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________________ -२०१] बेलरका लेस १६ सोडरिगे सलुबुदु ॥ यसदिगे विट्टीधर्मम१७ नोसदु कर मलिसुतिढंगक्कु पुण्य भसव१८ मदि केडिपिदवर्गल पसुत्रु ग्राह्मण७९ न कोट वधे ममनिसुगु ॥ स्वदत्तां पर२० दत्ता वा यो हरेत वसुंधरा पष्टिपंस२१ हलाणि विष्टाया जायते क्रिमि () । [यह लेख होयसल राजा विष्णुवर्वनके राज्यमे मार्गशिर शु० ५, सोमवार, राक १०४४, प्लव मवत्सरके दिन लिया गया था। दण्डनायक गगपय्य-द्वारा मोवणदण्डनायकको स्मृतिमे हादरवागिलु ग्राममे एक जैन मन्दिरको स्थापनाका तया उसे दिये गये दानका उल्लेख इम लेपमे किया [ए० रि० म० १९३८ पृ० १६६ ] २०१ चेलर ( मैमूर) १२वीं सटी- पूर्वाध, कन्नड १ पुणिसचमूपनेम्बेसेव शासनवाचकचक्रवर्तिगिन्तेनिसलोड पोगत तनगागिरे पुष्टिट चामराज नाकण कुमरय्यनेम्ब रत्नत्रयमू२ तिगे पुननोप्पिट पुणिममदण्डनाथनुदितोदितचामचमूपसमव (1) नमः सिद्धेभ्यः (1) [ यह लेख किसी जैन मन्दिरके स्तम्भपर था। वह स्तम्भ वादमे केशवमन्दिरमें लगाया हुआ पाया गया। इसमें सेनापति पुणिस तथा उसके तीन पुन चामराज, नाकण तथा कुमरय्यकी प्रशसा की है। यह पद्य अन्य लेखोमें भी पाया गया है। पुणिस राजा विष्णुवर्धनका जैन सेनापति था।] [ए. रि० मै० १९३४ पृ० ८३ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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