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जैनशिलालेग्य-संग्रह
[२८२६३ गव य मोरहि चचरिवल मत्तवी कडलेयहलिय नैऋत्यद
बलरेय कणि-- ६४ यकलु खडय 'कालवूबल्ल मत्तिय मरन 'गल्लुतह
मानवी कल्लेअहलिय वायव्य६५ द सोरेनात हल्लियबीहिन विसन्धियोलु • 'कर्गलमोरडि अलि
चंचरिवल्ल वेन्त घटवृक्ष भ १६ छि मत्तची कडलेयहल्लिय ईशान्य गुम्मनवृत्तिय विसन्धिय ___ नडगणेय कूडिन्तु इन्तिदु सीमाक्रम । मंगल महाश्री ६७ भूमिटामात् पर दान || स्वदत्ता परटन्तां चा यो ६८ हरत बसुन्धरा पष्टिवर्षसहस्राणि विष्टायां जायते किमि
[ इस लेखके प्रारम्भमें होयसल राजाओकी बगावली वीरवल्लाल (द्वितीय) तक दी है। वीरवल्लालने मैसेनाट प्रदेणके दो ग्राम-मुच्छण्डि तथा कडलेहल्लि अभिनवगान्तिनाथमन्दिरको अर्पण किये थे। इस दानकी तिथि शक १११४ की उत्तरायणसक्रान्ति थी। यह मन्दिर कई नाडुगोण्डाने तथा सेट्टियोने मिलकर बनाया था। मन्दिरके कार्यका निरीक्षण कर युवराजके प्रसन्न होनेपर राजाने यह दान दिया था। वासुपूज्य प्रतीन्द्रके शिष्य वचनन्दि सिद्धान्तदेव इस मन्दिरके प्रमुख थे। इनको गुरुपरम्पराम
मिलसघनन्दिसध-अरुगलान्वयके निम्नलिखित आचार्योक नाम दिये हैगौतम, भद्रवाह, भूतर्याल, पुष्पदन्त, सुमति, अकलक, वक्रग्रीव, वचनन्दि, सिंहनन्दि, परवाधिमाल, श्रीपाल, हेमसेन, दयापाल, श्रीविजय, शान्तिदेव, पुष्पसेन्द्र, वादिराज, शान्तदेव, पन्दब्रह्म, अजितसेन, मरिलपेण, श्रीपाल (द्वितीय)। धोपाल विद्यके शिष्य वासुपूज्यवतीन्द्र ही ववनन्दिके गुरु थे। वर्तमान समयमै यह लेख सोमपुरके निकट नजदेवरगुड नामक पहाडीपर है । वहाँके मन्दिरका रूपान्तर शिवमन्दिरमे हो गया है।]
[ए. रि० मै० १९२६ पृ० ४७]