैत्यालये प्रतिष्ठित ॥ शुभ मवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ जे पूजता ते भवतु ॥ जयस्तु ।
(विवरण क्र० ३११) स. १६४९ फा शु १३ मू बलात्कार. म पनकीर्ति उपदेशात् । (विवरण क्र० ४३०) [सं०] १६५२ वैसाख सुद १४ श्रीमूलसघे बलात्कारगणे पद्मकीर्ति विद्याभूषण हेमकीति सदुपदेशात् श्रीश्रीमाल' " (विवरण क्र. २६६, २६९) समत १६५३ वैसाख शुद्ध १४ श्रीमलसघे बलात्कारगणे मट्टारक हेमकीर्ति उपदेशात् श्री श्रीमालज्ञाती महासा नित्य प्रणमतु (विवरण क्र. ४७५) शके १५१९ मन्मथनामसंवत्सरे बैसाख सुदि त्रयोदशीदिने घटापित श्रीमलसघे सरस्वतिगच्छे बलात्कारगणे कुंदकुदाचार्यान्वये म० श्रीधर्मभूषणोपदेशात् पल्लीवालज्ञातीय स. वायासा तस्य भार्या गगाई तयो पुत्र स लखमसी तस्य भार्या द्वौ गोमाई लालाई तेषा पुत्र द्वौ प्रथमपुत्र स मोतासा द्वितीय नेमा प्रणमति । (विवरण क्र. १२४) श्रीमूलसधे सेनगणे वृषमसेनगणधरान्वये श्रीसम्मतमद् लक्ष्मीसेनमहारकउपदेशात् सके १५२१ फागुण सुद पा रवौ सघवी
सोमसेठी श्रीमंगल । (विवरण क्र. १३०) २६
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जैनशिलालेख - सग्रह
संवत् १६५८ वर्षे श्राषाढ वदी' 'अगरवालज्ञा० । ( विवरण
क्र०४८३ ) ।
शके १५२५ वर्षे शुभकृत् नाम संवत्सरे ज्येष्ठशुक्लपक्षे १३ तिथौ प्रतिष्ठिता । ( विवरण क्र० २७१ )
संमत १६६० वर्षे फाल्गुण शुद्धि १० श्रीकाटालघे लाडबाग - डगच्छे म० श्रीप्रतापकीति नंदिसंघे बघेरवालज्ञातिय-सा मारया चीना परिनवाई तयो पुत्र सा० नोगु मा परिहाई श्रीपद्मावति प्रणमति श्रीकाष्टासघे नटितटगच्छे महारक श्री श्री श्रीभूषण प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० ४१४ )
शक १५२५ वर्षे श्रीमूलसघे सेनगणे श्रीमनवृपमसेनगणान्वये म० श्रीलोमसेन तत्पट्टे म० श्रीमाणिकसेन तत्पट्टे भ० श्रीगुणमद्रतपट्टे भ० श्रीगुणसेन उपदेशात् बघेरवालज्ञातीय खटवड - गात्रे स० श्रीहरकसा मार्या गोनाई तयो सुव स० गणासा भार्या कढताई येते श्रीरस्तत्रयचतुर्विंशति प्रणमति । ( विचरण क्र० १९० )
समत १६६० वर्षे फाग सुट ॥ गु० श्री एतत्-वा- मुन्नाबाई श्रीशीतलनाथचिवका म०-1 ( विवरण क्र० २७८ )
सक १५२६ माहो सुदृ १३ भट्टारक हेमकीर्ति उपदेशात् प्रतिष्टित सिकसिवी-वाजी सवाल तुरासु (१) रुपा नित्यं प्रणमति । ( विवरण क्र० ४३९ )
सवत १६६३ वर्षे "श्रीमूलसत्रे बेरान्वये प्रतिष्टित ( विवरण क्र० ४८६ )
भ० जगतकीर्ति सदुपदेशात्
समत १६६४ ''महाराजाधिराज श्रीचन्द्रकोर्ति-तलट्टे महारक देवेन्द्रकीर्तिजी आम्नाय सरस्वतीगच्छे वलात्कारगणे कुदकु ढाचार्यान्वय प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० २७ ) समत १६६९ चैत्रसुद १५ रवौ मूलसषे कुं० भ० यशोकीर्ति
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जैनशिलालेख-संग्रह लावाई इति सिद्धपत्रं नित्य प्रणमंति । शुभं भूयात् । (विवरण क्र. २७५) शक १५७४-सुखनाम मू० स० म० श्रीधर्मभूषण उपदेशात् तिमासा मार्या वखाई तयो पुत्र भूतसा त. देवाई। (विवरण क. १८४) शके १५८० माघ सुदी ५ सोमे कारंजानगरे काटासघे नदिवटगच्छे म० इबभूपण प्रतिष्ठित बघेरवालज्ञाति गोवलगोने "मा० दुलणवाई"प्रणमति । (विवरण ३० १४१)
. संवत १७१५ वर्षे माघ सुदी ५ काष्टासधे नंदितटगच्छे विद्यागणे " बघेरवाल जातीय बोरखंडथागोने स. खामा मार्या पुतलाई तयो पुत्र स० धनजो मार्या पदाई येन सुपार्श्वनाथ प्रणमति । (विवरण ऋ० १४२) शके १५८० माघ सुदी ५ सोमवार काष्टासधे नंदितटके महारक श्री इद्रभूषण प्रतिष्ठितं बघेरवाशाती बोरखंडियागोने तेऊजीसा मार्या जसाई तयो पुत्र पौत्र नाथुला सा० चितामणसा एते भविका नित्य [प्रणमंति] (विवरण क्र० ४४७) समत १७१५ माघ सुदी ५ सोमवार काटासधे नदिवटगच्छे विद्यागणे महारगमसेनान्वये राजकीति तपट्टे मारक कक्ष्मीसेन तत्पष्टे आभूषण प्रतिष्टि सधवी खामा भार्या पुतलाई तयो पुत्र म. जो मार्या पदाई अविका प्रणमति काठास लोहाचार्यान्वये प्रतापकीर्ति सघवी खामा भार्या पुतलाई स० धनजी । (विवरण क्र. ४४८) सवत ३७१५ माव सुनी ५ सोमे काटासघे लाडवागटगच्छे म० प्रतापकोर्ति तहाम्नाय बघेरवालज्ञाती कावरी । (विवरण क्र. ५)
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नागपुरके लेख
शके १५८१ मौ० [फा० ० ३ मू०स० म० पद्मकीर्ति सां० ज्ञा०
नमेंट माग्या भ्राता । ( विवरण क्र० २०२ )
श० १५८१ ० ० पश्द्म० भ० जे० का० ना० बघरवाल लुगाई हा पुता सा मा वा मा त (2) गगु । ( विवरण क्र० ४०६, ४०६ )
सक १५८२ स्यार्वरी नाम सवत्सरं तीथ फाल्गुण सुट दममी १० ॥ श्रीशांतीनाथचैत्यालय श्रीबलात्कार गणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंडकुद्राचार्यान् महारक श्रीपद्मकीनि उपदेशात रामटेक नम्र जाती महतवाल रायानी जाई । ( विवरण क्र०२७३ ) मके १५८२ फालगुण शुद्ध ७ तिळक सेन महारक श्रीजिनसेन बघेरवादज्ञाती चवरिया गोत्रे सा० मार्या " नित्य प्रणमति । ( विवरण क्र० ४४५ )
ममत १७१८ | ( विवरण क्र० १२३ )
शके १५८३ प्रभवनाममवत्परं ज्येष्एवढी प्रथम व० कु० । ( विवरण क्र० २२९ )
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शके १५८६ वर्षे क्रोधनामम वत्सरं तिथी फागुण शुट ५ भोमूलमधे यास्कारगणे सरस्वतीगच्छे भ० धर्मचद्र तरपट्टे भ० धर्म
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भूषण महाराज प० नेमाजी मार्या राजाई पुत्र सोयराजी ता प्रतिष्टित | ( विवरण क्र० २०८ )
शक १५८६ । ( विचरण क्र० ३८८ )
शके १५८९ | ( विवरण क्र० ७ >
शके १५९२ वैमास मुलसघ सरस्वतीगच्छ वलात्कारगणे कुकु ढाचार्यान्वये महारक कुमुदचद्र तत्पट्टे म० अजितको ति त० भ० विशालकीर्ति उपदेशात' सोनोपढित रोड ।
( विवरण क्र० १८० )
१०३ संमत १७३१ | ( विवरण क्र० १२२ )
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जैनशिलालेख-संग्रह १०४ सके १५९६ फा० शु॥ ३ म० "कीर्ति तत्प? दयाभूषण श्रीमू०
स० ब० । (विवरण क्र० २२१) १०५ शके १५९७ मुलसघ बलात्कारगण भ० धर्मभूषण ॐ हरीसाव
पुत्र फकीचद प्रणमति । ( विवरण क्र. २२८) १०६ श० १५९७ मू० सेनगणे भ० जि. तजेगामप्रामे गु० गनसेठ
मा० सिशवाई पु० कृस्नाजी भा० मेगाई पु० जोगाजी प्रणमति ।
(विवरण क्र.४५७) १०७ संमत १७३२ वर्षे ज्येष्ठ सुदी २ श्रीमूलसघे महारक श्रीसुरेंद्र
कीर्तिस्तदाम्नाये खडेरवालान्वये गृध्रवालगो सा देवसी पुन
सगहान प्रतिष्ठा कारिता ।(विवरण क्र० ३७७) १०८ शाके १५९७ मू॥ व ॥ म. श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् ऊजानीपल्ली
वालज्ञातीय माणिकसा तत्पुत्र नारसा सुत शतसा प्रणमति ।
(विवरण क्र. १५९) १०९ [२०] १५६७ मु० जीनसेन उ० लखसेट माहोरकर प्रण
मंति। (विवरण क्र. ११२) ११. शके १५९१पिंग्लू श्रीमू०। (विवरण क्र. ४९०) १११ सक १६०१ समत १७३६ ।(विवरण क्र. ३५९) ११२ सक १६०. गगशिर्ष ।(विवरण ० २२०) ११३ १६०. . . मू०। (विवरण ऋ० ४९१) ११४ सके १६.१ फालगुण सुदि ११ श्रीमलसंघे बलात्कारगणे
भट्टारकीपनकीीतलदुपदेशात्श्रीपद्मावतीपल्लीवालज्ञाती भडनाव कुस्तानी पानसी भार्या मगनाई तयोपुत्र वाघुजी प्रणमति ।
(विवरण क्र. २७२) ११५ सातिनाथ सके १६०४ श्री ।(विवरण क्र० ३७५) ११६ रा० अरशुनसा सके १६०७ क्रोधनामसवत्सरे मार्गशिर्ष सुदी ५
श्रीमूलसधे खढारियागोने स. पी०। (विवरण क्र. १२९)
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नागपुरके लेख
४.8
११७ सातनाथ सके १६०७ ४ माघेर ।(विवरण ऋ० ४६२) ११८ सके १६०७ "। (विवरण क्र. ४७४) १३४ सके १७०७ समत १७४२ । (विवरण क्र. ४५२) १२० शके १६०७ प्रभवनामसंवत्सर फालगुण बदी १० भ० धर्मचद्र
उपदेशात् मु० नगरे ज्ञाते उज्जेनीपल्लीवार गोढसा मार्या
मेमाई व० साह · मार्या नागाई प्रणमति । (विवरण क्र. १८७) १२१ सके १६०८ फागण वदि १० धीमूटमधे सरस्वतीगच्छे वलात्का
रगणे कुनकुटाचार्यान्वये महारक श्रोविशालकोर्तिस्तत्पट्टे भ० श्रीपद्मकीर्तिस्तन्पढे म. घोविद्याभूषण स्वकर्मक्षयार्थ ।
(विवरण क्र. २६७) १२. मंवत १७४४ मके १६०९ फालगुण सुट १३ श्रीमत्काटासघे
लाडवागडगच्छे म०प्रतापकीति आम्नाय बघेरवालज्ञाता गोवालगोने सघवी पदाजी मार्या तानाई तयो पुत्र संघवी जमनाजी मार्या हासुबाई तयो पुत्रा तुर्य स. पुतलाबा मार्या गंगाई स० पुजावा मा० देवकुम० शीतलाबा मा० सकाई इ० पदाजी एते सह नित्य प्रणमति श्रीकाष्टामधे नदितटगच्छे म० इहभूषण म. सुरेंद्रकीर्ति । (विवरण ऋ० १७२, १७४, १४६) सके १६०६ फा० सु०१३ काष्ठासंघे लाडवागढगच्छे प्रतापकीर्त्याम्नाय म. सुरेन्द्रकीर्ति स० पढाजी भा० तानाई पु० राजवा मा०
सोनाई पु० अनतोवामापामाईजीप्रतिष्ठितं (विवरणक्र० १७५) ૧૨૪. सके १६०९ · वलात्कार ।(विवरण क्र. ४७०) १२५ सवत १७४५ ज्येष्ट सुढी २ सोमवार श्रीकारजानगरे काटासघे
प्रतापकीर्तिधाम्नाय वघरवालज्ञातो बोरखडियागोत्रे सा० मनासा मार्या शकाई तयो पुत्रा व सा अजुन मा० रगाई शितलसा मार्या सायरा लक्ष्मणसा मा० जीवाई येसोबा पुतलोवा • नित्यं प्रणमति। (विवरण क्र. ५४९)
१२३
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४१.
जैनशिलालेख-संग्रह
१२६ मिती वैसाख सुदी ३ संमत १७४५. । (विवरण क०६६) १२७ समत १७४६ ।(विवरण क्र. ३२६) १२८ शक १६११ श्री "(विवरण क्र. ३६१) १२९ स. १७४६ । (विवरण क्र. ३८४) १३० समत १७१७ सके १६१२ ज्येष्ठ वदी ७ म० श्रीइद्रभूषण त.
भ० सुरेंद्रकीर्ति प्रतिष्ठित श्रीकाटासवे लाडबागडगच्छे पुष्करगणे लोहाचार्यान्वये म० श्रीनरेंद्रकीति प. म. श्रीप्रतापकीर्ति आम्नाये बघेरवालज्ञाति गोवालगोत्रे स० बापु पुत्र स० मोज सघवी पढाजी मार्या तानाई पुत्र स. बापु स० जमनाजी स० राजवा अथ सघवी जमनाजी मार्या हसाई समस्त कुटमपरिवार नित्य प्रणमंनि दर्शनयन श्रीभबढनगर प्रतिष्ठितं । (विवरण
क्र. १७६) १३१ शके १६१२ ज्येष्ठ वदि ७ श्रीमलसधे सरस्वतीगच्छ बलात्का
रगणे म० श्रीकुदकुदाचार्यान्वय म. धर्मभूषण त० म० विशालकीर्ति त० म० धर्मचद्रोपदेशात् बघेखालज्ञाति खडासो गोत्रे सा० राघुसा सुत कपुसा अविका नित्य प्रणमंति । (विव.
रण क्र० ४३३) १३२ समत १७५० सवधारी नाम सवत्सरे भाषाढ कृष्ण तिय माया
श्री"। (विवरण क्र० ७३) १३३ शके १६१७ फा० ५ ।(विवरण क्र० ३७८) १३४ स. १७५२ मा वदी श्रीमूलसघ म० श्रीहेमकीर्ति गु० त.
न न जा सवजी (१) । विवरण क्र. ४११) संवत १७५३ वर्षे वैसास सुदि ६ सनी श्रीकाप्टासघे लाडवागढगच्छे लोहाचार्यान्वये तदनुक्रमे भट्टारक श्रीप्रतापकीर्ति वदाम्नाये बघेरवालशातौ गोवालगोत्रे संघवी मोज भार्या पदमाई तयोपुत्र भरजुन मार्या सकाई तासो पुन स० तवना मायों
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१३६
नागपुरके लेख
४११ सिता पुत्र सं० भामा भार्या देगई संघवी धर्मा भार्या फालाई तयो पुग्न स० सितल मार्या देनकु मार्या हिराई तयो पुत्र भोज द्वितीयभार्या • इत्यादि सपरिवार नित्य प्रणमति । श्रीकाटासधे नदीतटगच्छे म० रामसेनान्वये तदनुक्रमेण म० इद्रभूषण तत्पट्टे म० सु (रंद्रकीति) ।(विवरण क्र० १६९) समत १७५३ वरपे मिती वैसाख सुदी ३ "पापडीवाल प्रति
गित । (विवरण क्र० ५८,६३,६४,८८) १३७ शके १६१६ बै० सु. ३ श्रीमूलसब संनगण । (विवरण क्र.
१९४,०१६) १३८ सवत १७५४ मृलसधे सेनगणे पुष्करगच्छे म० छत्रसेनोपढे
शात्"। (विवरण ऋ० ८) १३९ [सं०] १७५६ श्रोमु० वा० स० श्रीदेवंद्रकीर्ति म० प्रतिष्ठित
मिती माघ सुद ५ । (विवरण क० २०४,४६९) १४० सके १६२२" म० श्री चद्गुरूपदंशात् । (विवरण क्र.
१४१ शके १६२४ विमत्रनामसंवस्मरं भाव । १४२ स. १६२६ म० इंमकीर्ति उपदेशात् प्रतिठित सी० स० ।
(विवरण ऋ० ४१२) ११३ शक १६२६ तारणनामसवत्सरे माही सुद १३ शुक्र मुलसंघ
बलात्कारगण कुठकुटाचार्यान्वये भ० पमकीर्ति तत्प४ म० विद्याभूपण त० म० हमकीति उपदेशात् उज्जैनापल्लीवालज्ञातीय सिंगवी लखमप्रसाढजी मार्या गोमाई तस्य पुत्र नेमासिंगवी सितलसिगधी सितलसिंगवीप्रतिष्ठित मासीनगरे चंद्रनाथचैत्यालय गुमासा चितामणिसा नित्य प्रणमतु (विवरण क्र०
२१०) १४४ शक १३२६ तारण सवत्सरं माह सुद १३ मुलसघ ३० भ०
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जैनशिलालेख-सग्रह
हेमकीर्ति उपदेशात् सितलसंगई प्रतिष्ठितं शुमं भूयात् । (विव
रण क्र० १८६) १४५ शके १६२८ विभवनामसवत्सरे माघ । (विवरण क्र० ३०५,
३३८,४०१) १४६ सक १६३६ जय० फा० दताजी । ( विवरण क्र० ४३५) १४७ समत १७७२ श्रीमूलसघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे कुंद
(कुदाचार्यान्वये) । (विवरण क्र. ५७) १४८ संमत १७७८ चैत्र सुदी १ श्रीमू० स०। (विवरण क्र. २९) १४९ स० १७५३ । ( विवरण क्र. ४६३) १५० समत १७९१ मूलसघ । (विवरण क्र. ११९) १५५ समत १७९३ प्र. श्रीमू० स०व०म० श्रीधर्मचद्रना उपदेशात्
ज्ञान वा. मोजसा मा नाबाई त० पु० फदा (१) नित्य
प्रणमति । ( विवरण क्र. ४०५) ३५२ सवत १८०० वैसाख शु॥ ३ मौमवासरे श्रीमूलसघे बलात्कार
गणे सरस्वतीगच्छे श्रीकुदकुदाचार्यान्वये नागपुरमे प्रतिष्ठित।
(विवरण ऋ० ५१,५६) १५३ समत १८०० वैसाख सुदी३। (विवरण क्र. ५६) १५४ समत १८१० माघ सुट २ श्रीमलसंघे बलात्कारगणे सरस्वती
गच्छे कुदकुराचार्यान्वये गोपालपट्टे महारक श्रीचारुचद्रभूषण तदोपदेशात् नगरे प्रतिष्ठा करापिता' कामठी सदर ""
(विवरण ० २०९) १५५ शके १६७६ । (विवरण क्र. ३३५) १५६ श्रीमुलसगे सके १६७६ ।(विवरण क्र. ४४३) १५७ शके १६७७ क्रोधनामसंवत्सरे मार्गशिर्प सुदी १० बुधे मुलसंघ
पुष्करगच्छे सेनगणेम्नाये महारकजी सोमसेनदेवा तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनसेनगुरूपदेशात् कारंजाग्रामवास्तव्य बघेरवालजात
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संवत १८२३ चैत्र वढी म । ( विवरण क्र० ३३६ ) १६० मंमत १८०७ सके १६९२ वैसास सुदी १२ ( विवरण क्र० २९९ )
१६६ सवं १६९२ मिठी चमास व ११ श्रीमूलसंव स० ब० म० धर्मचंद्र प्रतिष्ठितं । ( विवरण क्र० ६ )
१६७ शके १६६५ । ( विवरण क्र० २६७ )
१६८ म १६६५ मन्मथनामसंवत्सरं । ( विवरण क्र० २३६ ) १६० मर्क १६९० फा || १ अ० वावजि । ( विवरण क्र० २५६ ) सके १६९७ म० म० म० म० अजितकीर्ति । (विवरण क्र० २६५ )
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मकं १६९० म० [फा०सु०५ म० अ० मना । ( विवरण क्र ४०३)
सके १६६७ फा० ५ अ० अय ति० ॥ विवरण क्र० ४७७ )
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नागपुरक लेख
23 सावलागी वीरासाह मार्या हिराई वयोपुत्र जिनामाह मार्या गोपाई नयो पुत्र ही प्रथम पुत्र नवनासा मार्या अंबाई द्वितीयपुत्र गितमाह मार्या पढाई नित्यं प्रणमति । ( विवरण ऋ० १०७ ) शक १६७८ माघ सुद्र १२ मूलसंघ भ० शाविमेनोपदेशात् प्रतिष्टिनं कार जाग्रामवास्तव्यंन नेवाज्ञाति कु० गोत्र पु० चिंतामणसा नित्यं प्रणमति । ( विवरण क्र० ०१२ )
यमन १८११ शक्रं १६७९ । ( विवरण ऋ० ११ ] डाक १६८१ [फा० ब ॥ ६ मू० स० ० कुं० म० धर्मचंद्र पार्श्वनाथवित्र । ( विवरण क्र० १३८ )
शक्र १६८६ म० म० ० म० धर्मचद्र । (विचरण क्र० २०३ ) शक्रं १६८७ [फा० ५ ० । ( विवरण क्र० ४३१ )
सुके १६८७ मन्मथ अजिनकीर्तिरपदेशान् स० छ रे मटा कं (?) फा०सु० २ | ( विवरण क्र० १७० )
१७९
उपदेशात्
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जैन शिलालेख - सग्रह
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१७३ ( सके) १६६७ फा० ५ अ० ज० ल० । ( विवरण क्र० ४७३ ) १७४ शके १६९७ मन्मथनामसंवत्सरे अजितकीर्ति उपदेशात् परवार हिरामन फाल० शु० द्वितीया २ । ( विवरण क्र० ४८० ) १७५ सके १६६७ मनाजी सेठ भ० अ० । ( विवरण क्र० ४२३ ) १७६ शके १६९७ मि० फा० २ नथु । ( विवरण क्र० ३१५ ) समन १८३२ मन्मथनामसंवत्सरे मु० ब० स० कु० भ० पद्मकोति म० विद्याभूषण भ० हेमकीर्ति तत्पट्टे अजितकीर्ति फालगुण मासे गुट २ पचपरमेष्टी । ( विवरण क्र० २२७ ) शक १६६७ नाम सवत्सरे म० अजितकीर्ति उपदेशात् फा सु० २ | ( विवरण क्र० २०६ )
१७७
१७९ शके १६९८ मु०
( विवरण क्र० ३२४ ) १८० श्रामूलसधी सके १७०५ । ( विचरण क्र ४४० '
१५१
४१४
१७८
सक १७०७ चैत्र बढ १३ श्रा मूलसधे सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण । ( विवरण क्र० ७३ )
समत १८४५ सके १७१० श्रीमत् काष्टासघे लाडवागढ नदितरगच्छे म० सुरेंद्रकीर्ति तत्पट्टे म० सकलकीर्ति तत्पट्टे म० लक्ष्मी सेनजी श्रीबघेलवालजाति जुगिया गोत्रे "काष्टासघ गाढी । ( विवरण क्र० १३३ )
१८३ रुके १७१० शे कीलनामसारे मिती श्रावण सुद १२ श्रीमूलसघ चिमनाजी सरावणे तय पुत्र मुरारनी । ( विवरण क्र० १२८ )
सा० १७१० काष्टासघी वर्धासा जोगी । ( विवरण क्र० १७३ ) समत १८४६ कार्तिक सुदी ४ काष्टासंघे नदितटगच्छे श्रीलक्ष्मासेनजी प्रतिष्ठित । ( विवरण क्र० १३२ )
१८५२ भट्टारक "उपदेशात् रामळालेन प्रतिष्ठित । ( विवरण क्र० ४६८ )
१८२
१८४
353
१८६ समत
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१९.
.
.
नागपुरके लेख १८७ सके १७१८ संवत १८५३ मार्गेश्वर । (विवरण ऋ० १६२,
४६६) १८८ ॐ नम. सिद्धेभ्य समत १८५७ शके १७२२ भादवा सुदी १०
सोमवासरे कु दकदाचार्याम्नाय सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे म० श्री श्री श्री अजितकीर्ति तस्य उपदेशात् गोहिल परवार
ज्ञाते • मगल भूयात् । (विवरण क्र० ३१) ३८९ पाल १७०३ पवत १८५८ फागवती २। (विवरण क्र. ४२५)
संमन १८५९ शके १७२३ ला नागपूरमध्ये म० रनकोति उपदेशात् ।(विवरण क्र० ३०, १४, ४५) समत १८५६ दुवुमिनामसंवत्सरे नागपूरनगर रघुवरराज्ये भ०
श्रीरस्नकीतिउपदेशात् श्रीपरवार वशे । (विवरण क्र. ३२) १९२ समन १८५६ शके १७२४ श्री मूल्संघ बलात्कारगणे सरस्वती
गच्छे म० रत्नकीर्ति उपदेशात् नागपूरनगरे रघुवरराज्ये परवारान्वये सेतगागर गोहिल्लगोन मार्या प्रतिष्ठा कराप्ति ।
(विवरण क्र. ३३, ४३) १९३ समत १८६१ वैसाख सुदी५ सोमवासरं सवाईजयनगरे श्री.
सुरेंद्रकीर्तिउपदेशात् हिरा प्रतिष्टा कारिता । (विवरण क्र. ३४६) सवत १८६६ फाल्गुण कृष्ण ५ शुक्रवारे श्रीमलसघे वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्रीददाचार्यान्वये प्रतिष्टित । (विवरण F. ३७०, ३७२) संमत १८६८ फागुण सुदी ७ बुध श्रीमूलसघ बलात्कारगण
सरस्वतीगच्छ प्रतिष्ठित । (विवरण क्र.११०) १९६ शके १७४३ श्रीमूल (विवरण ० ४८1) १९० शके १७४४ श्रीमलसंघ (विवरण ज. ९०, १७१) १९८ संवत १८८१ वर्षे माघ मासे शुद्ध ५ सोम श्रीकाष्टासधे म०
१६५
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নারা-শর দৃষ্ণালি য়দি শ খানি মাল গি অন্যে।
( গিয় গত ৩০) , ৭০ অন দা স ন গ াখ পানি লাগ
এবিছিন নালি।(গিয়া ) নগন দামুল লক্ষণাঙ্গ ব্যাকোৰাগ - ব্যাগ ষ্টাই আমি কলাপসিন। ( খ্রিণ ক ). নন না সাম্বি মুঃ * বুনি খালপাধ্যায় কাজ আয়নাঙ্গর লাখালি খালা বলল ঃ মুজ্জাপি নয় ৭০ গনি মিল মালি গা মায় শামা না লালা ও ঘূপান্তা খন্ত সম্মসি। (মিয়া ) লর ৪ নম্বনা খালা আখনি শ্বাসনা গয়াল গাছ পাথর লিমার গল্প প বঙ্কলরিয়াল নথ ইয়াসি৪াল গান গায়ান্ত শলা পালা গায়ালগ এনিছু
দি।(গিয়া ) মন পদ ও আন্তদার গল্প । আলিয়ামৰ ঋন্তাঙ্গনা কাঙ্কিা আঁশ ঝগ
লিয়ানা #ঃ পি এগিছিল। (fiণ ৯০ )
& ৭ ন ন গলা ও ঘাগলি মামূৰ গাৰ্গ না, এই মূখা ক মলদ্মােণ নথ পরকিয়াণ গ ত গলাঃইরাল স্কার্যমুখিচ্চা গাল মশিয়ারার বায় নিয়া আলিঙ্কনা অঞ্চ গণুর আগ গাঁয় এ প্রতিষ্ঠাপি।(গিয়া )
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४१७
नागपुरक लेख २०५ समत १८८७ का ज्येष्ठ सुदी ९ विंशतिनामसवत्सरे श्रीम० स० ___ व. कु. म. पद्मनविटेवात् तत्प? म. देवेंद्रकीर्ति प्रतिष्ठा
करान्वितं । (विवरण क्र. २०) २०६ संवत् १८८८ वैसाख कृष्ण ५ रविवासरे श्रीमूलसघे व० स०
श्रीकु० इन प्रतिमा कारयेत् श्रीसकलपचकमेटिक स्वकर्मक्षयार्थ
प्रतिमा प्रतिष्ठिनिये । (विवरण क्र. ५५) २०७ संमत १८८८ । (विवरण क्र. १०६) २०८ समत १८ वैसाख शुक्ल ११ गुरुवासर मलसघ ब० स०
कुठकुदाचार्यान्वय । (विवरण क्र० ८५) २०६ समत १८८९ वृषभायणे"। (विवरण ऋ० १०३) २१० संमत १८६१ शके १७५६ जयनामसवत्सरे श्रावणमास कृष्ण
पक्षे पराकी मलसंधे स० ब. कारंजानगरे इट पनादेवि श्री
महेवेढकीर्तिस्वामिना प्रतिष्टितम् । (विवरण ऋ० २३७) २११ समत १८९३ वर्षे माघ सुट १० बुधदिनी मुलसध कुदकुदा
चार्याम्नाय व० स० महारकपद्मनदिदेवात् तशिष्य भ० देवेंद्रकीर्तिदेवात् तत् उपदेशात् भार्या हिता पुत्र नेमुराम भ्राता दामजी भार्या लाडव प्रतिष्ठितं प्रणमंति। (विवरण क्र०
१६) २१२ स. १८९३ श्रीम. नागपूर श्रीपाशु प० । (विवरण क्र०
२१३ श्रीमूलसघ सक १७५९ । (विवरण क्र० ४५४,५५८) २१४ श्रीसंवत १८९४ साल आपाढ व॥ श्रीमहावीर स्वामीजीका
मुख । ( विवरण क्र. ४६,५०) २१५ समत १८९७ शके १७६. भगवतिनामसवत्सरे बैसाख सदी
३ बुधवासरे इद श्रीपाश्वनाथस्वामी श्रीमूलसघे सरस्वतोगच्छे बलात्कारगणे कुदबुदाचार्यान्वये भधारक श्रीमद्देवेंद्रकीतिस्वामी
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४०१
नागपुरक लेख पुन मागचंदी अजमेरा खडेरवाल श्रावकेन प्रनिटिन गुरुवासरे नागपुर शुक्रवारीपैठ योजिनन्यालय । ( विवरण क्र.
६५,६६,७०,७५,७६ ) २४३ मंमत १६१६ मिती माघ सुदी १० गुरवार । (विवरण क्र.
६७,६८,८२) २४४ समत १९१८ मिती माघ सुदी १० मत्पचढ अजमेरा तेन
प्रनिटिन । (विवरण २०७१) २४" संमत १६१६ माघ सुदी १० मूलसर्व प्रतिष्टित ।
(विवरण F० ७८) ४. समत १९९६ माघ सुदी १० गुस्वार श्रीम० म० ब० कु.
नमिनाथम्बामीजिन । (विवरण F०८1,१६९) २४७ समत १६१६ मिती माघ सुदी १० गुस्वामी श्रीम० स० ब० भट्टारक्वंटकीर्तिस्वामीजी हस्तन प्रतिष्टित नागपूरमध्ये ।
(विवरण ऋ० ८४) २८८ समन १९१६ मि० फा० सुदी ११ शनिवार श्रीम० स०व० कुट० अय श्रीआदिनाथ श्रीचंद्रकीर्ति स्वामीना प्रतिष्टितं ।
(विवरण ऋ० २८७ ) ०४१ समत १९१६ मिती फागुण सुदी ११ शनिवामरे नागपूरनगर
श्रीमहावीरस्वामीत्याल्य श्रीमूलमधे स० ब० कु. अय श्रीपार्श्वनाथस्वामीजी श्रीदेवकीर्ति स्वामीनी स्वहस्तेन प्रतिष्टितं । (विवरण क्र० २९१) समत १६१६ मिती फागुण सुढी ११ शनिवाम श्रीम० स० ब० कुं० नागपूरनगर श्रीजिनचैत्यालये अयं श्रीमआदिनाथस्वामी मलनायक म० श्रीदेवेंद्र कार्तिस्वामी उपदेशात् गकुरदास तत्पुत्र मनीलाल परवार वोछर मुर कोठल गोत्र ते प्रतिष्टितं ।
(विवरण ३० ३६६)
२५०
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४२२
বিকাত-ই
२५१ सवव १९१६ मिती माघ । (विवरण क० ८६,४२७) २५२ समत १९२५ मार्गशिर्ष सुदी ५ गुरु श्रीमू० म० हेमकीर्ति
तस्पट्टे भ० करा" (विवरण क्र० २८०) २५३ संमत १९२५ का माघ सुदी ५ सोमवारे श्रीमूलसंधे बलात्कार
गणे सरस्वतीगच्छे कुदकुंदाचार्यान्वये नागौरपट्टे म० हेमकीर्ति उपदेशात् रामटेकमध्ये संघवी मनालालेन प्रतिष्टित ।
(विवरण ३० २८४) २५४ संवत १९२५ थीमलसचे सरस्वतीगच्छे कुदकुदाचार्यान्वयं
नागोरपट्टे म० श्रीविद्याभूषणजी तत्पटटे भट्टारक थाहमकीर्तिजी तहाम्नाय' परवालान्चये कोलगोत्रे संघवी भुरसीदास
तत्पुत्र मनालालेन प्रतिष्ठा करान्वितं । (विवरण क्र. ५) २५५ सवत १९२५ शके १७६० विभवनाम सवत्सरे शुक्लपमे तीथी
७ बुधवासर श्रीमूलसघ सरस्वतीगच्छे बलाकारगणे कुचकुंदाचार्याम्नाय इदं प्रतिमा टेवेंद्रकीर्ति स्वामान हस्ते नागपूरमध्ये
चोग्यालाल तस्य भार्या वोरावाई ने प्रतिष्टा करान्वित ।। २५६ थाजिनो जयनि ॥ श्रीपाश्र्घनार्थाजनंद्रेभ्यो नमः । संमत
१९२५ का शक १७६० का विभवनामसंवत्सरे सिमरसता मासातमासोत्तममासं मार्गशिर्षमास शुभे शुक्लपक्षे तिथी ५ पंचमी गुरुपाखर उत्तराषाढ नक्षत्रे गजनामयाग श्रीनागपुरवास्तव्यमे धीमलराधे मरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे नंद्याम्नाय कुंद'टाचार्यान्वये श्रीनागौरपट्टे भट्टारमधी हरपकार्तिी तत्प म० श्रीविधामपणजी वराडण (1) चाकुवो धुरामारी गोने संघवो कृपारामजा तत्पुत्र कलुपाऊजी भार्या चौरायाई तत्पुत्र धृयपाल पावजी छोटेलाल तिन सपरिवारण मंघवी काइपाऊ थीप्रतिष्ठा करापित ॥ श्रीरस्तु ॥ श्रयामस्तु ॥ रक्षित मस्तु । ( विवरण ऋ० २८५)
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नागपुरके लेख
ર૩ २५७ धीसमत १९२५ शक १७९० विभवनामसवत्सरं मिती वैसास्त्र.
माम शुक्लपक्षे तीथी ७ बुधवासरे श्रीमूलसचे थालात्कारगणे श्रीसरस्वतीगच्छे श्रीकु दकुटाचार्यान्वये श्रीचन्द्रप्रभस्वामीन प्रतिमाया श्रीमद् देवदकीर्तिस्वामीहस्ते श्रीनागपूरमध्ये प्यारेसावजी भार्या पुनावाई परवार तेने प्रतिष्टा करापित ।
(विवरण क्र. २९४) २५८ रामत १९२५ बै० शु ॥७ मु० कु. ने. नागपूरमध्ये गुमान
साव तस्य पुत्र चुडामणसा तस्य पुत्र मोजराज परवार तन
प्रतिष्ठा करान्वित । (विवरण क्र. २९६ ) २५९ समत १९२५ बैसाख शुद्ध ७ बुध० श्रामू० स० व० कु.
श्रीपार्श्वनाथस्वामीना देवेन्द्रकीर्तिस्वामीनहस्ते नागपूरमध्ये
प्रतिष्ठितं । (विवरण ३० ३१२-१३) २६० समत १९२५ वैसाय सुदी ७ प्रतिष्ठितं मनबोध जिन मुंगा
वाई । (विवरण क्र० ३२७) २६१ समत १९२५ मिता प्रघण सुदी ५ प्रतिष्ठा नागपूरमध्ये आदि
नायनी। (विवरण ० ३३६) २४२ समत १९२५ क १७९० आदिनाथम्वामी।
(विवरण ऋ० ३४४) २६. समत १९२५ झा मिती माघ सुदी सोमवासरं श्री मूलसष
घ. स. बुदकुठाचार्यान्वये नागौरपट्टे भ० श्रीविद्याभूपणजी तस्पट्टे भ० हेमकीतिना तढाम्नायवरती पडित सवाईरामोपदेशात् परवारान्वयं कोछलगोत्रे सघई तुलसीदास तत्पुत्र म० लाल
कुजलाल बिहारीलालेन प्रतिष्ठा की। (विवरण क्र. ३५५) २६४ समन १९०५ वैसास सुदी बुधवार श्रीमूलसधे बलात्कारगणे
सररवीगच्छे कुदकुढाचार्याम्नाये महारकश्रीमहेवेंद्रकीर्ति • प्रतिष्ठितं । ( विवरण ऋ० ३७१)
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जैन शिलालेम-मंग्रह
२६७ समत १६२७ माघ सुदी ५ मोमं प्रतिष्टितं ।
( विवरण क्र० ३७३-१ ) २६६ श्रीमूलमंगचे " समत १६२६ प्रभवनाम संवत्परं श्रावण व ॥५॥ ( विवरण क्र० ४५१ ) २६७ समत १९२८ प्रभवनाममवत्परे माघ शुक्ल द्वादशीतियो सुत्रामरं प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत देवेंद्रकीर्तिमहारक प्रतिष्ठा करणार वारसा मनापाव | ( विवरण क्र० ३३३ )
४२४
२६८ श्रीपारसनाथजी संमत १९२८ । ( विवरण क्र० २३२ ) २६६ मचन १९२८ प्रजापतिनामसंवत्सरं माघशुले द्वादशांतियां बुध वासरे प्रतिष्ठाचार्य श्रीमन देवेंद्रकीनि मट्टारक प्रतिष्टा करविणा मनालाल व्यवाईमधवी । ( विवरण क्र० १२ )
२७० मत ११२८ ( विवरण क्र० ३ )
२७१ ॐ चंद्रनाथ ग्रेन समत १९३३ | ( विवरण ऋ० ७० ) २७२ समत १६३६ शके १८०४.० प्रतिष्ठाचार्य विद्यालकिनीं महारक प्रतिष्ठा करविणार सुनीयाचाई परचार्गन । ( विवरण क्र० २०९ ) २७३ श्रीपारसनाथत्री म० १९१८ ( विवरण क्र० ३०१ ) २७४ ममा १९७२ वैमान सुदि १९ मोमबासर प्रविष्टिनं । ( विवरण क्र० ८१ ) २७० मं० १०५८ ० ० १२ पनागा मोजामात्र ।
( विवरण क्र० २०० 3) २७६ संनव १६५८ वैमान शुद्ध १५ मूलमंचे कुकुटाम्नाये नहाक देवेंद्रकोति प्रतिष्टितं । ( चित्रग्ण ऋ० ३७६ )
२७७ मा० गी० ७ श्री० २१० ६० स्व० वा० सी० प्र० प्र० ना० मं० १९६१ | ( विवरण क्र० ११८ )
* यह संवत्सर नाम गलत प्रतीत होता है।
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नागपुरवं लेख
१२. ०७८ संमत १९६१ मिनी ज्येष्ठ शु ॥१० यारिम्न स्वामी उपनगान् चांगाम्गव गंगालावजी चवरे याहानी प्रनिष्टा करविली।
(विवरण ३० १४५) २७९ नागपूर शेतवाल मन्दिर ५० रवि० समत १६६ मार्गशिर्ष व ॥
सप्तन्यां पण्डिनवर्य रामबह ब्रह्मचारिणां पत्र भेतवाल अनुगया
प्रतिष्टित इट प्रतिमा । (विवरण २० १०७) २८० नमन १९६६ ई०म्नाय मिबीनन प्रतिष्टितं ।
(विवरण २० ३२५ ) २८१ वीरममन ४ मि० मा० ॥ ५१० वा० न० प्रतिष्टितं ।
(विवरण २०१७) • ममत १९३८ ज्येष्ट सुट ८ शुक्रवामा मुल्सब बन्गत्कारगगे
मरस्वनीगच्छे कारजापुर पहाधिकारी म० देवंढकीर्निन्वामी टपदेगान शिवरनाको पादुका बडलबालज्ञातिय पाटणीगोत्र हजानलार गेंदालाल येन प्रतिष्ठा कगपितं नागपूरनगर।
(विवरण २० १६७, २३३) ०४. नमन १६७ पण्टित रामभास्ना प्रतिष्ठित कन्हेगाराली गरीब यांचे आईचे नन्निवर बनांद्यापनार्य।
(विवरण २० २३) २४. स्वति धी१५८ याबीनसंवन्म १९८८ विक्रम मावमासे
शुक्लपक्षे दशम्यां नियों दुश्वासरं श्रीमूलसंध बळाकारगणे सरम्बतीगच्छे कुंकुवाचार्याम्नाये फणिंडपुरनिवापी परवारज्ञातिय बेलामूर गोहल्लगोत्रोन्पन्न परमानंद प्रजात्मज परवारभूषण फत्तेचंद्विपचदाभ्यां छपारानगरं प्रतिष्टित ।
(विवरण २० ३२०-०३) २८० धीमहावीरनिर्वाणसंमत १६. विक्रम संमत १९९० शक
१२५५ फाल्गुण शुद्ध १२ सोमवार श्रीमल्संव सरस्वतीगच्छ
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४२६
জলঙ্কিা -মং बलात्कारगण श्रीकुंदकुंदाचार्याम्नायांतोक पासक गोत्रांतीक परवारज्ञाति नागपूरनियासी शेठ फनईलाल नेमिचंदजी यांनी दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र गजपंथ येथील श्री प्र० जीवराज गौतमघद सोलापूर याचे प्रतिष्ठामध्ये श्रीमहावीर तीर्थकराचे थिय
प्रतिष्टित केले असे ॥ (विवरण ० ६२) ३८६ श्रीमद्देवाधिदेव १०० भगवान शांतिनाथ तीर्थकर जिनपिंग
प्राणप्रतिष्ठा सस्ति श्री १०८ म० विशालकीर्तिस्वामीमहाराज सस्थान तक्त लातूर गाठी नागपूर पहाचार्य सदुपदेशात् नाग. पूरस्थ दि० जेन सैतवाल समाज वारसंवत २४६१ मिता मार्ग
शिपं कृष्ण १२ श्याम् कृतति शम् । (विवरण २० १०४-५) २८० बामदेवाधिदेव १० भगवान आदिनाथ तीर्थकर जिनबिंब प्राण
प्रतिष्ठा स्वस्ति श्री १०८ म० विशालकोसिस्वामीमहाराज सस्थान ता लातूर गादा नागपूर पहाचार्य सदुपदेशात नागपूरस्थ दिगम्बर जंग संतवाल समाज प श्री. राजाराम पी. सार काटोलकरणप्रतिमा माणित प्रतिष्टाचार्य श्री पंडितवर्य राममाऊ महागापाण्याय पंजित थी. अखिल सतवाल जन राजगुरुपीठ रास्थान तक लातर गाली नागपूर पीरसंवत् २४६१ मिता मार्गाशपण १२ श्यारोशिशम्।
(पियरण 7० १०६) २०० चरित श्री १०८ श्रीमहारविशालमति उपरशा मं० २५६१ मार्गशिर्ष कृष्ण १२ ग्राम उर्धा प्रशिष्टिम् ।
(विवरण न०३८६-७, ३६.१, ४१५७)
[भनिश्चित समयक केस २८९ संपरा १५५ - संघ र नी गा पुनान र ना(१)
(किरण ० ४१०)
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नागपुरके लेख २९० सं० १५ सुद १३ सक्ला पुत्र मनसुख मार्या महना।
(विवरण ऋ० ४२२) २६१ सवत १५-६ वर्षे बैसाख सुदि ३ मंगलदिने भट्टारकजिन
घडाम्नाये गोलापूर्व संघ इलाम । (विवरण ऋ० १६३) २९३ समत १-६१ वर्षे वैसाख सुदी को जीवराज ।
(विवरण ऋ०७४) २९३ सके १-७६ शुभकृत नाम सवत्सरे कार्तिक शुद्ध प्रतिपदा !
बुधवार सावरगावग्राम श्रीभादिनाथचैत्यालये श्रीमहिचढ़ महारकठपदेशात् तस्य श्रावक तिमाजी पलसापुरे तस्य भार्या बचाई व गगाई तस्य पुन येकुजि कोनेरवा तस्य यत्र ।
(विवरण क्र. २७६-२७७) २६४ ७ वैसाख सुदी ३ पुत्र मोती मार्या म ।
(विवरण ० ३९७) [अज्ञात समयके लेख] २६५ सवत वैसाख मासे शुद्ध ३ भौमवासरे श्रीमलसघेवलात्कारगणे
सरस्वतीगच्छे इंदकदाचार्याम्नाये तेन प्रतिज्ञानुसारेण प्रतिष्ठित
नागपूरमध्ये । (विवरण ऋ० ५४ ) २९६ भीकाजी। (विवरण क्र. ११६) २९७ मूलराध बलात्कारगण पितल्यागोने रामासा मार्या नेमाई पुत्र
रतनसा भार्या पढमाई द्वितीय पुत्र हिरासा भार्या पुजाई तृतीय पुत्र तवनासा चतुर्थ पुन पदाजी श्रीचन्द्रप्रम प्रतिष्ठा
संवत । (विवरण ऋ० १३३ ) २९८ श्रीकाटासव नदितटगच्छ म० श्रीरामसेनान्वये म० श्रीलक्ष्मी
सेनजी प्रतिष्ठित । (विवरण ऋ० १३६ ) २९६ श्रीवासुपूज्य जिनवर । (विवरण क्र. १८२)
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४२८
जैनशिलालेख-सग्रह ३०० "महाराजाधिराज""देवेंद्रकीर्ति वलात्कारगण सरस्वती
[गच्छ) । (विवरण ऋ० १९३) ३०१ भ० हेमकीर्ति उपदेशात् स० प्रतिष्ठितं । (विवरण ३० २०७) ३०२ हेमराज तल पुत्र हसराज भार्या तमाबाई प्रतिष्ठा माघ सुदी"।
(विवरण क० २८१) ३०३ सातनाथ ।(विवरण क्र० ३५३) ३०४ श्री भादिसर । (विवरण क्र० ३५४) ३०५ श्रीमू० स० भ० श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् रामसेन ।
(विवरण क्र० ३७९) ३०६ श्रीमू० भ० जि० का प सेठ प्र (१) (विवरण क्र० ३८१) ३०७ श्रीमूलराधे म० श्रीमुवनकीर्ति ।(विवरण क्र० ३९०-४६३) ३०८ श्रीमूलसग । (विवरण ० ३९५, ४०३, ४५६, ४८६) ३०९ श्रीमू० स०१०। (विवरण क्र. ४००) ३१० श्रीधर्मचंदडपदेशात् कपरसेट । (विवरण क्र. ४०४) ३११ लसमनसा रूपा । (विवरण क्र० ४०७) ३१२ ३०१० नेमीचनी। (विवरण क्र० ४२०) ३१३ सनगण म० श्रीलक्ष्मीसेन च्चारित्रमति सेवक देवांचे चंद्रा
इत्ये । (दिवरण ऋ० १६४) ३१९ मू० १० १० धर्मचंद्र हेमसेठ नित्यं ता।
(विवरण ३० ४४२) ३३५ मूलसधे म. सुरेन्द्रकीर्ति प्रारत । (विवरण ३० ४५५) ३१६ मू० म. जि. पार वा ग3 (1) (विवरण ऋ० ४६४) ३१७ श्रीमादिनाथ सा० श्रीवंत । (विवरण ० ४६६) ३१९ मु० संघ तानसेट बमनौसा। (विवरण क्र० ४७२) ३१९ श्रीमलसंघ ब्रहा. मल्लिदास सा मार्या सखाई।
(विवरण क्र. ४८०)
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नागपुरके लेख
३२० श्रीमूल्संघ सक्राजी पुजारी ना । ( विवरण क्र० १२५-३ ) ३२१ रत्रमा ठवली । ( विवरण क्र० १२७ )
३२२ बावाजी वढलकार । ( विवरण क्र० ४६३ )
३०३ मू० भ० जि० गडमेर स्वहित । ( विवरण क्र० ४६५ ) ३२४ श्रीमूल्मंधे म० श्रीमल्लिभूषण सा० लखा भार्या अजी सुता सोनाई । ( विवरण क्र० १६१ )
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मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण [१] अजितनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, केलीबाग, नागपुर । १ अजितनाथ ( सफेद पाषाण १३ फुट) लेख ऋ० १८ २ पार्श्वनाथ ( सफेद पापाण १ फु० २ इ० ) लेख क्र० १८ ३ , , , लेख क्र. १८ ४ पार्श्वनाथ (धातु है ई.) लेख क्र० २५४ ५ चौबीसी (धातु ४ इ० ) लेख क्र. ९२ ६ पार्श्वनाथ (धातु, इ० ) लेख क्र. १६६ ७ धर्मनाथ (धातु ४ इ० ) लेख ०१०१ ८ पार्श्वनाथ ( धातु ५ इ० ) लेख क्र० १३८
लेखरहित प्रतिमाएँ - शान्तिनाथ (धातु ७ इ.), चौवीसी ( काला पापाण १३ फुट ), पार्श्वनाथ ( धातु ३३ इ.), चन्द्रप्रम (काला पापाण ९ इ०) पाश्वनाथ (काला
____ पाषाण ६ ई.) पाश्वनाथ ( काला पापाण इ० ) यक्षिणी (कृष्ण पापाण
[२] दिगम्बर जैन मन्दिर, मस्कासाथ, नागपुर ६ आदिनाथ (सफेद पाषाण २६ कु. ) लेस ऋ० १८ १० पद्मप्रम ( सफेद पाषाण १ फु०) लेख क्र. १८ ११ आदिनाथ ( सफेट पापाण १० इ० ) लेख क्र० १८ १२ पार्श्वनाथ (सफेट पापाण १ फु० ) लेख क्र. १८ १३ अजितनाथ ( सफेद पापाण १० इ० ) लेख ऋ० १८
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मन्टिग व मृर्नियाका विवरण .४ चन्द्रप्रन (मफ्ट पाषाण ५० ३०)लपत्र. १४ १५ आदिनाथ (मफट पापाण १०३०) लंग छ. १८ १६ सुपार्श्वनाथ ( , )लंग ऋ० १० १७ पाश्चनाय (मट पाराग १ फु०) लंग्स ० १८ १८ बामुपज्य ( मऊंट पापाग ११:०) लंग 7015 १६ पार्चनाय ( काना पापाण : फु० ०६०)लंग ऋ० १० • पावनाय (मट पायाण १०) मंग्य 3०१८ " चन्द्रप्रभ (सफेट पापाग ०१०) लंग्न २०१८ ० अजिननाय ( , लंब16 २३ पार्श्वनाथ (मट पा० १ पु० ० १०) लंग ऋ० १८ २८ आदिनाथ (मट पा० ७३०)लेय ०१८
» नमिनाथ ( मफेट पा० ८६०) लेग ३० 10 २६ मुपायनाय (मफट पा० १०६० ) लेन २०१८
७ पायनाय (सट पा० १ फु० इ० ) लग्न ऋ०६० २. पाश्र्वनाय (काला पा० ११ ई.) लेग्य ०.०५ २६ पाश्चनाय (काला पा० १.३० लंगम० ११८ 3. पाश्चनाय (यानुकु० ) लग्न ३० १६० ३१ पाञ्चनाय ( धानु १० इ०)लंच F० १८९ ३२ पाश्र्वनाम (थानु ९ ई० ) लंग्न ७० १११ ३३ पद्मप्रन (घानु १०) लंस ऋ० १०२ ३५ चावीमी (धातु इ.) लेख क्र० २८ ३५ चीयर्यामी (धातु इ.)लेय क्र. ३६ ३६ चौधीमी (बानु ई०लेय २०२३१ ३७ पाश्र्वनाय (धातु ई० ) संस० ०४० ३. आदिनाय (धातु ३ ई०)लंस ० ०७० ३९ चन्द्रप्रम ( मफेट पा० ११ ई.) लेख क्र० २२५
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४३२
जैनशिलालेस-संग्रह ५० मुनिसुव्रत (सफेठ पा० १० इ० ) लेस ०७ ४१ अजितनाथ (धातु ५ ई.) लेख क्र० २४१ ४२ धर्मनाब (धातु ७ इ० ) लेस क्र. २६६ ४३ चौबीमी (धातु १० इ० ) लेन क्र० ११२ ४४ यक्षिणी (धातु ५इ.) लेस क्र. १९० १५ यक्षिणी (धातु ७६०) लेख क. १९०१ लेखरहित प्रतिमाएँ___ पार्श्वनाथ (धातु १ से ४ ४० की दस प्रतिमाएँ)
[३] दिगम्बर जैन मन्दिर, किराणा बाजार, नागपुर १६ पाचनाय ( सफेद पा० १ ० ) लेख ऋ० १८ ४७ पाश्र्वनाथ (काला पा० १ फु.) लेस क्र. १८ ४८ सुपार्श्वनाथ ( सफेट पा० १० ई.) लंस क्र० १८ ४६ महावीर (काला पा० ४, फु०) लेस ऋ० २१४ ५० चन्द्रप्रम (सफेट पा० १ फु० ३ .) लेख ऋ० २१४
१ मुनिसुव्रत (सफंट पा. १ फुट) लेख क्र. १५२ ५२ पार्श्वनाथ ( सफंद पा० १ फुट ) लेस फ्र० २०० ७३ चौबीसी (धातु इ.) लेस क्र० २३८ ७४ चन्द्रप्रम (सफंढ पा० १५ फुट ) लेस क्र० २९५ ५५ पार्श्वनाथ (धातु १०६०) लेख क्र० २०६ ५६ पार्श्वनाथ (राफट पा. - फु० २ प्रतिमाएँ) लेस १५२ ४७ चन्द्रप्रम (मफेढ पा० १ फु०) लेस ऋ० १४७ ५८ पार्श्वनाथ ( सफंढ पा० १०) लेय क्र. १३६ ५६ सुपार्श्व (पीला पा० ७६०) लेस क्र. १५३ ६० चन्द्रप्रम ( सफंढ पा० १ फु० ) लेस क्र० २२६ ६१ पार्श्वनाथ (पीला पा० १०) लेस क्र० २२६ ६२ महावीर ( धातु । फु० ३ इ.) लेस क्र० २८५
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मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण
४३३ ६३ चन्द्रप्रभ (काला पा० १ फु० ) लेख क्र. १३६ ६४ नेमिनाथ ( काला पा० १ फु० ) लेख क्र० १३६
लेखरहित प्रतिमाएँ - पार्श्वनाथ (सफेद पा० १३ फु०), पार्श्वनाथ (धातु २ से ३ इ० ४ प्रतिमाएँ ), चन्द्रप्रम (काला पा० ११ इ. २ प्रतिमाएँ), अज्ञातचिह्न मूर्ति (स्फटिक,
१३ इ०), यक्षिणी (धातु ४ इ०) [४] दिगम्बर जैन मन्दिर, जुनी शुक्रवारी पेठ, नागपुर ६५ महावीर (धातु ८ इं० ) लेख क्र० २१२ ६६ आदिनाथ ( सफेठ पा० ३ फु० २ ई०) लेख क्र० १२६ ६७ सिद्ध (धातु ५३ इ० ) लेख क्र० २४३ ६८ नन्दीश्वर (धातु ६३ इं.) लेख क्र. २४३ ६६ पंचमेरु (धातु १३ फु०) लेख क० २४२ (दो प्रतिमाएँ) ७० चन्द्रप्रम ( सफेद पा० ६ इ० ) लेख क्र. २७१ ७१ चौबीसी (धातु ३ इ० ) लेख क्र. २४४ ७२ चौबीसी (धातु १ फु०) लेख क्र. २४२ ७३ महावीर ( सफेद पा० ६ इं० ) लेख क्र० १३२ ७५ आदिनाथ (सफेद पा० ११ इ०) लेख क्र. २१२ ७५ शातिनाथ (धातु ७३ इं.) लेख क्र. २५२ ०६ आदिनाथ (धातु १ फुट २ इ० ) लेख क्र. २४२ ७७ पार्श्वनाथ (धातु २ इ० ) लेख क्र० २१६ ७८ चन्द्रप्रम (धातु ५ इं) लेख क्र० २५५ ७९ चौबीसी (धातु इं) लेख क्र. १८१ ८० पाश्वनाथ (धातु ४ इ०) लेख क्र. १० ८१ नेमिनाथ (धातु ५ इ०) लेख क्र० २५६ ८२ आदिनाथ (काला पा.७ इं०) लेख ऋ० २४३ २८
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इनशिडाले संग्रह
१२६ रुद्रावर्तन यंत्र ( धातु ७ ई० ) ०३३३
संक्रहित प्रतिमाएँ - चन्द्र
१३
(काला पा० ६ ई० श्री मूर्तियाँ),
का (धातु ई०. दो पादुका }
पा० २ ई० ), बर्गनी ( धातु ५० हो सूत्रियाँ )पानाम ( छोडी छोटी ८ मूर्तियाँ )
( बाद
इं०. डी
).
[s]
१३० पाना धातु १० ई० ) ले १३६ चन्द्रन (मट पा० १० ई० ) ले १३२ श्री मद्र पा० १० ई० )
मेगन मन्दिर, लाइयुग इतवारी, नागपुर
०५३
० २६०
० ) ले ई०) ले
१९८५
१३३. पार्श्वनाथ (सद्र पा० १ १३१ शानिनाय (मरेंद्र पा० १३ ६३९ वी / धातु १३ ३० ) १३६ गवली (धातु १० ई० ) ६३ अन्य विद्व मूर्ति (वानु ९ ई०) ले ३३८ पार्श्वनाथ ( धातु २३ १०) लेक ऋ० १६० १३३ बसी | बाद ३३० )
० २६८
०३३
छः १८२
०३७
( श्री सुर्नियाँ)
क्र० २१
120 Mária ( arg i gc jà 50 ↑ १११ पार्श्वनाथ (कान् पा० २ ई० ) ले ०८८
११० सुनानाय ( का पा० ६० ई० : लेख २०८९ ११६ नायक पा० ०६६
122 märja ( ag 1 ga Jéz 50 3? १९१ अहिनय / चानु १० ई० ) क ० २७८ ६१६ सन (सफेद पा० १० ई०) क्र. १८ नाय (०ई०) ले ऋ०१८
११
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१३७
मन्दिरों व मृतियाँका विवरण १४. मरनाथ ( मफेट पा० १० इ० ) लेस ऋ० १८ १४९ पद्मप्रम (मफेट पा० १० इ०) लेख ऋ० १८ (दो मतियाँ) १५० मुनिसुव्रत (मफंह पा०११ इ.) टेस क्र. १५ १.१ अजितनाय (मफेट पा० ११ इ.) लेस क्र. १८ १२ पार्श्वनाथ (मफेद पा० ११ इ० ) लेख ०१८ ३०३ पाश्वनाथ (सर्फट पा० १ फु० २ इ०) लेख क्र. १८
(दो मूर्तियाँ) १०४ भरनाथ (मफेट पा०८ इ.) लेस ऋ० १८ १७. चन्द्रप्रभ (मफंट पा० १०)लेय क्र० १८ १५६ भाटिनाथ (४ इं० धातु)लेग क्र. १८ १०७ चार्वापी (धानु ६ इ.) लेस क्र. ९ १५८ धर्मनाय (धानु । ई०) लेख क्र० ६३ १५६ पाश्वनाथ (घानु इ.)लेच १०० १६० वासुपूज्य (धानु ५ इ.) लेख क्र० १३ १६१ भाटिनाथ (धातु ४०) लेख क्र० ३४ १३२ चिहरहित मूर्ति (वानु ३ इ.) लेस क्र० १०६ १६३ पाश्र्धनाय (धानु ६ इ०) लंग्य क्र. ०६१ ११ श्रेयामनाथ (धानु ३ ई०) लेस क्र० ३१३ १६. सुमतिनाथ (धानु ई.) लेन क्र.०० १०६ आदिनाथ (धानु ३ इं.) लेग०२ १६७ पंचपरमेष्ठी (यानु ५ इ० ) रेस क०८ १६८ रत्नत्रय मृति (धानु इ.) लेख क्र... १६६ चौबीसी (धातु ११ ६० ) लेस क्र० १३५ १७० सरस्वती (धातु..) लेख क्र० १९८ ३७. यक्षिणी (धातु ३ ई.) लेस क्र० १९७ १७२ रत्नत्रय यंत्र (धानु ३ ई०) लेख क्र० १२२
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४३०
जनशिलालंग्य-मग्रह
१७३ रखनय यंत्र (धातु ३ ई०) लंब ऋ० ११ १७४ दशलक्षण यंत्र (धानु: इ.) लंग फ० १२० १०५ रखनय यन्त्र (धानु३ ई.) लेख ऋ० १०३ १७६ रवय यंत्र ( धानु ३०) लंग २० १३०
लेयरहित प्रतिमा - चाबीसी (काला पा० १ फुट), मिद्ध (धातु इ०, दो मृतियाँ), नदीवर (धानु ५इ०), पाश्वनाथ (याला पा. १० चौबीसी के मध्यम्बिन), पद्मावती (मफल पा० . फु०), पद्मावती (धानु ° इ.),
पद्मावती (घानु ई०), पद्मावती ( धानु ३० ई.), [७] पार्श्वप्रभु दिगम्बर जैन बडा मन्दिर, इतवारी, नागपुर १७७ पाश्र्वनाथ (भानु कु. ) लंग्य ३० १५७ १७८ गातिनाथ (धातु फु०३ इ.) लेग क्र. २२१ १७९ आटिनाय ( चानु १ फु०२०) लंगक० २०१ १८० नन्दीश्वर (धानु ५१० ) लेस ०१०२ १८. पंचमेर (धातु ११०)लेग्य क्र. ०००(चार मूर्तियों) १८२ वासुपूज्य (यानु ७ ई.) लेन ३० REE ३१३ अनन्तनाय (धातु • ई.) लेन३० २३५ १. पार्श्वनाथ (धातु, .) लंग क्र. ७ १८५ चौबीपी (धानु ३७०लेन क्र. ०३१ १८६ बाबीसी (धातु ८ ई.) लंग क्र. १४१ 1८७ धाबीमी (धानु ९६० ) लेख २० १०० १८० रवप्रय मुनि ( बानु है इं०) लस ऋ० ११ १८९ महावीर (धानु १० ई.) लेख ०१.१ १९. चाचीमी (धातु ई०) लेस ०५६ १९१ क्षेत्रपाल (धानु ६ ई.) लेस क्र० २०४
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मन्दिरो व मूर्तियोंका विवरण १९२ सरस्वती (धातु ५ ई०) लेख ऋ० ११६ (दो मूर्तियों) १९३ पाश्र्वनाथ (सफेद पा० १ ० २ ई.) लेख क्र. ३०० १९. यक्षिणी (धातु ४३ ई.) लेख ऋ० १३० १२५ पचमेरु (धातु २ फुट ९ इ०) लेख क्र. २३२ १६६ पार्श्वनाथ (धातु ३ फु०) लेख कं० २३० (दो मूर्तियाँ) ११७ मादिनाथ (धातु १०ई०) लेख क्र० २८२ १६८ बाहुवली (धातु ७ इं० ) लेख क्र० २३६ (दो मूर्तियाँ) १९९ आदिनाथ (धातु ७३०) लेख क्र० २५६ २०० पार्श्वनाथ (धातु ४ इ०) लेख क्र० ३४ २०१ पाश्वनाथ (धातु३३०) लेख क्र० ७० २०२ पार्श्वनाथ (धातु ३३ई.)लेख क्र० ६३ २०३ पाश्वनाथ (धातु ३ ई.) लेख क्र. १६५ २०४ चौबीसी (धातु इ०) लेख क्र० १३६ २०. चन्द्रप्रम (धातु ५ ई.) लेख क्र० २९ २०६ पाश्वनाथ (धातु ५०) लेख क्र. १७८ २०७ पार्श्वनाथ (धातु इ० ) लेख क्र० ३०१ २०८ पाश्वनाथ (सफेद पा० १० ई.) लेख क्र० ९९ २०६ पचमेरु (धातु २ फु० ३ ई.) लेख ऋ० १५४ (दो मूर्तियाँ) २१० चौवीसी (धातु १० इ० ) लेख क्र. १४६ २११ पार्श्वनाथ (धातु ५ इं० ) लेख क्र. ७८ २१२ पार्श्वनाथ (धातु ४३ ई० ) लेख क्र० १५८ २६३ चन्द्रप्रम (धातु इ० ) लेख क्र०६१ २१४ पार्श्वनाथ (सफेद पा० १० ३ इ.) लेख क्र० २१५ २१५ नन्दीश्वर (धातु १ फु० ) लेख क्र० ६२ २५६ चौबीसी (धातु ३३ इ.) लेख क्र. १३७ २१७ नेमिनाथ (काला पा० १ फु० ३ ई.) लेख क्र. २३३
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५४०
जनशिलालेग्य-पग्रह ०१८ आदिनाथ (मफेट पा० १ फु० ) लेय क्र. १६ २१९ पद्मप्रम (मफट पा० १० इ०) लेग क्र. ६ ०२० चौसठ ऋद्धि (धातु ५१०) लेस क्र. ११२ ००१ पार्श्वनाथ ( यातु ई.) लेस क्र० १०४ ०२२ चाबीसी ( बातु ड०)लेय क्र. २८३ २२३ पाश्र्धनाय (धातु ५३० ) लेय क्र. ६६ २२५ मुनिमुव्रत ( काला पा० १ फु० ३६० ) लेस क्र. २२७ २०५ पार्श्वनाथ (धातु ५३ ई० ) लेस क्र. ३७ २०६ चौधीमी (धातु १० इ० ) लेस क्र. २३४ २०७ शांतिनाथ (धातु ६६०) लेस क्र. १७७ ०८ श्रेयांम (काला पा० ७६) लेस क्र. १०५ २२६ चिन्ह रहित मृति ( काला पा० १०६० ) लेय क्र. 8०३० आदिनाथ (मफेट पा० १०६०) लेय क्र. ०३३ २३१ मुनिसुघत (मफेट पा० ३ फु० ३ इ. ) लेस क्र. ५ २३२ पार्श्वनाथ (मफट पा० ३ फु०३ ई.) लेस क्र. ५ ०३३ निसरजी पादुका (सफेट पा० १३ फु० ) लंग क्र० २८२ ०३४ पद्मावती (धातु ११ .) लेख क्र० ००९ २३५ यक्षिणी (धानु ७ इ . ) लेय क्र० ७०. २३६ यक्षिणी (धातु .) लेस ऋ० १६८ ०३७ पद्मावती (धानु ११३०) लेग क्र. २१० २३८ आदिनाथ (मफंट पा० फु० २१०) लेस ऋ० १८ (दोमूर्तियाँ) ०३९ आदिनाथ (मफेट पा० ९ई) लेख क्र. १० (टी मूर्तियाँ) २४० शीतलनाथ (सफंट पा० १३०) लेस क्र० १८ २४१ पाश्र्वनाथ (सफेट पा. १० इ०) लेन क्र. १८ (दो मूर्तियाँ) २४. पाश्चनाय (सफेद पा० १ फु० ३ इ० ) लेख क्र. १८ (दो
मूर्तियाँ)
AI
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मन्दिरों व मूर्तियांका विवरण
२१३ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ११ इ० ) लेन क्र० १८ (टी मूर्तियाँ ) =१४ चन्द्रप्रभ ( सफेद पा० १ } लेग्न ऋ०१८ (डी मृतियाँ ) २२५ पद्मप्रभ ( सफेट पा० ६ इ० ) लेख क्र० १८
O
१६ मुनिसुव्रत ( साँवला पा० ८ इ० ) लेस क्र०१८ (डो मृतियाँ ) २१७ चन्द्रप्रम ( मॉचला पा० ६ इं० ) लेस क्र० १८ २१८ आदिनाथ ( सफेद पा० १ फु० ) लेस क्र० १८ ( दो मूर्तियाँ) २१६ सुपाञ्चनाथ ( सफेद पा० १ कु० ) लेन क्र० १८
२०० सुपार्श्वनाथ ( सफेट पा० ६ इ० ) लेग क्र० १८ २५१ सुमतिनाथ ( सफेद्र पा० ७ ई०) लेस क्र० १८ २५२ अरनाथ ( सफेद पा० १ फु० ) लेग क्र० १८ ( टी मूर्तियाँ) २५३ नेमिनाथ ( सफेद पा० १० इ० ) लेस क्र० १८ ( दो मूर्तियों) २५१ सुपार्श्वनाथ (सफेद पा० ९ इ० ) लेन क्र०१८
२५५ अजितनाथ ( सफेद पा० १ फु० ) लेख क्र० १८
१ पु० ) लेग ऋ०१८
३५६ श्रयांसनाथ ( सफेट पा० २५७ सुनिसुव्रत (सफेट पा० ११ ई० ) लेस क्र०१८ (दो मूर्तियों) २५० पार्श्वनाथ ( सफेट पा० = फु० ट इं० ) लेस ऋ० १८ २५३ अजितनाथ ( लाल पा० १० ड ) लेख क्र० १८
०६१ नेमिनाथ ( लाल पा० २६३ पार्श्वनाथ ( लाल पा०
२६० चन्द्रप्रस ( सफेद पा० ७ ई० ) लेस क्र० १८ (ढी मूर्तियॉ ) ११ इं० ) लेन क्र० १८ १० इ० ) लंग क्र० १८ २६३ पार्श्वनाथ ( बानु २ इ० ) लेख क्र०१८ ( दो मूर्तियाँ ) २६४ चन्द्रप्रस ( सफेद पा० ५ इ० ) लेस क्र०१८ २६५ मम्यकृचारित्रयंत्र ( धातु = इं० ) लेस क्र० ६८ २६६ दशलक्षण यत्र ( धातु " इं० ) लेख ऋ० १६ २६७ सम्यक्चारित्र यंत्र ( धातु = इ० ) लेख क्र० १२१ २६८ सम्यग्दर्शन यंत्र ( धातु ५ इ० ) लेख क्र० ३६
229
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११०
जमिनगलंय-संप्रह ७६ सम्यऋचाग्नित्र (घानु ५६० नंग्न ऋ०४९ -७० अठयंत्र ( धानु - ई.) लेप ०११ २७१ सम्यग्दर्शनत्र ( शानु ५१०)ले ०५४
४२ सम्यन्दनपत्र (यानु ७ ई.) लेखक. ११ २७३ दशमनणयंत्र ( धानु ई.)लंग ०६५ ००८ ऋनिकृष्टयंत्र ( धातु ई०लेय ३० ७३
७५ मिडयंत्र (घानु . ) लंग्न ३०० २७६ पोदाकारगयय ( भानु ११६०)लंग ऋ० २६३ ०७. दमलनणयंत्र ( धातु ११ ई०)लंग ऋ०१३
लंगपरहिन ननियाँ - मनपि ( धानु ५ से १०). पाश्चनाय ( काला पा० : पु०ई०), आदिनाय (पाला
वालुकापापाग २ पु० ३ इ.) [८] दिगन्चर जैन पन्बार मन्दिर, इनवारी, नागपुर २७. श्रीनवनाथ (धानु४० ) लेख क्र. ७० २७० नेमिनाय (घानु ई.)लंय ऋ०७२ २० पुष्पदन ( धानु ५ई. लग्य१० २०२
८. पानाय (फ्ट पा०11.लेन क्र. १०३ ०८. अन्द्रग्रन (पीला पा )लंच ०२० २८ पानाय ( काला पा० ६ .) लंब .२० .४५ चार्गी ( धातु ५६०)लंग्य ३० २५६ २.५ पार्थ नाय ( मष्ट पा० फु०) लेख ३००५६ २. पार्थनाय (धानु इ० )लंय . २४१ (दो मूर्निया) 3 आदिनाय (धान )लंग्न ... २८८ वायुज्य (धानु .) लंग्य ३०२४१ ८. महावीर (वानु" ई.) लेख ऋ० १४१
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मन्दिरों व मूर्वियाका विवरण २९० अजितनाथ (धानु ६ इ.) लेख क्र. २४१ २६१ पार्थनाय (धातु १ फु०) लेख क्र० २४१ २९. पाश्वनाथ ('धानु २ इ.) लेख क्र. २६८ २६३ चौवामी (धातु ई.) लंस क्र. २०१ ०६१ चन्द्रग्रम (मपंढ पा० . फु० ) लेस क्र० २५७ २९५ नमिनाय (मफेद पा० ३ फु० २ इ.) लेख० क्र० २५७ २४६ नेमिनाथ (धानुई.) लेय क्र० २५८ २९७ पाश्वनाय (धातु ३ .) लेस ०२५७ २९८ चन्द्रप्रम (मफेट पा० १० इ०) लेस क० ६५ २६९ अजितनाथ (गला पा०३०) लस ० १६५ ३०० चिह्नरहितमूर्ति (काला पा० . इ०) लेख क्र० २२२ ३०१ आदिनाय (घातु ६ इ० )लेस ऋ० २५७ ३०२ चिह्नरहित मर्ति (सफेट पा. १० इ. ) लेन क्र. ६ ३०३ चौबीसी (धातु है इ०) लेस ऋ० २४१ ३०४ पार्श्वनाथ (वातु २ ० ) लेस ० २७३ ३०५ पार्श्वनाथ (धातु २ इ० ) लेस क्र. १४७ ३०६ पार्श्वनाथ (धातु २ ई.) लेस क्र. ४१ ३०७ अजिननाथ ( सफंढ पा० १ फु० ) लंच क्र. ४० ३०८ अनन्तनाय (धातु ८० लेस क्र० २४१ ३०६ सुपाश्वनाथ (काला पा० ११ ई.लेन क० २६ ३१० चितरहितमति (सफंट पा० १ . ) लंस क्र० ० ३१६ मुनिमुवत (काला पा० ११ इ. ) लेग्य 30 ४७ ३५० पाचनाय (सफेट पा० ९ इ.) लेस क्र. ०५६ ३१३ मुनिमुव्रत ( मपंढ पा० ७ ई.) लेस क्र० २५६ ३१८ आदिनाथ (सफेद पा० ३१ इं. लेस क्र. २.९ ३३. पाश्चनाय (धातु ३३ ई० ) लेख क्र. १७६
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४५५
जैनशिलालेख-सग्रह ३१६ पार्श्वनाथ ( धातु २० ) लेख . १६४ ३१७ पार्श्वनाथ (सफेट पा० २ ० ३ इ.) लेस ३० २५७ ३१८ पार्श्वनाथ ( काला पा० २ फु० ४४०) लेख क्र० ०५७ ३१९ नन्दीश्वर (धातु ५४०) उर्दू लिपिमें स० ३२० आदिनाथ (धातु ६,इ)लेस क्र. २८४ ३२१ शीवलनाथ (लाल पा. १ फु० ४ इ० ) लेस क्र. २५५ ३२२ महावीर (धातु १ फु०६ ई.) लेस क० २८४ ३२३ पुष्पटत (धातु १ फु० ९ ई.) लेस क्र० २४ ३२४ पार्श्वनाथ (धातु २३०) लेख क्र. १७६ ३२५ महावीर (धातु ४ इ.) लेस क० २८० ३२६ चौवीसी (धातु ३ इ० ) लेस क० १२७ ३२७ चौबीसो (धातु ५६.) लेस क्र. २६० ३२८ अक्षिणी (धातु ४ इ०) लेस ३० २३९ ३२६ यक्षिणी (धातु इ.)लेस क० २३९ ३३० यक्षिणी ( शतु ५ इ.) लेख क्र. १४० ३३१ यक्षिणी ( धातु ) लेस क० २४१ (ो मूर्तियाँ) ३३२ चन्द्रप्रम (धातु फु०२६)लेस क्र० ०१७ ३३३ चौवीसी (धातु ५ ई.) लेस क्र. २४ । ३३४ रत्नत्रयमूर्ति (धातु ५ ई) लेख क्र० २४१ ३३५ पार्श्वनाथ (धातु ३०) लेख क्र० १५५ ३३६ पाव नाथ (धातु २३ ई.) लेस क्र. ८४ ३३७ पाश्वनाथ (धातु ४ ) लेख क्र. २४१ ३३८ पार्श्वनाथ ( धातु ३६.) लेख क्र. १४५ ३३९ मादिनाथ (धातु इ.) लेस क. २६१ ३४० पार्थ नाथ (सफेद पा० ११६.) लेख क्र० २५७ ३४१ चन्द्रप्रभ (काला पा०८इ.) लेख क्र. २५०
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मन्दिग य मतियाका विवरण ३४. पार्थ नाथ (लाल पा० १ कु.) गायक. २०३ (तीन मुनियाँ)
३ नेमिनाथ (मफंट पा०110)पक. १७ ३५ आदिनाथ (काला पा. ७0 ) नग्न फ्र० ०६. ३१५ पाच नाथ (ग्वफंट पा० पु.) गंय.:५७ ३४६ अग्नाय ( काला पा० ३ )ग ३० 182 ३५. चन्द्रग्रम (धातु ५:०) लेग म० ३५८ आदिनाथ (धातु १४.)गर ऋ० १०
४% भीगलनाथ (धारा ६४०) रोग फ० २४१ ३.० आदिनाथ (धानु::.)ग्य क्र. २५१
५१ पानाथ (धागु ५:०)य क. २११ ३५२ चार्यानी (धानु१०)नंग्न क.० २४१ ३.३ पानाथ (धान ... ) गंग फ० ३०३ ३५२ पायनाय (धानु ...)लंग ऋ० ११ ३४. चन्द्रप्रभ ( धातु ७६ ) गंग ० ०६३
५. अजिननाय (धान ७:०)जग्र क्र. २६४ ३.७ आदिनाथ (धानु ७२:०) लंग्य क. ०११
05 आदिनाथ (धान नंग फ्र. ३०४ ३५० नन्दीश्वर (धातु ३० ) रोग्य क० १११ ३६० मुपायनाय (धातु ५४०) जय . ०४१ ३पाबनाय (धानु...)नंग्न फ्र. 104
- महावीर (धातु ५४०) लंग्न ३०० 3आदिनाय (धानु30)लंग ऋ० २६७ ३६४ श्रादिनाय (धानु :0) गंग्य क्र. ०४१
६. महावीर (धानु )लंग क० २.१ ३६६ आदिनाथ (धातुफु०)ग्न क... ३६७ पुष्पदन्त (मट पा० फु० )ग्य क्र० १८
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४४६
जैनशिलालेय-मग्रह ३६० मरनाथ (मफेद पा० ७.) लेख ऋ० १८ ३६९ चन्द्रनाथ (मफेट पा० ८ ई.) लेख 15
लेखरहित मूर्तियाँ - वासुपूज्य (काला पा० ५ इ.), पाश्वनाथ (सफेट पा० १ ० २ ई.), पार्श्वनाथ (काला पा.१० ई.), शान्तिनाय (धातु इ.), १५ मतियाँ
शेष तथा चिह्नके विना छोटी-छोटी हैं। [९] दिगम्बर जैन मन्दिर, सदर बाजार, नागपुर ३७. पाचनाय (काला पा० १० पु. ) लेन क्र. १६४ ३७१ चन्द्रप्रम (मफेद पा० १ फु० ) दोग्य ऋ० २६१ ३७० पार्श्वनाथ (काला पा० १ फु० ) लेस क्र. १९१ ३७३ शातिनाय (धानु ४६. रोग्य क्र. २६५ १७४ यक्षिणी (धातु ५३०)स क्र० २६५ १७५ पाश्र्वनाथ (धातु ई.) लेख क्र० ११५ ३०६ चाबीसी ( बातु ११.) लेग्य क्र. ०७१ ३७७ हालक्षण यत्र (धातु ६ इ.)लेय ऋ० १०७
लेसरहित-पद्मग्रम (मट पा० १ फु०) [१०] गृहचैत्यालय-श्री० मुन्दरसा हिरामा जोहरापुरकर,
इतवारी, नागपुर ३७८ पार्श्वनाथ (धानु ४ इ.) लेख ऋ० १३३ ३७९ पाच नाय (धातु ४ ई.) लेग्य फ० ३०५ ३८० रत्नत्रय (धातु ३३ई.) क्षेस ऋ० १५ ३८. पाच नाथ (धातु २३०) लेस ३० ३०६ ३८२ पाश्वनाथ (धातु २ ई.) लेख ०७१ ३८३ पाश्र्वनाथ (धानु ३६ लेस क्र. २१
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मन्दिरों व मृर्तियोका विवरण
३८४ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० १२९ लेखरहित - छोटी-छोटी धातुकी १० प्रतिमाएँ
४४७
[११] गृहचैत्यालय-श्री० अवादास गुलाबसा गहाणकरी, इतवारी
३८५ चौवीसी ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० २३१ ३८६ आदिनाथ ( धातु ३ इ० ) लेख क्र० २८६
३८७ पार्श्वनाथ ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० २८८
३८८ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेस क्र० १००
[१२] गृहचैत्यालय - श्री० माणिकला चिन्तामणसा दर्यापुरकर, इतवारी
३८६ चौवीसी ( धातु ४ इ० ) लेख क्र० ८० ३९० पार्श्वनाथ ( धातु ४ इ० ) लेख क्र० ३०७
३१ यक्षिणी ( धातु ४ ६० ) लेस क्र० ४५
३६२ नवग्रह यंत्र ( धानु ४ इ० ) लेख क्र० २०१
[१३] गृहचैत्यालय - श्री० रतनसा गणपतसा देवलसी, इतवारी
३९३ पार्श्वनाथ ( सफेद पा० ४ इं० ) लेख क्र० २८८ ३९४ आदिनाथ ( काला पा० ४ इं०) लेख क्र० २८८ ३९५ चन्द्रप्रभ (काला पा० ४ इं० ) लेस क्र० २२४ ३९६ चौवीसी ( धातु ४ इ० ) लेस क्र० २१२ ३७७ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० २६४
३९८ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० ३०८
लेखरहित - पार्श्वनाथ ( धातु २३ इं० ), आदिनाथ ( धातु રશ્ને ૬૦)
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जनशिलालेय-मग्रह
[१४] गृहचत्यालय - श्री० कन्हयालाल सुन्दरसा गरिबे, इतवारी
३६९ पार्श्वनाथ ( धातु ४ ४० ) लग्न क्र० ३४ यक्षिणी ( धातु ६४० ) -लेग्नरहित
४४८
[१५] गृहचत्यालय - श्री ० मवाईस गई मोतीलाल गुलावसा, इतवारी ४०० पार्श्वनाथ (धातु ४० ) लेख क्र० ३०९
४०१ यक्षिणी ( धातु "
) लेख क्र० १४५
लोग्नरहित पार्श्वनाथ (धातु ४ इं०), चन्द्रप्रभ (स्फटिक, ३६०)
D
[१६] गृहचैत्यालय श्री ० हिरामा पदासा खोरणे, इतवारी
४०२ आदिनाथ ( धातु ४ इ० ) शेस क्र० २७५ ४०३ पार्श्वनाथ ( धातु ३ इ० ) लेन क्र० ३०८ ४०४ पार्श्वनाथ ( धातु २ ६० ) लेन क्र० ३१० २०५ यक्षिणी ( धातु ६ इ० ) लेस क्र० १०१ [१७] गृहचत्यालय श्री० दादा गुलाबसा मिश्रीकोटकर, इतवारी ४०६ चौबीसी ( धातु ३ ६० ) लेग क्र० ९४
[१८] गृहचेत्यालय श्री० हिसा खेमासा जोहरापुरकर, इतवारी ४०७ पार्श्वनाथ ( धातु इ० ) लेस क्र० ३११
D
[१९] गृहचत्यालय-श्री जयकुमार प्रभुसा किल्लेदार, इतवारी ४०८ पाठवनाथ ( धातु ४६ ० ) लेग क्र० ४२ [२०] गृहचत्यालय श्री तिलोकचद येमूसा खेडकर, इतवारी ४०९ चौबीसी (धातु ३ इ० ) लेस क्र० ९४
४५० पार्श्वनाथ ( धातु २३ ई० ) स क्र० २८६ ४११ आदिनाथ ( धातु २ ई० ) लेस क्र० १३४
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४१९
मन्दिरों व मूर्तियोंका विवरण ४१२ चरणपादुका (धातु २६०) लेख ऋ० ११२
लेखरहित - शान्तिनाथ (धातु २ इं.), पाश्र्वनाम
(धातु २ ई.) [२१] गृहचैत्यालय-श्री विष्णुकुमार हिरासा जोगी, इतवारी ४१३ यक्षिणी (धातु ६ ई.) लेख ऋ० ११ ११४ यक्षिणी ( धातु ५३ ई.) लेख क्र. ५५
लेखरहित - (चौवीसी धातु ३ ई०), महावीर (धातु २६६०) [२२] गृहचैत्यालय-श्री नागोराव गुजावा श्रावणे, इतवारी ४५ सिद्ध (धातु १ ई० ) लेख ३० २८८ ४१६ आदिनाथ (चांदी ३ इं.) लेख क्र. २८८ (दो मूर्तियाँ) ११. आदिनाय (धातु ३ ई.) लेख ऋ० २८८ (दो मूर्तियाँ) ११८ पार्श्वनाय (सोना २ इ० ) लेख ऋ० २७७ ४१९ चौबीसी (धातु ५ ई.) लेख क्र० २३० ४२० चरणपादुका (चाँदी १ ई.) लेख क्र० ३१२
लेखर हत - पार्श्वनाथ (धातु ३६०) (दो मूर्तियाँ),
बाहुबली ( धातु ३६०), सरस्वती (धातु २ ई.) [२३] गृहचैत्यालय-श्री गुलाबसा व्यकुसा मिश्रीकोटकर, इतवारी १२१ चन्द्रप्रम (धातु १३ई.) लेख क्र. ४४ ४२२ पाश्वनाथ (धातु ५ई.) लेख क्र. २९० ५२३ यक्षिणी (धातु ३३ इ० ) लेख क्र. १७५
लेखरहित-पार्श्वनाथ (लाल पा० ३ इ.) [२४] गृहचैत्यालय-श्री०हिरासा जिनदास चवड़े, इतवारी ४२५ सिद्ध (धातु । ई० ) लेख क्र० २५८ १२५ पाश्वनाथ (धातु ३ इ० ) लेख क्र. १८६
२९
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१५१
मन्दिरों व मूर्तियोका विवरण ११ पार्श्वनाथ (धातु २२ ई०) लेख क्र० ६४ ४४२ पाश्र्वनाथ (धातु २३ इ.) लेख क्र० ३१४ ४४३ यक्षिणी (धातु ६ इ.) लेख ऋ० १५६ [३१] गृहचैत्यालय-श्री०वर्धासा सकुसा महाजन, इतवारी ४४४ चौवीसी (धातु३३ ई०) लेख क्र० १५६ १४५ पार्श्वनाथ (धातु ३ ई.) लेख क्र० ३६ ४४६ षोडशकारण यंत्र ( धातु ३ इ.) लेख क्र० १२२ ५४० यक्षिणी (धात ५ इं.) लेख क्र.३० ४४८ यक्षिणी (धातु ५३०) लेख ऋ० ११ ४१६ यक्षिणी (धातु ५ इ० ) लेख क्र. १२५ ४५. यक्षिणी (धातु ५ इ०)लेख क्र. ४६
लेखरहित-पाश्र्धनाथ (धातु ५ ई.) [३२] गृहचैत्यालय-श्री नत्थुसा पैकाजी चवरे, इतवारी १५५ सुपाश्र्वनाथ (सफेद पा० ५६० ) लेख ऋ० २६६ ४५२ चन्द्रप्रम (धातु २ ई.) लेख क्र. ११६ १५३ पार्श्वनाथ (धातु २३ इ.) लेख क्र० २७ ५५. पार्श्वनाथ ( धातु २३ ई.) लेख क्र. २१३ ( दो मूर्तियाँ) ५५५ पार्श्वनाथ (धातु २ इं०) लेख क्र. ३१५ ४५६ पाश्वनाथ (धातु ३ ई.) लेख क्र० ३०० (दो मूर्तियों) ४५७ यक्षिणी (धातु ५ ई.) लेख क्र. १०६
लेखरहित-पार्श्वनाथ (धातु २ ई.) [३३] गृहचैत्यालय-श्री रुखवसा पिंजरकर, इतवारी
५५८ पाश्र्वनाथ (धातु २३ ई.) लेख क्र० २१३ [३४] गृहचैत्यालय-श्री लक्ष्मणराव देवमनसा बोबडे, इतवारी १५५ पाश्र्वनाथ ( धातु ३ इं० ) लेख ऋ० १६६
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जैन शिकालेस संग्रह
४६० पार्श्वनाथ ( धातु २३ डं० ) लेस क्र० ३५ ४६१ पार्श्वनाथ ( धातु २३ इं० ) लेस क्र० ३६ ४६२ चौबीसी ( धातु ३ ई० ) लेख क्र० ११७ ४६३ चिह्नरहित मृर्ति ( धातु २ ६० ) लेस क्र० १४३ ४६४ पार्श्वनाथ ( काला पा० ३ इ० ) लेस क्र० ३१६
४५२
[३५] गृहचैत्यालय - श्री बापुजी विश्रामजी गिल्लरकर, मस्कासाथ ४६५ आदिनाथ ( धातु ३ ६० ) लेख क्र० १७० ४६६ आदिनाथ ( धातु २६० ) लेख क्र० ३१७ ४६७ पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० १६७ ४६८ यक्षिणी ( धातु ७ इं० ) लेस क्र० १८६ लेखरहित - पार्श्वनाथ ( धातु १३ इ० )
[३६] गृहचैत्यालय - श्री गोविंदराव शिवराम नाकाडे, इतवारी ४६९ चोवीसी ( धातु ४ इ० ) लेख क्र० १३६
४०० चिह्नरहित मूर्ति ( धातु ३ ६० ) लेस क्र० १६३
४७१ पार्श्वनाथ ( धातु ६ हैं ० ) लेख क्र० २०३ ४७२ पार्श्वनाथ ( धातु २ इ० ) लेख क्र० ३१८ ४७३ यक्षिणी ( धातु ३ इं० ) लेख क्र० १७१ ४७४ यक्षिणी ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० ११० ४७५ दशलक्षणयंत्र ( धातु ४३ इ० ) लेख ४० ५० [३७] गृहचैत्यालय-श्रीमती सानाबाई बापुजी गाघी, इतवारी ४७६ पार्श्वनाथ ( धातु ४ इं० ) लेख क्र० ८५ ४७७ पार्श्वनाथ ( धातु ३ ६० ) लेख क्र० १७२ ४७८ पार्श्वनाथ ( धातु २ इं० ) लेख क्र० १२४ ४७६ चन्द्रप्रस ( धातु १३ इं० ) लेख क्र० १७३
लेसरहित - पार्श्वनाथ (धातु ३ ६० ) यक्षिणी (धातु ६ ई० )
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भन्दिरो व मूर्तियाँका विवरण
४५३ [३८] गृहचैत्यालय-श्री राजावापू लच्छावापू ठवली, इतवारी ५८० चौवीसी (धातु ३ ई.) लेख क्र. १७४ ४८) यक्षिणी (धातु ३ इ.) लेख ऋ० १९६, १८२ यक्षिणी (धातु ४ इ० ) लेख क्र० २५ [३९] गृहचैत्यालय-श्री जयकृष्णपत सावलकर, इतवारी १८३ पार्श्वनाय (धातु ३ इ० ) लेख ऋ० ५३ ४८५ यक्षिणी (धातु ७ ई०) लेख ३० ३१ [४०] गृहचैत्यालय-श्री कृष्णाजी भागवतकर, इतवारी २८५ सिद्ध (धातु ३ ई.) लेख क्र० २८८ ४८६ पाश्वनाथ (धातु २ इ० ) लेख क्र० ३०४
लेखरहित - यक्षिणी (धातु ३ ई.) [४१] गृहत्यालय-श्री राजाराम डुब्बीसाव काटोलकर, इतवारी १८७ चौबीसो (धातु ३ ६.) लेख क्र० २४३ VE पार्श्वनाथ (धातु २ इ० ) लेख क्र० ३१९
लेखरहित - चन्द्रप्रम ( सफेद पा० ४ इ.) [४२] गृहचैत्यालय-श्री हिरासा नत्थुसा मुठमारे, इतवारी ४८९ पावनाय ( धातु १ इ.) लेख क्र. ५६ ४९० भादिनाथ (धातु २ इ०) लेखक० ३३ ४६१ चौवीसी (धातु ३ इ० ) लेख क्र० ११३ १६२ पार्श्वनाय (धानु २ इ.) लेख क्र. १८७ ११३ पार्श्वन (धातु २६०) लेख क्र. ३०७
लेखरहित - यक्षिणी (धातु ३ ई.) [४३] गृहचैत्यालय-श्री स्खबसा विनायकसा, इतवारा १६४ पावनाय (धातु ३ ई.) लेख क्र० ३२२
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१०४
अनगिलालेय-समह [४४] गृहचैत्यालय-श्री पाडुरंग वापूजी उदापूरकर, इतवारी
४९५ पायनाय ( धातु २१ ई.) लेप ० ३.३। [४५] गृहत्यालय-श्री गणपतराव पलमापुरे, इतवारी
१६६ पाउत्रनाय (धानु - १०)लेय क्र. १८७ [४] गृहन्यालय-श्री सुरेन्द्र गगामा जोहरापुरकर, इतवारी १९७ चन्द्रप्रम (धानु इ.)लंगर...
लेवहिन - पाळनाथ ( वान ४०)
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नामसूची
उल्लिखित अंक पृष्ठों के हैं। मकवर ३२८
अनितकोति ३६०, ४०७, ४१३अकलंक ५८,६०, १७५, २००,
२१४, २१६, ३३५, ३३८, अजितचंद्र २२१, २२३
३३९, ३७७, ३७९ अजितसेन ९२, ९३, १७५, २१४, अकालवर्ष ३१, ४४, ५३
२१६, २२७, ३६१ अकोटा ३८५
अग्न ३०४-५ अक्कम्म ३१४
अज्जणदि २१, २२, ४२ अक्कलकोट ११३
अज्जरय्य ५६ अक्रमालकामोज १६६
अणहिल्लपुर २२१-२ अक्कादेवी ८४,८५
अण्णन् २५५ अक्कूर ३७४
अण्णमय १६४ अगरवाल ३९५,४०२
अण्णिगेरे २५ ८५, १०४, १०७, अगस्तियप्प ३४७
१०९, १११, २५९ अगित ४
मत्तिमन्चे १४९ अगोकमोगे ४०
अत्तियचे ७३ अगलदेव ९१,९३, १०२
अथनी २३२ अग्गलमेट्टि ३७४
मदरगुचि २६६ अग्गोति २७
अनत्तवन् २२ अच्युतदेव ३१७
मनमकोड १४१, १४३, १४५ अषण ३५५
अनुपमकवि ६१-२ अजयमेरु १९१
अनतकसेट्टिति २९७
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४५६
जैनशिलालेख-संग्रह
अनंतकीति २५०, २९६ अनंतवीर्य १७५, १७७, ३५५-६,
३६०, ३६५, ३७९ अपराजित ३५-६ अप्पण २३८-९, २४४ अप्पाण्डार २७९, ३५७, ३७६ अबडनगर ३९५, ४१० अवेयमाचर २९२ अब्धक्कदेवी ३२७ अमयचद्र ९६, ३५९, ३६२ अभयनंदि १०५, ११०-१, २५८,
२७१ अभिनदन २२ अमरकांति २७८, २८८, ३११ अमरमुदलगुरु ४२ अमरसिंह ३४० अमरापुरम् २६०, ३८० अमिदसागर ३९१ अमृतपाल १६० अमृतब्वे ५५-६ अमृतब २६० अमोघवर्ष ३३-४, ३६-७ अम्ब ३०४-५ श्रम्बले ३६९ अम्बावती ३४३ अम्बाराय ३०३-५
अम्मरस ३८ अम्मराज ६४.६५, ६८,६९ अम्मिनभावि २२९ अरबवल्लि १३४ अय्यप्प २६ अय्यवोले १६४ अबतोक्कल २६३ अवसामि ७१ मरताल १४८ अरत्तुलान् देवन् ८३ अरमडमेगलु ४० अरयन् उडेयान् ९९ अरसप्पोडेय ३४७, ३५६ मरसरवसदि ११२ अरसय्य १२०-१ अरसीवीडि ८३, १२१, १५३,
१८३ मरिकुठार ३१४ भरिकैमरी १३९ मरिन्दमगलम् ५६ मरिमंडल २२ . अरिवन् कोयल ३९ अरिविगोज ६२ गरिएनेमि १६, ५२ अगर देवर ९९ मरुमोलिदेव १६०
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१५७
नामसूची मरुमोलिदेवपुरम् १६७, १७६ माकलपे २५९ मक्वन्दै पाण्डाल २८९
आकाशिका ९६ मस्वाहि १
भाकियमगिसेट्टि ३०८ महणदि ११२, २५८
आगुप्तायिक १५-१६ अरुगलान्वय १२८, २१४, २१६, आवगोड १८६ २३३, २६७, २६९
आचण १८६ अरेयचे ८८,८९
आचन चामुण्डर ६९ अरयगाविदि २२
आचलदेवी १७१ अर्णोराज १८९
बाञ्चन् २२ अहंदि ७३, १३४, २५२-३,२७१ आदकोण्डान् १६७ अलगरमले ४२
आणदेव २२८ बलनावर ११४
भाण्डारमडम् ५६ अलवर ३८७-८
मादगे १३८ अलियमरम ३८
आदवनी ३१२, ३२६ अवनिपशेखर ३६
आदित्यवर्मा ३७५ अवनिमहेन्द्र १८, २०
आदिनाय १२०-१ अविनीत १२, १७, २०
आदिराज ३०३ अष्टोपवामी २२,७७, ९३, २५८, आदिसेटि २९७, ३१६
आदिसेन ३५२
आनदमंगलम् २५१ अमवम्बरसि १२२ ममुण्डि ४४
आनेसेज्जवसदि ११३ महिच्छत्र १८९
आपिनहल्लि ३४५ अक १५३
आधू ३८५ अकनाथपुर ७०-१, १३४
आमरण ३८६ अकुलगे १३८, १४०
आम्बट १९१, १९६ अकेगेड ८९
आयतवर्मा ५६,७७
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४५८
जनशिलालेस-संग्रह मायचगावुण्ड ७६
इन्दरपिट्टम्म ४० आयुचप्पय्य ११२
इन्दौर १९७, २६१, २८४ याचिमय्य ९८
इन्द्रकीति ९४, १५८ माम्बोज.८८-९
इन्द्रणंद १५-१६ आरम्बनदि १५८
इन्द्रनदि ७३, १२६, २३४ मारान्दमगलम् ७५
इन्द्रराज ३१, ३४, ३६, ५५,६१आरियदेव २२७ यावलगपेरुमान् ४१
इन्द्रभूपाल ३३५ आर्यणदि १५, १६, ४३
इन्द्रभूषण ४०६, ४०९-११ धार्यपंडित ११२
इम्महि १७६ आर्यसघ ५७
इम्महि अरसप्पोदेय ३४७ मालपदेवी ३८०
इम्मडिदेवराय ३१५-६ बालप्पिरन्दान् मोगन् १६६, २७४ इम्मडिवुक्क २८८ मालाक १३२
इम्मडिभैरवरस ३१५ भालुप १५४
इरुण २८८ बाणिका १९०
इरुगोण २६० शिरियन् ३९
इरुवुन्दूर ३०४-५ माहड १९६
इरुगोल ३८० आहवमरल ७३, ७८,८१, ८२ इलपेरुमानडिगल् ७५ । भातरी ३८७
इलगौतमन् ३९ इक्केरि ३३९
इंगणेश्वर-इगलेश्वर २१७, २२४, इट्टगे १०४, १०९
२३२, २६६-७, २७२, २७४, इडयारन् १६७
३७४, ३७६, ३८०, ३८३-४ इडयालम् ३७६
इंगरस ३०८ । इदम्पटुव १२
इगोली ३९५, ४१९ इन्दप १२०-१
हुंचवाडि ५८
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नामसूची
१५९ ईश्वर १२०-१
उरिगपमिडि २० उक्काल ७४
ऊन १२७ उक्वेिट्टि २७३
ऊरकाडु १७८ उगरगोल १४९
ऋपिदान उगुरु २६३
ऋपिशृगी १४९ उग्रवाहि १४४.५
एकच्चे २७३ उच्छगि २०४, २६६
एकतंधि १७५ उज्जत ३२५
एकमवि १८५ उज्जेनीपल्लीवाल ३९५, ४०८-९, एक्कसम्बुगे १८ ४११
एक्कोटिजिनालय २१९-२० उज्वल १९२, १९७
एचलदेवी २०२-३, २१२ उडिपि ३०५
एचिकच्चे १२०-१ उढयार १२७
एचिसेट्टि २०५ उदय २३८, २४४
एटा २६१ उदयगिरेन्द्र ४०३
एडेनाडु २८ उदयचन्द्र १०७, ११०, २५८, एणकुनल्लनायकर २५५ २७१
एरक ७६ उदयपुर ७५, ३८६-८८
एरणदि १६७ उदयादित्य १२७, १५४, २०२, एरेकप ११७, १२०
२११, २१७, २२४ एरेग ११६-७, १२०, १२४ उद्दार २९३
एरेय ४३-४४ उद्योतकेसरी ५६-७
एरेयप ५८,६० उमरावती ३९५,४१६
एरेयमय्य ११६, १२० उम्पटाचण वसदि ३७२ एरेयग ५८, १०, १२२-५, १५४, उम्बरवाणि २४६, २४९
१७६, २०२, २११, २७० उम्मत्तूर ७०, ३५८
एलयाचार्य २८, ३०
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जैनशिलालेस-सप्रह
एलाचार्य ४४,५४, २८८ ऐनुरुषपेरुम्पल्लि ३६६ ऐवर अंवण ३५३ ऐवरमले ३७ ऐहोले १४५ मोखरिक ५,६ ओगण ३५५ ओडेयमसेट्टि ३७९ बोड्डिपाणि ४० ओवेयमसेट्टि ३६५ ओरकल्वायगर १९,२० भोगेर ३८१ करकरगोड १०५, ११० कन्धिनायकर २७४ कच्चिनायनार् १६६ कच्चियरायर २७४ कच्छवेगडे २३०-१ कछवाह ३४३ कडकील २६१ कडलेहल्लि २१५-६ कडितले २६८ कणवियसेट्टि १०८ कणितमाणिकसेट्टि ८३ कण्डन् पोपट्टन् २२ कण्डन् माधषन् ३९१ कण्डूर, कण्डूर गण ११६, १२०,
१५०, १५२, २७५, ३८४ कण्णम्मन् १८-२० काण्णमेट्टि २१४ कण्णूर १३४ कत्तम १८५ कदम्ब १३, १५, २६, ३८,७१,
८२, ११४, १२३, १२४-५, १३६, १४८,१५७, १७१-२, २०८-९, २५०-१, ३१३,
३७८ कदलालयवसदि १४३, १४५ कनककीति ३६३ कनकगिरि ३४६ कनकचन्द्र १४८, २५८, २७१ कनकचिनगिरि २७३ कनकनन्दि २२, ७७, ९५, १०२ कनकरायनगुड ३६१ कनकवोर २२, ५६, १६७ कनकशक्ति ९५ कनकसेन ३९, ९२-३, १७५ कन्नडिगे १८२ कन्नडिवसदि ३०९ कन्नप १२०-१, १६४ कभर (कन्वर, कन्हर) देव ४५,
१५१, २५६-७,२६३ कनिसेट्टि ३७३
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नामसूची न्नुपनिाडु ३५८
कर १७९, १८२, १८६-३, कमलदेव १०८, २९१
१९८, २०१ कमलमद्र ७०,२१४-५
कलगनगर २२५ कमालयी १९३, १९७
कलनापुर २०० कमान २५०, २५४
लिगचे ९ कमलापुरम् ७३,३९१
कलिगावण्ड २२६ पवनहल्लि १५६, १६९
कलिदेव ८१, १०९-१०, १२०-१, कम्मराज २८-20
१४२, १८६ पम्मनहल्लि ३५९
कलिमानम् ८८ कम्मरचोद ३८०
कलियत्तिगंड ६४ करिनारप्पलबर् ३३९
कलियम्म २५, ३८९-९० परदर १७२
कलिविष्णुवर्वन ६४ करडकल १७९
कलिमट्टि १०८, १७२ क्रन्दै ९९, १४०, १७८, २८९,
कलिंग २ ३१३,३३६,३३९, ३४७ क्वलम्वर ८६ करवि २५०
क्ने लदेव ४३.४,५४ रिकालत्रीलजिनमंदिर ३५४ कल्याण ८५, ८६,२१४ करिमानी :
क्ल्याणर्गति ७४,३८२ गिविहि ७६, ८५
कल्याणवमंत २४ कगज :१,१४-६
क्लप ३५५ कादिवी १६६
क्ल्ल ले ५४ कर्म
क्लरस ३०४५ क्लत्ता ४०, २३४, ३४० क्ल्लहल्लि ३६० पलारि २५४, २५६, २६३,३७९
क्ल्लारप्पल्लि २७ सत्रुम्बुर ८
क्ल्वविका ११७ क्चु रि १५९, १७८
क्वडेगोल १६३-५
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--------------------------------------------------------------------------
________________
जैनशिलालेख संग्रह
कबडेमय्य २०४-५ कमपणावुण्ड २४९ पंचम ११.३ कंचलदेवी ३७८ कचिच्चे ७६ मति २०४ कंदगल २५१ काक्तीवंत १४२, १४५ काक्न (कारन्दो) ३४८ कानुल्य १३ कागिल्लि ७७, ३७५ काटन १०६, ११० काटिमय्य ११२ काडूरगण २६६ काणूर (कापूर ) गण ५८-६०,
१४८,१५५-८, ३,२२४, २३३-४, २५--१, २६८, २२६, १२१, ३२३, ३२६,
३६४, ३००,३७५,३७८-८० कात्यायन ९, १७ कादलूरु ५४ कान्तरानपुर २१७ काप ३२१-३,३२६ कामटी ३९५, ४१२ कामय २८२, २८६ कामदेव ७७
कामनृगल २९७ कामगज ३५५-६ कार्मर ३१४ काम्बोदि ३४९ नागन्य १९५ कायाम्पट्टि ३६६ काग्क्ल ३१९-२०, ३२९, ३८१ कारंजा ३९५, ४०५-६, ४०९,
४१२-३, ४१६-७, ४२५ कारिजे ३२० कारयगण १५३ कार्तवीर्य १२८, १८५-६, २३५-९
२४२-६, २४८-९ कालाडिय ७८,८१ कालण १८६ कालहल्लि ३१९ कालिदास १३४, १७८ कानिमय्य ९९ कालियूर ९९ कालिटि ३७६ कावण २६७ कावदेवरस २०८९ कावनहल्लि १३३-४ कावय्य २५७ कावला गोत्र ४०५ काधिक ७-९
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________________
१६६
कुपण ३८
नामसूची गनिदल ७३
कुदपयों २ नगटार ३९६, २००, ४०२-६, कुन्तलनाडु ३०४.५ ४०९-२१, २१-६, ८२८ पुन्दकुन्दान्वय, कुन्दकुन्दाचार्यान्वय नगमिमम १९८
१२६, २७८, १७, १९७, कावन ९८
४०२-४, ४०७, ४०९-१२, कालावी २१७
४१५.२७ विन्निगरान:३५
कुन्दकुन्द २२१-२, २२५ विरगाडि १५३
कुन्दनद्रालु २८८ रिमुल २१०-१
कुन्दरंगे ८५ क्नुिवोनल २५
कुन्दानि १३९-८० कोराकम् ४२ कौरवर ३१७
कुप्पर २२४ कीजि १५२-२
कुन्ज वि वर्धन ३, ६८ पीनिवन्न २५
कुमठ २०८, २७८, ३७८ कोदिमागर:६१
कुमरन् देवन् ४१ कोलवकुडि २२, ७२, २२७, ३६५
कुमरय्य १४७ स्वामन १६७
कुमारकीति १८ पुच्चांग २०७, १२८
कुमारनन्दि २८-३०
कुमारपर्वत ५७ कृटुगिनबर ३२०
कुमारबीड १४६, २२३ कृटनहोसल्लि १७१
कुमारसन १७५, २९४-५ कुन्डबुन्दान्वन ११४, १५५-६ कृमिलिगण ४२
२३-४, ६०, ३६४ कुमुदचन्द्र २५८-१,२७१-२, ४०५ कुण्डबाट ३०७, ३६५
कुमुदिगण ८२, ३७७ कुण्डमय ४०
कुम्बनूर १४५ कुगत्तर :०८
कुरंजन १३७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
268
कुट्टिगल १६ कुण्डि २२, ६३ कुरगांडु ३१९
कुरुवटिमिदि ३१८
जनशिलालेस संग्रह
कुलगाण १७
कुलचन्द्र ५७.८, १५७-८, २५७ कुलत्तूर ३९१
कुलसर १५४
कुलोत्तुंग १२१, १२७, १४०, १४५-६, १६६, २५१, २७३
३९१-२
कुलोत्तोडवरायन १६६
कुसुम ४
कुमुमजिनालय ३७६
कुकुमदवी २५
कुगियवमट्टि ३६८
कृण्डि ७९, ८१, १२८, १३७, १५३, १६४, २३५, २४१, २४३, २४६, २८९
नूष्माण्टी विषय १५ कृष्णदेव २७६
कृष्णदेवराय ३१३-४
कृष्णणगज १४४-५
कृष्णराज ३१, ४४, ५३, १०९, १५२, २३६, ३५१
कृष्णवर्मा १७
कृष्णसेट्टि ३८१
केनगावुड १०७, २२७
बेतस्य ३६३
केतिसेट्टि १०८, १८२, २०५
कैतीज ८८-९
वैम्पम्मणि ३५१
केरवसे २९९
सन् १७९
बेलगेरे २७०
वेडिवीरभद्र ३४१
केलferटप्प ३३९
harsaरम ९५, २०२
केल्लिपुर १८-२० बेद्यदि २६६
केाव १९५, १९७, २६५ ३०२५, ३६९ केशवदेवी २८३
केशवस्य १४६
केशवरम ६
.
केशवसु५१-५२ केशवादित्य ८०, १५१
कविराज ९१
केमरिसेट्टि २०७
केमिट्टि २२६
कैतटुप्पूर १४१
कोकलपुर ९४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नामसूची
४६५
कोकिवाड ५४
कोन ३१७, ३८२ कोक्कल १३६
कोप्पण (कोप्पल) ३८,४५, ७४, कोक्किलि ६४
१३०, २५०, ३२५-६, ३७१ कोगलि २६५, ३६५, ३७९
कोमरगोप ३८३ कोठल गात्र ४२१-३
कोम्मणार्य १४९ कोट्टगेरे १७४
कोम्मसेट्टि ३८० कोट्टशीवरम् ३८०
कोरग २९९ कोट्टिय गण ६
कोरमग १२, १४,१५ कोडिहल्लि ७१
कोरवल्लि २४६, २४९ कोडुगूर १८,१९
कोरिकुन्द ११ कोणेग्न्मिकोण्डाम् २७, २५५ कोलारम ३४० कोण्डकुन्दान्वय ५३, ९४, १२५, कोलूर ९८९-९०
१३०, १३३-४, १५७-८, कोल्लापुर (कोल्हापुर ) १३५, १६६, १७०, २०४, २०७,
१६२, १६४-६,३४४-५
कोल्वुगे ८५ २४६, २४९,२५२-३, २५९,
कोवल ६२ २६६, २७२, २८८, २९५-६
कोविलगुलम् १४५ कोण्डकुन्देग अन्वय २८, ३०
कोशिक २६ कोण्डकुन्देव तीर्थ ११४
कोह नगोरी ३१५ कोण्डयसेट्टि ३६१
कोहल्लि ८५ कोण्डमले ३३७
कोकण ८२, १३७, ३२७ कोनसेण्डल २०, ७२, ११४,
कोगज १३६ २२८, २९३
कोगणिवर्मा ९, १७, २०, ५४ कोनाट्टन् ८३
कोगणिवृद्धराज १७, २० कोन्तकुलि १४८
कोगण्यधिराज ११, १२ कोन्तिमहादेविवसदि ३७२
कोगरपुलियगुलम् २१
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________________
बनविज्ञान संग्रह
महादिन २, ११, १२,
१३४-३ -६,२२९ ९८० महनन:०५, ११०-१२,२४९
१.८,२२८, २१
५५, २०३,
१८
मंरा
दि २१२२३ मनन
, २०, २६.४०, दुख ४०२
५.६, ५८६०,८९,९४,
२०२, १०४, १२९, १५१-२ दुन्डिन्लान 20:१५
पं०४६-१७
गं ३०४,०७,१०,१५ दुडेनबर ३१७, १६, 6.८,
गंग१४८ दर १४
गरमागत २५ बुर
गंगः १५६ इंद्रायल ८१, ८०८,४.०
गंगराडा ३९५,३९७
मंगल मुन्दन्दल १२२ द्वारा
गंडर २३ बाब
गंगादान ४
गंगा-२८. बाद वगंग्वंग :
२७
गंजेगह १८-२० महा १०१
मारवाड १०२, १०४, 20, पलन ,२५,३७
गिरवला:४१ महाति २४
हिसार २२२, २३
Page #435
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६७
नामसूची
गुजरपल्लीवाल ३९५, ३९८ गुम्मणसेट्टि ३१२ गडगुडि ३७२
गुम्मिसेट्टि २२६, ३०८ गुट्टिगेरे २५
गुम्मंगोल १०४, १०९ गुणकानि ५६, ७६, १०४, १०९, गुम्मयमेट्टि ३३७ ११०-१,४००
गुरुवयनकरे ३०९, ३१४ गुणगविजयादित्य ६४
गुर्जर १९७ गुणचन्द्र ५३, ७३, १०५, ११०, गुलियर २६२ १९०, २३४, २५८
गृहनन्दि ७-९ गुणदवेटगि ८४-५, १८७ गूटी २८८, गुणनन्दि ५८, ६०
गूवक १८९ गुणनेरिमंगलम् ७५
गूबल १३६ गुणन्दागि १६
गृध्रवाल गोत्र ४०८ गुणपाल १६१
गैरमोप्पे २७९, २८२, २८४, गुणभद्र ७२, १९५, १९७, २९४-५ २८६-७, २९७-८, ३०१, ३०-२,३४,३७,४०२,
३१५, ३२७, ३३०-४, ३५४४२०
५, ३६८, ३९२ गुणमति २२
गोमालभिटा ९ गुणवर्मा ६२
गोकर्व २३३-४ गुणवीर ३७-८, ६३, २७४ गोर्ण ३३५-६, ३९१ गुणसागर ३६१, ३९१
गोकाक १५, ८४-५ गुणतेन २२, १७७, २६४, ३६५, गोग्गि १८३-५ ३६६,४०२
गौग्गियबमदि १५८ गुत्त १८२
गोज्जिका ९१-३, १०२ गुत्तवारि २८९
गोट्टगहि १९८ गुन्दुगज १८९
गोणटवेडगि १२१ गुम्मटदेव ३०९
गोणिवीड ३५९
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१६८
जनशिलालेख-मंग्रह गोपनन्दि २०४, २०७
ग्रहकुल ५७ गोपरम २६६
ग्राम २२४ गोपाचल ४१२
घटेयककार ७६ गोपेन्द्र १८९
घण्टोडेय ३२० गोप्पण्ण २७९
घनधिनीत १८ गोयन्दम्म ४०
धनशोकवली ३५४-५ गोविसेटि १०८, १६४
चचिग १८९ गोलर २२६, २२९
बच्चुल १९१, १९६ गोर्म १५१-२
चटवेगन्ति २९२ गोललतक २६१
चट्टजिनालय ११४ गोलसिंघाग ३९५,४०४ चट्टम्यदेव ८२ गोलिहल्लि १५३
चट्टरमि ८८.९ गोल्पाचार्य २३४
चण्डब्वे १०७ गोल्लापूर्व १५९, ३९६, ४०३, चण्डिगौडि २६१
चण्डियण ३९ गोल्हणदेव १५९
पण्डिसेष्टि १०८ गोव १८०
चतुर्थजाति १७२ गोवर्धन २२७, २५०
चतुर्थमुनोश्वर ३२६ गोवलदेव ११४
चतुर्मूग देव २०४, २०७ गोया २८७
चतुर्मुग्ववसति ४१ गोवालगोत्र ४०३,४०६,४०९-१० धनुदवोल ३८१ गोपाटपुजक ७.९
चन्तलदेनी १३३-४ गोहिलगोत्र ४०३, ४१५, ४२५ चन्दन १८९ गोषय्य २७
चन्दलदेवी २३७, २४४, ३१९-२० गोकल १३६
चन्दव्ये ३८० गोहमघ ५३
चन्दियच्चे ४५
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नामसूची
४६१
पन्दियट्टि १०८ चन्द्र १३६. १८९ चन्द्र कराचाम्निाय १५९ चन्द्रस्वाट मन्वय ९२-३ चन्द्रमीनि २०८, ७, ८,
४०२, ४०३, ४०५ पन्द्रगिरि ३१३ चन्द्रनन्दि ४०, १०२, २२४ पन्दनाय ३५६.५ चन्द्रपुर २८२ पद्रप्रभ १४,७२,०१७, ३१५-६ चन्द्रभूति ७८ चन्द्रगन १८-२०, ६७-८ चन्दार ३८१ चन्द्रिकाबाट वन ९८ चन्द्रिादेवी २३७ चन्द्रेन्द्र ३७८ चलपिस्त २६१ पवुटिमट्टि १०८ ववुण्ड २६३ चग्यिा ३९९.४००, ४०७, चवरे ४१६, ४१९, ४२५ चगारगय ३९२ चंगाल्न १२९ चाउण्डरस १७३ चान्दकवटे ९८
चान्द्रायणदेव १८०, २७१ चामाचे ७०, ३८३ चामगन १४७, ३४९ घामगजनगर २९६,३१४ चामुण्डरान १८९ चारकीति १२२, २२१, २२३,
२९७-८, १२, ३२७, ३३३, ३३५, ३४१, ३४३, ३४७,
३६८, ३८१ चाम्चद्रभूपण ४१२ चालुपर २४-५, २७, ५३, ६३,
६६, ६८, ७१-८२, ८४-६, ८९, ९०, ९३-४, ९८-९, १०२-३, ११०, ११२-५, १२०-१, १२६,१३४, १३७, १३९, १४१.५ १४८-५०, १५२-३, १५७-८, १७०-३,
१७८, २०८, ३८९-९० चालुक्यभीम ६४, ६७-८ चारय्य ३७१ चावण्ड ८२ चावुण्डरम १८७ चायुडराय ८८-९, २७७ चाहमान १५९-६०, १६९, १७१,
१८९, १९६ चिकण्ण ३७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
४००
जैनशिलालेस-संग्रह चिकमगलूर १२९, १३१ चेदिकुलमाणिक्कपेरम्बल्लि १२२ विक्ककन्लेयनहल्लि २७१-२ चेन भरादेवी ३२७ विकणव्य ३३३
चेन्नगय ३३०-३ चिक्कमरजण्ण १७९-८० चेन्नवीरप्प ३३०-४ विक्रमालिगेनाडु ३२० चैपल्लि ३२९ विश्कराय ३४१
चौक्सेिटि ३११ चिकचोरप ३३०-२, ३३४ चोल ५२, ५६, १२, ७४-५, ७८, चिकहनमागे ४३, १२९, ३३३ ८३, ९९, १०५-६, ११०, चिक्कहन्निगोल २०१
१२१, १२७, १४०-१, चिक्किसेट्टि १०८
१४५-६, १५८, १६६-७, चिण्ण १२३-५
१७८-९, २०८,२५१, २६०, चितरल १६
२७२, ३५४, ३९१ वितलग ३०८९
बोलपेरुम्पल्लि २७ चितोड ३८६
बोलवाण्डिपुरम् ६२ चित्तामूर ३२८, ३५२
चौटकुन ३२७, ३४१ चित्तारि ८८९
चौलुक्य ९८, २२२ चित्रकूट २२१-२
छतरपुर १७४ चित्रकूटगच्छ १७२, ३७८ छत्रसेन ४११ चित्रकूटान्वय १०२, ११२, १७२, छपाग ४९५, ४२५
छन्धि ९५ चिन्नमंडारदेव ३३९
छोतग १९५ विपगिरि २६६, २९३, ३२६ नकट्टि २९२ विचली २३५
जकच्चे २३२, २५०
जकचरसि ३०२-३ चकवा २५७
जक्क्रय २५८ चेदि ६२
जक्कलदेवी ३०४-५
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--------------------------------------------------------------------------
________________
जनकलि १३५ जकियक्क १५५
जक्कियव्वे ४३, २७२ क्रिसेट्टि २०५
जगतकीति ४०२
१७०-२
जगमणचारि १३२
जटामिनदि ३७१
जट्टिगोड ३२९
जनिग १३५-६
जगतापिगुत्ति ३२९
जगदेकमल्न ७५ ७, ८०-१, ९३, जावूर ३८३
नामसूची
जननाथपुरम् १२२
जननाथमगलम् १६६
जबलपुर ३१०
जम्बूखण्डगण १५-१६
जयकीर्ति ९५, १२९, ३८३
जयकेशि ११२, १५३, १७२,२५१
जयदेव १८९, ३६०
जयन्ताचार्य ६८
जयराज १८९ नयत्रीरपेम्लिमंत्रान् ३६६
जयमिह २४, ६३, ७६, ११५,
१२०, १५१-२, ३४३, ३९०
जयसेन ६७, ६९, ३८१ जयगोडशोलमडलम् १७८
३१
जमनन्दि ५७
जाकवे २६६
जाकिम ९८
जातियवक १४६
जाबालिपुर १९०
जालोर ३८६
जाट १९१, १९६ जाह्नवे कुल ९, १७ जिड्डु लिगे २७७
जिनकंचि ३४४-५
जिन गिरिपल्लि २५१
जिन गिरिमले २५५
४०१
जिनचन्द्र १९५, १९७, २०४, २०७
२५८, २७५, २८७, ३१०,
३६९, ३९६, ३९८, ४०३, ४२७
जिनदत्त २२५
जिनदाम ३९७
जिनदेव १५३, ३७६, ३९७
जिनभूषण ३६६
जिनवल्लभ ४०-१
जिनसेन २९४-५, ४०७-८, ४१२ जिनेन्द्र मगलम् ३१८ जिन्नण १८६
जीमूतवाहनान्वय १३७-८, १६२,
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--------------------------------------------------------------------------
________________
હર
नैनशिलालेख संग्रह
३८९-९० जोयगोड ६० नीवराज ३९६, ३९८ जुगियागोन ४१४ जेबुलगेरि ५
मपायं १४६ नेमिट्टि ३७५ मोगाडि ५६ जोनगिरि ८२ नोयिमय्यरस ११४ मानभूपण ३९७-८ टोडारायसिंह ४३ टीक १२,१०० ठवला गोत्र ४०० व्बनी, शान्तिकुमारजी ३९३ उम्बल ९४, २३ दिल्लिका १९० तगडूर २६२, २९६ नगरपुर १३८, १२ तगरे २६ तजेगाव ३९५, ४०८ ताकरे ५९.६० तहागपत्तन १९१,१९६ उन्हपुरम १७ तमिलम्पलवयन २५५ तन्मय ३७८
तम्मदहल्लि ३८१, ३८ तम्मम्य ११२-३ तम्मरम ३०४-५ तलकाह १४६, १५५, २०३
२१४, २९१ तलक्कूडि ४१ तलप्रहारि १८३, १८५ तलकूर ३६९ तलवननगर २८-३० तलवनि २१४ तवनन्दी २९९, २९१ तबनिधि २९०-१ तंगले ३० तंगलेदेवी ३०३-५ ताहकोड २६३ ताडपत्री २१७ गपूर २६२ तालरान ६४ तिकादव २६५ विपक ११७ विन्विणीगच्छ १५५-६,२२४,२५०,
३२१, ३२६, ३६४, ३७९ निप्पगोड ९६ विष्यय २६६ तिप्पिष्टि ११४ विम्मगोड ३२९
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नामसूची
१७३ तिम्मप्प ३२०
तुल (तुल) २८०, ३१४, ३२१. तिरक्कोल १६७
२, ३२७ तिम्ककाट्टाम्मल्लि १४०
तुलुअडि २६ तिरुक्कामकोट्टपुरम् ९९
तुंगपल्लवरयन् ३७४
तेणिमल ३६७ विरुगोणम् २७ तिरुच्छापतमले १६
तेरकांवि २९५ विरन्छोस्तुर २८९
तेवारम् ६३ निरनिडकोड ४१, ७८, १२७,
तकविणाडु २७ १६०,१६६,२७३-४, २७९, तेल ७३, १७१-२
३३७, ३५४, ३७५ तलप १४८-९, १८५ वितरम्वूर १४०, १७३
तलंगेरे २६१ तिरुपरंकुण्डम् ३७३
तोगरफुट १४८ तिरुप्परुत्तिकुण्डम् १४०-१, १८५ तोयिमरस ३७२ निरुपान्मल ५२
तोरनगल्लू ३७७ तिरुम्जेरि ७८
तोरवगे १६४ तिरुमप्यम् ३६६
तोललु ९५-६, १२६-७, ३६२ तिरुमलरस ३१९, ३२२-३, ३२५ तोलहरवलि २९७ तिरबरि ३७-८
तोल्लग्राम २६ तिवणायिल् ३६६
तोडमंडल ७४, २८० तिलकरस २६०,३०१
तोहर ७५ निलिवल्लि ३४८
तौलब ३१५ सिंगकूरु ८३
त्रिकूटवसदि १४१ तीयंवसदि १२९
त्रिणयनकुल ६६, ६८ तुगलकिलान् ९९
त्रिभुवनकीर्ति २६०, ३८० तुम्बदेवनहल्लि १२२
त्रिभुवनचन्द्र १०६-७, ११०-१२ तुम्बिगि ३४
त्रिभुवनमल्ल ११४-५,१२०,१२२,
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--------------------------------------------------------------------------
________________
84%
१२६.७, १३३, १४१, १४३,
१४५, १४८-५०, १५२-३,
२००, २०८
विभुवनवीर ३७८
चक्रीति २७५
means ८२, ८४-६, ८९, ९०, ९३-८, ९८-९, १००,
१०५, ११०, ११५, १२०,
१७३, १७८, ३८९-९०
दडग १५४
दगिनवरे १५५-६ दहिगसेट्टि ७०
दण्डमा १३७
दण्डिल्लि ४४
सैनशिलास-मंग्रह
दत्ता ५,६
दत्त मूत्रवृत्ति १०
दन्तिदुर्ग ३१
दमित्र ५, ६
दयापाल २१४, २१६
दयानूपण ४०८
दयावसन्त २४
दानण ३२८
दानवुलपाडु ५५, ६०, ३६३
दानिवास ३३१-४
दारिनेट्टि १०८
दावणदि १०२. ३८०
दामण्ण ३८९
दामन्रोच १८७ हादि १६१
दिनकर ११९,१२१
दिनकर जिनालय १६७
दिल्ली ३४४-५ दिवाकर २५०
दुग्गमार ३९, ४०
दुहमल्ल १३३-४
दुधक १९१, १९७ दुर्गभट्ट ३६
दुर्लभ ( दुर्लभराज ) ४६, ५० १८९, १९२, १९७
दुविनीत १७, २०, ९४
दूम ११९-१२१
दूमल १८९
देवे २०५
देज्जमहाराज १५-१६ देमलदेवी १७३
देमाप २३४
देल्हण १९६-७
देवकीत ७६, ३२३, ३२६, ११३,
૨૮૪
देवगण ३८२
देवरी ३८९
देवचन्द्र २२५, २५८, २७१, ३२३,
Page #443
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२६, ३५४-५, ३८१-२
३८४
नामसूची
देवरस १४९
देवराज १९०, ३५१
देवराय ३००, ३०५-६, ३१४,
३९१
देवस्पर्श १९१, १९७
देवाद्रि १९२
देवणय्य ११२
देशवल्लभजिनालय ४२
देवण्ण २६०, ३१६-७, ३४१, ३४८ देशीय ( देशी, देमि, देसिंग) गण
देवत्तूर ३७४
देवदाम ३२८
देवघर १९२, १९७
देवनन्दि २७०, ३६१
देवपाल १६१
देवप्प ३०८
४३, ५३, ७७, ९३-४, ११४, १२५-६, १२९, १३३-४, १४०, १४८, १५६, १५९, १६४-५, १६७, १७०, १७३, १७९, १८२, १९७, २०४, २०७, २२५, २३२, २४६, २४९, २५२-३, २५६, २६०, २६५-८, २७२, २७४, २७८, २९५, ३१५-६, ३३५, ३३८९, ३४२, ३५४-५, ३५९, ३६०, ३६३, ३७६, ३७९-८३
देवमाम्बे २९४
देवरदामध्य ७०
३१६
देवीरम्मणि ३४९
४१६-२५, ४२८
देवेन्द्रसेन २९४-५
देवूर ३७६
देवेन्द्र ६९, २०४, २०७ देवेन्द्रक्रीति ३१४, ४०२, ४११,
देमल १९१, १९६-७
दोडसेट्टि ३१२
देवागना १११
देवियन्वे ७०
देविमेट्टि १०८, २०५, २०७, ३१२, दोहद ५
दोण ११७-८, १२०-१ दोणि १२२
४७५
दोरसमुद्र २५३, २५६, २७०-१
द्रमिल सघ २१४
द्रवल सघ १७९-८०, २३३, २६७ २६९, २९१
द्राविडसघ १२८
द्राविडान्वय २६४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
०७६
द्रोहघरट्टाचारि १५६ द्वीपितटाक २९४
धन्यवसन्त २४
धरवृद्धि ६
धर्मकीत ४०३-४
धर्मचन्द्र ३१७, २४०, ४००, ४०४५, ४०७-१०, ४१२-३, ४१६,
४२८
जैन शिलालेख संग्रह
धर्मपुर ३०३ धर्मपुरी ३८-९
धर्मभूषण २८८, ३११, ३९७,
३९९-४०१, ४०५-८, ४१०
धर्मबोलल ९४,२६३
धर्मसेन २६९
घवल ४६, ४९, ५२
धारवाड ५३
धारावर्ष २८, ३०
घुरामोरो गोत्र ४२२
धृति २७ धोरजिनालय ४४, ९५, १८७
ध्रुव ३०, ३२
नकुलरस ८८-९
नगिरि २९७-८, ३०३, ३२७ नदिहरलहल्लि १८७, १९८ नदूलडागिका १६०, १६८-९,
१७०-१, १९०
नन्दवर ४५ नन्दवाडिगे ८५ नन्दसेठि १
नन्दापुर ८५ नन्दिमाम्नाय ४२२
नन्दिगण ( सघ) १०४, १०९, १२८ २१४, २२१-२, २३३, २५८ २६७, २६९, २९१, ४०२ नन्दिवेवूरु ९३ नन्दिभट्टारक २५८-९, २९६, ३७५ नन्दिमुनि २३४
नन्दियड सघ ७२
नन्दियडिगल ३६१-२
नन्दीतरगच्छ
३९६,
४०२-३,
४०५-६, ४०९, ४११, ४१४,
४१६, ४२७
ननियगंग ५९, ६०
नमयर ५३
नम्बिसट्टि २८२-३
नयकीर्ति १७३, २०७, २१९-२०
२३१-२, २५६, २५८-९, २७१-३
नयसेन ९१-३, ११८, १२१
नरतोग १६७
नरवर १९१, १९७
नरवाहन ६६-८
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नामसूची
नरसप्प ३३२३
नागकुमार ४३ नरमिंगय्य ११४
नागगावुण्ड १९८, २६२ नरसिंह १६९, १७६-७, १७६, नागगोड ३७२
१८०, २०३, २११-२, २५६, नागचन्द्र ९५, १२९, १७२, १८६, २५८-६०, २२, २७०-२, २७८ ३१३
_ नागण्ण ३०० नरसिंहवग ३०९
नागदेव ७३, १९२,१९७ नरसिंहराजपुर २६, ३१२, ३४९ नागनन्दि ३७, २९६ नरसोगेरे ३९, ४०
नागपुर २०९, ३९३-५, ४१२, नरसीमट्ट ३९२
४१५, ४१८-२३, ४२५-२७ नरेगल ५३
नागप ३४९ नरेन्द्रकीति ४०४, ४१०
नागभूप ३४३ नरेन्द्रसेन ९२-३, १९८-२१, ३७५ नागय्या ४४, २०९, ३५०, ३५७, नल १२९ नल जनम्नाडु २३
नागरखण्ड ४४, २५०, २७७, नल्लूर २७३
२८९ नविलगुन्द ३८३
नागरस ३०१ नविलूर १२६-७, २२६
नागरहाल १७६-७ नविले ८५
नागराज २९४ नगलि १५५
नागलदेवी २६६ नजेदेवरगुड्ड २१६
नागलपुर ३३०-१ नाकण १४७, २६७
नागवर्मा २६, ८८-९ नाकिग ९५
नागवें १८१, २३३-४, २८६, नाकिमय ११२
३७२ नाकिया ४
नागरी १९२, १९७ नाकिराज १६६
नागसारिका ३५-६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
जैनशिलालेख संग्रह ४०८ नागमियिम्व २५१
नाहर ३८५ नागमेट्टि २८९-९०
नाहटा ३८५ नागमेन ७२,८४५
निगमान्वय २७६ नागलद १९४
निगुम्बवंश १३९ नागिट्टि १७१, २८६
निजिकच्चे १०-१ नागुलपोलमब्वे ३७
निटूर २२५, ३६८ नागुलबमदि ३७
निडुगल ( निडगल्ल) २६०, ८२ नायितेष्टि २३
नित्वकल्याणदेव १६० नागोन ६०
नित्यवर्प ४४-५, ५५ नागौर ४२२-३
नित्वगोहाली ७-९ नाडलाई १५९, १६७, १९९, १७० निधियण ३९ नालि १००-१
निम्बदेव १६३, १६५-६, २३९ नाडोल ३८
निरुपम ३० नायार्मा ७.९
निर्धडेवृक्षघ ३४९ नायन्न ७-८
निलिम्पपुर २९८ नादीवे ३५७
नीड़र ३९१ नानिग १९६
नौरलगि १७१ नाम्नेिष्टि २८३
नीलगिरि ३४६-७ नाचिम १३५, १३९-४०
नोलत्तनहल्ल ३१८ नाराणक १९१, १९६
नीलिवच्चे १७२ नाराण ३६,४०
नूतिरट्टि १०८ नारियष्याडि ४१
नूलबन्दिसेट्टि ३५७ नालिसेट्टि १०८
नूलवागिट्टि ३५७ नालपुर ३३४
नेगलूर २५७ नाबागिल ३२८
नेटिमायि १२९ नाविकान्वे ११४
नेमण ८१-२, २८६-७, ३१२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नेममेन ४२० नेमिचन्द्र ४२-३, १२६-७, १५३, १७२, २१९-२०, २२६, २३२, २४५, २४९, २५८, २६५, २७१, ३७०, ३८२, ४२८
नेमिदेव २२७, ३७६
नेमिट्टि १०८, ३१२
नेरिलगे १७१
नेल्लिकर ३१७, ३८२
नेवाज्ञाति ४१३
नामसूची
नंगम १९५
नोम्पियवसदि २०८
नोलम्व ३८-९, ७६, ९३, ११६,
१३९-४० नोम्ववाडि ( नोणम्बवाडि ) ७६,
१५५, २१४, ३९०
न्यायपरिपालपे हम्बल्कि २५५
पटना ३१७
पट्टिपोस्वचं ८६, ८९, १८३, १८५
पडियरकाटि ८८-९
पडेवल ७३
पडैत्रोट्टु ३१३
पण्डितथ्य ३३३
पदमूलिक ४ पदार्थमार २५६
४०९
पदुमणसेट्टि ३१८ पदुमलदेवी ३२७ पदुमन्त्रे ३७६
पद्मकीर्ति ४०१, ४०७-९, ४११,
४१४
पद्मकुल ३४६
पद्मट १९१, १९६
पद्मण्णरस ३०४-५
पद्मनन्द ४५, ५५-६, १४९, २१७,
२५०, २५८, २७७, ३००, ३१०, ३९७, ४१६७
पद्मप्रभ २००, २०८, २६९, ३८० पद्मन्त्रसि ५३
पद्मलदेवी १७९, २४४
पद्मसेन २५४, २६१
पद्मावती २३६, ३६२ पद्मावतीपल्लीवाल ३९५, ४०८
पय ३५०, ३५३
पनसोगे ४३, २०७, २२५ पयिटुन १४८
परकेसरिवर्मन् ५२, ७५, १४१, १५८, १६०, १६७, २५१
परम जिन देवजीयर् ३५७
परमार ८६
परम्वर ९९
परवार ३९६, ४०४, ४१५, ४२३-६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
!
१८०
पगन्तक ५२
परिसय २६६
पतेंपूरनाडु १७९
पर्वतमुनि २२४
पलसिगे ८२
पल्लव ११-२, ३८, ९३, ३५४
पल्लवपेनिडि ११५, १२०
पल्लवरयन् १६७
पल्लवादित्य २३
पल्लवेलरस १८, २०
पल्लिका १९०
पल्लिण्टन्दल् ३१७
पल्लीवाल ३९५, ४०१
पसिडिगग २६
जैनशिलालेख संग्रह
पहाड़पुर ६
पचरतूप निकाय ७-९
पाटणो गोत्र ४२५
पाटशीवरम् २०८ पाण्ड्य २७, ३८-९, ७४, १०५, २५३, २५५, २६१, २६४,
२९९
पाप्यप्परस ३१९-२०
पाण्डघरस १८३, १८५
पानुगल १४८, २१४
पान्थिपुर १८६
पापडोवाल ३९६, ३९८, ४११
पायण्ण ३४३
पायिम्म ७८,८१
पायिसेट्टि २५४
पारिसदेव १७९ पारससेट्टि २१९-२०
पार्श्व १२०-१
पादवदेव ३८४
पार्श्वदेवी ३३६
पालियड ९६
पालंपूर ३५४
पात्यकीर्ति २२७
पाल्हण १९६
पामकीत ४०४
पिट्टन १५१-२
पितल्यागोत्र ४२७
पिरियोगि ७६-७
पुगलोकनाथनल्लूर २५५
पुट्टै ३५३
पुणिस १४७
पुण्ड्रबर्धन ७, ९ पुटिन६३
पुत्तिने ३२७, ३४१
पटुप्पट्ट १४१
पुन्नानवृक्षमूलगण ८०, ८१, १८६
पुन्नाद १७, १८, २८, ५४ परगूर ८५
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--------------------------------------------------------------------------
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--------------------------------------------------------------------------
________________
१८.
पोजबूर
जनशिलालस-संग्रह
१९४, १४८, १५५, १५७, प्रतापनीति ८००, ४०२-३,४०५. १०८, २०४, २३४, २७६, ६४०९-१०, ४१६
२८१, २८९९०,३१० प्रयन्न वर्गद ८९
बदलिंक ४४ प्रनारत्र १४
वनगद १८९ प्रनाउन २९४-५
दरम्न १९, २२ मात्रट ५८,५८, ६०, ७०, बन्दई २०१, ३२७, ३८६.७ १३.४, १४०,१५८, १५४- बन्गबुड २६४
८.००, १६१, ३८० वन्य २८३ प्रदेवी ३५८
दमब्व ३६१ प्रबिट्टि ३८५
दन्नाचारि २१० प्रबरकोनि २२.३
वन्तिट्ट १०८, १५२, १६४, प्रगट १९९, ११
१७०, २०७, २२६ ग्रेट:४९.३, ११
वयिविट्टि वरखाल ,९८४६४०५- ददेवरस १२१
५, ४०९.९०, ४१२, ४१४, बननन्द ३८ ४१६, ४१९
वन्टगारगण १०४, १०९ बट्टर १०८, ११०, १४८ दलगारवंच १९४५ वडोदा ८५
दलगेर १७८ दष्ड्डवाल ३१५
वरदेव ७१, १२, १३, १०२, नगप्प २८, ..
१९९,२३९,२४५, ३१० बदनोर 03
दन्द्र ५०-२ बग
दलालारगण १०३, ११२, १५३, वधनोरा ४२०
२२९, २५८, २३०, २७२, दनान्दिक ३४३
२७८, २८८, २९९, ३०६, बनगान ८५, ११४, ११६, १२०,
३१०-१, ३१५, ३९३,
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नामसूची
वारलो १
४००-५, ४०७-१२, ४१४. वादंगट्टि ३७१ २३, ४२५-८
वान्धवनगर २५० बलिकूल ६१-२
बावानगर १८२ वलयवट्टण १६४
वापिसेट्टि ३२९ वल्लर १९९, २००
वारकूरु २९९,३२२, ३२६, ३४१ वल्लाल १३१, १३७,१५४, १९८,
१९९,२००,२०२-४, २०७, वालचन्द्र ५८, ६०, ७०, ८०-१, २०९-१८, २२०, २४९-५०, १३४, १४८,२०४-५, २०७, २७०, २७३, २७६-७, ३३५
२१९-२०, २२७, २४२-३, बल्लियामे (गाँव) २७६-७, ३८९
२४८, २६०, २६३, ३६३, वसरूर ३०६
३८०, ३८३ वसवदेव २८१-२
वालप्रसाद ४७, ५२ वसवपट्टण २६६
बालर २४९, २५७, ३४८ वसविमट्टि १०८
वालेहल्लि १७०, २७९, ३७२ वस्तिहल्लि १९७, २५६
वासवे ७१ बहादरपुर ३९५, ४०३
बाम्वुर १२५, ३८९ वकापुर ४४,३७२
वासिसेट्टि १८१ वकेयरम ४४
बाहुबलि १२६, १२९, १५०, वागियूर ५४
१५२, २१९-२०, २५२-३ वाचण्ण ३०९
बाहुबलिकूट १५५-६ बाचय्य ९४
विजापुर ४५ २५५, २७६ बात्र २३१
बिजोलिया १८८ वाचिगाण्ड १४९
बिज्जण १३६, १८२, १८६-७ वात्रियट्टि २७५
विज्जल १५१-२, १७८९ बाय २६०
बिटिसेट्टि ३११ वादग्य ३७८
विय्य ४४
Page #452
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८४
जैनशिलालेख-संग्रह बिट्टरस १८७
बूचन्चे १२९ विट्टिदेव १५४, २११, २७०
वून १२३, १२५ विट्टियण ३६२
वूनय्य ५३ विडक ७१
तुग ५८, ६०, १०४, १०९ विण्डिगनवल ५५
वृपोज ३६० विदिकर २६८, ३०९.१०
बूवनहल्लि ७० विदुरे ३२०, ३३६-७, ३३९०४० बंगूर ४२ विग्णंतर ३२६
वैचारकवोमलापुर ७४ बिलगोण्ड १२६-७
बेट्टकरि ३४० बिलपाणसेट्टि १६४
बेट्टिमट्टि ३८१ विलिगि ३२०, ३३५
देत १४२.५ विलिगिरि गनबट्ट २०९ वेन्नेबुर ९८ विलिबाग्राम २५३
बैरिसेटिट ३८० विल्लमनायक ३८२
वेलगामि २१७, २७६, ३७०, वोचगवुड ७४-५ बीचण (बीविगज) २८.९, बेलगांव ४२, २३६, २४३, २४९ २४३.६, २४८-९, २५४
बैलगुल २२७, २६७, ३२५६ बैलगडि ३१४ बलप्प २७९ बेलूर १३०, १४७, १७५, २०७,
'४, ३४६ बुक्कराज २७८-९, २९०, २९५ बेलगलि ८५ अवगुप्त ९
बलदेब ९१, ९३, १०२ लिमैट्टि ३०१
वेल्लट्टि ५६
वेल्लुम्बट्टे ३८२ वृोट्टि ३२९
बल्वति १५२
३८९
बोचिट्टि ३८३ वोरण १९९.४० धोग्य्य ९४ बोगस १८३, १८५
बुल्लप ३५९
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नामसूची
४८५
बेल्वल ७९, १०४-६, १०९-१०,
११२, १७८,२१४ बेल्बोल ९०, ९३, १०३, १२०,
१७२ बेहार २२८ बटूर ३७ वैचण २९७-९ वैवय २७८, २८८ वैचिसे दिट २८५-६, २९९ वन्दुरु ३०८ वराट ३८८ वैरामक्षेत्र ४१६ वहरु ९३ वोगगावुण्ड ३८४ बोगाडि १९८ बोचुवनायक ३८४ वोप्पगोड ३७५ वोपदेव १५६, २५० बोप्पय २९६ बोपिसेट्टि १०८, १६४ वोप्पेयन्बे १८३ बोप्पेयवाह १३८, १४० वोम्मक्क ३५६ बोम्मण्ण ३६८ बोम्मरस ३३७ बोम्मरसेट्टि ३१६
बोम्मन्ये २२९, २६६ घोम्मिसेट्टि २६०, २६६, २७७,
२९९, ३१२, ३२८, ३७१,
१८० बोयुगट्ट २७ वोरखडयागोत्र ४०१, ४०३,४०६,
४०९, ४१६ बोलगडि ७८, ८१ बोलयनाग २९३ बोमिसेट्टि १०८ अमदेव २२६ ब्रहदेवण ३६४ ब्रह्म २५०, २९०-१ ब्रह्मकुल ११६ ब्राजिनालय १५२, १५७ ब्रह्माधिगज ९३ ब्रिटिश म्यूजियम २७, ३८७ भटकल ३००, ३३५ भट्टाकलक ३१६, ३३५, ३३८-९,
३४२ भट्टिदाम ६ मद्रवाहु ९६, १७५, २१४, २१६ भदायि १५७८ भद्रेशर ३८६, ३८८ भरत ७३, १५५-६, २७२ भरतपुर १७४, ३८५
Page #454
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८६
नाशिलालेस-संग्रह भरतिमम्य १७०
भूलोकमल्ल १५३, १५७-८,३९० भरतिसेट्टि २१४
भग्रम ३१३ भवर गोत्र ४०४
भैरवदेव २६५ मागिणवे ७९, ८१
भैरबपुर ३१५ भागियन्ने ४०.१, ९५
भरादेवी ३०० भानुकोनि १२९, २५०, २७२, भोगदेव २०८
भोगराज २७८ भानुचन्द्र ३९८
भोगदि १९९-२०० भानुमनीश्वर ३२१, ३२६ भोगवे ११४ मालपारचन्दप ३३०.१
भोगादिस्य ९८ भात्रचन्द्र १९७
भोज ८६, १३६-७ भावनगन्धवारण ८५
भोमले ३९४ भावमेन ३८०
भोसे ३७०
मगर कारगरम १५७ भास्करनन्दि ११३
मणलकुल ११२ भिल्लम १३७,२१३
मालमनेआडेयोन् २६ भीम ६७
मणलेर १७२ भीमदेव ९७८,२२१-२ भोसी ३९५, ४११
मणिचन्द्र४२ भुजबलमा १८६
मण्ट्रर २२९ भुग गोन ४००
मण्डलकर १९२, १९७
मण्डलिगरे ८५ भुवनकीति ३९७.८, ४२८ भुवनकमल १०२.३, ११०, ११२.
मण्डलाई ३३८ ३, ३८९
मण्णे ६९ भुवलोकनाथनल्लूर २६१ मतिवीर ३४० भूतलि १७५, २१४, २१६ मतिसेन ९९
मासगवुण्ड ३६२
Page #455
--------------------------------------------------------------------------
________________
मतिसागर ३५४
मतावार ९९, २९२, ३५३
मत्तिक ९९
मथुरा ५, ६, ७२, ३८६
मदनमेन २९४-५ मदनूर ६८
मनसेट्टि ३१८ मदविलगम् १३०
मदिरं ३९
मदिरकाण्ड ५२, २५१
मदिमागर २५५
मदुवण १८६
मदुबरस ३०१
मद्दहेग्गडे ३२१-३, ३२५० १
मद्राम ३६४ मधुकण्ण २५६
मधुर ३९१
मनगुन्दि २५१
मनोली २२७
मनोविनोत १८
मन्तरवर्मण १२१.. मन्तगि १८६, ३७२:३
मन्त्रचूडामणि ९५
मन्नेर मसलवाड ' २६५ 7
मम्मट ४६, ५०-२ ममिलिसेट्टि १०८
३२
नामसूची
मयूरवर्मा १५७
मरकत ३२७
मरगोड ३७७
मरवोलल ७६
मरमे २३३
मरिनाग ३५०-३
मरियाने १३१, १५५-६, १६९
मस्कुटि १२१
मरुलजिन २९२
मरुलयरस २८०
मगेल ७५
Г
मलघारिदेव १३०, १७०, १८२,
२२८, २४५, २४९
मलयकुल ६,३
मलयन ३३४
मलवसेट्टि २२६ मलय २२५ मालपाण्ड्य २५८ मलयन् कोविल ३६६ मलयन् मल्लन् १६०
मल्ल २५४
"
मलगावण्ड १७१-२
मल्लप ६४, २८७
मल्लभ्य १०७, ११० मल्लबल्ल २६ मल्लवादि ३५-६
४८७
-
-75
Page #456
--------------------------------------------------------------------------
________________
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#ረ
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डेरिकाकेन्द्र संग्रह
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न्हाववाह ९
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Se =29, 202, 248, 250,
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(F) 15, 280,
14. 200, 200,
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Page #457
--------------------------------------------------------------------------
________________
भाचियण १७६-७ माचिराज १८३, १९८, २००
माचे २४
माणिकदेवी ३०५
माणिकसेट्टि १०० - १, २८५-७ माणिकसेन २०९, ३९७-८, ४०२,
४२०
माणिक्यतोर्थ १५२
माणिक्यनन्दि १०४, ११० माणिक्यमट्टारक १८२
माहू ३०६
माथुर संघ १९५, १९७
मादरम ३७४
मादलदेवी २६६
मादलंगडिकेरि ३४०
मादवे २५८, २६३
मार्दय २६३
भावव २८७
नामसूची
माघत्रचन्द्र १५४, २३३-४, २४२-३,
२६६, २६८, ३७२
माववनन्दि १५९
माघवमहाविराज १०, १२, १७,
२०
माववर्मा १०, १४४-५
माधवसेट्टि १०८
माध्यमिका १
मानलदेवी १६०
मानमेन २९९
मावलरसि ३०३, ३०५
माबाम्बा ३५५
मामटा १९२, १९७
मायण २९४-५
मायदेव २६३, ३७०
मायमेट्ट २९९
मार २९२
मारगोड १८५-६
मारदेवी २८३ मारब्वेकन्ति ६९
मारमय्य ७०
मारव ३८०
मारवर्मन् २५५, २६४
मामिह ५३, ५४,५९,८९, १०९,
१३६
मारिसेट्टि १८१-२, २१४ मारुगोट्टेर् १९, २०
मारूरु ३३६
मारेय २१९-२० मार्तण्डय्य ८२
मालकोण्ड १
858
मालवे २२५
मालवंगडे २७७
मालियन्वरसि ३५५-६
Page #458
--------------------------------------------------------------------------
________________
मूगूर २७२
१६०
जनशिलालेख संग्रह भालेयग्ने १३२
मुनिभद्र १५५-६, ३३६ मावलि २३३
मुनिवल्लि २२७ माविनकर २२५, २९७ मनुगोडु २७,३८२ मावीरन १६७
मुम्मुडिचोल ६२ मासवाडि ७३
मुलगुन्द ८५, ९०-१, २६०, ३०१, मामाविवर्म १३१
३४३, ३७९ मासेनन ५२
मल्कि ३६४ मिरिजे १३८-९, १६४ मुल्लमटारक १५३ मोचारमागाणे ३२७
मुष्कर १७, २० मुकुन्ददेव ३७८
मुजराज ४६, ५२ मुक्कुडयार १४५
मुजार्य ५४ मुगद ( मुगुन्द ) ८२ मुच्छण्डि २१५.६
मूहगरि १०४, १०९ मुडामा ३९६, ३९८ । मूढविदुरे ३१३, ३२०, ३२६-७, मुडियोण्डम् १३३० र ३३९.४१, ३४७, ३६७४..
''Fir मुत्तदहोसूर २४९, ३Re" - मूलपल्लि ३९ मुत्तुष्पट्टि २२
मूलTR ४६, ५२, २२०TATE मुत्तोरुकूर २१८.59 MIRIT मूलवसतिका २२१, २२३" मुद्दमावुण्ड १० P RIME मूलसघ १३५-६,३६,४३,७२,
सगरेट १६, ३६० Tar Y २-३,९३,९८, मुदण्डेश्वर ३९१ ०.99FRIE १ ०४, १०९, १२,११८, मुद्दमावन्त २५० ARMER .११६४, १३६, १३९,१४, मनिगिरि ३४७
मा
१४०, १४८-९,१५३, १५७ मुनिचन्द्र (मुनीन्दु) Farm
८, १९४-१ ११-१७१) १७३, १७९, ९८२२९
२०७, २२४, २१५ IPPER
er 10
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२२९, २३३-४, २४६, २४९५३, २५६, २५८-६१, २६५७०, २७२, २७६, २७८, २८८, २९५-६, ३००, ३०६, ३१०-१, ३१५, ३१७, ३२१, ३२६, ३३५-६, ३४०, ३५९ - ६०, ३६३-४, ३७०, ३७५-६, ३७८-८२, ३९६
३७३,
४२९
मूलिगतिष्यय २६६
मृगेश १३-१५
मेघचन्द्र ५८, ६०, ९६, १३३-४,
१४०, १५५-६, २४९
मेघनन्दि २५०
मेडता ३८७, ४०३
मेण्डाम्बा ६६, ६८
मेलपराज ६६, ६८
मेलपाडि ५३
मेलरस १४४-५
मेलव्वे २६०
मेलाम्बा ६४
नामसूची
मेलमान्तलिंगे १८३, १८५ मेषपाषाणगच्छ १५७-८, ३७५
मैणदान्वय २६८
मैलम १४३, १४५
मैललदेवी ८५, १५१-३ मैलाप अन्वय १५३
मलुगि १७८, १८२ मंसुनाड २१५०६, २८३ मैसूर ३४९-५३ मोटेबेन्नूर ४०, ९८, २७५
मोदलियहल्लि १७० मोनभट्टारक ४२ मोरक कुल ७६
मोरब ९५
४६१
मोराझरी १९०, १९६
मोसल १९१, १९७
मोसले कुरुवु ३१६
मोसलेवाड २६५
मोहनदास ३४१, ३४३
मोगामा ३८७
मनपाचार्य ३५७
मौनिदेव १५०, १५२
यलवट्टि ३६३
यश कीर्ति २२१, २२३, ४०२-३
यशोनन्दि ५७
यशोराज १८९
यशोवर्मन् ८६
याकमन्त्रे १४२ - ३, १४६ यादव २५१, २५४, २५६-९,
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४१२
जैनशिलालेख-संग्रह २६३, २६५, ३८९-९० रनीति २६१, ३१०, ४०३-४, यापनीय सघ ४२,८०,८१, ९५, ४१५
१२२, १५०, १५२, १५३, रत्नगिरि २१, ३४४-५ १८६, २२७, २६६, २७५, रलचन्द्र १९७ ३७६, ३७७-८
रत्ननन्दि २०४, २०७ याप्पागलक्कारिंग ३९१ रलप्पोडेय ३१४ यावनिक ११-२
रत्नभूपण ३७७ यिवल्लिग्राम ३२९
रत्नापुरि २६७ योचलदाल ३३२-३
रवि १३-१५ येषिसेट्टि १०८
रविचन्द्र ५४, १२५, २५८, २७१ येडेहरिल ३३०-१, ३३३
रविनन्दि ५४ यरजिनालय ३६४
रससिद्धलगट्ट २०, ७२, २२६, चलगि ३७३
२९३
रगनवेट २१० योजणसेट्टि २८२, २८४, २८६-७
रंगप्पराज ३४४.४५ रक्कसमग ५९
रगरस २५६ रघु १३
राइकवाल ३९५, ३९७ रघुवर, रघूनी ३९४, ४१५
राचमल्ल ५८, ६०, १०९ राडि २४
राचय ७१ रजिनालय २४०, २४३, २४६,
राजकीति ४०५-६
राजके रिवर्मन् ५६, १९, १४० रट्टवय १२८, १३२, १५३, १८५, २३५, २३७, २४३, २४५,
राजग वृण्ड १००-१
राजदेव १६८.७१ रणकि १२३, १२५
राजदेवी १८९ रणपाकरस २६
राजपाल ४०० रणावलोक २८, ३०
राजभीम ६४-५, ६८
२४९
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मामसूची
राजमार्तण्ड ६४
राममेट्टि २८५ राजराज ७४, १७८-९, २८०, रामसेनान्वय ४०५-६, ४११, ३५४
४२७-८ राजलदेवो २५४
रामी ७-९ राजम्वे १७६, ३७५
रामोज ३७४ राजाधिराज ११०
रायगोड ३६० गजि १२०-१
रायगुग २७८, ३७८ राजिमय्य ११९
रायपाल १५९-६०, १६८-७१ राजेन्द्र ७५, ७८
रायवाग ७७, २३५, ३३६ राजेन्द्रशोलचेदिराजन् १२७ रायरसेट्टि ३८० राणिवेण्णूर ३७
रावदेवी १११ रामकीति ३९९,४१६
रावसेट्टि १६४ रामक्क २८२, २८४-७ राष्ट्रक्ट १५-६, २८, ३०-२, रामचन्द्र ८१-२, २६३, २६५, ३६-७, ४२, ४, ५०-१, ३१५, ३८९, ४२५
५३-५, ६४, १०९, १५९, रामटेक ३९५, ४०४,४०७,४२२ १७२, २४३, ३९४ रामण १८६, २८२, २८६
रासलदेवी १८९ रामतीर्थ ३८१
राहक १९१, १९७ रामदेव २६५, ३३९
रुद्रपाल १६० रामनाथ २६५
हगि २३५ रामनायक ३१०
रूपनारायणवसदि १६४-५ रामपुरम् ३८१
रेचय्य ७१, २५० रामप्प ३१३
रेचरस ३८४ रामराज ३१९, ३२२,३२६ रेचिदेव १०८, ११०
रचूरु ९३
रामन्चे २८६
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नामसूची
20
सोमय २६५, २७७
हनगल १८६ सोमलदेवी ७६, १८९
हनगुन्द ११२, १२६ सोमवै २८५-६
हनुमन्तगुठि ३१८ मोमसेन ३३६, ४०२, ४०४,४१२ हन्दिगुल २८६ सोमापुर ११३, २११, २१६ हजुरेमरस ३८४ सोमिदेव २१७
हम्पी २३४, २८८, ३९१ सोमेय २५९-६०
हम्मिक्च्चे ७९,८१, १२०.१ सोमेश्वर ८१-२, ८५, ९०, ९३. हरति ३४४.५
४, १०२, ११०, ११२, १८२ हरमिग १९५ १९०, १९६, २०८, २८२, हरिकान ३७२ ३८९, ३९०
हरिकेमरी ३७२ मोग्टूर १०२
हरिचन्द्र २७४ सोरव २९०.१
हरिदत्त १४.५ सोल्लण १०९
हरिद्वार १८० सोव २५९
हरिनन्दि १७२ सोवण १४६-७
हरियनन्दन २९१ सोवरम ८२, १७२
हरियनन्दि २५८, २७१ सोविडेव १९८,२०१
हग्विर्मा १०,४६,५०-१ स्थिरविनीत १८
हरिसेट्टि २८६ स्योमिघ ३९८
हग्निन २९४-५ स्वरटोर ३०१
हरिहर २७८, २८७-८, १५५-६, स्वर्णपुर ३४६
१९१ हट्टण १३१
हर्षोनि ४२२ हरजण २८३
हरग १८७ हत्तिमत्तूर २५८
हलमिग २१४ हदिनाटु १३३
३
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( 11 )
39. Nyayakumudacandra of Prabhācandra, Vol II See No 38 above Edited by Pt MAHENDRAKUMAR SHASTRI who has added an Introduction in Hindi dealing with the contents of the work and giving some details about the author. There is a Table of contents and twelve Appendices giving useful Indices Bombay 1941. Royal 8vo pp 20+94 +403-930. Price Rs. 8/8/-.
40 Varangacaritam of Jatä-Suhanandı A rare Sanskrit Kavya brought to light and edited with an exhaustive critical Introduction and Notes in English by Prof. A. N. Upadhye, M A, Bombay 1938, Crown pp 16+56+392, Price Rs 3/
41
Mahapurana of Puspadanta, Vol II (Samdhis 38-80): Sec No 37 above The Apabhramsa Text critically edited to the variant Readings and Glosses, along with an Introduction and five Appendices by Dr P L VAIDYA, MA, D Litt, Bombay 1940 Royal 8vo pp 24+570 Price Rs 101
42 Mahāpurana of Puspadanta, Vol III (Samdhis 81-102) Sec No 37 and 40 above The Apabhramsas Text critically edited with variant Readings and Glosses by Di P L VAIDYA, M. A, D Litt The Introduction covers a biography of Puspadanta, discussing all about his date, works, patrons and metropolis (Manyakheta). Pt. PREMI's essay 'Mahākavi Puspadanta' in Hindi is included here Bombay 1941. Royal 8vo pp. 32+28+314. Price Rs. 6/-.
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