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________________ मारव आदिके लेख १४३ मोरव ( धारवाड, मैसूर ) शक ९८१ = सन् १०६०, संस्कृत - कन्नड [ यह लेख मार्गशिर शु० २ शक ९८१ विकारि सवत्सरका है । इसमें यापनीय सघके जयकीर्तिदेवके शिष्य नागचन्द्र सिद्धान्तदेवके समाधिमरणका उल्लेख है । उनके शिष्य कनकशक्ति सिद्धान्तदेवने यह निसिधि स्थापित की थी । नागचन्द्रको मन्त्रचूडामणि यह विरुद दिया है । ] [ रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई० २३९ पृ० ५६ ] -१४५ ] १४४ छवि (जि० घारवाड, मैसूर ) शक ९८२ = सन् १०६०, कन्नड [ इम लेखमें सन्वि नगरके घोरजिनालयके आचार्य कनकनन्दिके समाधिमरणका उल्लेख है । इनकी निसिधि भागिपब्वे द्वारा स्थापित की गयी । इम लेखकी रचना वच्चने की तथा नाकिगने उसे उत्कीर्ण किया । तिथि वैशाख ० ५, रविवार गक ९८२ शर्वरी सवत्सर ऐसी थी । ] [रि० स० ए० १९४१-४२ ई० क्र० १५ पृ० २५६ ] १४५ तोललु (मैसूर) ९५ शक ९८३ = सन् १०६२, कन्नड इस लेखकी पहली ८ पक्तियाँ घिस गयी हैं । ९. कस्कन्धरे केलेयव्वरिसि वीरगग पोयिसलगं १० पेम्पनवद्यु “विनयार्क पो ११ बिसलननप' 'मादि ॥ श्रीवर्धमानस्वामि
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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