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जैनशिलालेख - सग्रह
जानेका निर्देश है। इसी लेखके दूसरे भागमे उसी कुलके एक दूसरे कलियम्मरसका उल्लेख है जो चालुक्य सम्राट् भूलोकमल्ल सोमेश्वर तृतीयका सामन्त था । इसने सम्राट्के राज्यके ९ वें वर्ष अर्थात् शक १०५६ में उक्त मन्दिरको कुछ दान दिया था । इस कलियम्मरसने माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी ।
तीसरे लेखमें उक्त कलियम्मरस ( द्वितीय ) का उल्लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( पष्ठ ) के राज्यके दसवें वर्ष ( सन् १०८५ ) में किया है जब उसने कोलूरमें कुछ धार्मिक दान दिया था ।
चौथा लेख सम्राट् विक्रमादित्य ( पष्ठ ) के राज्यके ४६ वें वर्ष (स० ११२१ ) का है । इसका सामन्त हेमडियरस था जो उक्त कलियम्मरस (द्वितीय) का पुत्र था । इसने कोलूरमें त्रिभुवनेश्वर तथा भैरबके मन्दिरोको कुछ दान दिया था । तथा माहेश्वर दीक्षा ग्रहण की थी ।
पांचवा लेख यादव राजा सिंघण ( तेरहवी सदीका पूर्वार्ध) के राज्यकालका है । इसका सामन्त मल्लिदेवरस था जो उक्त जीमूतवाहन अन्वयमें उत्पन्न हुआ था । इसने कोल्लूरके क्षेत्रपाल मन्दिरको कुछ दान दिया था ।
यहाँ द्रष्टव्य है कि कलियम्मरस (द्वितीय), हेमडियरस तथा मल्लि देवरस शैव थे फिर भी उन्हें पद्मावती लब्धवरप्रसाद यह पुराना विशेषण दिया है।
छठा लेख विक्रमादित्य ( पष्ठ ) के राज्यके ४थे वर्ष (सन् १०७९) का है । इसके अधीन नोलम्बवाडि तथा सान्तलिगे प्रदेशपर चैलाक्यमल्ल ( जयसिंह तृतीय ) शासन कर रहा था तथा वनवासि प्रदेशपर बलदेवय्पका शासन था । वलदेवय्यको जिनचरणकमलभृग यह विशेषण दिया है । इसके अधीन कुछ करोका उत्पन्न कोलूरके ग्रामेश्वर मन्दिर के लिए किसी haarचार्यको दान दिया था । ]
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