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________________ जैनशिलालेस-सग्रह [५३६ कनुपर्तिपाडु ( नेलोर, आन्ध्र) तमिल [ इस लेखमें करिकालचील जिनमन्दिरके लिए मतिमागरदेवके उपदेशसे प्रमलदेवी-द्वारा सीढियां बनवानेका निर्देश है। यह लेख सम्राद् राजराजदेवके ३७वें वर्षका है। नोट-चोल राजराज नामक किमी भी राजाका राज्य ३७ वर्षकी दीर्घ सीमा तक नहीं पाया जाता । अत इम लेखकी तिथि गलत प्रतीत होती है। (इ० म० नेलोर ५०२) तिरुनिङकोण्डै (मद्रास) तमिल [ यह लेख पल्लव राजा सकल भुवनचक्रवति पेजिगदेवके तीसरे राज्यवर्पका है। इसमें इस देव-मन्दिरको प्रदक्षिणामालिकाका निर्माण पालगर निवासी शिंगन-द्वारा किये जानेका उल्लेख है। लेख चन्द्रनाथमन्दिरके प्राकारके पश्चिमी दीवारपर खुदा है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३१४ पृ० ६६] ५३८ गेरसोप्पे ( मैपूर ) सस्कृत-कन्नड , धनशोकवलीमचलनेगीगणलक्षितकीर्तिमुनिसूनो (0) श्रीदेव चन्द्रसूररुपदेशानेमिजिनयिम् ।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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