Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 4
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 397
________________ ४२८ जैनशिलालेख-सग्रह ३०० "महाराजाधिराज""देवेंद्रकीर्ति वलात्कारगण सरस्वती [गच्छ) । (विवरण ऋ० १९३) ३०१ भ० हेमकीर्ति उपदेशात् स० प्रतिष्ठितं । (विवरण ३० २०७) ३०२ हेमराज तल पुत्र हसराज भार्या तमाबाई प्रतिष्ठा माघ सुदी"। (विवरण क० २८१) ३०३ सातनाथ ।(विवरण क्र० ३५३) ३०४ श्री भादिसर । (विवरण क्र० ३५४) ३०५ श्रीमू० स० भ० श्रीधर्मचंद्रोपदेशात् रामसेन । (विवरण क्र० ३७९) ३०६ श्रीमू० भ० जि० का प सेठ प्र (१) (विवरण क्र० ३८१) ३०७ श्रीमूलराधे म० श्रीमुवनकीर्ति ।(विवरण क्र० ३९०-४६३) ३०८ श्रीमूलसग । (विवरण ० ३९५, ४०३, ४५६, ४८६) ३०९ श्रीमू० स०१०। (विवरण क्र. ४००) ३१० श्रीधर्मचंदडपदेशात् कपरसेट । (विवरण क्र. ४०४) ३११ लसमनसा रूपा । (विवरण क्र० ४०७) ३१२ ३०१० नेमीचनी। (विवरण क्र० ४२०) ३१३ सनगण म० श्रीलक्ष्मीसेन च्चारित्रमति सेवक देवांचे चंद्रा इत्ये । (दिवरण ऋ० १६४) ३१९ मू० १० १० धर्मचंद्र हेमसेठ नित्यं ता। (विवरण ३० ४४२) ३३५ मूलसधे म. सुरेन्द्रकीर्ति प्रारत । (विवरण ३० ४५५) ३१६ मू० म. जि. पार वा ग3 (1) (विवरण ऋ० ४६४) ३१७ श्रीमादिनाथ सा० श्रीवंत । (विवरण ० ४६६) ३१९ मु० संघ तानसेट बमनौसा। (विवरण क्र० ४७२) ३१९ श्रीमलसंघ ब्रहा. मल्लिदास सा मार्या सखाई। (विवरण क्र. ४८०)

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