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________________ १७२ जनशिलालग्न मग्रह [016सूरस्थ गण-चिनकूट गच्छके हरिणन्दिदेवको अपित की जानका उल्लेग है। मल्लगावुण्ड चतुर्यजातिका व्यक्ति था।] [रि० मा० ० १९३३.३८1०:०६१ पृ० १२४ ] करगुरि (जि. धाग्याद, मैमूर ) सन १९४८, कन्नड [ यह लेख पौष शुक्ल १, मोमवार, प्रभव मनन्सर, के दिन लिखा गया था। महावटुव्यवहारि कलिलमट्टि-दाग करेंगदुरेमें विजयपार्वजिनेन्द्र मन्दिर बनवाया गया उमे कुछ जमीन दान टेनका उममे निर्देश है। यह दान मूरस्थ गण, चित्रकूट अन्वरके वासुपूज्यके मित्र हरिणन्दिक शिष्य नागचन्द्र भट्टारकको दिया गया था। उस समय महाप्रचण्डदण्डनायक सोवरसका शामन हानुगल ५०० के प्रदेशपर चल रहा था तथा उसके एक भागपर मण्डलेश कदम्बवनीय तेलका अधिकार था। इम ममय चालुक्य प्रतापचक्रवर्ती जगदेकमल मम्राट् थे।] [रि० इ० ए० १९५०-५१ ० 0] ૨૨ हुलगूर (जि. धारवाट, मैमूर ) १२वी मही- मध्य, कन्नड [ यह लेख मधूरा है । चालुक्य मम्राट् जगदकमलके ममय पुरिंगरे बलवोल प्रदेशापर महाप्रचण्डदण्डनायक वावणरम गासन कर रहा था। इसका सामन्त मणलेर कुलका जयकेशी या जो पुरिगेरेके राष्ट्रकूट पदका अधिकारी या। इसके समयकी एक जैन धाविका नालिकब्वेका इस लेसमे निदेश है।] (रि० सा० ए० १९४४-४५ एफ ३२)
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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