________________
१९६
जैनशिलालेख-सग्रह
[२६५तत्पुत्रो पाल्हणो मुवि । वदगजेमाहडेनापि निर्मापित जिनमदिरं ॥३०॥ नानिग. पुत्रगोविंदपाल्हणसुतदेल्हणौ। उस्की प्रशहिमरेषा च कीर्तिस्तम्म प्रतिष्ठितं ॥३१॥ प्रसिद्धिमगम व काले
विक्रममास्वत षड्विंशे द्वादशशते फाल्गुने कृष्णपक्षके ॥२॥ २६ (१)तीयायां तियो चारे गुरुस्वारेच हस्तकं । तिनामनि योगे
च करणे तैतिले तया ॥१३॥ (स) वद १२२६ फाल्गुन पदि ३ कावारेवणाग्रामयोरतराले गुहिलपुत्र रा० दाधरमहं धणसीहाम्या दत्त क्षेत्र डोहली १ खदुबरामाभवास्तव्य गोडसोनिगवासुदेवाभ्यां दत्त डोहलिका १ आंतरीप्रतिगणके रायताप्रामीय महंतमलीवडिपोपलिम्या दत्त क्षेत्र डोहलिका लघुवीझोलिग्राम सगुहिल
पुत्र राज्याहरूमहतममाहवा-- ३० (भ्या ६) सक्षे (त्र) डोहलिका १ बहुभिर्वसुधा भुक्ता रानमि
मरतादिमि । यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदा फल छि॥ [ इस लेखका निर्देश जै०शि० स० के तृतीय भाग में क्र० ३७४ पर हुआ है किन्तु उस समय इसे श्वेताम्बर लेख समझकर मूल पाठ नही दिया गया था। इसमें पहले २८ श्लोकोमे साभरके चौहान राजाओकी घशावली चाहुमानसे सोमेश्वर तक दी है। इसमें कुल ३१ राजानाकै नाम है। इनमें अन्तिम दो राजाओने इस स्थानके पार्श्वनाथ मन्दिरको दो गांव दान दिये थे-पृथ्वीराज (द्वितीय) ने मोराझरी गांव और सोमेश्वरने रेवणा गांव दिया था। तदनन्तर इस मन्दिरके निर्माताको वशावली विस्तारसे ५१वें श्लाक तक दो है जो इस प्रकार है -
प्राग्वाटवशीय वैश्रवण ( इसने तडागपत्तन, व्याप्रेरक आदि स्थानोम मन्दिर बनवाये)- उसका पुत्र चच्चुल-उसका पुत्र शुभकर-उसका पुत्र जामट (इसने नाराणक स्थानमें वर्धमान मन्दिर बनवाया)-उसकी दो स्त्रियोसे दो दो पुत्र हुए - आम्बट, पघट, लक्ष्मट तथा देसल (इनने