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________________ -७३९ ] गैरमोप्पे लेख • श्लोकः ॥ भोजणनेष्टिपुत्रोमो करलपश्रेष्ठिपुगव (1) अकारयत् सुतां यन्त्र मावास्यागमंजोजग• ॥ [ यह नेमिनाथ मूर्ति ओजणश्रेष्ठिके प्रपोत्र तथा कल्लपथेष्ठि एव मावास्वाके पुन अजणश्रेष्टने देगीगण धनशोकवनीके आचार्य ललितकांतिके शिग्न देवचन्द्रमूरिके उपदेशमे स्थापित की। ] [ ए०रि० मं० १९२८ पृ० ९५ ] E गेरसोपे (मैसूर) कन्चट ३५५ १ श्रीमत्परमगंमीरस्यादूवादामोघलाइनं (1) जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन ( 11 ) २ श्रीजिनराजराजित पदाम्बुजरा मराल नगिरिय राजशिरो ३ मणि प्रचुरकीर्ति दिशावालयप्रकाशनु तेजभुजप्रताप रिपुरानमुखा - ४ बुजं हस्तवीरनुं भूजनवन्ध होननृपनर्थिजनावन क्ल्पवृक्षनु होन् ५ नमहीशनात्मजेयु मालियव्वरभिगे कामराजगं सन्नुतमूर्ति होन नृपनान्ममवान् ६ धव मगराजनु मन्मथरूप हरिहरनृपालकनातन पुत्र हैवणरसंग मन प्रियान् 13 गनेयु मान्तलदेवि नमाधिकाच्दालु भाकेय गुरगलु लोक्रयातियनान्तिद् अनन् ८ तवीर्यरु रतिसंकाशसोबगे निमि सन्दि कान्तंगे हैवणरस चल्लमनादं । स्मररूपं ९ सूत्रकी पुरदोल कीर्तिवेत्त बोम्मणसंहिय वरवनिते बोम्मकग वरसुगु
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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