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प्रस्तावना
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था (क्र० ५८)। सित्तन्नवासलके गुहामन्दिरका जीर्णोद्धार नवी सदीमें राजा अवनिपोखर श्रीवल्लभके समयमें हुआ था (क्र. ६२)। इस वंशका अन्तिम लेख ( ऋ० ३५६ ) सन् १२९० का एक दानलेख है तथा इसमें मारवर्मन् विक्रम पाण्ड्यके राज्यका उल्लेख है ।
(आ ५) पल्लववंश-इसका उल्लेख तीन लेखोमें है । इनमै पहला लेख (क्र० २०) छठी सदीके पूर्वाधका है। इसमें पल्लव राजा सिंहविष्णुकी माता-द्वारा निर्मित एक जिनमन्दिरका वर्णन है। दूसरे लेख (क्र० ३९) मै सातवी-आठवी सीके शासक पल्लवादित्य वादिराजुलको अहंत भट्टारकक पादानुष्यात कहा है । तीसरा लेख (क्र० ५३७ ) अनिश्चित समयका है तथा इममें पेरुजिंगदेव नामक पल्लव राजाके शासनका उल्लेख है।'
(आ६) चालुक्य वंश-बदामीके चालुक्य राजाओंके दो लेख इस सग्रहमें है। पहला (क्र. ४६ ) सन् ७०८ का है तथा इसमें राजा निजयादित्यको रानी कुकुमदेवी-द्वारा निर्मित जिनमन्दिरका उल्लेख है। दूसरे लेख (क्र० ४६ ) में राजा कीर्तिवर्मा रके राज्यमें सन् ७५१ में एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है। ' वेंगीके चालुक्य राजाओंके तीन लेख इस सग्रहमे है। पहला (क्र० ४४ ) लेख राजा जयसिंहवल्लभ २के राज्यका-आठवी सदीके प्रारम्भका है तथा इममें रट्टगुडि वशके सामन्त कल्याणवसन्त-द्वारा महंत भट्टारकको कुछ दानका वर्णन है । दूसरा लेख (क्र. ४९ ) आठवी सदीके उत्तरार्धम राजा सर्वलोकाश्रय विष्णुवर्षनके समयका है तथा इसमें सामन्त गोकय्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए दानका वर्णन है। तीमरे (क्र० १००) १. इस वंशका एक लेस पहले संग्रहमें है (क्र० ११५)। २ इस शासाके ६ लेस पहले संग्रहम हैं (ऋ० १०६-८ तथा १११,
३. इस शाखाके तीन लेख पहले संग्रहमें हैं (क० ११३-१४४, २१०)।