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प्रस्तावना
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(क्र०९२) राजराज १ के समय कुछ जैन आचार्योंका उल्लेख है। दसवी सदीके उत्तरार्धके एक दानलेखमें (क्र. ९८) गण्डरादित्य मुम्मुडि चोल राजाका उल्लेख है। सन् १००९ के एक लेखमें ( ऋ० ११९) राजराज १ की आज्ञाका वर्णन है जो ब्राह्मणो तथा जैनोको नियमित रूपसे कर देनेके लिए दी गयी थी। दो दानलेखोमें (क्र० १२१,१२९) ग्यारहवी सदी-पूर्वार्धमें राजेन्द्र १ चोलके शासनका उल्लेख है । सन् १०६८ के दो दानलेख राजेन्द्र २ के शासनकालके है (क्र० १५०-५१)। कुलोत्तुग १ के शामनके पांच लेख है (क्र. १६७,१७३,१९४,१९५,१९८) । जो सन् १०८६ से १११८ तकके दानलेख है। विक्रमचोलके शासनके दो दानलेख सन् ११३१ तथा ११३४ के है (क्र. २१५,२१९) कुलोत्तुग २ के राज्यकालके तीन लेख है जिनमे एक सन् ११३७ का है (क्र. २२३, २२४,२२६ ) । राजराज २ के शासनके तीन लेख सन् १९५६-५७ के है । (क्र० २४८-२५०) । कुलोत्तुग ३ के समयके दो लेख है (क्र० ३२४,३८०) इनमें पहला सन् १२१६ का तथा दूसरा अनिश्चित समयका है। इस दूसरे लेखके अनुसार कुलोत्तुग राजाने नल्लूर नामक गाव एक देवमन्दिरको अर्पण किया था।
इस तरह हम देखते है कि चोल राजाओके प्राय सब लेख राजपुरुषोसे साक्षात् सम्बन्ध नही रखते।
युद्धके दिनोमें चोल सेनाद्वारा जिनमन्दिरोका विध्वस होनेका वर्णन सन् १०७१-७२ के एक लेखमें (क्र. १५४) हुआ है।
(श्रा = ) होयसल वंश-इस वशके कोई ३० लेख प्रस्तुत सग्रहमे हैं। इनमे सबसे पहला लेख (क्र० १४५) सन् १०६२ का है तथा
१. पहले संग्रहमें इस घंशके कई लेख हैं जिनमें पहला (क्र० २००)
सन् १०६२ का ही है।