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जैनशिलालेय-संग्रह
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तिरुनिकोण्डै ( महाम)
११ीं सदी पूधि, नमिल [इस लेसका कुछ भाग दीवाली दवा है। उनके प्रारम्भमे राजेन्द्रचोल प्रथमकी ऐतिहासिक प्रशस्ति है। तिरुमणगि निवानी कलिमानन् विजयालयमल्लन्-द्वारा देवमन्दिरमे दीप प्रज्वलिन नेके लिए ९६ भेनें दान दी जानेका इनमे उल्लेख है। यह लेप चन्द्रनारमन्दिरके बरामदेके वाजूमे सुदा है।
[रि० मा० ए० १९३९-४० ऋ० ३०० पृ० ५ ]
१३० हलि (जि. वेलगांव,म्हगूर) शक ९६६ तथा १०६७ = मन् १०४४ तथा ११४", कन्नर १-२ श्रीमत्परमगमारस्यावादामाघरोउन । नीयात त्रैलोक्यनाथस्य
शासन जिनशास्न ॥ (1) ३ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपायलम महाराजाभिरान पर
मेश्वर परममहार४ क सस्याश्रयकुलतिलक चालुक्यामरण श्रीमहादवमलवर
विजयराज्य५ मुत्तरोत्तराभिवृधिप्रवर्धमानमाचरातारं मलुत्तमिर ॥ तपाठ
पभोपजीवि ॥ मले६ दं पगेवरं निर्मूलिसि जसम निमिचि दिमित्तिवरं कालढिय
घोलगदि वले पालिसिट तोचना७ रुम भुजबलदि । (२) आतन पुत्र धिनयोपेत पायिम्म-नृपतिगोपुर सति