Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 4
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
जैन शिलालेम-मंग्रह
२६७ समत १६२७ माघ सुदी ५ मोमं प्रतिष्टितं ।
( विवरण क्र० ३७३-१ ) २६६ श्रीमूलमंगचे " समत १६२६ प्रभवनाम संवत्परं श्रावण व ॥५॥ ( विवरण क्र० ४५१ ) २६७ समत १९२८ प्रभवनाममवत्परे माघ शुक्ल द्वादशीतियो सुत्रामरं प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत देवेंद्रकीर्तिमहारक प्रतिष्ठा करणार वारसा मनापाव | ( विवरण क्र० ३३३ )
४२४
२६८ श्रीपारसनाथजी संमत १९२८ । ( विवरण क्र० २३२ ) २६६ मचन १९२८ प्रजापतिनामसंवत्सरं माघशुले द्वादशांतियां बुध वासरे प्रतिष्ठाचार्य श्रीमन देवेंद्रकीनि मट्टारक प्रतिष्टा करविणा मनालाल व्यवाईमधवी । ( विवरण क्र० १२ )
२७० मत ११२८ ( विवरण क्र० ३ )
२७१ ॐ चंद्रनाथ ग्रेन समत १९३३ | ( विवरण ऋ० ७० ) २७२ समत १६३६ शके १८०४.० प्रतिष्ठाचार्य विद्यालकिनीं महारक प्रतिष्ठा करविणार सुनीयाचाई परचार्गन । ( विवरण क्र० २०९ ) २७३ श्रीपारसनाथत्री म० १९१८ ( विवरण क्र० ३०१ ) २७४ ममा १९७२ वैमान सुदि १९ मोमबासर प्रविष्टिनं । ( विवरण क्र० ८१ ) २७० मं० १०५८ ० ० १२ पनागा मोजामात्र ।
( विवरण क्र० २०० 3) २७६ संनव १६५८ वैमान शुद्ध १५ मूलमंचे कुकुटाम्नाये नहाक देवेंद्रकोति प्रतिष्टितं । ( चित्रग्ण ऋ० ३७६ )
२७७ मा० गी० ७ श्री० २१० ६० स्व० वा० सी० प्र० प्र० ना० मं० १९६१ | ( विवरण क्र० ११८ )
* यह संवत्सर नाम गलत प्रतीत होता है।

Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464