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________________ -<] खण्डगिरिके लेख ५ खण्डगिरि - ( मचपुरी गुहा - नीचेका भाग ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी कुमारो वदुखस लेण [ यह गुहा कुमार चडुलने वनवायी । ] चूलकमस कोठाजेया च [ ए० ई० १३० १६१ ] ६ खण्डगिरि ( सर्पगुहा ) प्राकृत - ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी [ चूलकम्म ( क्षुद्रकर्म अथवा चूडाकर्म ) का कक्ष 1 ] [ ए० इ० १३ पृ० १६२ ] खण्डगिरि ( सर्पगुहा ) प्राकून - ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी १ कमस हलखि २ णय च पसादो [ कर्म तथा हलखिण ( सल्लक्षण ) का बनवाया प्रासाद । ] [ ए० इ० १३ पृ० १६२ ] ८ खण्डगिरि (हरिदास गुहा ) प्राकृत-ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी [ यह लेख सर्पगुहाके पहले लेखके समान ही है । ] [ ए० इ० १३ पृ० १६२ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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