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________________ -१९] बेलगावका लेख २४३ [ इस लेखका साराग जै० शि० मं० भा० ३ में क्रमाक ४५३ मे आ गरा है। किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नही हुना था। पाठकोकी सुविधाके लिए साराशको मुत्र वातें यहां दोहरायी जाती हैं। इस लेखमें रट्ट वशके राजा कातंत्रीय (चतुर्थ) तया उनके वन्वु मल्लिकार्जुनका एव उनके मन्त्री बीचणका उनके पूर्वजोसहित परिचय दिया है। वीचणने बेलगांवमें रजिनालय स्थापित किया था। इस मन्दिरके प्रधान भट्टारक शुभचन्द्रको शक ११२७, रक्तानी संवत्सरमें द्वितीय पोप गुक्ल २ को वेलगांवकी कुछ जमीन तथा कुछ करोका उत्पन्न दान दिया गया था। इस शिलालेखके पाठको रचना माधवचन्द्र विद्यके शिष्य वालचन्द्र कविकन्दर्पने की थी। [ए० इ० १३ पृ० १५] ३१६ वेलगांव ( क्रमाक २) (ब्रिटिश म्यूजियम) शक ११२७ = सन् १२०४, कन्नड १ श्रीमलरनगमोरस्याटाढानोघलांछन। नीचात् त्रैलोक्यनाथस्त शासन जिनशासनं ॥ नमो वीतरागाय शान्नये ॥ २ श्रोजिनसमयनवावुधि राजिसुतिर्कमथनूर्जितामृनरत्नश्रीजनन गृहं सत्वढयाजीवनमपरिमितगमीरम३ पारं ॥ नंबूद्वीपट भरतदोलवुजभवसारसष्टि कूडिमहींचक्र यगे___ गोलिपुदु सकलजनावकघनसुकृ- ४ तफलविलासनिवास ॥ श्रीराष्ट्रकूटवशसरोरहयनराजहंसनाद नाम विस्तारियशोनिधि सेनमहीरमण ५ संभृतामलोमयपकं ॥ मिरिय निजानुजेयनावरटिं शशियित्त राजनाई नणपं धरियिसि मिझता सेनराजनी
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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