________________
-५३०] मैसूरका लेख
३५१ [इन लेखमे निर्देश किया है कि प्रस्तुत द्वारका निर्माण धनिकार मरिनागके पुत्र नाग-द्वारा किया गया। इस लेखमें समयनिर्देश नही है किन्नु पिछले लेखका ही समय इसका भी होगा ऐसा अनुमान होता है ।।
[ए. रि० मै० १९३६ पृ० १०३ ]
मैसूर
शक १७०४=मन् १८३२, संस्कृत-कन्नड
अनन्ततीर्थकरकी मूर्ति - शान्तीश्वर वसति १ श्रीमत्कश्यपगोत्रजो जिनपढामोजे लमं षट्पट क्षात्रीयोत्तम
देवराजनृपति. सदर्म२ पल्या मह (1) पम्मण्यमिधानया प्रनयुजा स्वर्गापवर्गप्रदं
कृस्वानतव्रतं तढा३ रचितवान् बिंव मुदतच्छुम ॥ अत्रुधींद्रियशैलेंदु-अमितेस्मिन्
शकाठक। ४ नन्दने वत्सरे मामास शुक्लाष्टमीतियाँ। अनतनाथविषस्य
प्रतिष्टां जग५ दुत्तरां ( 1 ) कारयामास पूर्वोक्तठेबराजनृपोत्तमः ॥
[इस लेखमे कश्यप गोत्रके उत्तम क्षत्रिय राजा देवराज तथा उनकी धर्मपत्नी केंपम्मण्णि-द्वारा अनन्तव्रतको पूर्णताका उल्लेख है। उक्त दम्पतिने इस अवसरपर भाद्र शुक्ल अष्टमी, शक १७५४, नन्दन सवत्सर,के दिन अनन्तनाथकी यह मूर्ति स्थापित की। इस समय मैसूरमें कृष्णराज वडेयर (तृतीय ) का राज्य चल रहा था। मत लेखोक्त देवराज नृपति मैमूरकी अरतु नातिके प्रमुखोमें से एक थे ऐसा अनुमान होता है। ]
(ए. रि० मै० १९३६ पृ० १०१)