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८२ जैनशिलालेस-सग्रह
[१३१स्थानीय अधिकारीका उल्लेख है जिसने पूलि नगरमें कुछ और जमीन खरीदकर उक्त मन्दिरको दान दी। उस समय रामचन्द्र वहाँक भट्टारक थे। यह नेमण उपर्युक्त लच्छिपन्वेका प्रपौत्र था।]
[ए इ. १८ पृ० १७२] १३१ मुगद (मैसूर)
शक ९६६ - सन १०१५, कन्नड [यह लेख चालुक्य सम्राट् लोक्यमल्ल आहवमल्ल ( सोमेश्वर १) के समय शक ९६६, पार्थिव सवत्सर, चैत्र शु. ५, रविवारके दिन लिखा गया था। इसमे नारावुण्ड चावुण्ड-द्वारा मुगुन्द ग्राममें स्वनिर्मित मम्यक्त्वरत्नाकर चैत्यालयके लिए कुछ भूमि अर्पण किये जानेका उल्लेख है । चावुण्डके पौत्र महासामन्त मातण्डय्य-द्वारा इस मन्दिरको एक नाटकगाला अर्पण किये जानेका भी इसमें उल्लेख है। उस समय पलसिगे तथा कोकण प्रदेशपर कदम्ब कुलके महामण्डलेश्वर चट्टय्यदेवका शामन चल रहा था। लेखमें कुमुदि गणके जैन आचार्योकी विस्तृत परम्परा भी बतलायी है। [ मूल कन्नडमें मुद्रित]
[सा० इ० इ० ११ पृ० ६८]
१३२ जोन्नगिरि (कुर्नूल, आन्ध्र)
1वीं सदी, कन्नड [ इस लेखमें चालुक्य राजा त्रैलोक्यमल्लदेवके समय वेगडे सोवरस सथा मल्लिसेट्टिका उल्लेख है। इन्होंने जोन्नगिरिको वसदिके लिए कुछ भूमि वान दी थी।
[रि० सा० ए० १९२९-३० ७० ६१७ पृ० ६०]